सौर मंडल में गुरु के बाद शनि ग्रह स्थित है जो भूमि से एक तारे के समान दिखाई देता है, परंतु उसका रंग काला सा है। इसके पूर्व-पश्चिम व्यास की अपेक्षा दक्षिणोŸार व्यास लगभग 7.5 हजार मील कम है। अतः यह पूर्णतः गोल न होकर चपटा है। इसके समान चपटा अन्य कोई ग्रह नहीं है। इसके पिंड का व्यास 75 हजार मील से भी ज्यादा है जो पृथ्वी के व्यास से 9 गुना अधिक है। इसका पृष्ठ भाग पृथ्वी की अपेक्षा 81 गुना और आकार 700 गुना अधिक है, परंतु इसके आकार के हिसाब से वहां द्रव्य नहीं है। शनि का प्राकृतिक वातावरण: शनि का घनत्व अन्य सभी ग्रहों से कम है, वह पृथ्वी के घनत्व का सातवां हिस्सा है। शनि पर द्रव्य पदार्थ पृथ्वी के पानी से भी पतला है। वहां उष्णता अधिक है इस कारण वहां भाप उठती है। उसका वातावरण वायु रूप अवस्था में होने के कारण प्रवाही है। शनि का वातावरण प्राणियों के अनुकूल नहीं है, इसलिए वहां जीवन नहीं है। शनि के पृष्ठभाग पर नाना प्रकार के रंग चमकते हैं, ध्रुव की ओर नीला, अन्य भाग मंे पीला और मध्य भाग में सफेद रेत का पट्टा तथा बीच-बीच में बिन्दु दिखाई देते हैं। शनि ग्रह पृथ्वी से बिल्कुल भिन्न है। धूल के कणों और गैस से बने अभ्र इसके वातावरण में व्याप्त है। इस अपारदर्शी अभ्र के कारण ही उसका अपना थोड़ा सा प्रकाश है, वह बाहर नहीं आ पाता है, इसलिए वह निस्तेज दिखाई देता है। सूर्य पुत्र शनि: शनि अपने पिता सूर्य से 88 करोड़ मील की दूरी पर स्थित है। इस अत्यधिक दूरी के कारण ही सूर्य का बहुत कम प्रकाश शनि तक पहंुच पाता है। इसलिए वहां अंधेरा रहता है। पृथ्वी के चंद्र को जितना सूर्य का प्रकाश मिलता है, शनि को उसका 90 वां हिस्सा ही मिल पाता है। शनि के 7 चंद्र प्रकाशवान होने के बावजूद पृथ्वी के चंद्रमा से जो प्रकाश हमें मिलता है, उसकी तुलना में 16 वां भाग ही शनि को उसके चंद्रों से मिल पाता है। इन कारणों से वहां ज्यादातर अंधेरा ही छाया रहता है। शनि की उष्णता उसके घटक द्रव्यों को ऊर्जा देने के लिए काफी है, ऐसी स्थिति में वह निस्तेज होकर भी तेजस्वी है। शनि कैलेंडर: पृथ्वी के एक सौर मास के बराबर शनि का 1 दिन होता है, पृथ्वी के ढाई (2.6) वर्ष के बराबर शनि का 1 सौर मास होता है, इतने समय तक शनि एक राशि में भ्रमण करता है। इस दौरान वह कई बार वक्री और मार्गी हो जाता है, इस कारण उसका प्रभाव पिछली और अगली राशियों में भी बराबर बना रहता है। पृथ्वी के साढे़ 29 वर्षों के बराबर शनि का 1 सौर वर्ष होता है। इतन वर्षों में शनि सूर्य की सिर्फ एक परिक्रमा पूरी कर पाता है। इसकी मंद गति के कारण ही शास्त्रों में इसे ‘मंदसौरी’ कहा गया है। और शायद इसी कारण इसे शनैश्चरः भी कहते हैं। शनि के वलय: शनि के पृष्ठभाग के चारों ओर 16000 कि.मी. का स्थान खाली है। शनि के भव्य पिंड के चारों ओर कुछ छल्ले हैं, जिन्हें वलय कहा जाता है। इन्हें शनि का रक्षा कवच कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन वलयों के कारण ही शनि की आकृति शिवलिंग की भांति दिखाई देती है। ये वलय शनि के विषुववृŸा के चारों ओर फैले हुए हैं। शनि की कक्षा अपने विषुववृŸा से 27 अंश का कोण बनाती है। शनि के विषुववृŸा पर सूर्य साढ़े 29 वर्ष में दो बार आता है। जब शनि उत्तरी गोलार्द्ध में होता है तब वलय का दक्षिणी भाग और जब दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है तो तब वलय का उत्तरी पृष्ठ भाग दिखाई देता है। कृष्ण पक्ष की अंधेरी रात में ही इसे देख पाना संभव है। आंतरिक वलय का व्यास 2,33,000 कि.मी. तथा बाहरी का 2,81,000 कि.मी. है, इसके बाहर की कला के मध्य बिन्दु से 133000 कि.मी. दूरी पर है। कैसिनी द्वारा भेजी गई तस्वीरों का अध्ययन करके जेट प्रोपल्शन लैब के प्रमुख डोनाल्ड शेमानस्की ने कहा है कि शनि के वलयों का क्षरण हो रहा है और अगले 10 अरब वर्षों में वलयों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। ग्रहों की ज्योतिषीय गणना के आधार पर हम कह सकते हैं कि दो अरब चैंतीस करोड़ वर्ष बाद शनि के वलयों के साथ-साथ शनि और संपूर्ण ब्रह्मांड का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्य में विलीन हो जाएगा। धर्मशास्त्रों में इसे जगत का परमात्मा में लय (सृष्टि विनाश) कहा गया है। प्राचीन भारतीय खगोलविदों के अनुसार शनि का वलय चक्र बढ़ते-बढ़ते शनि के पृष्ठभाग के चारों ओर फैलता जा रहा है अर्थात शनि के पिंड और आंतरिक वलय के बीच 16000 कि.मी. की दूरी का जो खाली स्थान है, उस शून्य की ओर ये वलय बढ़ रहे हैं। सप्तचन्द्र, शनि की चमकती आंखेंः शनि के 8 उपग्रह अर्थात चंद्र हैं, जो उसके चारों ओर घूमते हैं। इनमें से 7 चंद्रों की कक्षा वलयांतर्गत ही है। इन 7 प्रकाशवान चंद्रों के कारण ही शनि को सप्त नेत्रों वाला कहा गया है। शनि के अंदर का चंद्र शनि से मात्र 1,92,000 कि.मी. की दूरी पर है जबकि पृथ्वी का चन्द्र पृथ्वी से इसकी अपेक्षा दोगुनी दूरी पर स्थित है। वलय पर स्थित 7 चंद्रों में से एक बुध से भी बड़ा है, हो सकता है कि वह मंगल के बराबर हो। वैज्ञानिकों ने इसका नाम ‘टाइटन’ रखा है। ये चंद्र परस्पर निकट होने से अलग-अलग दृश्यमान नहीं होते। वैसे प्रत्येक चंद्र स्वतंत्र रूप से शनि के चारों ओर घूमता है। शनि के चारों ओर वलयों में चमकते हुए चंद्र ऐसे लगते हैं, मानो शनि ने चमकते हुए सफेद मोतियों का हार पहन लिया हो। यह चंद्रहार ही उसे सभी ग्रहों में अनूठा बनाता है। शनि के चंद्र पृथ्वी से अधिक दूरी पर होने के कारण बारीक तारे के समान नजर आते हैं। इन चंद्रों की कक्षा के मध्य 28 अंश का कोण है, इस कारण ग्रहण आदि कदाचित ही होते हैं। शनि ग्रह का वातावरण प्राणियों के रहने योग्य नहीं है किंतु अनुमान है कि शनि के चंद्रों पर किन्हीं सूक्ष्म जीवों का वास है और शनि उनका पोषण करने में समर्थ है। शनि के चन्द्रों का प्राकृतिक वातावरण सूखा व ठंडा है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की पहले मान्यता थी कि शनि के 42 चंद्र है किंतु अभी तक केवल 31 चंद्रों की ही खोज हो पाई है। शनि के चंद्रों और वलयों की संख्या को लेकर विवाद हो सकता है। किंतु यह तो तय है कि शनि एक रहस्यमय ग्रह है एक अनसुलझी पहेली की तरह जिसकी गुत्थी सुलझाने में वैज्ञानिक दिन रात लगे हुए हैं। वे इसमें कहां तक सफल होंगे, यह तो समय ही बताएगा।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment