हमारे शास्त्रों में 16 संस्कार बताये गये हैं जिनमें विवाह सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। हमारे समाज में जीवन को सुचारू रूप से चलाने एवं वंश को आगे बढ़ाने के लिए विवाह करना आवश्यक माना गया है। जब हम कुंडली में विवाह का विचार करते हैं तो उसके लिए नौ ग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह गुरु, शुक्र और मंगल का विश्लेषण करते हैं। इन तीनों ग्रहों का विवाह में विशेष भूमिका होती है। यदि किसी का विवाह नहीं हो रहा है या दांपत्य जीवन ठीक नहीं चल रहा है तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसकी कुंडली में गुरु, शुक्र और मंगल की स्थिति ठीक नहीं हैं। गुरु वर-वधू की कुंडली में गुरु ग्रह बली होना चाहिए। गुरु की शुभ दृष्टि यदि सप्तम भाव पर होती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों के बाद भी अलगाव की स्थिति नहीं बनती है अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू की शादी को बांधे रखती है। गुरु ग्रह शादी के साथ-साथ संतान का कारक भी है। अतः यदि गुरु बलहीन होगा तो शादी के बाद संतान प्राप्ति में भी कठिनाई होगी। अतः हमें कुंडली में मुख्य रूप से गुरु को सबसे पहले देखना चाहिए। गुरु यदि स्वयं बली है स्व अथवा उच्च राशि में है, केंद्र या त्रिकोण में है तथा शुभ ग्रह से प्रभावित है तो जातक के शादी में परेशानी नहीं आती है और जातक की शादी समय से हो जाती है। शुक्र गुरु ग्रह जहां शादी करवाते हैं वहीं शुक्र ग्रह शादी का सुख प्रदान करते हैं। कई बार देखा गया है कि शादी तो समय पर हो जाती है लेकिन पति को पत्नी सुख और पत्नी को पति सुख का अभाव रहता है। किसी न किसी कारण वश पति-पत्नी एक साथ नहीं रह पाते और अगर रहते हैं तो भी उन्हें शय्या सुख प्राप्त नहीं हो पाता। यदि आपके जीवन में ऐसी स्थिति बन रही है तो आपको समझ लेना चाहिए कि आपका शुक्र ग्रह पीड़ित है अर्थात शुक्र पापी ग्रहों से पीड़ित है, कमजोर है। अतः हमें विवाह का पूर्ण सुख लेने के लिए शुक्र की स्थिति का आकलन जरूर करना चाहिए। शुक्र की शुभ स्थिति दांपत्य जीवन के सुख को प्रभावित करती है अर्थात यदि शुक्र स्वयं बली हो, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित हो, केंद्र या त्रिकोण में हो तब अच्छा दांपत्य सुख प्राप्त होता है। इसके विपरित जब त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु क्षेत्री, अस्त, पापी ग्रह से दृष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ बैठा हो तब दांपत्य जीवन के लिए अशुभ योग बनता है। अतः कुंडली में शुक्र की स्थिति का अवलोकन जरूर करना चाहिए। मंगल मंगल का अध्ययन किये बिना विवाह के पक्ष से कुंडलियों का अध्ययन अधूरा ही रहता है। वर-वधू की कुंडलियों का विश्लेषण करते समय पहले कुंडली में मंगल की भूमिका का विचार अवश्य करना चाहिए कि मंगल किन भावों में स्थित है कौन से ग्रहों से दृष्टि संबंध बना रहे हैं तथा किन भावों एवं ग्रहों पर इनकी दृष्टि है। मंगल से मांगलिक योग का निर्माण होता है। यदि कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में मंगल होता है तो कुंडली मांगलिक कहलाती है क्योंकि इन घरों में बैठकर मंगल सप्तम भाव को प्रभावित करता है। अतः कुंडली में मंगल की स्थिति ठीक होनी जरूरी है क्योंकि मंगल ग्रह की अशुभ स्थिति वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है। विशेष: यदि आपकी शादी नहीं हो रही है या आपके दांपत्य जीवन में सुख की कमी है तो आप किसी विद्वान ज्योतिषी से कुंडली दिखाकर गुरु, शुक्र और मंगल का उपाय करें। ऐसा करने से ग्रह की शुभता बढ़ेगी जिससे आपकी विवाह संबंधी समस्याएं दूर होंगी एवं शादी जल्द होगी ।
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Friday, 27 May 2016
अष्टम भावस्थ शनि का विवाह पर प्रभाव
प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से जातक की कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का निर्णायक भाव माना है और इसे जाया भाव, भार्या भाव, प्रेमिका भाव, सहयोगी, साझेदारी भाव स्वीकारा है। अतः अष्टम भावस्थ शनि विवाह को क्यों और कैसे प्रभावित करता है यह विचारणीय हो जाता है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम भाव का द्वितीय भाव है। विवाह कैसे घर में हो, जान - पहचान में या अनजाने पक्ष में हो, पति/पत्नी सुंदर, सुशील होगी या नहीं, विवाह में धन प्राप्ति होगी या नहीं आदि प्रश्न विवाह प्रसंग में प्रायः उठते हैं और यह आवश्यक भी है क्योंकि विवाह संबंध पूर्ण जीवन के लिए होते हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर सप्तम भाव से मिलना चाहिए। परंतु जब अष्टम भाव में शनि हो तो विवाह से जुड़े इन सब प्रश्नों पर प्रभाव पड़ता है। देखें कैसे? अष्टम भाव विवाह भाव (सप्तम) का द्वितीय भाव है तो यह विवाह का मारक स्थान होगा, जीवन साथी का धन होगा, परिवार तथा जीवन साथी की वाणी इत्यादि होगा। अतः अष्टम भावस्थ शनि इन सब बातों को प्रभावित करेगा। यदि शनि शुभ प्रभावी है तो जातक को जीवन साथी द्वारा परिवार, समाज में सम्मान, धन (दहेज या साथी द्वारा अर्जित) प्राप्ति, सुख, मधुर भाषी साथी प्राप्त हो सकता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के लिए मारक और उसके साथी द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ फलों का ह्रास होगा। अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर होती है जो जातक का कर्म भाव है और उसके जीवन साथी का चतुर्थ भाव अर्थात परिवार, समाज, गृह सुख, विद्या आदि है; अतः जातक का यश, समाज में प्रतिष्ठा, परिवार सुख, धन समृद्धि, शिक्षा, व्यवसाय आदि प्रभावित होते हैं। अष्टम भावस्थ शनि की दूसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है तो जीवन साथी का अष्टम भाव है, अतः उसके दुःख कष्ट, आकस्मिक घटनाएं, गुप्त कृत्य आदि तथा स्वयं के संचित धन को प्रभावित करेगा। अष्टम भावस्थ शनि की तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर होती है तो जीवन साथी का एकादश भाव है। अतः प्रभाव संतान पर, शिक्षा पर और जीवन साथी के हर लाभ पर होता है। विवाह जनित जितने भी सुख हैं वह अष्टम भावस्थ शनि से प्रभवित होते हैं जिनमें मुख्य हैं धन, संतान, शिक्षा, व्यवसाय, पैतृक संपत्ति, परिवार सुख आदि। शुभ शनि शुभ परिणाम देता है और अशुभ शनि शुभ फलों को कम कर देता है। इन धारणाओं को मन में रखते हुए कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया है और पाया गया कि अष्टम भावस्थ शनि निश्चित रूप से विवाह जनित सुख-दुख को प्रभावित करता है।
Difference between calendar and panchang
In modern Gregorian calendar there is a leap year after a regular interval of four years. After 100 years this leap year doesn’t come and after 400 years it comes again. In this way a year is of 365.2425 days which is very close to 365.2422 days of Sayan year and only after 3000 years there is difference of one day.
In contrast to calendar, Panchang contains the entry time of planets like Sun, Moon etc in different signs along with the calculation of Tithi, Yoga & Karan. When we see planets in context with Stars stars it is known as Nirayan position of planets. The value of a Nirayan year is 365.2563, which is the duration of the re-entry of Sun in one sign. This is bigger than Sayan year by 0.0142 days. In that way there comes a difference of 1.42 days in 100 years. In each 100 years Panchang moves ahead from calendar by one and half day & hence there comes difference in Makar sankranti and Lohri. As a result of that the Hindu festivals which are celebrated according to Tithi move ahead.
What is the difference between Sayan & Nirayan systems? The earth moves on its axis around Sun in an orbit. But there is a tilt of 23.4° in the earth. This tilt on earth is responsible for summer and winter. Because of the tilt that part of the earth, which comes straight in front of Sun, turns hot and results into summer. Seasons & Ayans are because of the tilt of Sun & not because of the revolution of earth. Therefore to maintain same dates for seasons, the calendar is based on Sayan calculation. The middle line (equator) of the earth disects the orbit on one line, the one point of which is spring solstice and the other is winter solstice. This line moves towards west with a speed of 50".3 per year. The complete 360° movement of earth with respect to stars is known as Nirayan year and its coming back to the same tilt again is known as Sayan year. Because of this the earth has to move 50" less from 360° while returning back to winter solstice. This difference is known as Ayanamsa.
The month of Chaitra, which used to come between February & March, now comes between March and April. The month of Jyeshtha that used to fall in May now falls in June. The summer season, which used to come in Jyeshtha has now shifted to Vaishakh. Similarly the rainy season has shifted to Ashadha - Shravana from Shravana - Bhadrapada. Seasons are based on Sun therefore they prove true according to Sayan calendar only. Calculation of time of change of seasons is not accurate on the basis of Nirayan Panchang based on Rashi (sign). Any calculation based on Sun fits true on Gregorian calendar but shifts in Panchang. According to calendar 23 December is the smallest day and on the same day Sun goes into Uttarayana. But according to Panchaang Tithi or Pravishtey Sun is not in Capricorn sign. Long time back in the year 285 Lohri or Makar Sankranti used to be smallest day but not now.
Should we convert the calendar into Nirayan or else convert Panchang into Sayan? The answer is -No. Both are correct on their own places. The calendar is meant for general public, so should be based on Sayan calculation only so that the seasons and Sun rise etc are according to date. Astrologers for the calculation of the position of planets use the Panchang. The position of planets is according to Rashi therefore Nirayan calculation is accurate. It cannot be Sayan. Therefore all Panchangs are Nirayan only. For the calculation of planetary degrees Ayanamsha should be subtracted from Sayan calculations to convert it into Nirayan. Generally we get the Sayan tables of planetary degrees. But it does not mean that planets are moving in signs according to Sayan calculation. All the planets move according to Nirayan calculations only and astrology based on Rashi and Nakshatra is completely Nirayan. Therefore both the systems of calculations are correct and we should not create illusion by making changes in these calculations or by considering them wrong. Difference of calculation in calendar and Panchang is also true.
There is need for the unification of all the panchangs. Some Panchangs follow traditional Surya Siddhant. In the modern era of scientific research where man has succeeded to reach planets through satellites, it would be merely a conservative approach to advocate the inaccuracy of modern methods of calculations. If the predictive aspect of astrology doesn’t appear to fit the modern calculations, then we need to change the fundamentals of predictive astrology instead of the mathematical aspect. The prediction can not be the basis of mathematics rather mathematics only should form the basis of predictions. All panchangs should follow the international standard of calculation of planetary degrees.
All panchangs should follow the internationally accepted accurate planetary degrees and calculation should be done through computer to assure accuracy so that there doesn’t remain difference in Panchang. It is necessary to do so to overcome the confusion of common man.
The difference of opinion in Aynamsha is also responsible for different planetary degrees. When we fail to recognize the difference between Sayan and Nirayan and do not succeed in telling the native his accurate Rashi or lagna with confidence then what is the use to keep different Ayanamshas. Some Aynanshas are being followed because of their names only. The difference between two Ayanamshas is almost negligible and it is difficult to prove their accuracy. We should overlook the difference of opinion and follow Chitrapakshi (Lahiri) Aynamsa only.
The other difficulty in making Panchang is lack of unanimous opinion about festivals.
In the determination of Tithi the role of sunrise is important. Timing of sunrise is different in different places and that is why Tithi also varies with place. As a result of it there is difference in Panchangs of different places. Eventually the dates of festivals based on Tithi also change. Therefore to bring unanimity it is important to fix the place of festival on the basis of its history.
Festival on all places should be celebrated according to the Tithi determined on the concerned place though in scriptures we do not find the name of place with the festival.
Sometimes one festival falls on two dates. It generally happens with the festivals like Deepawali and Janmashtami. The reason is mid night calculation of Tithi and Nakshatra. Generally Tithi at the time of sunrise is taken on the Tithi for the day. If the calculation of timing of festival is done through proper method, this difference won’t come.
In Hindu scriptures the detailed method of calculation of festival is given and there are little chances of going wrong in fixing the festival.
In contrast to calendar, Panchang contains the entry time of planets like Sun, Moon etc in different signs along with the calculation of Tithi, Yoga & Karan. When we see planets in context with Stars stars it is known as Nirayan position of planets. The value of a Nirayan year is 365.2563, which is the duration of the re-entry of Sun in one sign. This is bigger than Sayan year by 0.0142 days. In that way there comes a difference of 1.42 days in 100 years. In each 100 years Panchang moves ahead from calendar by one and half day & hence there comes difference in Makar sankranti and Lohri. As a result of that the Hindu festivals which are celebrated according to Tithi move ahead.
What is the difference between Sayan & Nirayan systems? The earth moves on its axis around Sun in an orbit. But there is a tilt of 23.4° in the earth. This tilt on earth is responsible for summer and winter. Because of the tilt that part of the earth, which comes straight in front of Sun, turns hot and results into summer. Seasons & Ayans are because of the tilt of Sun & not because of the revolution of earth. Therefore to maintain same dates for seasons, the calendar is based on Sayan calculation. The middle line (equator) of the earth disects the orbit on one line, the one point of which is spring solstice and the other is winter solstice. This line moves towards west with a speed of 50".3 per year. The complete 360° movement of earth with respect to stars is known as Nirayan year and its coming back to the same tilt again is known as Sayan year. Because of this the earth has to move 50" less from 360° while returning back to winter solstice. This difference is known as Ayanamsa.
The month of Chaitra, which used to come between February & March, now comes between March and April. The month of Jyeshtha that used to fall in May now falls in June. The summer season, which used to come in Jyeshtha has now shifted to Vaishakh. Similarly the rainy season has shifted to Ashadha - Shravana from Shravana - Bhadrapada. Seasons are based on Sun therefore they prove true according to Sayan calendar only. Calculation of time of change of seasons is not accurate on the basis of Nirayan Panchang based on Rashi (sign). Any calculation based on Sun fits true on Gregorian calendar but shifts in Panchang. According to calendar 23 December is the smallest day and on the same day Sun goes into Uttarayana. But according to Panchaang Tithi or Pravishtey Sun is not in Capricorn sign. Long time back in the year 285 Lohri or Makar Sankranti used to be smallest day but not now.
Should we convert the calendar into Nirayan or else convert Panchang into Sayan? The answer is -No. Both are correct on their own places. The calendar is meant for general public, so should be based on Sayan calculation only so that the seasons and Sun rise etc are according to date. Astrologers for the calculation of the position of planets use the Panchang. The position of planets is according to Rashi therefore Nirayan calculation is accurate. It cannot be Sayan. Therefore all Panchangs are Nirayan only. For the calculation of planetary degrees Ayanamsha should be subtracted from Sayan calculations to convert it into Nirayan. Generally we get the Sayan tables of planetary degrees. But it does not mean that planets are moving in signs according to Sayan calculation. All the planets move according to Nirayan calculations only and astrology based on Rashi and Nakshatra is completely Nirayan. Therefore both the systems of calculations are correct and we should not create illusion by making changes in these calculations or by considering them wrong. Difference of calculation in calendar and Panchang is also true.
There is need for the unification of all the panchangs. Some Panchangs follow traditional Surya Siddhant. In the modern era of scientific research where man has succeeded to reach planets through satellites, it would be merely a conservative approach to advocate the inaccuracy of modern methods of calculations. If the predictive aspect of astrology doesn’t appear to fit the modern calculations, then we need to change the fundamentals of predictive astrology instead of the mathematical aspect. The prediction can not be the basis of mathematics rather mathematics only should form the basis of predictions. All panchangs should follow the international standard of calculation of planetary degrees.
All panchangs should follow the internationally accepted accurate planetary degrees and calculation should be done through computer to assure accuracy so that there doesn’t remain difference in Panchang. It is necessary to do so to overcome the confusion of common man.
The difference of opinion in Aynamsha is also responsible for different planetary degrees. When we fail to recognize the difference between Sayan and Nirayan and do not succeed in telling the native his accurate Rashi or lagna with confidence then what is the use to keep different Ayanamshas. Some Aynanshas are being followed because of their names only. The difference between two Ayanamshas is almost negligible and it is difficult to prove their accuracy. We should overlook the difference of opinion and follow Chitrapakshi (Lahiri) Aynamsa only.
The other difficulty in making Panchang is lack of unanimous opinion about festivals.
In the determination of Tithi the role of sunrise is important. Timing of sunrise is different in different places and that is why Tithi also varies with place. As a result of it there is difference in Panchangs of different places. Eventually the dates of festivals based on Tithi also change. Therefore to bring unanimity it is important to fix the place of festival on the basis of its history.
Festival on all places should be celebrated according to the Tithi determined on the concerned place though in scriptures we do not find the name of place with the festival.
Sometimes one festival falls on two dates. It generally happens with the festivals like Deepawali and Janmashtami. The reason is mid night calculation of Tithi and Nakshatra. Generally Tithi at the time of sunrise is taken on the Tithi for the day. If the calculation of timing of festival is done through proper method, this difference won’t come.
In Hindu scriptures the detailed method of calculation of festival is given and there are little chances of going wrong in fixing the festival.
Wednesday, 25 May 2016
Factors influening the seventh house
There are various factors which influence the 7th house and the related aspects of life. 7th house does not only relate married life, but it relates all issues related to marriage I.e. the beauty of the spouse, the family of the spouse, the qualifications of the spouse, timing of marriage, status of marriage, love marriage or arranged marriage etc. The house also relates with delay in marriage or devoid of marriage. The aspect of planets on 7th house or 7th lord may materialize love affairs into marriage or may break happy life by separating the husband and the wife or it may result spinster ship for the whole life. Let us see which astrological yoga create hurdles in materializing the marriage and one has to remain bachelor -.If lagna, twelfth house and seventh houses have Maraka planets and combust moon is in fifth or second house. The native remains bachelor.
If moon and Venus are opposite to Mars and Saturn (seventh house) the native either does not get married or breaks marriage.
In a male’s kundli, if moon and Saturn are posited in Seventh house, the marriage does not happen.
If Saturn is in seventh or in lagna.
Saturn and Mars are posited in Seventh house or aspect 7th house one faces problems in getting married.
Sun in seventh house or aspects the 7th house, the native will tend to lose sexual urge and even loose his interest in marriage.
If fifth and seventh lord, both are afflicted.
If Venus and 7th lord are not in favorable position one is devoid of marriage.
If moon and Venus are opposite to Mars and Saturn (seventh house) the native either does not get married or breaks marriage.
In a male’s kundli, if moon and Saturn are posited in Seventh house, the marriage does not happen.
If Saturn is in seventh or in lagna.
Saturn and Mars are posited in Seventh house or aspect 7th house one faces problems in getting married.
Sun in seventh house or aspects the 7th house, the native will tend to lose sexual urge and even loose his interest in marriage.
If fifth and seventh lord, both are afflicted.
If Venus and 7th lord are not in favorable position one is devoid of marriage.
सन्तति योग
संतान मनुष्य के जीवन की एक बड़ी ईच्छा है। प्रत्येक दम्पत्ति को संतान प्राप्ति व माता-पिता कहलाने के सौभाग्य की ईच्छा होती है परंतु सभी व्यक्तियों को यह सौभाग्य समान रूप से प्राप्त नहीं होता। ज्योतिषीय भाव के महत्व को तो सभी विद्वान एक मत से स्वीकार करते हैं परंतु इसके अतिरिक्त भी कई ऐसी चीजें हैं जिनका विचार संतान पक्ष के लिए परमावश्यक है। जन्मकुंडली का पंचम भाव तो संतान का भाव है ही अतः पंचम भाव व पंचमेश का शुभ या अशुभ स्थिति में होना तो विचारणीय है, परंतु पंचम से पंचम अर्थात नवम भाव व नवमेश का विचार भी अवश्य करें। इसके अतिरिक्त संतान का नैसर्गिक कारक ग्रह बृहस्पति है जिसका विचार करना परमावश्यक है। अतः यदि जन्मकुंडली में पंचम भाव में शत्रु ग्रह या त्रिक भाव के स्वामी (षष्टेश, अष्टमेश, द्वादशेश) स्थित हों या पंचमेश नीचस्थ त्रिक भाव में या अन्य प्रकार से पीड़ित हो तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं और पंचम भाव व पंचमेश बली व शुभ एवं मित्र ग्रहों से प्रभावित होने पर अच्छे संतान की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार नवम भाव व नवमेश का प्रभाव भी संतान पक्ष पर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त यदि संतान पक्ष अच्छा होगा व बृहस्पति नीचस्थ या अन्य प्रकार से कमजोर होने पर संतान प्राप्ति में बाधा होगी। ऊपर बताये गये घटकों में से जितने अधिक घटक कमजोर होंगे उतनी ही समस्यायें अधिक होंगी तथा अधिकांश घटक शुभ स्थिति में होने पर संतान प्राप्ति व सुख भी उतना ही अच्छा होगा। इन सबके अतिरिक्त एक बात और विचारणीय है। पुरुष की कुंडली में सूर्य और शुक्र तथा स्त्री की कुंडली में मंगल और चंद्रमा यदि अति निर्बल या पीड़ित है तो भी संतान प्राप्ति में बाधाएं आयेंगी। शुक्र और रज के योग से ही संतान की उत्प होती है अतः स्त्री की कुंडली में मंगल और चंद्रमा रज को नियंत्रित करते हैं और सूर्य व शुक्र पुरुष के वीर्य को पुष्ट करने का कार्य करते हैं अतः इन घटकों के अति पीड़ित होने पर भी संतान प्राप्ति में बाधा आयेंगी या चिकित्सीय उपचार के बाद ही संतान प्राप्ति होगी। बृहस्पति संतान का नैसर्गिक कारक तो है परंतु इसका संतान पक्ष में एक महत्व और भी है। बृहस्पति की दृष्टि में अमृत होता है अतः यदि पंचम भाव में कोई पाप योग बन रहा हो या पंचमेश किसी प्रकार पीड़ित हो और बलवान बृहस्पति की इन पर दृष्टि पड़ रही हो तो कुछ समय या बाधाओं के बाद संतान प्राप्त अवश्य हो जाती है। यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों तो पति-पत्नी दोनों की कुंडली में उपरोक्त घटकों को मेहनत से अध्ययन कर उपचार बताने चाहिए। इसके अतिरिक्त सूर्य, मंगल व बृहस्पति पुत्र प्राप्ति व शुक्र, चंद्रमा पुत्री प्राप्ति कारक हैं। कुछ नपंुसक ग्रह हैं तथा शनि का पंचम भाव पर मित्र प्रभाव पुत्र व शत्रु प्रभाव पुत्री कारक होगा। इसके अतिरिक्त एक विशेष बात संस्कार के रूप में है अतः ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी इसका शुभ समय आंका जा सकता है। जन्मकुंडली में पंचमेश, नवमेश, लग्नेश व बली बृहस्पति की अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा गर्भाधान के लिए शुभ है। इसके अतिरिक्त हमारी कुंडली में पंचमेश ग्रह जिस राशि में है, गोचरवश जब बृहस्पति उस राशि में या उससे पांचवी, सातवीं या नौवीं राशि में आये तो यह समय भी गर्भाधान के लिए शुभ होता है।
जुड़वां बच्चों के ग्रह योग
दो जुड़वां बच्चे या एक ही समय पर एक ही जगह पर दो बच्चों का जन्म हो तो क्या उनका भविष्य व जीवन समान होगा? यदि दो जुड़वां भाई/बहन हं और दोनों का जन्म समय, तिथि व स्थान एक ही है तो निश्चित ही जन्मपत्री एक सी ही बनेगी तथा शक्ल, सूरत, विचार, इच्छाएं, रोग, जीवन की घटनाएं भी एक समान हो सकती हैं। परंतु फिर भी जुड़वां बच्चों के व्यक्तित्व, कर्म व जीवनधारा में काफी अंतर हो सकता है यद्यपि कि जन्मपत्री में ग्रह स्थिति एक सी ही हो। उसके कुछ कारण निम्नवत हैं: गर्भ कुंडली: वास्तविक जन्म गर्भ में भ्रूण प्रवेश/निषेचन के समय हो जाता है तथा यह भी तय हो जाता है कि बच्चा लड़का होगा या लड़की। जिस क्षण विशेष में गर्भ में भ्रूण स्थापित होता है वही क्षण उस बालक/बालिका के पूरे जीवन का आधार बनता है। भ्रूण समस्त ग्रहों का प्रभाव पिता व माता द्वारा स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ, जो स्त्रियां पक्षबली चंद्रमा के समय में गर्भाधान करती हैं उन्हें निश्चित ही स्वस्थ, सुंदर, सफल व संस्कारवान संतान प्राप्त होती है। जुड़वां संतान की गर्भ कुंडली देखें तो उनमें अधिक अंतर होने की संभावना है क्योंकि गर्भ भ्रूण प्रवेश/ निषेचन एक ही समय में हो ऐसा संभव नहीं है। ज्योतिष नियमानुसार जन्म कुंडली से गर्भ कुंडली बनाई जा सकती है। पर यह निश्चित ही कठिन कार्य है। गर्भ कुंडली भिन्न हो जाने से जातक का व्यक्तित्व व भविष्य भिन्न रूप में विकसित होगा, यह निश्चित है। इसका कारण गर्भ में कुछ समय मिनट अंतराल में दोनों का गर्भ स्थापित होना है जिसमें दोनों की जन्मपत्री तो एक समान आती है, लेकिन हाथ की रेखाओं में काफी अंतर पाया जाता है। अतः ऐसे प्रश्नों का उत्तर ‘‘हस्त रेखा शास्त्र’’ आसानी से दे सकता है। ज्योतिष अनुसार किसी भाव का फल भावेश अर्थात उसका स्वामी न करके, वह ग्रह जिस नक्षत्र में स्थित हैं, उसका उपनक्षत्र स्वामी करेगा अर्थात् उस भाव का फल उपनक्षत्रेश के आधार पर होगा। जैसे-किसी की जन्मपत्री में तुला लग्न में दशमेश चंद्र, उच्च या स्वगृही है तो उसे किसी कंपनी/सरकारी नौकरी में उच्च पद पर या प्रतिष्ठित व्यवसाय में होना चाहिए। जुडवां बच्चों में 2-3 मिनट का ही अंतर रहता है या एक ही स्थान, समय में भी 2-3 मिनट का ही अंतर पाया जाता है। अतः के. पी. की उपनक्षत्रेश पद्धति इनपर बिल्कुल सही साबित हुई। हस्त रेखा एवं आयुर्विज्ञान के अनुसार, हस्तरेखाओं में भिन्नता 21वें क्रोमोसोम (गुणसूत्र) के कारण होती है, अतः गर्भ स्थान में कुछ समय (मिनट) अंतराल वास्तव में गर्भाशय में शुक्राणु का अंडाणु से निषेचन से होता है। अतः किसी का भी भाग्य का निर्माण चाहे सिंगल हो या जुड़वां, वह तो गर्भ स्थापन में ही हो जाता है बाकी के नौ महीने तो बालक के भ्रूण के पूर्ण निर्माण में लगते हैं। अतः यहां पर गर्भ स्थापन में 16 संस्कारों में गर्भाधान संस्कार का महत्व उपरोक्त कारण से है। ऐसे में हस्तरेखा शास्त्र, भविष्य कथन में सहायक सिद्ध होता था। दो जातकों की हस्त रेखायें भिन्न होती हैं, जो जुडवां हो या एक ही समय और स्थान पर पैदा हुये हों। लेकिन के. पी. की नक्षत्र आधारित पद्धति ने ज्योतिष में जान डालकर हस्तरेखा की भांति सजीव बना दिया। हस्तरेखा के अलावा ‘‘प्रश्न ज्योतिष’ द्वारा भी जुडवां या समकक्ष बच्चों का भविष्य/जीवन ज्ञात कर सकते हैं। ज्योतिष में पंचम भाव, पंचमेश व कारक गुरु तीनों संतान से जुड़े हैं, ये किसी स्त्री ग्रह से युक्त/दृष्ट (प्रभावित) हो तो जुडवां संतानें होती हैं। ये योग स्त्री एवं पुरूष में न्यूनतम एक में होना अनिवार्य है। दैनिक जीवन में भी देखते हैं तो कई जातकों के जुडवां बच्चे पैदा होते हैं, उनमें न्यूनतम एक में यह योग अवश्य होता है। जीवनशैली/लालन पालन का महत्व: यदि जन्मकुंडली पूर्ण रूप से समान हो, जुड़वां बच्चों की लग्न, चंद्र राशि व नक्षत्र चरण समान हो फिर भी यदि बच्चों के लालन-पालन में, शिक्षा, संस्कार में भिन्नता हो तो भी बच्चे भिन्न व्यक्तित्व के हो सकते हैं। ग्रह प्रभाव की व्यापकता: यदि दोनों बच्चों का कारक ग्रह एक हो तो भी उनके जीवन में भिन्नता आ सकती है। उदाहरणार्थ, यदि मंगल कारक है तो एक बच्चा सैनिक तथा दूसरा सर्जन बन सकता है। दो जुड़वां बच्चों का भविष्य एवं जीवन या एक ही स्थान पर जन्मे दो बच्चों का जीवन एवं भविष्य क्या समान होगा। इसका सीधा उत्तर नहीं है। अगर कारण की खोज करें तो देश, काल, परिस्थिति अर्थात लालन-पालन, पूर्व जन्म का आत्माओं का प्रारब्ध, उनके भविष्य एवं जीवन को प्रभावित करते हैं। हमारा ज्योतिष शास्त्र पूर्व जन्म एवं अग्रिम जन्म को मानता है। ज्योतिष के ऐसे अनेक योग हैं जहां यह कहा गया है कि राजकुलोत्पन्न व्यक्ति राजा होता है और अन्य कुलोत्पन्न व्यक्ति राजसी ठाट-बाट से मात्र युक्त होगा।
Monday, 23 May 2016
शनि का गोचरीय प्रभाव
कुंडली में यदि शनि ग्रह बलशाली हो तो जातक को आवासीय सुख प्रदान करता है। निम्न वर्ग का नेतृत्व प्राप्त होता है। दुर्बल शनि शारीरिक दुर्बलता-शिथिलता, निर्धनता, प्रमाद एवं व्याधि प्रदान करता है- मन्दे पूर्णबले गृहादिसुखृद भिल्लाधिपत्यं भवेन्नयूने विलहरः शरीरकृशता रोगोऽपकीर्तिर्भवेत।। शनि ग्रह किसी भी एक राशि में लगभग 2 वर्ष 6 माह विचरण करते हुये लगभग 30 वर्ष में 12 राशियों का भोग करते हैं। शनि ग्रह के इस राशि भ्रमण को ही गोचर कहते हैं। शनि ग्रह का किसी एक राशि में भ्रमण करने से शुभ या अशुभ फल भी 2 वर्ष 6 माह तक ही रहता है। शनि ग्रह के चंद्रमा की राशि (जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो) से भिन्न-भिन्न भाव में भ्रमण करने से किस-किस प्रकार का कर्मफल प्राप्त होता है, उल्लेख किया जा रहा है- 1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं। 2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं। 3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं। 4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं। 5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों मंे न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं। 6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है। 7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता। 8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है। 9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती हंै, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते। 10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है। 12. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
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विभिन्न लग्नों में सप्तम भावस्थ गुरु का प्रभाव एवं उपाय
पौराणिक कथाओं में गुरु को भृगु ऋृषि का पुत्र बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को सर्वाधिक शुभ ग्रह माना गया है। गुरु को अज्ञान दूर कर सद्मार्ग की ओर ले जाने वाला कहा जाता है। सौर मंडल में गुरु सर्वाधिक दीर्घाकार ग्रह है। धनु व मीन इसकी स्वराशियां हैं। धनु व मीन द्विस्वभाव राशियां हैं। अतः गुरु द्विस्वभाव राशियों का स्वामी होने के कारण इसमें स्थिरता एवं गतिशीलता के गुणों का प्रभाव है। यह कर्क राशि में उच्च का व मकर राशि में नीच का होता है। कर्क व मकर राशि दोनों ही चर राशियां हैं जिसके कारण गुरु अपनी उच्चता व नीचता का फल बड़ी तेजी से दिखाता है। सूर्य, चंद्र, मंगल इसके मित्र हैं। निर्बल, दूषित व अकेला गुरु सप्तम भावस्थ होने पर व्यक्ति को स्वार्थी, लोभी व अविश्वनीय बनाता है। वहीं शुभ राशिस्थ सप्तमस्थ गुरु व्यक्ति को विनम्र, सुशील सम्मानित बनाता है। जीवन साथी भी सुंदर व सुशील होता है। ‘‘स्थान हानि करो जीवा’’ के सिद्धांत के आधार पर गुरु शुभ व सबल होने पर भी, जिस स्थान में बैठता है उस स्थान की हानि करता है। परंतु जिन स्थानों पर दृष्टि डालता है उन स्थानों को बलवान बनाता है। सप्तम स्थान प्रमुख रूप से वैवाहिक जीवन का भाव माना गया है। सामान्यतः सप्तम भावस्थ गुरु को अशुभ फलप्रद कहा जाता है। पुरूष राशियों में होने पर जातक का अपने जीवन साथी से मतभेद की स्थिति बनती है। वहीं स्त्री राशियों में होने पर जीवन साथी से अलगाव की स्थति ला देता है। सप्तमस्थ गुरु जातक का भाग्योदय तो कराता है परंतु विवाह के बाद। प्रस्तुत है विभिन्न लग्नों में सप्तमस्थ गुरु के फलों का एक स्थूल विवेचन। 1. मेष लग्न मेष लग्न में गुरु नवमेश व द्वादशेश होकर सप्तमस्थ होता है तथा लग्न, लाभ व पराक्रम भाव में दृष्टिपात करता है। सप्तम भाव में तुला राशि का होता है। अतः भाग्येश, सप्तमस्थ होने के कारण निश्चय ही विवाह के बाद भाग्योदय होता है। समाज के बीच मिलनसार होता है। जिसके कारण जीवन साथी से भौतिक दूरी बनी रहती है। 2. वृष लग्न वृष लग्न में गुरु अष्टमेश व एकादशेश होकर वृश्चिक राशि में सप्तमस्थ होकर लाभ, लग्न एवं पराक्रम भाव पर दृष्टिपात करता है। इसकी मूल त्रिकोण राशि अष्टम स्थानगत होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उत्पन्न होती हैे। ससुराल धनाढ्य होता है परंतु स्वयं धन के मामले में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। 3. मिथुन लग्न मिथुन लग्न में गुरु सप्तम व दशम भाव का स्वामी होकर सप्तम भावस्थ होकर हंस योग का निर्माण करता है। हंस योग को राज योग कहा जा सकता है जिसका परिणाम गुरु की दशा-अंतर्दशा में प्राप्त होता है। परंतु इस लग्न में गुरु को सर्वाधिक केंद्रेश होने का दोष लगता है अतः विवाह एवं वैवाहिक जीवन के मामलों में पृथकता देता है। गुरु यदि वक्री या अस्त हो तो स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है। 4. कर्क लग्न कर्क लग्न में गुरु षष्ट्म एवं नवम भाव का स्वामी होकर अपनी नीच राशि में सप्तमस्थ होता है। निश्चय ही नवमेश होने के कारण विवाह के बाद भाग्योदय होता है। परंतु मूल त्रिकोण राशि षष्टम् भाव में पड़ने के कारण जीवन साथी का स्वास्थ्य प्रतिकूल ही रहता है। धन के मामलों में, लाभ की जगह हानि का सामना करना पड़ता है। 5. सिंह लग्न सिंह लग्न में गुरु पंचमेश व अष्टमेश होकर कुंभ राशि में सप्तमस्थ होता है। पंचमेश होने के कारण अति शुभ होता है। ससुराल पक्ष धनाढ्य होता है। परंतु अष्टमेश होने के कारण जीवन साथी को उदर की पीड़ा देता है। जीवन साथी का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। परिवार से ताल मेल नहीं बैठ पाता। 6. कन्या लग्न कन्या लग्न में गुरु चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में हंस योग का निर्माण करता है जिसके कारण जातक का विवाह उच्च कुल के धनाढ्य परिवार में होता है। परंतु इस लग्न में गुरु को केंद्रेश होने का दोष होता है जिसके कारण विवाहोपरांत जीवन साथी से मतभेद व निराशाजनक परिणाम प्राप्त होने शुरू हो जाते हैं। इस स्थिति में गुरु, यदि वक्री या अशुभ प्रभाव में होता है तो जीवन साथी से अलगाव की स्थिति आ सकती है। 7. तुला लग्न तुला लग्न में गुरु तृतीय व षष्ठ भाव का स्वामी होकर मेष राशि का सप्तम भावगत होता है। भावेश की दृष्टि से यह पूर्णतः अकारक रहता है। मेष राशि में सप्तमस्थ होने से जातक निडर, साहसी बनता है। अपने पराक्रम से धनार्जन करता है। ऐश्वर्य प्रदान करता है। परंतु जीवन साथी के लिए मारक होकर, उसका स्वास्थ्य प्रभावित करता है। 8. वृश्चिक लग्न वृश्चिक लग्न में गुरु द्वितीयेश व पंचमेश होकर वृष राशि में सप्तमस्थ होता है। पंचमेश होने के कारण गुरु शुभ रहता है। धन के मामलों में अच्छा परिणाम देता है। परंतु संतान पक्ष से विवाद की स्थिति पैदा करता है जिसके कारण जीवन साथी से टकराव की नौबत आती है। वस्तुतः जातक को सांसारिक सुखों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता। 9. धनु लग्न धनु लग्न में गुरु लग्नेश व चतुर्थेश होकर सप्तमस्थ होता है। गुरु की लग्न पर पूर्ण दृष्टि लग्न को बलवान बनाती है। वस्तुतः जातक सुंदर व सुशील, जीवन साथी प्राप्त करता है। माता-पिता का सुख एवं भूमि, भवन, संतान का सुख प्राप्त करता है। जीवन साथी, माता पिता व संतान का सहयोग प्राप्त करता है। ससुराल से संपत्ति प्राप्त करने के योग बनते है। 10. मकर लग्न मकर लग्न में गुरु द्वादश एवं तृतीय भाव का स्वामी होकर, सप्तम भाव में हंस योग का निर्माण करता है। वस्तुतः जातक विद्वान होता है। जीवन साथी सुंदर व सुशील होता है। मुखमंडल में तेज होता है। जीवन साथी के प्रति समर्पित होता है। 11. कुंभ लग्न कुंभ लग्न में गुरु धन व लाभ भाव का स्वामी हो कर अपने मित्र सूर्य की राशि में सप्तमस्थ होता है। साथ ही गुरु की पूर्ण दृष्टि, लाभ स्थान को मजबूती प्रदान करती है। द्वि तीय व एकादश भाव दोनों ही धन से संबंधित भाव हैं। अतः धन लाभ एवं धनार्जन की दिशा में गुरु बहुत ही शुभ फल करता है। यदि गुरु पर अन्य किसी शुभ या योगकारक ग्रह की दृष्टि हो तो यह स्थिति सोने में सुहागा होती है। जातक का विवाह धनाढ्य परिवार में होता है तथा ससुराल या जीवन साथी से धन लाभ होता है। 12. मीन लग्न मीन लग्न में गुरु लग्नेश व दशमेश होता है। कन्या राशि में सप्तमस्थ होकर लग्न को बल प्रदान करता है। वस्तुतः जातक आरोग्य एवं अच्छी आयु प्राप्त करता है। लाभ स्थान में दृष्टि होने के कारण स्वअर्जित धन प्राप्त करता है। लोगों में प्रतिष्ठा का पात्र बनता है। विवाह के बाद भाग्योदय होता है। जातक का विवाह उच्च कुल में होता है। सप्तम स्थान में कन्या राशि का गुरु होने के कारण जीवन साथी को मतिभ्रम की स्थिति से सामना करना पड़ सकता है। उपरोक्त लग्न के आधार पर सप्तमस्थ गुरु निश्चित ही ‘स्थान हानि करो जीवा’ का सिद्धांत देता है। अर्थात सप्तमस्थ गुरु निश्चित ही सुंदर जीवन साथी देता है। परंतु विवाहोपरांत, वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहने देता। फिर भी नवमांश कुंडली में गुरु यदि बलवान होकर विराजित हो, तो काफी हद तक विषम स्थितियों को जातक समाधान कर लेता है। इसी प्रकार गुरु यदि अष्टक वर्ग में 4 से अधिक रेखाएं ले कर बैठा हो तो भी लग्न कुंडली में सप्तमस्थ गुरु के प्रतिकूल प्रभावों में कमी आती है तथा गुरु अपनी दशा-अंतर्दशा में अच्छा फल देता है। अस्तु सप्तमस्थ गुरु के फलों का विवेचन करने के पूर्व नवमांश व अष्टक वर्ग में गुरु की स्थिति को देखकर ही अंतिम निर्णय पर पहुंचना चाहिए। फिर भी सप्तमस्थ गुरु अपनी दशा-अंतर्दशा में यदि विपरीत प्रभाव दे, तो निम्न उपायों को कर, गुरु के अनिष्टकारी प्रभावों से बचा जा सकता है। उपाय 1. मेष लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. सदैव पीले कपड़े पहनने को प्राथमिकता दें। c. मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करें। 2. वृष लग्न a. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. भगवान शिव के किसी मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें। c. सदैव श्वेत रंग के कपड़े पहनने को प्राथमिकता दें। 3. मिथुन लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. ऊँ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का एक माला जप करें। c. सदैव पीले रंग का रूमाल पाॅकेट में रखें। 4. कर्क लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. गुरु से संबंधित वस्तुओं का दान करें। c. भगवान विष्णु की साधना करें। 5. सिंह लग्न a. तांबे की अंगूठी में गुरु यंत्र उत्कीर्ण करा, धारण करें। b. घर में गुरु यंत्र स्थापित करें। c. हल्दी का दान करें। परंतु भिखारी को भूलकर भी न दें। 6. कन्या लग्न a. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. ‘गुरु गायत्री’ मंत्र का जप करें। c. घोड़े को चने की दाल व गुड़ खिलाएं। 7. तुला लग्न a. घर में गुरु यंत्र की स्थापना करें। b. छोटे भाइयों को स्नेह दें। अपमान न करें। c. शक्ति साधना करें। 8. वृश्चिक लग्न a. न्यूनतम 16 सोमवार का व्रत धारण करें। b. हल्दी की गांठ तकिए के नीचे रखकर सोयें। c. शिव जी की साधना करें। 9. धनु लग्न a. माणिक्य, पुखराज व मूंगा से निर्मित त्रिशक्ति लाॅकेट धारण करें। b. विष्णुस्तोत्र का पाठ करें। c. 43 दिन तक जल में हल्दी मिलाकर स्नान करें। 10. मकर लग्न a. ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. घर की छत में सूरजमुखी का पौधा रोपित करें तथा प्रतिदिन जल दें। c. भगवान भास्कर को प्रतिदिन तांबे के पात्र से जल का अघ्र्य दें। 11. कुंभ लग्न a. भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का प्रतिदिन जप करें। b. पुखराज धारण करें। c. रेशमी पीला रूमाल सदैव अपने पास रखें। 12. मीन लग्न a. माणिक्य, पुखराज एवं मूंगा रत्न से निर्मित ‘त्रिशक्ति लाॅकेट’ धारण करें। b. भगवान सूर्य को नित्य जल का अघ्र्य दें। c. गुरुवार को विष्णु मंदिर जाकर पीले रंग के फूल भगवान विष्णु को अर्पित करें तथा कन्याओं को मिश्रीयुक्त खीर खिलाएं। नोट: गुरु की स्थिति कुंडली में चाहे जैसी हो; जातक यदि निम्न मंत्र का जप प्रतिदिन करता है तो गुरु की विशेष कृपा बनी रहती है तथा अशुभ गुरु के दोषों से मुक्ति पायी जा सकती है। मंत्र: ऊँ आंगिरशाय विद्महे, दिव्य देहाय, धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात्।
Saturday, 21 May 2016
भक्ति से प्रसन्न होने वाली सप्तमं देवी -काल रात्रि -
मॉ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के सदृष गोल हैं। इनके विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रष्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएॅ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गदहा है। इनकी चार भुजाओं में से दाहिने ओर के उपर की भुजा में वरमुद्रा तथा नीचे की भुजा अभयमुद्रा में है। बायीं ओर की उपर की भुजा में लोहे का कॉटा और नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका यह रूप अत्यंत भयानक है किंतु ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं अतः इनका एक नाम शुभंकरी भी है।
काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस, बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है। माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचायक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है।
काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस, बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है। माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचायक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है।
कूष्मांडा,स्कंदमाता,और माँ कत्यानी की उपासना
श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
दुर्गा के कात्यायनी रूप की उपसना देती है मनवांछित फल -
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
श्या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू॥
अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः।
दुर्गा के कात्यायनी रूप की उपसना देती है मनवांछित फल -
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
श्या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू॥
अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः।
द्वितीयं ब्रम्हचारिणी से पायें शक्ति
मॉ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रम्हचारिणी का है। यहॉ ‘‘ब्रम्ह’’ शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रम्हचारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिमर्य एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु रहता है। अपने पूर्व जन्म में हिमालय घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी। नारद के उपदेष से प्रेरित होकर भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने हेतु दुष्कर तपस्या की थी। जिसमें एक हजार वर्ष तक उन्होंने केवल फल-फूल खाकर व्यतीत किया उसके सौ वर्षो तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाष के नीचे वर्षा और धूप के कष्ट सहें। तीन हजार वर्ष तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे बेलपत्रों को खाया। कुछ वर्षो तक निर्जल और निराहार तपस्या करती रही। कई हजार वर्ष तक तपस्या करने से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रम्हचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रम्हाजी ने आकाषवाणी द्वारा संबोधित किया कि हे देवि, आजतक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की है ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारी मनोकामना सर्ततोभावेत परिपूर्ण होगी। तुम अपने घर वापस आ जाओं तुम्हें भगवान चंद्रमौलि षिवजी पति रूप में प्राप्त होंगे। मॉ दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देनेवाला है। इनकी उपासना से मनुष्य तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार तथा संयम की वृद्धि होती है। मॉ ब्रम्हचारिणी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन साधकों का ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है। इन चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
हिंदू नववर्ष और प्रथमं शैलपुत्री
हिन्दू नव वर्ष का आरम्भ हो रहा है जो कि चौत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। इसी दिन से ही काल गणना का प्रारम्भ हुआ। इस दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की। इस वर्ष हिदू नव वर्ष अर्थात विक्रम संवत्सर २०७3 श्रीसंवत् नामक संवत्सर अंग्रेजी के 08 अप्रेल 2016 से प्रारंभ हो रहा है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में श्शैलपुत्रीः के नाम से जानी जाती हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप श्शैलपुत्रीः कहलाया है। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिताः नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में श्शैलपुत्रीः के नाम से जानी जाती हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप श्शैलपुत्रीः कहलाया है। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिताः नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः
राहु की दशा दिखाएॅ असर बढ़े अनावश्यक खर्च -
ग्रह, नक्षत्र अपनके जीवन पर ही नहीं वरन् अपसे जुझी वस्तुओं पर भी पूरा प्रभाव डालते हैं। अगर घर में कोई ना कोई बीमार हो रहा हो अथवा दवाइयों पर खर्च बढ़ गया हों अथवा आपका मोबाईल लगातार खराब हो रहा हों इसके अलावा आपके घर पर फ्रीज, ऑरो, टीवी, लाईट इत्यादि इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार रिपेयर में जा रही हों अथवा एक चीज सुधरवाने पर दूसरी बिगड़ रही हो, तो यह बहुत सामान्य बात नहीं है। इस प्रकार से वस्तुओं के लगातार खराब होने का ज्योतिषीय कारक होता है। अगर आपकी भी इलेक्टानिक चीजें लगातार खराब हो रही हों अथवा एक के बाद एक चीजें मरम्मत में जा रही हों तो अपनी कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण किसी विद्धान आचार्य से कराकर देख लें कि कहीं आपकी राहु की दशा तो नहीं चल रही है और आपकी कुंडली में राहु लग्न, दूसरे, तीसरे, छठवे, आठवे, भाग्य या एकादश स्थान पर तो नहीं है। अगर इन स्थानों पर राहु हो और राहु की दशा चलें तो घर पर अव्यवस्था चलती है और चीजें लगातार मरम्मत में जाती रहती है। अतः वस्तुओं के मरम्मत कराने के साथ राहु की शांति, सूक्ष्म जीवों की सेवा करनी चाहिए।
ज्योतिषयी प्लान से प्राप्त करें संतान रहें सारे दुखो से अंजान -
‘‘कथम उत्पद्यते मातुः जठरे नरकागता गर्भाधि दुखं यथा भुंक्ते तन्मे कथय केषव’’ गरूड पुराण में उक्त पंक्तियॉ लिखी हैं, जिससे साबित होता है कि गर्भस्थ षिषु के ऊपर भी ग्रहों का प्रभाव शुरू हो जाता है। गर्भ के पूर्व कर्मो के प्रभाव से माता-पिता तथा बंधुजन तथा परिवार तय होते हैं। इसी लिए कहा जाता है कि शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं। जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है। कर्मणा दैव नेत्रेण जन्तुः देहोपत्तये अर्थात् कर्मो को भोगने के लिए ही जीव की उत्पत्ति होती है। षिषु के गर्भ में आते ही उसका भाग्य तय हो जाता है अतः ग्रह दषा का असर उस पर शुरू हो जाता है।
कहा तो यहॉ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है। गरूड पुराण में वर्णन है कि और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है। उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है। इससे जाहिर होता है कि संसार में सुख चाहने के लिए शुरू से ग्रह गोचर का आकलन कर संतान कामना करनी चाहिए। उत्तम संतान हेतु पितृ को संतृप्त करना तथा संतान गोपाल का पाठ करना चाहिए।
कहा तो यहॉ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है। गरूड पुराण में वर्णन है कि और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है। उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है। इससे जाहिर होता है कि संसार में सुख चाहने के लिए शुरू से ग्रह गोचर का आकलन कर संतान कामना करनी चाहिए। उत्तम संतान हेतु पितृ को संतृप्त करना तथा संतान गोपाल का पाठ करना चाहिए।
Friday, 20 May 2016
सामर्थ्य अनुसार करें सहायता-फिर भी दूर होंगे ग्रह दोष -
सामर्थ्य अनुसार करें सहायता-फिर भी दूर होंगे ग्रह दोष -
अपनी क्षमता के अंदर रहकर सामान्य मदद से भी ईष्वर को प्रसन्न किया जा सकता है और कुंडली के ग्रह दोषों को दूर किया जाना संभव है, जैसे कि शबरी के झूठे बेर खाकर राम प्रसन्न हो गए थे। आपके नित्यचर्या में सहजता के साथ करने से ग्रहीय दोषों का समाधान दे सकता है। वह सहज समाधान किसी भूखे को रोटी तो किसी बीमार को दवा देकर या किसी को कपड़े देकर आपके ग्रह से संबंधित दोषों की निवृत्ति करने में कारगर उपाय बन सकती है।
यदि किसी की कुंडली में बुध खराब स्थिति में हों और गोचर में बुध की दषा चल रही हो तो उसे दवा का दान करना चाहिए अन्य को इस प्रकार से मदद कराने से बुध ग्रह की शांति संभव है इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा खराब होकर गोचर में भ्रमण करें तो उसे कपड़ो या किसी गरीब के बच्चे को दूध का दान करना चाहिए। सूर्य हेतु खाना, गुरू हेतु पाठ्य सामग्री, शनि हेतु जूते चप्पल तथा शुक्र हेतु फल इत्यादि किसी को खिलाकर अपने ग्रह की स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस प्रकार जरूरत मंद को सामान्य सहायता से अपनी कुंडली को मजबूत करने के साथ ग्रहों को प्रसन्न कर ग्रहीय दोषों को दूर करना संभव है....
अपनी क्षमता के अंदर रहकर सामान्य मदद से भी ईष्वर को प्रसन्न किया जा सकता है और कुंडली के ग्रह दोषों को दूर किया जाना संभव है, जैसे कि शबरी के झूठे बेर खाकर राम प्रसन्न हो गए थे। आपके नित्यचर्या में सहजता के साथ करने से ग्रहीय दोषों का समाधान दे सकता है। वह सहज समाधान किसी भूखे को रोटी तो किसी बीमार को दवा देकर या किसी को कपड़े देकर आपके ग्रह से संबंधित दोषों की निवृत्ति करने में कारगर उपाय बन सकती है।
यदि किसी की कुंडली में बुध खराब स्थिति में हों और गोचर में बुध की दषा चल रही हो तो उसे दवा का दान करना चाहिए अन्य को इस प्रकार से मदद कराने से बुध ग्रह की शांति संभव है इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा खराब होकर गोचर में भ्रमण करें तो उसे कपड़ो या किसी गरीब के बच्चे को दूध का दान करना चाहिए। सूर्य हेतु खाना, गुरू हेतु पाठ्य सामग्री, शनि हेतु जूते चप्पल तथा शुक्र हेतु फल इत्यादि किसी को खिलाकर अपने ग्रह की स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस प्रकार जरूरत मंद को सामान्य सहायता से अपनी कुंडली को मजबूत करने के साथ ग्रहों को प्रसन्न कर ग्रहीय दोषों को दूर करना संभव है....
प्रेम विवाह के बाद प्रेम गायब -ज्योतिषीय कारण जाने क्यों होता है
प्रेम विवाह का ज्योतिष कारण -
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। प्रेम विवाह हेतु चंद्रमा की स्थिति प्रबलता, ग्रहयुति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे पुरातन काल में गंर्धव विवाह और आधुनिक काल में प्रेमविवाह का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। जब प्रेम होता है तो विवाह भी तमाम विरोध के बावजूद करता है किंतु कुछ समय के बाद ही आपस में ही मतभेद दिखाई देते हैं। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। प्रेम विवाह हेतु चंद्रमा की स्थिति प्रबलता, ग्रहयुति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे पुरातन काल में गंर्धव विवाह और आधुनिक काल में प्रेमविवाह का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। जब प्रेम होता है तो विवाह भी तमाम विरोध के बावजूद करता है किंतु कुछ समय के बाद ही आपस में ही मतभेद दिखाई देते हैं। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।
शनिवार 20 मई 2016 राशिफल
शनिवार को वृश्चिक राशि में शनि और मंगल के साथ चंद्रमा भी होने से कुछ लोगों को अचानक धन लाभ होगा। सोचे हुए काम पूरे होंगे। बड़े और खास कामों से फायदा होगा। मंगल-चंद्रमा की जोड़ी से धन लाभ देने वाला लक्ष्मी योग बनेगा। वहीं शनि-चंद्रमा से विष योग भी रहेगा। इस अशुभ योग के कारण विवाद, समय और पैसों का नुकसान, तनाव और फालतू दौड़-भाग रहेगी। ये एक शुभ और एक अशुभ योग पूरे दिन रहेंगे। इनके साथ हस्त नक्षत्र होने से शुभ नाम का योग रहेगा। राशिफल से जानिए ग्रहों की स्थिति का किस राशि पर कैसा असर रहेगा।
मेष - पॉजिटिव -महत्वपूर्ण लोगों से कॉन्टैक्ट होगा। पारिवारिक जीवन भी सुखद रहेगा। अधूरे काम पूरे हो जाएंगे। आपका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा। अविवाहित लोगों को विवाह प्रस्ताव मिल सकते हैं। विवाहित लोग आज अपने जीवनसाथी को खुश करने की कोशिश करेंगे। अपने व्यक्तित्व के दम पर आज आप कुछ लोगों को अपने फेवर में कर सकते हैं। जिससे आपको फायदा मिलेगा। दोस्तों और प्रेमी से आज आपको पूरा सहयोग मिलेगा। नई नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। रोजमर्रा के काम समय से पूरे हो जाएंगे। कोई दोस्त आपके लिए कारगर भी साबित हो सकता है।
नेगेटिव -आप जैसे हैं, वैसे ही रहें। किसी तरह का दिखावा करेंगे तो मुसीबत में भी पड़ सकते हैं। आपका पहला प्रभाव नकारात्मक रहा, तो आप को उसमें सुधार का मौका शायद न मिल सके। आलस्य के कारण काम टल भी सकते हैं। ऐसे में जोखिम भरे कामों में हाथ डालने से बचें।
उपाय :1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
वृष - पॉजिटिव -एक के बाद एक छुपी हुई कुछ बातें आपके सामने आने लगेगी। अपने काम पर ध्यान दें। पैसों के मामलों में दूसरे लोग आपको चाहे जितनी भी सलाह दें, आप वही करें, जो आपका मन कहता हो। आपका मन दूसरों की सलाह से कहीं बेहतर है। अपनी योजना खुद बनाएं और उस पर डटे रहें। आज आप में बहुत ऊर्जा रहेगी। आप दूसरों की भावनाओं के लिए बहुत संवेदनशील भी रहेंगे। एक बार जैसे ही आप सक्रिय होंगे, सारा काम बहुत अच्छी तरह निपट जाएगा। आप अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट रहेंगे। नौकरी और बिजनेस में स्थिति भी अच्छी रहेगी और फायदा भी मनचाहा मिल जाएगा। संतान की प्रगति होगी। कानूनी विवादों का निपटारा आपके फेवर में भी हो सकता है।
नेगेटिव -आज आप फालतू बातों से बचें। नई सूचनाओं से उलझनें आएंगी और आपका ध्यान बंटेगा। परिवार के सदस्यों से कोई अजीब समाचार भी मिल सकता है। पारिवारिक मामलों में उलझने से बचें। आज आपको थोड़ी सुस्ती जरूर महसूस होगी। ऑफिस की कानाफूसी से दूर रहें। वाहन चलाते समय सावधानी रखें।
उपाय:1.उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2.दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
मिथुन - पॉजिटिव -आप जो करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लें और खुद कर लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी काम की पूरी योजना बनाएं और योजना से ही काम करें तो आप सफल हो जाएंगे। आज कोई घटना अचानक भी हो सकती है। मन बना लें। आप जो बात सुनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वह बात आज आपसे कोई कह देगा। शांत रहकर दूसरों की बात सुनेंगे, तो फायदे में रहेंगे। रिश्तों के क्षेत्र में सुधार करने का अवसर मिलेगा। आज आप सकारात्मक मूड में रहेंगे। मन की भावनाएं दूसरों से बेझिझक शेयर कर सकते हैं। दूसरों की खातिर कुछ खर्च करने में हिचकिचाए नहीं। पढ़ने-लिखने में मन लगेगा। मन शांत रखें। आपसी विचार-विमर्श और सहयोग प्रसन्नता देंगे। निवेश के अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले कुछ चिड़चिड़े लोग आपके खिलाफ शिकायतें भी कर सकते हैं। खासतौर पर ऑफिस में आप जो कहेंगे, उससे आप गहरी समस्या में पड़ सकते हैं, बेकार विचार मन में न आने दें। सावधानी से अनिष्ट दूर भी हो जाएंगे। कानूनी मामलों में सावधानी रखें। कोई परिचित या दोस्त पैसा उधार मांग सकता है। देने के पहले एक बार विचार कर लें
उपाय: 1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..
कर्क - पॉजिटिव -यथार्थवादी रहें। किसी खास मामले का सकारात्मक समाधान जल्द ही मिल जाएगा। आज आप के सामने काम बहुत ज्यादा रहेगा, लेकिन कुछ लोग आपकी पूरी मदद कर सकते हैं। आने वाले समय में आपकी व्यस्तता और भी ज्यादा होने जा रही है। मन से तैयार रहें। सामाजिक मेलजोल के किसी अवसर में आपकी तारीफ होगी। आपको पसंद किया जाएगा। प्रिय व्यक्ति से मुलाकात होगी। आवास की समस्या हल होगी। व्यापार अच्छा चलेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। आपने हाल ही में अगर कोई नया प्रयास किया है, तो आप उसके परिणामों को लेकर ज्यादा ही महत्वाकांक्षी हो सकते हैं। अधिकारी या कर्मचारियों से संबंध और अच्छे हो जाएंगे।
नेगेटिव - ज्यादा अधीर न हों। आज आप सावधान रहें, अति करेंगे, तो नुकसान हो सकता है। खुद को व्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश करेंगे। आपके चलते काम अचानक रुक सकते हैं। कोई बात या राज आपके लिए पहेली की तरह रहेगा। उसमें उलझ भी सकते हैं।
उपाय:1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
सिंह - पॉजिटिव - थोड़ा कॉन्फिडेंस महसूस करने की जरूरत है। आगे बढऩे के मौके मिलेंगे। आप बहुत उत्सुकता से नए मौकों और चैलेंज को स्वीकार करेंगे। किसी बुजुर्ग या अधिकारी से संबंध मधुर हो सकते हैं। तनाव या विरोध की स्थिति में आप समझौता करने या बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश करेंगे और सफल भी रहेंगे। नजदीकी लोगों से अपने मन की भावना व्यक्त करेंगे, तो खुश हो जाएंगे। नियमित दिनचर्या से पूरी तरह अलग कुछ करने की इच्छा होगी। नई चीजें समझने का अवसर मिलेगा। नौकरी और बिजनेस के लिए बढिय़ा दिन है। उत्साही दोस्तों के साथ रहने से फायदा हो सकता है। आपके ज्यादातर काम दोस्तों के सहयोग से पूरे हो जाएंगे। संपन्नता बढ़ेगी। रोमांस के भी अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -आप किसी चीज में अति न करें। अगर आप स्वयं पर नियंत्रण न रख सके, तो शाम तक भारी थकावट हो सकती है। अपनी आदत में बदलाव करें और गलतियों का ठीकरा अपने सिर पर न लें। कार्यक्षेत्र से जुड़े किसी काम या पैसों के लिए दौड़-भाग करनी पड़ सकती है। किसी बात पर पार्टनर के साथ मनमुटाव भी हो सकता है। आज कोई महत्वपूर्ण फैसला न लें।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
कन्या - पॉजिटिव -करियर या पैसों से जुड़ा कोई ऐसा मौका आज आपको मिल सकता है, जो आपकी आमदनी में अच्छा-खासा और सकारात्मक बदलाव कर देगा। मन की आवाज गौर से सुनें। कोई सपना या शुभ संकेत भी आज आपको मिल सकता है। आज कठिन मामले सुलझाने के लिए सारी बातें साफ कर दें। पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए अच्छा समय है। परेशानियां आज खत्म हो जाएंगी। संतान के काम और राजनैतिक जोड़-तोड़ में व्यस्त रहेंगे। प्रतिष्ठित लोगों से संबंधों में फायदा मिलेगा। महत्वपूर्ण काम आसानी से पूरे हो जाएंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकते हैं। बिजनेस में नए ऑफर भी मिल सकते हैं।
नेगेटिव -मन में आज कोई ऐसी बात आ सकती है जिसके बारे में आप किसी से कुछ कहने में संकोच करेंगे। आलस्य से बचें। आज आपके सामने कुछ कठिन परिस्थितियां भी आ सकती हैं। कोई बात बिगडऩे का डर भी आज बना रह सकता है।
उपाय:1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
तुला - पॉजिटिव -आज परेशानियां कम हो जाएंगी। आपको कुछ सुखद बदलाव भी महसूस हो सकते हैं। इस स्थिति में आपके दोस्त भी शामिल हैं। किसी परेशानी की स्थिति में दोस्तों से सलाह करें। उनकी सलाह आपके लिए कारगर हो सकती है। जो भी अवसर मिले आज उसका पूरा फायदा उठाने से न चूकें। कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान आपको जल्दी ही मिल जाएगा। व्यापार में नए सौदे होंगे। बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। किसी भी काम में संकोच न करें और हाथ आए मौके जाने न दें। उससे आपको फायदा होगा। यात्रा के योग बन रहे हैं। आपका सामाजिक सम्मान भी बढ़ेगा।
नेगेटिव -कन्फ्यूजन की स्थिति बन सकती है। कुछ गलतियां भी हो सकती हैं। सावधान रहें। अपनी आदतें सुधारने की कोशिश करें। खुद पर नियंत्रण रखें। धैर्य की कमी रहेगी। जो दूसरों से टकराव पैदा कराएगी। जिस काम से आप पहले कभी इनकार कर चुके थे, या जिस काम को आप बेहद नापसंद करते हैं, हो सकता है अब वो ही काम आपको करना पड़े। आज उधार देने-लेने से बचें। हर काम में रिस्क लेने से नुकसान भी हो सकता है। सावधान रहें।
उपाय: 1. उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2. दूध, चावल का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...
वृश्चिक - पॉजिटिव -आज जो भी बदलाव होगा, वह आपके हित में ही होगा। कुछ मामलों में आपको काफी सफलता भी मिल सकती है। आज आपको कई सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे। साथ ही आपके सामने जैसी भी स्थिति बनें। उसे स्वीकार कर लें। धीरे-धीरे कुछ अच्छी बातें आपको पता चल सकती है। आपके लक्ष्य अब आपकी नजरों में ज्यादा साफ हो जाएंगे। महत्वपूर्ण काम निपटाने पर ध्यान दें। परिस्थितियों से बाहर निकलने के बाद आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। परिवार के मामलों में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी से संबंध अच्छे हो जाएंगे। आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
नेगेटिव -आज फालतू कामों में भी समय खराब हो सकता है। सावधान रहें। लगभग हर काम किसी न किसी तरह देरी हो सकती है। हर बार देर होने का कारण कुछ अलग ही रहेगा। विरोधियों के कारण परेशान रहेंगे। आज बड़े सौदे न करें। कहीं कोई चीज भूल भी सकते हैं।
उपाय : 1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
धनु - पॉजिटिव - आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। अचानक धन लाभ होने की संभावना है। ऑफिस की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। अधिकारियों से संबंध सुधर जाएंगे। दोस्तों और रिश्तेदारों से सहयोग मिलेगा। कोई महत्वपूर्ण काम भी पूरा हो जाएगा। कोई अच्छी खबर मिल सकती है। राज की कोई बात भी आपको पता चल सकती है। आपको कुछ नए और अच्छे अवसर मिल सकते हैं। कॉन्फिडेंस भी बढ़ा हुआ रहेगा। भविष्य को लेकर आपके मन में उम्मीदें होंगी। विश्वास भी रहेगा। कोई नई शुरुआत भी कर सकते हैं। आपके ज्यादातर काम सरलता से और अचानक हो जाएंगे। समय आपके फेवर में रहेगा।
नेगेटिव -कोई अनजाना डर परेशान कर सकता है। अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो जाने की उम्मीद न रखें। कुछ मामलों में आप निराश भी हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा सावधानी रखने से परेशान हो सकते हैं। वाणी पर संयम रखें। परेशान भी हो सकते हैं। नए चैलेंज लेने या किसी उलझे हुए मामले में पड़ने से पहले खुद की स्थिति देख लें।
उपाय :1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
मकर - पॉजिटिव -पैसा कमाने के कुछ नए तरीके दिमाग में आ सकते हैं। आज आपका मन जो कहे, उस पर आप पूरा विश्वास कर सकते हैं। गुप्त रूप से चलने वाली गतिविधियों में बहुत सफल रहेंगे। थोड़ा समय एकांत में बिताना आपके लिए अच्छा रहेगा। किसी भी परिस्थिति में आपकी उपस्थिति और आपके योगदान से एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार का कोई खास मामला निपटाना होगा। घर-परिवार और ऑफिस के सोचे हुए काम पूरे हो जाएंगे। यात्रा, वाहन के मामलों में व्यस्त रहेंगे। आज आपसे ज्यादा आपके एक्सप्रेशन बोलेंगे। दुश्मनों पर जीत हासिल होगी। बिजनेस में नई योजना बन सकती है। रुका हुआ पैसा फिर से मिलेगा।
नेगेटिव -जल्दी पैसा कमाने की कोशिश न करें। शॉर्टकट लेंगे तो फंस भी सकते हैं। किसी की बातों में न आएं। खरीदारी करने में भी सावधान रहें। खराब या नकली सामान खरीद सकते हैं।
उपाय: 1. ऊॅ गु गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
कुंभ - पॉजिटिव -दिन अच्छा है। सोचे हुए काम जल्दी हो भी जाएंगे। रिश्तों के कारण आज आपको फायदा भी होगा। खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। आज आप वह काम करें, जिसे आप रचनात्मक ढंग से कर सकने में समर्थ हों। सामाजिक मेलजोल का कोई कार्यक्रम भी बन सकता है। वो आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। नौकरीपेशा लोगों का सम्मान बढ़ेगा। योजनाओं में सफलता मिल सकेगी। वाद-विवाद की समस्या का समाधान हो जाएगा। उलझे हुए पारिवारिक मामले निपट जाएंगे।
नेगेटिव -आज किसी न किसी कारण चिंता की स्थिति बन सकती है रिश्तों के क्षेत्र में परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है। न चाहते हुए भी मेहनत के काम निपटाने पड़ेंगे। थोड़ा शांत रहें। किसी भी तरह की हड़बड़ी में न पड़ें। शारीरिक जोखिम न लें। कुछ दोस्त आपसे अजीब व्यवहार भी कर सकते हैं।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन - पॉजिटिव -आपकी मेहनत के लिए तारीफ जरूर मिलेगी। बात कहने और सुनने में स्पष्टता जरूरी रहेगी। कोई गलतफहमी भी आज दूर हो सकती है। दोस्तों की मदद से किसी खास काम को निपटाने की योजना बन सकती है। रूटीन लाइफ में आपके साथ कुछ नया भी हो सकता है। चुप रहना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। आप में सहनशक्ति भी ज्यादा रहेगी। दिन सावधानी से बिता देंगे। आज कोई भी काम सावधानी से निपटा लेंगे। रिस्क नहीं लेना आपके लिए आज प्लस पॉइंट हो जाएगा।
नेगेटिव -चंद्रमा गोचर कुंडली के आठवें भाव में है। आज मेहनत बहुत रहेगी। इस राशि के कुछ लोगों को आज मेहनत का पूरा नतीजा भी नहीं मिल सकेगा। हो सकता है कि आपकी मेहनत का फायदा दूसरों को हो जाए। आप किसी की शिकायत या आलोचना में जरा भी न पड़ें। इसमें आपका समय भी खराब हो सकता है। परेशानी भी झेलनी पड़ेगी। व्यापार और कार्यक्षेत्र से जुड़ी योजनाओं को आज सार्वजनिक होने से बचाएं। जीवनसाथी की चिंता भी करनी होगी।
उपाय : 1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
मेष - पॉजिटिव -महत्वपूर्ण लोगों से कॉन्टैक्ट होगा। पारिवारिक जीवन भी सुखद रहेगा। अधूरे काम पूरे हो जाएंगे। आपका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा। अविवाहित लोगों को विवाह प्रस्ताव मिल सकते हैं। विवाहित लोग आज अपने जीवनसाथी को खुश करने की कोशिश करेंगे। अपने व्यक्तित्व के दम पर आज आप कुछ लोगों को अपने फेवर में कर सकते हैं। जिससे आपको फायदा मिलेगा। दोस्तों और प्रेमी से आज आपको पूरा सहयोग मिलेगा। नई नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। रोजमर्रा के काम समय से पूरे हो जाएंगे। कोई दोस्त आपके लिए कारगर भी साबित हो सकता है।
नेगेटिव -आप जैसे हैं, वैसे ही रहें। किसी तरह का दिखावा करेंगे तो मुसीबत में भी पड़ सकते हैं। आपका पहला प्रभाव नकारात्मक रहा, तो आप को उसमें सुधार का मौका शायद न मिल सके। आलस्य के कारण काम टल भी सकते हैं। ऐसे में जोखिम भरे कामों में हाथ डालने से बचें।
उपाय :1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
वृष - पॉजिटिव -एक के बाद एक छुपी हुई कुछ बातें आपके सामने आने लगेगी। अपने काम पर ध्यान दें। पैसों के मामलों में दूसरे लोग आपको चाहे जितनी भी सलाह दें, आप वही करें, जो आपका मन कहता हो। आपका मन दूसरों की सलाह से कहीं बेहतर है। अपनी योजना खुद बनाएं और उस पर डटे रहें। आज आप में बहुत ऊर्जा रहेगी। आप दूसरों की भावनाओं के लिए बहुत संवेदनशील भी रहेंगे। एक बार जैसे ही आप सक्रिय होंगे, सारा काम बहुत अच्छी तरह निपट जाएगा। आप अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट रहेंगे। नौकरी और बिजनेस में स्थिति भी अच्छी रहेगी और फायदा भी मनचाहा मिल जाएगा। संतान की प्रगति होगी। कानूनी विवादों का निपटारा आपके फेवर में भी हो सकता है।
नेगेटिव -आज आप फालतू बातों से बचें। नई सूचनाओं से उलझनें आएंगी और आपका ध्यान बंटेगा। परिवार के सदस्यों से कोई अजीब समाचार भी मिल सकता है। पारिवारिक मामलों में उलझने से बचें। आज आपको थोड़ी सुस्ती जरूर महसूस होगी। ऑफिस की कानाफूसी से दूर रहें। वाहन चलाते समय सावधानी रखें।
उपाय:1.उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2.दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
मिथुन - पॉजिटिव -आप जो करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लें और खुद कर लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी काम की पूरी योजना बनाएं और योजना से ही काम करें तो आप सफल हो जाएंगे। आज कोई घटना अचानक भी हो सकती है। मन बना लें। आप जो बात सुनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वह बात आज आपसे कोई कह देगा। शांत रहकर दूसरों की बात सुनेंगे, तो फायदे में रहेंगे। रिश्तों के क्षेत्र में सुधार करने का अवसर मिलेगा। आज आप सकारात्मक मूड में रहेंगे। मन की भावनाएं दूसरों से बेझिझक शेयर कर सकते हैं। दूसरों की खातिर कुछ खर्च करने में हिचकिचाए नहीं। पढ़ने-लिखने में मन लगेगा। मन शांत रखें। आपसी विचार-विमर्श और सहयोग प्रसन्नता देंगे। निवेश के अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले कुछ चिड़चिड़े लोग आपके खिलाफ शिकायतें भी कर सकते हैं। खासतौर पर ऑफिस में आप जो कहेंगे, उससे आप गहरी समस्या में पड़ सकते हैं, बेकार विचार मन में न आने दें। सावधानी से अनिष्ट दूर भी हो जाएंगे। कानूनी मामलों में सावधानी रखें। कोई परिचित या दोस्त पैसा उधार मांग सकता है। देने के पहले एक बार विचार कर लें
उपाय: 1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..
कर्क - पॉजिटिव -यथार्थवादी रहें। किसी खास मामले का सकारात्मक समाधान जल्द ही मिल जाएगा। आज आप के सामने काम बहुत ज्यादा रहेगा, लेकिन कुछ लोग आपकी पूरी मदद कर सकते हैं। आने वाले समय में आपकी व्यस्तता और भी ज्यादा होने जा रही है। मन से तैयार रहें। सामाजिक मेलजोल के किसी अवसर में आपकी तारीफ होगी। आपको पसंद किया जाएगा। प्रिय व्यक्ति से मुलाकात होगी। आवास की समस्या हल होगी। व्यापार अच्छा चलेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। आपने हाल ही में अगर कोई नया प्रयास किया है, तो आप उसके परिणामों को लेकर ज्यादा ही महत्वाकांक्षी हो सकते हैं। अधिकारी या कर्मचारियों से संबंध और अच्छे हो जाएंगे।
नेगेटिव - ज्यादा अधीर न हों। आज आप सावधान रहें, अति करेंगे, तो नुकसान हो सकता है। खुद को व्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश करेंगे। आपके चलते काम अचानक रुक सकते हैं। कोई बात या राज आपके लिए पहेली की तरह रहेगा। उसमें उलझ भी सकते हैं।
उपाय:1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
सिंह - पॉजिटिव - थोड़ा कॉन्फिडेंस महसूस करने की जरूरत है। आगे बढऩे के मौके मिलेंगे। आप बहुत उत्सुकता से नए मौकों और चैलेंज को स्वीकार करेंगे। किसी बुजुर्ग या अधिकारी से संबंध मधुर हो सकते हैं। तनाव या विरोध की स्थिति में आप समझौता करने या बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश करेंगे और सफल भी रहेंगे। नजदीकी लोगों से अपने मन की भावना व्यक्त करेंगे, तो खुश हो जाएंगे। नियमित दिनचर्या से पूरी तरह अलग कुछ करने की इच्छा होगी। नई चीजें समझने का अवसर मिलेगा। नौकरी और बिजनेस के लिए बढिय़ा दिन है। उत्साही दोस्तों के साथ रहने से फायदा हो सकता है। आपके ज्यादातर काम दोस्तों के सहयोग से पूरे हो जाएंगे। संपन्नता बढ़ेगी। रोमांस के भी अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -आप किसी चीज में अति न करें। अगर आप स्वयं पर नियंत्रण न रख सके, तो शाम तक भारी थकावट हो सकती है। अपनी आदत में बदलाव करें और गलतियों का ठीकरा अपने सिर पर न लें। कार्यक्षेत्र से जुड़े किसी काम या पैसों के लिए दौड़-भाग करनी पड़ सकती है। किसी बात पर पार्टनर के साथ मनमुटाव भी हो सकता है। आज कोई महत्वपूर्ण फैसला न लें।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
कन्या - पॉजिटिव -करियर या पैसों से जुड़ा कोई ऐसा मौका आज आपको मिल सकता है, जो आपकी आमदनी में अच्छा-खासा और सकारात्मक बदलाव कर देगा। मन की आवाज गौर से सुनें। कोई सपना या शुभ संकेत भी आज आपको मिल सकता है। आज कठिन मामले सुलझाने के लिए सारी बातें साफ कर दें। पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए अच्छा समय है। परेशानियां आज खत्म हो जाएंगी। संतान के काम और राजनैतिक जोड़-तोड़ में व्यस्त रहेंगे। प्रतिष्ठित लोगों से संबंधों में फायदा मिलेगा। महत्वपूर्ण काम आसानी से पूरे हो जाएंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकते हैं। बिजनेस में नए ऑफर भी मिल सकते हैं।
नेगेटिव -मन में आज कोई ऐसी बात आ सकती है जिसके बारे में आप किसी से कुछ कहने में संकोच करेंगे। आलस्य से बचें। आज आपके सामने कुछ कठिन परिस्थितियां भी आ सकती हैं। कोई बात बिगडऩे का डर भी आज बना रह सकता है।
उपाय:1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
तुला - पॉजिटिव -आज परेशानियां कम हो जाएंगी। आपको कुछ सुखद बदलाव भी महसूस हो सकते हैं। इस स्थिति में आपके दोस्त भी शामिल हैं। किसी परेशानी की स्थिति में दोस्तों से सलाह करें। उनकी सलाह आपके लिए कारगर हो सकती है। जो भी अवसर मिले आज उसका पूरा फायदा उठाने से न चूकें। कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान आपको जल्दी ही मिल जाएगा। व्यापार में नए सौदे होंगे। बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। किसी भी काम में संकोच न करें और हाथ आए मौके जाने न दें। उससे आपको फायदा होगा। यात्रा के योग बन रहे हैं। आपका सामाजिक सम्मान भी बढ़ेगा।
नेगेटिव -कन्फ्यूजन की स्थिति बन सकती है। कुछ गलतियां भी हो सकती हैं। सावधान रहें। अपनी आदतें सुधारने की कोशिश करें। खुद पर नियंत्रण रखें। धैर्य की कमी रहेगी। जो दूसरों से टकराव पैदा कराएगी। जिस काम से आप पहले कभी इनकार कर चुके थे, या जिस काम को आप बेहद नापसंद करते हैं, हो सकता है अब वो ही काम आपको करना पड़े। आज उधार देने-लेने से बचें। हर काम में रिस्क लेने से नुकसान भी हो सकता है। सावधान रहें।
उपाय: 1. उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2. दूध, चावल का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...
वृश्चिक - पॉजिटिव -आज जो भी बदलाव होगा, वह आपके हित में ही होगा। कुछ मामलों में आपको काफी सफलता भी मिल सकती है। आज आपको कई सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे। साथ ही आपके सामने जैसी भी स्थिति बनें। उसे स्वीकार कर लें। धीरे-धीरे कुछ अच्छी बातें आपको पता चल सकती है। आपके लक्ष्य अब आपकी नजरों में ज्यादा साफ हो जाएंगे। महत्वपूर्ण काम निपटाने पर ध्यान दें। परिस्थितियों से बाहर निकलने के बाद आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। परिवार के मामलों में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी से संबंध अच्छे हो जाएंगे। आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
नेगेटिव -आज फालतू कामों में भी समय खराब हो सकता है। सावधान रहें। लगभग हर काम किसी न किसी तरह देरी हो सकती है। हर बार देर होने का कारण कुछ अलग ही रहेगा। विरोधियों के कारण परेशान रहेंगे। आज बड़े सौदे न करें। कहीं कोई चीज भूल भी सकते हैं।
उपाय : 1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
धनु - पॉजिटिव - आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। अचानक धन लाभ होने की संभावना है। ऑफिस की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। अधिकारियों से संबंध सुधर जाएंगे। दोस्तों और रिश्तेदारों से सहयोग मिलेगा। कोई महत्वपूर्ण काम भी पूरा हो जाएगा। कोई अच्छी खबर मिल सकती है। राज की कोई बात भी आपको पता चल सकती है। आपको कुछ नए और अच्छे अवसर मिल सकते हैं। कॉन्फिडेंस भी बढ़ा हुआ रहेगा। भविष्य को लेकर आपके मन में उम्मीदें होंगी। विश्वास भी रहेगा। कोई नई शुरुआत भी कर सकते हैं। आपके ज्यादातर काम सरलता से और अचानक हो जाएंगे। समय आपके फेवर में रहेगा।
नेगेटिव -कोई अनजाना डर परेशान कर सकता है। अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो जाने की उम्मीद न रखें। कुछ मामलों में आप निराश भी हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा सावधानी रखने से परेशान हो सकते हैं। वाणी पर संयम रखें। परेशान भी हो सकते हैं। नए चैलेंज लेने या किसी उलझे हुए मामले में पड़ने से पहले खुद की स्थिति देख लें।
उपाय :1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
मकर - पॉजिटिव -पैसा कमाने के कुछ नए तरीके दिमाग में आ सकते हैं। आज आपका मन जो कहे, उस पर आप पूरा विश्वास कर सकते हैं। गुप्त रूप से चलने वाली गतिविधियों में बहुत सफल रहेंगे। थोड़ा समय एकांत में बिताना आपके लिए अच्छा रहेगा। किसी भी परिस्थिति में आपकी उपस्थिति और आपके योगदान से एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार का कोई खास मामला निपटाना होगा। घर-परिवार और ऑफिस के सोचे हुए काम पूरे हो जाएंगे। यात्रा, वाहन के मामलों में व्यस्त रहेंगे। आज आपसे ज्यादा आपके एक्सप्रेशन बोलेंगे। दुश्मनों पर जीत हासिल होगी। बिजनेस में नई योजना बन सकती है। रुका हुआ पैसा फिर से मिलेगा।
नेगेटिव -जल्दी पैसा कमाने की कोशिश न करें। शॉर्टकट लेंगे तो फंस भी सकते हैं। किसी की बातों में न आएं। खरीदारी करने में भी सावधान रहें। खराब या नकली सामान खरीद सकते हैं।
उपाय: 1. ऊॅ गु गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
कुंभ - पॉजिटिव -दिन अच्छा है। सोचे हुए काम जल्दी हो भी जाएंगे। रिश्तों के कारण आज आपको फायदा भी होगा। खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। आज आप वह काम करें, जिसे आप रचनात्मक ढंग से कर सकने में समर्थ हों। सामाजिक मेलजोल का कोई कार्यक्रम भी बन सकता है। वो आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। नौकरीपेशा लोगों का सम्मान बढ़ेगा। योजनाओं में सफलता मिल सकेगी। वाद-विवाद की समस्या का समाधान हो जाएगा। उलझे हुए पारिवारिक मामले निपट जाएंगे।
नेगेटिव -आज किसी न किसी कारण चिंता की स्थिति बन सकती है रिश्तों के क्षेत्र में परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है। न चाहते हुए भी मेहनत के काम निपटाने पड़ेंगे। थोड़ा शांत रहें। किसी भी तरह की हड़बड़ी में न पड़ें। शारीरिक जोखिम न लें। कुछ दोस्त आपसे अजीब व्यवहार भी कर सकते हैं।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन - पॉजिटिव -आपकी मेहनत के लिए तारीफ जरूर मिलेगी। बात कहने और सुनने में स्पष्टता जरूरी रहेगी। कोई गलतफहमी भी आज दूर हो सकती है। दोस्तों की मदद से किसी खास काम को निपटाने की योजना बन सकती है। रूटीन लाइफ में आपके साथ कुछ नया भी हो सकता है। चुप रहना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। आप में सहनशक्ति भी ज्यादा रहेगी। दिन सावधानी से बिता देंगे। आज कोई भी काम सावधानी से निपटा लेंगे। रिस्क नहीं लेना आपके लिए आज प्लस पॉइंट हो जाएगा।
नेगेटिव -चंद्रमा गोचर कुंडली के आठवें भाव में है। आज मेहनत बहुत रहेगी। इस राशि के कुछ लोगों को आज मेहनत का पूरा नतीजा भी नहीं मिल सकेगा। हो सकता है कि आपकी मेहनत का फायदा दूसरों को हो जाए। आप किसी की शिकायत या आलोचना में जरा भी न पड़ें। इसमें आपका समय भी खराब हो सकता है। परेशानी भी झेलनी पड़ेगी। व्यापार और कार्यक्षेत्र से जुड़ी योजनाओं को आज सार्वजनिक होने से बचाएं। जीवनसाथी की चिंता भी करनी होगी।
उपाय : 1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
बुधवार को कर्ज नहीं देना चाहिए......
कर्ज चुकाने की स्थिति आदमी को बहुत दुविधा में डाल देती है। कर्ज में डुबे इंसान का मन में रात-दिन सिर्फ उसे चुकाने के लिए तनावग्रस्त रहता है, लेकिन जैसी स्थिति व मुश्किलें कर्ज लेने वाले के लिए होती है कई बार उन्हीं मुसीबतों का सामना कर्ज देने पर भी करना पड़ता है। ऐसे में कई बार कर्ज देने वाले को भी अटके हुए पैसों के कारण आर्थिक तंगी या बिजनेस में नुकसान का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को व्यापार का कारक ग्रह माना गया है। कोई भी व्यक्ति कर्ज देता है तो यह बुध यानी व्यापार के कारक ग्रह का ही प्रभाव होता है। बुध को कार्यक्षेत्र का ग्रह तो माना ही जाता है। साथ ही, इसे नपुंसक ग्रह भी माना गया है। इसी वजह से शास्त्रों द्वारा बुधवार को कर्ज देना वर्जित किया गया है। इस दिन लोन पर बहुत कम परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इसे चुका पाता है।
बुध को कर्ज लेने से यह चुका पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कर्ज देने पर व्यक्ति के बच्चों तक को इस कर्ज से मुसीबतें उठाना पड़ती हैं। बुधवार को कर्ज देने से पैसा डूबता है और व्यापार में हानि होती है। इसी कारण बुधवार के दिन कर्ज देना अच्छा नहीं माना गया है।कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय दिन की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है। नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने के अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। साथ ही, सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल नहीं मिलता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को व्यापार का कारक ग्रह माना गया है। कोई भी व्यक्ति कर्ज देता है तो यह बुध यानी व्यापार के कारक ग्रह का ही प्रभाव होता है। बुध को कार्यक्षेत्र का ग्रह तो माना ही जाता है। साथ ही, इसे नपुंसक ग्रह भी माना गया है। इसी वजह से शास्त्रों द्वारा बुधवार को कर्ज देना वर्जित किया गया है। इस दिन लोन पर बहुत कम परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इसे चुका पाता है।
बुध को कर्ज लेने से यह चुका पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कर्ज देने पर व्यक्ति के बच्चों तक को इस कर्ज से मुसीबतें उठाना पड़ती हैं। बुधवार को कर्ज देने से पैसा डूबता है और व्यापार में हानि होती है। इसी कारण बुधवार के दिन कर्ज देना अच्छा नहीं माना गया है।कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय दिन की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है। नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने के अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। साथ ही, सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल नहीं मिलता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
अष्टम भावस्थ शनि का विवाह पर प्रभाव
प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से जातक की कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का निर्णायक भाव माना है और इसे जाया भाव, भार्या भाव, प्रेमिका भाव, सहयोगी, साझेदारी भाव स्वीकारा है। अतः अष्टम भावस्थ शनि विवाह को क्यों और कैसे प्रभावित करता है यह विचारणीय हो जाता है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम भाव का द्वितीय भाव है। विवाह कैसे घर में हो, जान - पहचान में या अनजाने पक्ष में हो, पति/पत्नी सुंदर, सुशील होगी या नहीं, विवाह में धन प्राप्ति होगी या नहीं आदि प्रश्न विवाह प्रसंग में प्रायः उठते हैं और यह आवश्यक भी है क्योंकि विवाह संबंध पूर्ण जीवन के लिए होते हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर सप्तम भाव से मिलना चाहिए। परंतु जब अष्टम भाव में शनि हो तो विवाह से जुड़े इन सब प्रश्नों पर प्रभाव पड़ता है। देखें कैसे? अष्टम भाव विवाह भाव (सप्तम) का द्वितीय भाव है तो यह विवाह का मारक स्थान होगा, जीवन साथी का धन होगा, परिवार तथा जीवन साथी की वाणी इत्यादि होगा। अतः अष्टम भावस्थ शनि इन सब बातों को प्रभावित करेगा। यदि शनि शुभ प्रभावी है तो जातक को जीवन साथी द्वारा परिवार, समाज में सम्मान, धन (दहेज या साथी द्वारा अर्जित) प्राप्ति, सुख, मधुर भाषी साथी प्राप्त हो सकता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के लिए मारक और उसके साथी द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ फलों का ह्रास होगा। अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर होती है जो जातक का कर्म भाव है और उसके जीवन साथी का चतुर्थ भाव अर्थात परिवार, समाज, गृह सुख, विद्या आदि है; अतः जातक का यश, समाज में प्रतिष्ठा, परिवार सुख, धन समृद्धि, शिक्षा, व्यवसाय आदि प्रभावित होते हैं। अष्टम भावस्थ शनि की दूसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है तो जीवन साथी का अष्टम भाव है, अतः उसके दुःख कष्ट, आकस्मिक घटनाएं, गुप्त कृत्य आदि तथा स्वयं के संचित धन को प्रभावित करेगा। अष्टम भावस्थ शनि की तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर होती है तो जीवन साथी का एकादश भाव है। अतः प्रभाव संतान पर, शिक्षा पर और जीवन साथी के हर लाभ पर होता है। विवाह जनित जितने भी सुख हैं वह अष्टम भावस्थ शनि से प्रभवित होते हैं जिनमें मुख्य हैं धन, संतान, शिक्षा, व्यवसाय, पैतृक संपत्ति, परिवार सुख आदि। शुभ शनि शुभ परिणाम देता है और अशुभ शनि शुभ फलों को कम कर देता है। इन धारणाओं को मन में रखते हुए कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया है और पाया गया कि अष्टम भावस्थ शनि निश्चित रूप से विवाह जनित सुख-दुख को प्रभावित करता है।
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