Sunday, 12 April 2015

तीन ऋण?

वैदिक काल से मान्यता है कि किसी भी मानव के जीवन में पितृ ऋण, देव ऋण, आचार्य ऋण, मातृऋण के कारण जीवन में असफलता तथा हानि बीमारी का सामना करना पड़ता है। माना जाता है कि इंसान को अपनी जिंदगी में कर्ज, फर्ज और मर्ज को कभी नहीं भूलना चाहिए। जो भी इनको ध्यान में रखते हुए अपना कर्म करता है वह जीवन में बहुत कम असफलता का सामना करता है। किसी व्यक्ति को पूर्वजों के दुष्कर्मो, अपने पूर्व जन्मों के कर्म तथा वर्तमान जीवन के पापकर्म के कारण कई प्रकार ऋणों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उसके जीवन में सुखों के कारण बाधा, कार्य में असफलता, बीमारी का सामना करना पड़ता है। जीवन में किस प्रकार के ऋण से व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार की हानि संभव है इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से किया जाना संभव है। जिसमें प्रमुख बनते हैं, कार्य में रूकावट, दुखों की प्राप्ति निराशा, मानहानि, बरकत में कमी आदि हो तो मनुष्य पितृ ऋण से प्रभावित मानी जाती है। जिसका ज्योतिष प्रभाव कुंडली के दूसरे, तीसरे, आठवे या भाग्य स्थान में शनि राहु से आक्रांत हो तो पितृ ऋण के कारण व्यक्ति अपने जीवन में दुखों का सामना करता है। पितृऋण से राहत हेतु अज्ञात पितृ निवारण उपाय करना चाहिए जिसमें नागबलि, नारायण बलि तथा रूद्राभिषेक तथा सभी संबंधी मिलकर दान करें तो इस ऋण से राहत मिलती है। आचार्य-ऋण होतो व्यक्ति नास्तिक होता है, रीतिरिवाजों को नहीं मानता। ऐसा व्यक्ति स्वयं के बल पर सभी सुखों को प्राप्त करने के उपरांत आकस्मिक हानि तथा भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। इसका परिचय कुंडली के पंचम स्थान में नीच का सूर्य राहु से आक्रांत हो या पंचमेष विपरीत हो तो यह ऋण दृष्टिगोचर होता है। इससे राहत हेतु नियम से सूर्य नमस्कार तथा सभी भाईबंधु मिलकर गरीबो को आहार का दान करना लाभकारी होता है। मातृऋण माता को किसी प्रकार से कष्ट होने पर जीवन में मातृऋण का सामना जरूर करना पड़ता जिसमें मृत्युतुल्य कष्ट, हानि तथा बीमारी का सामना करना पड़ता है इससे राहत हेतु व्यक्ति को माता का यथावत् सम्मान करते हुए किसी बहते पानी में सफेद वस्तु प्रवाहित करना चाहिए। स्त्रीऋण से प्रभावित जातक के घर में संतान का अभाव या संतान से कष्ट का योग बनता है जिसमें दूसरे या सातवें घर में सूर्य, चंद्रमा का राहु से पीडित होना है जिससे राहत हेतु स्त्रीजाति की सेवा तथा सहायता करना एवं गाय को आहार तथा सेवा करना प्रमुख है। देव ऋण किसी जातक के संतान का नाश होना या वंश का बाधित होना या संतान का किसी भी प्रकार से अपूर्ण हेाना देव ऋण का द्योतक होता है, जिसका पता कुंडली के छठवे स्थान में चंद्रमा या मंगल का केतु से पीडित होना बताता है जिससे राहत हेतु जीवों की सेवा, विधवा की सहायता कर राहत पाया जा सकता है। इस प्रकार जीवन में किसी भी प्रकार से सुखों में बाधा आ रही हो तो अपने ऋण के संबंध में ज्ञात होकर उसकी शांति तथा उपाय कर जीवन में सुख तथा सफलता प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे नारायणबलि, नागबलि, पितृतर्पण, देवतर्पण, दानादि कर्म करना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म जीवों की सेवा, जिसमें गाय को चारा अमावस्या के दिन देना, कुत्तों का भोजन प्रत्येक शनिवार को देना या चि_ी या चिडिय़ा, कौओं को दाना डालना जीवन में सुख तथा समृद्धि का रास्ता प्रशस्त करता है।

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मेरी तो किस्मत ही खराब है

पुरूषार्थ का महत्व भाग्य से अधिक है साथ ही अधिकांश लोगो की मान्यता होती है कि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती जितना कर्म किया जाता है उसी के अनुरूप फल मिलता है किंतु जीवन की कई अवस्थाओं पर नजर डाले तो भाग्य की धारणा से इंकार नहीं किया जा सकता। भारतीय शास्त्र में कर्म को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जोकि क्रमश: संचित कर्म, क्रियामाण कर्म और प्रारब्ध है। जो वर्तमान में कर्म किया जाता है वहीं क्रियामाण कर्म कहा जाता है जिसका कोई फल अभी हमें प्राप्त नहीं है अर्थात् वहीं कर्म भविष्य में संचित कर्म बनता है। इन्हीं संचित कर्म में से जिसका फल हमें प्राप्त हो जाता है वह चाहें अच्छा हो या बुरा प्रारब्ध कहा जा सकता है। अब देखें कि संचित कर्म का विचार - वह कर्म जिसका परिणाम हमें वर्तमान में नहीं प्राप्त होता माना जाता है कि वह किसी भी जनम में प्राप्त हो सकता है जिसका उल्लेख आप वंशशास्त्र से कर सकते हैं क्योंकि जन्म के समय किसी भी प्रकार के कर्म के बिना भी जीव उच्च-नीच, अमीर-गरीब, स्वस्थ या अस्वस्थ होने के तौर पर प्राप्त करता है जिसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में जातक के जन्मकुंडली के पंचम या पंचमेष के आधार पर किया जा सकता है। कर्म का दूसरा भाग है प्रारब्ध। प्रारब्ध को अपने इसी जन्म में भोगना हेाता है अर्थात इसे उत्पति कर्म भी कहा जा सकता है जोकि व्यक्ति के जींस तय कर देते हैं कि उसका प्रारब्ध क्या होगा अर्थात् गर्भधारण के समय ही उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। प्रयत्न के बिना ही पैदा होते ही जो कुछ प्राप्त होता है या अप्राप्त रह जाता है वह प्रारब्ध होता है। कुंडली में प्रारब्ध केा नवम भाव या नवमेष से देखा जा सकता है। अब कर्म के तीसरे स्वरूप क्रियामाण को देखें। क्रियामाण अर्थात् जो वर्तमान में कर्म चल रहा है मतलब इसे हम पुरूषार्थ कह सकते हैं। भारतीय मान्यता है कि इंसान के 12 वर्ष अर्थात् कालपुरूष के भाग्य के एक चक्र के पूरा होने के उपरांत क्रियामाण का दौर शुरू हो जाता है जोकि जीवन के अंत तक चलता है। अब व्यक्ति की शिक्षा उसकी रूचि सामाजिक स्थिति पारिवारिक तथा निजी परिस्थिति पसंद नापसंद, प्रयास तथा उसमें सकारात्मक या नाकारात्मक सोच से व्यक्ति का क्रियामाण उसके जीवन को प्रतिकूल या अनुकूल स्थिति हेतु प्रभावित करता है अत: पुरूषार्थ या क्रियामाण कर्म ही संचित होकर प्रारब्ध बनता है अत: जीवन के सिर्फ कर्म के आधार पर नहीं वरन् कर्म और भाग्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है जोकि कुंडली के पंचम, नवम और दशम स्थान से देखा जाता है इसमें प्रयास का स्तर, मनोभाव या सहयोग कि स्थिति देखना भी आवश्यक होता है जोकि कुंडली के अन्य भाव से निर्धारित होता है अत: मानव जीवन में भाग्य का भी अहम हिस्सा होता है। खराब किस्मत को अनुकूल करने हेतु संबंधित ग्रहों की शांति कराना चाहिए। संबंधित ग्रहों कें मंत्रों का जाप, दान लाभकारी होता है।

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अमरनाथ: श्रद्धा और रोमांच की यात्रा

पहाड़, नदी, झरने, सफेद चमकती बर्फ, खूबसूरत घाटियां और बर्फ से जमी हुई नदियों से गुजरना। इतना ही काफी है अमरनाथ के सफर को बयां करने के लिए। हालांकि इस साल यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन फिलहाल बंद हो चुका है लेकिन जिन्होंने पहले ही रजिस्ट्रेशन करा लिया है उनकी यात्रा को बेहतर बनाने के लिए खास जानकारी दे रहे हैं।
कुल यात्रा: 30 किलोमीटर
तापमान: जबर्दस्त बर्फीली ठंड के साथ तापमान -5 डिग्री तक नीचे गिर सकता है। मौसम यहां पर जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। धूप भी तेज चुभने वाली निकलती है।
पवित्र गुफा की समुद्रतल से ऊंचाई : 13,000 फुट।
प्रैक्टिस: यात्रा से कम से कम 10 दिन पहले रोजाना 5 किलोमीटर तेज चलने की प्रैक्टिस करें। इससे यात्रा के दौरान थकान भी कम होगी और शरीर में दर्द की शिकायत भी नहीं होगी।जूते: बेहद ऊबड़-खाबड़ रास्तों के लिए हंटर शूज या फिर किसी अच्छे ब्रैंड के ट्रैकिंग शूज का ही चयन करें। शूज वॉटरप्रूफ हों। नॉर्मल शूज आपकी परेशानियों को कई गुना बढ़ा सकते हैं। स्लीपर या चप्पल का उपयोग बिल्कुल न करें।
कपड़े: अच्छी क्वॉलिटी के गर्म कपड़े, रेनकोट, छोटा छाता, वूलन मोजे (2-3 जोड़ी), दास्ताने और एक टॉर्च अपने साथ जरूर रखें। महिलाएं और लड़कियां साड़ी पहनकर यात्रा पर न जाएं। महिलाएं सलवार कमीज, पैंट-शर्ट या फिर ट्रैक सूट पहन सकती हैं।
मास्क: धूल से बचने के लिए एक मास्क भी साथ लेकर जाएं। हालांकि वहां पर भी मास्क मिल जाते हैं लेकिन उनकी क्वॉलिटी बहुत अच्छी नहीं होती ह
फोन सिम: अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने चार दिन के लिए प्रीपेड सिम कार्ड दिलाने की व्यवस्था की है। रजिस्ट्रेशन की पर्ची दिखाए बगैर सिम कार्ड नहीं मिल सकता है। यात्रा के दौरान बीएसएनएल प्रोस्टपेड कॉर्ड ही चलता है। सलाह है कि वहां पर सिम कार्ड खरीदने के भरोसे न रहें और बीएसएनएल का प्रोस्टपेड सिम कार्ड लेकर जाएं। कभी-कभी वहां का सिमकार्ड एक्टिवेट होने में कई दिन लग जाते हैं और आप अपने परिजनों से बात नहीं कर पाते।
कोल्ड क्रीम, वैसलीन: हमारी स्किन एकदम से बदलते मौसम को बर्दाश्त नहीं कर पाती, इसलिए जो लोग क्रीम आदि इस्तेमाल नहीं भी करते हैं उन्हें भी यहां पर इस्तेमाल करना चाहिए।
मेडिकल: अपने साथ बैग में ग्लूकोज, डिस्प्रिन, ईनो जैसे मेडिसिन जरूर साथ रखें। तबीयत खराब होने पर वहां के डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।
एक्स्ट्रा मोबाइल बैटरी: यात्रा के आधे रास्ते में ही मोबाइल बैट्री खत्म होना आम बात है। एक एक्स्ट्रा मोबाइल बैट्री रखें तो बेहतर है।

कैसे पहुंचें :
प्लेन: प्लेन से श्रीनगर पहुंच कर आगे का रास्ता बस से ही तय करना पड़ता है।
ट्रेन: दिल्ली से जम्मू के लिए कई ट्रेनें हैं। इससे आगे का सफर सड़क के जरिए ही तय होगा।
सड़क: सरकारी और प्राइवेट बसों, टैक्सी और कई बड़ी कारों के जरिए आप पहलगांव और बालटाल का सफर पूरा कर सकते हैं।
* सुरक्षा के लिहाज से इस बार आने और जाने का रास्ता तय कर दिया गया है। अगर अपने वाहन से जा रहे हैं तो शॉर्टकट के लिए भीतरी इलाकों की तरफ रुख न करें।
जम्मू से पहलगांव - 315 किमी
जम्मू से बालटाल - 400 किमी
हेलिकॉप्टर सेवा:
अगर हेलिकॉप्टर सेवा ले रहे हैं तो अडवांस बुकिंग करा लें। बुकिंग में दिन और वक्त मिल जाता है, हालांकि ज्यादा श्रद्धालु होने की वजह से लोगों को कई घंटे तक इंतजार करना पड़ता है।
हेलिकॉप्टर से एक तरफ का चार्ज :
बालटाल -
पंचतरणी: 1500 रुपये प्रति व्यक्ति
पहलगांव -
पंचतरणी : 2400 रुपये प्रति व्यक्ति
रास्ता नंबर 1
पहलगांव -16किमी - चंदनबाड़ी (यात्रा शुरू) - 3 किमी - िपस्सुटॉप--9 किमी - शेषनाग -12 किमी - पंचतरणी - 6किमी - पवित्र गुफा
रास्ता नंबर 2
बालटाल (यात्रा शुरू) - 2 किमी - डोमेन - 5 किमी - बरारी मार्ग - 4 किमी - संगम - 3 किमी - पवित्र गुफा
जम्मू-श्रीनगर के आसपास टूरिस्ट प्लेस :
डल झील
नगीना झील
शंकराचार्य मंदिर
मुगल गार्डन
रघुनाथ मंदिर
महादेव मंदिर
अमरनाथ में ऊंचाई पर यात्रा और मुश्किल रास्तों पर चल रहे यात्रियों की डाइट में न्यूट्रिशन को ध्यान में रखते हुए इस बार फूड मेन्यू संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इस मेन्यू को सभी भंडारे शिविरों में सख्ती से लागू किया गया है।

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बढ़ते सामाजिक अपराध का ज्योतिष कारक

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का एक सदस्य है और समाज के अन्य सदस्यों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्य उसके प्रति प्रक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रया उस समय प्रकट होती है जब समूह के सदस्यों के जीवन मूल्य तथा आदर्श ऊंचे हों, उनमें आत्मबोध तथा मानसिक परिपक्वता पाई जाए साथ ही वे दोषमुक्त जीवन व्यतीत करते हों। परिणाम स्वरूप एक स्वस्थ समाज का निमार्ण होगा तथा समाज में नागरिकों का योगदान भी साकारात्मक होगा। सामाजिक विकास में सहभागी होने के लिए ज्योतिष विश्लेषण से व्यक्ति की स्थिति का आकलन कर उचित उपाय अपनाने से जीवन मूल्य में सुधार लाया जा सकता है साथ ही लगातार होने वाले अपराध, हिंसा से समाज को मुक्त कराने में भी उपयोगी कदम उठाया जा सकता है। समाज और संस्कृति व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिमान होता है, जिसमें आवश्यक नियंत्रण किया जाना संभव हो सकता है। सामाजिक तौर पर व्यवहार को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक स्तर पर विद्यालय जिसमें स्कूल में बच्चों के आदर्श उनके शिक्षक होते हैं। शिक्षकों के आचरण व व्यवहार, रहन-सहन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके सौहार्दपूण व्यवहार से साकारात्मक और विपरीत व्यवहार से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है, जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी बच्चे की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल शिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्शाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर शिक्षा तथा शिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अत: मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेश अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।
से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है, जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी बच्चे की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल शिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्शाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर शिक्षा तथा शिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अत: मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेश अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।
उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अत: मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेश अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।


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जहां बरसते हैं कोड़े: अंधविश्वास



हम बहुत सी परम्पराओं, अंधविश्वासों को बिना कुछ विचार किये ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि आज के परिपेक्ष्य में इसकी कोई प्रासंगिकता है भी या नहीं इसके पीछे कोई तर्क संगत आधार है कि नहीं. कहीं अंधविश्वास का तो हम अनुपालन नहीं कर रहे हैं. हमारी बहुत सी मान्यताएं विज्ञान/आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं.यह हमारी बेडय़िाँ बन जाती हैं. समाज के विकास और प्रगति के लिए इन बेडिय़ों को तोड़ देना ही बेहतर होगा. एक गतिशील समाज को अपनी मान्यताओं / परम्पराओं की सार्थकता पर निरंतर विचार करते रहना चाहिए. जो मान्यताएं समय के अनुरूप हों, समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हों, उन्हें ही स्वीकृति मिलनी चाहिए आधारहीन परम्पराएं किस प्रकार अंधविश्वास का रूप ले लेती हैं।
रायसेन मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम बनगंवा में कई पीढिय़ों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है। जिसमें 25 फीट ऊपर खंबे पर बकरे को बांधकर 144 बार गोल घुमाया जाता है। इसके बाद ग्रामीण ही दोनों ओर निकली रस्सी पर दाएं-बाएं झूला झूलते हैं। फिर इन व्यक्तियों पर कोड़ा बरसाया जाता है। यह अनूठी परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
धुलेंड़ी (होली) की शाम पांच बजे से बाबा वीर बम्मोल की विशेष पूजा-अर्चना प्रत्येक वर्ष धुलेंड़ी के दिन ही की जाती है। इस पूजा-अर्चना में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण तो पहुंचते ही है और साथ-साथ अन्य जगहों से भी सैकड़ों लोग इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए आते है। इसी दिन बच्चों का मुंडन भी किया जाता है। इस विशेष पूजा में महिलाएं भी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित होती है। गांव के सरपंच मुन्नुलाल गौर ने बताया कि गांव में यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है।
इसी परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष
पड़वा पर ही यहां पर मेला भरता है और बाबा वीर बम्मोल की पूजा अर्चना की जाती है। वहीं गांव के निवासी शंकर ने बताया कि यह परंपरा हजारों साल से चल रही है। उसने बताया कि यह देवता है जिनकी वे पूजा-अर्चना करते हैं।
हजारों साल से चल रही है। उसने बताया कि यह देवता है जिनकी वे पूजा-अर्चना करते हैं।






Pt.P.S Tripathi
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हाथों में पर्वत विचार

हाथों में पर्वत विचार
प्राय: हथेली पर अंगुलियों के मूल मे,ं कलाई के ऊपर, अंगूठे के नीचे, कुछ उभरी हुई मांसपेशियां दिखायी देती हैं, हस्तरेखा विज्ञान में इन्हें पर्वत कहा जाता है। संरचना के अनुसार ये फु सफु से मांस पिण्ड होते हैं जिनमें रक्त और नाडिय़ों की कोशिकाओं का सूक्ष्म, सघन समूह विखरा होता है। प्रत्येक पर्वत मस्तिष्क के अलग-2 भागों से नाडिय़ों द्वारा सम्बन्धित रहता है, इस प्रकार वह अलग-2 मानसिक शक्तियों को प्रकट करता है।
सूर्य पर्वत- अनामिका के नीचे
चन्द्र पर्वत- कनिष्ठा के नीचे कलाई के ऊपर हथेली के भाग में
मंगल पर्वत- इसके दो स्थान है, प्रथम, शुक्र और गुरु के बीच, और दूसरा चन्द्र और बुध के बीच
बुध पर्वत- कनिष्ठा के नीचे गुरु पर्वत- तर्जनी के नीचे
शुक्र पर्वत- अंगूठे के नीचे
शनि पर्वत- मध्यमा के नीचे हथेली के बीच का भाग जो कि चारों ओर पर्वतों से घिरा होता है, इन पर्वतों के नाम विभिन्न ग्रहों के नाम पर सुविधा के दृष्टिकोण से रखे गये हैं, ये पर्वत सात हैं। हथेली में इनके विकसित अथवा अविकसित या किसी एक पूर्ण विकास के आधार पर भी कुछ विद्वान इन्हें सात वर्गों में विभाविजत करते हैं।
बुध पर्वत- कनिष्ठा के निम्न भाग में यह क्षेत्र स्थित होता है जिससे रोमांस, बौद्धिक क्षमता, प्रेम, परिवर्तन, यात्रा, आदि से सम्बन्धी विचार किये जाते हैं। हाथ अगर अनुकूल हो तो ये गुण शुभ फल देते हैं, अगर प्रतिकूल हो तो अशुभ फल को जानना चाहिए।
चन्द्र पर्वत- मंगल पर्वत के नीचे और शुक्र
पर्वत के विपरीत दिशा में चंद्र पर्वत होता है। यह कल्पना, आदर्श, कला साहित्य के प्रति लगाव आदि को प्रदर्शित करता है।
मंगल पर्वत- यह युद्ध में शौर्य की भावना, सक्रियता, साहस, भावना आदि प्रदान करता है। यदि यह क्षेत्र ज्यादा उन्नत युक्त होगा तो व्यक्ति में लड़ाई, झगड़े की भावना उत्पन्न करता है यह शुक्र पर्वत के बगल में होता है। दूसरा चन्द्र और बुध के मध्य पाया जाता है जो कि निश्चित साहस, आत्मनियन्त्रण, निराशा और गलती के विरोध की क्षमता का सूचक है।
सूर्य पर्वत- यह क्षेत्र अनामिका के आधार में स्थित होता है, यदि यह क्षेत्र विकसित होगा तो व्यक्ति को कला के प्रति सफ लता प्रदान करता है। साहित्य, कविता, संगीत तथा आदर्श एवं उच्च विचारों के प्रति रुचि एवं सफलता प्राप्त होती है।
गुरु पर्वत- तर्जनी के मूल में जो उभार दिखायी देता है वह गुरुपर्वत है। गुरु पर्वत उन्नत होने पर व्यक्ति में महत्वाकांक्षा और गर्व की भावना अधिक होती है। उत्साह एवं शान्ति की कामना का यह सूचक है, यदि व्यक्ति के हाथ में अविकसित होगा तो धार्मिक भावना में कमी बड़ों के प्रति अश्रद्धा तथा अधिक विकसित होने पर व्यक्ति में अहंकार उत्पन्न होता है।
शुक्र पर्वत- यह क्षेत्र अंगूठे के मूल स्थान के नीचे स्थित होता है। यह असामान्य ढंग से विकसित होने पर व्यक्ति की इच्छा, कला,
भावनात्मक सम्बन्ध, सौन्दर्य पुजारी के रुप में जाना जाता है। यह पर्वत हाथ में सबसे महत्वपूर्ण रक्त कोश बनाता है जो हथेली का बड़ा विकास है। यदि शुक्र पर्वत सुविकसित होगा तो स्वास्थ्य उत्तम रहता है यही क्षेत्र छोटा अथवा सामान्य से कम होने पर या अविकसित होने पर स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तथा काम शक्ति की भी कमी होती है। यदि यह क्षेत्र अधिक विकसित या उभरा होगा तो वह स्त्री/पुरुष-विपरीत लिंग के प्रति कामोन्माद प्रकट करता है तथा सौंदर्य के प्रति रुचि होती है ऐसे जातक के चरित्र को भी संदेह की नजर से देखा जाता है।
शनि पर्वत- यह पर्वत मध्यमा के मूल में होता है, यह अधिक विकसित होने से कार्य के प्रति रुचि एवं क्षमता उत्पन्न करता है, दोषयुक्त शनि पर्वत इसके विपरीत परिणाम देता है। यह शान्ति कार्य के प्रति लगाव, एकान्तवास तथा धन आदि के बारे में जानकारी देता है।

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निष्पाप जीवन का रहस्य



एक सज्जन ने एकनाथ से पूछा, ''महाराज, आपका जीवन कितना सीधा-साधा और निष्पाप है! हमारा जीवन ऐसा क्यों नहीं? आप कभी किसी पर गुस्सा नहीं होते। किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं, टंटा-बखेड़ा नहीं। कितने शांत, कितने प्रेमपूर्ण, कितने पवित्र हैं आप!
एकनाथ ने कहा, ''अभी मेरी बात छोड़ो। तुम्हारे संबंध में मुझे एक बात मालूम हुई है। आज से सात दिन के भीतर तुम्हारी मौत आ जायेगी|
एकनाथ की कही बात को झूठ कौन मानता! सात दिन में मृत्यु! सिर्फ 168घंटे बाकी रहे! हे भगवान! यह क्या अनर्थ वह मनुष्य जल्दी-जल्दी घर दौड़ गया। कुछ सूझ नहीं पड़ता था। आखिरी समय की, सब कुछ समेट लेने की, बातें कर रहा था। वह बीमार हो गया। बिस्तर पर पड़ गया। छ: दिन बीत गये। सातवें दिन एक नाथ उससे मिलने आये। उसने नमस्कार किया। एकनाथ ने पूछा, ''क्या हाल है?
उसने कहा, ''बस अब चला! नाथजी ने पूछा, ''इन छ: दिनों में कितना पाप किया? पाप के कितने विचार मन में आये? वह मरणासन्न व्यक्ति बोला, ''नाथजी, पाप का विचार करने की तो फुरसत ही नहीं मिली। मौत एक-सी आंखों के सामने खड़ी थी। नाथजी ने कहा, ''हमारा जीवन इतना निष्पाप क्यों है, इसका उत्तर अब मिल गया न? मरणरुपी शेर सदैव सामने खड़ा रहे, तो फिर पाप सूझेगा किसे?

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थायरायड रोग और उसके ज्योतिष लक्षण

थायरायड ग्रंथि गर्दन के सामने की ओर,श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों तरफ दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली की तरह होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है। जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
थायरायड मानव शरीर मे पायी जाने वाली सबसे बड़ी एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन के सामने की ओर,श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों तरफ दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली की तरह होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है। जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है। आइये जानते हैं कि आखिर थायरायड के कार्य क्या होते हैं और इस बीमारी के लक्षण क्या हैं? थायरायड ग्रंथि के कार्य, शरीर से दूषित पदार्थों को बाहर निकालने में सहायता करती है। बच्चों के विकास में इन ग्रंथियों का विशेष योगदान होता है। यह शरीर में कैल्शियम एवं फास्फोरस को पचाने में मदद करता है। इसके द्वारा शरीर के टम्प्रेचर को नियंत्रण किया जाता है। कोलेस्ट्रॉडल लेवल का नियंत्रित करना, प्रजनन और स्तनपान, मांसपेशियों के विकास को बढ़ावा देता है ।
हायपोथायराडिज्म- थायरायड ग्रंथि से अगर थाईराक्सिन कम बनने लगे तो उसे 'हायपोथायराडिज्मÓ कहते हैं। इस से निम्न रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं -
* शारीरिक व मानसिक विकास धीमा हो जाता है।
* इसकी कमी से बच्चों में क्रेटिनिज्म नामक रोग हो जाता है।
* 12 से 14 साल के बच्चे की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है।
* शरीर का वजन बढऩे लगता है एवं शरीर में सूजन भी आ जाती है।
* सोचने, बोलने की क्रिया धीमी हो जाती है।
* शरीर का ताप कम हो जाता है, बाल झडऩे लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है।
हाइपरथायरायडिज्म- इसमें थायराक्सिन हार्मोन अधिक बनने लगता है। ये असमान्य अवस्थाएं किसी भी आयु वाले व्यक्ति में हो सकती है तथापि पुरुषों की तुलना में पांच से आठ गुणा अधिक महिलाओं में यह बीमारी होती है। इससे निम्न रोग लक्षण उत्पन्न होते हैं।
* शरीर में आयोडीन की कमी हो जाती है।
* घेंघा रोग उत्पन्न हो जाता है।
* शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है।
* अनिद्रा, उत्तेजना तथा घबराहट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
* शरीर का वजन कम होने लगता है।
* कई लोगों की हाथ,पैर की अंगुलियों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है।
* मधुमेह रोग होने की प्रबल सम्भावना बन जाती है।
थायरायड की जांच- थायरायड बीमारी को जांचने के लिये कुछ परीक्षण किये जाते हैं जैसे, टी3, टी4, एफटीआई, तथा टीएसएच। इन परीक्षणों से थायरायड ग्रंथि की स्थिति का पता चलता है। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि आयोडीन की कमी के लक्षण दिखने पर ही जांच के लिए आना चाहिए, जबकि कई दूसरे मानते हैं कि कई बार लक्षण पहचान में ही नहीं आते। इन डॉक्टरों की राय है कि तीस साल से अधिक की उम्र में गर्भ धारण करने वाली हर महिला को थाइरॉयड की जांच करानी चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र अनुसार थाईराईड का कारण- लग्रेश या द्वीतियेश का छटवा, आठवा या 12वां स्थान पर बैठा हो तो थायराईड रोग का कारण बनता है। साथ ही यदि लग्नेश या द्वीतियेश अपने स्थान से छटवें, आठवे या 12वें हों अथवा क्रूर ग्रहों से आक्रंत हों, तो भी थायराईड की बीमारी लग सकती है। थायराईड की बीमारी की मुक्ती के लिए ज्योतिषीय उपाय हेतु लग्रेश या द्वीतियेश की शांति कराना, संबंधित ग्रहों का दान करना, मंत्र जाप करना, धनिया का सेवन करना।

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