मनोरोग या मानस रोग मस्तिष्क रोग है। व्यक्ति का मस्तिष्क संसार में आष्र्चयजनक विकास और विनाष का कारक होता है। भारतीय विद्वान मानते हैं कि मस्तिष्क की स्थिरता, प्रसन्नता एवं सम अवस्था में रहने पर ही व्यक्ति का विकास साकारात्मक होता है। मन की प्रसन्नता हो तो बृद्धि विकसित होती है अथवा मन में तीव्र मानसिक उलझन, चिंता, विषाद हो तो विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किंतु ज्योतिष गणना द्वारा मनोरोग को जाना जा सकता है। ज्योतिष गणना के अनुसार लग्न मस्तिष्क का घोतक होता है और तीसरा स्थान मन का कारक होता है। किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, लग्नेष तृतीयेष या तीसरा स्थान छठवां, आठवां या बारहवा हो अथवा क्रूर ग्रहों से दूषित हो तो जातक हो मनोरोग होने की संभावना होती है। विषेषकर सूर्य अथवा चंद्रमा क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर कहीं भी हो तो भी मनोरोग हो सकता है चूॅकि चंद्रमा मन का कारक होता है वहीं सूर्य आत्मा का। मंगल क्रोध का कारक होता है अतः यदि ये ग्रह मंगल से आक्रांत हो तो जातक मनोरोग में क्रोधी प्रवृत्ति का होता है। इसी प्रकार राहु से आक्रांत होने पर कल्पनाषील, विभिन्न ग्रहों के अनुसार पागलपन में व्यक्ति का व्यवहार अलग हो सकता है। कई बार मनोरोग के कारण नींद ना आना, बुरे ख्याल आना, सपना या लोगों के प्रति नाकारात्मक व्यवहार, हिस्टीरिया, नषे का आदि आदि दिखाई देता है। पंचमेष का अष्टम या द्वादष में होने पर भी मानसिक रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। मनोरोग को दूर करने हेतु मन को मजबूत करने के उपाय तथा ग्रह शांति कराना चाहिए।
Pt.P.S Tripathi
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