सौरमंडल से आने वाली किरणें खास कर शुक्र से आने वाली किरणें मनुष्य के व्यक्तित्व व दांपत्य जीवन में गाहे-वगाहे अनेक प्रभाव डालती हैं। व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों मेंं मधुरता न रहे या दोनों मेंं से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने मेंं सक्षम न हो रही हो तब शुक्र का ही अशुभ प्रभाव हो सकता है। स्त्री को गर्भाश्य से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हैं।
सौरमंडल के 9 ग्रहों मेंं शुक्र आकाश मेंं सबसे चमकदार तारा है, इसका महत्व नवग्रहों मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन से है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र की किरणों का हमारे शरीर और जीवन पर अकाट्य प्रभाव पड़ता है। शुक्र का व्यास 126000 किलोमीटर है और गुरुत्व शक्ति पृथ्वी के ही समान। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने मेंं 225 दिन लगते हैं। शुक्र एवं सूर्य के बीच की दूरी वैज्ञानिकों ने लगभग 108000000 किलोमीटर मानी है, इसे आकाश मेंं आसानी से देखा जा सकता है। इसे संध्या और भोर का तारा भी कहते हैं, क्योंकि इस ग्रह का उदय आकाश मेंं या तो सूर्योदय के पूर्व या संध्या को सूर्यास्त के पश्चात होता है। पुराणों के अनुसार शुक्र को सुंदरता का प्रतीक माना गया है। ये दानवों के गुरु हैं, इनके पिता का नाम कवि और इनकी पत्नी का नाम शतप्रभा है। दैत्य गुरु शुक्र दैत्यों की रक्षा करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। ये बृहस्पति की तरह ही शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और कवि हैं। शुक्र ग्रह को सुन्दर शरीर वाला, बड़ी आंखे दिखने मेंं आकर्षक, घुंघराले बाल, काव्यात्मक, कफमय, कम खाने वाला, छोटी कद-काठी, दिखने मेंं युवा बताया गया है। शुक्र के अस्त दिनों मेंं शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं इसका कारण यह कि उक्त वक्त पृथ्वी का पर्यावरण शुक्र प्रभा से दूषित माना गया है। यह ग्रह पूर्व मेंं अस्त होने के बाद 75 दिनों पश्चात पुन: उदित होता है उदय के 240 दिन वक्री चलता है, इसके 23 दिन पश्चात अस्त हो जाता है। पश्चिम मेंं अस्त होकर 9 दिन के पश्चात यह पुन: पूर्व दिशा मेंं उगता है। शनि व बुध शुक्र के मित्र ग्रहों मेंं आते है। शुक्र ग्रह के शत्रुओं मेंं सूर्य व चन्द्रमा है। शुक्र के साथ गुरु व मंगल सम सम्बन्ध रखते हैं। शुक्र वृषभ व तुला राशि के स्वामी हैं। शुक्र तुला राशि मेंं 0 अंश से 15 अंश के मध्य होने पर मूलत्रिकोण राशिस्थ होता है। शुक्र मीन राशि मेंं 27 अंश पर होने पर उच्च राशि अंशों पर होता है। शुक्र कन्या राशि मेंं 27 अंश पर होने पर नीच राशि मेंं होता है। शुक्र ग्रह की दक्षिण-पूर्व दिशा है। शुक्र का भाग्य रत्न हीरा है और उपरत्न जरकन होता है।
वैदिक ज्योतिष मेंं शुक्र को मुख्य रूप से पत्नी का कारक माना गया है। यह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष मेंं शुक्र से काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है। शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे वस्त्र, सुन्दरता, सजावट, नृत्य, संगीत, गाना बजाना, काले बाल, विलासिता, व्यभिचार, शराब, नशीले पदारथ, कलात्मक गुण, आदि गुण देखे जाते है। पति- पत्नी का सुख देखने के लिए कुंडली मेंं शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से देखा जाता है। शुक्र को सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े क्षेत्रों का अधिपति माना जाता है।
रंगमंच, चित्रकार, नृत्य कला, फैशन, भोग-विलास से संबंधित वस्तुओं को शुक्र से जोड़ा जाता है। कुंडली मेंं शुक्र की प्रबल स्थिति जातक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बनाती है। शुक्र के प्रबल प्रभाव से महिलाएं अति आकर्षक होती हैं शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों मेंं सफल होते हैं। शुक्र शारीरिक सुखों का भी कारक है प्रेम संबंधों मेंं शुक्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली मेंं शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है तो अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष एवं पीड़ा दायक होती है। शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति मेंं चारित्रिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। व्यक्ति बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन मेंं कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव या तलाक की नौबत भी आ सकती है। जीवन मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन सभी वस्तुओं के होने पर भी आप इन सभी के उपभोग का सुख न ले पाए तो यह भी शुक्र के खराब होने के लक्षण हो सकते हैं।
व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों मेंं मधुरता न रहे या दोनों मेंं से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने मेंं सक्षम न हो रही हो तब शुक्र का ही अशुभ प्रभाव हो सकता है। स्त्री को गर्भाशय से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हैं। शुक्र के बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति के जीवन मेंं भी बदलाव देखा जा सकता है। उसके व्यवहार मेंं चालबाजी, धोखेबाजी जैसे अवगुण उभरने लगते हैं तथा वह उसकी कथनी और करनी मेंं अंतर आ सकता है। शुक्र के पीडि़त होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीडि़त होने लगता है, उसकी अपनी गलतियां या अनैतिक कार्यों द्वारा वह अपनी सेहत खराब भी कर सकता है। शुक्र के अशुभ होने के कारण व्यक्ति कम उम्र मेंं ही नशे की लत या रोगों का शिकार होने लगता है उसके अंदर नशाखोरी एवं गलत कार्यों द्वारा होने वाले रोग उत्पन्न होने लगते हैं। जब कोई व्यक्ति अपना दोहरा व्यक्तित्व अपना लेता है अर्थात दोहरी जिंदगी जीने लगता है तब यह शुक्र के अशुभ होने के लक्षण होते हैं।
सौरमंडल के 9 ग्रहों मेंं शुक्र आकाश मेंं सबसे चमकदार तारा है, इसका महत्व नवग्रहों मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन से है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र की किरणों का हमारे शरीर और जीवन पर अकाट्य प्रभाव पड़ता है। शुक्र का व्यास 126000 किलोमीटर है और गुरुत्व शक्ति पृथ्वी के ही समान। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने मेंं 225 दिन लगते हैं। शुक्र एवं सूर्य के बीच की दूरी वैज्ञानिकों ने लगभग 108000000 किलोमीटर मानी है, इसे आकाश मेंं आसानी से देखा जा सकता है। इसे संध्या और भोर का तारा भी कहते हैं, क्योंकि इस ग्रह का उदय आकाश मेंं या तो सूर्योदय के पूर्व या संध्या को सूर्यास्त के पश्चात होता है। पुराणों के अनुसार शुक्र को सुंदरता का प्रतीक माना गया है। ये दानवों के गुरु हैं, इनके पिता का नाम कवि और इनकी पत्नी का नाम शतप्रभा है। दैत्य गुरु शुक्र दैत्यों की रक्षा करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। ये बृहस्पति की तरह ही शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और कवि हैं। शुक्र ग्रह को सुन्दर शरीर वाला, बड़ी आंखे दिखने मेंं आकर्षक, घुंघराले बाल, काव्यात्मक, कफमय, कम खाने वाला, छोटी कद-काठी, दिखने मेंं युवा बताया गया है। शुक्र के अस्त दिनों मेंं शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं इसका कारण यह कि उक्त वक्त पृथ्वी का पर्यावरण शुक्र प्रभा से दूषित माना गया है। यह ग्रह पूर्व मेंं अस्त होने के बाद 75 दिनों पश्चात पुन: उदित होता है उदय के 240 दिन वक्री चलता है, इसके 23 दिन पश्चात अस्त हो जाता है। पश्चिम मेंं अस्त होकर 9 दिन के पश्चात यह पुन: पूर्व दिशा मेंं उगता है। शनि व बुध शुक्र के मित्र ग्रहों मेंं आते है। शुक्र ग्रह के शत्रुओं मेंं सूर्य व चन्द्रमा है। शुक्र के साथ गुरु व मंगल सम सम्बन्ध रखते हैं। शुक्र वृषभ व तुला राशि के स्वामी हैं। शुक्र तुला राशि मेंं 0 अंश से 15 अंश के मध्य होने पर मूलत्रिकोण राशिस्थ होता है। शुक्र मीन राशि मेंं 27 अंश पर होने पर उच्च राशि अंशों पर होता है। शुक्र कन्या राशि मेंं 27 अंश पर होने पर नीच राशि मेंं होता है। शुक्र ग्रह की दक्षिण-पूर्व दिशा है। शुक्र का भाग्य रत्न हीरा है और उपरत्न जरकन होता है।
वैदिक ज्योतिष मेंं शुक्र को मुख्य रूप से पत्नी का कारक माना गया है। यह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष मेंं शुक्र से काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है। शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे वस्त्र, सुन्दरता, सजावट, नृत्य, संगीत, गाना बजाना, काले बाल, विलासिता, व्यभिचार, शराब, नशीले पदारथ, कलात्मक गुण, आदि गुण देखे जाते है। पति- पत्नी का सुख देखने के लिए कुंडली मेंं शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से देखा जाता है। शुक्र को सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े क्षेत्रों का अधिपति माना जाता है।
रंगमंच, चित्रकार, नृत्य कला, फैशन, भोग-विलास से संबंधित वस्तुओं को शुक्र से जोड़ा जाता है। कुंडली मेंं शुक्र की प्रबल स्थिति जातक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बनाती है। शुक्र के प्रबल प्रभाव से महिलाएं अति आकर्षक होती हैं शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों मेंं सफल होते हैं। शुक्र शारीरिक सुखों का भी कारक है प्रेम संबंधों मेंं शुक्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली मेंं शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है तो अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष एवं पीड़ा दायक होती है। शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति मेंं चारित्रिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। व्यक्ति बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन मेंं कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव या तलाक की नौबत भी आ सकती है। जीवन मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन सभी वस्तुओं के होने पर भी आप इन सभी के उपभोग का सुख न ले पाए तो यह भी शुक्र के खराब होने के लक्षण हो सकते हैं।
व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों मेंं मधुरता न रहे या दोनों मेंं से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने मेंं सक्षम न हो रही हो तब शुक्र का ही अशुभ प्रभाव हो सकता है। स्त्री को गर्भाशय से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हैं। शुक्र के बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति के जीवन मेंं भी बदलाव देखा जा सकता है। उसके व्यवहार मेंं चालबाजी, धोखेबाजी जैसे अवगुण उभरने लगते हैं तथा वह उसकी कथनी और करनी मेंं अंतर आ सकता है। शुक्र के पीडि़त होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीडि़त होने लगता है, उसकी अपनी गलतियां या अनैतिक कार्यों द्वारा वह अपनी सेहत खराब भी कर सकता है। शुक्र के अशुभ होने के कारण व्यक्ति कम उम्र मेंं ही नशे की लत या रोगों का शिकार होने लगता है उसके अंदर नशाखोरी एवं गलत कार्यों द्वारा होने वाले रोग उत्पन्न होने लगते हैं। जब कोई व्यक्ति अपना दोहरा व्यक्तित्व अपना लेता है अर्थात दोहरी जिंदगी जीने लगता है तब यह शुक्र के अशुभ होने के लक्षण होते हैं।
शुक्र के व्यवसाय और कार्यक्षेत्र: शुक्र आजीविका भाव मेंं बली अवस्था मेंं हो, दशमेंश हो, या फिर दशमेंश के साथ उच्च राशि का स्थित हो, तो व्यक्ति मेंं कलाकार बनने के गुण होते है। वह नाटककार और संगीतज्ञ होता है, उसकी रुचि सिनेमा के क्षेत्र मेंं काम करने की हो सकती है. शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कवि, चित्रकार, वस्त्र विक्रेता, वस्त्र उद्योग, कपड़े बनाने वाला, इत्र, वाहन विक्रेता, वाहन बनाने वाले, व्यापारिक संस्थान, आभूषण विक्रेता, भवन बनाने वाले इंजिनियर, दुग्धशाला, नौसेना, रेलवे, आबकारी, यातायात, बुनकर, आयकर, सम्पति कर आदि का कार्य करता है।
शुक्र से संबंधित रोग: शुक्र शरीर मेंं वायु, कफ, आंखें, जननागं, पेशाब, वीर्य का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को यौन संबंधित रोग, मधुमेंह, पेशाब की थैली, गुरदे मेंं पथरी, मोतियाबिन्द, बेहोशी, के दौरे, जननांग संबंधित परेशानियां, सूजन, शरीर मेंं यंत्रणात्मक दर्द, श्वेत प्रदर, मूत्र सम्बन्धित रोग, चेहरे, आंखों और गुप्तागों से संबंधित रोग, खसरा, स्त्रियों मेंं माहवारी और उससे संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं।
शुक्र को शुभ करने के उपाय: शुक्र की अशुभता दूर करने के लिए सामथ्र्य अनुसार रुई और दही को मंदिर मेंं दान करना चाहिए। स्त्रीजाति का कभी भी अपमान या निरादर नहीं करना चाहिए उन्हें सदैव आदर और सम्मान देने का प्रयास करना चाहिए। शुक्र की शुभता के लिए शुक्रवार का व्रत करना चाहिए तथा नियमित रुप से माता के मंदिर मेंं दर्शन करना चाहिए। मन और हृदय पर काबू रखना चाहिए और भटकाव की ओर जाने से रोकना चाहिए. शुक्र के सम्बन्ध मेंं मन और इन्द्रियों को नियंत्रित रखने पर विशेष बल देता है। गाय को हरी चारा खिलानी चाहिए इससे शुक्र की अशुभता मेंं कमी आएगी। गाय का दूध या घी, चावल या शक्कर मंदिर मेंं दान करने से भी शुक्र को बल मिलता है।
शुक्र के लिए वस्तुओं का दान: शुक्र के लिए घी, कपूर, दही, चांदी, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र और फूल या गाय, इन वस्तुओं का दान शुक्रवार को सूर्यास्त के समय करना चाहिए।
शुभ की निशानी: सुंदर शरीर वाले पुरुष या स्त्री मेंं आत्मविश्वास भरपूर रहता है फिल्म या साहित्य मेंं उसकी रुचि रहती है। व्यक्ति धनवान और साधन-सम्पन्न होता है।
अशुभ की निशानी: अगर शनि मंद अर्थात नीच का हो तब भी शुक्र का बुरा असर होता है इसके अलावा भी ऐसी कई स्थितियां हैं जिससे शुक्र को मंद माना गया है अंगूठे मेंं दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है। त्वचा मेंं विकार, गुप्त रोग, पत्नी से अनावश्यक कलह अशुभ शुक्र की निशानी है। शुक्र के साथ राहु का होना अर्थात स्त्री तथा दौलत का असर खत्म।
उपाय: लक्ष्मी की उपासना करें जिसमेंं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करें. सफेद वस्त्र दान करें, भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे, और कुत्ते को दें। शुक्रवार का व्रत रखें खटाई न खाएं, दो मोती लें, एक को पानी मेंं बहा दें और दूसरे को जिंदगीभर अपने पास रखें। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेंशा साफ कपड़े पहनें।
शुक्र का जाप मंत्र: ऊँ शुं शुक्राय नम:,
बीच मंत्र: ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:
वैदिक मंत्र : हमकुन्द मृ्णालाभं दैत्यानां परमं गुरुम। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भर्गव प्रणामाम्यहम।।
शुक्र से संबंधित रोग: शुक्र शरीर मेंं वायु, कफ, आंखें, जननागं, पेशाब, वीर्य का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को यौन संबंधित रोग, मधुमेंह, पेशाब की थैली, गुरदे मेंं पथरी, मोतियाबिन्द, बेहोशी, के दौरे, जननांग संबंधित परेशानियां, सूजन, शरीर मेंं यंत्रणात्मक दर्द, श्वेत प्रदर, मूत्र सम्बन्धित रोग, चेहरे, आंखों और गुप्तागों से संबंधित रोग, खसरा, स्त्रियों मेंं माहवारी और उससे संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं।
शुक्र को शुभ करने के उपाय: शुक्र की अशुभता दूर करने के लिए सामथ्र्य अनुसार रुई और दही को मंदिर मेंं दान करना चाहिए। स्त्रीजाति का कभी भी अपमान या निरादर नहीं करना चाहिए उन्हें सदैव आदर और सम्मान देने का प्रयास करना चाहिए। शुक्र की शुभता के लिए शुक्रवार का व्रत करना चाहिए तथा नियमित रुप से माता के मंदिर मेंं दर्शन करना चाहिए। मन और हृदय पर काबू रखना चाहिए और भटकाव की ओर जाने से रोकना चाहिए. शुक्र के सम्बन्ध मेंं मन और इन्द्रियों को नियंत्रित रखने पर विशेष बल देता है। गाय को हरी चारा खिलानी चाहिए इससे शुक्र की अशुभता मेंं कमी आएगी। गाय का दूध या घी, चावल या शक्कर मंदिर मेंं दान करने से भी शुक्र को बल मिलता है।
शुक्र के लिए वस्तुओं का दान: शुक्र के लिए घी, कपूर, दही, चांदी, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र और फूल या गाय, इन वस्तुओं का दान शुक्रवार को सूर्यास्त के समय करना चाहिए।
शुभ की निशानी: सुंदर शरीर वाले पुरुष या स्त्री मेंं आत्मविश्वास भरपूर रहता है फिल्म या साहित्य मेंं उसकी रुचि रहती है। व्यक्ति धनवान और साधन-सम्पन्न होता है।
अशुभ की निशानी: अगर शनि मंद अर्थात नीच का हो तब भी शुक्र का बुरा असर होता है इसके अलावा भी ऐसी कई स्थितियां हैं जिससे शुक्र को मंद माना गया है अंगूठे मेंं दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है। त्वचा मेंं विकार, गुप्त रोग, पत्नी से अनावश्यक कलह अशुभ शुक्र की निशानी है। शुक्र के साथ राहु का होना अर्थात स्त्री तथा दौलत का असर खत्म।
उपाय: लक्ष्मी की उपासना करें जिसमेंं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करें. सफेद वस्त्र दान करें, भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे, और कुत्ते को दें। शुक्रवार का व्रत रखें खटाई न खाएं, दो मोती लें, एक को पानी मेंं बहा दें और दूसरे को जिंदगीभर अपने पास रखें। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेंशा साफ कपड़े पहनें।
शुक्र का जाप मंत्र: ऊँ शुं शुक्राय नम:,
बीच मंत्र: ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:
वैदिक मंत्र : हमकुन्द मृ्णालाभं दैत्यानां परमं गुरुम। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भर्गव प्रणामाम्यहम।।
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