जीवन के सुख साधन प्राप्ति हेतु व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। किंतु कभी अवसर की कमी तो कभी प्रयास में चूक या कोई अन्य कारण से इच्छित सफलता प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होने से व्यक्ति कई बार असफलता प्राप्त होती है। इस असफलता के कारण तनाव कई बार इतना ज्यादा हो जाता है कि उसे तनाव से बाहर आने के लिए व्यसन का सहारा लेना पड़ता है और यह व्यसन शौक या तनाव दूर करने से शुरू होते हुए व्यसन या लत की सीमा तक चला जाता है। इसक ज्योतिष कारण व्यक्ति के कुंडली से जाना जाता है। किसी व्यक्ति का तृतीयेष अगर छठवे, आठवें या द्वादष स्थान पर होने से व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है, जिसके कारण उसके प्रयास में कमी या असफलता से डिप्रेषन आने की संभावना बनती है। अगर यह डिपे्रषन ज्यादा हो जाये तथा उसके अष्टम या द्वादष भाव में सौम्य ग्रह राहु से पापाक्रांत हो तो उस ग्रह दषाओं के अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा में शुरू हुई व्यसन की आदत लत बन जाती है। लगातार व्यसन मनःस्थिति को और कमजोर करता है अतः यह व्यसन समाप्त होने की संभावना कम होती है। अतः व्यसन से बाहर आने के लिए मनोबल बढ़ाने के साथ राहु की शांति तथा मंगल का व्रत मंगल स्तोत्र का पाठ करना जीवन में व्यसन मुक्ति के साथ सफलता का कारक होता है।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in
No comments:
Post a Comment