होलिका दहन पर्व - मानसिक आसुरी शक्ति के नाष का पर्व -
होलिका दहन का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली से आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल के बाद भद्रा रहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है। इस अवसर पर लकडि़याॅ तथा घास-फूस का बड़ा ढेर लगाकर होलिका पूजन करके उस पर आग लगाई जाती है। पूजन के समय मंत्र का उच्चारण किया जाता है - अहकूटा भयत्रस्तैः कृतात्व होली बालिषैः, अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम।।
एक माला, गन्ना, पूजा की सामग्री, कच्चे सूत की लड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूट, पापड़ आदि से होली का पूजन कर अग्नि लगाई जाती है।
कथा -
इस पर्व का विषेष संबंध भक्त प्रहलाद से है। हिरण्यकषिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, किंतु सफल ना होने पर उसने अपनी बहन को जिसे आग से ना जलने का वरदान प्राप्त था, को लकडि़यों के ढेर में प्रहलाद को लेकर बैठने का आदेष देकर आग लगाई किंतु भक्त प्रहलाद के लगातार भगवान कृष्ण के आहवान करते रहने के कारण होलिका जलकर राख हो गई किंतु प्रहलाद सुरक्षित बच गया। तभी से भक्त प्रहलाद की स्मृति एवं आसुरी शक्ति के नाष हेतु हालिका दहन का पर्व मनाया जाता है।
Pt.P.S Tripathi
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