Thursday 30 April 2015

उत्पन्ना एकादषी



उत्पन्ना एकादषी -
उत्पन्ना एकादषी का व्रत मार्गषीर्ष माह की कृष्णपक्ष की एकादषी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। एकादषी का व्रत रखने वाले दषमी के सूर्यास्त से भोजन नहीं करते। एकादषी के दिन ब्रम्हबेला में भगवान कृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगता है। यह ब्रम्हा, विष्णु, महेष त्रिदेवों का संयुक्त अंष माना जाता है। यह अंष दत्तात्रेय के रूप् में प्रकट हुआ था। यह मोक्ष देने वाला वत्र माना जाता है।
कथा -
सत्ययुग में एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र को अपदस्थ कर दिया। देवता भगवान शंकर की शरण में पहुॅचे। भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णु जी के पास भेज दिया। विष्णु जी ने दानवों को तो परास्त कर दिया परंतु मूर भाग गया। विष्णु ने देखा कि मूर दैत्य डरकर भाग गया है तो वे बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे। मूर ने ऐसा जानकर विष्णु को मारना चाहा। विष्णुजी आराम की मुद्रा में थे तत्काल उनके शरीर से एक कन्या का अवतरण हुआ और उसने मूर को मार डाला। विष्णुजी ने कन्या से परिचय जानना चाहा तब कन्या ने कहा कि मैं आपके शरीर से उत्पन्न शक्ति हूॅ। विष्णुजी ने प्रसन्न होकर कन्या का नाम एकादषी रखा था आर्षीवाद दिया कि तुम संसार में मायाजाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होंगी। तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे। यही कन्या के नाम पर एकादषी का व्रत किया जाता है। सभी एकादषियों में उत्पन्ना एकादषी का महत्व अपूर्व है क्योंकि विष्णुजी के शरीर से उत्पन्न यही एकादषी मानी जाती है। इसलिए इसका नाम भी उत्पन्ना एकादषी कहा जाता है।



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