कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्ति हेतु सभी प्रभावशाली उपायों का विस्तार से वर्णन करें। यदि इस संबंध मं कोई व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है तो उसका भी संक्षिप्त वर्णन करें। इस संबंध में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के स्थान, माहात्म्य एवं यात्रा मार्ग का भी वर्णन करें। कालसर्प योग की जन्मांग में उपस्थिति मात्र से जनसामान्य के मन में आतंक और भय की भावना उदित हो जाती है। कालसर्प योग से पीड़ित जन्मांग वाले जातकों का सम्पूर्ण जीवन अभाव, अनवरत अवरोध, निरंतर असफलता, सन्तानहीनता, वैवाहिक जीवन में कष्टादि अनेक अनिष्टों से युक्त हो जाता है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र की फलित शाखा सहस्राधिक वर्षों से पीड़ित मानवता के कल्याण हेतु आध्यात्मिक उपायों को भी प्रकट करती रही है। आज जबकि इस योग से पीड़ित जातकों की संख्या करोड़ों में है, तो इस दिशा में ज्योतिषशास्त्र के विद्वानों की जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है। इस कष्टप्रद योग की शान्ति संबंधी विविध उपायों पर चर्चा से पूर्व इस ज्योतिषीय योग का सामान्य परिचय देना आवश्यक है। कालसर्प योग- किसी भी जातक की जन्मकुण्डली में जब समस्त ग्रह राहु तथा केतु के बीच स्थित रहते हैं तो यह ग्रह स्थिति ‘कालसर्प योग’ के नाम से जानी जाती है। राहु तथा केतु की विभिन्न भावों में स्थिति के आधार पर इनका विशिष्ट नामकरण भी किया गया है जो तालिका से स्पष्ट है- ये बारह प्रकार के कालसर्प योग उदित तथा अनुदित दो प्रकार के होते हैं। राहु के मुख में सातों ग्रहों के आ जाने पर उदित कालसर्प योग होता है जबकि सारे ग्रह राहु के पीछे आने पर अनुदित कालसर्प योग होता है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन मनीषियों ने विभिन्न कुयोगों के वर्णन के साथ-साथ उनकी शान्ति अथवा शमन के लिए भी अनेक मार्ग बताए हैं। इन शान्ति मार्गों में मन्त्र, मणि, औषधि आदि प्रमुख हैं। कालसर्प योग की शान्ति हेतु कई उपायों का वर्णन ज्यातिषशास्त्र के विद्वानों ने किया है। ये उपाय मन्त्र शास्त्र, तन्त्र शास्त्र, लाल किताब आदि पर आधारित हैं। कालसर्प योगों की शान्ति हेतु सर्वाधिक प्रचलित तथा प्रभावी विधियों का क्रमशः वर्णन किया जा रहा है- कालसर्प योग शान्ति अनुष्ठान- कालसर्प योग शान्ति का सम्पूर्ण अनुष्ठान त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि, नागबलि तथा नागपूजन द्वारा सम्पन्न होता है। कालसर्प योग क जन्मांग में उपस्थिति का मूल-कारण पितृशाप माना गया है। अतः पितरों की शान्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध आवश्यक है। त्रिपिंडी श्राद्ध संबंधी विस्तृत वर्णन ‘श्राद्ध-चिंतामणि’ ग्रन्थ में उपलब्ध होता है। यदि जातक विवाहित है तो उसे अपनी पत्नी के साथ नवीन श्वेत वस्त्र धारण कर उचित नक्षत्र मुहूर्तादि में त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए। इसी प्रकार नारायणबलि-नागबलि का भी विद्वान आचार्यों द्वारा अनुष्ठान करवाना चाहिए। यहाँ यह ध्यातव्य है कि कालसर्प योग + शान्ति उपाय अनन्त कालसर्प योग- बिल्ली की जेर को लाल रंग के कपड़े में डालकर धारण करें। दूध का दान करें। चाँदी की थाली में भोजन करें। काले तथा नीले रंग के कपड़े पहनने से बचें। जेब में लोहे की साबुत गोलियाँ रखना भी लाभप्रद होता है। कुलिक कालसर्प योग- चाँदी की ठोस गोली अपने पास रखें। सोना, केसर अथवा पीली वस्तुएँ धारण करें। चारित्रिक फिसलन से बचें। दोरंगा काला सफेद कंबल धर्म स्थान में दान दें। कान का छेदन भी लाभप्रद होता है। हाथी के पांव की मिट्टी कुएं में डालें। वासुकि कालसर्प योग- हाथी दांत की वस्तु भूल कर भी अपने पास न रखें। चारपाई के पायों पर ताँबे की कील लगवा लें। रात्रि में सिरहाने में अनाज रखें तथा प्रातः यह अनाज पक्षियों को खिला दें। झूठ बोलने से बचें। स्वर्ण की अंगूठी या कोई भी स्वर्ण आभूषण धारण करें। केसर का तिलक लगाएँ। शंखपाद कालसर्प योग- ग्ंगा स्नान करें। चांदी की अंगूठी धारण करना लाभप्रद रहेगा। मकान की छत पर कोयला रखने से बचें। यदि रोग ज्यादा परेशान कर रहे हों तो 400 ग्राम बादाम नदी में प्रवाहित करें। चंदी की डिब्बी में शहद भरकर घर से बाहर सुनसान स्थान में दबा दें। पद्म कालसर्प योग- अपनी पत्नी के साथ समस्त रीति-रिवाजों के साथ दूसरी बार शादी करें। घर में गाय या कोई भी दुधारू पशु पालें। चांदी का छोटा सा ठोस हाथी अपने पास रखें। दहलीज बनाते समय जमीन के नीचे चांदी का पत्तर डाल दें। पराई स्त्री से दूर रहें। नित्य सरस्वती स्तोत्र का पाठ करं। महापद्म कालसर्प योग- घर में पूरा काला कुत्ता पालें। काला चश्मा पहनना शुभ होगा। भाईयों या बहनों के साथ किसी भी रूप में झगड़ा न करें। चाल-चलन पर संयम रखें। कँआरी कन्याओं का आशीर्वाद लेते रहें। सरस्वती की आराधना कष्ट दूर करने मे सहायक होगी। तक्षक कालसर्प योग- भूलकर भी कुत्ता न पालें। चलते पानी में नारियल बहाएँ। विवाह के समय चांदी की ईंट अपनी पत्नी को दें। ध्यान रहे इस ईंट का बेचना विनाश का कारण होता है, अतः हमेशा संभालकर रखें। घर में चांदी की ईंट रखें। किसी बर्तन मे नदी का जल लेकर उसमें एक चांदी का टुकड़ा रखकर धर्मस्थान में दें। ताँबे की वस्तुओं को दान में न दें। ताँबें की गोली अपने पास रखें। कार्कोटक कालसर्प योग- माथे पर तिलक लगाएँ। भड़भूजे की भट्ठी में ताँबे का पैसा डालें। चार नारियल नदी में बहाएँ। बेईमानी से पैसे न कमाएँ। सूखे मेवे चाँदी के बत्र्तन में डालकर धर्मस्थान में दें। जन्म के आठवें मास से कुछ बादाम मंदिर ले जाएँ आधे वहीं छोड़ दें बाकी बचे बादाम अपने पास रख लें। यह क्रिया अगले जन्मदिन आने तक करं। चांदी का चैकोर टुकड़ा जेब में रखें। शंखचूड़ कालसर्प योग- सोना धरण करें। केसर का तिलक लगाएँ। पीला वस्त्र धारण करें। सुबह-सुबह पक्षियों को दाना-पानी डालें। घातक कालसर्प योग- सिर खाली न रखें। टोपी या साफा कोई भी चीज सिर पर हमेशा रखें। सरस्वती का पूजन करें। चांदी का चैकोर टुकड़ा जेब में रखें। सोने की चेन पहनें। हल्दी का तिलक लगाएँ। मसूर दाल (बिना छिलके वाली) नदी में प्रवाहित करें। विषाक्त कालसर्प योग- म्दिर में दान करं। ताँबे या लाल वस्तु दान न दें। अस्त्र-शस्त्र घर में न रखें। सोने की अंगूठी पहनें। चार नारियल को जल में प्रवाह देना इस योग के अशुभ फल में न्यूनता लाएगा। चांदी के ग्लास में पानी पिएं। रात में दूध ना पिएँ। शेषनाग कालसर्प योग- लाल मसूर दाल का दान दें। धर्म स्थान में ताँबे के बर्तन दान में दें। चांदी का ठोस हाथी घर में रखें। सोने की चेन पहनें। सरस्वती का पूजन नीले पुष्पों से करें। कन्या तथा बहन को उपहार देते रहें। द्वादश ज्योतिर्लिंग- द्वादश ज्योतिर्लिंग और उनके स्थान का वर्णन करते हुए शिव पुराण में कहा गया है- सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्।। परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने।। वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये। स्पष्ट है कि सोमनाथ, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीमहाकाल, श्री ऊँकारेश्वर, श्रीवैद्यनाथ, श्रीभीमशंकर, श्रीरामेश्वम्, श्रीनागेश्वर, श्री विश्वनाथ, श्रीत्रयम्बकेश्वर, श्रीकेदारनाथ और श्रीघुमेश्वर। भारतवर्ष के विभिन्न स्थलों पर विराजमान इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामस्मरण मात्र से सात जन्मों का किया गया पापसमूह नष्ट हो जाता है। इन पुण्यस्थलों पर शिवार्चन तथा रूद्राभिषेक अनुष्ठान करने से कालसर्प योग जनित समस्त अनष्टिों का नाश सहज ही हो जाता है। अतः पाठकों की सुविधा हेतु द्वादश ज्योतिर्लिंगों का नामोल्लेख, मन्दिर की स्थिति तथा वहां पहुंचने के मार्ग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है- 1- श्रीसोमनाथ- यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। प्राचीन ग्रन्थों में इसे ‘प्रभास क्षेत्र’ कहा गया है जो वेरावल के नजदीक है। प्राचीन मान्यता है कि यह मन्दिर सर्वप्रथम स्वयं चन्द्र देव द्वारा बनाया गया था। काल के प्रवाह में यह मन्दिर अनेक बार ध्वस्त हुआ और इसका पुनर्निर्माण भी हुआ। श्रीसोमनाथ के स्थित है। नल्लामाला पहाड़ी में श्रीशैल नामक स्थान पर स्वयं सदाशिव विराजमान हैं। श्रीरामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त इस ज्योतिर्लिंग को भी भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता मन्दिर के दर्शन के लिए सड़क मार्ग, रेलमार्ग तथा वायुमार्ग द्वारा जाया जा सकता है। सड़क मार्ग से जाने के लिए नजदीकी स्थान वेरावल (7 किमी.), जूनागढ (85 कि.मी.), पोरबन्दर (122 कि.मी.) भावनगर (266 कि.मी.), अहमदाबाद (465 कि. मी.) मुम्बई (889 कि. मी.) है। इन स्थानों से राज्य परिवहन निगम तथा निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावाल रेलवे स्टेशन श्री सोमनाथ मंदिर से सिर्फ 7 कि. मी. की दूरी पर है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा केसोद है, जो मन्दिर से 55 कि.मी. की दूरी पर है। मन्दिर में दर्शन का समय सुबह 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक है। 2- श्रीमल्लिकार्जुन- यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में है। श्रीशैल हैदराबाद से 232 किमी. दक्षिण में अवस्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद और मापुर नजदीकी रेलवे स्टेशन मारकापुर है। यहां सड़क मार्ग द्वारा भी पहँुचा जा सकता है। राज्य परिवहन निगम की बस सेवाएँ यहाँ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। 3- श्रीमहाकालेश्वर- मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्थल उज्जैन में यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। यहां शिवलिंग दक्षिणाभिमुख हैं जिसके कारण इन्हें दक्षिणमूर्ति भी कहा जाता है। भस्म आरती इस मन्दिर की विशेषता है। इंदौर सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है और उज्जैन जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है। राज्य परिवहन निगम के बसों की सेवा यहां पर्याप्त मात्रा में है जिसके द्वारा सड़क मार्ग से यह मन्दिर जुड़ा हुआ है। 4- श्रीओंकारेश्वर- नर्मदा नदी के किनारे यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। यह स्थान मध्यप्रदेश के खांडवा जिले के महेश्वर नामक स्थान पर है। नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर है जो महेश्वर से 91 कि.मी. की दूरी पर है। बरवाहा रेलवे स्टेशन से भी महेश्वर पहुंचा जा सकता है। 5-श्रीभीमाशंकर - यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे में भावागिरि नामक स्थान पर है। पुणे से इस स्थान की दूरी 110 कि. मी. है। अगस्त से फरवरी के बीच कभी भी इस स्थान पर आया जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा लौहगांव है। रेल द्वारा यात्रा करनी हो तो करजात रेलवे राजमार्ग संख्या 2 पर अवस्थित है। 6- श्रीवैद्यनाथ- यह ज्योतिर्लिंग झारखण्ड राज्य के देवघर नामक स्थान पर स्थित है जबकि कुछ लोग महाराष्ट्र के परमनी नामक स्थान के पास परली में स्थित ज्योतिर्लिंग को श्रीवैद्यनाथ मानते हैं। झारखण्ड के संथालपरगना क्षेत्र के जसीडीह मध्यप्रदेश के सभी महत्वपूर्ण स्थानांे से यहां सड़क मार्ग द्वारा आ जा सकते हैं। 7- श्रीकेदारनाथ - यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। इसकी गणना चार धाम के अन्तर्गत होती है और इसकी स्थापना स्वयं आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी। यह मंदिर वर्ष में मात्र छः महीने ही खुला रहता है। 8- श्री काशी विश्वनाथ - उत्तरप्रदेश के बनारस में यह मंदिर स्थित है। यहां प्रत्येक दिन पांच बार आरती होती है। प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में लाखों कांवड़िए सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते हैं। 9-श्रीनागेश्वर- गुजरात राज्य के द्वारका में यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह स्थान बड़ौदा से करीब बारह तेरह मील की दूरी पर है। यहाँ ज्योतिर्लिंग दक्षिणाभिमुख है। 10-श्रीरामेश्वरम् - यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम नामक द्वीप पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित है अतः इस मंदिर का महत्व शैव धर्म के श्रद्धालुओं तथा वैष्णवों के लिए समान रूप से है। 11-श्रीघृष्णेश्वर - महाराष्ट्र के वेरूल नामक स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। एलोरा की विश्वप्रसिद्ध गुफा के समीप ही यह मंदिर है।
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