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Monday 1 June 2015

कालसर्प दोष का ज्योतिषीय यथार्थ और निवारण क्यों महतवपूर्ण


काल सर्प योग पूजा के लिए छवि परिणाम
ज्योतिषीय आधार पर कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है ‘‘काल’’ और ‘‘सर्प’’ । काल का अर्थ समय और सर्प का अर्थ सांप अर्थात् समय रूपी सांप। ज्योतिषीय मान्यता है कि जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के मध्य आ जाते हैं या एक ओर हो जाते हैं तो कालसर्प येाग बनता है। मान्यता है कि जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है, उसके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कालसर्प योग में सभी ग्रह अर्धवृत्त के अंदर होता है। ऋग्वेद के अनुसार राहु और केतु ग्रह नहीं है बल्कि असुर हैं। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिससे सूर्य ग्रहण होता है उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चंद्रग्रहण लगता है। वैदिक परंपरा में विष्णु को सूर्य कहा गया है जो कि दीर्धवृत्त के समान है। राहु केतु दो संपात बिंदु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिंदुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने पर कालसर्प बनता है। जो व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।
ज्योतिषीय मान्यता है कि राहु और केतु छायाग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवेंभाव पर होते हैं जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तो कालसर्प दोष बनता है। राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं। राहु जिनकी कुंडली में अनुकूल फल देने वाला होता है, उन्हें कालसर्प दोष में महान उपलब्धियां हासिल होती हैं। इस दोष में जातक से परिश्रम करवाता है और उसके अंदर की कमियां को दूर करने की प्रेरणा देता है जिससे व्यक्ति जुझारू, संघर्षषील और साहसी बनता हैं इस योग के प्रभाव में अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग और निरंतर आगे बढ़ने हेतु सदा परिश्रम करने से कालसर्प दोष योग बन सकता है। कालसर्प योग में स्वराषि एवं उच्च राषि में स्थित गुरू, उच्च राषि का राहु, गजकेषरी योग, चतुर्थ केंद्र विषेष लाभ प्रदान करता है। अकर्मण्य होने तथा उसके परिणामस्वरूप निराष होकर प्रयास छोड़ने से कालसर्प दोष बन जाता है किंतु लगनषील तथा परिश्रमी बनकर प्रयास करने से कालसर्प दोष ना रहकर योग बन जाता है। कालसर्प दोष में परिश्रमी तथा लगनषील बनने के साथ पितृदोष निवारण उपाय तथा राहु शांति कराना भी उचित होता है।

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कालसर्प योग अवरोध और दुर्भाग्य का कारण

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विभिन्न शास्त्रों में कालसर्प योग के बारे में विभिन्न धारणाएँ प्रस्तुत हैं, जिसमें सभी में एक मत है कि राहु एवं केतु के बीच यदि सभी ग्रह फंसे हुए हों तो कालसर्प योग निर्मित होता है। सर्प योनी के बारे में अनेक वर्णन मिलते है हमारे धर्म शास्त्रों में, गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है की पृथ्वी पर केवल विषय-वासना के कारण जीव की उत्पत्ति होती है. जीव रुपी मनुष्य जैसा कर्म करता है उसी के अनुरूप फल मिलता है. विषय-वासना के कारण ही काम-क्रोध, मद-लोभ और अहंकार का जन्म होता है इन विकारों को भोगने के कारण ही जीव को सर्प योनी प्राप्त होती है. कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढिय़ों पर पडऩे वाले अशुभ प्रभाव को काल सर्प दोष कहा जाता है।
कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तब कालसर्प योग बनता है। यदि राहु आगे या केतु पीछे या सूर्यादि सातों ग्रह, राहु एवं केतु के एक ओर फंसे हुए हों तो कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग को दुर्भाग्य और अवरोध को उत्पन्न करने वाला माना जाना अनुचित नहीं है। यदि किसी जन्मांग में कालसर्प योग की संरचना हो रही हो तो व्यक्ति को अनेक प्रकार के अवरोध, विसंगतियों और दुर्भाग्य से जीवनपर्यंत संघर्ष करना पड़ता है। ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना गया है लेकिन कभी कभी यह योग शुभ फल भी देता है, ज्योतिष में राहू को काल तथा केतु को सर्प माना गया है। राहू को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प का पूंछ कहा गया है वैदिक ज्योतिष में राहू और केतु को छाया ग्रह संज्ञा दी गई है, राहू का जन्म भरणी नक्षत्र में तथा केतु का जन्म अश्लेषा में हुआ है जिसके देवता काल एवं सूर्य है. राहू को शनि का रूप और केतु को मंगल ग्रह का रूप कहा गया है, राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है, राहु के नक्षत्र आद्र्रा स्वाति और शतभिषा है, राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो, तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मो के फलस्वरूप यह दोष लगता है जैसे सर्प को मारना या मरवाना, भ्रुण हत्या करना या करवाने वाले को, अकाल मृत्यु (किसी बीमारी या दुर्घटना में होने करण) उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है, मनुष्य को इसका आभास भी होता है —जैसे जन्म के समय सूर्य ग्रहण, चंद्रग्रहण जैसे दोषों के होने से जो प्रभाव जातक पर होता है, वही प्रभाव काल सर्प योग होने पर होता है यह योग जातक को अनेक प्रकार की परेशानियों में ला खड़ा करता है, जातक के लक्षण/ फल/प्रभाव परिलक्षित/दृष्टव्य होते हैं - अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना। धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, सोते समय बुरे स्वप्न देख कर चौक जाना या सपने में सर्प दिखाई देना या स्वप्न में परिवार के मरे हुए लोग आते हैं. किसी एक कार्य में मन का न लगना, शारीरिक, आर्थिक व मानसिक रूप से परेशान तो होता ही है, इन्सान नाना प्रकार के विघ्नों से घिरा होता है प्राय: इसी योग वाले जातको के साथ समाज में अपमान, परिजनों से विरोध, मुकदमेबाजी आदि कालसर्प योग से पीडि़त होने के लक्षण हैं.
काल सर्प योग के 12 प्रकार के होते है -
(1) अनंत काल सर्प योग,
(2)कुलिक काल सर्प योग,
(3) वासुकी काल सर्प योग,
(4) शंखपाल काल सर्प योग,
(5)पदम् काल सर्प योग,
(6) महापद्म काल सर्प योग,
(7) तक्षक काल सर्प योग,
(8) कर्कोटक काल सर्प योग,
(9) शंख्चूर्ण काल सर्प योग,
(10) पातक काल सर्प योग,
(11) विषाक्त काल सर्प योग,
(12) शेषनाग काल सर्प योग,

काल सर्प योग शुभ फल भी प्रदान करता है:
कुंडल महत्वपूर्ण योग, शुक्र, शनि, मंगल, चंद्रमा या उन लोगों के साथ इस ग्रह पर एक उच्च जगह पर किसी भी कालसर्प योग को कमजोर करने के उसके स्थान के अनुबंध कालसर्प गुरु या योग केंद्र में उच्च के उल्लंघन में है। उच्च बुध और सूर्य कमजोर कालसर्प योग योग है budhaditya है। एक उच्च जगह या स्थापित करने मंगल ग्रह में चंद्रमा योग केंद्र की भलाई से बनता है कालसर्प योग को भंग कर दिया है। 25 साल की उम्र के हर जातक रहने और केतु के कब्जे में हैं। (18 राहु केतु था mahadasa mahadasa की +7 साल = दो 25 साल की राशि)। ज्योतिष के मुख्य स्रोतों में से एक है कि 3, 6, 11 और पाप ग्रहों की उपस्थिति में मिश्रण उपयोगी आशीर्वाद दिया जाता है। आम तौर पर 3, 6, 11, सातवीं दर में राहु शुभ माना जाता है।

कालसर्प योग की शांति के वैदिक उपाय:
अगर आप की कुंडली में पितृदोष या काल सर्प दोष है तो आप किसी विद्वान पंडित से इसका उपाय जरुर कराएं। कालसर्प की शांति विधि-विधान से होता है। नदी का पवित्र स्थान हो, इस विधि का संपूर्ण ज्ञान हो इसके आलावा शिव संबंधी तीर्थं हो समय में अमावश्या या पंचमी के दिन काल सर्प दोष की शांति करनी चाहिए. कालसर्प की शमन विधान हेतु किसी विद्धान आचार्य द्वारा कालसर्प से होने वाली हानि का क्षेत्र जानकर उस से संबंधित विधान विधिपूर्वक किया जाना जिसमें विषेषकर रूद्राभिषेक, नागबलि-नारायण बलि आदि का विधान एवं राहु से संबंधित दान एवं मंत्रों के उपचार द्वारा दोष को निर्मूल किया जा सकता है।
कालसर्प योग का प्राभव:
जेसे किसी व्यक्ति को साप काट ले तो वह व्यक्ति शांति से नही बेठ सकता वेसे ही कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति जीवन पर्यन्त शारीरिक, मानसिक, आर्थिक परेशानी का सामना करना पडता है। विवाह विलम्ब से होता है एवं विवाह के पश्च्यात संतान से संबंधी कष्ट जेसे उसे संतान होती ही नहीं या होती है तो रोग ग्रस्त होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। अगर जुगाड़ होजाये तो लम्बे समय तक टिकती नही है। बार-बार व्यवसाय या नौकरी मे बदलाव आते रेहते है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। तरह तरह की परेशानी से घिरे रहते हैं। एक समस्या खतम होते ही दूसरी पाव पसारे खडी होजाती है। योग से व्यक्ति को चैन नही मिलता उसके कार्य बनते ही नही और बन भी तो जाये आधे मे रुक जाते है। 99त्न हो चुका कर्य भी आखरी पलो मे अकस्मात ही रुक जाता है।

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