Saturday, 19 December 2015

दैनिक जीवन की मनोविकृतियाँ

प्राय : सभी व्यक्तियों से दैनिक जीवन में भूलें होती हैँ। कुछ भूले हमारी अज्ञानता के कारण होती है जबकि कुछ भूलें ऐसी होती है जो शीघ्र ही हमारी स्मृति में आ जाती है जिनका हमें ज्ञान होता है और हम उनमें सुधार लाते है। कभी-कभी ऐसी भी घटनाएं घटित होती है जो आश्चर्यजनक होती है परन्तु इन घटनाओं पर हम अपना ध्यान नहीं देते है । इन घटनाओं तथा भूलों को करते समय तक चेतना व्यक्ति को नहीँ होती परन्तु तुरन्त ही चेतना अथवा ज्ञान हो जाता है। ऐसा नहीं है कि भूले बीमारी के कारण अच्छा अस्वस्थता के कारण हो। ये भूले प्रतिदिन स्वस्थ व्यक्तियों द्वारा भी होती रहती हैँ। जैसे--- .
1लिखने की भूल
2 छपने की भूल
3 पहचानने में भूल
4 परिचित व्यक्ति का नाम भूल जाना
5 बोलना कुछ चाहते हों परन्तु बोल कुछ जाना
6 वस्तुओं को निर्धारित स्थान पर न रखने की धूल
7 भ्रांतिपूर्ण क्रियाएँ एवं प्रतीकात्मक कार्य
8 बोलने की भूले।
उपरोक्त सभी प्रकार की भूलें दैनिक जीवन की विकृतियो के अन्तर्गत आती है मनोविश्लेषकों ने इन भूलों का कारण अन्तर्द्धन्द्र माना है। कुछ मनौवैज्ञानिक शारीरिक
अस्वस्थता, थकावट, को भी इन प्रकार की भूलों का कारणा मानते है। इन भूलों की व्याख्या  इन दैनिक छोटी-मोठी भूलों का कारणा हमारा अचेतन मन है। ये भूले ध्येयपूर्ण होती है तथा इनसे दमित भावनाओं को सुख एवं संतोष प्राप्त होता है।
1. लिखने को भूल-दैनिक जीवन में लिखने संबंधो अनेक भूल होती है तो मनोविकृत दशा की परिचायक होती हैँ। इनमें प्राय: देखने में आता है कि हम लिखना कुछ चाहते है तथा लिख कुछ जाते हे। यह स्थिति अचेतन मन में इच्छाओं को व्यक्त करती है। फ्रायड का कहना है कि यह गलती इस बात का धोतक है कि लिखने वाले की रुचि लिखने में नहीं हैँ। एक युवती  हम प्राय पत्र लिखते समय पत्र में पता की गलती कर देते है जैसे एक मित्र ने अपने मित्र को पत्र लिखा जिसमें वह लिखा "To Chicago, England" क्योंकि व
जाना चाहता था इंगलैंड और पहुंच गया शिकागो। अत: उसके अचेतन मन में इंग्लैंड कहीं
न-कहीं दबा पड़ा था जिसकी अभिव्यक्ति उसने पत्र में कर दी|
2. छापने की भूलें- जिस प्रकार दैनिक जीवन में लिखेने की भूलें होती है उसी प्रकार छपने को भूले भी होती हैँ। प्राय: छपने की भूले हो जाया करती है वयक्ति प्रेस में छपने के लिये जो व्यक्ति सामग्री व्यवस्थित करता है उसकी दमित भावना यदा कदा अभिव्यक्त हो
जाती है और जिन अक्षरों को व्यवस्थित करना चाहिये वे न होकर दूसरे हो जाते है। जैसे एक अखबर में छपा कि 'हम स्वार्थभाव से इस अखबार का संपादन करते हैं ताकि सबको सत्य एवं नवीन समाचार प्राप्त हो सके’ ’छपना तो 'नि:स्वार्थ था परंतु छप गया 'स्वार्थ'
3.पहचानने की भूल -कभी-कभी ऐसा होता है कि  हम परिचित व्यक्ति, स्थान तथा वस्तु को शीघ्र भूल जाते है तथा शीघ्र पहचान नहीं पाते। जब कभी किसी परिचित व्यक्ति को देखकर सोचना पड़े कि यह व्यक्ति कौन है तथा कहाँ का रहनेवाला है तो इसे पहचानने की भूल कहेंगे। ऐसा इसलिये होता है कि पर्याप्त समय बीत जाने के कारण स्मृति चिह्न विलुप्त हो जाते हैँ। परिणामत:  इस प्रकार की भूलें घटित होती है। मनोविश्लेषणवादीयों
के अनुसार इस प्रकार की भूल अचेतन की दमित इच्छा के कारण होती है।
4. बोलना कुछ चाहते है परन्तु बोल कुछ जाते हैं-कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति को नाम लेकर बुलाना चाहते है तथा नाम दूसरे व्यक्ति का लेकर बुला देते है। ऐसा इसलिये होता है कि जिसका नाम लेकर बुला दिया जाता है वह कहीं-न-कहीं हमारी इच्छा रहता है तथा अचेतन में दबा रहता है तथा अवसर आने पर चेतन में आ जाता है। ऐसा विस्थापन के कारण होता है।
5. परिचित व्यक्ति का नाम भूल जाना -कभी-कभी हम परिचित व्यक्ति का नाम भूल जाते है। हम बार-बार प्रयास करते है कि नाम याद आ जाय पर याद नहीं आता। कभी-कभी हम पडोसी तथा सगे रिशतेदार का भी नाम भूल जाते है तथा इस प्रकार के भूलने पर आश्चर्य भी होता है। फ्रायड का इस संबंध में कहना है यदि कोई व्यक्ति अत्यन्त सुपरिचित व्यक्ति का नाम भूल जाता है या स्मरण करने में कठिन अनुभव करता है तो यह कहा जा पकता है कि वह व्यक्ति उस व्यक्ति को पसन्द नहीँ करता फ्रायड के अनुसार ऐसा इसलिये होता है कि हमने नामों को दमित कर लिया है। ऐसा कभी कभी व्यक्ति के प्रर्ती आक्रामक व्यवहार होने अथवा उसे नापसन्द किये जाने अथवा अधिक समय बाद मिलने के कारण होता है।
6.वस्तुओ को निर्धारित स्थान पर न रखने को भूल-वस्तुओं को निर्धारित स्थान पर न रखना, किसी की कोई वस्तु लेकर न लौटाना तथा भूल जाना, आदि दैनिक जीवन विकृतियाँ है। हम वस्तु को जो गलत स्थान पर रखते है उसके पीछे हमारा अचेतन मन है परन्तु हम कहते है कि ऐसा संयोगवश ही हुआ है कभी-कभी हम पेंसिल या रबर अपने हाथ में लिए रहते है तथा ढूंढने लगते है कि कहीं रख दिया। 7. शांतिपूर्ण क्रियाएँ तथा प्रतीकात्मक कार्य-अनजाने में की गई गलती भी दैनिक
जीवन की भूल के अन्तर्गत आती है। हम करना कोई कार्य चाहते है तथा कर कोई जाते हैं। प्राय: ऐसा होता है कि पत्नी पति से बाजार से कोई सामान मांगती है परन्तु सामान कोई आ जाता है और सामान लाना भूल जाते है । ऐसा दमित इच्छाओं के कारण होता है। बिल ने इस संबंध में एक उदाहरण दिया। एक डाक्टर ने भूल से अपने बीमार चाचा को जो
दवा देनी चाहिये थी उसके स्थान पर दूसरी दवा दे दी जिससे उसके चाचा की मृत्यु हो गई। उसे इस बात पर काफी दुख हुआ परन्तु विश्लेष्ण से ज्ञात हुआ कि उसके मन में चाचा के प्रति अचेतन मन में विद्वेष की भावना थी। इस प्रकार इस भूल में अचेतन मन की इच्छा व्यक्त हुई।फ्रायड के अनुसार प्रतीकात्मक या सांकेतिक क्रियाएँ भी दैनिक जीवन को मनोविकृति है। इन क्रियाओं का सामान्यत: कोई अर्थ नहीं होता फिर भी विश्लेषण से ज्ञात होता है कि ये क्रियाएँ सार्थक होती है। इनके द्वारा अचेतन दमित इच्छाएँ प्रकट होती है । उदाहरणार्थ दाँत पीसना, मुट्ठी बाँधना, बार-बार मूँछ ऐठना, सिर खुजलाना आदि। टिकट, पुस्तक, कलैण्डर अदि संग्रह भी अचेतन इच्छा का परिचायक होता है।
8. बोलने की भूले -कभी-कभी व्यक्ति ऐसी बाते कह जाता है जिसे वह कहना नहीं चाहता। ऐसा मात्र अचेतन के कारणा होता है। व्यक्ति को स्वयं आश्चर्य होता है कि ऐसा वह क्यूँ कह गया। फ्रायड के अनुसार इसका कारण अचेतन में दमित इच्छाएँ हैं जिन्हें वह व्यक्त करता है । ब्राउन ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया। एक व्यक्ति को अपने पर बड़ा गर्व था । वह अपने मित्र को आदर के भाव से नहीं देखता था। एक दिन एक सभा मेँ उसे अपने मित्र के एक लेख पर बधाई देनी थी उसने बधाई है मेँ कहा कि "इस निम्न कोटि के लेख पर मैं अपने महान विचार प्रकट करता हूँ जबकि उसे कहना था कि इस उच्च कोटि के लेख पर मैं अपने अतिसाधारण विचार प्रकट करता हूँ यहीं उसने अपने दमित विचारों को ही प्रकट किया। फ्रायड ने एक उदाहरण के माध्यम से बोलने संबंधी भूल को स्पष्ट किया। वे एक रोगी महिला को दवा की पर्ची लिख रहे थे। रोगी महिला दवा के खर्च से परेशान थी अत: उसने कहा कि "मुझे इतना भारी बील न दे जिसे मैं निगल ही न पाऊँ।" यहीं बील से तात्पर्य पिल्स से था। ऐसी भूलें अचेतन की तरफ इंगित करती है।
सारांश रूप म कहा जा सकता है कि दैनिक जीवन में छोटी-छोटी भूलें दमित इच्छाओं की किसी-न-किसी रूप में पूर्ति करती है। इन भूलों का कोई-न कोई कारण अवश्य होता है। इसके पीछे इच्छा तथा आशय छिपा होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार दैनिक जीवन की मनोवृतियॉ आत्मगत होती है। अत: सार्वभौमिक व्याख्या नहीं की जा सकती फिर भी फ्रायड का कहना कहीँ-न-कहीँ महत्व रखता है।

Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

व्यक्तित्व विकास एवं समायोजन

विकास का अर्थ
विकास एक प्रक्रम है, जिसे प्रेक्षण और उत्पाद जाना जा सकता है। विकासात्मक परिवर्तन, व्यक्तित्व की संरचना एवं उसके प्रकार्य में होते है। दैहिक संरचना में परिवर्तन जीवन पर्यन्त होते रहते है। ये परिवर्तन शरीर की कोशिकाओं एवं उतकों तथा अन्य रासायनिक तत्वों में होते रहते है। इसके साथ ही व्यक्ति के सवेंगों, व्यवहारों एवं अन्य व्यक्तित्यशाली गुणों में परिवर्तन होते रहते है जिन्हें प्रेक्षण द्वारा प्रत्यक्ष या व्यक्ति द्वारा किये गये व्यवहार के परिणाम के आधार पर परोक्षत: जाना जा सकता है। चूँकि विकास प्रगतिशील एवं निषिचत्त क्रम में होनेवाला परिवर्तन है। इस परिवर्तन से व्यक्ति में समायोजन की योग्यता विकसित होती है तथा यह एक पूर्ण मानव बनता है। विकास में अनुक्रम होता है अर्थात् एक अवस्था का विकास इसके पूर्व की अवस्था के विकास के प्रारूप का निर्धारण करता है तथा आगे की अवस्था के विकास के प्रारूप का निर्धारण करता है। अत स्पष्ट है कि विकास का अनुक्रम गर्भादान के समय से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक सिलसिलेवार होता रहता है। इसी विकास को गत्यात्पक कहा जाता है।
विकासात्मक परिवर्तन दो प्रकार के होते हैँ। संरचनात्मक विकास में वृद्धि महत्वपूर्ण है। वृद्धि में मात्रात्मक परिवर्तन होते है तथा परिपक्वता में गुणात्मक परिवर्तन होते है। ये परिवर्तन आपस में इतने घुले-मिले हुए होते है कि इन्हें एक-दूसरे से पृथक करना दुष्कर होता है। क्योंकि व्यक्तित्व के संरचना एवं प्रकार्य में विकास एक-दूसरे पर आश्रित रहते है। विकसित संरचना के अभाव में विकास संभव ही नहीं है। अत: व्यक्तित्व का प्रकाथत्मिक विकास संरचनात्मक विकास पर निर्भर होता है। अच्छी तरह प्रकार्य करने के लिए उसे वृद्धि एवं परिपक्वता की प्रतीक्षा करनी होती है । जैसे-जैसे शिशु में वृद्धि व विकास होता है वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्त्व की संरचना में परिवर्तन आता है। जिसके परिणामस्वरूप वह परिवेश के साथ प्रक्रिया करने का ढंग विकसित करता है।  व्यक्तित्व के विकास का तात्पर्य केवल शारीरिक विकास तक ही सीमित नहीं है बल्कि व्यक्तित्व की संरचना की इकाइयों में सरलता से जटिलता का परिवर्तन. है । इकाइयों की संख्या में वृद्धि होना व्यक्तित्व की संरचना में विकास का अर्ध है।
.विभिन्न प्रकार के अनुभव तथा अधिगम आते है जिससे व्यक्ति की पहचान होती है तथा साथ-हीं-साथ वह विशेषता भी निर्यात होती है जिससे व्यक्ति का निजी व्यक्तित्व निर्मित होता है तथा अनोखे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। व्यक्ति भौतिक सामाजिक उद्दीपका के प्रति अनुक्रिया करना सीखता है, यही सीखी गयी अनुक्रियाएँ अभिप्रेरर्का, अभिव्यक्तियों एवं व्यवहारों को संगठित स्वरूप प्रदान करती है।
विकास को एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया माना जाता है। व्यक्तित्व का निर्माण विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होता है। व्यक्तित्व विकास में दैहिक बृद्धि के साथ-साथ शारीरिक संरचना में वृद्धि तथा उसके प्रकाश में विविधता आती है जिससे वह परिवेश में भौतिक अभौतिक उहीपकों के प्रति अनुक्रिया करके समायोजन स्थापित करता है। व्यक्ति के जीवन काल में विकास की कमी में अलग-अलग परिवर्तन होते है। जन्म के पूर्व विकास तेजी से होता है। जन्म के बाद विकास की गति मन्द पड़ जाती है,पुनः तेरह से बीस वर्ष में विकास के गति अति तीव्र हो जाती है। मानव के जीवन में विकास का क्रम-सामान्य वितरण चक्र के समान होता है।
विकास के संरूप (प्रतिमान) या अवस्थाएँ
चूँकि व्यक्तित्व का विकास एक सतत् प्रक्रिया है जिसका बीजारोपण गर्भाधान के साथ होता है तथा यह प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है। इस प्रक्रिया को विकास के संरूप
प्रतिमान के रूप में निम्मवत् स्पष्ट किया जा सकता है|
1. गर्भकालीन अवस्था एवं व्यक्तित्व विकास-व्यक्तित्व स्वरूप पर आनुवंशिक कारको का भी प्रभाव पड़ता है अत: गर्भकालीन परिस्थितियों जन्मोपरांत प्राप्त होनेवाली व्यक्तित्व संरचना की नीव के रूप में मानी जाती है। गर्भकालीन अवस्था अवधि 280 दिनों तक चलती है |
2. शैशवावस्था एवं व्यक्तित्व विकास-वास्तविक अर्थों में व्यक्तित्व का विकास इसी अवस्था में होता है। यद्यपि यह अवस्था बहुत लधु होती है फिर भी महत्वपूर्ण होती है।
जन्म के समय ही शिशुओं में वैयक्तिक भिन्नताएँ पायी जाती है। यहीं से शिशु समायोज़न करना सीखता है। इसी अवस्था से पेशीय विकास के प्रक्रिया आरम्भ होती है। अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि यदि जन्मोपरांत बच्चे माँ से अलग कर दिये जाते है तो उनमें समायोजन की क्षमता अपेक्षाकृत कम विकसित होती है। । इससे व्यक्ति के भविष्य के बारे में उसी प्रकार की झलक मिलती है, जिस प्रकार पुस्तक के स्वरूप के बरि में उसकी प्रस्तावना से।
3. बचपनावस्था एवं त्यदितत्व विकास-यह अवस्था जन्मोपरांत द्वितीय सप्ताह से द्वितीय वर्ष तक मानी जाती है। इसमें बच्चों में अनेक प्रकार के शारीरिक तथा व्यावहारिक परिवर्तन होते है जो उसके समायोजन को प्रभावित करते है। इस अवस्था में  आत्म का बोध होने लगता है तथा सज्ञानात्मक योग्यताएं आदि का भी प्रदर्शन होने लगता है।  वस्तुओ पर अधिकार जमाना, हँसना, खेलना. नाराज होना एवं निर्भरता में कमी आदि प्रदर्शन बच्चों में होने लगता है। व्यक्तित्व के विकास के दृष्टिकोण से यह क्रान्तिक समय होता है क्योंकि इस ममय जो नीव पडती है उसी पर प्रौढ व्यक्तित्व का  निर्माण होता है।  इस अवधि में व्यक्तित्व संबंधी परिवर्तन का स्पष्ट आभास मिलता है। बचपनावस्था में व्यक्तित्व के विकास पर माता के व्यवहार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है क्योंकि इसी अवधि में बच्चों की निर्भरता में कमी आने लगती है।
4. बाल्यावस्था एवं व्यक्तित्व विकास-यह अवस्था दो वर्ष से लगभग बारह बर्ष तक होती है। इसमें बच्चों में व्यापक परिवर्तन होने लगते है। वे घर से बाहर जीने लगते है। उनपर परिवार के अतिरिक्त मित्र मण्डली का भी प्रभाव पड़ने लगता है। इस अवधि से बच्चों का तीव्र गति से मानसिक, शारीरिक व सामाजिक विकास होता है। परिपाक व्यक्तित्व का प्रतिमान भी परिमार्जित होने लगता है। बच्चों में जिज्ञासा, अन्वेषण एवं भाषा विकास भी परिलक्षित होने लगता है। इस अवस्था में बच्चों में नकारात्मक प्रवृत्ति भी दिखाई पडती है। इसी अवधि में संवेगों में स्थिरता, कौशलों का अर्जन तथा लैंगिक अन्तर भी दिखाई पड़ता है । बाल्यावस्था क्रान्तिकारी परिवर्तन का समय है। इस अवस्था में होने वाले व्यक्तित्व विकास पर माता-पिता मित्रों एवं सम्बन्धियों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
5. पूर्व-किशोरावस्था एवं व्यक्तित्व विकास-इसकी अवधि 10-14 वर्ष तक मानी जाती है। इस अवधि में व्यक्तित्व सम्बन्धी विकासात्मक परिवर्तनों की सख्या तथा सीमा अपेक्षाकृत कम होती है, क्योंकि इस अवधि पर किशोरावस्था की स्पष्ट छाप होती है। फिर भी बालक तथा बालिकाओं में लैंगिक शक्तियों का विकास होने के साथ-साथ उनके सामाजिक क्षेत्र में भी वृद्धि होती है। उन्हें अनेक प्रकार के नविन समायोजन सीखना पड़ता है तथा चपलता, जिज्ञासा एवं अस्थिरता की प्रवृति बढने लगती है तथा उनमे निषेधात्मक दृष्टिकोण का भी प्रदर्शन होने लगता है।
6. किशोरावस्था एवं व्यक्तिव विकास-म अवधि 13 से 18 वर्ष तक होती है। इसमें व्यक्ति में अनेक प्रकार के परिवर्त्तन प्रदर्शित होते हैँ। इस अवधि में व्यक्ति में सामाजिक संवेगात्मक, मानसिक एव अन्य प्रकार के व्यवहार परिपक्वता की ओर अग्रसर होते है। माता- पिता तथा सम्बन्धियो के प्रति यह धारणा विकसित होने लगती है कि वे उन्हें समझने का प्रयत्न नहीं कर पाते हैं। बच्चे अपनी संवेदनाओ तथा संवेगों को अधिक महत्व देने लगते हैं। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण यथार्थ से परे होने लगता है। उन्हें समायोजन के नवीन आयाम सीखने पडते है। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण यथार्थ से परे होने लगता है। उन्हें समायोजन के नवीन आयति सीखने पड़ते है। उनमें नवीन मूत्यं। का भी विकास होता है। इस अवस्था में व्यक्ति गन्दी व अच्छी आदतों के प्रति सतर्क हो जाता है तथा अपना मूल्याकन अपने मित्रों के साथ करने लगता है। वह सामाजिक अनुर्मादन प्राप्त करने का प्रयास करता है। इसमें व्यक्ति आवांछित आदतों को त्याग ने तथा वाछित आदतों को अगीकृत करने लगता है।
7. प्रौढावस्था एवं व्यक्तिव विकास-प्रौढावस्था का प्रसार अठारह वर्ष से चालीस वर्ष तक माना जाता है। व्यक्तित्व के जो प्रतिमान किशोरावस्था तक विकसित हो जाते हैं उनका अन्य अवस्थाओं में स्थिरीकरण होता है तथा कुछ नवीन शील गुण भी विकसित होते हैँ। प्रौढावरथा से व्यक्ति नवीन, सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप कार्य करना सीखता है। उसके ऊपर परिवार सँभालने की जिम्मेदारी आ जाती है। वह स्वतन्त्रता से सोचना प्रारम्भ करता है। इससे उसमें सर्जनशीलता की शक्ति बढती है।
8 मध्यवस्था एवं व्यक्तित्व विकास-इसका प्रसार चालीस वर्ष से साठ वर्ष तक माना जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति की योग्यताओं में हास प्रारम्भ हो जाता है। उसकी मानसिक एकाग्रता, मानसिक स्थिरपा व सक्रियता में कमी आने लगती है । इन्हें कारणों से समायोजन में कठिनाई अनुभव की जाती है । जीवन में स्थिरता, एकरूपता तथा परिवर्तनों में अभाव के कारण व्यक्ति में चिंता, नीरसता तथा उदासी बढ़ने लगती है। इनका समायोजन पर बाधक प्रभाव पड़ता है। अत : स्पष्ट है कि इस अवस्था में व्यक्तित्व प्रणाली में समनव्य की कमी आने लगती है तथा पचास वर्ष के बाद उपर्युक्त लक्षण पूर्णतया स्पष्ट होने लगते हैँ।
9. वृद्धावस्था एवं व्यवित्तत्व विकास- इसका प्रारम्भ साठ वर्ष से माना जाता है तथा जीवन के शेष समय तक यही अवस्था रहती है। इसमें हास की गति तीव्र हो जाती है जिससे व्यक्ति में शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता आने लगती है। स्मरण शक्ति कमजोर पडने से समायोजन की समस्या स्थायी रूप धारण करने लगती है। व्यक्ति में रुड़ीवादिता बड़ जाती है, उसमें हीनता की भावना भी उत्पन्न हो सकती है।नयी पीढी सेउसका सम्बन्ध तथा समायोजन सन्तोषनक नहीँ रह पाता। एकाकीपन ही उसका सहारा रह जाता  है। इस प्रकार व्यक्ति में समन्वय का अभाव तथा वह असहाय अवस्था मेँ पहुँच जाता है।
व्यक्ति में कोई नवीन प्रतिमान उत्पन्न नहीं होते बल्कि प्रतिमानों में हास होने लगते है। अत: व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से किशोरावस्था तक की अवस्थाएँ ही विशेष महत्व रखतीं हैँ।

Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

future for you astrological news adiction ka jyotish karan 19 12 2015

future for you astrological news swal jwab 1 19 12 2015

future for you astrological news swal jwab 19 12 2015

future for you astrological news rashifal dhanu to meen 19 12 2015

future for you astrological news rashifal singh vrishchik 19 12 2015

future for you astrological news rashifal mesh to kark 19 12 2015

future for you astrological news panchang 19 12 2015

Friday, 18 December 2015

Future For You December 2015 Edition New Year Special

How to get success in film industry:astrological point of view

The nature and strength of Lagna and Lagna lord in birth chart governs the personality, potentiality, status, name, fame and wealth of the individual. Those born in Venusian lagna /Rashi (Vrishabha and Tula), Mercurian Lagna/Rashi (Mithuna and Kanya), Karka and Simha Lagna/Rashi (ruled by Moon and Sun respectively) are more suited to films. The 2nd house of the horoscope rules over face, eyes, expressions and voice which are sine-qua-non for impressive and effective expressions and dialogue delivery. The 3rd house deals with determination and perseverance. The 4th house shows capability to grasp the intricacies of performing arts. The 5th house denotes creative and expressive talent of the individual and the 9th house (5th from 5th) denotes higher knowledge and providential help or luck. The 10th house denotes one's vocation, and gains therefrom is denoted by the 11th house. The planets in 11th house by their 7th aspect on the 5th house also stimulate creative and expressive talent of an individual.
Among the planets, Venus is the prime significator for handsome figure and talent in art, acting, singing, dancing, etc. A strong and well placed Venus in Lagna makes one handsome, gives aesthetic taste and inclines towards performing art. In 2nd, 4th, 5th and 10th house, Venus makes one an actor/singer and famous. Moon rules over mind, subjective perception and personality of the native. Moon in Venusian and Mercurian signs (Vrishabha/ Tula and Mithuna/Kanya respectively), Karka, Simha, Aquarius and Pisces gives artistic talent and emotional flexibility. Mercury, being karaka (significator) for speech, dance and drama, gives versatility and expressive talent to an individual. Its association or aspect with Venus makes one skilled in performing arts. The blessings of Jupiter give success, recognition, name, fame and wealth. Strong Jupiter in Lagna, 2nd, 5th, 9th, 10th or 11th house conjoined with, or aspected by, Venus and or Mercury gives success in films. The dasha -antardasha of these planets at appropriate age gives success in film line. Location of other Rajyogas in the horoscope gives early success., recognition and lasting name, fame and wealth.
Though Saturn represents all that is rough, tough and ugly, Uttarakalamrita (Ch. V, Sl. 50) assigns it the karakatwa of 'decorating one with dresses' as well. Saturn in Aquarius and Pisces gives flexibility of emotions and patient effort which are necessary for success. As Saturn represent public, its association with or favourable aspect with friendly Venus gives success in films with much fan following. Because of its characteristics of 'disguise' (Sl. 52) (behave differently from real), Rahu's connection with Venus or its location in Venusian signs in the horoscope inclines the individual to performing arts and films.
Among the planets in outer space and invisible to naked human eyes, Neptune is said to govern imagination and artistic temperament which is prerequisite for painters, musicians, poets and actors. The association or aspect of Neptune with Venus in Lagna, 2nd, 4th, 5th, 10th or 11th house gives capability for portraying different characters.

Psychological problems and fourth house in horoscope

The Fourth House shows your home and how you tend to act there. It also shows relationship with the parent of lesser influence, usually the father, the first few years of your life and paradoxically, the last years of your life, what we become as we get older. The fourth house of your horoscope governs areas related to home, family and property. Your roots, family background, childhood, inner emotions, immovable possessions, domestic life, the end of life and endings in general are covered by this house. Psychological foundations and conditioning are also found in the 4th house. There is some controversy as to whether this house covers the Father or the Mother. One might say that the parent with the most influence is covered by this house. In my practice, the Mother is found in the fourth house and the Father in the tenth house. Given that females are ruled by the moon in your chart and the moon is the natural ruler of the fourth house, I use the fourth house as a significant factor of the mother. This house also covers the one that nurtures, which is primarily the mother. This is the lowest point of the chart, the nadir, on the zodiac wheel. This is why it is described as being our roots, our foundation of life. This point is directly opposite the Midheaven (MC) or the tenth house. Cancer is the sign that governs the 4th house in the natural zodiac. Unhappy feelings are a lot like weeds. Neglect to take them up by the roots and they'll just grow back again. Yet who probes willingly into the soil where emotions grow? Finding the roots of feeling can be hard. You might learn this under the gray skies of a Saturn/Moon transit. If you're like most people, you'll try to ignore your depression. You'll put on a happy face for loved ones. You'll pretend to be caring, cool-headed or commanding at work. You'll send energy to your 1st house image, your 7th house partner, or your 10th house career. But eventually, inexorably, you'll fall. And the 4th house is where you'll land. The 4th is where we go when we collapse. It rules home and family, ancestors and homeland. It provides a literal retreat. Push ourselves too hard and we'll likely end up at home, sick in bed. Suffer a devastating loss and we may knock on the door of a family member and ask to be taken in. But the 4th is just as much a retreat of the imagination. It is our psychic hearth. It holds the memories that both comfort and haunt us. As the base of our chart, it represents both the ground and mystery of our being. If we lean over the chasm of the 4th, we'll find, as the poet Rilke wrote, “something dark and like a web, where a hundred roots are silently drinking.” The 4th house in any birth chart has various significations such as house, vehicles, peace of mind, mother etc. Generally most astrologers look at the 4th house with a view to deciphering whether the native will be blessed with comforts and vehicles. A significant aspect of 4th house is attributable to mental peace and inner purity. Generally 6th lord in 4 goes under the name "Kapata Yoga" or yoga for becoming a thief. It generally refers to lack of cohesion in thought, word and deed. Malefics in 4 or aspecting the 4th house make a person deceitful in all dealings and this in turn deprives the native of peace of mind. Mental stress is caused if the 4th house is aspected by malefics. In medical astrology malefics in 4 can lead to cardiac problems. Mars is "Bhoomi Karaka", if Mars is afflicted in the 4th, one will be bereft of happiness and also property related dealings will suffer. To understand the full features of 4th house we need to look at Moon, Mars and Mercury. Moon is the karaka for mother. So Moon and the 4th lord both afflicted lead to deprivation of maternal happiness. The greatest source of joy and comfort in this world is a loving mother. There is a saying that when a person is born, God also designates a "Guardian Angel" to look after that person. We know that a loving mother is the physical equivalent of that Guardian Angel. When Moon is afflicted, one's mother will not be of any help to the native. So that could be one causative factor for mental anguish. "Insanity or madness will not be present unless the Moon and Mercury are involved in heavy afflictions". This is because Moon rules the mind and Mercury rules certain emotions like sense of humour. To conclude, one will be blessed with peace of mind, happiness and comforts if the 4th house and 4th lord are free of any blamish of any sort. Benefics such as Jupiter or Venus aspecting the 4th house would also give a person, cheerfulness, joy and enthusiasm.Today most doctors all over the world assess a person's state of mind before writing out a prescription.Stress is now considered as a serious causative factor in many psychosomatic disorders.So all afflictions to the 4th need to be reckoned before diagnosis of such disorders is made.

कॉल सेंटर में नौकरी

आज के इस आर्थिक युग में लोगों में सुविधापरस्ती दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। वे कम से कम समय में हर सुविधा हासिल कर लेना चाहते हैं। ऐसे में धनार्जन के प्रति उनकी ललक स्वाभाविक है। यही कारण है कि आज का युवा वर्ग काॅल सेंटर के क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है, जहां संभावनाएं असीम हैं। आइए, ज्योतिषीय विश्लेषण के द्वारा देखें कि इस क्षेत्र के प्रति उनके आकर्षण का कारण क्या है। बुध: वाक शक्ति, भाषा का ज्ञान, आवाज की नकल करने की क्षमता, जवाब देने की क्षमता, तर्कशक्ति, हास्य को समझाकर मधुर भाषा में सही उपयोग करने की निर्णय क्षमता। गुरु: भाषा सीखने, समझने की चेष्टा, संयमित आचरण, इज्जत व तमीज से बात करना, काम के प्रति रुचि, सामने वाले व्यक्ति के विचारों को भांपकर अच्छा आचरण करना। शनि: आवेश पर नियंत्रण और धैर्य रखना। शुक्र: कंप्यूटर प्रणाली का ज्ञान के साथ सफल प्रयोग। स्वच्छ अति आधुनिक वातावरण में सामूहिक कार्य करना, चतुराई, एक कलाकार की तरह वाणी का प्रयोग एवं मृदुलता। मंगल: साहस, हिम्मत, धैर्य। चंद्र: स्वस्थ शरीर, रात रात भर कार्य करने की क्षमता, युवावस्था, उम्र की दृष्टि से अधिक परिपक्वता, कोमल वचन। ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार ग्रह, कारक व भाव संबंधी तथ्य इस प्रकार हैं: बुध के कारकत्व सौंदर्य विद्वत्ता, वाकपटुता, वाणी की चतुराई, विद्या, तर्क शक्ति, बुद्धि, कला कौशल। अतः बुध से विद्या और वाणी से संबंधित कर्म देखते हैं। बुध से शुभ व्याख्यान, मृदुवचन, मन पर संयम, भाषा का ज्ञान भी देखते हैं।जातक भूषणम के अनुसार बुध वाणी, व्यापार, विद्या, बुद्धि, व्यवहार कुशलता और निर्णय शक्ति का कारक है।भाव मंजरी के अनुसार कुछ वाणी, व्यापार, वाक कौशल, विद्या, कर्तव्य-अकर्तव्य के निर्णय की शक्ति, कथा लेखन और मीठे वचन का कारक माना जाता है। बुध का स्वरूप निम्न प्रकार माना जाता है: बुध सुंदर आकर्षक शरीर वाला, गूढ़ अर्थ से युक्त, वाक्य बोलने वाला, हास्य को समझने वाला, मधुर वाणी, स्पष्ट भाषा, आवाज, नकल करने की क्षमता बुध के स्वरूप है। उक्त सभी तथ्यों पर विचार किया जाए तो यह प्रमाणित होगा कि बुध इस व्यवसाय के लिए प्रमुख कारक ग्रह है। गुरु के कारकत्व ज्ञान, सदगुण, महत्व, आचरण, सिंहनाद या शंखध्वनि के समान आवाज, शब्द, आकाश व वाष्पेंद्रियों का स्वामी गुरु है। कार्य में रुचि, पुष्टि कार्य, तर्क की क्षमता, दूसरों के विचारों को भांप लेने की क्षमता, विशेष ज्ञान, कर्तव्य। भावमंजरी के अनुसार गुरु से भाषणपटुता व बुद्धि देखते हैं। उक्त तथ्यों पर विचार करके कह सकते हैं कि गुरु भी इस व्यवसाय का प्रमुख कारक ग्रह है। शुक्र के कारकत्व शुक्र के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त सारावली के अनुसार सलाहकारी, सचिव, बुद्धि, रमणीय प्रभावशाली वचन आदि शुक्र के कारकत्व हैं। जातक भूषणम के अनुसार सुंदरता, अभिनय, काव्य लेखन, ऐश्वर्य, बहुत स्त्रियों का समूह, मृदुलता आदि शुक्र के कारकत्व हैं। चंद्र के कारकत्व चंद्र के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त जातक भूषणम के अनुसार युवावस्था, उम्र की दृष्टि से अधिक मानसिक परिपक्वता, कोमल वचन चंद्रमा के कारकत्व हैं। भाव मंजरी के अनुसार शरीर पुष्टि और कार्यसिद्धि चंद्र के कारकत्व हैं। उक्त कारकत्वों के अनुसार चंद्र भी इस व्यवसाय का महत्वपूर्ण कारक ग्रह है। मंगल के कारकत्व मंगल के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त फलदीपिका के अनुसार धैर्य, मन की स्थिरता एवं मनोबल मंगल के कारकत्व हैं। जातक भूषण के अनुसार पराक्रम .का महत्वपूर्ण कारक है। इस प्रकार मंगल भी इस व्यवसाय का महत्वपूर्ण कारक ग्रह है। काॅल सेंटर व्यवसाय के कारक ग्रह एवं भाव निम्न हैं: नित्य कारक ग्रह: बुध, गुरु, शुक्र अन्य कारक ग्रह: चंद्र, मंगल (केतु), शनि, (राहु) नौकरी में पद प्रतिष्ठा के लिए: सूर्य भाव: इस कार्य के लिए लग्न द्वितीय, तृतीय, दशम भाव। कुंडली जन्मकुंडली नवांश: ग्रहों की स्थिति (बल) के लिए। दशमांश: व्यवसाय संबंधी कारकांश कुंडली जन्म कुंडली: लग्न मौलिक तत्वों और संभावित दिशाओं का बोध कराता है व मौलिक स्वास्थ्य की ओर इंगित करता है। यह इसलिए आवश्यक है कि भारत में यह कार्य रात्रि में होता है, जिसका सीधा असर स्वास्थ्य व मस्तिष्क पर पड़ता है। अतः मौलिक रुचि, अभिरुचि का ज्ञान काॅल सेंटर से संबंधित नित्य कारक ग्रहों का संबंध होने पर व्यक्ति का इस क्षेत्र से संबंध हो सकता है। द्वितीय भाव फलदीपिका के अनुसार द्वितीयेश का संबंध शनि से हो तो जातक अल्प शिक्षित होता है। द्वितीयेश का संबंध राहु से हो तो शिक्षा अर्जन में अड़चन आती है। द्वितीयेश का संबंध केतु से हो तो जातक झूठा, वचन से फिरने वाला होता है। द्वितीयेश का संबंध मंगल से हो तो जातक चतुर, चालाक, चुगलखोर होता है।द्वितीयेश का संबंध गुरु से हो तो जातक धर्मशास्त्र का ज्ञाता होता है। द्वितीयेश का संबंध बुध से हो तो जातक अर्थशास्त्र का ज्ञाता होता है। द्वितीयेश का संबंध शुक्र से हो तो जातक शृंगारप्रिय व मीठे वचनों के गुणों से विभूषित होता है। द्वितीयेश का संबंध चंद्र से हो तो जातक निश्चित रूप से थोड़ा बहुत कलाकार होता है। उत्तरकालामृत के अनुसार द्वितीय भाव से वाणी, जिह्वा, मृदु वचन, स्पष्ट व्याख्यान क्षमता, विद्या, मन की स्थिरता व आय की विधि का ज्ञान होता है। जातक तत्वम के अनुसार द्वितीय भाव वाणी स्थान भी है। बुध व गुरु के विशेष विचार से व्यक्ति की वाणी का सौंदर्य जाना जा सकता है। अगर द्वितीयेश बुध व गुरु निर्बल हों तो वाणी दोष होता है। विद्या व वाणी हीन योग अगर पंचमेश छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो जातक की वाणी कटु होती है और वह विद्याहीन होता है। अगर पंचमेश बुध व गुरु से युक्त होकर छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो जातक वाणी, विद्या, साहित्यिक रचनात्मकता से रहित होता है। जातक सारदीप के अनुसार धन स्थान में बुध हो तो जातक बुद्धि से धन कमाने वाला, सुंदर वचन बोलने वाला व नीतिवान होता है। जातक भूषणम के अनुसार द्वितीय भाव वाणी प्रयोग, मुख, विद्या का द्योतक है। उक्त सभी तथ्यों के विवेचन से हम कह सकते हैं कि द्वितीय भाव इस व्यवसाय के लिए अति महत्वपूर्ण है। तृतीय भाव: आवाज पंचम भाव: शिक्षा दशम भाव: राज्य कर्म/व्यवसाय एकादश भाव: आय ये भाव भी व्यवसाय निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण हंै। फलदीपिका, जातक भूषणम, जातक सारदीप, सारावली एवं महर्षि गार्गी के अनुसार सूर्य, लग्न, चंद्र तीनों से दशमेशों के नवांशेशों से व्यापार की प्रकृति का विचार करना चाहिए।

नौकरी में तबादला:ज्योतिष्य नजर

नौकरी में तबादला एक नियमित प्रक्रिया है। कुछ वर्ष एक ही स्थान पर कार्यरत रहने के उपरांत नियोजित व्यक्ति का स्थानांतरण होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कई बार यह तबादला अथवा स्थानांतरण अपनी ईच्छा के अनुरूप होता है तो कई बार लोगों को अपना घर-परिवार छोड़कर अनिच्छा से नये स्थान पर जाकर योगदान देना पड़ता है। ये तबादला पदोन्नति के साथ कुछ आर्थिक लाभ के साथ भी हो सकता है अथवा समान पद पर रहते हुए बिना आर्थिक लाभ के भी उन्हें स्थानांतरित किया जा सकता है। आइए देखें कि विभिन्न परिस्थितियों में स्थानांतरण के क्या ज्योतिषीय मापदंड हैं जिनके कारण ईच्छा-अनिच्छा से तबादला होता है। ज्योतिषीय मापदंड (पैरामीटर्स): 1. प्रमुख भाव (House): 3H, 4H, 10H, 12H 2. सहायक भाव: 6H 3. ग्रह: 3L,4L, एवं 10L, 12L 4. दशा: महादशा/अंतर्दशा/ प्रत्यंतर्दशा स्वामी का संबंध प्रमुख भावों तथा भावेशों के साथ होना चाहिए। 5. गोचर: (i) दशा स्वामियों का संबंध गोचर में 4H/3H एवं उनके भावेशों के साथ स्थापित होना चाहिए। (ii) यदि इनका साहचर्य/संबंध 12H से स्थापित हो जाता है तो तबादला निश्चित है। 6. कारक: शनि (नौकरी के लिए) 7. वर्ग कुंडलियां: D1,D4,D9 एवं D10 3H एवं 12H की तबादले में भूमिका: नौकरी मं तबादला प्रमुखतः तृतीय एवं द्वादश भावों तथा उनके भावेशों के बीच अंतर्संबंध स्थापित होने के कारण होता है। यहां ध्यान रखना आवश्यक है कि: (i)तृतीय भाव सुख स्थान (4H) से 12वां भाव है जो गृह विस्थापन निर्देशित करता है। (ii)द्वादश भाव लग्न से 12वां भाव है जो स्वयं का अपनी जगह से विस्थापन निर्देशित करता है। अगली पोस्टिंग का स्थान द्वादश भाव है क्योंकि यह कर्मस्थान यानी दशम भाव से तृतीय है तथा भाग्यस्थान (नवम् भाव) से चतुर्थ भाव है जो लंबी यात्रा को इंगित करता है। साथ ही यह पराक्रम भाव (3H) से दशम है जो यात्रा का भी संकेत देता है। इन दोनों भावों के बीच जितना नजदीकी संबंध बनेगा तबादला होने की गंजाइश उतनी ही बढ़ेगी। कुछ अति महत्वपूर्ण एवं ध्यातव्य तथ्य: 1. यदि 4H प्रभावित होता है तो निवास में परिवर्तन होता है (3H, 4H एवं 12H)। 2. यदि 10H प्रभावित होता है तो नौकरी में परिवर्तन का संकेत है (3H,10H एवं 12H) । 3. यदि तबादला सुखदायी है तो इसमें लग्न की भी संलग्नता होगी। (दशम भाव से चतुर्थ)। 4. यदि तबादला से लोकप्रियता हासिल होती है तो उसमें 4H भी संलग्न होगा (दशम भाव से सप्तम)। 5. यदि तबादला से पदोन्नति होती है तो उसमें 7H भी संलग्न होगा (दशम भाव से दशम)। 6. यदि तबादला से आर्थिक लाभ होता है तो उसमें 2H/11H की भूमिका अनिवार्य है। उदाहरण 1 यह जातक एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में वि विभाग में कार्यरत है। जातक का लग्न कर्क है जो गुरु के नक्षत्र में है। गुरु 3H में 4L शुक्र के साथ बैठे हैं। गुरु 6L एवं 9L है। लग्न पर मंगल की दृष्टि है जो पूर्ण योगकारक (पंचमेश एवं दशमेश) होकर उच्च अवस्था में सप्तम भाव में स्थित है। लग्नेश चंद्रमा द्वादश भाव में स्थित है। सप्तमेश एवं दशमेश का राशि परिवर्तन है। साथ ही अनेक महत्वपूर्ण योग इस कुंडली में विद्यमान हैं।

वाहन सुख कब और कैसे जाने ज्योतिष्य नजरिये से

प्रत्येक यक्ति के मन में यह जानने की उत्सुकता होती है कि उसे वाहन कब प्राप्त होगा। जन्मपत्रिका में वाहन सुख का अध्ययन चैथे और ग्यारहवें भाव से किया जाता है। वाहन का कारक ग्रह शुक्र माना गया है। व्यक्ति को वाहन सुख चतुर्थेश और एकादशेश की दशा में भी प्राप्त होता है। यदि चतुर्थेश बारहवें भाव में हो, तो व्यक्ति वाहन के लिए चिंतित देखा जाता है। चतुर्थ भाव में गुरु उच्च का हो, तो दक्षिणा में वाहन मिलता है। देखिए निम्न जन्मपत्रिका। इस व्यक्ति को शनि में बुध की अंतर्दशा आने पर वाहन प्राप्त हुआ। बुध ग्यारहवें स्थान में शुक्र के साथ है। इसे कारक ग्रह शुक्र के कारण वाहन प्राप्त हुआ। चलित चक्र में सूर्य उच्च राशि मेष में आ जाता है एवं ग्यारहवें भाव को देख रहा है। इस कारण ग्यारहवां स्थान बली है तथा भाग्य की दशा में चतुर्थेश की अंतर्दशा थी। अतः यह एक बलवान वाहन योग सिद्ध हुआ। ग्यारहवें घर में गुरु होने के कारण इस व्यक्ति को धन और वाहन प्राप्ति के विशेष योग हंै। दशमेश भी ग्यारहवें भाव में है। अतः यह पिता की सुदृढ़ स्थिति का सूचक है। अष्टमेश चतुर्थ स्थान में वाहन से दुर्घटना का योग बनाता है। किंतु मित्र राशि में होने के कारण यही योग दुर्घटना से बचाता भी है। लग्नेश भी ग्यारहवें स्थान में है। अतः इस जन्मपत्रिका वाले व्यक्ति का जीवन अभी तक सुचारु रूप से चल रहा है एंव आनंदमय जीवन व्यतीत हो रहा है। व्ययेश चैथे स्थान में हो, तो व्यक्ति स्वयं उपार्जित धन से वाहन खरीदता है। लाभेश, सप्तमेश तथा तृतीयेश चतुर्थ भाव में हों तथा सप्तमेश की दशा हो, तो व्यक्ति अपने मित्रों के वाहन का उपयोग करता है। अष्टमेश चतुर्थ भाव में हो, तो वाहन दुर्घटना का योग बनता है। षष्ठेश चतुर्थ भाव में हो, तो वाहन के कारण झगड़ा होता है। सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो, शुभ ग्रह साथ में हो, तो विवाहोपरांत वाहन सुख प्राप्त होता है।पंचमेश चतुर्थ भाव में हो, तो चतुर्थेश की दशा में अचानक वाहन प्राप्ति का योग बनता है। वाहन निम्न प्रकार का होगाः साइकिल: चतुर्थेश शु़क्र के साथ हो, तो साइकिल मिलती है, या चतुर्थेश की दशा हो और चतुर्थ छठवें, या बारहवें भाव में हो। मोटर साईकिल: चतुर्थेश की दशा हो और उसको शुक्र, या गुरु देखता हो, तो मोटर साइकिल आदि का योग बनता है। लग्नेश, पाप ग्रह हो कर, चतुर्थ भाव में हो, या चतुर्थेश की दशा हो, तबभी मोटर साइकिल प्राप्त होती है। कार: ग्यारहवें भाव की दशा में चतुर्थेश हो, लग्नेश और ग्यारहवें का मालिक चतुर्थ भाव में हो और चतुर्थेश भाग्य भाव में हो, तो कार का सुख प्राप्त होता है। वायुयान: लग्नेश की दशा में ग्यारहवें भाव की अंतर्दशा हो, उसमें चतुर्थेश की प्रत्यंतर्दशा हो, गोचर में लग्न में लग्नेश, चतुर्थेंश, एकादशेश, भाग्येश लग्न, या चतुर्थ भाव में हो एवं गुरु केंद्र में, शुक्र केंद्र, या बारहवे भाव में हो, तब वायुयान सुख का योग बनता है। इसके साथ कुंडली में उच्च प्रकार के राजयोग और लक्ष्मी योग होना जरूरी है। पानी का जहाज: अष्टम भाव, या लग्न में केतु हो, चंद्रमा अष्टम में हो, शुक्र बारहवें भाव में हो, गुरु पंचम भाव में हो, चंद्रमा पूर्ण बली हो, केतु बली हो तथा नेप्च्यून बली हो, लग्नेश की दशा में अष्टमेश की अंतर्दशा हो, अष्टमेश चंद्र हो, अष्टम भाव में चंद्र, या केतु की दृष्टि हो, तब पानी के जहाज का सुख मिलता है। इसके लिए भाग्येश और लग्नेश बली होना अत्यंत आवश्यक है।

सभ्य और सक्रीय समाज निर्माण की प्रक्रिया

विश्वव्यापी बहाई समुदाय इस कार्य में तल्लीन है कि किस प्रकार सभ्यता निर्माण की प्रक्रिया में यह अपना योगदान दे सके। यह दो प्रकार के योगदान को महत्व दे रहा है। पहले प्रकार का योगदान बहाई समुदाय के विकास और उन्नति से सम्बन्धित है और दूसरा इसकी समाज में सहभागिता से। पहले प्रकार के योगदान के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि बहाई पूरे संसार में निरहंकारी वातावरण में एक ऐसी कार्यप्रणाली व समरूपी प्रषासनिक ढांचों की स्थापना के लिए प्रयासरत है जो मानवता की एकात्मकता के सिद्धान्त व इसे नया आधार देने वाले विष्वास को मूत्र्त रूप देते हैं। - इनमें से कुछ विष्वास ये हैं- सचेतन आत्मा का कोई लिंग, जाति या वर्ग आदि नहीं होता और इस प्रकार के विष्वास से हर प्रकार के भेदभाव को मिटाया जाता है क्योंकि इस प्रकार के भदेभाव का ही यह एक ओछा रूप है कि महिलाओं की योग्यताओं को नजरअंदाज करके उन्हें उनके विभिन्न उद्देष्यों की ओर बढ़ने से रोका जाता रहा है। - भेदभाव का मूल कारण अज्ञानता है जिसे केवल षिक्षा का प्रचार-प्रसार करके ही मिटाया जा सकता है क्योंकि ऐसा होने से ही ज्ञान जन-2 तक पहंुच पाएगा। ‘धर्म और विज्ञान’ ज्ञान और अभ्यास की पूरक प्रणालियां हैं जिनकी सहायता से हम इस विष्व को समझ पाते हैं और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म और विज्ञान की बदौलत ही सभ्यता अर्थात सामाजिक विकास की राह सरल होती है। - बिना विज्ञान के धर्म शीघ्र ही एक उन्माद या अन्धविष्वास में परिवर्तित हो जाता है और बिना धर्म के विज्ञान अपरिष्कृत भौतिकवाद का साधन बन जाता है। - हमारा ऐसा मानना है कि भौतिकवाद और अध्यात्मवाद में सक्रिय तालमेल के फल के रूप में सच्ची समृद्धि तब तक हमारी पहुंच से परे रहेगी जब तक हमारे जीवन में हमारी उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति के दैत्य का प्रभुत्व बढ़ा रहेगा। - न्याय आत्मा की शक्ति, क्षमता, योग्यता व संकाय है। यही शक्ति प्राणी को सत्य व झूठ में भेद करने में सक्षम बनाती है। जब इसे सामाजिक मुद्दों पर समुचित रूप से प्रत्यारोपित किया जाता है तो यह एकता स्थापित करने का एकमात्र व सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपकरण बन जाता है। सेवा की भावना से किया गया कार्य प्रार्थना का ही एक रूप है। इस उद्देष्य को पूरा कर पाना एक जटिल कार्य है यद्यपि बहाई समुदाय ज्ञान प्राप्ति की एक ऐसी दीर्घावधि वाली प्रक्रिया में समर्पित है जो इस उद्देष्य की पूर्ति हेतु समुदाय के सम्मिलित होने को आवष्यक बताती है। - हमें यह जानना होगा कि विभिन्न समुदायों को बिना संघर्ष के किस प्रकार एक साथ लाया जा सकता है। विघटनकारी, पक्षपातपूर्ण, हिमायती व गुरिल्ला मानसिकता का परित्याग कर दें, विचार और कार्य में उच्च कोटि की समानता व एकता को प्रोत्साहन दें और तहेदिल व तन्मयता से सहभागी बनें। यह जानने का प्रयास करें कि किस प्रकार से एक ऐसे समुदाय की गतिविधियों का प्रबंधन किया जाए जिसमें पौरोहित्य सम्बन्धी-विषेषाधिकारों वाला शासकीय वर्ग न हो। -किस प्रकार से लोगों को निष्क्रियता व विषाद की कैद से मुक्त होने में सक्षम बनाएं ताकि उन्हें आध्यात्मिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की गतिविधियों में लगाया जा सके। हमें श्रेष्ठ स्तरीय ऊर्जाओं वाले युवा वर्ग को मानव सभ्यता की उन्नति में योगदान करने हेतु प्रोत्साहित करना होगा। - हमें परिवार के भीतर ऐसी गतिविधियों को जन्म देने की आवष्यता है जिनके माध्यम से भौतिक व आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त की जा जाए। किस प्रकार से यह संभव हो सकेगा कि परामर्षक प्रक्रिया के बहुआयामी परिपे्रक्ष्यों में श्रेष्ठ निर्णय लेने का लाभ लिया जा सके। इस प्रकार केे सभी प्रष्नों का जवाब देने के लिए बहाई समुदाय ने एक ऐसी प्रणाली को अपनाया है जिसकी विषेषताओं में क्रिया, चिन्तन, परामर्ष, अध्ययन व अध्ययन में आषा, प्रेम व आस्था को सुदृढ़ करने वाला साहित्य प्रमुख है। परन्तु साथ ही कार्य प्रणाली के वैज्ञानिक विष्लेषण को प्रकट करने वाले साहित्य को भी समान महत्व दिया गया है। इस आलेख को समझ कर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि प्रत्येक श्रेष्ठ स्तरीय सभ्यता में भौतिकवाद और आध्यात्मवाद के सामंजस्य को महत्व दिया गया। भौतिकवाद मानव के उत्थान के लिए आवष्यक है लेकिन अति उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति आध्यात्मिक पक्ष को निष्क्रिय करने लगती है जिस कारण मानसिक शान्ति व समाज में एकता का अभाव तथा ध् ार्म का उन्माद में परिवर्तित हो जाना जैसे दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हंै। ज्योतिष में गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक माना जाता है जिसके कारण मानव जाति जियो और जीने दो के श्रेष्ठ सूत्र को धर्म का प्रतिपादक मानती है तथा उपभोक्तावाद व अहंकार की अपेक्षा सेवा की भावना को अधिक महत्व देती है। गुरु ग्रह के बिना आध्यात्मिकता व सांसारिकता मंे समन्वय नहीं स्थापित हो सकता और इनमें समन्वय स्थापित हुए बिना श्रेष्ठ सभ्यता का निर्माण नहीं हो सकता। जिस तरह से जन्म कुण्डली के सभी ग्रहों में गुरु का महत्व इसलिए सर्वाधिक हो जाता है क्योंकि यह जातक को न केवल बुद्धिजीवी व ज्ञानी बनाता है बल्कि उसे भाग्यषाली व धन सम्पन्न भी बनाता है। परन्तु उसका जीवन अन्यजनों से इसलिए श्रेष्ठ होता है क्योंकि उसमें सेवा, विनम्रता व संतोष की भावना भी होती है तथा वह न केवल स्वयं उन्नति करता है अपितु दूसरों की उन्नति में भी सहायक भूमिका निभाता है। ठीक इसी प्रकार मेदिनीय ज्योतिष में भी संगठनात्मक योग्यताओं के सृजन में व सभ्य व सुषिक्षित समाज के गठन में गुरु ग्रह का योगदान सर्वोपरि है क्योंकि इसी ग्रह के प्रभाव से मानव समाज में भेदभाव की कुरीतियों को दूर करने वाले समाज सुधारकों का अविर्भाव होता है। गुरु ग्रह के प्रभाव से ही अज्ञनता मिटती है और समुचित शिक्षा का प्रचार प्रसार संभव हो पाता है। धर्म और विज्ञान के पंडितों का जन्मदाता तो गुरु है ही साथ ही यह आध्यात्मिकता और भौतिकवाद में समन्वय स्थापित करने का सूत्रधार भी है। गुरु ग्रह के प्रभाव से ही अन्याय के विरूद्ध मानवता की आवाज बुलंद हो पाती है। गुरु ग्रह से ही प्राणी में श्रेष्ठ संस्कार, प्रार्थना व सेवा आदि सद्गुणों का विकास होता है। समाज में विभिन्न समुदायों में एकता स्थापित करने तथा जन सामान्य के विचारों में समरूपता लाने में इस ग्रह का महत्वपूर्ण योगदान है। लोगों को यह कर्मशील व प्रगतिशील बनाता है तथा जाति, समाज व राष्ट्र की उन्नति का पर्याय है। अतः श्रेष्ठतम समाज के नवनिर्माण के लिए हम गुरु ग्रह के आभारी हैं।

जाने अपने हस्ताक्षर से अपने ग्रह के बारे में



‘हस्ताक्षर’’ दो शब्दों हस्त+अक्षर से निर्मित शब्द है जिसका अर्थ है हाथों से लिखित अक्षर। वैसे तो वर्णमाला के सभी अक्षरों को लिखने के लिए हाथों का प्रयोग किया जाता है परंतु ‘हस्ताक्षर’ शब्द का प्रयोग प्रमुखतः अपने नाम को संक्षिप्त एवं कलात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए ही होता है। हस्ताक्षर को अंग्रेजी भाषा में' sign' या 'Signature' कहते हैं जिसका अर्थ है "A mark or object to represent one's name or a person's name signed by himself" प्रत्येक व्यक्ति हस्ताक्षर करने के साथ ही कुछ निश्चित चित्रों का प्रयोग भी करता ही है जैसे हस्ताक्षर करने के बाद आड़ी तिरछी एक या दो रेखाएं खींचना, बिंदु का प्रयोग अथवा (’) इत्यादि का प्रयोग करना। ये चिह्न एवं इस प्रकार किये हस्ताक्षर व्यक्ति के व्यक्तित्व, मनोव एवं चारित्रिक गुणों को अपने में समाहित किये रहते हैं। देखने में साधारणतया ‘हस्ताक्षर’ एक बहुत ही छोटा सा शब्द है किंतु हस्ताक्षर का प्रत्येक वर्ण एवं प्रत्येक चिह्न कुछ न कुछ अवश्य कहता है। यदि गहराई से किसी भी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित वर्णों का अध्ययन किया जाए तो उस व्यक्ति विशेष की चारित्रिक विशेषताएं एवं भविष्य का ज्ञान भी सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों एवं बारह भावों को सर्वसम्मति से मान्यता प्राप्त है। ये नौ ग्रह व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताओं के स्पष्ट दर्पण एवं भविष्य की घटनाओं के निपुण वक्ता होते हैं। इन ग्रहों का संबंध भी व्यक्ति की लिखावट, लेखन शैली एवं हस्तलिखित अक्षरों से अवश्य ही होता है। आइये देखें कि कहां तक ज्योतिषीय नौ ग्रहों का किसी भी जातक के हस्ताक्षरों से कितना और किस सीमा तक अन्योन्याश्रय संबंध है। सूर्य ग्रह और हस्ताक्षर जिन जातकों की कुंडली में सूर्य बलवान एवं शुभ अवस्था में होता है, उनके हस्ताक्षर सरल, सीधे व स्पष्ट होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने नामांकित अक्षरों को स्पष्ट रूप से लिखना पसंद करते हैं। ऐसे व्यक्ति सरल स्वभाव व विशाल हृदय के स्वामी होते हैं। ज्योतिष में सूर्य ग्रह को सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, आत्मा इत्यादि का कारक माना गया है। अतः जब किसी की कंडली में सूर्य शुभ स्थिति में होगा तो वह ऐसे ही हस्ताक्षर करेगा एवं समाज में प्रतिष्ठित पद भी प्राप्त करेगा। ऐसा व्यक्ति उच्च स्तरीय ज्ञान का स्वामी एवं अच्छा संगठन कर्ता भी होगा। चंद्र ग्रह एवं हस्ताक्षर जन्म कुंडली में चंद्रमा यदि शुभ स्थिति में केंद्र व त्रिकोणस्थ होगा तो जातक के हस्ताक्षरों में स्पष्टता एवं अंत में एक बिंदु रखने की प्रवृ होती है। चंद्रमा को ज्योतिष में मन का कारक माना गया है। शुभ चंद्रमा वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर सजावटी, सुंदर और गोल-गोल होते हैं। ऐसा व्यक्ति जो कार्य प्रारंभ करता है, उसे कुशलता पूर्वक पूर्ण भी करता है। किंतु यदि चंद्रमा पर दूषित प्रभाव है अथवा ‘ग्रहण योग’ की स्थिति कुंडली में बन रही है तो ऐसा जातक हस्ताक्षर के नीचे दो लाइनें खींचता है। ये चिह्न जातक के मन में असुरक्षा की भावना एवं अत्यधिक भावुकता एवं कोमल मन को परिलक्षित करते हैं। ऐसे हस्ताक्षर के व्यक्ति पर नकारात्मक सोच का प्रभाव भी अत्यधिक होता है। मंगल ग्रह और हस्ताक्षर जन्म कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति भी हस्ताक्षरों के संबंध में बहुत कुछ कहती है। लग्न कुंडली में यदि मंगल ग्रह बलवान एवं शुभ होगा तो सामान्यतया देखा गया है कि ऐसे जातक हस्ताक्षरों के नीचे पूरी लाईन खींचते हैं। चूंकि मंगल ग्रह पराक्रम, साहस, क्रोध, इत्यादि का कारक है तो ऐसे हस्ताक्षर वाले जातक अत्यधिक पराक्रमी एवं साहसी होते हैं। आत्म निर्भरता इनमें कूट-कूट कर भरी होती है। अपने साहसी स्वभाव एवं प्रतियोगी शक्ति के आधार पर ऐसे व्यक्ति सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं और यदि दशम भाव भी बलवान है तो इन्हें ख्याति भी खूब मिलती है। बुध ग्रह एवं हस्ताक्षर बुध ग्रह को ज्योतिष में लेखन क्षमता, तर्क शक्ति, ज्ञान एवं लेखन का कारक माना गया है। अतः जब भी कोई जातक ऐसे हस्ताक्षर करें जो स्पष्ट एवं गोलाकर बिंदु के रूप में हों तो ऐसे जातक अच्छे चिंतक, विचारक, लेखक एवं सम्पादक होते हैं। ऐसे हस्ताक्षरों वाले जातक, ज्ञानी, विद्वान, शिक्षक, त्याग एवं परोपकार की भावना से पूर्ण होते हैं। उनके जीवन के निश्चित आदर्श एवं लक्ष्य होते हैं और उन्हें प्राप्त करने में उन्हें सफलता भी मिलती है। गुरु ग्रह एवं हस्ताक्षर जैसा कि विदित है कि गुरु ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में विवेक, बुद्धिमत्ता एवं दार्शनिकता का कारक माना गया है, तो जिसकी जन्म पत्रिका में गुरु ग्रह शुभ स्थिति में होगा ऐसा जातक हस्ताक्षर करते समय पहला अक्षर बड़ा बनायेगा और हस्ताक्षर नीचे से ऊपर की ओर करेगा। गुरु ग्रह शुभ होने के साथ-साथ भी नवम भाव भी शुभ दृष्टि एवं शुभ प्रभाव में है तो ऐसे हस्ताक्षर वाले जातक महत्वाकांक्षी एवं ईश्वर तथा वृद्ध जनों के प्रति पूर्ण आस्था रखने वाले होते हैं। चूंकि नवम् भाव एवं गुरु ग्रह दोनों ही ईश्वर के प्रति आस्था को दर्शाते हैं तो यदि गुरु ग्रह पर नकारात्मक प्रभाव है तो ऐसे जातक के हस्ताक्षर सदैव ऊपर से नीचे की ओर होंगे जो जातक की संकीर्ण मानसिकता एवं ईश्वर में अविश्वासी प्रवृ को भी परिलक्षित करेंगे। शुक्र ग्रह एवं हस्ताक्षर सुंदर, कलात्मक एवं हस्ताक्षर के नीचे एक गोलाकर स्वरूप लिए हुए एक छोटी पंक्ति दर्शाती है कि जातक का व्यक्तित्व एवं जीवन शुक्र ग्रह से पूर्ण प्रभावी है। ऐसे व्यक्ति मीडिया, फिल्म लाईन, वस्त्र उद्योग एवं कलात्मक क्षेत्र में अत्यंत सफल होते हैं। साथ ही यदि चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव होगा तो हस्ताक्षर और भी सुंदर एवं कलात्मक होंगे तथा ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन भी पूर्ण सुखी एवं प्रत्येक प्रकार की सुख सुविधा एवं भोग-विलास से युक्त होगा। शनि ग्रह एवं हस्ताक्षर कुंडली में शनि ग्रह का प्रभाव हो तो हस्ताक्षर के नीचे दो रेखाएं खींचने की प्रवृ होती है। शनि ग्रह के स्वामित्व वाले व्यक्ति अन्वेषक प्रवृ के होते हैं। अतः ऐसे व्यक्ति कुछ न कुछ नवीन कार्य एवं शोध करते रहते हैं और यदि भाग्य साथ दे एवं स्वर्णिम अवसरों की प्राप्ति भी हो तो जीवन में इलेक्ट्रानिक, पेट्रोलियम एवं ज्योतिष के क्षेत्र में उच्चस्तरीय सफलता भी प्राप्त करते हैं। राहु-केतु एवं हस्ताक्षर कुछ लोगों के हस्ताक्षर बहुत छोटे एवं हस्ताक्षर के अंत में एक (-) का चिह्न भी होता है। हस्ताक्षर करने की यह दर्शाती है कि जातक पर राहु-केतु ग्रहों का पूर्ण प्रभाव है। ऐसे हस्ताक्षरों में लयबद्धता की कमी होती है। हस्ताक्षर शीघ्रता से एवं काट-छाँट करके स्पष्ट शब्दों में नहीं होते हैं। ऐसा जातक मानसिक तनावग्रस्त रहता है तथा अपने रहस्यों को किसी को नहीं बताना चाहता है। यदि अक्षर बहुत छोटे हैं तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव बहुत ज्यादा है। ऐसा जातक गुप्त विद्याओं में रुचि रखेगा, चालाक, धूत्र्त होगा तथा अपनी कुटिल प् के कारण दूसरों को नुकसान पहुंचाना चाहेगा (ऐसा तभी होगा जब केतु ग्रह पर और भी अशुभ ग्रहों का प्रभाव आ जाये)। किंतु यदि केतु पर गुरु ग्रह का प्रभाव है तो हस्ताक्षर भले ही छोटे हों किंतु उनमें भी एक स्पष्टता होगी जो कि जातक की पारदर्शी मानसिकता एवं विवेक शक्ति की परिचायक होगी। यदि जन्मपत्रिका में सूर्य, शनि एवं राहु-केतु आदि सभी क्रूर ग्रह और भी अधिक पाप प्रभाव में हों तो प्रायः देखने में आया है कि जातक के हस्ताक्षर भी शब्दों को घुमाकर, तोड़ मरोड़ कर, दूर-दूर एवं अस्पष्ट होंगे। अतः ऐसे जातक जीवन में निराशा, नकारात्मक एवं अलगाववादी प्रव के स्वामित्व वाले होते हैं। ऐसी परिस्थिति में यदि अष्टम भाव भी पीड़ित है तो जातक के प्रत्येक कार्य में व्यवधान भी आते हैं, उन्नति भी देर से होती है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

future for you astrological news agyapalan hi safalta ka sutra 18 12 2015

future for you astrological news swal jwab 2 18 12 2015

future for you astrological news swal jwab 1 18 12 2015

future for you astrological news swal jwab 18 12 2015

future for you astrological news rashifal dhanu to meen 18 12 2015

future for you astrological news rashifal singh to vrishchik 18 12 2015

future for you astrological news rashifal mesh to kark 18 12 2015

future for you astrological news panchang 18 12 2015

Thursday, 17 December 2015

लग्न राशी से अपने व्यक्तित्व को पहचाने

आधुनिक युग भाग-दौड़ और व्यस्तता का युग है। बढ़ते शहरीकरण ने दुनिया को छोटा और लोगों को एक-दूसरे से अनजान कर दिया है। वर्षों तक साथ रहने पर भी एक परिवार के लोग एक-दूसरे की पसंद नापसंद को अच्छी तरह से नहीं समझ पाते हैं और एक-दूसरे को नहीं समझ पाने की यह स्थिति कई बार परिवार के बिखराव का कारण बन जाती है। इस जटिल समस्या का समाधान ज्योतिष जगत के माध्यम से सरलता से किया जा सकता है। ज्योतिष से न केवल आप किसी को पूर्ण रुप से समझ सकते हैं बल्कि इससे यह भी जाना जा सकता है कि संबंधित व्यक्ति के शौक क्या हैं? मात्र लग्न घर में स्थित राशि से व्यक्ति के विषय में काफी हद तक बातें जानी जा सकती हैं जैसे व्यक्ति के खाने के शौक, बातचीत, रहन-सहन, मित्रों से संबंध सभी के बारे में लग्न स्पष्ट संकेत करता है। लग्न भाव की राशि किसी भी व्यक्ति को समझने जानने का माध्यम हो सकती है। इस आलेख के माध्यम से आपको विभिन्न 12 राशियों के व्यक्तियों के व्यक्तित्व को पहचानने में सहयोग प्राप्त होगा - मेष लग्न में मेष राशि होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता होने की संभावना रहती है। इसका कारण लग्न में मंगल की राशि का होना है। इससे व्यक्ति में साहस व पराक्रम प्रचुर मात्रा में होता है। ऐसा व्यक्ति उत्साह व जोश से भरा होता है। उसके स्वभाव में ऊर्जा व शक्ति का समावेश होता है। ऐसे में व्यक्ति मेहनत के कामों से पीछे नहीं हटता है पर व्यक्ति को अपने क्रोध को कम करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि अधिक क्रोध स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति को पत्र लेखन में रुचि हो सकती है। वह टेलीफोन पर लंबी-लंबी बातें करना पसंद करता है। वह मिलनसार होता है जिसके फलस्वरूप उसके अनेक मित्र होते हैं। उसे हंसी-मजाक करना अच्छा लगता है। घूमने का वह शौकीन होता है। ऐसा व्यक्ति शीघ्र विश्वास कर लेता है जो कभी-कभी उसके लिए हानि का कारण बनता है। उपाय वर्ष भर हनुमान जी की उपासना करें और 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। वृषभ लग्न में वृषभ राशि हो तो व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है अर्थात वह अपनी बातों से लोगों को प्रभावित करने की योग्यता रखता है। व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई होती है। वह धैर्यवान होता है। व्यक्ति में चंचलता पाई जाती है। विनम्र व मिलनसार होना उसके अच्छे गुणों मे से एक होता है। उसकी वाणी में मधुरता होती है जो सबका मन मोह लेती है। ऐसा व्यक्ति अपने गुरुओं का सम्मान करने वाला होता है तथा वह अपने अधिकारों के प्रति सतर्क होता है। वृषभ लग्न के व्यक्ति को हस्त कला का काम अच्छा लगता है। उसे तैराकी का शौक हो सकता है। व्यक्ति को बागवानी करना अच्छा लगता है। इस लग्न के व्यक्ति अच्छा खाना बनाना जानते हैं व इस लग्न के व्यक्ति को संगीत सुनना रुचिकर लगता है। उपाय 6 मुखी या गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करें। लक्ष्मी जी के बीज मन्त्र का पाठ करें। मिथुन मिथुन राशि लग्न में होने पर व्यक्ति स्वभाव से नम्र होता है। वाणी में मधुरता होती है। उसे अपने प्रियजनों का स्नेह मिलता है। वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। इस लग्न का व्यक्ति बुद्धिमान होता है इसलिए वह नये विषय को शीघ्र सीख लेता है। व्यक्ति अपनी मेहनत व लगन के पक्के होते हंै। व्यक्ति को निरंतर काम में लगे रहना पसंद होता है। ऐसे व्यक्ति को गाना गाने में रुचि होती है। वह खेल कूद में रुचि लेता है। वह गृह सज्जा में रुचि लेता है। उसे अभिनय का शौक होता है। इसलिए वह मनोरंजन के विषयों को पसन्द करता है। शिल्प कला उसे अच्छी लगती है, व्यक्ति अच्छी पेंटिग करना जानता है। उपाय पन्ना धारण करें। 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। श्री यन्त्र की स्थापना करें। कर्क जिस व्यक्ति के लग्न में कर्क राशि होती है उसके अधिक मित्र होते हैं। वह शीघ्र क्षमावान होता है। ऐसे में व्यक्ति लोगों से अधिक समय तक नाराज नहीं रह सकता है। व्यक्ति धार्मिक होता है। उसमें सेवा भाव होता है। अपने इस गुण से वह सबका मन जीत लेता है। वह बुद्धिमान होता है। व्यक्ति अत्यधिक भावुक होता है। वह दयालु होता है। व्यक्ति साफ दिल का होता है। उसे पठन पाठन में रुचि होती है। उसे लेखन करना अच्छा लगता है। समाज सेवा का काम भी उसे अच्छा लगता है। उपाय पुखराज धारण करें। साथ ही 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। सिंह लग्न में सिंह राशि हो तो व्यक्ति उत्साही होता है। वह पराक्रमी भी होता है। उसके स्वभाव में कठोरता होने की संभावना रहती है। वह घूमने फिरने में अधिक रुचि लेता है। ऐसा व्यक्ति इरादों से दृढ़ होता है। अपने इस गुण से उसे सफलता के नये आयाम मिलते हं। व्यक्ति स्वतंत्र विचारों का होता है। व्यक्ति दिखने में आकर्षक होता है। व्यक्ति बड़ों का आदर करता है। व्यक्ति को क्रिकेट के खेल में रुचि हो सकती है। वह कला के संग्रह का शौकीन होता है। लोगों में वह जल्द घुल मिल जाता है। उसे संगीत सुनने में रुचि होती है। उपाय 1 व् 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें। कन्या लग्न में कन्या राशि होने पर व्यक्ति चतुर व बुद्धिमान होता है। व्यक्ति को सच्चाई पसन्द होती है। उसकी ईच्छा शक्ति मजबूत होती है। वह व्यावहारिक होता है। अपने विनोदी स्वभाव से वह सभी को हंसाता रहता है। वह खुशमिजाज होता है। ऐसे व्यक्ति की स्मरण शक्ति अच्छी होती है। उसे भाग्य की अपेक्षा कर्म पर अधिक विश्वास होता है। व्यक्ति अपने आकर्षक व्यक्तित्व के कारण विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है। उपाय पन्ना धारण करें और 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। तुला तुला राशि लग्न में हो तो व्यक्ति को शुभ काम करने में रुचि होती है। वह सत्य बोलना पसन्द करता है। वह संवेदनशील होता है। व्यक्ति को शान्ति पसन्द होती है। वह बुद्धिमान होता है। व्यक्ति सोच विचार करके निर्णय लेता है। व्यक्ति को विपरीत लिंग में लोकप्रियता मिलती है। ऐसा व्यक्ति आज में जीता है, वह कल की चिंता नही करता है। व्यक्ति में न्याय करने की योग्यता होती है इसलिए वह सही-गलत को जल्द पहचान लेता है। उसे खेलकूद पसंद होता है। व्यक्ति को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। उसे जोखिम से भरे खेलों में रुचि होती है इसलिए उसे गाड़ियों की रेस इत्यादि अच्छी लग सकती है। व्यक्ति को घूमने फिरने का शौक होता है। उपाय 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। वृश्चिक वृ्श्चिक राशि लग्न में होने पर व्यक्ति को अपने क्रोध को कम करने का प्रयास करना चाहिए। उसे कठिन समय में जोश से नहीं बल्कि होश से काम लेना चाहिए। व्यक्ति हिम्मत वाला होता है। उसके स्वभाव में उग्रता होती है। सोच मं गहराई पाई जाती है। व्यक्ति को अपने बल का प्रदर्शन करना अच्छा लगता है। व्यक्ति होनहार होता है। उसे अपने प्रयासों से सफलता मिलती है। व्यक्ति को वस्तुओं के संग्रह का शौक होता है। उसे बुनाई व बागवानी करना भी अच्छा लगता है। व्यक्ति को संगीत में रुचि होती है। जोगिंग करना उसे अच्छा लगता है। उसे व्यायाम करने मे रुचि रहती है। व्यक्ति को पहाड़ों पर घूमना अच्छा लगता है। उपाय मूंगा धारण करें। हनुमान जी की उपासना करें। हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करें। 3 और 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। धनु जिन व्यक्तियों के जन्म लग्न में धनु राशि होती है वे विनम्र स्वभाव के होते हैं। ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान भी होता है। वह ज्ञानी होता है। व्यक्ति हृदय से सरल होता है, उसे सच्चाई व ईमानदारी पसंद होती है। व्यक्ति को नीति नियमों में रहना अच्छा लगता है। ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का होता है। उसे अध्ययन करना अच्छा लगता है। उसके धन में बढ़ोतरी होती है। व्यक्ति अपने गुरुओं का सम्मान करता है। उसे सीधी बात करना अच्छा लगता है। उसे वाद विवाद में रुचि होती है। उसे किताबे पढ़ना भी अच्छा लगता है। अपने खोजी स्वभाव के कारण व्यक्ति नई वस्तुओं की खोज में लगा रहता है। व्यक्ति को उपकरणों को खोलना और बन्द करना अच्छा लगता है। व्यक्ति को कम्प्यूटर खेल अच्छे लगते हैं। उपाय 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। श्री यन्त्र की स्थापना करें। मकर व्यक्ति के लग्न में मकर राशि हो तो व्यक्ति साहसी होता है। उसमें संतोष भी भरपूर होता है। वह स्वभाव से गंभीर होता है। ऐसा व्यक्ति अपने भाग्य पर नहीं अपितु कर्म पर विश्वास करता है। व्यक्ति को निराशावादी बनने से बचना चाहिए। व्यक्ति को सामाजिक नियमों में रहकर काम करना अच्छा लगता है। वह समाज सेवा में भी रुचि लेता है। व्यक्ति को तकनीकी विषयों में रुचि रहती है। ऐसे व्यक्ति को कुसंगति के लोगों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति न्याय पसन्द होता है। व्यक्ति को चित्र बनाने का शौक होने की संभावना है। उसे तैराकी का शौक होता है। उसे ज्योतिष विद्या को जानने में रुचि रहती है। उपाय शिव जी की उपासना व 07 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। कुंभ व्यक्ति के लग्न में कुम्भ राशि हो तो व्यक्ति स्थिर बुद्धि का होता है। वह धैर्य से काम लेता है। व्यक्ति आदर्शवादी होता है। व्यक्ति के आत्मविश्वास में कुछ कमी रहने की संभावना होती है। व्यक्ति मेहनती होता है। वह लगन से काम करता है। वह विशाल हृदय का स्वामी होता है। व्यक्ति सज्जन व खोजी स्वभाव का होता है। इस लग्न के व्यक्ति जिस पर विश्वास करते हं उस पर अपना विश्वास बनाये रखते हैं। व्यक्ति को उपकरणों को खोलने बंद करने का काम अच्छा लगता है। व्यक्ति को गाड़ियों का शौक रहता है। उसे कार रेसिंग पसंद होता है। जूडो कराटे के खेल में उसकी रुचि होती है। व्यक्ति को अभिनय करना अच्छा लगने की सम्भावना रहती है। उसे डांस करने मे रुचि रहती है। व्यक्ति को हाकी का खेल अच्छा लगता है। मशीनों के उपकरण उसके लिए खिलौनों की तरह होते हं। उपाय 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। हनुमान जी की उपासना करें। मीन लग्न में मीन राशि होने पर व्यक्ति अपने सब काम सोच समझ कर करता है। उसे अध्ययन में रुचि रहती है। उसके व्यय भी अधिक होने की संभावना रहती है। ऐसे में व्यक्ति को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। इस लग्न का व्यक्ति अपने निर्णयों पर स्थिर रहता है। अपने विषय में पूरी योग्यता रखता है तथा अनुभव के साथ उसकी योग्यता बढ़ती जाती है। व्यक्ति अच्छा सलाहकार होता है। उसे अपने मित्रों की सहायता मिलती है। उस व्यक्ति को बागवानी का शौक रहता है, कुश्ती देखने का शौक होता है, वह शिल्प कला में रुचि लेता है, संगीत सुनना उसे अच्छा लगता है तथा वह खाना बनाने में योग्यता रखता है। उपाय विष्णु भगवान की उपासना करें। 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करें और स्फटिक श्री यन्त्र पर चंदन के इत्र से अभिषेक करें।

वृक्षों का ज्योतिष्य आधार

फल और फूल तो सभी के उपयोग में आते ही हैं, पर इनकी छाल, तना, जड़ तक उपयोग में आते हैं, जहां तक कि इनको श्रद्धापूर्वक नमन करने मात्र से जीवन की विभिन्न कठिनाईयां सुगमता से दूर हो जाती है, और विधि विधान से पूजा करने पर तो मनोकामनाएं भी सिद्ध हो जाती है फिर क्यों नहीं हम इनसे अपने आपको जोड़ते हैं, कुछ वृक्षों से सभी के जीवन की उभय परेशानियां का हल नीचे उल्लेखित करता हूं, जिससे पाठकों का जीवन तो सहज होगा ही साथ में उन्हें पुण्य लाभ की भी प्राप्ति होगी। वृक्ष जीवन के हर मोड़ पर मनुष्य का साथ देते हैं, पर क्या हर मनुष्य वृक्षों के बारे में किसी भी मोड़ पर सोचता है? वनस्पति में प्रभू की क्या लीला समाहित हें अभी तक समझ से परे हैं, पर हमारे ऋषि मुनियों ने इनके कुछ दिव्य गुणों का अनुभव किया है। इन उपायों में साधक की पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और विश्वास का होना परम आवश्यक है। यदि कन्या के विवाह में विलंब हो रहा हो या उत्तम योग्य वर की प्राप्ति नहीं हो पा रही हो और जिनकी जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12 भाव में मंगल शनि या राहु स्थित हो, उन्हें कन्या के द्वारा विष्णु मंदिर में बृहस्पतिवार के दिन आंवले और पीपल वृक्ष का रोपड़ कर 21 दिन तक वृक्ष के समीप दीपक प्रज्ज्वलित करें तो निश्चित रूप से सुयोग्य वर की शीघ्र प्राप्ति के योग बनते हैं। पति-पत्नी में तनाव की परम सीमा विवाद से होती हुई तलाक तक पहुंच जाती हैं। कई बारे ऐसी स्थिति में तंत्र शास्त्र व ज्योतिष में भी कारण पकड़ से बाहर लगता है, तनाव की स्थिति सुख, शांति को खत्म कर तलाक तक की स्थिति निर्मित हो जाती है। इसके निवारण के लिये पति-पत्नी को संयुक्त रूप से शिव मंदिर में पीपल और बरगद वृक्ष का रोपड़ सोमवार के दिन करने पर आपसी मतभेद समाप्त होकर आपसी प्रेम व सामंजस्य बनता है। व्यापार में हो रही लगातार हानि को दूर करने, लक्ष्मी देवी व कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिये सीताफल और अशोक के वृक्ष को शुक्रवार के दिन देवी मंदिर में लगावें। निश्चित रूप से व्यापार में निरंतर वृद्धि के योग बनेंगे। यदि किसी घर में व्यक्ति को भूत-प्रेत का भय हो या परिवार के किसी व्यक्ति को प्रेत बाधा की परेशानी हो तो अनिष्ट प्रभाव की समाप्ति के लिये शिव मंदिर में सोमवार के दिन कटहल का वृक्ष रोपड़ कर तेल का दीपक लगाकर प्रार्थना करें- ”आप दिव्य शक्तियों के साथ मेरी तथा मेरे परिवार की रक्षा करें।“ कटहल की एक पत्ती ले जाकर घर के मुख्य द्वार पर लगा दें, तथा लगातार 21 दिन समयानुसार वृक्ष के समीप तेल का दीपक लगायें। इसके प्रभाव के कारण निश्चित रूप से प्रेत बाधा तथा अनिष्टकारी प्रभाव समाप्त करने का यह उत्तम उपय है। इमली के वृक्ष से तो सभी परिचित हैं ही इसे तंत्र क्रिया में भी लोग विशिश्ट रूप से प्रयुक्त करते हैं, ऋण से मुक्ति के लिये असाध्य रोग निवारणार्थ, निःसंतान दम्पत्ति को संतान प्राप्ति के लिये तथा विशेष रूप से विद्यार्थियों को शिक्षा में उच्च सफलता की प्राप्ति के लिये किसी भी शनिवार के दिन दोपहर में श्री रामचंद्र जी के मंदिर में इमली वृक्ष का रोपड़ करें व लगातार 11 शनिवार तने में तेल का दीपक लगावें, निश्चित ही कार्य सिद्धि के योग बनेंगे। जिनके घर में पितृ दोष की संभावना हो तथा जिनकी जन्म कुंडली में पितृ दोष हो तो एकादशी के दिन घर के मुख्य द्व ार के समीप तुलसी वृख का रोपड़ कर प्रतिदिन पुजन व दर्शन मात्र से पितृ दोष के कारण उत्पनन समस्या दूर हो जाती है। प्रियजन की आत्मशान्ति व सद्गति प्राप्ति के लिये बालक की मृत्यु होने पर उद्यान या श्री गणेश मंदिर में अमरूद (जामफल) और इमली वृक्ष का रोपड़ करें। युवा की मृत्यु होने पर, श्मशान (मुक्तिधाम) में नीम और बेल वृक्ष का रोपड़ करें, युवती की मृत्यु होने पर देवी मंदिर में शुक्रवार के दिन पीपल और अशोक वृक्ष का रोपड़ करें। विवाहिता स्त्री की मृत्यु होने पर सीताफल और अशोक वृक्ष का रोपड़ करें, वृक्ष का रोपड़ सूतक अवस्था की समाप्ति के उपरांत ही करें तथा सदैव उसका ध्यान रखें। उपरोक्त उपाय से गया श्राद्ध के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। नवग्रह संबंधी जन्म कुंडली में अनिष्ट दोष को दूर करने के लिये ज्योतिष में कई उपायों का वर्णन है परंतु नवग्रह पीड़ा से बचने के लिये सबसे उत्तम सरल सुगम विधि संबंधित ग्रह के वृक्ष का रोपड़ उपयुक्त है। सूर्य: जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य नीच का या शत्रु ग्रही हो, जिन्हें हृदय रोग व नेत्र संबंधित समस्या हो तथा आई. ए. एस. अधिकारी, न्यायाधीश व मंत्रियों को उच्च पतिष्ठा व सम्मान के लिये सफेद आंकड़े व बेल वृक्ष का रोपड़ रविवार के दिन विष्णु मंदिर में करने से शीघ्रता शीघ्र लाभ प्राप्त होता है, सिंह राशि के जातक को भी यह उपायें उपयुक्त हैं। चंद्र: चंद्रमा से जलीय पदार्थ का विचार किया जाता है, जिनकी राशि कर्क ह व जन्म कुंडली में चंद्र नीच का व शत्रु ग्रही हो उन्हें तथा औषधियों के विक्रेता, सिंचाई विभाग, कृषक, डेरीफार्म तथा मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति को पलाश व चंदन वृक्ष का रोपड़ सोमवार के दिन शिव मंदिर में करें। मंगल: मंगल शक्ति का प्रतीक है, यह एक अग्नि तत्व का ग्रह है जिन जातक की जन्म कुंडली में मंगल कर्क राशि गत 28 अंश का है, तथा जिनकी जन्म कुंडली मांगलिक प्रभाव युक्त हो उन्हें अनिष्ट प्रभाव शांति के लिये तथा सैनिक, पुलिस विभाग में कार्यरत मेष व वृश्चिक राशि वाले जातक को खेर व अनार का रोपड़ मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में करना लाभप्रद रहता है। बुध: बुध पृथ्वी तत्व का ग्रह है, जिनकी जन्म कुंडली में बुध शत्रु ग्रही व 15 अंश पर मीन राशि में नीच का हो, उन्हें तथा गणितज्ञ, लेखन कार्य करने वाले, क्लर्क, के लिये दरोप (दूर्वा) व आंवले वृक्ष का रोपड़ बुधवार के दिन श्री गणेश मंदिर या विद्यालय में रोपड़ करना चाहिए। बृहस्पति (गुरु): वाराह मिहिर ने गुरु को ‘गौर मात्र’ बताया है, यह सतोगुणी व आकाश तत्व का पुरुष ग्रह है, जिनकी राशि धनु व मीन हो, जिनकी जन्म कुंडली में गुरु अस्तगत व पांच अंश पर मकर राशि का हो उन्हें तथा वेदपाठी यज्ञाचार्य, अध्यापक, न्यायाधीश को उच्च सफलता प्राप्ति के लिये बृहस्पतिवार के दिन श्री राम या श्री विष्णु मंदिर में पीपल वृक्ष का रोपड़ करना शुभप्रद रहता है। शुक्र: शुक्र राजस प्रकृति, स्त्रीग्रह व जल तत्व है। जिनकी राशि वृषभ व तुला है, जिनकी जन्म कुंडली में शुक्र कन्या राशिगत नीच का है उन्हें तथा संगीतज्ञ, गायक, श्रृंगार संबंधी सामग्री के विक्रेता, कलाकार वर्ग को उचच लाभ प्रतिष्ठा हेतु उदुम्बर, आशोक या सीताफल वृक्ष का रोपड़ देवी मंदिर में शुक्रवार को करें। शनि: शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी, वायु तत्व है। जिनकी जन्म कुंडली में शनि, सूर्य व मंगल का योग हो उनके लिये शनि घातक होता है, सूर्य शनि का योग पिता से विरोध उत्पन्न करता है, इसके अनिष्ट प्रभाव से वात रोग, पैरों में रोग, चित्त भ्रमित रोग की संभावना रहती है, जिन्हें शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती चल रही हो उन्हें तथा लोहे के व्यापारी, वकालत के क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति, तेल के व्यापारी को शनि देव की संतुष्टि व प्रसन्नता के लिये शमी वृक्ष का रोपड़ शनिवार के दिन शनि मंदिर के समीप या दक्षिणाभिमुख श्री हनुमान मंदिर में करना चाहिए। साथ ही पक्षियों के रहने की व्यवस्था करना व वृद्धजनों की सेवा द्वारा भी शनि देव विशेष रूप से संतुष्ट होते हैं। राहु-केतु: राहु-केतु छाया ग्रह है, जिनकी जन्म कुंडली में कालसर्प योग हो, कार्य में लगातार विघ्न आने पर इनके अनिष्ट प्रभाव से व्यक्ति को पिशाच पीड़ा, नेत्र रोग, भूत प्रेतादि बाधा, भय जन्य रोग, विषजन्य रोग उत्पन्न होते हैं। इसके अनिष्ट प्रभाव के निवारणार्थ, दर्भ, अष्टगंध व चंदन का वृक्ष शिव मंदिर में रोपड़ करना चाहिए तथा लगातार 21 दिन तक मछलियों को रामनाम उच्चारण सहित गोलियां खिलाने से भी अनिष्ट प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। वृष रोपड़ का समय स्थान व उसकी सुरक्षा विशेष महत्वपूर्ण है जिससे किये गये कर्म का पुण्य लाभ प्राप्त हों। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के समीप पाकर, नीम, आम, बहेड़ा, पीपल, बेर, गूलर, इमली, केला, बेल, खजुर आदि वृक्ष का होना अशुभ माना गया है। घर के समीप चंपा, अशोक, कटहल, चमेली, शाल, मौलसिरी आदि वृक्ष शुभ फल प्रदान करने वाले कहे गये हैं। ‘बृहत्संहिता’ व ‘समरांगणसूत्रधार’ के अनुसार जिस घर के आंगन में नींबू, अनार, केला व बेर उगते हैं उस घर की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करते हैं। ‘बृहदैवज्ञ’ के अनुसार जिस घर में पीपल, केला, कदम्ब, बीजू, नींब का वृक्ष होता है उसमें रहने वाले की वंश वृद्धि में रूकावट उत्पन्न करता है। भविष्य पुराण के अनुसार घर के भीतर लगायी गई तुलसी धन-पुत्र व हरि भक्ति देने वाली होती है प्रतःकाल तुलसी का दर्शन करने से जाने अनजाने हुए पाप तुरंत समाप्त हो जाते हैं व सुवर्ण दान का फल प्राप्त होता है। घर के दक्षिण की ओर तुलसी वृक्ष का रोपण अनिष्टकारी माना गया हैं घर के समीप अशुभ वृक्ष होने पर वृक्ष व घर के मध्य में शुभ फल देने वाले वृक्ष को लगा देना चाहिए। घर के समीप पीपल वृक्ष होने पर उसकी सेवा पुजा करते रहने से अशुभ फल प्राप्त नहीं होता।

विकृतिजन्य व्यक्तित्व

व्यक्तित्व विकृति अत्यन्त गहराई तक बैठे हुए कुसमायोजित। व्यवहारों का वह संरूप है जो प्राय: किशरोवस्था या इसके पूर्व दिखाई देता है, अधिकांशत: प्रौढावस्था में बना रहता
है . यद्यपि मध्यावस्था एवं वृद्धावस्था में कम दिखाई देता है। विकृतिजन्य व्यक्तित्व अपने अवयवों के सन्तुलन और उनकी अभिव्यक्ति में असामान्य होता है परिणामस्वरूप न केवल वह व्यक्ति बल्कि पूरा समाज उससे प्रभावित होता है।विकृतिजन्य व्यक्तित्व की साधारण तौर पर निम्नलिखित विशेषताएँ होती है
1.असमाजिकता-ड़न व्यक्तियों में सामाजिक व्यवहारों की कमी पाई जाती है। सामजिक परम्पराओं और मर्यादाओं का ये सम्मान करने नहीं जानते और न ही कानून के प्रति इनमें आदर होता है। सामाजिक प्रतिष्ठा एल यज्ञा के इन्हें परवाह नहीं होती। समाज के अन्य व्यक्तियों से सहयोग का इनमें अभाव रहता है। इनका संबंधसमाजविरोधी कार्यों से भी होता है। सामाजिक अवसरों अथवा उत्सवों में ये सम्मिलित नहीं होते। ये दूसरों की भलाई को ध्यान में रखे बिना ऐसे कार्यों में संलग्न रहते है जो उनके स्वार्थ से प्रेरित होते है।
2. आवश्यकताओं और क्रियाओं में असमानता -विकृतिजन्य व्यक्तित्व वाले अपनी आवश्यकताओं के प्रति समायोजनात्मक दृष्टिकोणा नहीं रखते और न ही उनकी पूर्ति के लिए समुचित व्यवसाय करते है। ये छोटी-छोटी कठिनाइयों या विफलताओं यर घबडा जाते है। कठिनाइयों के सामने ये अपना साहस खो बैठते है।
3. कुससमायोजनात्मक व्यवहार -एक सामान्य व्यक्ति अपने व्यवहार को समय तथा परिस्थिति के अनुरूप समायोजित करते हुए कार्यं करता है। सुखद स्थितियों में सुख के और दुखद स्थितियों म दुख के भाव प्रकट करता है परन्तु विकृतिजन्य व्यक्तित्व में व्यवहार का कुससमायोजनात्मक पक्ष दिखलाई देता है। ये समय और परिस्थिति का ध्यान रखे बिना आचरण करते हैँ। जीवन की विभिन्न दबावपूर्ण परिस्थितियों में ये अपना समायोजन बनाए रखने में असफल होते हैं।
4. असुरक्षा की भावना -ये व्यक्ति जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन नहीं कर पाते इसलिए इनके अन्दर सदैव असुरक्षा की भावना विद्यमान स्मृती है। ये बिना किसी कारण के ही अपने को असुरक्षित अनुभव करते है।
5. अवास्तविक जीवन लक्ष्य -सामान्य एवं संतुलित व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अपने जीवन लक्ष्यों का निर्धारण अपनी क्षमताओं तथा सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप रखते है तथा इनकी प्राप्ति के लिए समुचित उपाय करते है परन्तु विकृतजन्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अपनी सामर्थ, योग्यता तथा क्षमता से बाहर अपने लक्ष्य निर्धारित करते है।
6. अनुपयुक्ता-इन व्यक्तियों का व्यवहार समय, स्थान, व्यक्ति एवं परिस्थिति के लिए उपयुक्त नहीं होता। इनके व्यवहार में अस्वाभाविकता दृष्टिगोचर होती है अथवा स्वाभाविकता के नाटक के झलक होती है। कई कार व्यक्ति स्वय को विभिन्न परिस्थितियों में अनुपयुक्त गाता है । अनुपयुक्ता की यह भावना उसके व्यक्तित्व को कुसमयोजित करती है।
विकृतजन्य व्यक्तित्व को उसके लक्षणों की गंभीरता के आघार पर दो वर्गों में रखा जा सकता है
1 अल्प गंभीर व्यक्तित्व विकृति
2 मध्यम गंभीर व्यक्तित्व विकृति
इससे अधिक गंभीर व्यक्तित्व विकृति को मानसिक रोगों के अन्तर्गत रखा जाता है।
1.अल्प गंभीर व्यक्तित्व विकृति-व्यक्तित्व विकार की इस श्रेणी के अन्तर्गत ये व्यक्ति आते है जो सामान्य से अधिक विचलित नहीं होते। इनके लक्षणों में भी गंभीरता कम होती है अर्थात् ये अल्प मात्रा में और कम समय के लिए विद्यमान होते है। अल्प गभीर व्यक्तित्व विकृति के अन्तर्गत आत्मप्रेमी व्यक्तित्व को रखा जा सलता हैं। आत्मप्रेमी व्यक्तित्व -नारसिसिज्म अथवा प्रेम का प्रत्यय फ्रांयड द्वारा प्रदान किया गया है। 2. मध्यम 'गंभीर व्यक्तित्व विकृति - विकृतिजन्य व्यक्तित्व वाले वे व्यक्ति जिनके लक्षण अपेक्षाकृत अधिक गंभीर हां, इस श्रेणी में आते हैँ। इनके लक्षण सीमावर्ती होते है। इससे अधिक गभीर लक्षण मानसिंक रोगो की श्रेणी में आ जाते है। इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृति के कई प्रकार है
1)शिजॉयड व्यक्तित्व- शिजयड व्यक्तित्व की सबसे प्रमुख विशेषता है उनकी संवेदनशीलता लज्जा एवं संकोच तथा सामाजिक सम्बन्धी की उपेक्षा।अधिकांशत: ये आत्मकेन्द्रित होते हैं। व्यक्तित्व में शिजॉयड प्रतिक्रियाएं बाल्यकाल से ही दिखलाई पड़नी प्रारंभ हो जाती है। इस श्रेणी में आने वाले व्यक्ति चिडचिडे एवं एकान्त प्रेमी के रूप में जाने जाते हैं। ये बहुत अधिक मात्रा में दिवास्वप्न देखते है लेकिन वास्तविकता पर भी इनकी पकड़ बनी रहती है। इनका चिन्तन आत्माभिमुखी होता है। शिजॉयड व्यक्तित्व वाले लोगों को अपनी अत्कामक्रता तथा विद्वेष को अभिव्यक्त करने मे अत्यन्त कठिनाई होती है। वे बाधा डालने वाली प्रतिबल एवं तनावपूर्ण परिस्थितियों में आभासी रूप से अलगाव की प्रतिक्रिया प्रदर्शित करते हैं। भावनाओं के अभिव्यक्त न कर सकने की अपनी कमी को छिपने के लिए वे ऊपरी तौर पर शांति और अलगाव की मनोरचनाओं का सहारा लेते हैं। ये सभी लक्षण उसके कुसमायोजन को बढावा देते है।
2)साईक्लायड व्यक्तित्व -व्यक्तित्व विकृति का यह संरूप उतह विषाद प्रतिक्रियाओं का यह सरल रूप है। साईक्लायड व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में उत्साह और विषाद के एक के बाद एक नियमित आवर्ती सत्र होते है। उत्साह के सत्र में व्यक्ति अत्यन्त उत्साही एवं जोशीले, आशावादी तथा मित्रवत होता है जबकि विषाद के सत्र में उसमें दुख, निराशा, कम उर्जा तथा व्यर्थता एबं अनुपयुक्तता का एहसास पाया जाता है। उत्साह के अवस्था में वह सामाजिक आकर्षणा का व्यक्तित्व रहता है। वह किसी समिति का सदस्य, संयोजक अथवा स्वयंसेवी के रूप में देखा जा सकता है जबकि विषाद की अवस्था में वह बुझ-बुझा रहता है। सामान्य तौर पर इन व्यक्तियों के मूड का यह परिवर्तन तनावपूर्ण परिवेशगत दशाओं के कारण नहीं होता। अधिकांश साईक्लायड व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बिना मनोविक्षिप्ति की विशेषताएँ विकसित किये पूरा जीवन उपर्युक्त दो सत्रों में व्यतीत कर देते है।
3) पैरानॉयड व्यक्तित्व -पैरानॉयड व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है उसकी अति संवेदनशीलता । इनका व्यवहार अत्यन्त कठोर एवं शत्रुतापूर्ण होता है। इनकी दृष्टि में स्वयं का महत्त्व बहुत अधिक होता है। इन व्यक्तियो में अकारण संदेह और ईंष्यों की भावना पाई जाती है। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले दूसरों से सुदृढ़ तथा स्थायी संवेगिक सम्बन्ध बनने में कठिनाई का अनुभव करते है। ये अपने आपको अत्यधिक महत्त्व देते है और अपनी त्रुटियों के लिए दूसरों पर दोषरोपण करते है। बहुत से पैरानॉयड़ व्यक्तित्व वाले व्यक्ति जीवन की परिस्थितियों से सीमावर्ती समायोजन किसी तरह स्थापित क़र लेते है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

Know what it is mangal dosh?????

Astrology reading and making of birth charts came into practice much later than the Vedic times. By that time chart making had become a general practice; not only had a lot of time elapsed but the culture, society and human values had changed. All over the world human societies were dependent on agriculture and manpower was used in all activities.
It is an irony of fate that all the shastras or texts were written by men which favour him to the maximum as compared to women. The bias of men can easily be seen in all these texts when one starts looking at them minutely. The same is true for ‘mangal dosha’ or ‘Mars evil’ in astrology. Mars is the most potent planet of the zodiac after the Sun and every astrologer worth his salt, will praise the quality of Mars if it is present in the lagna of his male client. He may say that this person is very strong, courageous, energetic, forceful, dynamic, fearless, can conquer his enemies easily, may become commander –in-chief etc. etc.. However if the same Mars is present in a girl’s chart the astrologer gets depressed himself and makes sure that his client remains depressed for the rest of his life. His total reversal will be seen as he uses words like arrogance, stubborn, aggressive, negative, intolerant, dominating, housebreaker and god-forbid her husband may die due to this harmful Mars. Alas one wonders what has happened to Mars all of a sudden.
According to the prevalent understanding of mangal dosha, the placement of Mars can create havoc if placed in the following houses – 12th, 1st, 4th, 7th and 8th. According to South Indian system of astrology mangal dosha extends to two more houses 2nd and 5th. Mangal dosha is calculated from lagna, Moon and Venus. Acording to this calculation more than 80% people are born ‘manglik’. In other words, if five people are present in a group then four of them are bound to be manglik. It is very difficult to find non-manglik persons according to this calculation.
Lagna represents the physical aspect of human being; Moon denotes the mental makeup of a person and Venus decides the sexual aspect of a human being. The 12th house is considered bad for the placement of Mars because it deals with bed comforts or loss of energy. It is believed that if Mars is present in the 12th house in a woman’s chart especially then her sexual desires may be much more than what her husband can cope with. Therefore a girl born with Mars in the 12th house is generally discarded without giving much importance to the other aspects of her chart.
Lagna or 1st house represents self. If Mars is present in this house especially vis-a-vis to the girl then we had explained what would be the outcome. The 4th house deals with family, comfort and peace of mind. If Mars is placed in the 4th house in a girls chart then sure shot she is going to be a house-breaker sooner or later therefore she is rejected for the happiness of the groom’s family.
The 7th house represents spouse or partner and the placement of Mars in this house can make the girl very demanding for more sexual pleasures from her husband which he cannot easily fulfil. God forbid placement of Mars in the 8th house is a sure shot passport for the death of her husband. The 8th house is considered death house in astrology and Mars being a violent planet one imagines destruction only if it is present in the girls chart.
Our understanding and interpretation of Mars is very different to the prevalent concept. Man and woman are equally important and not lacking in any quality. According to Shivasutra in every man 50% of woman is present and in the same way in every woman 50% man is present. That is why any woman can show her fierce side as and when required and the same way every man has a softer side to him and can exhibit a motherly instinct. No culture no society no country can progress by ignoring or condemning 50% of its population and with changing times women are playing a very important role all over the world and so also in India. If India’s economy is progressing it is because of the large contribution of women power. In Vedic times women were given equal importance and that is why that society and knowledge evolved to the maximum.
Times are changing and so is the awareness of womenfolk especially in India. Astrology is nothing but the understanding, reading and study of time alone. Therefore it is the duty of savant astrologers to adapt to the changing times. According to our understanding if Mars is present in the 12th house of a girl’s chart then instead of creating problems on the sexual level she may be very useful in teaching her husband the inner concept of sex. The deeper understanding of sex is to enjoy it to the hilt and then drop it and move forward. The energy which was going waste or lying dormant can be used for spiritual development. When Mars is present in the 1st house in the woman’s horoscope then she can be a go-getter and solve the problems of a household just as a man does. The job of Mars in the first house is to give ample energy and force to the person so the person can fulfil their tasks with ease. Mars as a planet does not differentiate between girl and boy.
When Mars is placed in the 4th house of a girl’s chart then instead of destroying the peace of the house or fighting with her mother-in-law she will have better ideas to make the house heaven with her positive energy. When Mars is placed in the 7th house in a girl’s chart then in spite of focusing her energy on sex and destruction she can provide total support to her husband which gives freedom to both of them to bring happiness and harmony in the family. There is no truth in it that when Mars is present in the 8th house in a girl’s chart then she brings death to her husband. Birth and death are controlled by the Almighty and man’s role is insignificant in this scheme of the cosmos. The 8th house is also known for its secret power and hidden knowledge and treasure and placement of Mars in this house always contributes in those fields.

Ramayana as a astrological point of view

Introduction: Bharat is the sacred Karma Bhoomi and Punya Bhoomi endowed with the majestic Himalayas, Vindhya Range of mountains, forests like Naimisaranya, Dandakaranya and other places, and holy rivers like Ganga, Yamuna, Narmada, Godavari, Krishna and Kaveri flowing through the length and breadth of the country. Brahmarishis and Maharishis born in this land have handed down an invaluable legacy and wisdom through various classical texts. The Vedas are the basis for our Sanatana Dharma. These Vedas were identified by Sri Veda Vyasa and passed on to his disciples. There are six Angaas (limbs) to this divine knowledge. Jyotisha Shastra is one of them. The traditional Vidyaas of our country are classified as 18. For those who cannot read the Vedas, the Itihasas and Puranas are a boon. Srimad Ramayana is the Adi Kaavya, the first treatise authored by sage Valmiki as per the instructions of the creator under the guidance of sage Narada. The life of Sri Rama, the Maryaada Purushottama, is vividly described in this treatise. There are plenty of references to Jyotisha Shastra in Ramayana. Ramayana consists of seven kandas (chapters). In every kanda we find references to Planets, Muhurthas Vaastu and a variety of other information useful in the day-to-day life. I will narrate a few of them here as they came to my mind. 1) BAALA KAANDA In the first chapter – Balakanda, we have the reference to the birth of Sri Rama and his three brothers.fter 12 months queen Kousalya gave birth to Sri Rama in the month of Chaitra on Shukla Navami day. Kousalya delivered Sri Rama, the Universal God, in Punarvasu star in “Karkata Lagna” with Jupiter (exalted) with Moon, Sun, Mars, Venus and Saturn also being exalted. Bharatha was born in the star Pushyami in Meena Lagna. The twins Laxmana and Shatrughna were born in the star Aslesha in Karkata Lagna on the next day”. The practitioners of astrology can draw the chart and have an in-depth study. The marriage of Sri Rama and his brothers was performed in Uttara Phalguni star. This star is proclaimed as very auspicious for marriage by the learned”. Marrying four children of the same parentage in the same Lagna and at the same venue is prohibited. That being so, how did the marriage of Sri Rama and his three brothers on the same day is justified? Though the father is the same person, the mothers are different. So the above prohibitory rule did not apply in the case of Rama and Bharatha. But Laxmana and Shatrughna had the same mother. In this case though the Lagna is same, the Navamsa Lagna is different. Hence this is acceptable. This clarification is available in the commentaries on Ramayana which have discussed these aspects elaborately with reference to other connected texts.
2) Ayodhya kaand In the second chapter – Ayodhya Kanda we find references to utpata-karaka planetary combinations, references to dreams and their effect, the importance of Vaastu Shastra etc.After the coronation of Sri Rama was announced, Dasaratha sends word to Sri Rama. When Sri Rama comes, he informs him.“Rama! I am getting frightening dreams. I have seen meteors falling with a thunderous sound. Oh Rama! my birth star is occupied with the planets Surya, Kuja and Rahu. The Daivagnas state that when such omens appear and malefics occupy the birth star as stated above, normally, the king will either die or face a dangerous situation. Today the moon has risen in the Punarvasu star. Tomorrow will be Pushyami which is specific for this auspicious function as per the Daivagnas. Hence you get ready for the coronation and observe the required rituals”. Here we find references to evil dreams and conjunction of Malefics and auspicious occasions.When Sri Rama was asked to go to the forests and Laxmana gets furious, Sri Rama pacifies him “Happiness and grief, peace and anger, profit and loss, smooth-sailing and mistakes - all these happen as per praarabdha. One has to understand the secret of this and conduct himself to make one’s life happy and peaceful”. After reaching the forest, Laxmana constructs the hermitage for the trio to live in. Here Sri Rama tells Laxmana We spend enormous amounts in constructing big buildings. We should be equally careful to see that the required rituals are performed.
3) Aranya kaand: Valmiki describes the event of Ravana taking away Janaki as This statement has got a very deep meaning. We should try to analyse and understand the same. We find in this chapter some startling points. A bird (Jatayu) tells Sri Rama about Muhurtha, a demon Kabandha, after being killed becomes a divine personality and advises Sri Rama as to what one should do when he is going through a bad (dasa) period. Jatayu tells Sri Rama - “Ravana has taken away your consort, Sita in the “Vinda” muhurtha. The person who steals another person’s property in this Muhurtha, will not be able to retain same with him or enjoy same. The owner will get back the property. Ravana did not think about this while taking away Sita. He will definitely perish like a fish caught in the hook.” Kabandha’s hands were cut off by Rama and Laxmana and he was cremated. The demon gets his original Gandharva form and advises Sri Rama not to get worried. He tells him about Sugriva: He states that “one who is afflicted by a bad dasa will get relief with the help of another who is in similar state. Rama’s wife was stolen by Ravana and Sugriva’s wife also was taken away by Vali. So both are facing identical problems. Rama is nearing the end of his bad dasa. So also is Sugriva. So their friendship will be beneficial to both of them. This could be perceived by Kabandha after he was released from the curse and attained his original form”. There is a deep meaning in these words of advice.
4) kishkindha kaand: Valmiki describes the fight between Vali and Sugriva as a fight between Kuja and Budha This point has to be considered well. The monkey army led by Angada and consisting of Jambavan, Neela, Hanuman and others reaches the shores of the sea. The bird Sampathi wants to devour them. Angada narrates the story of Rama. Then Sampathi tells them about the whereabouts of Sita.“Staying here, I am able to see Janaki and Ravana. The sorrowing Sita is kept in Lanka and is being guarded by female demons. You will be able to find her, the daughter of Janaka there. We have the golden eyes that can see things that are miles away.” Here we should note that even birds have divine vision by virtue of the penance done by them. Sampathi is definite about what it said. Daivagnas with the background of penance and knowledge of Jyotisha Shastra will be able to give amazing predictions.
5) Sundar Kaand: We find references to Vaastu Shastra in this chapter. Hanuman sees the layout of Lanka and the magnificent palaces of Ravana. Hanuman has seen the magnificent palaces of Ravana brimming with prosperity. These buildings are absolutely bereft of any Vaastu defects. They appeared as if they were built by Maya himself in accordance with Vaastu Shastra”. Here the reference to Maya, the author of Vaastu Shastra is to be noted. This implies that the Vaastu Shastra was there even before Ramayana period.Here the sage describes “Sita as the most venerable lady and the consort of the Guru of Laxmana who is an ardent disciple of his Guru (Rama). If such a lady is afflicted by grief we have to note that time is insurmountable.” The statement “Kaalo hi Durathi kramah” appears for nearly more than 50 times in this treatise. The sage is drawing the attention of the readers to the undisputed fact that “KAALA” is insurmountable. One has to bow down before the kaal purush. One’s wisdom lies in identifying the auspicious and inauspicious segments of time and act in a wise manner taking guidance from the Shaastras and Gurus. The narration of her dream by Trijata to the female demons is very interesting to analyse for those who are conscious of swapnas (dreams) and have an interest to read Swapna Shastra.
6)Yudh Kaand: In this chapter we find that the muhurtha for starting from Kishkindha to Lanka for the battle has been fixed by Sri Rama.“Oh Sugriva! Now the sun is in the mid-heaven and the muhurtha is Vijaya . So let us start our journey now. Today is Uttaraphalguni star and tomorrow will be Hastha star. Let us start with army of all the Vaanaraas”. After the death of Indrajit, the grief-stricken Ravana, in a fit of anger heads to kill Sita. At that time, his minister by name Suparsva stops him and advises him to fight with Rama and gain victory. He advises Rama as under “You get the army ready today, the chaturdasi day of Krishna Paksha. Tomorrow is Amaavasya when you should go to fight Rama to gain victory”. Amaavasya is good for demons and bad for others. Hence Rama finds it very difficult to kill Ravana. He was tired. At that time sage Agastya appears before Rama and gives the upadesha of aaditya hridayam. He advises him to repeat it three times with pointed devotion and that he will kill Ravana now. That was meticulously followed by Sri Rama and Ravana was conquered. Righteousness prevailed over evil.

Weak planets in horoscope

n general, debilitated planets are considered as 'First Rate Malefics' and also a benefic planet. If debilitated, the planet is supposed to harm those planets and houses it is joined with, or aspects. Debilitated planets are also supposed to ruin and destroy those things which they rule, or fall in their houses, navamanshas and nakshtra. obviously if in the horoscope of any individual, any planet is found to be placed in a debilitated position, the native becomes very apprehensive of it's outcome. Therefore, there is a need to understand the condition, or combinations which actually reduce the ill effects of a debilitated planet and form Neech bhang Raj Yoga. While in Western astrology there is nothing like Neech bhang Raj yoga, in Hindu astrology such yogas have their own importance and their influence on a native and his life is always felt.This verse means that if a planet is debilitated in sign and the lord of that sign, or the lord of exalted sign of that planet be placed in an angle (Kendra) from either the moon sign, the native will become a religious, all powerful and supreme king.if both the lords of debilitated sign and that of debilitated planet's exalted sign be posited in an angle (Kendra) the native will become a supreme king. If a debilitated planet is aspected by the owner of the said debilitated sign, the native will become a famous king and if it is a good house the native will undoubtedly become a king, or a queen, or an emperor. The rule laid down in this verse is that in case a planet is debilitated and the ascendant (Lagna) be a moveable Sign (1.4.7.10) of Zodiac and if the lord of Navamansha sign occupied by the debilitated planet be placed in angle (Kendra) or Trine (Trikona) from the ascendant, this debilitation is cancelled and a strong Raj yoga is formed. In this case even if rising sign is not a moveable one, but if it's lord is posited in a moveable sign, or Navamansha, the debilitation of cancellation takes place and strong Raj yoga is formed. While in various works of Hindu astrology, a number of neech bhang Raj yogas have been mentioned by the scholars of different times, to sum them up in a short article like this, it may be concluded thus : 1.A debilitated planet aspecting another debilitated planet. 2.If a debilitated planet aspecting in any of second, third, fourth, ninth, tenth and eleventh houses. 3.If a debilitated planet is exalted in Navamansha. 4.If any of the owners of debilitated, or exalted sign of depressed planet be placed in an angle (Kendra) or trine (Trikona) either from ascendant, or from Moon and 5.Where ascendant is a moveable sign and it's lord also occupies a movable sign, or navamsha and navamsha lord of debilitated planet is placed in an angle, or trine from ascendent or Moon sign. 6.This debilitation of a planet stands cancelled and a strong Raj yoga is formed. The principles laid down here are the general principles of predictive astrology, which should always be used in judging the effects of planets, which otherwise seem awkwardly placed. The Neech Bhang Raj yogas are a purely Hindu conception and such yogas are more powerful than simple Raj yogas. so one need not worry, for such yogas have the capacity to raise the native from the lowest rung of ladder to the highest. So when you come across a planet in a horoscope next time, tell the native that what is apparently a weakness in the birth chart is really it's strength and he should view these combinations not as a threat, but as an opportunity and the here lies the very purpose of Indian astrology and works explaining it's concepts.

मानसिक मंदन

मनुष्य की भौतिक उपलब्धियों में भिन्नताएँ विचारणीय है। तीव्र बुद्धि के न्यूटन ने जहाँ अपने आविष्कारों से अमरत्व प्राप्त किया वहीँ कुछ ऐसे मद व्यक्ति भी हमें मिल जाएँगे जो अपने प्राथमिक आवश्यकताओं के पूर्ति नहीँ कर सकते। विभिनन क्षेत्रों में मानव की उपलब्धियों के आधार पर हम उनकी योग्यताओं का आकलन करते है। इन योग्यताओं के बारे में सामान्य जन की धारणा यह है कि व्यक्तियों की यह विलक्षण तथा जन्म-जात विशेषताएँ है जो उनकी उपलब्धियों को प्रभावित करती है। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के संस्थापक सर फ्रांसिस गाल्टन मानव सृजनन विज्ञान में अधिक इच्छुक थे। उनका विश्वास था कि अधिकतर मानव भिन्नताएँ जन्मजात होती है तथा इन भिन्नताओं के लिए उत्तरदायी विशेषताएं एक पीढी से दूसरी पीढ़ी में शारीरिक वंशानुत्क्रम के रूप में स्थान्तरित हो जाती है। गाल्टन ने इस तथ्य पर बल दिया कि कोई भी दो व्यक्ति एकदूसरे के समान नहीं है। किसी में बौद्धिक योग्यता की मात्रा अधिक पाई जाती है तो किसी में कमा बौद्धिक योग्यत्ता (मानसिक योग्यता) के आधार पर जब व्यक्तियों का श्रेणीकरण किया जाता है तो निम्नस्तर प्राप्त करने वाले व्यक्तिव को ही मानसिक मंदत्ता के वर्ग में रखा जाता है।
मानसिक मंदता एक प्रकार का मानसिक रोग है जो निम्म बौद्धिक योग्यता की ओंर संकेत करता है। मानसिक मंदता एक प्रकार की मानसिक रुग्णता है। यह एक ऐसी मानसिक दशा है जिससे बौद्धिक क्षमता एक सीमित मात्रा में पाई जाती है ।मनोवैज्ञानिक साहित्य के अवलोकन से यह विदित होता है कि मानसिक मंदता के लिए क्षीणमन्दयकता, मंद्बुद्धिता, जड़ता,मानसिक अप सामान्यता,अल्पमानसिकता आदि शब्दों को पर्यायवाची के रूप म प्रयोग किया जाता है।
मानसिक इतिहास का इतिहास नया नहीँ है, वरन मानव इतिहास जैसा ही पुराना है। मानसिक रोगी सभी काल में पाये जाते रहे है, परन्तु उनके प्रति लोगों का दृष्टिकोण पहले अमानवीय रहा है। परन्तु अब लोगे के दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया है और लोगों ने मानसिक मन्द व्यक्तियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया है । 1799 में सर्वप्रथम जीन इटराड ने मानसिक मदन का अध्ययन प्रारंभ किया । इंगलैड में 1840 तथा 1847 में अमेरिका में मानसिक रूप से मंद बालकों के लिए विद्यालयों के स्थापना की गई। डारविन के विकासवाद सिद्धांत से प्रभावित होकर उनके रिश्ते के भाई सर फ्रांसिस गाल्टन ने आनुवंशिकता के प्रमाण का अध्ययन किया। यही नहीं बुंट ने 1879 में अपनी प्रयोगशाला में उपकरण के माध्यम से बुद्धि का मापन किया। उनके प्रभावों से प्रभावित होकर गाल्टन, पियर्सन, कैटेले, बिने, थोर्नडाइक, टरमन आदि मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अल्फ्रेड बिने ( 1908 ) में सर्वप्रथम मानसिक आयु प्रत्यय का प्रयोग किया और यह मत प्रकट किया कि वास्तविक आयु में वृद्धि के साथ-साथ मानसिक आयु में भी वृद्धि होती है। बुद्धि लब्धि का सम्प्रत्ययीकरण टरमन और उनके सहयोगियों द्वारा हुआ। स्टर्न ( 1911 ) ने मानसिक लब्धि संप्रत्यय को प्रस्तुत किया।
मानसिक मंदन के लक्षण
न्यून बौद्धिक क्षमता-ऐसे व्यक्तियों में मस्तिष्क का विकास अपूर्ण रहता है तथा बुद्धि के विकास की गति मंद पड़ जाती है जिससे मानसिक मंदन पाया जाता है।
2. न्यून शरीरिक विकास-यदि सामान्य बालक की तुलना मानसिक मंद बालकों से की जाय तो मानसिक मंद बालको का कद अपेक्षाकृत छोटा, पैर छोटा, होंठ भद्दे तथा सिर बड़ा होता है। इनकी संज्ञानात्मक तथा क्रियात्मक योग्यताएँ देर से विकसित होती है। यही नहीं, भाषा संबंधी त्रुटियाँ भी इनमें पाई जाती है। "
3. जीवन की समस्याओ के समाधान में असफलता-मंद बालकों में अपने दैनिक जीवन की समस्याओं को समझने और उनके समाधान की योग्यता पाई जाती है। ऐसे बालको में व्यवहार कुशलता का अभाव पाया जाता है।
4. अनुपयुक्त समायोजन-मानसिक मंद व्यक्तियों में मानसिक एवं शारीरिक न्यूनता पाई जाती है इसलिए इनके व्यवहार में विचित्रता पाई जाती है जो सामान्य व्यक्तियों के व्यवहार से पूर्णत: भिन्न होती है। इनमें व्यवहार कुशलता तथा सामाजिक परिस्थिति को समझने की योग्यत्ता का अभाव पाया जाता है इसलिए इनका समायोजन ठीक नहीं होता है ।
5. सामाजिक गुणों को अनुपयुक्ता-मानसिक मंद व्यक्तियों में कल्पनाशीलता, तर्कशीलता, व्यवहार कुशलता, आत्मसंयम, आत्म विश्ववास, आत्मरक्षा जैसे सदगुणों का अभाव पाया जाता है। परिणामस्वरूप वे सामाजिक और असामाजिक कार्यों में अन्तर नहीं कर पाते है जिससे उनके व्यवहारों से समाजविरोधी कार्यों की अभिव्यक्ति होती है।
6. असामान्य मस्तिष्क संरचना-मानसिक मद व्यक्तियों में ज़लशीर्षता तथा लघुशीर्षता पाई जाती है, जिसमे उनकी मस्तिष्क संरचना का उपयुक्त विकास नहीं हो पता है और उनमें मानसिक मंदन पाया जता है।
7. जीविकोपार्जन में असमर्थता-चूँकि मानसिक मंद व्यक्तियों को अपनी देनिक जीवनचर्या के लिए ही नहीं, वरन व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है इसलिए ऐसे व्यक्तियों में निर्भरता बहुत अधिक पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने लिए जीविकोपार्जन नहीँ कर सकते हैँ। .
8. अन्य जीवनकाल-मानसिक में बालक कभी दीर्घायु नहीं होते। कम बालक ही किशोरावस्था प्राप्त कर पाते है। जीवनकाल और मानसिक मंदन की तीव्रता में अनुसंधानकर्ताओं ने यह परिणाम प्राप्त किया है कि मानसिक मंदन जितना ही तीव्र होगा, जीवनकाल के कम होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
9. शैक्षिक अयोग्यता-मानसिक मंद बालकों का बौद्धिक स्तर औसत से नीचे होते है इसलिए उसे औपचारिक या अनौपचारिक प्रशिक्षण के द्वारा प्रशिक्षित करके उन्हें किसी प्रकार शिक्षित नहीं किया जा सकता है।
10. असमान्य शारीरिक अंग-सामान्य तथा मानसिक मंद बालकों की तुलना करने पर शारीरिक अंगों में असामान्यत्ता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। सामान्य व्यक्तियों की तुलना में मानसिक मंद बालकों के शारीर के अपेक्षाकृत असामन्य होते है।
11. प्रेरणा एवं संवेग की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति-मानसिक मंद बालकों में अपने प्राथमिक आवश्यकताओं तथा भूख प्यास के प्रति ही कोई चिन्तास नहीं पाई जाती है। यही नहीं, इनमें किसी प्रकार के संवेग तथा प्रेम, घृणा, दुख, प्रसन्नता आदि की अभिव्यक्ति भी प्रदर्शित नहीँ होती है। इनका जीवन आवेगहीन, उद्देश्यहीन, आवश्यकताहीन, प्रेरणाहिन एवं संवेगहीन होता है।
12. शरीरिक विकार की अधिकता-मानसिक मंद बालकों में अनेक प्रकार के शारीरिक विकार पाए जाते है जैसे चपरासी सम्बन्धी विकार, मस्तिष्क के उत्तकों एवं कोशिकाओं के अपक्षय आदि, इन्ही विकारों के कारण मानसिक मंदन पाया जाता है | इन विकारों की मात्रा जितनी ही अधिक होगी,मानसिक मंदन भी उतना ही अधिक होगा|
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions