Tuesday, 5 May 2015

होटल व्यवसाय में सफलता के योग


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होटल व्यवसाय में सफलता के योग  



अत्याधुनिक सुसज्जित फाइव स्टार होटल का जिक्र होते ही हमारे जेहन में एक ऐसी जगह की तस्वीर उभरती है जहाँ खाने-पीने से लेकर हर प्रकार की सुविधा एवं ठहरने की उत्तम व्यवस्था होती है। यहाँ ठहरने वालों को उचित आराम और सुविधाएँ मिलें इसके लिए छोटी से छोटी बात का ध्यान रखा जाता है। इसीलिए उच्च होटल व्यवसाय में बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है और यदि इतना धन लगाकर भी सफलता मिले तो सब किया कराया बेकार हो जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में सफलता के योग किस प्रकार कुंडली में बैठे ग्रहों से सुनिश्चित होते हैं।
यह व्यवसाय शुक्र, बुध, मंगल से प्रेरित है। व्यवसाय भाव दशम, लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ भाव एकादश भाव विशेष महत्व रखते हैं। दशम भाव उच्च व्यवसाय का भाव है तो दशम से सप्तम जनता से संबंधित भाव हैं। व्यापार जनता से संबंधित है अतः इनका संबंध होना भी परम आवश्यक है।
द्वितीय भाव वाणी का है। यदि व्यापारी की वाणी ठीक नहीं होगी तो व्यापार चौपट हो जाएगा। लग्न स्वयं की स्थिति को दर्शाता है एकादश भाव आय का है तो तृतीय भाव पराक्रम का है। इन सबका इस व्यवसाय में विशेष योगदान रहता है। अब आता है नवम भाव, इन सबके होने के साथ यदि नवम भाव का स्वामी भी मित्र स्वराशि उच्च का हो या उपरोक्त में से किसी भी एक या अनेक भावों के स्वामी के साथ संबंधित हो तो सोने पे सुहागा वाली बात होती है।


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रिष्तों में प्यार बढ़ाने का ज्योतिषीय उपाय -



रिष्तों में प्यार बढ़ाने का ज्योतिषीय उपाय -

ग्रह, नक्षत्र हमारे आपसी रिष्तों पर अपना पूरा प्रभाव डालते हैं। इस संबंध में ज्योतिषषास्त्र में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में प्रत्येक ग्रह से कोई ना कोई रिष्ता जुड़ा होता है तथा प्रत्येक भाव से रिष्तेदारो की स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूर्य से जहाॅ पिता तथा पितातुल्य संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है वहीं पर चंद्रमा से माॅ, मौसी तथा माता संबंधी रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मंगल से भाई तथा मित्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो बुध से बहन, बुआ, बेटी, साली और इससे संबंधित रिष्तों के बारे में जाना जा सकता है वहीं पर गुरू से पिता, दादा, गुरू तथा देव का पता चलता है शुक्र से पत्नी तथा स्त्री का पता चलता है शनि से चाचा, माता, सेवक तथा अधिनस्थों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो राहु से साला और ससुर तथा केतु से संतान और नाना जैसे रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही भाव भी रिष्तों के विषय में जानकारी देते हैं, जिसमें लग्न से स्वयं, दूसरे स्थान से कुटुंब, तीसरे स्थान से छोटे भाई-बहन तथा पड़ोसियों एवं सहायकों के बारे में जाना जा सकता है तो चतुर्थ भाव से माॅ, ससुर तथा नजदीकी रिष्तेदारों के बारे में जानकारी मिलती है तो पंचम से संतान, दोस्त, प्रेमी-प्रेमिका, समाज के संबंध में जाना जा सकता है। षष्ठम स्थान से मातृपक्ष, सेवक तो सप्तम स्थान से जीवनसाथी, पार्टनर के बारे में जानकारी प्राप्त हेाती है तो अष्टम स्थान पितृ संबंधी रिष्तों की जानकारी देता है वहीं नवम स्थान दादा तथा पारिवारिक बुजुर्गो के संबंध में सूचना देता है दषम स्थान से पिता, अधिकारी तथा सहयोगियों के बारे में जाना जा सकता है। एकादष स्थान से बड़े भाई-बहन तथा दोस्तों के बारे में जाना जा सकता है तो द्वादष स्थान से पिता पक्ष तथा, जीवनसाथी से संबंध जाना जाता है तो आध्यामिक रिष्तों के बारे में जाना जाता है अतः इनमें से किसी भी भाव या भावेष की स्थिति प्रतिकूल होने पर उस रिष्तें से हानि तथा कष्ट की संभावना बनती है तो जिस भाव या भावेष की स्थिति अनुकूल हो वह रिष्ता जीवन में सुख तथा सहायक बनता है। इस प्रकार जीवन में कौन सा रिष्ता सहयोगी होगा तथा किस रिष्ते से सुख प्राप्त होगा इसकी जानकारी कुंडली के भाव या भावेष से जाना जा सकता है। जीवन में जो रिष्ता दुखी करता हो, उस रिष्ते से संबंधित ग्रह तथा भाव को मजबूत करने का उपाय आजमाकर शुभ फल पाया जा सकता है।


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future for you astrological news rashifal 05 05 2015

आय में बाधा का कारण और बेहतर करने ज्योतिष उपाय



आय में बाधा का कारण और बेहतर करने ज्योतिष उपाय -
आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी व्यक्ति के पास कितनी धन संपत्ति होगी तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा आय का योग तथा नियमित साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति के संबंध में जानकारी मिलती है इस स्थान को धनभाव या मंगलभाव भी कहा जाता है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो धन तथा मंगल जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। चतुर्थ स्थान को सुखेष कहा जाता है इस स्थान से सुख तथा घरेलू सुविधा की जानकारी प्राप्त होती है अतः चतुर्थेष या चतुर्थभाव उत्तम स्थिति में हो तो घरेलू सुख तथा सुविधा, खान-पान तथा रहन-सहन उच्च स्तर का होता है तथा घरेलू सुख प्राप्ति निरंतर बनी रहती है। पंचमभाव से धन की पैतृक स्थिति देखी जाती है अतः पंचमेष या पंचमभाव उच्च या अनुकूल होतो संपत्ति सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी होती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है।  अतः जीवन में इन पाॅचों भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। अपनी हैसियत के अनुसार सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए।

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युवा बच्चों का अनुषासनहीन होना - ज्योतिषीय कारण और उपाय:-



युवा बच्चों का अनुषासनहीन होना - ज्योतिषीय कारण और उपाय:-

यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षन प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन पाता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षन की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है जिससे आज्ञाकारी ना होने के कारण बढ़ती उम्र में गलत संगत या गलत निर्णय लेकर अपना भविष्य खराब कर बैठता है। ऐसी स्थिति में उसके ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं।



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कर्ज से मुक्ति का ज्योतिषीय उपाय -



कर्ज से मुक्ति का ज्योतिषीय उपाय -

वर्तमान दौर में व्यक्ति को कर्ज लेना ना केवल आवष्यक बल्कि मजबूरी भी है। आज के आधुनिक दौर में सभी आवष्यक कार्यो हेतु कर्ज लेना पड़ता फिर वह बच्चों की षिक्षा विवाह के लिए हो या मकान वाहन के लिए। हर अहम परिस्थिति में कर्ज लेना जरूरी हो गया है। कई बार कुछ कर्ज आसानी से चुक जाते हैं तो कई कर्ज बोझ बढ़ाने का ही कार्य करते हैं। अतः यदि कर्ज लेते समय नक्षत्र, लग्न एवं राषि पर विचार करते हुए अपनी ग्रह दषाओं के अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्णय लेते हुए कर्ज लिया जाए तो बोझ ना होकर ऐष्वर्या तथा उन्नति बढ़ाने का साधन भी बन सकता है। अतः 27 नक्षत्रों में से 1.अष्विनी, 2.मृगषिरा, 3.पुनवर्सु, 5.चित्रा, 6.विषाखा, 8.अनुराधा, 9.श्रवण, 10.ज्येष्ठा, 11.धनिष्ठा, 12.षतभिषा, 13.रेवती ये नक्षत्र कर्ज हेतु उचित नक्षत्र हैं, जिनमें लिया गया कर्ज चुकाने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता वहीं पर हस्त, भरणी, पुष्य, स्वाति इत्यादि नक्षत्र कर्ज लेने हेतु प्रतिकूल फल देते हैं। उसी प्रकार चर लग्न में कर्जा लेना इसलिए उचित होता है क्योंकि इस लग्न में कर्ज आसानी से चुक जाता है किंतु इस लग्न में कर्ज देना उचित नहीं होता। वहीं पर द्विस्वभाव लग्न में लिया गया कर्ज चुकान के उपरांत भी चुका हुआ नहीं दिखता। स्थिर लग्न में लिया गया कर्ज चुकाने में बहुत कष्ट, विवाद की संभावना होती है अतः इन लग्नों में कर्ज लेने से बचना चाहिए। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अपनी राषि तथा ग्रह स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कर्ज लेना या देना चाहिए। अगर कोई ग्रह प्रतिकूल हैं उनकी स्थिति तथा दषाओं में कर्ज लेने से बचना ही तनाव से मुक्ति का सरल उपाय है।



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कालसर्प दोष की भ्रांति और ज्योतिषीय यर्थाथ -


कालसर्प दोष की भ्रांति और ज्योतिषीय यर्थाथ -

ज्योतिषीय आधार पर कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है ‘‘काल’’ और ‘‘सर्प’’ । काल का अर्थ समय और सर्प का अर्थ सांप अर्थात् समय रूपी सांप। ज्योतिषीय मान्यता है कि जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के मध्य आ जाते हैं या एक ओर हो जाते हैं तो कालसर्प येाग बनता है। मान्यता है कि जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है, उसके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कालसर्प योग में सभी ग्रह अर्धवृत्त के अंदर होता है। ऋग्वेद के अनुसार राहु और केतु ग्रह नहीं है बल्कि असुर हैं। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिससे सूर्य ग्रहण होता है उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चंद्रग्रहण लगता है। वैदिक परंपरा में विष्णु को सूर्य कहा गया है जो कि दीर्धवृत्त के समान है। राहु केतु दो संपात बिंदु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिंदुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने पर कालसर्प बनता है। जो व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।
ज्योतिषीय मान्यता है कि राहु और केतु छायाग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवेंभाव पर होते हैं जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तो कालसर्प दोष बनता है। राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं। राहु जिनकी कुंडली में अनुकूल फल देने वाला होता है, उन्हें कालसर्प दोष में महान उपलब्धियां हासिल होती हैं। इस दोष में जातक से परिश्रम करवाता है और उसके अंदर की कमियां को दूर करने की प्रेरणा देता है जिससे व्यक्ति जुझारू, संघर्षषील और साहसी बनता हैं इस योग के प्रभाव में अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग और निरंतर आगे बढ़ने हेतु सदा परिश्रम करने से कालसर्प दोष योग बन सकता है। कालसर्प योग में स्वराषि एवं उच्च राषि में स्थित गुरू, उच्च राषि का राहु, गजकेषरी योग, चतुर्थ केंद्र विषेष लाभ प्रदान करता है। अकर्मण्य होने तथा उसके परिणामस्वरूप निराष होकर प्रयास छोड़ने से कालसर्प दोष बन जाता है किंतु लगनषील तथा परिश्रमी बनकर प्रयास करने से कालसर्प दोष ना रहकर योग बन जाता है। कालसर्प दोष में परिश्रमी तथा लगनषील बनने के साथ पितृदोष निवारण उपाय तथा राहु शांति कराना भी उचित होता है।



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योजनाबद्ध कार्य में महत्वपूर्ण कारक ज्योतिषीय गणना


योजनाबद्ध कार्य में महत्वपूर्ण कारक ज्योतिषीय गणना -

किसी भी जातक के जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अलावा उसके ग्रह दषाओं के अनुरूप उसका व्यवहार तथा निर्धारित होता है, जिसके कारण कुंडली के विष्लेषण के समय उस जातक के ग्रह दषाओं का असर उसके जीवन मे महत्वपूर्ण होता है। चूॅकि इंसान के जीवन में ग्रहो का प्रभाव विषेष प्रभाव शाली होता है अतः उसके प्रष्न के समय चलित दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि दृष्टि गोचर होती है ऐसी स्थिति ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल स्थान पर होने से भी प्रभावी होती है किंतु उसकी ग्रह दषाओं का पूरा असर उसके जीवन पर दिखाई देता है। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरू राजसीय स्वभाव से उत्तम फल प्रदान करते हैं यदि उसकी कुंडली में स्थिति अनुकूल हो तो। साथ ही सूर्य अपनी या बुध की दषा में सात्विक गुण के कारण श्रेष्ठ फल प्रदाय करने में सक्षम होता है। बुध की महादषा में स्वयं या गुरू या चंद्रमा की दषाओं में सात्विक भाव से प्रथम या द्वितीय श्रेणी का फल प्रदाय करता है। गुरू या किसी भी सौम्य ग्रह की दषाओं में राहु या केतु की दषाओं में अषुभ फल प्रदाय करता है फिर कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ भी हों कुछ मात्रा मंें अषुभ फल जरूर प्राप्त होते हैं। शुक्र, चंद्रमा या गुरू की दषाओं में मिश्रित फल प्रदाय करता है, जिसमें कोई पक्ष अच्छा तो दूसरा पक्ष विपरीत कारक होता है। जैसे शनि की दषा में कार्यक्षेत्र में उत्तमफल प्राप्त होता है तब वहीं पर रिष्तों में मतभेद या अलगाव का कारण बनता है। गुरू या शुक्र की दषाओं में मंगलकारक फल प्रदाय करता है यदि ये ग्रह उत्तम स्थिति में हों तो। स्वभाव से तामसिक ग्रह प्रतिकूल स्थिति में उत्तमफल प्रदाय करने में सक्षम होते हैं वहीं पर सात्विक गुण वाले ग्रह प्रतिकूल स्थिति में खराब फल प्रदाय करते हैं। इस प्रकार जीवन में ग्रह दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि सफलता या असफलता तथा शुभ या अषुभ फल प्राप्त होता है।



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future for you astrological news panchang 05 05 2015

जीवन में साकारत्मक उर्जा बढ़ाने के उपाय -

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जीवन में साकारत्मक उर्जा बढ़ाने के उपाय -

यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। ज्योतिषीय मान्यता है कि व्यक्ति की कुंडली में जो ग्रह प्रतिकूल होता है, उसके अनुसार व्यक्ति में उस क्षेत्र या स्थान से संबंधित नाकारात्तमता दिखाई देती है। जीवन में नाकारात्मक स्थिति को दूर करने तथा जीवन में साकारात्मक तथा सफलता प्राप्ति हेतु मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पाॅच ज्ञानेंद्रियों और पाॅच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुषासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिषा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूॅकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अतः अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।


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भौम प्रदोष व्रत - कर्ज से मुक्ति का ज्योतिषीय समाधान



भौम प्रदोष व्रत - कर्ज से मुक्ति का ज्योतिषीय समाधान -

प्राचीन काल से आज आधुनिक जीवनषैली की आवष्यकता को देखते हुए कर्ज लेना मजबूरी है किंतु कई बार यहीं लिया गया कर्ज तनाव तथा रोग का कारण होता है तो वहीं पर सामाजिक प्रतिष्ठा तथा विष्वसनीयता पर भी प्रष्नचिन्ह लग जाता है। इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति प्रायः कर्ज लेकर उससे मुक्ति हेतु परेषान हो तथा कर्ज चुकने का ही नाम ना लें, कर्ज से अपनी प्रतिष्ठा, सुखषांति समाप्त होने लगे तो कर्ज मुक्ति हेतु ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए। जिसमें अपनी ग्रह स्थिति तथा दषाओं के अनुकूल होने की जानकारी प्राप्त कर शुभ मूहुर्त में किसी भी रविपुष्य या गुरूपुष्य के दिन ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण मंगलयंत्र की प्राणप्रतिष्ठा करके यंत्र पूजा स्थान पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित कर दें। नित्य पूजन करें तथा मंत्र -‘उॅ ऐं हीं क्लीं मम वांछित देहि मे स्वाहा’ का जाप कर हवन करना चाहिए। पूजन में एक सफेद फूल वाला आक का पौधा लें, उसे जिस शुभ मूर्हूत में पूजन करना है, उसके एक दिन पूर्व जैसे रविपुष्य नक्षत्र को करना हो तो शनिवार को अर्क पौधे को जल से धो कर धूप-दीप से पूजन कर ‘मम कार्य सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा’ जाप करते हुए पौधे को नियंत्रण दें। रविवार को सूर्य उदय से पहले स्नान करके पौधे की पूजन अर्जन आरती आदि कर मंत्र ‘उॅ आं हीं क्रौं श्रीं श्रियै नमः ममालक्ष्मी नाषय नाषय मामृणोत्ती्रर्णे कुरू कुरू संपदं वर्धय वर्धय स्वाहा का जाप करें तथा उसके उपरांत दान करने के बाद मुक्ति की कामना से कर्ज की किस्त देना प्रारंभ करें तो इससे आप को कर्ज की समस्या से निजात मिलकर समृद्धि बढ़ेगी।


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ग्रह दषाओं के अनुकूल फल प्राप्ति का स्वरूप-



ग्रह दषाओं के अनुकूल फल प्राप्ति का स्वरूप-

प्रत्येक ग्रह कुछ विकिरण बल या शक्तिबल का केंद्र होता है। ग्रहों के इस विकिरण का संसार के सभी जीवों द्वारा अपनी क्षमता के अनुपात में ग्रहण किया जाता है। उन पर ग्रहों के बल का प्रभाव पड़ेगा जरूर पर कितना पड़ता है यह उनकी अपनी ग्रह स्थिति पर निर्भर करता है। हिंदू ज्योतिष के निर्देषों की अनेक प्रणालियाॅ हैं, जिनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण दषाओं की विवेचना से फलित करना है। किसी भी दषाओं का फल प्रत्येक व्यक्ति पर एक समान नहीं पड़ता। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ग्रह दषाओं या अंतरदषाओं पर उस ग्रह की स्थिति या प्रभाव के अनुरूप दषाएॅ अपना प्रभाव डालती हैं। किसी ग्रह दषाओं का प्रभाव किसी जातक पर कितना पड़ेगा इसका ज्ञान उस जातक की कंुडली के भाव या भावेष की स्थिति से जाना जाता है। किसी भाव की दषाओं या अंतरदषाओं में प्रभाव का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उस भाव का अधिपति, उसके ग्रह की स्थिति तथा ग्रह पर प्रभाव डालने वाले ग्रह के साथ उसका सामंजस्य तथा उस ग्रह पर स्थिति ग्रह तथा उसके प्रभाव का समायोजन कर ग्रह दषाओं की विवेचना करना चाहिए। किसी दषाओं के प्रभाव को जानने के लिए पाॅच बातें महत्वपूर्ण होती हैं जिसमें भाव का स्वामी, भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, भाव में स्थित ग्रह, भाव के स्वामी पर दृष्टि डालने वाले ग्रह तथा भाव स्वामी के साथ युक्ति करने वाले ग्रह। ये पाॅच तथ्य दषानाथ या भुक्तिनाथ के रूप में भाव पर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मामले में फल के स्वरूप में अंतर होता है। भाव पर प्रभाव डालने वाले अन्य ग्रह जिनकी मुख्य स्वामी के साथ युक्ति है, की अंतरदषा में भाव से संबंधित फल मिलेगा जो लगभग बहुत उत्तम होगा। भाव पर प्रभाव डालने वाले ग्रह जिनकी मुख्य स्वामी के साथ युक्ति है की अंतरदषा में प्रथम भाव से संबंधित फल साधारण प्राप्त होगा। फल का अच्छा या बुरा या साधारण अथवा उत्तम फल प्राप्ति पर ग्रह के सौम्य या कूू्रर होने का भी प्रभाव पड़ता है। कोई ग्रह अनुकूल हो या प्रतिकूल अथवा राजयोग कारक है अथवा मारक इसका प्रभाव भी फल को प्रभावित करता है। इस प्रकार किसी ग्रह दषाओं अथवा अंतरदषाओं में फल प्राप्ति का उत्तम अथवा साधारण योग ज्ञात कर उसके उचित उपाय आजमाते हुए फल प्राप्ति के स्वरूप को बदला जा सकता है।






श्री महानंदा नवमी व्रत -



श्री महानंदा नवमी व्रत -

मार्गषीर्ष शुक्ल- पक्ष नवमी को श्री महानंदा नवमी व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन श्री की देवी का पूजन करने से दारिद्रय सामाप्त होकर संपन्नता तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं इस दिन पूजनस्थल के मध्य में एक बड़ा अखण्ड दीपक जलाकर रात्रि जागरण एवं ओं हृीं महालक्ष्म्यै नमः इस महालक्ष्मी मंत्र का जप करना चाहिए तथा ब्रम्ह मूहुर्त में घर का कूड़ा रखकर सूपे में रखकर बाहर ले जाना चाहिए, इसे अलक्ष्मी का विसर्जन कहते हैं तथा हाथ-पैर धोकर दरवाजे पर खडे़ होकर महालक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए। रात्रि में पूजन के उपरांत व्रत का पारण करना तथा कुॅवारी कन्या से आषीर्वाद लेना विषेष शुभ होता है।
एक बार की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल में पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया पिलाया और ढेर सारे उपहार दिये। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो। अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी के तुलना में हमारे यहाॅ तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी। साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। बेटी ने चैका लगाया और चैमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहाॅ डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, साल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजन की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चैकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की।


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