Tuesday, 10 May 2016

दिशा ज्ञान

वास्तु में दिशा ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। दिशासूचक यंत्र से दिशा ज्ञान मिलता है। लेकिन क्या इसके द्वारा दिखायी गयी दिशा सही होती है? यदि दिशासूचक यंत्र नहीं है, तो क्या किसी अन्य माध्यम द्वारा दिशा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं?
पृथ्वी एक बहुत बड़े चुंबक की भांति कार्य करती है। इस चुंबक का दक्षिण ध्रुव पृथ्वी के उत्तर ध्रुव की ओर रहता है। लेकिन चुंबकीय ध्रुव और पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव में अंतर रहता है। पृथ्वी का भौगोलिक ध्रुव हमेशा स्थिर रहता है, जबकि चुंबकीय धु्रव लगभग 40 किमी. प्रति किमी की गति से, वायव्य कोण की ओर, गतिशील है। चंुबकीय उत्तरी धुव्र कनाडा के पास लगभग 96 0 पश्चिम तथा 70.5 0 उत्तर पर पड़ता है। चुंबकीय भूमध्य रेखा भारत में मध्यप्रदेश के पास से गुजरती है। चुंबकीय उत्तर में एवं भौगोलिक उत्तर में एक कोण रहता है, जिसे ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ कहते हैं। क्योंकि भारत के ऊपर से चुंबकीय भूमध्य रेखा गुजरती है, इसलिए:‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ भारत में काफी कम है। यह एक अंश से भी कम है। इसलिए दिशासूचक यंत्र द्वारा दर्शायी गयी दिशा लगभग सटीक होती है। ऐसा अन्य देशों में नहीं है।
अमेरिका में यह ‘मैगनेटिक डिक्लनेशन’10 0 ,कनाडा में 14 0 , दक्षिण अफ्रीका में 23 0 , चीन में 6 0, जापान में 7 0 इत्यादि है | अतः सही दिशा जानने के लिए इस ‘डिक्लनेशन’ का ज्ञान होना अति आवश्यक है। लेकिन यह ‘डिक्लनेशन’ भी समयानुसार बदलता रहता है। अतः दिशासूचक यंत्र द्वारा बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करने के लिए सूक्ष्म गणनाओं की जरूरत पड़ती है। दिशासूचक यंत्र से दिशा का ज्ञान करने के लिए और भी कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है, जैसे दिशासूचक के आसपास चुंबकीय पदार्थ, या चुंबक नहीं होना चाहिए। उनके बीच कम से कम एक फुट की दूरी अवश्य होनी चाहिए।
बिना दिशासूचक यंत्र के भी कई प्रकार से दिशा का ज्ञान कर सकते है :
एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहां उसकी छाया की नोंक पड़े, वहां पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा।
यदि बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करना चाहते हैं, तो सुबह उपर्युक्त विधि द्वारा निशान लगाएं और, छड़ी को केंद्रबिंदु मानते हुए, निशान के बराबर त्रिज्या लेते हुए, एक वृत्त बना दें। शाम को जबभी छड़ी की छाया इस वृत्त को जहां भी छुए, वहां पर भी निशान लगा दें और दोनों बिंदुओं को जोड़ दें। यह रेखा पश्चिम से पूर्व की ओर बिल्कुल सही दिशा दर्शाती है।
घड़ी से दिशा ज्ञान
यदि कोई उत्तरी अक्ष में है, तो अपनी घड़ी के घंटे की सुईं को सूर्य की ओर घुमा कर खड़े जो जाएं। घंटे और 12 बजे के बीच के कोण को अर्ध विभक्त कर जो रेखा आएगी, वह ठीक दक्षिण की ओर इशारा करेगी। यदि कोई दक्षिण अक्ष में है, तो घड़ी के 12 को सूर्य की ओर घुमा लें एवं घंटे की सुईं और 12 के बीच के कोण को विभाजित करें, तो यह रेखा उत्तर की दिशा बताएगी।
सुई द्वारा दिशा ज्ञान
एक सुईं लें। इसको किसी धागे से लटका दें और एक चुंबक, या रेशम के कपड़े के ऊपर इसकी नोक को एक दिशा में घिसें। इससे यह एक चुंबक की भांति हो जाएगी और दिशासूचक यंत्र की तरह दिशा का ज्ञान कराएगी।
चन्द्रमा द्वारा दिशा ज्ञान
यदि चंद्रमा सूर्यास्त से पहले उदय हो चुका है, तो चंद्रमा का प्रकाशयुक्त भाग पश्चिम की ओर होता है और यदि अर्द्ध रात्रि के बाद चंद्रमा उदय हुआ है, तो पूर्व की ओर होता है। इस प्रकार से रात्रि में भी पूर्व और पश्चिम दिशा का आकलन किया जा सकता है।
तारों द्वारा दिशा ज्ञान
सप्तर्षि मंडल द्वारा ध्रुव तारे को पहचान सकते हैं। यह हमेशा उत्तरी ध्रुव में दिखाई देता है और हमेशा उत्तर की ओर का दिशा ज्ञान कराता है। दक्षिणी ध्रुव में दक्षिणी क्राॅस को पहचानें। उस क्राॅस से लगभग साढ़े चार गुना लंबी एक कल्पना रेखा बना लें। वही दक्षिण दिशा है।
ओरियन तारा द्वारा दिशा ज्ञान
ओरियन तारा की पहचान के लिए आकाश में तीन चमकते हुए तारों से डमरू बना हुआ देखें। यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों से देखा जा सकता है। क्योंकि यह सर्वदा भूमध्य रेखा के ऊपर रहता है, इसलिए यह सर्वदा पूर्व से उदय होता है और पश्चिम में छुपता है। व्यक्ति चाहे पृथ्वी पर कहीं पर भी हो, इसके उदय होने से पूर्व दिशा का ज्ञान हो जाता है।
पेड़ों द्वारा दिशा ज्ञान
पेड़ों को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि उनकी उत्तरी दिशा दक्षिणी दिशा से ज्यादा गीली होती है और वहां पर ज्यादा काई भी पायी जाती है। दक्षिण की ओर उनकी अधिक शाखाएं होती हैं। यह इसलिए, क्योंकि उत्तरी अक्ष में सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है। यदि ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि चीटियां भी अपने बिल दक्षिण दिशा की ओर बनाती हैं। यदि कोई पहाड़ी इलाके में हो, तो वह पाएगा कि दक्षिण दिशा में अधिक हरियाली और घनी घास होती है। फल भी दक्षिण दिशा में जल्दी पकते हैं। उपर्युक्त विधि द्वारा दिशा का केवल अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन पूर्ण ज्ञान नहीं मिलता, क्योंकि कभी-कभी, वायु के कारण, उपर्युक्त तथ्यों में अंतर आ जाता है।

हस्तरेखा और आयुर्विज्ञान

मारे मस्तिष्क का बायां भाग हमारे दाएं हाथ को नियंत्रित करता है एवं दायां भाग बाएं हाथ को। चिकित्सा विज्ञान बताता है कि हमारा बायां भाग हमारी बोलचाल, लिखाई, वैज्ञानिक गणना और विद्व ता को नियंत्रित करता है जबकि दायां भाग हमारे संगीत और कला को संरक्षित करता है और यही कारण है कि पुरुष को विज्ञान का प्रतीक मानते हुए बाएं मस्तिष्क को नियंत्रित करने के लिए दाएं हाथ में रत्न पहनाए जाते हैं एवं स्त्री को कला का प्रतीक मानते हुए दाएं मस्तिष्क को नियंत्रित करने हेतु बाएं हाथ में रत्न पहनाए जाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली शिशु के प्रथम रुदन स्वर (प्रथम श्वास) के समय की बनाई जाती है। इसी प्रकार प्रश्न विज्ञान में जिस समय प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क में प्रश्न उभरता है, उस समय की कुंडली बनाई जाती है। शकुन या स्वर विज्ञान में किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले शकुन या स्वर देखा जाता है। लेकिन हस्तरेखा शास्त्र मे हस्तरेंखाएं शिशु के जन्म लेने से पहले ही विद्यमान रहती है। इसका अर्थ है कि विधाता ने व्यक्ति का भाग्य जन्म लेने से पूर्व ही लिख दिया होता है। तो यह कब लिखा जाता है?
चिकित्सा विज्ञान का मानना है कि हथेली पर मुख्य रेखाएं ढाई से तीन महीने के गर्भ में ही बन जाती हैं, और सूक्ष्म रेखाएं, जिन्हें फिंगर प्रिंट्स (माइक्रो लाइंस) कहते हैं, गर्भ में छः महीने के होेते-होते पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं। आयुर्विज्ञान का मानना है कि हस्तरेखाओं का विस्तृत ज्ञान 21वें क्रोमोजोम में छिपा होता है अर्थात् हमारी हस्तरेखाएं पूर्णतया आनुवंशिक आधार पर विकसित होती हैं। इस कारण व्यक्ति का भाग्य तो उसी दिन लिख दिया जाता है, जिस दिन शुक्राणु की अंडाणुओं से युति होती है। शेष समय तो केवल उसके पूर्ण रूप से विकसित होकर स्थूल रूप मे दिखाईं देने मे लगता हैं। इसी ज्ञान के आधार पर हमारे ऋषि मुनियो नें स्वस्थ एवं बुद्धिमान शिशु के प्रजनन हेतु गर्भाधान मुहूर्त की संरचना की है। इस मुहूर्त मे गर्भंधारण से स्वस्थ शुक्राणु ही स्वस्थ अंडाणुओं के साथ युति कर स्वस्थ शिशु की करते हैं।
आयुर्विज्ञान में शोध के अनुसार 21वें क्रोमोजोम मे अनियमितता कें कारण बच्चों मे मानसिक अनियमितताएं पैदा हो जाती हैं और उनकी हस्तरेखाओं में मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा दोनों आपस में मिलकर एक रेखा बनाती हुई पाई जाती हैं। आयुर्विज्ञान का ऐसा भी मानना है कि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा आपस में तब जुड़ती हैं जब गर्भावस्था के प्रारंभ काल में माता को किसी भी प्रकार की मानसिक
परेशानी या तनाव हो। यह सिद्ध करता है कि गर्भावस्था हस्तरेखाओं में बदलाव ला सकती है। यह सत्य भी है क्योंकि आनुवंशिक तथ्य तो हस्तरेखाओं का सृजन करते ही हैं, गर्भावस्था का लालन पालन भी जातक के स्वास्थ्य एवं भविष्य को बदल सकता है।
हस्तरेखा ज्ञान मे हस्त पर जों क्षेत्र मस्तिष्क के जिस भाग को क्रियान्वित करता है उसके अनुसार हाथ के विभिन्न क्षेत्रों को विभिन्न ग्रहों से जोड़ दिया गया है। जैसे कि तर्जनी के नीचे के क्षेत्र को गुरु पर्वत कहा गया है क्योंकि इसका सीधा संबंध मस्तिष्क के ज्ञान बिंदु से है। मध्यमा के नीचे के क्षेत्र को शनि क्षेत्र कहा गया है क्योंकि यह मस्तिष्क के कर्म बिंदु से जुड़ा है। कनिष्ठिका का मस्तिष्क की वैज्ञानिक गणना के क्षेत्र से संबंध है, अतः इसके नीचे का क्षेत्र बुध पर्वत माना जाता है।
अनामिका मे दों शिराओ का समावेंश है जबकि बाकी सभी उंगलियों में एक शिरा ही संचालन करती है। मस्तिष्क के अधिकांश भाग पर इसका नियंत्रण है। इस तरह सभी उंगलियों में इसका महत्व सर्वाधिक है और यही कारण है कि इसे सूर्य की उंगली की उपाधि दी गई है। कदाचित इसीलिए अधिकांश रत्नों को इसी उंगली में धारण करने का विधान किया गया है और अंग्रेजी में रिंग फिंगर की उपाधि दी गई है। जप माला का फेरना, तिलक, पूजन आदि भी इसके महत्व के कारण इस उंगली से किए जाते हैं।
विभिन्न रेखाओं को भी हस्तरेखा शास्त्र में उनके फल के आधार पर विभिन्न मान्यताएं दी गई हैं। हृदय रेखा मनुष्य की मानसिकता को एवं मस्तिष्क रेखा व्यक्ति में सोचने समझने व निर्णय करने की क्षमता को दर्शाती है। जीवन रेखा व्यक्ति के स्वास्थ्य को एवं भाग्य रेखा मनुष्य के कर्म और विचारो कें सामंजस्य से उत्पन्न भाग्य को दर्शाती है।

हस्तरेखा ज्ञान: इतिहास और प्रामाणिकता

आयु: कर्म च वितं च विद्या निधनमेव च |
पंचैतान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिन: ||
व्यक्ति की आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु का निर्धारण गर्भ में ही हो जाता है। कर्मवादियों एवं ज्योतिषियों का विवाद युगों-युगों से चला आ रहा है। कर्मवादी अपने पक्ष की प्रबल पुष्टि हेतु प्रायः गीता के इस श्लोक की दुहाई देते हैं:
कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुभर्म ते संगोस्तवकर्मणि ||
अर्थात व्यक्ति को अपना कर्म कर्तव्य समझ कर निरंतर करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म करना उसके हाथ में है। जहां तक किए गए कर्म के फल पाने की बात है उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। यदि फल की चिंता मन में रहेगी तो कर्म अच्छे ढंग से नहीं हो पाएगा। यदि कर्म ही अच्छा नहीं हुआ तो फल कैसे अच्छा मिलेगा। कर्म की अभिलाषा मन में न हो तो कर्म के बाद फल की प्राप्ति न होने पर निराशा नहीं होगी, क्योंकि मन में पहले से फल पाने की चाह बलवती नहीं थी। ‘जब फल ही नहीं मिलना तो कर्म क्यों करें’ का भाव भी मन में नहीं आना चाहिए। ऐसा होने पर अकर्मण्यता घेर लेगी। इसलिए सचेत होकर कर्म करते रहना चाहिए।
हस्तरेखा देखने का प्रचलन भारत में वैदिक काल से रहा है। इसका एक सबसे पुराना प्रसंग रामायण में मिलता है जब नारद मुनि ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा का हाथ देखकर बताया:
जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष |
अस स्वामी एहि कहं मिलिहि परी हस्त असि रेख ||
अर्थात इस कन्या के हाथ की रेखा के अनुसार इसका पति योगी, जटाधारी, निष्कामहृदय, अर्द्धनग्न और अमंगल वेषधारी होगा।
अथर्ववेद में भी हस्तरेखा ज्ञान का उल्लेख है -
कृत दक्षिण हरते, जयो में रानय आहित: |
अर्थात व्यक्ति के दाएं हाथ में पुरुषार्थ और बाएं हाथ में विजय है।
मानव जाति के दोनों हाथों में अंतर है। दायां हाथ कर्म का और बायां हाथ भाग्य का है। दायां हाथ ही देखना चाहिए क्योंकि यही हमारे कर्म को दर्शाता है। हमारे हर कर्म मंे दायां हाथ ही सर्वप्रथम आगे बढ़ता है।
हस्तरेखा विज्ञान समुद्र ऋषि द्वारा रचित सामुद्रिक शास्त्र का ही एक अंग है। सामुद्रिक शास्त्र में शिखा से लेकर पैरों तक सभी अंगों के वर्णन एवं उनके द्वारा भविष्य कथन की विधि बताई गई है। लेकिन उनमें ललाट एवं हस्त रेखाओं का ही सबसे अधिक वर्णन है।
ज्योतिष एवं हस्तरेखा विज्ञान में एक प्रमुख अंतर यह है कि ज्योतिष में जन्म के समय से ही जन्मांग नियत हो जाता है जबकि हमारे कर्मानुसार हमारी हस्तरेखाएं बदलती रहती हैं और इस प्रकार ये रेखाएं हमारे कर्मानुसार परिवर्तित भाग्य को दर्शाती हैं।
जुड़वां बच्चों के भविष्य कथन में ज्योतिष पूरी तरह सक्षम नहीं है। ऐसे में हस्तरेखा ज्ञान भविष्य कथन में सहायक सिद्ध होता है। दो मनुष्यों की, जो एक ही समय और एक ही स्थान पर उत्पन्न हों, हस्त रेखाएं भी भिन्न होती हैं।
हस्तरेखा विज्ञान में अनेक रिक्त स्थान हैं जिनके कारण भविष्य कथन में कमी रह जाती है। जैसे कि जीवन रेखा पूर्ण रूप से हमारी आयु को नहीं दर्शाती है। जिनकी जीवन रेखा छोटी होती है वे भी दीर्घायु होते हैं एवं जो बालक जन्म के तुरंत बाद ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी जीवन रेखा लंबी पाई जाती है। इसी प्रकार विवाह पक्ष, संतान पक्ष, मातृ, पितृ एवं भ्रातृ पक्ष, व्यापार पक्ष आदि के बारे में सटीकता से भविष्य कथन करने में अनेक व्यवधान आते हैं। इन पर ऐसे शोध की आवश्यकता है जिसमें जीवन परिचय सहित हस्तरेखा भंडार बनाया जाए एवं उनमें से सूत्र निकाल कर हस्तरेखा विज्ञान को नया रूप दिया जाए।

सामुद्रिक शास्त्र की सार्थकता

अक्षया जन्म पत्रीयां ब्रह्मणा निर्मिता स्वयं |
ग्रहारेखाप्रदा यस्यां यावज्जीव व्यवस्थिता ||
मनुष्य का हाथ तो ऐसी जन्मपत्री है, जिसे स्वयं ब्रह्मा ने निर्मित किया है, जो कभी नष्ट नहीं होती है। इस जन्मपत्री में त्रुटि भी नहीं पायी जाती है। स्वयं ब्रह्मा ने इस जन्मपत्री में रेखाएं बनायी हैं एवं ग्रह स्पष्ट किये हैं। यह आजीवन सुरक्षित एवं साथ रहती है।
कहा जाता है कि पूर्व काल में शंकर जी के आशीर्वाद से उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने, जनमानस की भलाई के लिए, हस्त रेखा शास्त्र की रचना की। जब यह शास्त्र पूरा होने को आया, तो गणेश जी ने, आवेश में आ कर, यह पुस्तक समुद्र में फेंक दी। शंकर जी ने समुद्र से आग्रह किया कि वह हस्त लिपि वापस करे। समुद्र ने उन प्रतिलिपियों को शंकर जी को वापस दिया और शंकर जी ने तबसे उसको सामुद्रिक शास्त्र के नाम से प्रचलित किया। इस शास्त्र में हस्त रेखा शास्त्र के अतिरिक्त संपूर्ण शरीर द्वारा भविष्य कथन के बारे में बताया गया है।
सामुद्रिक शास्त्र को लोग हस्त रेखा शास्त्र के नाम से अधिक जानते हैं। ज्योतिष एवं हस्त रेखा विज्ञान के 18 प्रवर्तक हुए हैं, जो निम्न हैं- सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के बारे में यूरोप के अनेक हस्त रेखा विद्वानों ने भी चर्चा की है, जैसे-लु काॅटन, क्राॅम्टन, हचिंगसन, सेंटजरमेन, वेन्हम, सेफेरियल, सेंटहिल आदि।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती |
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम ||
हाथों के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में ब्रह्मा विराजते हैं। अतः इनका प्रातःकाल दर्शन करने मात्र से मनुष्य का कल्याण होता है। मस्तिष्क में जो शुभ-अशुभ विचार उठते हैं उनका प्रभाव हमारे हाथों पर तत्काल पड़ता है और हथेलियों में बारीक रेखाएं उभर आती हैं। हाथ या नाखूनों का रंग ही बीमारी का संकेत देता है। हस्त रेखाएं केवल भविष्य का ज्ञान प्राप्त करने में ही नहीं, बल्कि अपराध और अपराधियों से संबद्ध जानकारी प्राप्त करने में भी सहायक होती हैं विश्व के सभी वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि किन्हीं दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट्स समान नहीं हो सकते। यदि किसी का हाथ जल भी जाए तो उसके बाद पुनः जो त्वचा उत्पन्न होती है उसमें रेखाओं एवं उनके निशानों में परिवर्तन नहीं होता। इसका कारण हमारे शरीर के अंदर एक विशेष प्रकार के गुणसूत्रों (क्रोमोजोम्स) का होना है या यूं कहें कि हमारे हाथ की रेखाएं हमारे शरीर में मौजूद गुणसूत्रों (क्रोमोजोम्स) के समायोजन को दर्शाती हैं।
मनुष्य का हाथ विलक्षण कार्यकारी एवं कार्यपालक उपकरण है। हाथ की सुंदर बनावट, उसकी कठोरता, या उसका कोमलपन यह संकेत देते हंै कि जातक मानसिक रूप से कैसा कार्य करने में सक्षम है। मनुष्य का भविष्य, व्यवहार, आयु, भाग्य, कीर्ति, व्यावहारिकता, ज्ञान, शादी, संतान आदि सभी के रुझान के बारे में हस्त रेखाएं पूर्ण रुप से जानकारी देती हैं। हस्त रेखाओं से केवल मनुष्य के व्यवहार के बारे में ही नहीं, अपितु घटना के काल की जानकारी भी रेखाओं की लंबाई से मिल जाती है। हाथ पर सभी ग्रहों के स्थान हैं, जैसे गुरु का स्थान प्रथम उंगली के नीचे, शनि का स्थान मध्यमा के नीचे, सूर्य का स्थान अनामिका के नीचे एवं बुध का स्थान कनिष्ठिका के नीचे एवं अन्य ग्रहों के स्थान हथेली के अन्य भागों पर। हस्त रेखाओं एवं पर्वतों द्वारा यह जाना जा सकता है कि कौन सा ग्रह शक्तिहीन है, या कौन सा ग्रह शक्तिशाली है। साथ ही लगभग उम्र जान कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कौन सा ग्रह किस राशि एवं भाव में होना चाहिए, जिससे वह हाथ के अनुरूप शक्तिहीन, या शक्तिशाली हो। इस प्रकार हाथ द्वारा जन्मपत्री का निर्माण किया जा सकता है। इसी प्रकार जन्मपत्री द्वारा भी, ग्रहों की शक्ति का अनुमान लगा कर, यह बताया जा सकता है कि हाथ में कौन से चिह्न कहां पर पाये जाने चाहिएं, या कौन सा पर्वत उठा होगा, या दबा होगा आदि। आचार्यों ने हस्त रेखा द्वारा जन्मपत्री गणना की कई विधियां बतायीं हैं। लेकिन पूर्ण रूप से पत्री बना लेने के लिए अत्यंत अभ्यास की आवश्यकता है। यह आवश्यक नहीं कि हाथ देख कर जन्मपत्री का निर्माण पूर्ण रूप से किया जा सके।
एक प्रश्न यह उठता है कि हस्त रेखा विज्ञान अधिक सटीक है, या ज्योतिष विज्ञान। इसमें कोई संदेह नहीं कि ज्योतिष सभी विद्याओं में उत्तम है। हस्त रेखा विज्ञान में किसी रेखा का सही-सही उद्गम निकाल कर, उसकी लंबाई, या कार्यकाल निकालना बहुत कठिन है, जबकि ज्योतिष में पूर्ण गणित के माध्यम से सटीक गणना संभव है। लेकिन जन्म विवरण उपलब्ध न होने पर हस्त रेखा विज्ञान से उत्तम भविष्य जानने की अन्य कोई विधि नहीं है।

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Monday, 9 May 2016

साप्ताहिक राशिफल 09 मई से 15 मई 2016

इस सप्ताह की शुरुआत में ही गुरु की टेढ़ी चाल बदलकर सीधी हो जाएगी। जिसके प्रभाव से परेशान चल रहे लोगों के लिए अच्छा समय शुरू होगा। फालतू खर्चों में कमी आएगी। नौकरी और बिजनेस में अचानक कुछ अच्छे मौके आएंगे। अन्य ग्रहों के प्रभाव से बड़े और खास काम शुरू होंगे। तनाव और कामकाज की रुकावटें भी खत्म होंगी। नए और बड़े लोगों से कॉन्टैक्ट होंगे। अपोजिट जेंडर वालों से सहयोग मिलेगा। इसके अलावा कुछ राशियों पर ग्रहों का अशुभ असर होने से पैसों का नुकसान होगा। पद या बड़ी जिम्मेदारी हाथ से निकल जाएगी।
मेष -----इस सप्ताह की शुरुआत आर्थिक लाभ से होने के योग बन रहे हैं। पैसा आने लगेगा। उच्चस्थ पदाधिकारियों से संबंध अच्छे बनेंगे। आप गंभीर हैं, तो इस सप्ताह के बीच के दिनों में आपको करियर क्षेत्र में प्रगति के अच्छे अवसर मिल सकते हैं। आप जितने व्यावहारिक रहेंगे, उतने सफल भी रहेंगे। इस सप्ताह आपके संवादों में बहुत ऊर्जा रहेगी। युवा साथी और घर के युवा सदस्यों से आपको बहुत समर्थन और सहायता मिल सकती है। बिजनेस में आप बहुत सफल भी रहेंगे। साथियों और रिश्तेदारों का महत्व आपके लिए इस सप्ताह ज्यादा होता जाएगा। सहयोग और समन्वय बना रहेगा। अचानक यात्राओं का योग बन रहा है। नए लोगों से मेलजोल बनेगा। रुका हुआ पैसा वापस मिल सकता है। राजनीति वालों के लिए समय शुभ रहेगा। सप्ताह के बीच का समय सावधानी से निकाल लें। सप्ताह के आखिरी दिन आपके लिए शुभ हो सकते हैं।
करियर-इन सात दिनों में आपके कॉन्टैक्ट और मजबूत होंगे। धन लाभ होगा। मेष राशि के स्टूडेंट्स दौड़-धूप से परेशान हो सकते हैं।
हेल्थ-मुंह और दांतों के पुराने रोग फिर से परेशान कर सकते |
वृष ------इस सप्ताह की शुरुआत में ही आपके आसपास के कई लोग करियर, नौकरी, बिजनेस के क्षेत्रों में साफ प्रगति करते नजर आएंगे। हालांकि वे सारे आपके बहुत ही नजदीकी लोग हैं, लेकिन उनकी प्रगति को देखकर आपके मन में भी कुछ न कुछ करने की इच्छा तेज होती जाएगी। इस सप्ताह दफ्तर में आप पर थोड़ा दबाव भी बना रह सकता है। वरिष्ठजनों के साथ बातचीत में आप थोड़ी सावधानी रखें। बिना तैयारी के बात करेंगे, तो आपकी गलती पकड़ी जाएगी। निजी मामलों में आपको सफलता मिल सकती है। अविवाहितों के लिए विवाह प्रस्ताव आएंगे। कार्यक्षेत्र में सफलता, पैतृक व्यवसाय में लाभ होगा। अनचाहे निर्णय भी लेने पड़ सकते हैं। महत्वपूर्ण वस्तु गुम हो जाने के योग बन रहे हैं सावधान रहें। उस वस्तु के रूप में कोई जरूरी दस्तावेज भी गुम हो सकते हैं। स्थितियों को सकारात्मक दृष्टि से देखें। अभिनय के क्षेत्र वालों के लिए समय शुभ रहेगा।
करियर-वृष राशि वालों की प्रोफेशनल लाइफ और अच्छी रहेगी, लेखन संबंधित मामलों में सावधान रहें। दस्तावेजों संबंधित नुकसान हो सकता है। इस राशि के सभी क्षेत्रों के स्टूडेंट्स सावधान रहें। महत्वपूर्ण दस्तावेज या कागज गुम होने के योग बन रहे हैं।
हेल्थ-गेस्ट्रिक प्रॉब्लम हो सकती है।
मिथुन ------अच्छे व्यापार की स्थितियां बन सकती है। इस सप्ताह की शुरुआत में बाहरी स्थानों से शुभ समाचार मिल सकते हैं और आपके खर्च बढ़ सकते हैं। आप सही दिशा में कदम आगे बढ़ाएंगे। मन की आवाज सुनें और फिर निजी या व्यावसायिक मामलों में कोई कदम बढ़ाएं। आप दूसरों का भला करने, उन्हें प्रेरित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और इस सप्ताह की शुरुआत में ही आपको इसके अवसर मिलेंगे, जिनके लिए आपको सराहना भी मिलेगी। नए चिंतन, नई तकनीक से प्रेरित होंगे। संचार से जुड़े उपकरण खरीद सकते हैं या आपके दफ्तर में उपलब्ध होंगे। विज्ञान और तकनीक से जुड़े हर कार्य में सफलता मिलेगी। खुद आपके मन में जो नया विचार चल रहा है, इस सप्ताह आप उसे मूर्त रूप दे सकेंगे। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के ये समय शुभ रहेगा। चंद्रमा इन सात दिनों में गोचर कुंडली में आपकी राशि के बारहवें भाव से शुरू होकर पराक्रम भाव तक जाएगा।
करियर-कार्यक्षेत्र में सोच-समझकर लिए गए निर्णय आपको बड़ा फायदा देने वाले रहेंगे। इस राशि के स्टूडेंट्स स्वास्थ्य का ध्यान रखें, सक्सेस के लिए शॉर्टकट न लें।
हेल्थ-मिथुन राशि वालों को खराब पानी से होने वाले रोग परेशान कर सकते हैं।
कर्क ------इस राशि वालों के लिए सप्ताह की शुरुआत ठीक और सप्ताह के बीच का समय कुछ ठीक नहीं होगा। इस सप्ताह आपको ऐसे अवसर मिल सकते हैं जिनमें आप अपनी प्रतिभा सबके सामने बता सकेंगे। वे काम जिन्हें आपके अलावा कम ही लोग कर सकते हैं, इस सप्ताह आपके सामने आएंगे। इस सप्ताह आप अपनी आदतों या अपने लालच पर नियंत्रण रखें, खासकर सप्ताह के शुरुआती दिनों में। आपका वजन बढ़ सकता है और आपको अपने खानपान पर नियंत्रण रखना होगा। सप्ताह के बीच के दिनों में दफ्तर में कुछ झंझट हो सकती है। आपकी रचनाशीलता और आपके विचार आपका कोई नुकसान नहीं होने देंगे, फिर भी वह दिन आप यथासंभव शांति से गुजार लें। सप्ताह के अंतिम दिन बहुत शांति, सहजता और आनंद से बीतेंगे। आपको धन लाभ और फायदा होगा। विभिन्न स्थितियों में कई भूमिकाएं एक साथ निभाना पड़ सकती है। सप्ताह के आखिरी दिनों में आपको दूसरों से सराहना मिलेगी। किसी पुराने व्यक्ति से मिलना संभव है। दक्षिण दिशा की महत्वपूर्ण यात्रा होगी। मानसिक रूप से शांत रहें। तेल मशीन, पुरातत्व और इतिहासकारों के लिए समय शुभ है।
करियर- कोई नया निर्णय लेने के लिए समय सही नहीं है। इस सप्ताह आपको परेशान होना पड़ सकता है। कुछ स्टूडेंट्स को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
हेल्थ-सेहत में गिरावट खुद महसूस भी कर सकते हैं। नींद की कमी और थकान से परेशान रहेंगे।
सिंह-----चतुराई और कौशल से इन सात दिनों में आप सफल होंगे, लेकिन अनिर्णय की स्थिति भी इन सात दिनों में बनी रह सकती है। दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ें। इस सप्ताह कोई ऐसा बड़ा काम पूरा होने के योग हैं, जो आपके हित में है। सप्ताह के बीच में आपके कामकाज को वरिष्ठजनों से तारीफ भी मिल सकती है। साथ काम करने वाले भी आपकी सराहना करेंगे और आप सभी को साथ लेकर कोई बड़ा काम करने में सफल रहेंगे। अधूरे पड़े काम निपट जाएंगे। नए पुराने दोस्तों से नए सिरे से तालमेल बनेगा। आपका यश बढ़ेगा। साझेदारी संबंधी घटनाक्रम बनेगा। वैवाहिक जीवन में प्रतिकूलता की स्थिति भी पैदा हो सकती है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित होगा। धैर्य और लगातार प्रयास करते रहने की क्षमता से आप लक्ष्यों के प्राप्त करने में सफल होंगे। इस सप्ताह के आखिरी दिन आपके लिए थोड़े खर्च वाले हो सकते हैं। डॉक्टर, वकीलों और शासकीय कर्मचारियों के लिए समय शुभ है। आपके लिए यह सप्ताह कर्म भाव के चंद्रमा से शुरू होगा और आपकी राशि तक जाएगा।
करियर-इन सात दिनों में बड़ा निर्णय तो लेना पड़ेगा, लेकिन आप समय पर काम न कर पाने से परेशान भी हो सकते हैं। मेडिकल और कानूनी पढ़ाई करने वालों के लिए ये सात दिन अच्छे रहेंगे।
हेल्थ-लगातार काम करने से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से परेशान हो सकते हैं।
कन्या -----इस सात दिनों में कन्या राशि वालों के लिए मेहनत और पुरुषार्थ से उन्नति के योग बनेंगे। किस्मत का साथ भी मिलेगा। इस सप्ताह आप सफलता के लिए बहुत बेचैन भी हो सकते हैं। सफलता प्राप्त करने के लिए पूरी ताकत लगाकर काम करेंगे। आप हर संभव सूचनाओं पर नजर बनाए रखें। आपको मिलने वाली सूचनाएं बहुत खास भी रहेगी। भाग्य भाव से इन सात दिनों की शुरुआत हो रही है और गोचर कुंडली में चंद्रमा के व्यय भाव तक आते-आते सप्ताह खत्म हो जाएगा। काम का बोझ भी वास्तव में बहुत ज्यादा हो सकता है। जिस सकारात्मक बदलाव का इंतजार है, वह सप्ताह के बीच में होने की संभावना है। ऑफिस में खींचतान और मेहनत तो रहेगी, लेकिन आपको फायदा भी होगा। धन लाभ होने वाला है। मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पैसों में वृद्धि होगी। इन सात दिनों में आप शत्रुओं से जीत जाएंगे। पेट संबंधित परेशानियां रहेगी। कानूनी मामलों में भी आपकी ही विजय होगी, लेकिन मानसिक अशांति का भी सामना करना पड़ेगा। शेयर बाजार से जुड़े मुद्दों में सफलता और व्यवसायियों के लिए समय अनुकूल रहेगा।
करियर- इन दिनों में धन लाभ होगा और शेयर बाजार से जुड़े मामलों में सफलता मिलेगी। स्टूडेंट्स के लिए ये सात दिन अच्छे रहेंगे। आसानी से सफल भी हो जाएंगे।
हेल्थ- पेट के रोग हो सकते हैं। भोजन संबंधित सावधानियां रखें।
तुला ------नई योजनाओं में निवेश के लिए समय अशुभ हो सकता है। इस सप्ताह के शुरुआती दिन आपके लिए थोड़े हेक्टिक हो सकते हैं। शुरुआती दिनों में चंद्रमा गोचर कुंडली के आठवें भाव में होने से आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे-जैसे दिन बीतेंगे वैसे-वैसे आपके लिए समय अच्छा आ सकता है। भविष्य के लिए योजना बना लें और हर संभव मौके पर भाग्य आजमा कर देखें। किसी खास काम के लिए आपको तलाशा भी जा सकता है। कोई ऐसा काम मिल सकता है, जिसका सरोकार आम लोगों से हो। बिजनेस के सिलसिले में यात्रा हो सकती है। जोखिम से बचें। संतान की ओर से थोड़े परेशान भी रहेंगे। पुराने रोगों से परेशान होने के योग बनेंगे। अचानक धन लाभ भी हो सकता है। व्यावसायिक अवसर सामने आएंगे, लेकिन कुछ फैसलों में आप थोड़े असहज हो सकते हैं। निजी संबंध प्रेम और सहयोग पूर्ण रहेंगे। शारीरिक परेशानियां भी हो सकती है।
करियर-नई योजनाएं शुरू करने से बचें। रोजमर्रा के कामों में धन लाभ होने के योग बनेंगे। कम्प्यूटर फील्ड से जुड़े लोगों के लिए समय अच्छा है। आगे बढ़ेंगे। इंजीनियरों को परीक्षा में आसानी से सफलता मिलेगी।
हेल्थ-मुंह और दांतों के रोग हो सकते हैं सावधान रहें।
वृश्चिक ------इस सप्ताह आपके जीवन का एक नया दौर शुरू हो रहा है। इस दौर में आपकी वाणी, नजरिया और आपका चिंतन बहुत हद तक आपके मन से प्रेरित रहेगा। सामने नजर आने वाली बातें आपको जरा भी प्रभावित नहीं कर सकेंगी। कोई गोपनीय बात इन दिनों में आपको पता चलेगी। अपने लक्ष्यों के प्रति आप समर्पित रहेंगे। इस सप्ताह की शुरुआत कुंडली के सप्तम भाव के चंद्रमा से होगी और कर्म भाव तक चंद्रमा जाएगा किसी कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण आपको अचानक या अनपेक्षित ढंग से मिल सकता है। पुरानी बातें दिलों दिमाग में चलती रहेगी और आपको इन बातों में खोया रहना ही अच्छा लगेगा। इन सात दिनों की शुरुआत में आपको थोड़ा परेशान तो होना पड़ेगा, मानसिक रूप से परेशान भी हो सकते हैं, लेकिन आपका समय शुभ भी रहेगा। आपकी परेशानियों में आपके साथ पार्टनर रहेगा। रोजमर्रा के काम रुक-रुक कर ही सही, लेकिन पूरे हो जाएंगे। धन हानि से बचें। माता के लिए समय थोड़ा प्रतिकूल रहेगा। कार्यक्षेत्र में पदोन्नति का योग भी बनेंगे। भूमि-भवन और वाहन का संयोग बनेगा। ठेकेदारों और व्यवसायियों के लिए समय शुभ रहेगा।
करियर- कार्यक्षेत्र में पदोन्नति के योग बनेंगे, शत्रुओं से सावधान रहें। स्टूडेंट्स के लिए समय अच्छा है।
हेल्थ- वृश्चिक राशि वालों को कोई मौसमी रोग हो सकता है। सावधान रहें।
धनु ------यह समय थोड़ा अनुकूल और थोड़ा प्रतिकूल, दोनों तरह के फल देने वाला रहेगा। योजनाएं धीमी गति से पूरी होगी। सप्ताह की शुरुआत में आप थोड़ा परेशान भी हो सकते हैं। अचानक यात्रा का योग बनेगा। इस सप्ताह आप अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तैयार रहेंगे। आपका पूरा ध्यान और ऊर्जा उसी दिशा में लगी रहेगी। आपके जीवन में उच्च तकनीक प्रणालियों का महत्व बढ़ता जाएगा। आज कुछ नया सामान खरीदने का मन बनेगा। आप किसी भी भीड़भाड़ वाले स्थान पर जाने से संकोच करते रहेंगे। इन सात दिनों में आपके मन में आराम की इच्छा ज्यादा रहेगी। बॉस के साथ आपकी चर्चा सफल भी रहेगी। बदलावरों का प्रतिरोध न करें। दोस्तों से फायदा और सहयोग दोनों मिलेगा। नई ऊर्जा का संचार होगा। लेखकों, बुद्धिजीवियों, कवि और प्रोफेसरों के लिए समय शुभ रहेगा। सप्ताह के बीच में आपको रोजमर्रा के कामों से जुड़ा कोई ऑफर भी मिल सकता है।
करियर-प्रोफेशन लाइफ के लिए समय थोड़ा नकारात्मक फल देने वाला रहेगा। स्टूडेंट्स इंटरव्यू में थोड़ा तनावग्रस्त और परेशान रहेंगे, लेकिन किस्मत का साथ मिलेगा और सफल होंगे।
हेल्थ-सुस्ती दूर होगी। ताजगी महसूस होगी और काम करने की नई ऊर्जा भी आप में आएगी।
मकर ------बिजनेस में कुछ अच्छे मौके भी आपको मिल सकते हैं। इस सप्ताह अचानक धन लाभ के योग बनेंगे। वाकचातुर्यता से फायदा उठा लेंगे। अपने समय में बदलाव आता महसूस करेंगे। इस सप्ताह आपकी महत्वाकांक्षाएं भी तेल होती जाएंगी। कम समय में ज्यादा उपलब्धि हासिल करने की, अचानक लाभ होने की स्थिति है। कानूनी मामलों में भाग्य आपका साथ देगा। कार्यक्षेत्र में आप किसी उलझी समस्या का समाधान निकालने में सफल रहेंगे। नए विषय का अध्ययन शुरू हो सकता है। सप्ताह के बीच में आपका भाग्य आपका इस तरह साथ देगा कि आप लगभग सभी मौकों पर सही समय पर पहुंचेंगे और सही शब्द आपके मुख से निकलते जाएंगे। दोस्तों से सहयोग मिलेगा। निवेश के लिए समय शुभ रहेगा। माता का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। शेयर बाजार से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा। सप्ताह के बीच में दुश्मनों से परेशान हो सकते हैं, लेकिन आपका पलड़ा भारी रहेगा।
करियर-ये सात दिन प्रोफेशनल लाइफ के लिए अच्छे रहेंगे। कोई बड़ा फायदा आपको मिल सकता है। स्टूडेंट्स किसी न किसी मामले में उलझे रह सकते हैं।
हेल्थ-दौड़-धूप करने से थकान महसूस हो सकती है। सावधान रहें।
कुंभ ------आपकी सेहत के लिए इन सात दिनों की शुरुआत थोड़ी परेशानी वाली हो सकती है। सेहत के लिए प्रतिकूल समय है। जोखिम न लें। आर्थिक हानि हो सकती है। इस सप्ताह कार्यक्षेत्र में आपको अच्छी सफलता मिलेगी। प्रबंधन संबंधी कामकाज में, व्यावहारिक मामलों में आप बहुत सफल रहेंगे। दफ्तर के विवाद सुलझाने में या समस्याओं का समाधान निकालने में आपकी बड़ी भूमिका हो सकती हैं। नौकरी के क्षेत्र में आप अपने काम से काम रखें, कोई बड़ा उलटफेर होने की संभावना नहीं है। सब सामान्य ही रहने की उम्मीद है। सप्ताह के बीच में बिजनेस में या अन्य तरीकों से आपको अचानक धन लाभ तो हो सकता है, लेकिन खर्चे भी होते रहेंगे। किसी विचार को लेकर आप बहुत जोश में रहेंगे। छोटी- मोटी यात्रा का योग बनेगा। पुरानी योजना और पुराने मित्र काम आएंगे। सप्ताह के बीच मे दुश्मनों पर जीत मिलेगी। सप्ताह के आखिरी दिनों में आपके रोजमर्रा के कामों से आपको फायदा होने लगेगा। कार्यक्षेत्र में सूक्ष्म बदलाव आएंगे। तकनीकी और संचार क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा।
करियर-आगे बढ़ने के लिए अचानक कुछ अच्छे मौके मिल सकते हैं। आलस्य न करें वरना मौके गंवा भी देंगे। इस राशि के सभी तरह के इंजीनियर्स के लिए समय अच्छा है।
हेल्थ-मानसिक परेशानियां, तनाव और चिंताओं से नींद की कमी हो सकती है। थकान और आलस्य से परेशान भी होना पड़ सकता है।
मीन -------सप्ताह की शुरुआत में मीन राशि के लोगों के लिए समय अच्छा रहेगा। अचानक यात्राओं का योग बन रहा है। इस सप्ताह के बीच में आपको धन लाभ का एक बहुत अच्छा अवसर मिलना है। पूरे सप्ताह आपकी मानसिक ऊर्जा चरम पर रहेगी। बातचीत में, भाषण कला में आप बहुत सफल रहेंगे। संतान, शिक्षा, राजनीति, यात्रा, जमीन-जायदाद के क्षेत्रों में आप सफल रहेंगे। सप्ताह के अंत में आपको आवारा पशुओं से और नशे के आदी लोगों से सावधान रहना होगा। बदलता मौसम आपको कोई परेशानी दे सकता है, सावधान रहें। इन सात दिनों में वैवाहिक जीवन में परिस्थितियां प्रतिकूल भी हो सकती है। बड़े फैसलों को टाल दें तो आपके लिए अच्छा रहेगा। वाणी में संयम भी जरूरी है। आयात-निर्यात के क्षेत्र वालों के लिए समय शुभ है। इन सात दिनों में कुंडली के तीसरे भाव से शुरू होकर छठे भाव तक जाएगा।
करियर-इस सप्ताह में धन हानि भी हो सकती है। बिजनेस से जुड़े बड़े निर्णय इन दिनों में न लें तो ही अच्छा है। इस राशि के स्टूडेंट्स को सीनियर्स की मदद मिलेगी। नए लोगों से कुछ नया सीखने को मिलेगा।
हेल्थ-ये सप्ताह सेहत के मामले में उतार-चढ़ाव भरा हो सकता है। पुराना रोग खत्म होगा तो नया रोग शुरू हो सकता है।

श्री बगलामुखी का परिचय

ॐ हिम् बंगलामुखी सर्वदुष्टानां वांच मुखं पदं स्तंभय
जिह्वाम कीलय, बुद्धि विनाशय हीं स्वाहा
व्यष्टिरूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टिरूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पीतांबर विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रा माला, पीत पुष्प एवं पीत वस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवां स्थान है।
काला तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी |
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या घूमावती तथा |
बंगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मितका |
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या प्रकिर्तिता: |
इनके ध्यान में बताया गया है कि ये सुधा समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीत वर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जिना और दूसरे हाथ में मुगदर है।
स्वतंत्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है :
सत्य युग में संपूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आये संकट को देख कर भगवान् महाविष्णु चिंतित हो गये। वह सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जा कर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्री विद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट हो कर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तंभन कर दिया।
बगलामुखी महाविद्या भगवान् विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है। मंगलवारयुक्त चतुर्दशी की अर्ध रात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म एवं आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानता के अभिप्राय से है; अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है।
यजुर्वेद की काठक संहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुंदर स्वरूपधारिणी विष्णु पत्नी त्रिलोक जगत् की ईम्री मानोता कही जाती है। स्तंभनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वीरूपा शक्ति है। बगला उसी स्तंभनशक्ति की अधिष्ठात्री देवी है। शक्तिरूपा बगला की स्तंभन शक्ति से द्युलोक वृष्टि प्रदान करता है। उसी से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है और उसी से स्वर्ग लोक भी स्तंभित है। भगवान् श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘विष्टभ्याहमिदं कृत्स्रमेकांशेन स्थितो जगत्’ कह कर उसी शक्ति का समर्थन किया है। तंत्र में वही स्तंभन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है।
श्री बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक, या पारलौकिक देश, अथवा समाज में दुःखद् अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बडवामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पांच मंत्र भेद हैं। कुंडिका तंत्र में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहां तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है।
बगला महाविद्या ऊध्र्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य है। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्य मानी जाती है, भोग्य नहीं। श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना, गुरु के सान्निध्य में रह कर सतर्कतापूर्वक, सफलता की प्राप्ति होने तक, करते रहना चाहिए। इसमें ब्रह्मचर्य का पालन और बाहर-भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। सनत्कुमार ने देवर्षि नारद को और नारद ने सांख्यायन नामक परमहंस को इसका उपदेश दिया। सांख्यायन ने 36 पटलों में उपनिबद्ध बगला तंत्र की रचना की। बगलामुखी के दूसरे उपासक भगवान् विष्णु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुराम ने यह विद्या आचार्य द्रोण को बतायी।

मंत्र सार

मननात त्रायत इति मंत्र:, मनन त्राण धर्माणों मंत्रा: |
मन को शक्ति प्रदान कर के समस्त भयों से रक्षा करने वाले शब्दों को ‘मंत्र’ कहते हैं। मन’शब्द से मन को एकाग्र करना, ‘त्र’ शब्द से त्राण (रक्षा) करना जिसका धर्म है, वे मंत्र कहे जाते हैं। मंत्र ही समस्त जातकों को मंत्रणा प्रदान करता है। मंत्र ही मन को समृद्ध एवं शांत बनाता है। मंत्र के अभिमंत्रण से किसी भी व्यक्ति, वस्तु, या स्थान को सुरक्षित रखा जा सकता है। वर्णमाला के ‘’ से ले कर ‘’ तक 50 अक्षरों को मातृका कहा गया है। मातृका शब्द का अर्थ माता, अथवा जननी होता है। अतः समस्त वाङ्मय की यह जननी है। संसार का व्यवहार शब्दों के द्वारा होता है। इसलिए शब्द शक्ति सर्वोपरि मानी गयी है। ऋग्वेद के अनुसार मंत्र की पराश्रव्य ध्वनि वायु मंडल को बहुत प्रभावित करती है। मंत्र शक्ति क्रियात्मक ध्वनि तरंगों का पुंज है। मंत्र की तरंगें मस्तिष्क तथा ब्रह्मांडीय वातावरण को प्रभावित करती हैं।
मंत्रों की 3 जातियां मानी गयी हैं - पुरुष, स्त्री एवं नपुंसक। जिन मंत्रों के अंत में वषट्, या फट् का उपयोग होता है, वे पुरुषसंज्ञक हैं। स्वाहा, अथवा वौषट होने पर स्त्रीसंज्ञक तथा हुं एवं नमः अंत वाले मंत्र को नपुसंकसंज्ञक माना गया है। वशीकरण, उच्चाटन एवं स्तंभन में पुरुष मंत्र, क्षुद्र कर्म एवं रोगों के नाश के लिए स्त्रीसंज्ञक मंत्र एवं अभिचार में नपुंसक मंत्रों का प्रयोग सिद्धप्रद होते हैं।
1 अक्षर के मंत्र को ‘पिंड’ संज्ञा, 2 अक्षर को कर्तरी, 3 से 9 अक्षरों तक के मंत्र को ‘बीज’ मंत्र, 10 अक्षर से 20 अक्षर तक को ‘मंत्र’, 20 से अधिक अक्षर के मंत्रों को संज्ञा ‘माला’ माना गया है। इन्हीं नाद शक्तियों के पृथक-पृथक प्रभाव से मंत्र के जपकर्ता को लाभ होता है। जिस तरह किसी बीज में सूक्ष्म रूप से वृक्ष का सर्वांग छिपा होता है, जिसे प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता है, उसी प्रकार छोटे से मंत्र में उसके अनेक गुण प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखे जा सकते हैं।
अभीष्ट सिद्धि के लिए समस्त मंत्रों को बतायी गयी संख्या में जप, पाठ आदि करना लाभप्रद होता है। यदि किसी मंत्र के प्रति जातक को संशय, भ्रांति हो, तो मंत्र के शुरुआत में ‘ह्रीं श्रीं क्लीं’ लगा कर जप-पाठ आदि करना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसी भी मंत्र के आदि एवं अंत में प्रणव ‘ॐ’ लगा कर जप-पाठ आदि करना सिद्धिदायक होता है। जिन मंत्रों का जप किसी विशेष कार्यसिद्धि के लिए होता है, उनके लिए न्यास, विनियोग, संकल्प, उत्कीलन, शापोद्धार आदि आवश्यक होते हैं, यद्यपि निष्काम भावना के जप में न ही विशेष नियम-संयम का प्रावधान है, न ही संकल्पादि की आवश्यकता; अर्थात निष्काम भावना से यथाशक्ति यथासंख्यात्मक जप-पाठ किया जाता है। समस्त मंत्रों के उद्भवकर्ता शिव को मंत्रों का जनक माना जाता है। अतः किसी भी मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर करें, तो बेहतर परिणाम सम्मुख आएंगे। ज्योतिष के प्रांगण में भी मंत्रों का महत्व सर्वोपरि है। जब किसी जातक की कुंडली में किसी ऐसे ग्रह की कमजोरी देखी जाती है, जिस ग्रह का रत्न धारण नहीं हो सकता है, तो ऐसी स्थिति में मंत्र जप ही लाभ प्रदान करता है।
औषधि, मणि, या मंत्र तब कार्य करते हैं, जब ग्रह-नक्षत्र आदि शुभ होते हैं। अशुभ काल में सभी निष्फल हो जाते हैं; अर्थात, यदि समय सही चल रहा हो, तो मंत्र अवश्य शुभ फल देते हैं।
मंत्र चिकित्सा अनेक असाध्य रोगों के लिए भी उचित मानी गयी है। जिन रोगों का निदान दुर्लभ होता है, अथवा विषघटी, गंडमूल, विष कन्या तथा अनेक प्रकार के दोषों का उपाय, अन्य उपायों की अपेक्षा, मंत्र द्वारा उत्तम माना गया है।
दीपावली, दशहरा, शिव रात्रि, नव रात्रि, सूर्य एवं चंद्र ग्रहण आदि विशिष्ट पर्वों में मंत्र जप का महत्व एवं फल अधिक होता है। मंत्र शक्ति की वृद्धि के लिए मंत्र का पुरश्चरण (नियमित एवं निश्चित संख्यात्मक जप) करना चाहिए; अर्थात् जब तक कोई जातक अमुक मंत्र का निश्चित पुरश्चरण नहीं करता है, तब तक वह मंत्र उसे पूर्ण फलीभूत नहीं होता है। अतः किसी मंत्र का पुरश्चरण कर लेने से उसमें असीमित शक्ति जाग्रत हो जाती है।
प्रत्येक अक्षर, अथवा शब्द का जन्म तो होता है, परंतु उसका विलय नहीं होता है। इसी लिए शब्द को ब्रह्म माना गया है। यदि यही अक्षर शुद्ध सात्विक तथा धर्म एवं आध्यात्म से जुड़े हों, तो ये अक्षर, अथवा शब्द ‘मंत्र’ बन कर, ब्रह्मांड में अमरता प्राप्त कर के, युगो-युगों पर्यंत अपना प्रभाव संपूर्ण विश्व को प्रदान करते रहते हैं।
शब्द के इसी प्रभाव के कारण मंत्रों को सर्वोपरि माना गया है। श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किया गया मंत्र जप, अथवा मंत्र पाठ जातक को निश्चय ही लाभ देता है।

धनागमन का उपाय

धनागमन का मुख्य उपाय लक्ष्मी-कुबेर का स्तोत्र माना गया है। कुबेर देवताओं के कोषाधिपति हैं। आर्थिक उन्नति के लिए इनकी उपासना की जाती है। कुबेर यंत्र को पूजा के स्थान में रखने का बहुत महत्व है।
विधि- दीपावली से पूर्व कुबेर पूजा (धन तेरस) के दिन, अथवा आश्विन माह कृष्ण अष्टमी को इसकी पूजा-उपासना श्रेष्ठ मानी गयी है। लाल वस्त्र पर कुबेर एवं लक्ष्मी यंत्र (धातु का बना) को प्रतिष्ठित कर के, लाल पुष्प, अष्ट गंध, अनार, कमल गट्टा, कमल पुष्प, सिंदूर आदि से पूजन कर के, कमल गट्टे की माला पर कुबेर के मंत्रों का जप करें। जप के पश्चात कनकधारा स्तोत्र का पाठ, लक्ष्मी-गायत्री का पाठ करना शुभ फलों की वृद्धि करता है। पाठ के पश्चात् माला को गले में धारण कर लें।
विष्णु-लक्ष्मी का पूजन-अर्चन कर के, तांबे के बर्तन में शहद का शर्बत बना कर, ब्राह्मण को दान कर के अधिक लाभ पाया जा सकता है। हजार बेल पत्र को धो कर, विष्णु एवं लक्ष्मी के नामाक्षरों में नमः लगा कर, उन्हें अर्पण करना लक्ष्मी की तुष्टि का उपाय है। धन संग्रह: कई बार आय तो होती है, परंतु उसका अपव्यय होता रहता है। न चाहने पर भी, जातक अनेक तरह से खर्चों में पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में निम्न लिखित उपाय सटीक माना गया है:
दीपावली, या किसी भी माह के सर्वार्थ सिद्धि योग, चैत्र शुक्ल पंचमी, अक्षय तृतीया, गुरु पुष्य, भीष्मा एकादशी में से किसी एक दिन जातक, सुबह स्नानादि कर के, मां भगवती के श्री सूक्त का पाठ करें। लक्ष्मी की प्रतिमा को लाल अनार के दाने का भोग लगा कर, आरती आदि कर के, घर से उत्तर दिशा की ओर से प्रस्थान कर, पौधशाला, अथवा अन्यत्र से बेल का छोटा पेड़ घर लाएं। इस बेल के पेड़ को शुद्ध मिट्टी के नये गमले में, लक्ष्मी का सूक्त पढ़ते हुए, लगा दें। इस बेल को घर के उत्तर दिशा में साफ-सुथरे स्थान पर रखें तथा प्रत्येक शाम को इसके पास शुद्ध देशी घी का दीपक जलाएं। जबतक इस बेल की पूजा होती रहेगी, तबतक जातक के घर में लक्ष्मी की वृद्धि होगी एवं अपव्यय बंद हो जाएगा।
कर्ज से छुटकारा- कर्ज़ पाने के लिए कुबेर देव तथा कर्ज चुकाने के लिए दक्षिणावर्ती गणेश की उपासना की जाती है। यदि कर्ज चुकाने की रकम इतनी अधिक हो जाए कि जातक उसे चुकाने में असमर्थ हो, तो ऐसे जातकों को ‘गजेेंद्रमोक्ष’ नामक स्तोत्र का पाठ करने से अधिक लाभ होता है।
विधि- नारद पुराण के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को, या दीपावली के दिन, विधिपूर्वक दक्षिणावर्ती गणेश (जिस गणेश की सूंड दाहिनी ओर घुमावदार हो) की मूर्ति, अथवा तस्वीर को चांदी के सिंहासन पर स्थापित कर के ‘गणपति’ यंत्र को उसके साथ स्थापित कर केे, यंत्र के दाहिनी ओर ‘कुबेर यंत्र’ को स्थापित करें। कर्ज संबंधी कार्य के निमित्त कुबेर मंत्र, अथवा श्री गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का दस हजार की संख्या में जप करें। जप के पश्चात हवन, तर्पण, मार्जन आदि करना आवश्यक अंग माना गया है।
चोरों से धन की रक्षा- बार-बार चोरों द्वारा धन चुराने, या व्यापार में बार-बार हानि होने की स्थिति से निपटने के लिए विष्णु के संग रहने वाली लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।
विधि- ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी (भीष्मा एकादशी) या दीपावली के दिन, गंगादि पुण्य स्थल में, अथवा गंगा जल मिश्रित जल से घर में स्नान कर के, कसौटी पत्थर, अथवा गंडकी नदी से प्राप्त शालिग्राम को श्वेत कमल एवं लक्ष्मी यंत्र को लाल कमल के पुष्प पर स्थापित कर के, पुरुष सूक्त, लक्ष्मी सूक्त को आपस में संपुटित कर पाठ करना अति लाभकारी है। कमल गट्टे को घी में डुबो कर ज्येष्ठा लक्ष्मी के मंत्रों से यथाविधि हवन करने से चिरकाल तक लक्ष्मी का निवास होता है तथा चोरों से रक्षा होती है।
बुरी आत्माओं से धन की रक्षा- जहां भी धन रखने का स्थान होता है, वहां लाल कपड़े में, सिंदूर के साथ, कुबेर, लक्ष्मी, गणेश आदि का यंत्र बांध कर रखना चाहिए। धन के स्थान पर अन्य सामग्री रखने से धन हानि, अथवा अधिक धन खर्च आदि के साथ-साथ अन्य कई प्रकार की हानि की शंकाएं बनी रहती हैं।
विधि- सूर्य ग्रहण, अथवा चंद्र ग्रहण को, अथवा दीपावली की रात्रि को (अर्धरात्रि) धन रखने वाले स्थान पर डाकिनी का आवाहन कर के सूखा मेवा, लाल चंदन, नारियल का गोला, थोड़ी सी सरसों (पीली) लाल पुष्प आदि को लाल कपड़े में बांध कर, डाकिनी के 108 मंत्र पढ़ कर, जल से अभिमंत्रित कर के धन संग्रह के स्थान पर रखने से जातक के धन पर बुरी आत्माओं का कुप्रभाव नहीं पड़ता है।
मन्त्र- ॐ क्रीं क्रीं क्रीं क्लीं हीं ऐ डाकिनी हूँ हूँ हूँ फट रवाहा |

कालसर्प योग के प्रकार और उपाय

अग्रे राहुरध: केतु सर्वे मध्यगता: ग्रहा: | योगोयं कालसर्पाख्यो शीघ्रं तं तु विनाशय ||
आगे राहु हो या निचे केतु, मध्य में सभी सातों ग्रह विधमान हो तो कालसर्प योग बनता है |
कालसर्प योग का प्रभाव :
काल सर्प योग में उत्पन्न जातक को मानसिक अशांति, धनप्राप्ति में बाधा, संतान अवरोध एवं गृहस्थी में प्रतिपल कलह के रूप में प्रकट होता है। प्रायः जातक को बुरे स्वप्न आते हैं। कुछ न कुछ अशुभ होने की आशंका मन में बनी रहती है। जातक को अपनी क्षमता एवं कार्यकुशलता का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है, कार्य अक्सर देर से सफल होते हैं। अचानक नुकसान एवं प्रतिष्ठा की क्षति इस योग के लक्षण हैं। जातक के शरीर में वात, पित्त, कफ तथा त्रिदोषजन्य असाध्य रोग अकारण उत्पन्न होते हैं। ऐसे रोग जो प्रतिदिन क्लेश (पीड़ा) देते हैं तथा औषधि लेने पर भी ठीक नहीं होते हों, काल सर्प योग के कारण होते हैं।जन्मपत्रिका के अनुसार जब-जब राहु एवं केतु की महादशा, अंतर्दशा आदि आती है तब यह योग असर दिखाता है। गोचर में राहु व केतु का जन्मकालिक राहु-केतु व चंद्र पर भ्रमण भी इस योग को सक्रिय कर देता है।
कालसर्प योग के भेद: काल सर्प योग उदित, अनुदित भेद से दो प्रकार के होते हैं। राहु के मुख मेें सभी सातों ग्रह ग्रसित हो जाएं तो उदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है एवं राहु की पृष्ठ में यदि सभी ग्रह हों तो अनुदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है।यदि लग्न कुंडली में सभी सातों ग्रह राहु से केतु के मध्य में हो लेकिन अंशानुसार कुछ ग्रह राहु केतु की धुरी से बाहर हों तो आंशिक काल सर्प योग कहलाता है। यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की धुरी से बाहर हो तो भी आंशिक काल सर्प योग बनता है। यदि केवल चंद्रमा अपनी तीव्रगति के कारण राहु केतु की धुरी से बाहर भी हो जाता है, तो भी काल सर्प दोष बना रहता है। अतः मुख्यतः छः ग्रह शनि, गुरु, मंगल व सूर्य, बुध, शुक्र राहु के एक ओर हैं तो काल सर्प दोष बनता है।
यदि राहु से केतु तक सभी भावों में कोई न कोई ग्रह स्थित हो तो यह योग पूर्ण रूप से फलित होता है। यदि राहु-केतु के साथ सूर्य या चंद्र हो तो यह योग अधिक प्रभावशाली होता है। यदि राहु, सूर्य व चंद्र तीनों एक साथ हों तो ग्रहण काल सर्प योग बनता है। इसका फल हजार गुना अधिक हो जाता है। ऐसे जातक को काल सर्प योग की शांति करवाना अति आवश्यक होता है।
बुध व शुक्र सूर्य के साथ ही विद्यमान रहते हैं। एवं सूर्य को राहु-केतु के एक ओर से दूसरी ओर आने में 6 माह तक लगते हैं। अतः काल सर्प योग अधिकतम 6 माह या उससे कम ही रहता है।
जब जब कालसर्प योग की स्थिति बनती है, पृथ्वी पर ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण एक ओर बढ़ जाता है। जिसके कारण पृथ्वी पर अधिक हलचल रहती है व अधिक भूकंप व सुनामी आदि आते हैं। भूकंप की तीव्रता बढ़ जाती है। ऐसा पाया गया है कि अस्पताल में गर्भपात के केस अधिक होते हैं या अधिक मात्रा में आपरेशन होते हैं, खून का स्राव अधिक होता है एवं मानसिक रोग अधिक होते हैं। अतः कालसर्प दोष का प्रभाव विशेष देखने में आता है।
कालसर्प योग के प्रकार:
द्वादश भावों में राहु की स्थिति के अनुसार काल सर्प योग मुख्यतः द्वादश प्रकार के होते हैं। राहु जिस भाव में होकर कालसर्प दोष बनाता है उसी भाव के फल प्राप्त होते हैं। जैसे -
अनंत- स्वास्थ्य में परेशानी रहती है। षडयंत्र एवं सरकारी परेशानियों को झेलना पड़ता है। अनंत दुखों का सामना करना पड़ता है। बात-बात पर झूठ बोलना पड़ता है। पत्नी से झगड़ा रहता है।
कुलिक- आंखों में परेशानी रहती है, पेट खराब रहता है। लोग बोलने को गलत समझ लेते हैं और उसकी सफाई देनी पड़ती है। धन की कमी महसूस होती है। कुल में क्लेश झेलने पड़ते हैं।
वासुकि- कानों के कष्टों से पीडि़त रहते हैं। भाई बहनों से मेल मिलाप में कमी रहती है। कभी-कभी ऊर्जा का अभाव महसूस होता है। कैंसर आदि रोग से भी ग्रसित होने का भय होता है।
शंखपाल- माता-पिता का स्वास्थ्य खराब रहता है। घर में कलह बनी रहती है। घर में व वाहन में कुछ न कुछ मरम्मत की आवश्यकता पड़ती रहती है। काम में मन नहीं लगता है। व्यवसाय में नुकसान झेलना पड़ता है।
पदम्- संतान कहना नहीं मानती या संतान से कष्ट होता है। सोच-विचार कर किए गए कार्य भी हानि देते हैं। या आखिर में छोटी गलती के कारण नुकसान झेलना पड़ता है।
महापदम- स्वास्थ्य परेशान करता है। मामा की ओर से नुकसान होता है। खर्चे अधिक हो जाते हैं। अचानक अस्पताल आदि पर खर्च हो जाता हैं। जो वित्तीय प्रवाह को बिगाड़ देता है। अक्सर दुश्मन हावी हो जाते हैं या समय व पैसा बर्वाद करवा देते हैं।
तक्षक- पत्नी साथ नहीं देती। पारिवारिक व गृहस्थ जीवन उजड़ा सा रहता है। अपना स्वास्थ्य भी कभी-कभी अचानक खराब हो जाता है। धन हानि होती है।
कर्कोटक- स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। पेट की बीमारी व अपचन बनी रहती है। लोग थोड़ा बोलने पर भी प्रतिक्रिया करते हैं। धन संचय में परेशानी होती है। परिवार में कलह होती है।
शंखचुड- बड़े लोगों से मिलने में धन व समय नष्ट होता है। सिर दर्द या चक्कर आने का रोग हो जाता है। भाग्य साथ नहीं देता। हर काम में दुगनी मेहनत करनी पड़ती है।
घातक- पिता से विचार नहीं मिलते हैं। अचानक हानि हो जाती है। परिवार में कलह रहती है। एक काम अच्छी तरह से सेट नहीें होता। माता-पिता का स्वास्थ्य ध्यान आकर्षित करता रहता है।
विषधर- लाभ अचानक हानि में बदल जाता है। बड़े भाई बहनों का सहयोग नहीं प्राप्त होता। मित्र मंडली समय खराब कर देती है। एक से अधिक संबंध पारिवारिक कलह का कारण बनते हैं।
शेष नाग- रोग व अस्पताल पर विशेष व्यय होता है। कैंसर जैसे रोग तंग करते हैं। अपव्यय होता है। निरर्थक यात्रा होती है। समय-समय पर पैसे की दिक्कत महसूस होती है।
कुछ मुख्य उपाय
1. प्रति वर्ष मे एक बार किसी सिद्धस्थल जैंसे अमलेश्वर महाकाल धाम जाकर कालसर्प दोष की शांति करवाए एवं वर्ष मे एक-दों बार घर मे या मंदिर मे काल सर्पं शांति करवाएं। 2. नाग पंचमी पर रुद्राभिषेक करवाएं व नाग नागिन के एक या नौ जोड़े विसर्जित करें। 3. कालसर्प अंगूठी, लाकेट या यंत्र धारण करें। 4. भगवान विष्णु, शिव, राहु व केतु का पाठ व मंत्र जाप करें। 5. कालसर्प योग यंत्र के सम्मुख 43 दिन तक सरसों के तेल का दीया जलाकर निम्न मंत्र का जप करें। 6. ग्रहण के दिन तुला दान करें व नीले कंबल दान करें। 7. "ॐ नम: शिवाय" मंत्र का जप प्रतिदिन रुद्राक्ष माला पर करें व माला को धारण करें। 8. गरुड़ भगवान की पूजा करें। 9. 7 बुधवार एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से उतारकर प्रवाहित करें। 10. 8, 9, व 13 मुखी रुद्राक्ष का कवच धारण करें।

ग्रहण क्यूँ होते है ???

ज्योतिष में ग्रहणों का बहुत महत्व है क्योंकि उनका सीधा प्रभाव मानव जीवन पर देखा जाता है। चंद्रमा के पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण उसके गुरुत्वाकर्षण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण पूर्णिमा के दिन समुद्र में सबसे अधिक ज्वार आते हैं और ग्रहण के दिन उनका प्रभाव और अधिक हो जाता है।
भूकंप भी गुरुत्वाकर्षण के घटने और बढ़ने के कारण ही आते हैं। यही भूकंप यदि समुद्र के तल में आते है, तो सुनामी में बदल जाते हैं। भूकंप, तूफान, सुनामी आदि में वैसे तो सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल का प्रभाव देखा गया है लेकिन चंद्रमा का प्रभाव विशेष है एवं ग्रहण का प्रभाव और भी विशेष है। ग्रहण अधिकाशंतः किसी न किसी आने वाली विपदा को दर्शाते हैं।
यह तो सर्वविदित ही है कि चंद्र ग्रहण पूर्णिमा और सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन पड़ते हैं। लेकिन प्रत्येक पूर्णिमा या अमावस्या के दिन ऐसा नहीं होता क्योंकि सूर्य, राहु या केतु के साथ नहीं होता जिसके कारण चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी की रेखा से ऊपर या नीचे रह जाता है। पृथ्वी, चंद्र और सूर्य की जो स्थिति ग्रहण देती है वह निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
ग्रहण पड़ने के कुछ नियम विशेष है
पृथ्वी की छाया अधिकतम 859000 मील तक जाती है जबकि चंद्रमा केवल 1 लाख मील से भी कम की दूरी पर स्थित है।
सूर्य ग्रहण कभी भी पूरी पृथ्वी पर दृष्टिगोचर नहीं होता। चन्द्र ग्रहण अधिकतर पृथ्वी के पूर्ण पटल पर दिखाई देता है।
एक वर्ष में अधिकतम 7 ग्रहण हो सकते हैं- चार सूर्य एवं तीन चंद्र या पांच सूर्य एवं दो चंद्र ग्रहण।
चंद्र ग्रहण सूर्य ग्रहण से कम होते हैं, लेकिन सूर्य ग्रहण के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी की छाया से अधिक बार ढक जाता है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण अधिकतम 1 = घंटे का होता है। इस मध्य चंद्रमा 52कला आगे तक चला जाता है।
सूर्य ग्रहण पूर्ण, वलयाकार और आंशिक तीन प्रकार के होते हंै। वलयाकार में चंद्रमा सूर्य के मध्य पर से गुजरता है, लेकिन चंद्रमा के चारों ओर से सूर्य की रोशनी आती रहती है।
चंद्र ग्रहण तभी होता है जब सूर्य 9 दिन के अंदर केतु के ऊपर गोचर करने वाला हो।
चंद्र जब राहु और केतु के ऊपर से गुजरता है एवं सूर्य राहु, केतु से 12.1 0 के अंदर होता है तो चंद्र ग्रहण होता है। यदि सूर्य 9.5 0 के अंदर होता है तो पूर्ण ग्रहण होता है।
सूर्य ग्रहण जब होता है तब सूर्य राहु या केतु से 18.5 0 दूर होता है। 15.4 0 के अंदर होने पर पूर्ण या वलयाकार ग्रहण होता है।
जिस तारीख को पूर्णिमा या अमावस्या होती है उसी तारीख को 19 वर्ष पश्चात वही तिथि होती है। इसे लाक्षणिक चक्र ;डमजवदपब बलबसमद्ध कहते हैं। इस अवधि में चंद्र के 235 चक्र एवं पृथ्वी के 19 चक्र पूर्ण हो जाते हैं।
ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन पश्चात् पुनः उसी शृंखला में आते हैं क्योंकि इस अवधि में चंद्रमा के 223 चक्र एवं राहु से सूर्य के 19 चक्र पूर्ण हो जाते हैं। यह चंद्र चक्र (Saros Cycle) कहलाता है।
सूर्य तथा चन्द्र ग्रहण काल के शुभाशुभ कृत्य:
चंद्र ग्रहण जिस प्रहर में हो उससे पूर्व के तीन प्रहरों में तथा सूर्य ग्रहण से पहले चार पहरों में भोजन नहीं करना चाहिए। केवल वृद्ध जन, बालक और रोगी इस निषेध काल में भोजन कर सकते हैं, उनके लिए भोजन का निषेध नहीं है। ग्रहण काल में अपने आराध्य देव के जपादि करने से अनंतगुणा फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण काल की समाप्ति के पश्चात् गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।शास्त्रो कें अनुसार ग्रहण के समय दिया हुआ दान, जप, तीर्थ, स्नानादि का फल अनेक गुणा होता है। लेकिन यदि रविवार को सूर्य ग्रहण एवं चंद्रवार को चंद्रग्रहण हो, तो फल कोटि गुणा होता है।
आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में यंत्र-मंत्र सिद्धि साधना के लिए ग्रहण काल का अपना विशेष महत्व है। चंद्रग्रहण की अपेक्षा सूर्य ग्रहण का समय मंत्र सिद्धि, साधनादि के लिए अधिक सिद्धिदायक माना जाता है।

ॐ हनुमते नम:

अतुलितबलधाम हेमशैलाभदेह दनुजवनकृशानु ज्ञानिनामग्रगण्यम |
सकलगुणनिधान वानराणामधीश रघुपतिप्रियभक्त वातजातं नमामि ||
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान शरीर वाले, दैत्य रूपी वन का ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं ।।
आश्विनस्यासिते पक्षे स्वात्यां भौमे चतुर्दशी |
मेषलग्नेश्जनीगर्भात स्वयं जातो हर: शिव: || वायुपुराण
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में, चतुर्दशी तिथि को मंगल के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में माता अंजना के गर्भ से स्वयं भगवान शिव हनुमान जी के रूप में प्रकट हुए। इस तथ्य के अनुसार सूर्य कन्या राशि में स्थित है एवं चंद्र सूर्य से कम अंशों पर है अर्थात स्वाति नक्षत्र नहीं हो सकता। इसका स्पष्टीकरण हृषिकेश पंचांग, वाराणसी में मिलता है।
शुक्लादिमासगणनया आश्विनकृष्ण कार्तिककृष्ण तुलार्केमेषलग्ने सायंकाले |
अतश्चचुर्दश्यां सायंकाले जन्मोत्सव: ||
इसके अनुसार: अर्थात शुक्लादि मास गणनानुसार आश्विन कृष्ण पक्ष एवं कृष्णादि मास गणनानुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को, तुला के सूर्य में, मेष लग्न में सायंकाल को श्री हनुमान का जन्म हुआ। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि श्री हनुमान जी का जन्म मास आश्विन शुक्लादि है न कि कृष्णादि। अतः मास प्रवेश में सूर्य अवश्य कन्या राशि में था, लेकिन मास समाप्ति के समय जब कृष्ण चतुर्दशी थी तब वह तुला के मध्य या उच्चांश पर स्थित था। इसी कारण चंद्रमा भी तुला में स्वाति नक्षत्र में स्थित था।
पंचांगों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में हनुमान जयंती मनाई जाती है। लेकिन गीता प्रेस के श्री हनुमान अंक के अनुसार हनुमान जी की माता अंजना जी को उनकी कठोर तपस्या के पश्चात इस दिन वायु देवता ने पुत्र का वरदान दिया था। उसके कुछ समय पश्चात उन्होंने महाराष्ट्र प्रदेश में नासिक के पास अंजना नेरी पर्वत की एक गुफा में श्री हनुमान को जन्म दिया। अतः चैत्र पूर्णिमा उचित रूप में जयंती नहीं है।
श्री राम का जन्म यदि 21 फरवरी, 5115 ई.पू. (संदर्भ संपादकीय, फ्यूचर समाचार, मई 2005) को माना जाए जिसके अनुसार श्री हनुमान श्री राम के समकालीन थे और उनकी उम्र श्री राम की उम्र से कुछ वर्ष कम या अधिक रही होगी, एवं श्री हनुमान की प्रचलित कुंडली में सिंह के गुरु और मकर के शनि को ठीक मान कर वर्ष एवं दिन की गणना की जाए तो श्री हनुमान का जन्म 3 सितंबर, 5139 ई.पू. को लगभग सायं 7 बजे महाराष्ट्र में नासिक और त्रयंबकेश्वर के मध्य कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को स्वाति नक्षत्र में मेष लग्न में हुआ होगा।
ज्योतिष में हनुमान जी की विशेष महत्ता है। शनि के कारण उत्पन्न कष्टों के निवारण, मंगल ग्रह दोष, काल सर्प दोष आदि के निवारण एवं भूत-प्रेत की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए सबसे पहले हनुमान जी ही याद आते है। हनुमान जी के भक्तों को शनि तंग नहीं करता।
हनुमान जी, शिव जी की तरह, शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं एवं श्री रामचंद्र जी की आराधना से अति प्रसन्न होते हैं। हनुमान जी की उपासना में पूजा, जप, पाठ, उपवास, चोला, ध्वजा आदि मुख्य हैं। हनुमान
जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सुंदर कांड, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक एवं हनुमान चालीसा आदि के पाठ का विधान है।
मारुति नंदन की कृपा के लिए मंगलवार का उपवास रखा जाता है। इस उपवास में नमक, मांस, मदिरा आदि वर्जित हैं एवं एक बार भोजन करने का विधान है। गुड़ एवं चने का सेवन विशेष रूप से फलदायी है। ‘ऊँ हनुमते नमः’ श्री मारुति नंदन का सिद्ध मंत्र है एवं इससे शीघ्र ही कार्य की सिद्धि होती है।
हनुमान जी के मंदिर भारत के हर शहर एवं गांव में हैं। अनेक सिद्ध पीठ हैं। कुछ मुख्य सिद्ध पीठों की चर्चा इस अंक में की गई है। सिद्ध पीठ में की गई आराधना किसी भी अन्य स्थल से सहस्र गुना अधिक फलदायी होती है।

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