Wednesday, 6 May 2015

रेखाएं:




रेखाएं:
1 हस्तकला में हाथ की रेखाओं 1: जीवन रेखा - 2: मस्तिष्क रेखा - 3: दिल की रेखा - 4: सूचक और मध्यम उंगलियों के बीच के कटिसूत्र वीनस - 5: सूर्य रेखा - 6: बुध रेखा - 7: भाग्य रेखा
लगभग सभी हाथों में तीन रेखाएं पाई जाती हैं और आम तौर पर हस्तरेखाविद् इन पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं.
बड़ी रेखाओं में हृदय रेखा को हस्तरेखाविद् पहले जांचता है. यह हथेली के ऊपरी हिस्से और उंगलियों के नीचे होती है. कुछ परंपराओं में, यह रेखा छोटी उंगली के नीचे हथेली के किनारे से और अंगूठे की तरु पूरी हथेली तक पढ़ी जाती है.दूसरों में, यह उंगलियों के नीचे शुरू होती है और हथेली के बाहर के किनारे की ओर बढ़ती देखी जाती है. हस्तरेखाविद् इस पंक्ति की व्याख्या दिल के मामलों के संबंध में करते हैं, जिसमें शारीरिक और लाक्षणिक दोनों शामिल होते हैं और विश्वास किया जाता है कि दिल की सेहत के विभिन्न पहलुओं के अलावा यह भावनात्मक स्थिरता, रुमानी दृष्टिकोण, अवसाद व सामाजिक व्यवहार प्रदार्शित करती हैं.
हस्तरेखाविद् द्वारा की पहचान की जाने वाली अगली रेखा मस्तिष्क रेखा होती है. यह रेखा तर्जनी उंगली के नीचे से शुरू होकर हथेली होते हुए बाहर के किनारे की ओर बढ़ती है. अक्सर मस्तिष्क रेखा शुरुआत में जीवन रेखा के साथ जुड़ी होती है (नीचे देखें). हस्तरेखाविद् आम तौर पर इस रेखा की व्याख्या व्यक्ति के मन के प्रतिनिधि कारकों के रूप में करते हैं और जिस तरह से यह काम करती है, उनमें सीखने की शैली, संचार शैली, बौद्धिकता और ज्ञान की पिपासा भी शामिल होती है. माना जाता है कि यह सूचना के प्रति रचनात्मक या विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की प्राथमिकता (यानी, दाहिना दिमाग या बांया दिमाग) का संकेतक होती है.
अंत में, हस्तरेखाविद् संभवत: सबसे विवादास्पद रेखा-जीवनरेखा को देखते हैं.
यह रेखा अंगूठे के ऊपर हथेली के किनारे से निकलती है और कलाई की दिशा में मेहराब की शक्ल में बढ़ती है. माना जाता है कि यह रेखा व्यक्ति की ऊर्जा और शक्ति, शारीरिक स्वास्थ्य और आम खुशहाली का प्रतिनिधित्व करती है. ऐसा भी माना जाता है कि जीवन रेखा दुर्घटनाओं, शारीरिक चोट, पुनर्स्थापन सहित जीवन में आने वाले बदलावों को प्रतिबिंबित करती है. आम धारणा के विपरीत, आधुनिक हस्तरेखाविद् आम तौर पर यह विश्वास नहीं करते कि एक व्यक्ति की जीवन रेखा की लंबाई के व्यक्ति की उम्र से जुड़ी हुई है.
अतिरिक्त मुख्य रेखाओं या रूपों में शामिल हैं:
एक बंदर रेखा (क्रीज) या दिल और मुख्य रेखा का मिलनस्थल का भावनात्मक और तार्किक प्रकृति दोनों के अध्ययन में अकेले इस रेखा का खास महत्व है. इस अजीब रेखा को सिर और दिल की रेखा का संयोजन माना जाता है और ऐसे हाथ को बाकी हाथों से अलग चिह्नित किया जाता है.
हस्तरेखाशास्त्र के अनुसार, यह रेखा एक व्यक्ति को उद्देश्य की तीव्रता या किसी उद्देश्य के प्रति एकाग्रता प्रदान करती है, जिसका स्वभाव हाथ पर इस रेखा की सही स्थिति और इससे निकलनेवाली किन्हीं शाखाओं से निर्धारित होती है, जो एक सामान्य मामला होता है. उन हाथों में, जिनमें ऐसी रेखा बिना किसी शाखा के एकल चिह्न के रूप में मौजूद होती है, वह अत्यंत गहन प्रकृति की ओर संकेत करती है और व्यक्तियों की विशेष देखभाल की जरूरत होती है. इस रेखा की सामान्य स्थिति सबसे बड़ी उंगली के नीचे शुरू होती है और सामान्य रूप से वहां समाप्त होती है, जहां दिल की रेखा छोटी उंगली के नीचे हाथ के किनारे खत्म होती है, इससे व्यक्ति के औसत हितों का संकेत मिलता है और स्वभाव की गहनता विशुद्ध रूप से यहां से निकलनेवाली किन्हीं शाखाओं की दिशा से निर्धारित होती है. हथेली के ऊपरी आधे हिस्से, जो उंगलियों तुरंत नीचे होता है, व्यक्ति के उच्चतर या बौद्धिक स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है और हथेली के निचला आधा हिस्सा व्यक्ति के स्वभाव के भौतिकवादी पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है. अगर इन आधे-आधे हिस्सों में से एक बड़ा होता है, जो मुख्य रेखा की केंद्रीय स्थिति या इस मामले में एकल अनुप्रस्थ हथेली रेखा से निर्धारित होता है, व्यक्ति के स्वभाव के व्यापक विकास के पहलू को प्रदर्शित करता है. हालांकि यह एक आम सिद्धांत है कि अगर यह रेखा अपनी सामान्य स्थिति से नीचे होती है तो इससे गहन बौद्धिक स्वभाव का संकेत मिलता है, पर अगर यह अपनी सामान्य स्थिति से ऊपर होती है, तो घोर भौतिकवादी प्रकृति और हितों को दर्शाता है. इस रेखा से निकली किन्हीं शाखाओं की दिशा का इस रेखा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जिससे ऊपर परिभाषित परिणामों से उपयुक्त संशोधन होते हैं और यह हाथ के उभार की प्रकृति पर आधारित होता है. उदाहरण के लिए, यदि इस रेखा से एक शाखा अंगूठे के बिल्कुल विपरीत चंद्रमा के उभार पर हाथ के निचले किनारे की ओर बढ़ती है तो यह संकेत करता है कि व्यक्ति भावुक स्वभाव और काफी हिचकिचानेवाला है.
भाग्य रेखा कलाई के पास हथेली के निचले हिस्से से शुरू होती है और हथेली के केन्द्र से होते हुए मध्य उंगली की ओर जाती है. माना जाता है कि यह रेखा स्कूल और कैरियर के चयन, सफलताओं और बाधाओं सहित व्यक्ति के जीवन-पथ से जुड़ी होती है. कभी कभी माना जाता है कि यह रेखा व्यक्ति के नियंत्रण, या एकांतर रूप में व्यक्ति की पसंद और उनके परिणामों से परे परिस्थितियों को प्रतिबिंबित करती है.
मंगल नकारात्मक हस्तकला बृहस्पति, शनि, अपोलो, बुध, मंगल सकारात्मक, मार्स नेगटिव, प्लेन ऑफ़ मार्स, लुना माउंट, नेपच्यून माउंट, वेनस माउंट
अन्य छोटी रेखाएं:
सूर्य रेखा - भाग्य रेखा के समानांतर अंगूठी वाली उंगली के नीचे स्थित यह रेखा यश या घोटाले की ओर इंगित करती है.
सूचक और मध्यम उंगलियों के बीच के कटिसूत्र वीनस - छोटी और अंगूठी वाली उंगलियों के बीच से शुरू होने वाली रेखाएं अंगूठी वाली उंगलियों और मध्य उंगली के बीच मेहराबनुमा आकार से गुजरती है और मध्य और अंगूठी वाली उंगलियों के बीच खत्म होती है और माना जाता है कि ये भावुक खोजी बुद्धि और हेराफेरी की क्षमता से संबंधित होती है.
संघीय रेखाएं - ये छोटी क्षैतिज रेखाएं दिल की रेखा और छोटी उंगली के अंत के बीच में होती हैं और माना जाता है कि ये कभी-कभी, लेकिन हमेशा नहीं- रोमांटिक करीबी रिश्तों की ओर इशारा करती हैं.
बुध रेखा - यह कलाई के पास हथेली के नीचे से शुरू होती है और हथेली होते हुए छोटी उंगली की ओर जाती है माना जाता है कि यह स्वास्थ्य के मुद्दों व्यापार बुद्धि, या संचार में कौशल की ओर इंगित करती हैं.
यात्रा रेखा - ये क्षैतिज रेखाएं कलाई और दिल की रेखा के बीच हथेली के किनारे को छूती है, प्रत्येक रेखा व्यक्ति की यात्रा की बारंबारता को दर्शाती है यानी अगर रेखा लंबी होगी तो व्यक्ति की यात्रा भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगी.
अन्य चिह्न - इनमें नक्षत्र, पार, त्रिकोण, वर्गाकृतियां, त्रिशूल, और प्रत्येक उंगलियों के छल्ले शामिल होते हैं, माना जाता है कि हथेली की स्थितियों के आधार पर उनके प्रभाव और अर्थ अलग-अलग होते हैं और हस्तक्षेप करने वाली रेखाओं से मुक्त होती हैं.
"अपोलो रेखा"- अपोलो रेखा का मतलब है एक भाग्यशाली जीवन, यह चंद्रमा के उभार से चलकर अपोलो उंगली के नीचे कलाई तक जाती है.
"अशुभ लाइन" - यह जीवन रेखा को पार कर अंग्रेजी के 'एक्स' के रूप में होती है; यह बहुत बुरा संकेत है और हस्तरेखाविद अक्सर इसका उल्लेख नहीं करते, क्योंकि इस अशुभ रेखा के बारे में बताने से व्यक्ति चिंतित हो जाता है. अशुभ लाइन के आम संकेतक में अन्य लाइनों से मिलकर बना 'रू' आकार शामिल होता है.
हाथ की उंगलियां एवं हथेली में स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत व्यक्ति के विचारों एवं भावनाओं को दर्शाते हैं। मनुष्य के विचार एवं भावनाएं सत्व, राजस एवं तमस गुणों का मिश्रण होते हैं। सत्व गुण की मुख्य विशेषता ज्ञान एवं सहनशीलता है। अन्य विशेषताएं करुणा, विश्वास, प्रेम, आत्म-नियंत्रण, समझ, शुद्धता धैर्य, और स्मृति हैं। राजस की मुख्य विशेषता गतिविधि एवं प्रवृत्ति है। अन्य विशेषताएं महत्वाकांक्षा, गतिशीलता, बेचैनी, जल्दबाजी, क्रोध, ईर्ष्या, लालच, और जुनून है। तमोगुण की मुख्य विशेषता है जड़ता या मूढ़ता। अन्य विशेषताएं सोच या व्यवहार, लापरवाही, आलस, भुलक्कड़पन, हिंसा और आपराधिक विचार हैं।
मनुष्य के विचारों में किस गुण की प्रधानता है इसका निर्धारण उस मनुष्य की हाथ के हथेलियों मे स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत एवं उंगलियों को देखकर किया जा सकता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार हाथ की हथेली को मुख्यत: तीन भागों मे विभाजित किया जाता है। ये तीन भाग सत्व, राजस एवं तमस गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हथेली के अग्र भाग मे स्थित गुरु, शनि, सूर्य एवं बुध के पर्वत जो कि क्रमश: तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनीष्टिका उंगलियों के ठीक नीचे स्थित होते हैं। मनुष्य के सात्विक गुणों को दर्शाते है। मंगल का उच्च पर्वत एवं मंगल का निम्न पर्वत जो हथेली के मध्य भाग में स्थित होते हैं राजसिक तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुक्र एवं चंद्रमा के पर्वत हथेली के निचले भाग मे स्थित होते हैं। ये मनुष्य के तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस ग्रह का पर्वत जितना उभरा हुआ होगा व्यक्ति में उस ग्रह से संबन्धित गुण उतने ही अधिक होंगे।
हाथ की उंगलियों में सत्व, राजस एवं तमस गुण क्रमश उंगली के ऊर्ध्व, मध्य एवं निम्न भाग दर्शाते हैं। उंगलियों के ये भाग अंग्रेजी में फैलैंगक्स के नाम से जाने जाते हैं। व्यक्ति थ की हथेलियों एवं उंगलियां को देखकर उसके व्यक्तित्व, आचार, विचार एवं व्यवहार के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है।उंगलियों का निचला भाग जो कि हथेली से जुड़ा हुआ होता है व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है। यह भाग व्यक्ति के भौतिक, आर्थिक स्तर, उसके खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक स्तर आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। उंगली के इस भाग से शरीर एवं बुद्धि के सामंजस्य का अध्ययन किया जाता है। उंगलियों का मध्य भाग व्यक्ति की व्यावहारिकता एवं उसके आस-पास के वातावरण से उसके सामंजस्य का आभास होता है। उंगली के इस भाग से व्यक्ति के कार्य क्षेत्र एवं व्यवसाय के बारे में भी जानकारी मिलती है। उंगलियों के ऊर्ध्व भाग से व्यक्ति की नियमबद्धता, दूरदर्शिता, कार्यकुशलता, सदाचरण एवं नैतिक मूल्यों का पता चलता है।
जिन व्यक्तियों की उंगलियों के तीनों भाग बराबर होते हैं उनका व्यक्तित्व आमतौर पर संतुलित होता है। जब एक व्यक्ति की उंगलियों के ऊर्ध्व एवं मध्य भाग बराबर होते हैं तब उस व्यक्ति की संकल्प शक्ति एवं निर्णय लेने की क्षमता मे सामंजस्य होता है। यदि ऊर्ध्व भाग अन्य दो भागों से बड़ा होता है तो संकल्प शक्ति की कमी का कारण व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति में कमी पाता है। संकल्प शक्ति की कमी के कारण सही निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है एवं व्यक्ति अपनी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सही निर्णय नहीं ले पाता है।
यदि उंगलियों का मध्य भाग अन्य दो भागों से अधिक लंबा है तो व्यक्ति की तार्किक क्षमता एवं बौद्धिक क्षमता प्रबल होती है। परंतु उसकी संकल्प शक्ति एवं कार्य के प्रति एकाग्रता मे कमी कारण सफलता मिलने मे देरी हो सकती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की सफलता देखकर ईर्ष्या की भावना से भी ग्रस्त हो सकते हैं। क्योंकि बुद्दिमत्ता में अन्य व्यक्तियों से कम न होने पर भी वे उनके जीतने सफल नहीं होते हैं। परंतु इसका प्रमुख कारण यह है कि उनकी संकल्प शक्ति एवं इच्छा शक्ति मे कमी है और इसे केवल मेहनत एवं कठिन परिश्रम से ही जीता जा सकता है।
यदि उंगलियों का निम्न भाग अन्य दो भागों से अधिक लंबा होता है तो आप विवेक पूर्ण एवं परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने में समर्थ हैं। ऐसे व्यक्ति भावुक प्रकृति के होते हैं। वे अपना समय, पैसा एवं सलाह जरूरतमंदों के लिए खर्च करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इसके लिए यदि उन्हे आलोचना भी सहनी पड़े तो वे उसके लिए तैयार रहते हैं।
हाथ की उंगलियों की स्थिति जिस व्यक्ति की पूर्ण रूप से व्यस्थित होती है वे व्यक्ति जीवन में बहुत सफल होते हैं। लंबी एवं पतली उंगलियों वाले व्यक्ति भावुक होते हैं जबकि मोटी उंगलियों वाले व्यक्ति मेहनती होते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां कोण के आकार की होती हैं वे अत्यधिक संवदेनशील होते हैं तथा अपनी वेषभूषा एवं सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां ऊपर से नुकीली होती हैं वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनकी कल्पना शक्ति अद्भुत होती है। स्वभाव से ये नम्र होते हैं।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500

Feel Free to ask any questions in


हस्तरेखा में बाएं और दाएं हाथ का महत्व:



हस्तरेखा में बाएं और दाएं हाथ का महत्व:
यद्यपि इस बात पर बहस होती रही है कि कौन सा हाथ पढऩा बेहतर है, पर दोनों का अपना महत्व है. बांया हाथ संभावनाओं को प्रदर्शित करता है और दाहिना सही व्यक्तित्व का प्रदर्शन होता है. दाहिने हाथ से भविष्य और बाएं से अतीत देखा जाता है. बायां हाथ बताता है कि हम क्या-क्या लेकर पैदा हुए हैं और दाहिना दिखाता है कि हमने इसे क्या बनाया है. बांया हाथ बताता है कि ईश्वर ने आपको क्या दिया है, और दायां बताता है कि आपको इस संबंध में क्या करना है.
वाम हाथ को दाहिने मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होने को लिए छोड़ दें, (नमूने की पहचान, संबंधों की समझ-बूझ) जिससे व्यक्ति की आंतरिक खासियतों, उसकी प्रकृति, आत्म, स्त्रैण गुण, और समस्याओं के निदान का सोच प्रतिबिंबित होता है. इसे एक व्यक्ति के आध्यात्मिक और व्यक्तिगत विकास का एक हिस्सा माना जा सकता है. यह व्यक्तित्व का स्त्रैण और ग्रहणशील हिस्सा है.
इसके विपरीत दाहिना हाथ बाईं मस्तिष्क (तर्क, बुद्धि और भाषा) द्वारा नियंत्रित होता है, जो बाहरी व्यक्तित्व, आत्म उद्देश्य, सामाजि• माहौल का प्रभाव, शिक्षा और अनुभव को प्रतिबिंबित करता है. यह रैखिक सोच का प्रतिनिधित्व करता है. यह व्यक्तित्व के पुरुष और जावक से मेल खाता है.
हाथ का आकार:
हस्तरेखा शास्त्र और उन्हें पढऩे के प्रकार के आधार पर हस्तरेखाविद् हथेली की आकृति और उंगलियों की लाइनों, त्वचा के रंग और बुनावट, नाखूनों की बनावट, हथेली और उंगलियों की अनुपातिक आकार, पोरों की प्रमुखता और हाथ की कई अन्य खासियतों को देख सकते हैं. हस्तरेखा शास्त्र की अधिकांश धाराओं में हाथ की आकृतियों को 4 या 10 प्रमुख शास्त्रीय प्रकारों में विभाजित किया जाता है और कभी कभी इसके लिए शास्त्रीय तत्वों या विशेषताओं का सहारा भी लिया जाता है. हाथ का आकार संकेतित प्रकार के चरित्र के लक्षणों यानि, 
1. अग्नि हाथ-उच्च ऊर्जा, रचनात्मकता, चिड़चिड़ापन, महत्वाकांक्षा, आदि - सभी गुणों को अग्नि के शास्त्रीय तत्व से संबंधित माना जाता है. अग्नि हाथ में चौकोर या आयताकार हथेली, लाल या गुलाबी त्वचा और उंगलियां छोटी होती हैं. कलाई से हथेली की उंगलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लंबाई आमतौर पर उंगलियों की लंबाई से बड़ी होती है.
2. पृथ्वी हाथ- की पहचान आम तौर पर चौड़ी, वर्गाकार हथेलियों और उंगलियों या मोटी या खुरदरी त्वचा, लाल रंग के तौर पर होती है कलाई से हथेली की उंगलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लंबाई आमतौर पर हथेली के सबसे चौड़े हिस्से की चौड़ाई से कम होती है और आम तौर पर उंगलियों की लंबाई के बराबर होती है.
3. वायु हाथ- वर्गाकार या आयताकार हथेली व लंबी उंगलियां होती हैं और साथ ही साथ कभी-कभी उभरे हुए पोर, छोटे अंगूठे और अक्सर त्वचा सूखी होती है. कलाई से हथेली की उंगलियों के नीचे करने के लिए लंबाई आमतौर पर उंगलियों की लंबाई से कम है.
4. जल हाथ- देखने में छोटे होते हैं और कभी-कभी अंडाकार हथेली वाले, लंबी व लचीली उंगलियों वाले होते हैं. कलाई से हथेली की उंगलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लंबाई आमतौर पर हथेली के सबसे चौड़े हिस्से की चौड़ाई से कम होती है और आम तौर पर उंगलियों की लंबाई के बराबर होती है.
स्वयं अपनी हथेली में प्रभुत्व वाले तत्व तथा प्रकृति निर्धारित करना सहज है। हाथ के आकार के विश्लेषण में रेखाओं की संख्या और पंक्तियों की गुणवत्ता भी शामिल की जा सकती है. हस्तरेखा शास्त्र की कुछ परंपराओं में, पृथ्वी और जल हाथों में कम और गहरी रेखाएं होती हैं, जबकि वायु और अग्नि हाथ में और अधिक रेखाएं दिख सकती हैं, जिनमें कम स्पष्ट परिभाषा होती है.



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500

Feel Free to ask any questions in

future for you astrological news panchang 06 05 2015

उँगलियों पर बने शंख का महत्व .....



उँगलियों पर बने शंख का महत्व ................
किसी व्यक्ति के भविष्य का फल कथन करते समय उसकी हथेली में विद्यमान विभिन्न रेखाओं, यवों, चिह्नों आदि का गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।
सिद्ध हो चुका है कि हथेलियों की रेखाओं में कुछ रहस्य छिपे होते हंै। ये रेखाएं मनुष्य की आंतरिक स्थिति और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सचित्र लिपि होती हैं जिन्हें पढ़कर जातक से संबंधित बहुत-सी बातों का पता लगाया जा सकता है। फल कथन किसी एक रेखा, चिह्न या आकृति मात्र को देखकर नहीं, बल्कि हाथ में विद्यमान सभी रेखाओं, चिह्नों, आकृतियों आदि को देखकर करना चाहिए।
मनुष्य के हाथों की अंगुलियों में शंख, चक्र, व शीपी जैसे आकार देखे जाते हैं। इन लक्षणों के द्वारा भविष्य कथन भलीभांति किया जा सकता है। जानते है शंख के बारे में ........
1-यदि किसी मनुष्य की अंगुलियों में एक शंख हो तो वह व्‍यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण कर अच्छे पद पर आसीन होता है तथा सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है।
2- जिस व्यक्ति की अंगुलियों में 2 शंख बने हों तो वह जातक कठिन परिश्रम से ही किसी वस्तु की प्राप्ति कर पाता है तथा उसका जीवन सामान्य ही कहा जायेगा। ऐसे लोग दूसरों पर आश्रित होकर अपना जीवन व्यतीत करते है।
3- यदि किसी व्यक्ति की अंगुलियों में 3 शंख होते है तो वह मनुष्य स्त्रियों के प्रति विशेष आशक्त रहता है तथा अपनी आमदनी का शत-प्रतिशत भाग भौतिक वस्तुओं पर व्यय करता है। ऐसे जातक क्लर्क, सेक्रेटरी या पीआरओ आदि बनते हैं।
4- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 4 शंख होते है, वह व्यक्ति राजा के तुल्य सुख भोगता है तथा समाज में सम्मान पाता है। ऐसे जातक परिवार के कुलदीपक कहलाते है। ऐसे लोग विधायक, सांसद, मन्त्री आदि पद से सुशोभित होते है।
5- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 5 शंख होते है, वह अपनी प्रभुता से समाज के अधिकतर लोगों के दिलों पर राज करता है तथा अपनी जीविकोपार्जन के लिए जल की यात्रा करता है एंव उसी से सम्बन्धित कार्य भी करता है।
6- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 6 शंख होते है, वह मनुष्य अपनी विद्वता से समाज का मार्गदर्शन करता है। ऐसे जातक ज्योतिषी, धर्म उपदेशक, आध्यात्मिक गुरू आदि होते है।
7- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 7 शंख होते है, वह व्यक्ति आर्थिक विपन्नता से ग्रसित रहता है। इन लोगें के सन्तान उत्पत्ति के फॅलस्वरूप ही जीवन में कुछ हालात बेहतर होते है। ऐसे जातकों की स्त्रियां काफी संघर्षशील मानी जाती है।
8- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 8 शंख होते है, वह लोग अपनी मेहनत के बलबूते सुखी जीवन व्यतीत करते है। यह लोग अपने सम्बन्धों की वहज से शीघ्र ही उच्चतम शिखर पर पहुंच जाते है।
9- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 9 शंख होते है, वह व्यक्ति स्त्री प्रकुति का होता है एंव उसके सारे कार्य महिलाओं को आकर्षित करने वाले होते है तथा महिलायें इनका भरपूर सहयोग भी करती है। इन लोगों का 40 वर्ष के बाद समय अच्छा आता है।
10- जिस जातक के हाथों की अंगुलियों में 10 शंख होते है, वह लोग आईएस, पीसीएस, प्रमुख सचिव आदि उच्च पद पर आसीन होकर सुखमय जीवन व्यतीत करते है। ऐसे लोगों के जीवन में 45 वां वर्ष काफी पीड़दायक साबित हो सकता हो सकता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



हस्त रेखा में चक्र का महत्व

Image result for palmistry

हस्त रेखा में चक्र का महत्व
हम सभी जानते हैं कि चक्र यानी गोल घेरा। यही चक्र जब अँगुली में होता है तो उसका आकलन किस तरह किया जाता है और इनका किन-किन स्थानों पर होना क्या-क्या प्रभाव दिखाता है, आइए, जानते हैं इस बारे में।
जिस जातक की अँगुली के सबसे ऊपर वाले पोर पर चक्र हो वह भाग्यशाली व धनवान होता है। भगवान श्रीकृष्ण की तर्जनी अँगुली में चक्र था तभी तो उनका नाम चक्रधारी था। ऐसे जातक जिसे भी अँगुली के इशारे से सामने वाले को जो भी कहें वह बात चक्र के समान चलायमान होकर पूरी होती है।
चक्र गोल पूर्ण घेरे से युक्त स्पष्ट अभंग होना चाहिए, नहीं तो टूटा हुआ चक्र व्यक्ति को अनेक मानसिक चिन्ताओं से ग्रस्त कर देता है। जिनकी अँगुलियों के पोरों पर चक्र होता है, ऐसे जातकों का व्यवहार अपने विवेक और निर्णय से संचालित होता है। ये महत्वाकांक्षी भी होते हैं। इनके दिमाग में कोई-न-कोई योजना चलती रहती है।
ऐसे जातक स्वाभिमानी होते हैं। ये अपनी इच्छानुसार कार्य करने वाले रसिक मिजाज भी होते हैं। ऐसे जातक सभी प्रकार के सुखों को पाने वाले भी होते हैं।
किसी जातक के अँगूठे पर चक्र का निशान हो तो वह ऐश्वर्यवान, प्रभावशाली, दिमागी कार्य में निपुण, उत्तम गुणयुक्त, पिता का सहयोग व धन पाने वाला होता है। ऐसे जातक कोई ऐसा कार्य करते हैं जिससे इनका यश बना रहे।
तर्जनी यानी अँगूठे के पास वाली अँगुली में चक्र का निशान हो तो ऐसे व्यक्ति धनवान, प्रभावी, अनेक मित्रों से युक्त होकर मित्रों से लाभ पाने वाले होते हैं। महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ धन का भी लाभ पाते हैं। सांसारिक सुखों का भोग कर सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
ऐसे जातक कुशल चिकित्सक, नेता, व्यापारी, अधिवक्ता भी हो सकते हैं। दूसरों के मुकाबले इनकी तर्क शक्ति अधिक होती है। ये अनेक विधाओं के जानकार भी होते हैं। इनमें से कुछ आध्यात्म की ओर रुचि रखते हैं व तीनों कालों का ज्ञान रखने वाले महापुरुष भी हो सकते हैं।
मध्यमा यानी बीच की अँगुली पर चक्र का निशान होने से व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। चूँकि यह अँगुली शनि की होती है इस वजह से उन पर शनि ग्रह की कृपा बनी रहती है। ऐसे जातक धनवान भी होते हैं। ऐसे जातकों के बारे में देखा गया है कि वे पराक्रमी, अनेक उद्योगों के स्वामी, उत्तम ज्योतिषी, तांत्रिक, मठाधीश भी होते हैं।
अनामिका यानी सबसे छोटी अँगुली के पास वाली अँगुली पर चक्र होना भाग्यशाली जीवन का प्रतीक माना जाता है। इसे सूर्य की अँगुली माना जाता है। ऐसे जातक उत्तम व्यापारी, धनवान, उद्योग धंधों में सफल, प्रतिष्ठित, यशस्वी, ऐश्वर्यवान, राजनीतिज्ञ, कुशल प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकते हैं। कुछ आईएएस अधिकारियों की अँगुली में अनामिका चक्र देखकर इस बात की पुष्टि भी की जा चुकी है।
सबसे छोटी अँगुली यानी कनिष्का को बुध की अँगुली कहते है। इस पर चक्र का होना सफल व्यापारी होने की निशानी होती है। ये देश-विदेश में अपना व्यापार कर सफलता पाते हैं। ऐसे जातक सफल लेखक, प्रकाशक होते हैं व सम्पादन के क्षेत्र में भी सफलता पा सकते हैं। संक्षेप में कहें तो जिस अँगुली पर चक्र होता है उस अँगुली से संबंधित ग्रहों का प्रभाव बढ़ जाता है।
जिस लड़की के पैर के तलवे में चक्र, ध्वजा, स्वस्तिक, पद्म चिन्ह होता है तो उसका पति कोई उच्च पदाधिकारी होता है।
- यदि पैरों के तलवों पर माला या दांई और घुमा हुआ चक्र का चिन्ह हो तो उसका विवाह अच्छे कुल में होता है। पति राजा के समान ऐश्वर्यशाली जीवन बिताने वाला होता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


हस्त रेखा में चक्रों की संख्या के आधार पर निर्णय .....

Image result for palmistry

हस्त रेखा में चक्रों की संख्या के आधार पर निर्णय .....
1-यदि किसी जातक की अंगुलियों में एक चक्र का निशान हो तो, वह मनुष्य चालाक तथा अवसर को भुनाने वाले होते है। ऐसे जातक अपने निहित स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है।
2- यदि किसी जातक की अंगुलियों में 2 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग सुन्दर, गुणवान, तथा समाज में प्रशंसा के पात्र होते है। इन लोगों को तमाम भौतिक वस्तुओं का सुख प्राप्त होता है।
3-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 3 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे मनुष्य अपना अधिकतर समय भोग-विलास में व्यतीत करते है। इनका पारिवारिक जीवन दुःखमय बना रहता है।
4-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 4 चक्रों के निशान हो तो, वह व्यक्ति अपने कार्यो में निरन्तर संघर्ष करते है, परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती है। ऐसे लोग अपने जीवन में कई बार अपमान भी सहते है। इन लोगों का 50वर्ष के उपरान्त ही समय अच्छा होता है।
5-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 5 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग अपनी विद्वता से समाज का कल्याण करते है। जैसे- सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, कथावाचक आदि होते है।
6-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 6 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग बौद्धिक होते है। ऐ अच्छे पद पर आसीन होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते है, परन्तु इनका दाम्प्तय जीवन दुःखमय रहता है।
7-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 7 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग पहाड़ों की खूब यात्रा करते है तथा अपने साहस व पराक्रम के बल से शीघ्र ही अपने लक्ष्य को को प्राप्त कर लेते है। ऐ लोग यात्राओं से भी धन कमाते है।
8-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 8 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग मेहनत तो अत्यधिक करते है, परन्तु उनको सफलता न के बराबर ही मिलती है। ये लोग निम्नकोटि का कोई भी कार्य न करें तो बेहतर होगा।
9-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 9 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग उच्च पद को प्राप्त कर सुखमय जीवन व्यतीत करते है। ये लोग समाज में कुछ ऐसा कार्य भी करते है जिससे इनको पुरस्कार मिलते है।
10-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 10 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग राजा के समान जीवन व्यतीत करते है। ये लोग राज्य के सलाह, मन्त्री, सेनापति, राज्यपाल या मुख्यमन्त्री होते है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



व्यसन की लत का ज्योतिष कारक- राहु की दषा तथा स्थिति का प्रभाव



व्यसन की लत का ज्योतिष कारक- राहु की दषा तथा स्थिति का प्रभाव -
जीवन के सुख साधन प्राप्ति हेतु व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। किंतु कभी अवसर की कमी तो कभी प्रयास में चूक या कोई अन्य कारण से इच्छित सफलता प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होने से व्यक्ति कई बार असफलता प्राप्त होती है। इस असफलता के कारण तनाव कई बार इतना ज्यादा हो जाता है कि उसे तनाव से बाहर आने के लिए व्यसन का सहारा लेना पड़ता है और यह व्यसन शौक या तनाव दूर करने से शुरू होते हुए व्यसन या लत की सीमा तक चला जाता है। इसक ज्योतिष कारण व्यक्ति के कुंडली से जाना जाता है। किसी व्यक्ति का तृतीयेष अगर छठवे, आठवें या द्वादष स्थान पर होने से व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है, जिसके कारण उसके प्रयास में कमी या असफलता से डिप्रेषन आने की संभावना बनती है। अगर यह डिपे्रषन ज्यादा हो जाये तथा उसके अष्टम या द्वादष भाव में सौम्य ग्रह राहु से पापाक्रांत हो तो उस ग्रह दषाओं के अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा में शुरू हुई व्यसन की आदत लत बन जाती है। लगातार व्यसन मनःस्थिति को और कमजोर करता है अतः यह व्यसन समाप्त होने की संभावना कम होती है। अतः व्यसन से बाहर आने के लिए मनोबल बढ़ाने के साथ राहु की शांति तथा मंगल का व्रत मंगल स्तोत्र का पाठ करना जीवन में व्यसन मुक्ति के साथ सफलता का कारक होता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



तनाव और अवसाद का ज्योतिषीय कारण - बुध की दषा-

Image result for stress

तनाव और अवसाद का ज्योतिषीय कारण - बुध की दषा-

वर्तमान युग की आरामदायी जीवनषैली तथा भौतिकतावादी वस्तुओं की भरमार के बीच उच्च प्रतिस्पर्धी और असुरक्षित जीवन को सुरक्षा तथा सुविधा संपन्न बनाने के प्रयास में अपने कैरियर को उच्च दिषा तथा दषा देने के फेर में कई बार बहुत बुद्धिमान तथा योग्य व्यक्ति भी स्वयं असंतुष्ट होकर तनाव में आ जाते हैं तथा कई बार यह तनाव अवसाद की स्थिति भी निर्मित होती है। तनाव या अवसाद की विभिन्न स्थिति को कुंडली के माध्यम से बहुत अच्छी प्रकार विष्लेषित किया जा सकता है। यदि किसी जातक का तृतीयेष बुध होकर अष्टम स्थान में हो तो जल्दी तनाव में आने का कारण बनता है वहीं किसी प्रकार से क्रूर ग्रह या राहु से आक्रांत या दृष्ट होने पर यह तनाव अवसाद में जाने का प्रमुख माध्यम बन जाता है। जब बुध की दषा या अंतरदषा चले तो ऐसे में तनाव का होना प्रभावी रूप से दिखाई देता है। ऐसे में व्यक्ति को कम नींद, आहार तथा व्यवहार में अंतर दिखाई देता है, जिसके परिणामस्वरूप जातक कई बार व्यसन का भी आदि हो जाता है। अतः यदि किसी भी प्रकार से तृतीयेष बुध अष्टम में हो और बुध की दषा या अंतरदषा चले तो जातक को बुध की शांति के साथ गणपति के मंत्रों का वैदिक जाप हवन तर्पणा मार्जन आदि कराकर हरी वस्तुओं के सेवन के साथ तनाव से बाहर आकर सामान्य प्रयास करने से भी अवसाद कम करने में मददगार साबित होती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


शुक्र की दषा का फल - सुख-समृद्धि की प्राप्ति के साथ राजरोग का प्रारंभ -



शुक्र की दषा का फल - सुख-समृद्धि की प्राप्ति के साथ राजरोग का प्रारंभ -

ज्योतिषिय विज्ञान में व्यक्ति को सुख तथा समृद्धि प्रदान कर्ता ग्रह शुक्र को माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र क्रूर स्थान पर हो तो उसे शुक्र की दषा में विषेष लाभ प्राप्त होता है किंतु यदि शुक्र राहु या सूर्य से आक्रांत हो तो उसके विपरीत प्रभाव के अनुसार सुख में कमी का भी कारण बनता है। किसी भी जातक की कुंडली में शुक्र की दषा में मकान, वाहन घरेलू सुख में वृद्धि के साथ ही शुक्र अपनी दषा का फल अवष्य जातक को दिखाता है वह हैं राजरोग का लगना। राजरोग अर्थात् शुगर, कोलेस्ट्राल, वजन का बढ़ना इत्यादि रोग जिसे आधुनिक भाषा में राजरोग कहा जाता है। किसी जातक की कुंडली में शुक्र की दषा अथवा अंर्तदषा में खान-पान में परिवर्तन, सुख में वृद्धि तथा शारीरिक क्षमता में कमी आने का कारक शुक्र ग्रह है। शुक्र की दषा चलने पर बिना कुंडली की जानकारी के यह जाना जा सकता है कि यदि किसी जातक को खान-पान, घरेलू सुख में वृद्धि तथा मानप्रतिष्ठा में बढ़ोतरी का कारक शुक्र है। अतः इस दषा का विपरीत प्रभाव ताउम्र चलने वाली बिमारियों से भी लगाया जा सकता है। शुक्र की दषा में कोलेस्ट्राल का बढ़ना, शुगर का बढ़ना तथा मोटापा का बढ़ना इत्यादि प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यदि किसी को इस प्रकार से सुख में वृद्धि हो तो उसे शुक्र के विपरीत प्रभाव अर्थात् बिमारियों से बचाव हेतु ज्यादा मेहनत व्यायाम, तथा खान-पान में सर्तकता बरतने के साथ माता दुर्गा जी के दर्षन करना तथा दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए जिससे शुभ प्रभाव में र्वृिद्ध सुख में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव में कमी अर्थात् बिमारियों से बचाव में सहायता प्राप्त हो सके।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in




होलिका पर्व - विद्धेष के नाष का पर्व -


Image result for holi
होलिका पर्व - विद्धेष के नाष का पर्व -

होलिका दहन का अगले दिन चैत्र पक्ष की प्रतिपदा को होलिका का पर्व मनाया जाता है। इस दिन होली की अवषिष्ट राख की वंदना की जाती है, जिसमें पहले होली की पूजा एक माला, गन्ना, पूजा की सामग्री, कच्चे सूत की लड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूट, पापड़  आदि से होली का पूजन कर अवषिष्ट को माथे पर लगाई जाती है। उसके उपरांत गुलाल, रंग तथा कुमकुम की वर्षा की जाती है। भक्त प्रहलाह के सुरक्षित बच निकलने को उत्साह से मनाने हेतु होली खेलने का रिवाज है। इस दिन सब आपस का भेदभाव मिटाकर बड़े उत्साह से एक दूसरे पर रंग लगाते हैं। यह एक सामाजिक त्योहार है, जो रंगो का त्योहार है। एक दूसरे पर रंग लागकर मिठा खिलाने का विधान है। इस प्रकार आसुरों का नाष तथा भक्तों को सुरक्षित बचने हेतु एक दूसरे को बधाई देकर खुषियाॅ मनाई जाती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


होलिका दहन पर्व - मानसिक आसुरी शक्ति के नाष का पर्व -



होलिका दहन पर्व - मानसिक आसुरी शक्ति के नाष का पर्व -

होलिका दहन का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली से आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल के बाद भद्रा रहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है। इस अवसर पर लकडि़याॅ तथा घास-फूस का बड़ा ढेर लगाकर होलिका पूजन करके उस पर आग लगाई जाती है। पूजन के समय मंत्र का उच्चारण किया जाता है - अहकूटा भयत्रस्तैः कृतात्व होली बालिषैः, अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम।।
एक माला, गन्ना, पूजा की सामग्री, कच्चे सूत की लड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूट, पापड़  आदि से होली का पूजन कर अग्नि लगाई जाती है।
कथा -
इस पर्व का विषेष संबंध भक्त प्रहलाद से है। हिरण्यकषिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, किंतु सफल ना होने पर उसने अपनी बहन को जिसे आग से ना जलने का वरदान प्राप्त था, को लकडि़यों के ढेर में प्रहलाद को लेकर बैठने का आदेष देकर आग लगाई किंतु भक्त प्रहलाद के लगातार भगवान कृष्ण के आहवान करते रहने के कारण होलिका जलकर राख हो गई किंतु प्रहलाद सुरक्षित बच गया। तभी से भक्त प्रहलाद की स्मृति एवं आसुरी शक्ति के नाष हेतु हालिका दहन का पर्व मनाया जाता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


अभिभावकों की चिंता का कारण संतान के लक्ष्य से भटकाव - ज्योतिष कारण और निवारण -


Image result for mind diversion
अभिभावकों की चिंता का कारण संतान के लक्ष्य से भटकाव - ज्योतिष कारण और निवारण -
आज के आधुनिक युग में जहाॅ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएॅ जुटाने का प्रयास हर जातक करता है, वहीं पर उन सुविधाओं के उपयोग से आज की युवा पीढ़ी भटकाव की दिषा में अग्रसर होती जा रही है। पैंरेंटस् जिन वस्तुओं का सुविधाएॅ अपने बच्चों को उपयेाग हेतु मुहैया कराते हैं, वहीं वस्तुएॅ बच्चों को गलत दिषा में ले जाती है। कई बार देखने में आता है कि जो बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्षन करते रहे हैं वे भी ठीक कैरियर के समय अपने दिषा से भटक कर अपने अध्ययन तथा लक्ष्य से भटकर अपना पूरा कैरियर खराब कर देते हैं। कई बार माता-पिता इन सभी बातों से पूर्णतः अनजान रहते हैं और कई बार जानते हुए भी कोई हल निकालने में असमर्थ होते हैं। सभी इन समस्याओं का दोषारोपण आधुनिक सुविधाओं को देते हुए मूक दर्षक बन रहना चाहते हैं किंतु सच्चाई यह है कि यदि आप थोड़े से ज्योतिष और समय रहते उनके प्रतिकूल असर पर काबू पाने का प्रयास कर उपयुक्त समाधान तलाष लें तो भटकाव से पूर्व ही अपने संतान को सही मार्गदिषा देकर उन्हें उचित निर्णय तथा कैरियर हेतु लक्ष्य मंें बनाये रखने में सक्षम हो सकते हैं। यदि बच्चों के व्यवहार में अचानक बदलाव दिखाई दें, जैसे बच्चा अचानक गुस्सैल हो जाए, उसमें अहं की भावना जागृत होने लगे। दोस्तों में ज्यादा समय बिताने या इलेक्टानिक्स गजट पर पूरा ध्यान केंद्रित करें, बड़ों की बाते बुरी लगे तो तत्काल सावधानी आवष्यक है। किसी विद्वान ज्योतिषीय से अपने संतान की कुंडली का ग्रह दषा जानें तथा पता लगायें कि आपके संतान की शुक्र, राहु, सप्तमेष, पंचमेष की दषा तो नहीं चल रही है और इनमें से कोई ग्रह विपरीत स्थिति में या नीच का होकर तो नहीं बैठा है। अगर ऐसी कोई स्थिति दिखाई दे तो उपयुक्त उपाय तथा थोड़े से अनुषासन से अपने संतान के भटकाव पर काबू पाते हुए उसके लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।



 Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



संतान से सुख- अच्छी षिक्षा तथा कैरियर की प्राप्ति -



संतान से सुख- अच्छी षिक्षा तथा कैरियर की प्राप्ति -
आज कल हर पैरेंटस की दिली तमन्ना होती है कि उनकी संतान उच्च तकनीकी षिक्षा प्राप्त करें, जिससे उसके कैरियर की शुरूआत ही एक अच्छे पैकेज से हो, किंतु सभी इसमें सफलता प्राप्त तो नहीं कर सकते किंतु अपने संतान की कुंडली के ज्योतिषीय विवेचन तथा उचित समाधान कर एक अच्छे कैरियर हेतु प्रयास किया जा सकता है। अतः जाने की क्या आपकी संतान में ऐसे योग हैं। षिक्षा कारक ग्रह गुरू, जोकि तर्कषक्ति तथा गणित जैसे विषयों का कारक ग्रह होता है यदि गुरू की उत्तम स्थिति हो तो संतान की षिक्षा संबंधी चिंता नहीं रहती। सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए। शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे। किंतु उच्च ग्रह स्थिति होने के बावजूद यदि गोचर में ग्रह दषाएॅ अनुकूल ना हो तो जातक को सफलता प्राप्त होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः अपने संतान के ग्रह स्थिति के अलावा ग्रह दषाओं का आकलन समय से पूर्व कराया जाकर उनके उचित उपाय करने से एक सफल कैरियर की प्राप्ति संभव है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


आमलकी एकादषी व्रत से संतान सुख -



आमलकी एकादषी व्रत से संतान सुख -

फाल्गुन की शुक्लपक्ष की एकादषी को संतान सुख प्राप्ति हेतु व्रत किया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने इस व्रत का वर्णन युधिष्ठिर से किया था। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो संतान कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है। इसके बाद फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामथ्र्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनकर संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करने के पष्चात् फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करने का महत्व है। जैसा के इसके नाम से ज्ञात होता है कि जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएॅ होती हो अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हों, उनके लिए इस एकादषी का व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को विषेष रूप से करना चाहिए। साथ ही यदि कोई संतान संबंधी कष्ट जैसे संतान के स्वास्थ्य, षिक्षा या अन्य संतान से संबंधित अन्य सुखों को प्राप्त करने का अभिलाषी हो, उसे इस व्रत के करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


स्थायी आय प्राप्ति में बाधा दूर करने के ज्योतिष उपाय:

Image result for income

स्थायी आय प्राप्ति में बाधा दूर करने के ज्योतिष उपाय:-

सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे।  इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



बुधाष्टमी व्रत से पायें सफलता और सुख -

Image result for success

बुधाष्टमी व्रत से पायें सफलता और सुख - असफलता निवारण महायज्ञ - देवपितृ महायज्ञ-

व्यक्ति के जीवन में कई बार आकस्मिक हानि प्राप्त होती है साथ ही कई बार योग्यता तथा सामथ्र्य होने के बावजूद जीवन में वह सफलता प्राप्त नहीं होती, जिसकी योग्यता होती है। इस प्रकार का कारण ज्योतिषषास्त्र द्वारा किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। अगर राहु के साथ सूर्य, शनि के होने पर यह प्रभाव जातक के स्वयं के जीवन के अलावा यह दुष्प्रभाव उसके परिवार पर भी दिखाई देता है। राहु के साथ सूर्य या शनि की युति बने तो व्यक्ति अषांत, गुप्त चिंता, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक परेषानियों के कारण चिंतित रहता है। दूसरे भाव में इस प्रकार की स्थिति निर्मित होेने पर परिवार में वैमनस्य एवं आर्थिक उलझनें बनने का कोई ना कोई कारण बनता रहता है। तीसरे स्थान पर होने पर व्यक्ति हीन मनोबल का होने के कारण असफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में होने पर घरेलू सुख, मकान, वाहन तथा माता से संबंधित कष्ट पाता है। पंचम स्थान में होने पर उच्च षिक्षा में कमी तथा बाधा दिखाई देती है तथा संतान से संबंधित बाधा तथा दुख का कारण बनता है। अष्टम में होने पर आकस्मिक हानि, विवाद तथा न्यायालयीन विवाद, उन्नति तथा धनलाभ में बाधा देता है। बार-बार कार्य में बाधा आना या नौकरी छूटना, सामाजिक अपयष अष्टम राहु के कारण दिखाई देता है। नवम स्थान में होने पर भाग्योन्नति तथा हर प्रकार के सुखों में कमी का कारण बनता है। सामान्यतः चंद्रमा के साथ राहु का दोष होने पर माता, बहन या पत्नी से संबंधित पक्ष में कष्ट दिखाई देता है वहीं शनि के साथ राहु दोष होेने पर पारिवारिक विषेषकर पैतृक दोष का कारण बनता है। सूर्य के आक्रांत होेने पर आत्मा प्रभावित हेाता है, जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व तथा सोच दूषित होती है। बुध के साथ राहु होने पर जडत्व दोष बनता है, जिसमें विकास तथा बुद्धि प्रभावित होती है। मंगल के साथ होने पर संतान से संबंधित पक्ष से कष्ट तथा गुरू के साथ होने पर षिक्षा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा संबंधित परेषानी दिखाई देती है। शुक्र के आक्रांत होेने पर सुख प्राप्ति के रास्ते में बाधा आती है। इस प्रकार के दोष जातक की कुंडली में बनने पर जातक के जीवन में स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी,आर्थिक संकट, आय में बाधा, संतान से कष्ट अथवा वंषवृद्धि में बाधा, विवाह में विलंब तथा वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावष्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे नारायणबलि, नागबलि, पितृतर्पण, देवतर्पण, दानादि कर्म करना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म जीवों की सेवा, जिसमें गाय को चारा अमावस्या के दिन देना, कुत्तों का भोजन प्रत्येक शनिवार को देना या चिट्टी या चिडिया, कौओं को दाना डालना जीवन में सुख तथा समृद्धि का रास्ता प्रष्स्त करता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


लक्ष्य प्राप्ति में सहायक ग्रह केतु -

Image result for reach goal

लक्ष्य प्राप्ति में सहायक ग्रह केतु -

निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



शुक्र की दषा का प्रभाव - युवा बच्चों की अनुषासनहीनता -




शुक्र की दषा का प्रभाव  - युवा बच्चों की अनुषासनहीनता -

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


स्वयं की प्रेरणा शक्ति को पहचाने

Image result for talent
स्वयं की प्रेरणा शक्ति को पहचाने:-

यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षन प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन पाता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षन की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है जिससे आज्ञाकारी ना होने के कारण बढ़ती उम्र में गलत संगत या गलत निर्णय लेकर अपना भविष्य खराब कर बैठता है। ऐसी स्थिति में उसके ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in