Tuesday, 12 May 2015

जाने क्या है सप्तम भाव आपकी कुंडली में

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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का भाग्य कितना साथ देता है यहां इसकी चर्चा की जा रही है.
मेष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in aries ascendant)
मेष लग्न की कुण्डली में सातवें घर में तुला राशि होती है जिसका स्वामी शुक्र ग्रह होता है. शुक्र मेष लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दो मारक भावों का स्वामी होने के कारण पूर्ण मारकेश होता है. मेष लग्न में भग्य स्थान का स्वामी गुरू होता है जो शुक्र के शत्रु ग्रह की राशि होती है.
शत्रु ग्रह की राशि में बैठा शुक्र भाग्य को कमज़ोर बनाता है. परंतु, शुक्र यदि 3020' से 6040' तथा 200 से 23020 तक होंगे तब भाग्य का सहयोग आपको मिलता रहेगा. भाग्य भाव में शुक्र के साथ बुध भी हो तो यह भाग्य को बहुत ही कमज़ोर बना देता है.
मेष लग्न वालों की कुण्डली में सप्तमेश भाग्य भाव में बैठा हो तो व्यक्ति को जीवनसाथी के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. जीवनसाथी से सहयोग एवं सलाह लेकर कार्य करना भी फायदेमंद होता है.
वृष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Taurus ascendant)
वृष लग्न की कुण्डली में सप्तमेश मंगल होता है. वृष लग्न में भाग्य स्थान में बैठा मंगल अपनी उच्च राशि में होता है फिर भी यह व्यक्ति के भाग्य में बाधक होता है. विशेषतौर पर विवाह के पश्चात भाग्य में अधिक अवरोध आता है. लेकिन, मंगल कुण्डली में यदि 100 से 13020' तक हो तो शुभ फल देता है. मंगल यदि नवम भाव में नीच गुरू के साथ हो तो यह भाग्य को अधिक कमज़ोर बनाता है.
कर्क लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Cancer ascendant)
कर्क लग्न की कुण्डली में शनि सप्तम भाव के स्वामी होते हैं. कर्क लग्न में शनि अष्टमेश भी होते हैं अत: नवम भाव में सम राशि में होने पर भी भाग्योदय में सहायक नहीं होते हैं. हालांकि कुण्डली में 13020' के बीच में होने पर शानि भाग्य को बलवान बना सकते हैं. अन्य स्थितियों में शनि से अधिक शुभ फल की उम्मीद करना फायदेमंद नहीं होगा.
सिंह लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Leo ascendant)
सिंह लग्न की कुण्डली में सातवें घर में कुम्भ राशि होती है इसलिए सिंह लग्न में शनि को सप्तमेश माना जाता है. भाग्य स्थान में शनि होने पर व्यक्ति के भाग्य में रूकावट आती रहती है विशेषतौर पर विवाह के पश्चात शनि भाग्योदय में सहायता नहीं करते हैं. इसका कारण यह है कि सिंह लग्न स्थिर लग्न है और स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक होता है. बाधक भाव में नीच शनि होने की वजह से भाग्य कमज़ोर हो जाता है. जन्म कुण्डली में शनि यदि 23020' पर हो तो भाग्य को कुछ बल मिल सकता है.
कन्या लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Virgo ascendant)
गुरू कन्या लग्न में सप्तमेश होते हैं. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू भाग्य भाव में स्थित हो तो शुभ फल देते हैं यानी भाग्य को बल मिलता है. हालांकि नवम भाव में गुरू अपने शत्रु राशि में होते हैं तथा कन्या लग्न में गुरू को केन्द्रधिपति दोष लगता है. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू बुध के साथ भाग्य भाव में होने पर भाग्य बहुत बलवान हो जाता है. इसके विपरीत मंगल के साथ गुरू होने पर भाग्य में बाधा आती है.
तुला लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Libra ascendant)
तुला लग्न में सप्तमेश मंगल होता है. मंगल तुला लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दोनों मारक भावों का स्वामी होने के कारण भाग्योदय में मंगल बाधक होता है. तुला लग्न में नवम नवम भाव में मंगल शत्रु राशि में भी होता है अत: दोनों ही तरह से मंगल को भाग्य में अवरोध कहा जाता है. मंगल के साथ यदि अन्य कोई ग्रह हो तो शत्रुओं के कारण भाग्य में बाधा आती रहती है. ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार तुला लग्न में भाग्य भाव में बैठा मंगल भाग्य में बाधक होते हुए भी कुछ स्थितियों में शुभ फल दे सकता है जैसे कुण्डली में मंगल 3020' से 6040' तक तथा 100 से 13020' तक हो.
वृश्चिक लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in scorpio ascendant)
शुक्र वृश्चिक लग्न में सप्तमेश होते हैं. शुभ ग्रह होने के बावजूद भी भाग्य स्थान में बैठने पर शुक्र भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होते हैं क्योंकि, स्थिर लग्न में नवम भाव बाधाक भाव होता है. बाधक भाव में शुक्र होने के कारण शुक्र का शुभ प्रभाव कम हो जाता है. इस स्थिति में यदि शुक्र की बुध के साथ युति हो तो भाग्य में अधिक बाधाएं आएंगी. कुण्डली में यदि शुक्र 100 से 13020' तक हो तो शुक्र भाग्य को बल प्रदान कर सकता है.
धनु लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in sagittarius ascendant)
धनु लग्न में बुध सातवें घर का स्वामी होता है. धनु लग्न में नवम भाव में सिंह राशि होती है जो बुध की मित्र राशि है. मित्र राशि में बुध केन्द्राधिपति दोष के बावजूद शुभ फल देगा. इससे विवाह के पश्चात व्यक्ति का भाग्य अधिक उन्नत होगा. बुध शुक्र युति होने पर भाग्य में अवरोध आ सकता है.
मकर लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Capricorn ascendant)
मकर लग्न में सप्तम भाव में कर्क राशि होती है. कर्क राशि का स्वामी चन्द्र होता है. मकर लग्न की कुण्डली में बुध नवम भाव में शत्रु राशि में होता है फिर भी यह शुभ फल देता है. इस लग्न में चन्द्र केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होने के बावजूद व्यक्ति के भाग्य को मजबूत बनाता है. मकर लग्न में सूर्य यदि भाग्य स्थान में होगा तो भाग्योदय में बाधा आ सकती है.
कुम्भ लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Aquarius ascendant)
कुम्भ लग्न की कुण्डली में सातवें घर में सिंह राशि होती है अत: कुम्भ में सूर्य को सप्तमेश कहा गया है. सप्तमेश सूर्य कुम्भ लग्न में नवम भाव में होने पर वह अपनी नीच राशि तुला में होता है. इसके अलावा स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक स्थान होता है. इन दोनों कारणों से कुम्भ लग्न में सप्तमेश सू्र्य भाग्य भाव में बैठकर भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होता है. सूर्य के साथ चन्द्र यदि भाग्य भाव में बैठा हो तो यह अधिक बाधक होता है. कुण्डली में सूर्य यदि 200 से 23020' हो तो भाग्य का सहयोग मिलने की संभावना रहती है.
मीन लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Pisces ascendant)
मीन लग्न की कुण्डली में कन्या राशि सातवें घर में होती है. इस राशि का स्वामी बुध होता है. मीन लग्न में भाग्य स्थान में वृश्चिक राशि होती है. वृश्चिक में बुध नीच का होता है, इसलिए भाग्य भाव में बैठा बुध भाग्य को बलवान नहीं बना पाता है. दूसरी बात यह है कि मीन लग्न में बुध को केन्द्राधिपति दोष लगता है इसलिए भी बुध का भाग्य भाव में होना व्यक्ति के लिए कम शुभ फलदायी होता है. बुध यदि जन्म कुण्डली में 6040 से 100 तक हो तब बुध भाग्योदय में सहायक हो सकता है.

Sixth House and Your career and Profession

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(Sixth House and Your career and Profession)---


छठा भाव ( Sixth House) त्रिक भावों में से एक भाव है. 6,8 व 12 वें भाव को त्रिक भावों के नाम से जाना जाता है. तथा त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं कहा जाता है. इन भावों का संबन्ध जिन भी ग्रहों व भावेशों से बनता है उनकी शुभता में कमी आती है.

छठे भाव को रोग भाव( Deases House ), ऋण ( Loan House ) व सेवा भाव ( Service House) के नाम से भी जाना जाता है. (The sixth house is the house of diseases, loan and service)व्यक्ति के शत्रु भी इसी भाव से देखे जाते है. यह भाव उपचय भावों (upchay House) में भी शामिल किया गया है.

इसके अलावा छठा भाव अर्थ भाव ( दूसरा, छठा व दशम भाव) भी है. इस भाव पर गुरु की दृ्ष्टि व्यक्ति को जीवन में अर्थ की कमी नहीं होने देती. इस प्रकार इस भाव की भूमिका को आजीविका के क्षेत्र में कम नहीं समझना चाहिए.

एक अन्य मत के अनुसार इस भाव से एसे सभी कार्य जो अधिक मेहनत से पूरे होते है, कर्मचारी, सेवक आदि का विचार इस भाव से करना चाहिए. इस भाव में शुभ ग्रहों का एक साथ स्थित होना, व्यक्ति को सेवा कार्यो में सदभाव व स्नेह का भाव देता है.

ऋण भाव ( Loan House )
इसके विपरीत यह ऋण का भाव भी है. आजीविका के कार्यो को पूर्ण करने के लिये तथा इसका विस्तार करने के लिये ऋण लेने की स्थिति आती ही रहती है. किसी व्यक्ति के लिये ऋण लेना सरल होगा या नहीं, इसका विचार करने के लिये इस भाव में अगर शुभ ग्रह स्थित हों तो ऋण लेने में बाधाएं आती है. अन्यथा यह सरलता से प्राप्त हो जाता है.

इस भाव के स्वामी का अशुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति के रोग ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ जाती है.(The position of inauspicious planet in this house may cause the person health problems) इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति को बिमारियां शीघ्र होने की संभावनाएं बनाता है.

षष्ट भाव में अशुभ ग्रह (inauspicious planet in the sixth house)
जब कुण्डली के छठे भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति की आजीविका में बाधाएं देते है. इस योग के फलों को देखते समय इन अशुभ ग्रहों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव नहीं होना चाहिए. इस भाव में चन्द्र या शुक्र की स्थिति होने पर व्यक्ति अस्पताल या होटल से संबन्धित क्षेत्रों में आजीविका प्राप्त कर सफल हो रहा होता है.(Position of Moon or Venus in this house give the person success in the business of hotels or restaurants)

यह भाव अस्पताल का भाव है. सूर्य या राहू अशुभ ग्रह होकर व्यक्ति को चिकित्सक बनने की योग्यताएं देते है. चिकित्सा भाव से जुडे के लिये व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र का नीच राशि में होना इस योग में वृ्द्धि करता है. छठे भाव से मंगल का संबन्ध व्यक्ति को सेना या पुलिस के क्षेत्र में काम करने के अवसर देता है. इस भाव से जब शनि का संबन्ध बनता है. तो व्यक्ति को न्याय के क्षेत्र में सफलता मिलने की संभावनाएं रहती है.

छठे भाव की राशियां (signs of the sixth house)
जब छठे भाव में हिंसक राशियां अर्थात (1,2,8,11 वीं राशि ) हों, तथा इस भाव में एक से अधिक पाप ग्रह एक-दूसरे से निकटतम अंशों पर स्थित हों तो व्यक्ति को नौकरी से निकाले जाने का योग बनता है. इस प्रकार बनने वाले अन्य योग(If the violent or malefic signs i.e. 1, 2, 8, 11 signs or more than one inauspicious planet are placed together in the nearest degrees the person may get terminated from his job)

केतु व शनि निकटतम अंशों के साथ छठे भाव में स्थित हों तो भी उपरोक्त योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस भाव में मंगल, शनि, राहू व केतु आजीविका क्षेत्र में परेशानियां देते है. इस भाव में चन्द्र व्यक्ति के मन को कठोर बनाता है. अर्थात इस भाव में चन्द्र होने पर व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है. फिर भी चन्द्र की शुभता देखने के लिये उसका पक्ष बल भी अवश्य देख लेना चाहिए.

छठे भाव में पीडित मंगल (Malefic Mars in the sixth house)
जब कुण्डली में मंगल पीडित होकर स्थित हों तथा लग्न भाव में अपनी राशि से दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, तो व्यक्ति पुलिस विभाग में या अन्य किसी विभाग में अनितिपूर्ण तरीके से धन कमाने का प्रयास करता है. अष्टम का मंगल तीसरे भाव में अपनी राशि को देखे उसे बली कर रहा हों तब भी व्यक्ति के पुलिस विभाग में गलत तरीके से धन प्राप्त करने के योग बनते है.

इस भाव में मंगल व चन्द्र का सम्बन्ध व्यक्ति के सर्जन बनने की योग्यता देता है. (the relationship of Mars or Moon with this house give the ability to become a surgeon)

वकालत के क्षेत्र में सफलता के योग (Yoga for success in the field of law) 
जब कुण्डली में छठा भाव, तीसरा भाव व नवम भाव बली हो तथा इन भावों से मंगल व शनि का संबन्ध होने पर व्यक्ति अपने पराक्रम के बल पर कानून के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है. इस भाव में शनि बली अवस्था में हों तो व्यक्ति को व्यापार के स्थान पर नौकरी करना अधिक पसन्द होता है. (The strong position of Saturn in this house increase the interest of the person in job rather than a business) शनि नौकरी या सेवा के कारक ग्रह है. वे जब कुण्डली में सुस्थिर होकर स्थित हों तो व्यक्ति अपने सभी काम स्वयं करना पसन्द करता है.

                                                                                                                                               

    अध्ययन कक्ष को बनाएँ वास्तु अनुरूप


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    वार्षिक परीक्षाओं की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। ऐसे में विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष को वास्तु अनुरूप बनाकर अच्छी सफलता हासिल कर सकते हैं। वास्तु नियम सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और पढ़ाई में रुचि को बढ़ावा देते हैं।

    जीवन को सफल बनाने की दिशा में शिक्षा ही एक उच्च सोपान है, जो जीवन में अंधकार के बंधनों से मुक्ति दिलाने का सामथ्र्य रखती है। शिक्षा के बल पर ही मानव ने आकाश की ऊंचाइयों, समुद्र की गहराइयों, भू-गर्भ और ब्रहमांड में छिपे कई रहस्यों को खोज निकाला है। शिक्षा की अनिवार्यता प्राचीन ग्रंथों में भी मिलती हैं, जिनमें शिक्षा पर जोर देते हुए कहा गया है - माता बैरी पिता शत्रु येन बालों न पाठित:। न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा।। अर्थात ऐसे माता-पिता बच्चों के शत्रु के समान हैं, जो उन्हें शिक्षित नहीं करते और वे विद्वानों के मध्य कभी सुशोभित नहीं होते।

     शैक्षिक सफलता अध्ययन कक्ष की बनावट पर भी निर्भर करती है। वास्तु ऊर्जा भवन की आत्मा है, जिसके सहारे भवन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संवर उठता है चाहे वह अध्ययन का क्षेत्र हो या कोई अन्य। कई होनहार विद्यार्थी मेहनत के बाद भी अपेक्षित फल नहीं प्राप्त कर पाते तथा फेल होने के भय से आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगते हैं।

     ऐसे मामलों मे कहीं न कहीं नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव देखा जाता है, जिससे विद्यार्थियों के सामने कई विकट समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे-पढ़ने में रुचि न होना, मन का उलझना, अकारण चिंता, तनाव, असफलता का भय, आत्मग्लानि, मंद बुद्धि, स्मरण शक्ति का अभाव आदि। ऐसे में वास्तु नियमों के अनुरूप सुसज्जित अध्ययन कक्ष में सकारात्मक ऊर्जा की बयार बहती रहती है, जिससे विद्यार्थियों को अच्छी सफलता मिलती है।



    सकारात्मक ऊर्जा के नियम ::----



    * उत्तर-पूर्व या पूर्व में अध्ययन कक्ष शुभ, प्रेरणाप्रद व पश्चिम में अशुभ और तनाव युक्त रहेगा।

     * अध्ययन कक्ष के दरवाजे उत्तर-पूर्व में ही ज्यादा उत्तम माने गए हैं। दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा में दरवाजे न रखें। इससे संदेह या भ्रम उत्पन्न होते हैं।

     * पढ़ने की मेज चौकोर होनी चाहिए, जो अध्ययन शक्ति व एकाग्रता को बढ़ाती है। दो छोटे-बड़े पाएं, मोटे, टेढ़े व तिकोनी व कटावदार मेज का प्रयोग न करें।

     * मेज को दरवाजे या दीवार से न सटाएं। दीवार से मेज का फासला कम से कम चौथाई फुट जरूरी है। इससे विषय याद रहेगा और पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी। लाइट के नीचे या उसकी छाया में मेज सेट न करें, इससे अध्ययन प्रभावित होगा।

     * मेज के ऊपर अनावश्यक किताबें न रखें। लैंप को मेज के दक्षिणी कोने में रखें।

     * उत्तर-पूर्व में मां सरस्वती, गणोशजी की प्रतिमा और हरे रंग की चित्राकृतियां लगाएं। अध्ययन कक्ष में शांति और सकारात्मक वातावरण होना चाहिए। शोरगुल आदि बिल्कुल भी न हो।

     * स्मरण व निर्णय शक्ति के लिए दक्षिण में मेज सेट कर उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके अध्ययन करें। उत्तर-पूर्व दिशा विद्यार्थी को योग्य बनाने में सहायक होती है।

     * ट्यूशन के दौरान विद्यार्थी का मुंह पूर्व दिशा में हो। इससे आपसी तालमेल व रुचि बनी रहेगी।

     * अध्ययन कक्ष में भारी किताबें, फाइलें और सोफे को दक्षिण या पश्चिम में रखें। कंप्यूटर, म्यूजिक सिस्टम को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। अध्ययन कक्ष में टीवी कदापि न रखें।

     * अध्ययन कक्ष के मध्य भाग को साफ व खाली रखें, जिससे ऊर्जा का संचार होता रहेगा।

     * जिनका मन उचटता हो, उन्हें बगुले का चित्र लगाना चाहिए, जो ध्यान की मुद्रा में हो।

     * लक्ष्य प्राप्ति हेतु एकलव्य या अजरुन की चित्राकृतियां लगानी चाहिए।

     * मेज पर सफेद रंग की चादर बिछाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती को प्रणाम कर अध्ययन शुरू करें। जिन विद्यार्थियों को अधिक नींद आती हो, उन्हें श्वान का चित्र लगाना चाहिए।

     * दरवाजे के सामने या पीठ करके न बैठें।

    * बीम के नीचे बैठकर न पढ़ें। अध्ययन कक्ष की दीवारों के रंग गहरे नहीं होने चाहिए। हरे, क्रीम, सफेद व हल्के गुलाबी रंग स्मरण शक्ति बढ़ाते हैं व एकाग्रता प्रदान करते हैं।

     * अध्ययन कक्ष के पर्दे भी हल्के हरे रंग, विशेषकर हल्के पीले रंग के उत्तम माने जाते हैं।

     * बिस्तर पर बैठकर न पढ़ें। कमरे में किताबों या अन्य वस्तुओं को अव्यवस्थित नहीं होना चाहिए।

     * रात को सोते समय विद्यार्थी पूर्व की तरफ सिर करके सोएं। पूर्वी दीवारों पर उगते हुए सूर्य की फोटो लगाना उत्तम है।

     * बेड के सामने वाली दीवार पर हरियाली वाली फोटो उत्तम मानी गई है।

     उक्त वास्तु नियमों को अपनाकर प्रतिभाशाली व प्रखर बुद्धि वाले विद्यार्थी तैयार किए जा सकते हैं। विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष को वास्तु अनुकूल बनाकर सफलता के सर्वोच्च शिखर को छूने का गौरव हासिल कर सकते हैं।



     वास्तु दिलाएगा एक्जाम में सफलता ###वास्तु और पढ़ाई का संबंध :::-------



    कभी आपने सोचा है बच्चे की पढ़ाई का संबंध घर की संरचना से भी हो सकता है। विद्यार्थी किस दिशा में और कैसे बैठकर पढ़ रहा है इसका भी प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ सकता है। आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं वास्तुशास्त्र की। वास्तु विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि वास्तु का ध्यान रखा जाए तो निश्चित ही पढ़ाई पर असर पड़ेगा।



    कई बार ऐसा होता है कि कई घंटे पढ़ने के बाद भी विषय न तो याद होता है और न ही समझ में आता है। कुछ विद्यार्थियों का तो पढ़ने में मन ही नहीं लगता। माता-पिता परेशान रहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ता नहीं है। कई बार तो डॉक्टर्स के पास भी ले जाया जाता है कि उसकी याददाश्त बढ़ाने की कोई दवा दे दी जाए जिससे बच्चे को याद हो सके।


    जिस प्रकार मानने वाले ज्योतिष को मानते हैं और न मानने वाले नहीं मानते। ठीक उसी प्रकार वास्तु पर भी विश्वास और अविश्वास करने वाले लोग मिलते हैं। लेकिन परीक्षा के दिनों को देखते हुए अच्छा होगा कि पढ़ाई करने के लिए वास्तु के अनुसार ही व्यवस्था की जाए। इससे कुछ हानि तो होगी नहीं बल्कि जल्द ही अच्छे परिणाम सामने आएँगे।



    थोड़ी-सी सावधानी जरूरी :-  बोर्ड परीक्षाओं के साथ-साथ बाकी क्लासेस के एग्जाम भी शुरू हो गए हैं। इस समय हर घर में पढ़ाई का ही माहौल है। इतनी जल्दी घर की संरचना बदलना संभव तो नहीं है लेकिन बच्चे के पढ़ने के कमरे की दिशा बदली जा सकती है। पढ़ने के लिए पूर्व-पश्चिम दिशा से बना कोण ईशान कोण ही महत्वपूर्ण होता है। यदि बच्चा इस दिशा में बैठकर पढ़ता है तो उसकी एकाग्रता भी बढ़ेगी और उसे सब आसानी से याद हो जाएगा।



    आग्नेय और वायु कोण से बचें :-  वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार जिस कमरे में बच्चा पढ़ता है उसे आग्नेय यानी पूर्व और दक्षिण एवं वायु अर्थात् उत्तर व पश्चिम दिशा में बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। आग्नेय कोण में होने से बच्चा चिड़चिड़ा होता है और वायु कोण में पढ़ने से



    सामने न हो दीवार :-  बच्चा जहाँ पढ़ता है उससे पाँच-छः फीट की दूरी तक कोई दीवार नहीं होना चाहिए। दीवार की जगह खिड़की या खुला हुआ भाग हो तो अच्छा है। इसके साथ ही पढ़ने के कमरे के साथ बैग, कम्पास या हरे रंग का पेन हो तो बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और बच्चे का पढ़ाई में मन लगता है। बुद्धि के विकास के लिए हरा रंग बहुत शुभ माना गया है।



    बंद न हो घर की पूर्व दिशा :-  वास्तु के मुताबिक पूर्व दिशा का घर की सुख-समृद्धि और अध्ययन-अध्यापन से विशेष संबंध है। अतः प्रयास करना चाहिए कि घर का दरवाजा पूर्व दिशा की ओर ही हो। जहाँ तक हो पूर्व दिशा की तरफ कोई वजनदार वस्तु न रखें और पूर्व दिशा खुली ही रहे। ऐसा होने से घर में समृद्धि तो आती ही है साथ ही बच्चों का पढ़ाई में मन लगता है।





     ---दसवाँ घर और आपका करियर --दशम स्थान में बारह राशियों का फल-




    किसी भी जातक की कुंडली में चार केंद्र स्थान प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव होता है। दशम भाव कर्म भाव भी कहलाता है। अतः जातक के जीवन में इसका विशेष प्रभाव होता है। कुंडली में दशम घर से कर्म, आत्मविश्वास, आजीविका, करियर, राज्य प्राप्ति, कीर्ति, व्यापार, पिता का सुख, गोद लिए पुत्र का विचार, विदेश यात्रा आदि का विचार किया जाता है। कहा जा सकता है कि दशम भाव किसी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।परंतु आजीविका की अच्छी स्थिति जानने के लिए मुख्यतः चंद्रमा, गुरु-सूर्य व शनि की स्थिति का अवलोकन भी करना चाहिए। यदि दशम भाव व भाग्य भाव मजबूत है तो निश्चित रूप से अच्छा करियर होता है। साथ ही आपका भविष्य सुनहरा होता है।

    मेषः  यदि दसवें स्थान में मेष राशि हो तो जातक घूमने-फिरने का शौकीन, दौड़ने का शौक रखने वाला, चाल कुछ टेढ़ी हुआ करती है। यदि विवाह योग कुंडली में न हो तो भी वह सुख भोगता है। नम्रता से हीन, चुगलखोर, क्रोधी होता है और शीघ्र ही लोगों का अप्रिय बन जाता है। ऐसा जातक कई कार्यों को एक साथ शुरू कर देता है। यदि कुंडली में मंगल शुभ हो तो निश्चित ही करियर बहुत अच्छा, धन, पद व अधिकार प्राप्ति होती है। माता-पिता, गुरुजनों, मित्रों व पत्नी से सत्य व सौम्य व आदर का व्यवहार करना चाहिए।



    वृषभ:  कुंडली में दशम घर में वृषभ राशि होने से जातक पिता का प्यार पाने वाला, वाली, स्नेही, विनम्र, धनी, व्यापार में कुशल, बड़े लोगों से मित्रता करने वाला, आत्मविश्वासी और राजपुरुषों से कार्य लेने वाला होता है। यदि शुक्र शुभ अंशों में बलवान हो तो जातक अच्छा व्यापारी व मैनेजर बन सकता है।



    मिथुन : ऐसा जातक कर्म को ही प्रधान मानता है। समाज का हितैषी, मन्दिर निर्माण करने वाला, दुर्गा जी का भक्त, देवी दर्शन करने वाला, भगवान को मानने वाला, व्यापार या कृषि कर्म से आजीविका चलाने वाला, बैंक, बीमा कपंनी, कोषाध्यक्ष, अध्यापक की नौकरी करने वाला होता है।



    कर्क : यदि कुंडली के दसवें घर में कर्क राशि हो तो जातक कई सगुणों से युक्त, यदि चतुर्थ चन्द्रमा हो तो राजनीति में रूचि रखने वाला व राज्य सत्ता प्राप्त करके समाज की भलाई करने वाला, पापों से डरने वाला, स्नेहवान, अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाला होता है। वह आत्मविश्वासी



    सिंहः  ऐसा जातक अहंकार से घिरा होता है। यदि अहंकार को त्याग दे तो जीवन को जगमगा सकते हैं। संर्कीण विचारधारा के कारण कभी-कभी अपयश के पात्र होते हैं। यदि गुरु, शनि, सूर्य, मगंल, चंद्रमा अति शुभ हो तो जातक पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पिता धनी होता है, बहुत बड़े उद्योग स्थापित करता है।



    कन्याः  वाकपटुता के कारण लोकप्रिय प्रोफेसर, दुखी व्यक्तियों की सहायता करने वाला, अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों की रक्षा में तत्पर, स्वाभिमानी होता है। बुध बलवान होने से राज्य में सम्मान होता है। यदि गुरु भी शुभ हो तो जातक अच्छा पद, प्रतिष्ठा प्राप्त जरूर प्राप्त करता है।



    तुलाः  दशम भाव में तुला राशि हो तो जातक मानव-भाग की भलाई में लगा रहता है। धर्म प्रचारक, धर्म के गूढ़ मर्म को समझने वाला आदर्श व्यक्ति होता है। नौकरी की बजाय व्यापार हितकारी व पसंदीदा होता है। युवावस्था में ही ऐसा जातक अपनी कार्यक्षमता कौशल के बल पर पूर्णतया स्थापित हो जाता है।



    वृश्चिकः  सौम्य व्यवहार व बुद्धि कौशल के बल पर परिस्थितियों को अनुकूल बनाना इन्हें अच्छी तरह आता है। धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यदि मंगल बलवान हो या लग्नेश शनि स्वयं दसवे घर में हो तो जातक धनी होता है। खेलकूद, राजनीति, पुलिस अधिकारी होता है। इसकी सूर्य, गुरु की स्थिति भी अच्छी रहती है।



    धनुः  यदि बृहस्पति उच्च का हो या नवांश, दशमांश कुण्डली में शुभ हो तो जातक धनी भी हो सकता है। पिता की सेवा करने वाला, सुंदर वस्तुओं को एकत्र करने वाला, उपकारी होता है। व्यापार में विशेष उन्नति प्राप्त करता है।



    मकरः  कर्म हो ही धर्म समझने वाला, स्वार्थी, मानसिक शक्ति वाला, समयानुकूल कार्य करने वाला, दया से हीन होता है। जीवन के मध्यकाल में सुखी होता है। ऐसा जातक खोजी, आविष्कारक होता है और अपनी खोज से लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। इसका काम हटकर होता है।



    कुंभ : यदि दसवे घर में कुंभ राशि हो तो जातक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ विरोधियों से भी काम निकालने वाला, आस्तिक होता है। आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। शनि की स्थिति अच्छी होने पर खूब धन, पद प्रतिष्ठा मिलती है। पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी करते हैं यदि कुण्डली में शुभ योग हो तो शानदार प्रगति करते हैं।



    मीन : मीन राशि दशम में होने से जातक गुरु आशा पालन करने वाला, गौ, ब्राह्मण व देव उपासक होता है। जल से संबंधित कार्यों से जीविका चलाने वाला, सम्मानित होता है। यदि गुरु बलवान हो तो राज्य पद, धन, आयु का दाता होता है।




    कुंडली के हर भाव में छुपा है राज ::--
    ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव, मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें।


    1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।

    2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।

    3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है।

    4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्‍य, वाहन सौख्‍य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र, छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है।

    5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है।

    6. छठा भाव : इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के श‍त्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।

    7.सातवाँ भाव : विवाह सुख, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।

    8 .आठवाँ भाव : इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।

    9 .नवाँ भाव : इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।

    10. दसवाँ भाव : इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।

    11. ग्यारहवाँ भाव : इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।

    12. बारहवाँ भाव : इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।

         

    जानिए की क्या हैं माघ पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा का महत्व..???

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    हिन्दू धर्म में धार्मिक दृष्टि से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है।मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम का माघ नाम पडा। ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है|
    प्रयाग में प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है। हजारों भक्त गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक (पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक) कल्पवास करते है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में जरूरतमंदों को सर्दी से बचने योग्य वस्तुओं, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकडी आदि का दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है।इस मास की प्रत्येक तिथि पवित्र है..
    इस वर्ष 03 फरवरी 2015 को मंगलवार के दिन माघ पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाएगा. यह उत्तर भारत में माघ महीने के समापन का प्रतीक हैं. ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर महाकुंभ में स्नान करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।इस दिन चन्द्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं। इस दिन पूर्ण चन्द्रमा अमृत वर्षा करते हैं जिनके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों पर पड़ते हैं। अत: इनमें आरोग्यदायक गुण उत्पन्न होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश और कर्क राशि में चंद्रमा का प्रवेश होने से माघी पूर्णिमा को पुण्य योग बनता है तथा सभी तीर्थों के राजा (देवता) पूरे माह प्रयाग तथा अन्य तीर्थों में विद्यमान रहने से अंतिम दिन को जप-तप व संयम द्वारा सात्विकता को प्राप्त किया जा सकता है। संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है।
    निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है-----
    ॥ मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्‌ ॥ -
    अर्थात् जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।
    हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण है।माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही स्‍प्रिंग की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।
    ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं.महाभारत में एक जगह इस बात का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। वहीं पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है।भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इन्द्र भी माघ स्नान के सत्व द्वारा ही श्राप से मुक्त हुए थे। पद्म पुराण के अनुसार माघ-स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं।
    इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है. भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है. माघ पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए. माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है.
    मत्स्य पुराण के अनुसार-
    पुराणं ब्रह्म वैवर्तं यो दद्यान्माघर्मासि च,
    पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।
    मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।यह त्यौहार बहुत हीं पवित्र त्यौहार माना जाता हैं.इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है. स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, गरीबो को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है.
    माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी संबोधित किया जाता है. माघशुक्ल पक्ष की अष्टमी भीमाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है।
    माघ माह में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है. इस माह की प्रत्येक तीथि फलदायक मानी गई है. शास्त्रों के अनुसार माघ के महीने में किसी भी नदी के जल में स्नान को गंगा स्नान करने के समान माना गया है. माघ माह में स्नान का सबसे अधिक महत्व प्रयाग के संगम तीर्थ का होता है...इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एंव संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्वता प्राप्त होती है. इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है. इस समय ""ऊँ नमो भगवते नन्दपुत्राय ।। ऊँ नमो भगवते गोविन्दाय ।। ऊँ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: ।। मंत्र ध्यान के बाद भगवान कृष्ण या विष्णु की आरती करें। प्रसाद बांटे और ग्रहण करें। पूजा, आरती में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
    माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है.
    माघ पूर्णिमा में प्रात: स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष दिलाता है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं।
    इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है। यह भी मान्यता है कि जो तारों के छुपने से पूर्व स्नान करते हैं, उन्हें उत्तम फल की प्राप्ति होती है। तारों के छुपने के बाद किन्तु सूर्योदय से पूर्व के स्नान से मध्यम फल मिलता है। किन्तु जो सूर्योदय के बाद स्नान करते हैं, वे उत्तम फल की प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं। माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। पूर्णिमा को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जो सौभाग्य व पुत्र प्राप्ति के लिए होती है।
    हिन्दू पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन को पुण्य योग भी कहा जाता है। इस स्नान के करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।
    ऐसा माना जाता हैं जो व्यक्ति माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करता हैं उसके सारे पाप धूल जाते हैं. इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पाप एंव संताप मिट जातें है.इसे मन एवं आत्मा को शुद्व करने वाला माना गया है. इस दिन लोग उपवास रखते हैं ,दान देते हैं. पितृ तर्पण भी माघ पूर्णिमा के दिन किया जाता हैं. माघ पूर्णिमा अल्लहाबाद में संगम पर आयोजित हैं. माघ पूर्णिमा का दिन मृत पुर्वजो के लिए पुण्य स्नान करने का आख़िरी दिन हैं.
    इस दिन यदि रविवार, व्यतिपात योग और श्रवण नक्षत्र हो तो ‘अर्धोदय योग’ होता है जिसमें स्नान-दान का फल भी मेरू समान हो जाता है। माघ शुक्ल पंचमी को विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठïात्री देवी भगवती सरस्वती की पूजा होती है। ब्रह्मï वैवर्त पुराण के अनुसार इनका जन्म श्रीकृष्ण के कण्ठ से हुआ। ऋग्वेद में उनकी महिमा का गान हुआ है। अत: यह दिन उनके आविर्भाव दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अचला सप्तमी का व्रत आता है। इसका महात्म्य भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिïर को बताया था कि इस दिन स्नान-दान, पितरों के तर्पण व सूर्य पूजा से तथा वस्त्रादि दान करने से व्यक्ति बैकुण्ठ में जाता है। इस व्रत को करने से वर्ष भर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है। इसके बाद शुक्ल अष्टमी को भीमाष्टïमी के नाम से जाना जाता है। इसी तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण-त्याग किया था। इस दिन उनके निमित्त स्नान-दान तथा माधव पूजा से सब पाप नष्टï होते हैं।
    माघ पूर्णिमा के दिन गंगा ,यमुना,सरस्वती ,कावेरी, कृष्णा आदि नदियों के किनारे जबरदस्त पूजा की जाती हैं.अनेक पवित्र पर्वों के समन्वय की वजह से श्रद्धालुओं के लिए माघ मास को अति पुण्य फलदयी माना जाता है।
    इस दिन करें यह विशेष उपाय----शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, उन्हें शिव को विशेष मंत्र से शहद स्नान कराना। शाम को स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहन चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग को अक्षत से बने अष्टदल कमल पर स्थापित करें।शिवलिंग को एक पात्र में गंगा जल व दूध मिले पवित्र जल से स्नान कराएं।
    इसके बाद शहद की धारा शिवलिंग पर नीचे लिखे मंत्र बोलते हुए पाप नाश व समृद्धि की कामना से करें -
    “दिव्यै: पुष्पै: समुद्भूतं सर्वगुणसमन्वितम्। मधुरं मधुनामाढ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।”

    शहद स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान व शिव की पंचोपचार पूजा यानी चंदन, फूल, बिल्वपत्र व मिठाई का भोग लगाकर करें। धूप, दीप व कर्पूर से शिव आरती करें। जाने-अनजाने गलत कामों की क्षमा मांगे।

    स्वामी विवेकानंद: युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और मार्गदर्शक

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    कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद । स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, आधुनिक भारत के एक महान युवा संन्यासी और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे । स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। स्वामी विवेकानंद संत रामकृष्ण के शिष्य थे और वर्ष 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रो‍त, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' के जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमु्ख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा स्त्रोत साबित हो सकते हैं।
    अपनी तेज और ओजस्वी वाणी की बदौलत दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाने वाले वाले प्रेरणादाता और मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे. आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है. युवाओं के लिए विवेकानंद साक्षात भगवान थे. उनकी शिक्षा पर जो कुछ कदम भी चलेगा उसे सफलता जरूर मिलेगी. अपनी वाणी और तेज से उन्होंने पूरी दुनिया को चकित किया था.
    किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है। आज के पारिदृश्य में जहां चहुं ओर भ्रष्टाचार, बुराई, अपराध का बोलबाला है जो घुन बनकर देश को अंदर ही अंदर खाए जा रहे हैं। ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे। उनके दिलों को भेद दे। उनमें नई ऊर्जा और सकारात्कमता का संचार कर दे।
    स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दु्‍ख और निराशा के बादल छाए हुए थे। उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया।
    अपने जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने न केवल पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया, बल्कि लाखों लोगों से मिले और उनका दुख-दर्द भी बांटा। इसी क्रम में हिमालय के अलावा, वे सुदूर दक्षिणवर्ती राज्यों में भी गए, जहां उनकी मुलाकात गरीब और अशिक्षित लोगों से भी हुई। साथ ही साथ धर्म संबंधित कई विद्रूपताएं भी उनके सामने आई। इसके आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश की रीढ़ ‘युवा’ अशिक्षित रहेंगे, तब तक आजादी मिलना और गरीबी हटाना कठिन होगा। इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोए हुए युवकों को जगाने का काम शुरू कर दिया।
    सन् 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें।
    हमारे सामने यही एक महान आदर्श है और हर एक को उसके लिए तैयार रहना चाहिए, वह आदर्श है भारत की विश्व पर विजय। इससे कम कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं चलेगा, उठो भारत...तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करो। इस कार्य को कौन संपन्न करेगा?' स्वामीजी ने कहा 'मेरी आशाएं युवा वर्ग पर टिकी हुई हैं'।
    स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है 'यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले ‘अहं’ ही नाश कर डालो।' उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्ध‍ता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत् रहने का संदेश दिया।
    आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों के कारण जाना जाता है। आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं।
    विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
    देशवासी स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लें।
    स्वामी विवेकानंद जी कठोपनिषद का एक मंत्र कहते थे:
    “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”
    उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ।
    स्वामी जी के शब्दों में ‘हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए’।
    1902 में मात्र 39 वर्ष की अवस्था में ही स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। हां यह सच है कि इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी उनके कहे गए शब्द सम्पू‌र्ण विश्व के लिए प्रेरणादायी है। कुछ महापुरुषों ने उनके प्रति उद्गार प्रकट किया है कि जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेगे

    स्वामी विवेकानंद के कुछ अनमोल विचार-
    -उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.
    – उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
    -ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
    -जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
    -किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।
    -कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
    -अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
    -एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
    -उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
    – हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
    -जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
    -सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
    – विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
    – इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
    -हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे।

    सफलता प्राप्ति के लिए स्वामी विवेकानंद के मूल-मंत्र:-
    1. उठो जागो, रुको नहीं----
    उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
    2. तूफान मचा दो-----
    तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान!
    3. अनुभव ही शिक्षक----
    जब तक जीना, तब तक सीखना -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
    4. पवित्रता और दृढ़ता----
    पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।
    5. ज्ञान और अविष्‍कार----
    ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
    6. मस्तिष्‍क पर अधिकार---
    जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
    7. आध्‍यात्मिक दृष्टि----
    आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
    8. नैतिक प्रकृति-----
    हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
    9. स्‍तुति करें या निंदा-----
    लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।

    10. किसी के सामने सिर मत झुकाना-----
    तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।



    दाम्पत्य/वैवाहिक सुख के उपाय—-

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    दाम्पत्य/वैवाहिक सुख के उपाय—-
    ----यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है। अतः जातक मंगल व्रत। मंगल मंत्र का जप, घट विवाह आदि करें।
    ---ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।
    --- सप्तम भाव गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें।
    -----राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२००० जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो, तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें।
    -----सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें।
    ----जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें।
    “ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
    तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”
    -----किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए-
    “हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
    तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”
    ----किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं।
    “कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।”
    -----जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है।
    “ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।”
    ----“ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”
    उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर ११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो जाता है।
    ---जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
    ----लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं बाँधनी चाहिए।
    ----लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे।
    ---पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है।
    ---विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके करना चाहिए---
    “सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम।
    महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।”
    ----किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर १०८ दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के बाद लड्डू बच्चों में बांट दें।
    यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें।
    ---- तुलसी के पौधे की १२ परिक्रमायें तथा अनन्तर दाहिने हाथ से दुग्ध और बायें हाथ से जलधारा तथा सूर्य को बारह बार इस मन्त्र से अर्ध्य दें----
    “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्र किरणाय मम वांछित देहि-देहि स्वाहा।”
    फिर इस मन्त्र का १०८ बार जप करें-
    “ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय यामिनि। विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे।”
    ----गुरुवार का व्रत करें एवं बृहस्पति मन्त्र के पाठ की एक माला आवृत्ति केला के पेड़ के नीचे बैठकर करें।
    -----कन्या का विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो तो एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी, एक सिक्का डाल कर लड़की के सिर के ऊपर ७ बार घुमाकर उसके आगे फेंक दें। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।
    -----जो माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी पुत्रवधु सुन्दर, सुशील एवं होशियार हो तो उसके लिए वीरवार एवं रविवार के दिन अपने पुत्र के नाखून काटकर रसोई की आग में जला दें।
    -----विवाह में बाधाएँ आ रही हो तो गुरुवार से प्रारम्भ कर २१ दिन तक प्रतिदिन निम्न मन्त्र का जप १०८ बार करें-
    “मरवानो हाथी जर्द अम्बारी। उस पर बैठी कमाल खां की सवारी। कमाल खां मुगल पठान। बैठ चबूतरे पढ़े कुरान। हजार काम दुनिया का करे एक काम मेरा कर। न करे तो तीन लाख पैंतीस हजार पैगम्बरों की दुहाई।”
    ----किसी भी शुक्रवार की रात्रि में स्नान के बाद १०८ बार स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का जप करें-
    “ॐ ऐं ऐ विवाह बाधा निवारणाय क्रीं क्रीं ॐ फट्।”

    ----लड़के के शीघ्र विवाह के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ७० ग्राम अरवा चावल, ७० सेमी॰ सफेद वस्त्र, ७ मिश्री के टुकड़े, ७ सफेद फूल, ७ छोटी इलायची, ७ सिक्के, ७ श्रीखंड चंदन की टुकड़ी, ७ जनेऊ। इन सबको सफेद वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु व्यक्ति घर के किसी सुरक्षित स्थान में शुक्रवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
    -----लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़ की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
    ----श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे।

    सुखी विवाह का विज्ञान

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    सुखी विवाह का विज्ञान
    क्या वजह है कि कुछ दंपत्तियों का वैवाहिक जीवन विवाह के वर्षों बाद भी पहले जैसा ही बना रहता है. कुछ दंपत्ति विवाह के कुछ समय बाद ही अलग हो जाते हैं परंतु कुछ दंपत्तियों के लिए वह जन्मों का बंधन बन जाता है.
    विवाह नामक प्रथा "विश्वास' और "वचनबद्धता' पर आधारित होती है. विपरित लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित होना हमारे जीन में है, परंतु अपनी भावनाओं पर काबू पाना जिनेटिक्स तथा अन्य कारकों पर निर्भर करता है और यही सफल विवाह का विज्ञान भी है.
    कुछ पुरूष और महिलाएँ अपने साथी को धोखा दे सकती हैं परंतु कुछ दम्पत्ति "विपरित लिंग के शारीरिक आकर्षण' को सीमित रख पाने में सफल रहते हैं. ऐसा किसलिए होता है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए कई शोधकर्ता अपने अपने तरीके से शोध कर रहे हैं. इस सवाल का जवाब जिनेटिक्स और बायोलोजी से मनोविज्ञान तक जुड़ा हुआ है और इस पर गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है.
    अब तक हुई शोधों के नतीजे बताते हैं कि कुछ लोग प्राकृतिक रूप से 'आकर्षण" के प्रति सचेत होते हैं. परंतु इसके साथ ही दिमाग को इसके लिए प्रशिक्षित भी किया जा सकता है.
    न्यूयार्क टाइम्स की खबर के अनुसार मैकगिल विश्वविद्यालय के जॉन लिडोन ने इस विषय पर एक सर्वे किया. सर्वे के माध्यम से यह जाना गया कि आदर्श दम्पत्तियों के जीवन पर 'क्षणिक विपरित आकर्षण" का कितना प्रभाव पड़ता है.
    इस सर्वे के लिए कुछ वचनबद्ध विवाहित पुरूषों और महिलाओं का चयन किया गया और उन्हें उनसे विपरित लिंग के लोगों की तस्वीरें दिखाई गई, और कहा गया कि वे इनमें से सुंदर व्यक्तियों के पहचान करें. इन लोगों ने जाहिर तौर पर सुंदर माने जा सकने वाले लोगों को चुना. इसके कुछ दिन बाद इन लोगों को फिर से वही तस्वीरें दिखाई गई और वही सवाल पूछा गया परंतु इस बार कहा गया कि तस्वीरों में से चुने गए लोग आपसे मिलना भी चाहेंगे. इस बार इन लोगों ने उन तस्वीरों को कम अंक दिए जिनको पहले अधिक अंक दिए थे.
    यानी कि इन लोगों का दिमाग इस तरह से प्रशिक्षित होता है कि वह विपरित लिंग के आकर्षक व्यक्ति की तरफ आकर्षित तो होता है परंतु जैसे ही उसे लगता है कि उस व्यक्ति की वजह से उनका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ सकता है तो "वह इतनी भी सुंदर नहीं" का अलार्म बज जाता है.
    डॉ. लिडोन के अनुसार - आप जितने वचनबद्ध और अपने रिश्ते के प्रति इमानदार होते हैं, आप उतना ही उन लोगों से दूर होते रहते हैं जिनकी वजह से आपका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़े.

    हमारा दिमाग इसके लिए प्रोग्राम किया हुआ होता है. यह अनुवांशिक रूप से भी हो सकता है और इसके लिए दिमाग को प्रशिक्षित भी किया जा सकता है

    कुंडली से जाने की शादी क्यों टूट जाती है


    (१)- यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है.
    (२)- यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
    (३)- यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
    (४) यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
    (५) यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है.
    तलाक क्यों हो जाता है?

    (१)- यदि कुंडली मांगलीक होगी तो विवाह होकर भी तलाक हो जाता है. किन्तु ध्यान रहे किसी भी हालत में सप्तमेश को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
    (२)- दूसरे भाव का स्वामी यदि नीचस्थ लग्नेश के साथ मंगल अथवा शनि से देखा जाता होगा तो तलाक हो जाएगा. किन्तु मंगल अथवा शनि को लग्नेश अथवा द्वितीयेश नहीं होना चाहिए.
    (३) यदि जन्म कुंडली का सप्तमेश सप्तमांश कुंडली का अष्टमेश हो अथवा जन्म कुंडली का अष्टमेश सप्तमांश कुंडली का लग्नेश हो एवं दोनों कुंडली में लग्नेश एवं सप्तमेश अपने से आठवें घर के स्वामी से देखे जाते हो तो तलाक निश्चित होगा.
    (४)- यदि पत्नी का जन्म नक्षत्र ध्रुव संज्ञक हो एवं पति का चर संज्ञक तो तलाक हो जाता है. किन्तु किसी का भी मृदु संज्ञक नक्षत्र नहीं होना चाहिए.
    (५)- यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है. किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए. या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए. 

    विवाह से सम्भंदित कुछ उपुक्त बातें

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    1. विवाह मे आशौच आदि की सभावना हो तो 10 दिनो पहले नान्दी मुख श्राद्ध करना चाहिये नान्दी मुख श्राध्द के बाद विवाह सम्पन्न आशौच होने पर भी वर-वघु को और करना चाहिये. नान्दी मुख श्राद्ध के बाद विवाह संमाप्ति आशौच होने पर वर-वधू को ओर उनके माता-पिता को आशौच नहीं होता.
    2. "कुष्माण्ड सूक्त" के अनुसार नान्दी् श्राध्द के पहले भी विवाह के लिए सामग्री तैयार होने पर आशौच प्राप्ति हो तो प्रायश्चित करके विवाह कार्यक्रम होता है. प्रायश्चित के लिए हबन, गोदान और पञ्चगव्य प्राशन करें.
    3. विवाह के समय हवन में पू्र्व अथवा मध्य में या अन्त में कन्या यदि रजस्वला हो जाने पर कन्या को स्नान करा कर ``युञ्जान``इस मंत्र से हवन करके अवशिष्ट कर्म करना चाहिये
    4. वधु या वर के माता को रजोदर्शन की संभावना हो तो नान्दी श्राद्ध दस दिनो के पुर्व कर लेना चाहिये. नान्दी श्राद्ध के बाद रजोदर्शनजन्य दोष नहीं होता.
    5. नान्दी श्राद्ध के पहले रजोदर्शन होने पर "श्रीशांति" करके विवाह करना चाहिये.
    6. वर या वधू की माता के रजस्वला अथवा सन्तान प्राप्ति होने पर "श्रीशांति" करके विवाह हो सकता है
    7. विवाह में आशौच की संभावना हो तो, आशौच के पूर्व अन्न का संकल्प कर देना चाहिये. फिर उस संकल्पित अन्न का दोनों पक्षों के मनुष्य भोजन कर सकते हैं.उसमें कोई दोष नहीं होता है. परिवेषण असगोत्र के मनुष्य को करना चाहिये.
    8. विवाह में वर-वधू को "ग्रन्थिबन्धन" कन्यादान के पूर्व शास्त्र विहित है. कन्यादान के बाद नहीं. कन्यादाता को अपनी स्त्री के साथ ग्रन्थिबन्धन कन्यादान के पूर्व होना चाहिये.
    9. दो कन्या का विवाह एक समय हो सकता है परन्तु एक साथ नहीं. लेकिन एक कन्या का वैवाहिक कृर्त्य समाप्त होने पर द्वार-भेद और आचार्य भेद से भी हो सकता है.
    10. एक समय में दो शुभ क्रम करना उत्तम नहीं है. उसमें भी कन्या के विवाह के अनन्तर पुत्र का ववाह हो सकता है. परन्तु पुत्र विवाह के अनन्तर पुत्री का विवाह छ: महिने तक नहीं हो सकता.
    11. एक वर्ष में सहोदर (जुड़वा) भाई अथवा बहनों का विवाह शुभ नहीं है. वर्ष भेद में और संकट में कर सकतें हैं.
    12. समान गोत्र और समान प्रवर वाली कन्या के साथ विवाह निषिध्द है.
    13. विवाह के पश्चात एक वर्ष तक पिण्डदान, मृक्तिका स्नान, तिलतर्पण, तीर्थयात्रा,मुण्डन, प्रेतानुगमन आदि नहीं करना चाहिये.
    14. विवाह में छिंक का दोष नहीं होता है.
    15. वैवाहिक कार्यक्रम में स्पर्शास्पर्श का दोष नहीं होता.
    16. वैवाहिक कार्यक्रम में चतुर्थ, द्वादश, चन्द्रमा ग्राहय है.
    17. विवाह में छट, अष्टमी, दशमी तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा रिक्ता आदि तिथि निषिध्द है .
    18. विवाह के दिन या पहले दिन अपने-अपने घरों में कन्या के पिता और वर के पिता को स्त्री,कन्या-पुत्र सहित मंगल स्नानकरना चाहिये. और शुध्द नवीन वस्त्र -तिलक-आभूषण आदि से विभूषित होकर गणेश मातृका पूजन (नान्दी श्राद्ध) करना चाहिये.
    19. श्रेष्ठ दिन में सौलह या बारह या दस या आठ हाथ के परिमाण का मण्डप चारौं द्वार सहित बनाकर उसमें एक हाथ की चौकौर हवन-वेदी पूर्व को नीची करती हुई बनावें उसे हल्दी, गुलाल, गोघुम तथा चूने आदि से सुशोभित करें. हवन-वेदी के चारों ओर काठ की चार खुंठी निम्नप्रकार से रोपे, उन्हीं के बाहर सूत लपेटे कन्या, सिंह और तुला राशियां संक्राति में तो ईशान कोण में प्रथम वृश्चक, धनु, और मकर ये राशियां संक्राति में तो वायव्य कोण में प्रथम मीन, मेष और कुम्भ ये राशियां संक्रांति में तो नऋर्त्य कोण में प्रथम. वृष, मिथुन और कर्क ये राशियां संक्राति में तो अग्निकोण में प्रथम.एक काठ में पाटे के उपर गणेश, षोडशमातृका, नवग्रह आदि स्थापन करें. ईशान कोण में कलश स्थापन करें.
    20. कन्या पिता / अभिभावक स्नान करके शुध्द नवीन वस्त्र पबन कर उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठे तथा वर पूर्वाभिमुख बैठें.