वैदिक काल से मान्यता है कि किसी भी मानव के जीवन में पितृ ऋण, देव ऋण, आचार्य ऋण, मातृऋण के कारण जीवन में असफलता तथा हानि बीमारी का सामना करना पड़ता है। माना जाता है कि इंसान को अपनी जिंदगी में कर्ज, फर्ज और मर्ज को कभी नहीं भूलना चाहिए। जो भी इनको ध्यान में रखते हुए अपना कर्म करता है वह जीवन में बहुत कम असफलता का सामना करता है। किसी व्यक्ति को पूर्वजों के दुष्कर्मो, अपने पूर्व जन्मों के कर्म तथा वर्तमान जीवन के पापकर्म के कारण कई प्रकार ऋणों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उसके जीवन में सुखों के कारण बाधा, कार्य में असफलता, बीमारी का सामना करना पड़ता है। जीवन में किस प्रकार के ऋण से व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार की हानि संभव है इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से किया जाना संभव है। जिसमें प्रमुख बनते हैं, कार्य में रूकावट, दुखों की प्राप्ति निराशा, मानहानि, बरकत में कमी आदि हो तो मनुष्य पितृ ऋण से प्रभावित मानी जाती है। जिसका ज्योतिष प्रभाव कुंडली के दूसरे, तीसरे, आठवे या भाग्य स्थान में शनि राहु से आक्रांत हो तो पितृ ऋण के कारण व्यक्ति अपने जीवन में दुखों का सामना करता है। पितृऋण से राहत हेतु अज्ञात पितृ निवारण उपाय करना चाहिए जिसमें नागबलि, नारायण बलि तथा रूद्राभिषेक तथा सभी संबंधी मिलकर दान करें तो इस ऋण से राहत मिलती है। आचार्य-ऋण होतो व्यक्ति नास्तिक होता है, रीतिरिवाजों को नहीं मानता। ऐसा व्यक्ति स्वयं के बल पर सभी सुखों को प्राप्त करने के उपरांत आकस्मिक हानि तथा भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। इसका परिचय कुंडली के पंचम स्थान में नीच का सूर्य राहु से आक्रांत हो या पंचमेष विपरीत हो तो यह ऋण दृष्टिगोचर होता है। इससे राहत हेतु नियम से सूर्य नमस्कार तथा सभी भाईबंधु मिलकर गरीबो को आहार का दान करना लाभकारी होता है। मातृऋण माता को किसी प्रकार से कष्ट होने पर जीवन में मातृऋण का सामना जरूर करना पड़ता जिसमें मृत्युतुल्य कष्ट, हानि तथा बीमारी का सामना करना पड़ता है इससे राहत हेतु व्यक्ति को माता का यथावत् सम्मान करते हुए किसी बहते पानी में सफेद वस्तु प्रवाहित करना चाहिए। स्त्रीऋण से प्रभावित जातक के घर में संतान का अभाव या संतान से कष्ट का योग बनता है जिसमें दूसरे या सातवें घर में सूर्य, चंद्रमा का राहु से पीडित होना है जिससे राहत हेतु स्त्रीजाति की सेवा तथा सहायता करना एवं गाय को आहार तथा सेवा करना प्रमुख है। देव ऋण किसी जातक के संतान का नाश होना या वंश का बाधित होना या संतान का किसी भी प्रकार से अपूर्ण हेाना देव ऋण का द्योतक होता है, जिसका पता कुंडली के छठवे स्थान में चंद्रमा या मंगल का केतु से पीडित होना बताता है जिससे राहत हेतु जीवों की सेवा, विधवा की सहायता कर राहत पाया जा सकता है। इस प्रकार जीवन में किसी भी प्रकार से सुखों में बाधा आ रही हो तो अपने ऋण के संबंध में ज्ञात होकर उसकी शांति तथा उपाय कर जीवन में सुख तथा सफलता प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे नारायणबलि, नागबलि, पितृतर्पण, देवतर्पण, दानादि कर्म करना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म जीवों की सेवा, जिसमें गाय को चारा अमावस्या के दिन देना, कुत्तों का भोजन प्रत्येक शनिवार को देना या चि_ी या चिडिय़ा, कौओं को दाना डालना जीवन में सुख तथा समृद्धि का रास्ता प्रशस्त करता है।
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions
No comments:
Post a Comment