Tuesday, 28 June 2016

साप्ताहिक राशिफल -27 जून से 03 जुलाई, 2016

मेष
किसी के साथ बेवजह बहस से बचे, तनाव संभव। स्वजनों के साथ झगड़ा होने की संभावना है, वाणी पर काबू रखें। वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। व्यवसाय में ज्यादा मेहनत करने के बाद कम सफलता मिलने से निराशा होगी। संतानों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर चिंता रहेगी। सप्ताह के अंत में व्यवसाय संबंधित आर्थिक लाभ होगा या कोई आर्थिक योजना बनाएंगे। आप अन्य लोगों के फायदे के लिए कोई सेवा कार्य करेंगे। भोजन और नींद में अनियमित रहने से पेट संबंधित छोटी-छोटी समस्याएं हो सकती हैं।
उपाय-
बीमारों को दवाईयों का दान करें...
शनि के मंत्रों का जाप करें...
वृषभ
इस सप्ताह चिंता कम होने पर आप राहत महसूस करेंगे। कल्पनाशक्ति तथा सर्जनशक्ति निखरेगी। आप दृढ़ मनोबल और आत्मविश्वास से काम करेंगे और उसमें सफलता भी पाएंगे। आर्थिक लाभ मिलेगा, पूंजी निवेश करेंगे। वाणी का जादू आपको लाभ दिलाएगा। काम में निर्धारित सफलता के लिए ज्यादा मेहनत करनी होगी। विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि रहेगी। जीवनसाथी या प्रिय के साथ संबंध अच्छे बने रहेंगे। उनके साथ कहीं घूमने जाने की भी संभावना है। प्रवास में अव्यवस्था के कारण तनाव एवं स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।
उपाय-
रसीले खट्टे फल का दान करें...
दुर्गा कवच का पाठ करें ...
मिथुन
इस सप्ताह प्रियजनों के संबंध मधुर बने रहेंगे। आर्थिक मामले में आप दीर्घकालिक निवेश की योजना बनाएंगे लेकिन उनपर अमल करने के लिए अभी आपको थोड़ा धैर्य रखना चाहिए और सकारात्मक बने रहें। हालांकि, सप्ताह के मध्य में पारिवारिक वातावरण थोड़ा बोझिल हो सकता है और स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रहेगा। विद्यार्थियों का पढ़ाई में मन नहीं लगेगा। मन में दुविधा होने से आप मानसिक रूप से परेशान रहेंगे। आपकी अत्यधिक भावुकता के कारण अपने लोग भी आपको परेषान कर सकते हैं। अनिद्रा या कार्य का विलंब स्वास्थ्यगत कश्ट दे सकता है।
उपाय-
गरीबो को भोजन करायें...
सत्यनारायण की कथा करें...
कर्क
सप्ताह की शुरुआत में आपके कार्य का विलंब और सहयोगियों की अनुपस्थिति तनाव का कारण। सप्ताह के मध्य में आपको नकारात्मक मानसिक व्यवहार न रखने की सलाह है। दोस्तों, स्वजनों और रिश्तेवालों के साथ मुलाकात से आपका मन प्रफुल्लित होगा। मित्रमंडल के साथ पार्टी करने की संभावना है। साथ ही साथ निरामय स्वास्थ्य से सोने में सुहागा होगा। किसी की वाणी से मन को ठेस पहुंच सकती है। पारिवारिक माहौल थोड़ा भारी रहेगा। छात्रों का पढ़ाई में मन नहीं लगेगा। सप्ताह के अंत में कार्य में सफलता मिलेगी। पर्यटन के रूप में छोटी यात्रा की भी संभावना है। बहस से बचें।
उपाय-
गाय को गेहूॅ भीगाकर खिलायेंकृ
अंगारक मंत्र का जाप करें...
सिंह
इस सप्ताह की शुरुआत आप भरपूर आत्मविश्वास के साथ करेंगे। कार्यक्षेत्र में भी आपके काम की सराहना होगी लेकिन आप किसी भी विषय पर तुरंत निर्णय ले पाएंगे। जिससे आप मौके का फायदा उठा सकेंगे। दोस्तों मित्रों की ओर से आपको लाभ मिलेगा। व्यापार में मुनाफा होगा। सप्ताह के पूर्वान्ह में कानूनी मामलों में सावधानी बरतें। भावुकता को मन पर हावी न होने दें, नहीं तो भावनाओं में बहकर आप बिना विचारे कोई काम कर बैठेंगे जिसका बाद में अफसोस होगा। वाणी तथा व्यवहार में संयम रखें। बुजुर्गों से लाभ होगा, मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी। विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा है। स्वास्थ्यगत कश्ट से इस सप्ताह राहत प्राप्त होगी।
उपाय-
पीले फलों का दान करें...
गुरू के मंत्रों का जाप करें...
कन्या
इस सप्ताह व्यापार में लाभ की संभावना है। धन प्राप्ति के लिए यह समय शुभ है। रूके धन की प्राप्ति हेतु यात्रा होगी और उसमें सफलता भी मिलेगी। दांपत्य जीवन में अंतरंगता मिलेगी। अविवाहित लोगों को जीवनसाथी मिलने की संभावना है। आपको बहस और झगड़ा से दूर रहने की सलाह है। सप्ताहांत में बीमारी के पीछे अचानक धनखर्च हो सकता है। सप्ताह के अंत में आपका तनाव बढ सकता है। विद्यार्थियों के लिए यह सप्ताह एकाग्रता की कमी और अवरोध का समय है। कुल मिलाकर पारिवारिक सदस्य की बीमारी, यात्रा और एकाग्रता में कमी दिखाई देगी, इस प्रकार पूरा सप्ताह मिलजुला होगा।
उपाय-
दूध या दही का दान करें...
चंद्रमा के मंत्रों का जाप करें...
तुला
इस सप्ताह घर और कार्यस्थल में अनुकूल वातावरण रहने से मन में आनंद रहेगा। नौकरी में उन्नति का योग है। स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहेगा। सरकारी कामों में सफलता मिलने का योग है। आमदनी, व्यापार-धंधे में वृद्धि होगी। व्यापार में नए सम्पर्क और पहचान से भी लाभ होगा। अविवाहितों का विवाह तय होगा या फिर सगाई होने का योग है। लोगों के साथ संबंध मधुर रहेंगे, स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है, स्वास्थ्य में कमर के दर्द या एलर्जी बढ़ सकता है। वाहन चलाने में ध्यान रखें। तनाव कम करने के लिए आध्यात्मिकता का सहारा लें, योग या ध्यान करें।
उपाय-
नारियल या नालियल के लड्डू बच्चों में बाॅटें...
आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें...
वृश्चिक
क्रोध को इस सप्ताह वश में रखने और अनैतिक प्रवृत्तियों से दूर रहने की जरूरत है। आर्थिक स्थिति बिगड़ने के योग हैं। व्यवसाय में भी परिस्थितियां प्रतिकूल रहेगी। नौकरीपेशा लोगों के प्रति उच्च अधिकारियों का रवैया नकारात्मक रहेगा। फिर भी आप अपना काम अच्छी तरह से पूरी करने के कारण थोड़ी राहत महसूस करेंगे। लेखन-साहित्य सृजन के साथ जुड़े हुए लोगों के लिए समय अनुकूलता भरा रहेगा। जहां तक संभव हो प्रतिस्पर्दि्धयों के साथ वाद-विवाद करने से बचें। घर में पारिवारिक सदस्यों से मतभेद हो सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए इस सप्ताह समय भागमभाग का है। थकान, आहार की अनियमितता संभव है।
उपाय-
काले तिल का दान करें...
राहु के मंत्रों का जाप करें...
धनु
इस सप्ताह आप उत्साहित और आनंदित रहेंगे। व्यावसायिक और व्यापारिक क्षेत्र में काम अच्छे से पूरे होंगे। परंतु आपकी मानसिक चंचलता परेशानी का कारण बन सकती है। साथ रहने वालों के साथ वैचारिक असमानता का कारण घर में छोटी सी बात खटपट हो सकती है। किसी ना किसी कारण से खर्च में वृद्धि होगी। सप्ताह के मध्य में परिवार में किसी मेहमान के आगमन की संभावना। अनियमित भोजन को टालें अन्यथा पेट संबंधित समस्या हो सकती है। किसी पर भी अंधविश्वास न करें। चर्चा या वाद-विवाद से दूर रहना अच्छा रहेगा। व्यवसाय या नौकरी में विरोधियों का सामना करना पड़ेगा। संपत्ति के कागजात करने के लिए अच्छा समय है। स्वास्थ्य में पेट संबंधी बीमारियेां के अलावा बाकी ठीक रहेगा
उपाय-
जरूरत मंद बच्चों को पाठ्य सामग्री प्रदाय करें...
उॅ नमो भगवते वासुदेवायः का एक माला जाप करें...
मकर
व्यापार विस्तार या अच्छा ऑफर हो तो नौकरी बदलने के लिए यह सप्ताह अच्छा है। इसके बारे में आप योजना बना सकते हैं। पैसों की लेनदेन में सरलता रहेगी। घर में शांति और आनंद का माहौल बना रहेगा। जरूरी चीजों के पीछे धन खर्च में वृद्धि हो सकती है। व्यापारियों को कानूनी समस्या परेशान कर सकती है। इसलिए सतर्क रहना जरूरी है। विरोधियों की चाल किसी भी तरीके से सफल नहीं होगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। विचारों में थोड़ी दुविधा और अस्थिरता रहेगी। नए काम की शुरुआत के लिए अभी सही समय है। इस सप्ताह आहार एवं निद्रा में अनियमितता होगी।
उपाय-
अपने से जुड़े लोगों की समस्याओं का निराकरण करें...
केतु के मंत्रों का जाप करें...
कुंभ
इस सप्ताह विचारों में अस्थिरता रहेगी, लेखन और सृजन कार्य अच्छी तरह से पूरे कर सकेंगे। वाणी पर खास काबू रखने की सलाह देते हैं। जहां तक संभव हो यात्रा न करें। संतानों की किसी बात पर दुविधा हो सकती है। आकस्मिक धनखर्च की भी संभावना है। सप्ताह के मध्य में आपके काम अच्छी तरह पूरे होंगे। घर का माहौल आनंददायक रहेगा। नौकरी में भी सहकर्मियों का सहयोग मिलता रहेगा। दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाने का मौका मिलेगा। व्यापार में साझेदारी से लाभ मिल सकता है। इस सप्ताह पार्टी और आहार की अनियमितता पेट और एलर्जी से संबंधित कश्ट दे सकता है।
उपाय-
ऊॅ रां राहवे नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
प्रतिदिन संवेरे पानी में थोडा सा नमक मिलाकर घर में पोंछा करें, राहु दोषों से शांति मिलेगी।
मीन
इस सप्ताह मकान, वाहन या अन्य किसी भी संपत्ति संबंधित कागजात अत्यंत संभलकर करें अन्यथा गुम हो सकता है। परिवार का माहौल सुखद बनाए रखने के लिए वाद-विवाद से दूर रहें। माता के स्वास्थ्य की चिंता में वृद्धि हो सकती है। पैसों और प्रतिष्ठा की हानि हो सकती है। महिलाओं के साथ के व्यवहार में सावधानी रखें। विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा रहेगा। पढ़ाई में सफलता मिलेगी। आप हर काम पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ मनोबल के साथ करेंगे। नौकरी-व्यवसाय में लाभ मिलेगा। विरोधियों के व्यवहार पर अपना मत ना दें और ब्लडप्रेषर से बचने हेतु नींद और दवाई समय पर लें।
उपाय-
पेंड रोपे या पौधे का दान करें...
गणपति के मंत्रों का जाप करें...

श्राद्ध से पायें पंचकोटी फल.......

श्राद्ध संबंधित शास्त्र पद्म पुराण, लिंग पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण व मदन पारीजात के अनुसार जब कभी पितृपक्ष के दौरान सूर्य व राहू अथवा सूर्य अथवा केतु की युति होती है अथवा सूर्य पर राहू अथवा केतू की दृष्टि पड़ती है तो गज छाया योग निर्मित होता है। गज छाया योग में पितृकर्म, श्राद्धकर्म, तर्पण कर्म, पिण्डकर्म व पितृकर्म करने से पंचकोटी फल प्राप्त होता है। गज छाया में पितृकर्म करने से पितृगण को शांति प्राप्त होती है। इस समय कन्या का सूर्य राहु से पापाक्रांत है अतः गजछाया योग में किए गए श्राद्धकर्म या पितृकर्म को विधि पूर्वक करने से सभी प्रकार के पाप-शाप से मुक्ति पाई जा सकती है। 30 सितम्बर को तृतीया का श्राद्ध है। इसे महा भरणी भी कहते हैं। जिस भी व्यक्ति की मृत्यु तृतीय तिथि (शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष) के दिन होती हैं उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता हैं।
श्राद्ध पक्ष पूजा विधि-
 सामग्री:
 कुशा, कुशा का आसन, काली तिल, गंगा जल, जनैउ, ताम्बे का बर्तन, जौ, सुपारी, कच्चा दूध -
    सबसे पहले स्वयं को पवित्र करते हैं जिसके लिए खुद पर गंगा जल छिड़कते हैं उसके उपरांत कुशा को अनामिका (रिंग फिंगर) में बाँधते हैं। जनेऊ धारण करे, ताम्बे के पात्र में फूल, कच्चा दूध, जल ले अपना आसान पूर्व पश्चिम में रखे व कुशा का मुख पूर्व दिशा में रखे हाथों में चावल एवं सुपारी लेकर भगवान का मनन करे उनका आव्हान करें। दक्षिण दिशा में मुख कर पितरो का आव्हान करें, इसके लिए हाथ में काली तिल रखे। अपने गोत्र का उच्चारण करें साथ ही जिसके लिए श्राद्ध विधि कर रहे हैं उनके गोत्र एवम नाम का उच्चारण करें और तीन बार तर्पण विधि पूरी करें अगर नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें।
    तर्पण के बाद धूप डालने के लिए कंडा ले, उसमें गुड़ एवम घी डाले। बनाये गए भोजन का एक भाग धूप में दे उसके आलावा एक भाग गाय, कुत्ते, कौए, पीपल एवं देवताओं के लिए निकाले। इस प्रकार भोजन की आहुति के साथ विधि पूरी की जाती है।

Astrology and mental health

As you know astrology regards the moon as the karaka for mind. Moon is the fastest moving planet which is nearest to the earth. Moon is also responsible for fluctuations in human mood. First familiarize yourself with the planets, houses and sings which represent anxiety, depression and overall mental health in a natal chart affecting long term and short term mental states exposed by the malefic transit influences over weak natal planets. Long term mental and emotional instability issues are shown by weakness or affliction to significant natal planets, as listed below. By doing the analysis of those areas which represent mental health we can assess the mental health of a native on the basis of the strength or weakness/ affliction of the karaka planets, karaka house or house lord. For a more closer analysis it shall be effective to analyse dasha and transit to pinpoint clearly the long term or short term factors leading to the destabilization of mental health. By determining the activation and timing factors through the transits, main periods, and bhuktis in effect we can forewarn our clients friends and ourselves about the probability of mental instability. By studying the Pranchamas (D-V), we can further assess planetary strengths and weaknesses. . Significators of Psychiatric Problems : 1. Planets: Significator of the mind is the Moon. Mercury rules nerves and communication intellectual abilities. 2. Houses: The fourth and the fifth. 3. Signs: Cancer and Leo. Afflictions to the karaka planets, houses, and signs can cause the psychiatric difficulties and emotional disturbances for longer duration. Whereas transit afflictions can relate to shrot-term disturbances. 4. Divisional Chart of Depression : Panchamsa. Emotional Health : Depression: the fifth house Emotional Peace: The fifth and Moon Mental Peace: The fourth and Moon. Nervous Control: The sixth and Mercury. General Karaka (significator) for the fifth: Jupiter General Karaka (significator) for the fourth: Moon and Venus. Points to remember: Mercury, ruling the analytical abilities, when badly placed or under the severe affliction of the most malefic planet causes anxiety leading to depression, nervous breakdown, hypertension, and insomnia. Happiness, health and general disposition are ruled by the first house. The third house and Mercury rule mental growth, the third house and Mars rule initiatives, the fourth house rules the power of basic comprehension, and the fifth house rules intelligence, emotional peace of mind, and depression. Severe natal weakness and/or affliction of the planets connected with the third, fourth and the fifth houses, along with both the Moon and Mercury can result in severe mental handicaps, such as mental retardation specially if 1st house and Jupiter are also weak. The overall natal weakness and/or affliction of the planets connected with the third, the fourth, and the fifth houses, including the Moon and Mercury, may result in mental deficiencies for the native, inabilities to cope with the stress brings anxiety and depression, to full blown manic episodes, depending upon the severity of affliction Sixth house and Mercury rule nervous control. For divisional Analysis we study : 1. The strength of the lord of the ascendant. 2.The Moon and its sensitive degree. 3.The significator, (Jupiter in D-5 i.e. Panchmansa) 4.And the lord(s) of the particular significant/relevant houses in the rashi chart. Note: Diagnosing states of Mental Health can be a lengthy process for professionals in the medical field, such as Psychiatrists and Psychologists. All aspects of the behaviour criteria, background,.and motivational aspects of the patient must be thoroughly evaluated for appropriate medical diagnosis. Often the psychiatric medical diagnosis is followed by lengthy and diversified experimentation in medication for relief with an effort of minimising side effects. Often these prescriptions are met with unsuccessful result when it comes to finding the magic pill for behaviour modification or relief, because mental and emotional states of mind are based on so many internal and external personal experiences, many of which remain a mystery to all but the patient. Astrologer encounters similar experiences and investigation in their search. Every individual's horoscope is a woven pattern of unique energy at play, and this energy must be thoroughly synthesized and integrated before a conclusion can be drawn, especially with respect to something as delicate as states of mental health. The prescriptions we recommend are remedial measures like propitiation of the malefics. These remedial measures often become the saving grace for clients experiencing depression anxiety and mood disorders. Remedies : -If weak/afflicted moon is causing disease it should be strengthened by- 1. Mantrajapa & puja for moon. 2.. Should wear white clothes. 3. Should seek mother's blessings every morning by touching her feet. (Charansparsh) 4. Donate white items on Monday to a young Brahmin lady. (White sweet dishes, rice, silver, milk, curd, white clothes white sandal, white flowers etc.) 5. Should wear good quality pearl in silver on the little finger of the right hand. Mental problems also get cured easily by reciting Gayatri mantra and by worshipping lord Shiva.

द्वितीया श्राद्ध से पायें संतान के कष्टो से निवृत्ति-

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं, जिसमें परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ। प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें। 29 सितम्बर द्वितीया श्राद्ध में जिस भी व्यक्ति की मृत्यु द्वितीय तिथि (शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष) के दिन होती हैं उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है। इस दिन पूजन करने व पितरों का आशीर्वाद लेने से संतानप्राप्ति की कामना पूरी होती है वहीं रेवती नक्षत्र आने से पितरों का आशीर्वाद व्यवसाय में शुभफलदायक है। इस दिन उनका श्राद्ध करने का विवरण पुराणों में मिलता है। पितृ श्राद्ध पक्ष पूजा विधि-
सामग्री:
कुशा, कुशा का आसन, काली तिल, गंगा जल, जनैउ, ताम्बे का बर्तन, जौ, सुपारी, कच्चा दूध -
सबसे पहले स्वयं को पवित्र करते हैं जिसके लिए खुद पर गंगा जल छिड़कते हैं उसके उपरांत कुशा को अनामिका (रिंग फिंगर) में बाँधते हैं। जनेऊ धारण करे, ताम्बे के पात्र में फूल, कच्चा दूध, जल ले अपना आसान पूर्व पश्चिम में रखे व कुशा का मुख पूर्व दिशा में रखे हाथों में चावल एवं सुपारी लेकर भगवान का मनन करे उनका आव्हान करें। दक्षिण दिशा में मुख कर पितरो का आव्हान करें, इसके लिए हाथ में काली तिल रखे। अपने गोत्र का उच्चारण करें साथ ही जिसके लिए श्राद्ध विधि कर रहे हैं उनके गोत्र एवम नाम का उच्चारण करें और तीन बार तर्पण विधि पूरी करें अगर नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें।
तर्पण के बाद धूप डालने के लिए कंडा ले, उसमें गुड़ एवम घी डाले। बनाये गए भोजन का एक भाग धूप में दे उसके आलावा एक भाग गाय, कुत्ते, कौए, पीपल एवं देवताओं के लिए निकाले। इस प्रकार भोजन की आहुति के साथ विधि पूरी की जाती है।

कहीं आपको शक की बीमारी तो नहीं: जाने इसके ज्योतिषय कारण व उपाय

सामाजिक, पारिवारिक और दांपत्य जीवन में विश्वसनीयता बहुत आवश्यक है। यदि छोटी-छोटी बातों पर शक उत्पन्न हो गया तो रिश्तों में कड़वाहट और दरार पैदा हो जाती है। बात-बात पर शक करने के कारण किसी से भी नहीं बनती, कोई अपना नहीं होता या महसूस नहीं हो पाता जिसके फलस्वरूप मानसिक तनाव, अकेलापन तथा अविश्वास के कारण स्वस्थ्यगत परेशानियाॅ भी बढ़ जाती है। शक का कारण अगर हम ज्योतिषीय गणना द्वारा देखें तो शक बहुधा कमजोर मानसिकता को दर्शाता है। अतः यदि किसी का लग्नेश या तृतीयेश छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए अथवा तीसरे स्थान का स्वामी क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो, तो ऐसे जातक को शक करने की आदत होती है। इसी प्रकार अगर किसी के लग्न, तीसरे अथवा एकादश स्थान का स्वामी बुध होकर विपरीतकारक हो तो नाकारात्मक विचार के कारण सभी को शक की नजर से देखते है। इसी प्रकार अगर शनि द्वादशेश या तृतीयेश होकर तीसरे स्थान पर प्रभाव डालें तो ऐसे लोगों को झूठ बोलेने की आदत होती है और ऐसे लोग दूसरों पर भी शक करते हैं। इसी प्रकार अगर शनि इन स्थानों पर होकर जिस स्थान पर दृष्टि डालता है, उस स्थान से संबंधित व्यक्ति पर शक की सुई ज्यादा गहरी होती है। इस प्रकार यदि बात-बात शक हो और कई बार इस शक के कारण अपमानित महसूस कर रहे हों तो तृतीयेश को मजबूत बनाने के लिए तीसरे स्थान के ग्रह की शांति, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए। इसके अलावा शनि हेतु शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान तथा जामुनिया धारण करना चाहिए।

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Monday, 27 June 2016

Sunday, 26 June 2016

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Saturday, 25 June 2016

कलंक या बदनामी का कारण और ज्योतिषीय उपाय -
कलंक या बदनामी किसी भी इंसान के लिए सबसे बुरा वक्त कहा जा सकता है। कई बार जीवन में आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे होते हैं किंतु जब कालचक्र की गति विपरीत होती है, तब उसके निशाने पर आ ही जाते हैं। सामान्य वक्त में कुछ जातक जरूर कुछ गलत या कार्य या गतिविधियों में लिप्त होते हैं हालांकि तब उन पर कोई भी दाग प्रत्यक्षतः नहीं लगता और वह साफ-साफ बच निकलता है किंतु बुरा वक्त उन्हें भी नहीं छोड़ता और ऐसे में उनका छोटा अपराध भी जग जाहिर हो जाता है। एक और परिस्थिति तब आती है जबकि आप तो किसी के बारे में अच्छा सोचते हों और अच्छा करते भी हों किंतु वही इंसान आपके बारे में गलत धारणा बैठा ले.........राहु अथवा द्वितीयेश, तृतीयेश, अष्टमेश या भाग्येश के ग्रहों का संबंध या दृष्टि संबंध बने या शनि, गुरू जैसे ग्रह राहु से पापाक्रंात हो और उन  ग्रहों की दशाएॅ चले तो व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार बनता है, अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है और परिणामस्वरूप उसके द्वारा अक्सर गलतियां ही होती हैं। राहु जब किसी क्रूर या पापी ग्रह के साथ होते हैं तो ऐसे में उनका बुरा प्रभाव अधिक भयावह रूप से सामने आता है..........यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली के अनुसार ऐसी स्थिति बने तो ऐसे में उसे कलंक, बेवजह बदनामी का सामना करना ही पड़ता है। यदि इस दरमियान किसे जातक का आचरण सही नहीं है तो उसे इसका दण्ड जरूर मिलता है......अतः जानते बुझते या अनजाने में भी इस प्रकार की स्थिति बन रही हो, तो जातक को पितृशांति करानी चाहिए। पापाक्रांत ग्रहों को शांत करने के लिए मंत्रजाप, दान तथा व्रत-पूजन करना चाहिए।

अभीष्ट सिद्ध हेतु करें - पद्मा एकादशी

पद्मा एकादशी या परिवर्तनी एकादशी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह लक्ष्मी का परम आह्लादकारी व्रत है। इस दिन आषाढ़ मास से शेष शैय्या पर निद्रामग्न भगवान विष्णु शयन करते हुए करवट बदलते हैं। इस एकादशी को वर्तमान एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी को भगवान के वामन अवतार का व्रत व पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार के अभीष्ट सिद्ध होते हैं। भगवान विष्णु के बौने रूप वामन अवतार की यह पूजा वाजपेय यज्ञ के समान फल देने वाली समस्त पापों को नष्ट करने वाली है। इस दिन लक्ष्मी का पूजन करना श्रेष्ठ है, क्योंकि देवताओं ने अपना राज्य को पुनः पाने के लिए महालक्ष्मी का ही पूजन किया था। इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान वामनजी की प्रतिमा स्थापित करके मत्स्य, कूर्म, वाराह, आदि नामों का उच्चारण करते हुए गंध, पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजन करें। फिर दिनभर उपवास रखें और रात्रि में जागरण करें। दूसरे दिन पुनः पूजन करें तथा ब्राह्मण को भोजन कराएँ व दान दें। तत्पश्चात स्वयं भोजन करके व्रत समाप्त करें। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन वामन रूप की पूजा करता है, उसे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अतः मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पापनाशक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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Friday, 24 June 2016

क्या आपको पता है...... उपकरणों केे प्रदूषण से प्रभावित स्वभाव

आमतौर पर हम किसी के सुख और सम्पन्नता का अंदाजा इस बात से लगाते हैं कि घर में क्या-क्या हैं। घरो में जीतनें ज्यादा उपकरण उतना ही अधिक रुतबा, अच्छी सुविधाए और हम फूले नहीं समाते! टी.वी. कम्पूटर, फ्रीज और तमाम हाई-फाई उपकरण आज हर घर के आधुनिक होने की कसौटी हैं। आज हर व्यक्ति सुविधाओ के लिए उपकरणों को इकट्ठा करता रहता हैं। जीने के ये अंदाज इस प्रकार के उपकरण पूरे भी कर देते हैं मगर ये उपकरण हमारे लिए तकलीफों का अम्बार ला सकते है जैसे डीप्रेशन, प्रतिरोधक क्षमता की कमी, एल्जाइमर और कैंसर जैसे गंभीर रोगों के अलावा, किसी काम में मन नहीं लगना, थकान, मूड में अचानक बदलाव और कार्य में क्षमता में अचानक गिरावट, सिरदर्द, देखने में दिक्कत उपकरणों से प्रदूषण के कुछ कारण हैं। कोमल और संवेदनशील अंगो पर तो इसका अवश्य असर होता हैं। इन उपकरणों के आसपास बने विद्धुत चुम्बकीय वातावरण हमारेे तन एवं मन पर विपरीत असर डालते हैं और जिनकी कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे, एकादश या द्वादश स्थान में शनि, शुक्र एवं राहु होने से इस प्रकार की इलेक्टानिक उपकरणों से निकलने वाली चुंबकीय किरणों का दुष्प्रभाव जल्दी दिखाई देता है। अतः कई बार आपके मन खराब रहने या तन खराब रहने का कारण आपके जीवन में जरूरी वस्तुओं का संग्रह भी हो सकता है। अतः इन सामग्री से आपको नुकसान हो रहा है ये जानने के लिए ज्योतिषीय सलाह के साथ आवश्यक ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।

समाज में भ्रष्टाचार के कारण: जाने ज्योतिष्य बिन्दुओं से........

भ्रष्टाचार का सबसे बडा कारण कम प्रयास में ज्यादा की चाह और अपनी क्षमता, भाग्य और पुरुषार्थ की तुलना में जल्दी साधन संपन्न बनना और धन लोलुपता है। हमारे शास्त्र में जहा मान्य था की साई इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाय पर अब इससे उलट भूख समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। इसमें कोई संदेह नहीं कि नैतिक, वैचारिक, आत्मिक और चारित्रिक पवित्रता, भ्रष्टाचार के रक्तबीज का नाश करने में सक्षम होगी और एक सार्थक सामाजिक परिवेश का सृजन करेगी, किन्तु इसका समाप्त हो पाना कठिन है क्यूंकि भारत की कुंडली में लग्न का राहू उच्च स्तर पर चारित्रिक पवित्रता का निर्माण नहीं करेगा और इस प्रकार सुचिता बना पाना मुश्किल है। इसे समाप्त करने के लिए सभी के जीवन में चाहे वे राजनीति में हों या समाजिक क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में हों या प्रशासनिक क्षेत्र में जीवन में सुचिता तथा नैतिकता का निमार्ण कर भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सकता है सके लिए शनि, राहु एवं गुरू की शांति कराना तथा मंत्रजाप कराना चाहिए।

सौभाग्य को बढ़ाने हेतु करें ज्योतिषीय उपाय.............

अनुकूल परिस्थितियाँ सौभाग्य हैं और प्रतिकूल परिस्थितियाँ दुर्भाग्य हैं। यही सुख और दुःख के रूप में फल देते हैं। कुण्डली से अपने भाग्य का पता लगाकर मनुष्य अपने सदाचारी, पापरहित, निस्वार्थ, पवित्र जीवन से अपने भाग्य को संवारकर सुख प्राप्त कर सकता हैं। सौभाग्य में वृद्धि तथा दुर्भाग्य में कमी का यही एक उपाय है। पुरुषार्थ से भाग्य का निर्माण आवश्य हो जाता है तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भी पुरुषार्थ का सहारा लेना पड़ता हैं, किन्तु भाग्य को पलटा नहीं जा सकता उसमे केवल सुधार किया जा सकता हैं और पुरूषार्थ करने के लिए व्यक्ति की कुंडली में तीसरे, पंचम, दसम एवं एकादश स्थान को देखकर उन स्थानों के ग्रह एवं उन स्थानों से संबंधित ग्रहों के अनुकूल या प्रतिकूल का ज्ञान प्राप्त कर उस ग्रह से संबंधित प्रयास करने से व्यक्ति अपने पुरूषार्थ को बेहतर कर सकता है। जैसे यदि तीसरे स्थान का ग्रह यदि छठवे, आठवे या बारहवे हो जाए तो उस ग्रह से संबंधित मंत्रजाप, दान एवं ग्रह शांति कर उस ग्रह को अनुकूल कर पुरूषार्थ करने से मनोबल को बढ़ाया जा सकता है। इसी प्रकार पंचम के ग्रह को अनुकूल एकाग्रता को बढ़ाया जाता है। दसम के ग्रह को अनुकूल कर प्रयास को पुरूषार्थ द्वारा बढ़ाकर जीवन में सौभाग्य में बढ़ोतरी की जा सकती है।

जन्मांग में आपके आय का साधन

जन्मांग में आपका धन एवं आमदनी का साधन 'मयंक' पुर्नजन्म एवं कर्म फल का सिंद्धांत अकाट्य है, जन्मांग से यही परिलक्षित होता है। जन्मलग्न, सूर्य लग्न और चंद्र लग्न से श्रेष्ठ भाव फल की प्राप्ति धनागम को सुनिश्चित करतीहै। किस योग से किस जन्म लग्न में और किन ग्रहों से धन प्राप्त होता है,जानने के लिए पढ़िए यह लेख। सनातन धर्म संस्कृति में पुनर्जन्मऔर कर्मफल योग का सिद्धांतसर्वमान्य है।हर प्राणी पूर्व जन्मार्जित कर्म फलभोग के लिये निश्चित लग्न एवं ग्रहयोग में भूतल पर जन्म लेता है। पापकर्म एवं दुष्कर्म यदि पूर्व जन्म में कियेगये हों तो वर्तमान जीवन अभावों एवंकष्टों में बीतता है।ज्योतिष विज्ञान में धन एवंकर्म-व्यवसाय के लिए जन्म कुंडलीका द्वितीय भाव, नवम भाव, दशम एवंएकादश भाव ही आधार है। व्यवसायव्यापार का लाभ भाव एवं स्थिरताआदि का विचार सप्तम भाव से होताहै।द्वितीय भाव में शुभ ग्रह तथा द्वितीयेशकेंद्रस्थ हो या एकादश भाव में होऔर मित्र क्षेत्री, उच्च क्षेत्री, या स्वराशिका हो तो धन लाभ खूब होता है।द्वितीय भावस्थ राहु या केतु धनागममें बाधायें पैदा करते हैं। दशम भावका विचार जन्म लग्न, सूर्य लग्न एवंचंद्र लग्न से करें। इन तीनों लग्नों मेंजो लग्न बली हो उससे दशम भावविचारें। कुंडली में सर्वाधिक बलयुक्तग्रह भी आजीविका को प्रभावित करताहै। दशम भाव की राशि का तत्व भीआजीविका एवं धन मार्ग निर्धारित करताहै। मेष, सिंह, धनु अग्नि तत्व राशियांहै। इनमें से कोई भी राशि दशम भावकी हो तो जातक का कार्यक्षेत्र अग्निकार्य, धातु कार्य, बिजली, सेना यापुलिस होता है। वृष, कन्या, मकरपृथ्वी तत्व राशियां हैं। मिथुन, तुला,कुंभ वायु तत्व राशियां हैं। कर्क,वृश्चिक, मीन जल तत्व राशियां हैं। शम भाव में पृथ्वी तत्व राशि होने परजातक का कार्य क्षेत्र कृषि, बागवानी,फल-फूल व्यवसाय एवं वस्त्र व्यवसायहोता है। वायु तत्व राशि होने से व्यक्तिअध्यापक, वक्ता, ज्योतिषी, वकील आदिबनता है। जल तत्व राशि होने सेशीतल पेय पदार्थ, नाव, जलयान, जलसेना या जलीय पदार्थों से धन लाभहोता है।यदि कुंडली में अधिकांश ग्रह चरराशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) मेंस्थित हों तो जातक स्वतंत्र व्यवसायमें या राजनीति में कुशल होकर धनकमाता है। वृष, सिंह, कुंभ, वृश्चिकस्थिर राशियों में सर्वाधिक ग्रह होनेपर जातक सफल व्यवसायी,चिकित्सक या शासकीय नौकरी पाताहै। धनु, मीन, मिथुन, कन्या द्विस्वभावराशियां हैं। इनमें अधिक ग्रह होने परजातक सरकारी नौकरी, कमीशनएजेंसी, शिक्षा व्यवसाय या शासकीयशिक्षक आदि बन जाता है।जैसा कि ऊपर कहा गया है कि धनव्यवसाय के मामले में लग्न से, चंद्रलग्न से एवं सूर्य लग्न से दशम भावविचारणीय है। क्योंकि लग्न से दशमभाव जातक के उस कार्य का बोधकराता है जिसमें शारीरिक श्रम प्रमुख होता है। चंद्रमा से दशम भाव उसकार्य का बोध कराता है जिसमें मनुष्यकी मानसिक शक्ति का सर्वाधिकउपयोग होता है। सूर्य से दशम भावउस कार्य का बोध कराता है जिसमेंशारीरिक श्रम प्रमुख है। लग्न से दशममें कोई भी ग्रह व्यक्ति को कुशल एवंअपने कुल में प्रगतिशील बनाता है।यदि तीनों लग्नों से दशम में कोई ग्रहनहीं तो दशम भाव की नवमांश राशिसे व्यवसाय का विचार किया जाताहै। यदि सूर्य दशम भाव में है यादशम भाव की नवांश राशि का स्वामीहै तो जातक को पैतृक संपत्ति आसानीसे मिल जाती है। व्यवसाय में सरकारीनौकरी, ठेकेदारी, डॉक्टरी, सोने-चांदीका व्यवसाय, वस्त्र व्यवसाय आदि सेधन लाभ कमाता है। ज्योतिष ग्रंथों केअनुसार दिवार्ध या निशार्ध के बीचकी ढाई घड़ी में जो जातक पैदा होतेहैं, वे राजयोग लेकर पैदा होते है।कारण दिवार्ध में जन्म होने पर सूर्यदशम भाव में आयेगा तथा निशार्ध केबीच की ढाई घड़ी के मध्य जन्म होनेपर सूर्य चतुर्थ भाव में होगा।दशम भाव का चंद्रमा जातक को मातासे धन लाभ कराता है। जातक कोकृषि कार्य से, जलीय पदार्थों से तथावस्त्रों की दुकानदारी से लाभ कराताहै। दशम भाव स्थित मंगल अथवादशम भाव का नवमांशेश मंगल हो तोजातक शत्रुओं से अर्थात् शत्रुओं परविजय पाकर धन लाभ लेता है। खनिजपदार्थ का व्यवसाय, अतिशबाजी,आग्नेयास्त्र, सेना, पुलिस, बिजलीविभाग, पहलवानी, शारीरिक कलायें,इंजीनियरिंग, फौजदारी वकालत आदिसे धन कमाता है। बुध जातक कोमित्रों से धन लाभ कराता है। कवि,लेखक, ज्योतिषी, प्रवचनकर्ता, गणितज्ञ, शिल्पज्ञ एवं चित्रकार बना कर धनलाभ कराता है। गुरु भाई से धन लाभदेता है। पंडित, पुजारी, धर्मोपदेशक,धार्मिक संस्था, प्रधान न्यायाधीश आदिबनाकर जीविका देना गुरु का कामहै। गुरु शिक्षा से भी जोड़ता है। शुक्रहोने पर धनी महिलाओं से धन लाभपाता है। शृंगार प्रसाधन, इत्र फुलेलव्यवसाय, होटल, रेस्टारेंट, दुग्ध पदार्थोंके व्यवसाय, अभिनय, फल-फूल, वस्त्रआदि से धन लाभ देता है।उपरोक्तानुसार शनि सेवकों से धनलाभ कराता है अर्थात अन्त्यज जातिगतलोगों से, उनकी सेवा से धन लाभदेता है। काष्ठ व्यवसाय, पत्थरव्यवसाय, मजदूरों का मालिक, ठेकेदार,अदालती कार्यों से व्यवसाय व रोजगारप्राप्त होता है।जन्मांग के सप्तम भाव की भी व्यवसायके संबंध में महती भूमिका है। इसभाव में सूर्य होने पर व्यक्ति का व्यवसायस्थिर-सा रहता है। चंद्र होने परआमदनी में अस्थिरता रहती है।व्यवसाय भी बदलता रहता है। इसभाव का मंगल व्यवसाय में अविवेकपूर्णनिर्णय लेने की प्रवृत्ति देता है। नीलामीमें बोली लगाकर घाटा सहता है।घाटे के कारण व्यापार बंद होने केकगार पर पहुंच जाता है। सप्तम भावमें बुध हो तो जातक शीघ्र क्रय-विक्रयसे लाभ उठाता है। गुरु इस भाव मेंहोने पर जातक अपना व्यवसायईमानदारी से करता है और उन्नतिपाता है। शुक्र होने पर जातक अपनेव्यवसाय में लाभ एवं लोकप्रियता पाताहै। इस भाव में शनि एवं राहु या केतुका होना जातक के व्यवसाय में बड़ीउथल-पुथल देता है।यदि कुंडली में धन भाव और लाभभाव दोनों श्रेष्ठ हो तो व्यक्ति धन आसानी से कमा सकता है और बचतभी कर लेता है। यदि दूसरा भावअच्छा है और ग्यारहवां भाव बलहीनहै तो धन कठिनाई से प्राप्त होगा।बचत भी होगी। एकादश स्थान श्रेष्ठहो और द्वितीय स्थान कमजोर हो तोधन का आगमन बना रहता है लेकिनबचत मुश्किल से होती है।चंद्रमा पंचमभाव में हो और शुक्र सेदृष्ट हो तो जातक को सट्टा लॉटरीसे धन मिलता है। दूसरे भाव कास्वामी और चौथे भाव का स्वामी नवमभाव में शुभ राशि में हो तो जातक कोभूमि में गड़ी हुई संपत्ति प्राप्त हो जातीहै अथवा यदि धनेश और आयेश दोनोंचतुर्थ भाव में स्थित हों, उनके साथशुभ ग्रह हो और चतुर्थ भाव राशि शुभराशि हो तो भूमिगत संपत्ति प्राप्त होगीशुक्र का द्वादश भाव में होना भी व्यक्तिको सभी सुखोपभोग के लिये पर्याप्तधन देता है।विभिन्न लग्नों के धनदायक ग्रहों कीबलवान स्थिति व्यक्ति को खूब धनलाभ कराती है। मेष लग्न के लिये-मंगल व गुरु, वृषभ के लिये बुध वशनि, मिथुन के लिये- बुध व शुक्र,कर्क के लिये- चंद्र व मंगल, सिंह केलिये सूर्य तथा मंगल, कन्या के लिये-बुध तथा शुक्र-तुला के लिये- शुक्र वशनि, बुध, वृश्चिक के लिये- गुरुऔर चंद्र, धनु के लिये गुरु व सूर्य,मकर के लिये- शनि व शुक्र, कुंभ केलिये- शनि व शुक्र तथा मीन लग्नके लिये- गुरु और मंगल धनदायकग्रह हैं।

कैसे बनते हैं हिंसा के योग......जाने ज्योतिष द्वारा

हिंसा का प्रतिनिधि मंगल है, नीच एवं घृणित कार्यों का प्रतीक शनि है तथा आवेश व अप्रत्याशितता के उत्प्रेरक राहु केतु है। जब मंगल, शनि और राहु केतु की दृष्टि, युति या अन्य दृढ़ संबंध लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से होता है तो जातक का प्राणांत अस्वाभाविक रूप से हिंसा द्वारा अर्थात् हत्या से होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। जन्मकुंडली जन्म के समय सौर मंडल में स्थित ग्रहों के प्रभाव का चित्रांकन है। अस्तु यही ग्रह योग उस मनुष्य के जन्म मृत्यु एवं संपूर्ण जीवन चक्र को निरूपित करते हैं। जन्मकुंडली में प्रथम (लग्न) भाव जातक के शरीर का समग्र रूप से प्रतिनिधित्व करता है तो अष्टम भाव उसकी आयु का। शरीर के संवेदनशील तंत्र के ऊपर मन का अधिकार होता है जिसका प्रतिनिधित्व चंद्र करता है। हिंसा का प्रतिनिधि मंगल है, नीच एवं घृणित कार्यों का प्रतीक शनि है तथा आवेश व अप्रत्याशितता के उत्प्रेरक राहु केतु है। जब मंगल, शनि और राहु केतु की दृष्टि, युति या अन्य दृढ़ संबंध लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से होता है तो जातक का प्राणांत अस्वाभाविक रूप से हिंसा द्वारा अर्थात् हत्या से होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। चूंकि ऐसी हिंसात्मक अस्वाभाविक मृत्यु (हत्या) के लिए जातक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति (हत्यारे) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है अस्तु चतुर्थ भाव या उसके अधिपति का भी इस हेतु दूषित होना आवश्यक है द्वितीय एवं षष्टम भाव ऐसे अन्य व्यक्ति के हाथ होते हैं इसलिए इन मामलों में द्वितीय, चतुर्थ एवं षष्टम भावों या भावेशों का अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध होना भी आवश्यक है। वैसे भी षष्टम भाव शत्रु, दुर्घटना एवं हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। हिंसा के लिए राहु या केतु की मंगल पर दृष्टि, युति या अन्य संबंध होना और इनसे लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों का दूषित होना भी आवश्यक है। अकेले मंगल या अकेले राहु केतु यह कार्य करने में असमर्थ रहते हैं। जीवन की कोई भी महत्वपूर्ण घटना में तीन बड़े ग्रह शनि, गुरु एवं मंगल की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। घटना घटित होने के लिए जातक की जीवन आयु, ग्रह स्थिति, महादशा एवं ग्रहों के गोचर की स्थितियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। हत्या की घटना के समय सामान्यतः गोचर के शनि की दृष्टि या उसका संबंध लग्न एवं अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से रहता है। अगर चंद्र कुंडली से भी ऐसे ही निष्कर्ष मिलते हों तो घटना घटित होने की प्रबल संभावना हो जाती है।

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Thursday, 23 June 2016

क्या आपकी बातों से लोग नाराज हो जाते हैं, कारण जाने ज्योतिष गणना से

जीवन में किसी व्यक्ति की पहचान उसकी आवाज होती है। कोई व्यक्ति किस प्रकार के जबान से पहचाना जायेगा और उसका लोग आदर करेंगे, उसे बात करना पसंद करेंगे या उससे बचते हुए रहना चाहेंगे यह सब कुछ ज्योतिषीय ग्रहों की गणना का विषय है। उसके सभी रिश्ते और अपनापन उसके जुबान के द्वारा बनती और बिगड़ती हैं वहीं यदि हम ज्योतिषीय नजरिये से देखें तो किसी की कुंडली में उसका यही काम उसका तीसरा स्थान या तीसरे स्थान का स्वामी करता है। अतः यदि किसी जातक को लगातर उसके जुबान के कारण अपमानित होना पड़ रहा हो अथवा उसके जुबान या भाषाशैली के कारण उसके रिश्तों में कटुता आ रही हो या रिश्ते खराब हो रहे हों तो ऐेसे व्यक्ति को अपनी कुंडली के तीसरे स्थान का विवेचन कर उससे संबंधित ग्रहों की शांति, मंत्रजाप अथवा उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं के दान एवं उस ग्रह के अनुकूल व्यवहार रखकर अपना तीसरा घर सुधारने का प्रयास करना चाहिए और अपने बिगड़ कार्य या बिगड़े रिश्तों में मधुरता लाना चाहिए।

सफलतम व्यापारी कैसे बने जाने ज्योतिष द्वारा

सफल व्यापारी बनने के लिए कुंडली में श्रेष्ठ धन योग के साथ-साथ व्यापार, व्यवसाय भाव के कारक बुध ग्रह की श्रेष्ठ स्थिति वांछित है। बुध को कुशल प्रबंधन व आर्थिक प्रबंधन का कारक होने से इसके बली होने की स्थिति में धन के स्रोतों का दोहन करने में श्रेष्ठस्तरीय सफलता प्राप्त होती है। एक व्यापारिक संस्थान की नींव स्थापित करने के लिए कुशल प्रबंधन के अतिरिक्त जातक के मेहनती होने की भी आवश्यकता रहती है जिसके लिए मंगल व तृतीय भाव का बली होना जरूरी है। साथ ही छठे भाव के श्रेष्ठ होने से बाजार के प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने की क्षमता प्राप्त होगी इसके अतिरिक्त व्यापार में स्थिरता तथा अच्छी योजनाओं की परिकल्पना हेतु इसके कारक शनि का बलवान होना भी उतना ही आवश्यक है। व्यापार में सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता के लिए लग्न व लग्नेश के बल की नाप तोल भी करनी होगी। भाग्य भाव का सहयोग प्राप्त करने हेतु भाग्य भाव के कारक गुरु व सौभाग्य के प्रतीक शुक्र के अतिरिक्त नवम से नवम अर्थात् पंचम भाव आदि सभी के बल से निर्विघ्न कार्य संपन्न होने की गारंटी मिलती है। सप्तम भाव को व्यापार का कारक भाव माना जाता है इसलिए श्रेष्ठ व बली सप्तम भाव भी श्रेष्ठतम व्यापारिक योग्यता संपन्न करता है। दशम भाव से जातक की सफलता के स्तर और मान सम्मान, संपन्न व्यवसाय का निर्धारण तो होता ही है इसलिए दशम भाव भी बली होना चाहिए। श्रेष्ठ व्यापारी योगों में धनेश व लाभेश का स्थान परिवर्तन योग सर्वोपरि है। लग्न में सूर्य चंद्र की युति अखण्ड लक्ष्मी योग का प्रतीक मानी गई है। लग्नेश, धनेश व लाभेश की केंद्र में युति हो और इनमें से एक ग्रह उच्च राशिस्थ हो तो श्रेष्ठ व्यापारी होता है। केंद्र व त्रिकोण के स्वामियों का स्थान परिवर्तन योग भी व्यापारियों के लाभदायक होते हुए देखा गया है। -लग्न में शुक्र, भाग्येश व दशमेश की बुध के साथ युति हो तो सफल व्यापारी बने। देखें रतन टाटा की इस कुंडली में उपरोक्त योग होने के अतिरिक्त तृतीय भाव, मंगल व शनि भी बली है। -लग्न में सूर्य, चंद्र की युति हो, धन भाव, तृतीय भाव व दशम भाव बली हो तो श्रेष्ठतम व्यापारी बने।

राहु-केतु की अशुभ फलदाई स्थिति

राहु-केतु कुंडली में एक दूसरे से 1800 की दूरी पर (ठीक विपरीत राशि में) स्थित होते हैं। अन्य पापी ग्रहों की तरह ये 3, 6, 11 भाव में शुभ फल देते हैं, और अन्य भावों में अपनी स्थिति व दृष्टि द्वारा उनके कारकत्व को हानि पहुंचाते है। यह सदैव वक्री गति से राशि चक्र में भ्रमण करते हैं। सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त (बृहस्पति की तरह) यह अपनी स्थिति से पंचम और नवम् भाव पर पूर्ण दृष्टि डालते हैं। राहु-केतु के शुभाशुभ फल के बारे में ‘लघुपाराशरी’ ग्रंथ में बताया गया है। यद्यद्भावगतौ वापि यद्यद्भावेश संयुतौ। तत्तत्फलानि प्रबलो प्रदिशेतां तमो ग्रहौ।। (संज्ञाध्याय, श्लोक/13) अर्थात् ‘‘राहु और केतु जिस भाव में स्थित हों या जिस भाव के स्वामी के साथ बैठे हों, उन्हीं से संबंधित विशेष फल देते हैं।’ बृहत् पाराशर होरा शास्त्र (अ. 36.17) के अनुसार यदि राहु-केतु केंद्र या त्रिकोण में उस भावेश के साथ हो या उससे दृष्ट हो तो वह राजयोगकारक जैसा फल देते हैं। राहु-केतु की अन्य भावों की अपेक्षा प्रथम (लग्न) और सप्तम भाव में स्थिति परम अशुभ फलदाई होती है। कुछ ज्योतिर्विद राहु की लग्न में और केतु की सातवें भाव में स्थिति को ‘अनन्त’ नामक कालसर्प योग, और राहु की सातवें भाव में व केतु की लग्न में स्थिति को ‘तक्षक’ नामक ‘कालसर्प योग’ की संज्ञा देते हैं। वास्तव में विभिन्न भयानक सर्पों के नाम के कालसर्प योग राहु-केतु की अपनी भाव-स्थिति का ही फल देते हैं। दक्षिण भारत के विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य डा. बी. वी. रमन ने अपनी पुस्तक ‘300 महत्वपूर्ण योग’’ में स्पष्ट किया है कि ‘‘किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ में ‘कालसर्प’ योग का वर्णन नहीं है। यह कब और कैसे प्रचलित हुआ कुछ पता नहीं है।’’ कुछ अन्य ज्योतिषाचार्य राहु-केतु की लग्न-सप्तम स्थित को ‘पितृ दोष’ भी कहते हैं और हरिद्वार अथवा त्रयम्बकेश्वर आदि तीर्थों में शांति पूजाएं करवाते हैं। साथ ही इन दोषों के निवारण हेतु महंगे ‘कवच’ भी पहनाते हैं। परंतु खर्च के अनुपात में लाभ नहीं मिलता। लग्न का राहु जातक को रोगी, अल्पायु, धनी, क्रोधी, कुकर्मी और व्यर्थ बोलने वाला बनाता है। सप्तम का राहु जातक को अल्पबुद्धि, वीर्य-दोष से पीड़ित और सहयोगियों से अलगाव देता है। पत्नी धन का नाश करती है। अन्य पापी ग्रहों से युक्त होने पर पत्नी दुष्ट स्वभाव और कुटिल होती है। लग्न का केतु वात रोग से पीड़ा, दुर्जनों की संगति, धन की कमी, स्त्री व पुत्र की चिंता और व्याकुलता देता है। सप्तम का केतु धन का नाश, अपमान, आंतांे और मूत्र की बीमारी, स्त्री से वियोग तथा व्यग्रता देता है। लग्न पीड़ित होने पर व्यक्ति का सारा जीवन कष्टमय रहता है। राहु-केतु के लग्न व सप्तम तथा विपरीत स्थिति का दुष्प्रभाव निम्न कुंडलियों द्वारा भली प्रकार समझा जा सकता है। दोनों ही स्थिति में राहु व केतु अपने दुष्प्रभाव से लग्न, पंचम, सप्तम, नवम, तृतीय व एकादश भाव के फल की हानि करते हैं जिससे स्वास्थ्य, विद्या, बुद्धि, संतान, दांपत्य सुख, पिता, धर्म; पुरूषार्थ और लाभ की हानि होती है। इन भावों के पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन निराशापूर्ण व दुखी रहता है। राहु व केतु पापदृष्ट अथवा नीच राशि में स्थित होने पर अधिक और उच्चस्थ अथवा शुभ दृष्ट होने पर कम दुष्प्रभावी होते हैं। इस बहुमुखी हानिकारक प्रभाव के कारण कुछ ज्योतिषियों ने इसे ‘लज्जित दोष’ कहना आरंभ कर दिया है, जो भविष्य में ‘कालसर्प योग’ और ‘पितृदोष’ की तरह प्रसिद्धि पा सकता है। अपना प्रारब्ध भोगता व्यक्ति ज्योतिषियों के मार्गदर्शन में अपनी मेहनत की कमाई विभिन्न उपायों पर खर्च करता है। परंतु ज्योतिष (ईश्वरीय ज्योति) केवल मनुष्य के प्रारब्ध (भाग्य) को दर्शाती है, भाग्य नहीं बदलती। प्रारब्ध तो भोगकर ही कटता है। शास्त्रोक्त मंत्रजप, हवन, व दान द्वारा कष्टों को सहनशील ही बनाया जा सकता है। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र (अध्याय 2) के अनुसार जीव के प्रारब्ध (शुभ/अशुभ कर्मफल) को फलीभूत करने के लिए जनार्दन (ईश्वर) ग्रह रूप में कुंडली के शुभ/अशुभ भावों में स्थित होकर उनकी दशा-भुक्ति में अच्छा या बुरा फल देते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में इस तथ्य का इस प्रकार निरूपण किया हैः- प्रारब्ध पहले रचा पाछे रचा शरीर। तुलसी चिंता क्यों करें भजले श्री रघुवीर।। अर्थात, ‘प्रारब्ध को सरलता से काटने के लिये ईश्वर आराधना ही एक मात्र उपाय है।’’ महर्षि पाराशर ने अपने ग्रंथ ‘बृहत पाराशर होरा शास्त्र’ (अध्याय 66, श्लोक 26) में बताया है: यस्य यश्च दुःस्थः स तं यत्नेन पूज्येत। एषां धान्ना वरोदत्तः ‘पूजिताः पूजभिष्यथ’।। अर्थात्, ‘‘जब कोई ग्रह (दशा, भुक्ति या गोचर में) कष्टकारी हो तो उसकी यथाशक्ति पूजा (मंत्र जप व हवन, तथा ग्रह की वस्तु का दान) करना चाहिए, क्योंकि ब्रह्माजी ने ग्रहों को वरदान दिया है कि जो तुम्हारी पूजा करे उसका भला करो।’’ पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से विधिपूर्वक स्वयं किया उपाय कष्टों को आसान बनाता है, जैसे स्वयं भोजन करने पर ही भूख शांत होती है। ग्रह के मंत्रजप, हवन और दान को प्रायश्चित स्वरूप मानकर व्यक्ति के संकल्प और प्रयास में दृढ़ता आती है। राहु-केतु की पूजा का विधान इस प्रकार है। चैत्र, पौष और अधिकमास को छोड़कर किसी अन्य माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से आरंभ कर 18 शनिवार को करना चाहिए। व्रत के दिन प्रातः स्नान करके सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। उसके बाद काले रंग के वस्त्र धारण कर कंबल के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से राहु के लिए ‘‘ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’’ की और केतु के लिए ‘‘ऊँ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः’’ की 11 या 5 माला एक दिन में जप करें। राहु मंत्र के जप के समय एक पात्र में जल और दूर्वा तथा केतु मंत्र जप के समय जल में कुश डालकर अपने पास रखना चाहिए। उस दिन का जप पूरा होने पर उसे पीपल की जड़ में चढ़ा दें। दिन में एक समय मीठी रोटी या चूरमा अथवा काले तिल से बना बिना नमक का भोजन करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद एक सरसों के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष की जड़ के समीप जलाना चाहिए। जप-अनुष्ठान की समाप्ति पर जप-संख्या के ‘दशांश’ का हवन करना चाहिए। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार हवन में ग्रह संबंधी समिधा का अवश्य प्रयोग करना चाहिये। राहु के लिए ‘दूर्वा’ और केतु के लिए ‘कुशा’ को आम की समिधा के साथ मिलाकर हवन में प्रयोग करें। अनुष्ठान के समय सुबह-शाम लोबान की धूनी घर में घुमाना चाहिए। हवन के बाद यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराकर उन्हें ग्रह संबंधी वस्तुओं का दान देना चाहिए। दान की वस्तुएं इस प्रकार हैं:- राहु की वस्तुएं: सतनाजा, कंबल, तिल से भरा लौह पात्र, उड़द, सरसों, नारियल, तेल, नीला वस्त्र व सीसा। केतु की वस्तुएं: कंबल, ऊनी वस्त्र, बकरा, सतनाजा व उड़द। अंत में दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर विदा करना चाहिए। इस प्रकार राहु-केतु की पूजा अनुष्ठान से कष्टों का शमन होकर सम्मान प्राप्त होता है। अनुष्ठान के उपरांत राहु के लिए कोढ़ियों को सरसों के तेल से बनी सूखी सब्जी और रोटी (विशेषकर अमावस्या व शनिवार को) खिलाना चाहिए। केतु के लिए गली के कुत्ते को (विशेषकर बुधवार को) दूध रोटी खिलाना चाहिए। इससे जीवन की कठिनाइयां सरल होती जाती हैं। लेखक के संज्ञान में आईं कुछ कुंडलियां इस प्रकार हैं। गंडमूल का जन्म है। जातिका आकर्षक और बुद्धिमती है। दृष्टि कमजोर है। टीचर है। प्यार शादी में परिणत न होने से दुखी है। लग्न में राहु, सप्तम में केतु है।

ज्योतिष एवं वास्तु के उपायों का संबंध........

प्रत्येक व्यक्ति में यह स्वभाविक इच्छा होती है कि मैं सदा सुखी, धनी व स्वस्थ रहूं। जब उसकी किसी भी इच्छा की पूर्ति नहीं होती तो वह विचलित हो जाता है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह ज्योतिषीय वास्तु उपायों का सहारा लेता है। हम सभी अपने पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए बाध्य है। भगवान ने हमारे कर्मों का फल देने के लिए ग्रहों को नियुक्त कर रखा है। जन्म के समय हमारी कुंडली में जैसे ग्रह होंगे, वैसा ही फल हमें भोगना होगा। अपने ग्रहों के हिसाब से ही हमें रहने का निवास, पुत्र, स्त्री व धन की प्राप्ति होती है। नवग्रह किस प्रकार हमें प्रभावित करते हैं। इसे जानने के लिए जन्म मृत्यु चक्र पर विचार करिए। हमारा जन्म पूर्व जन्म में की गई किसी अतृप्त कामना की पूर्ति के लिए होता है। वह कामना धन के लिए भी हो सकती है या किसी स्त्री-पुरुष के लिए भी हो सकती है। काल पुरुष की कुंडली में धन भाव का स्वामी शुक्र है और स्त्री/पुरुष भाव का स्वामी भी शुक्र है , अर्थात कुंडली का दूसरा व सातवां भाव दोंनों को मारक भाव कहा जाता है और दोनों का स्वामी शुक्र ही मैथुनी प्रकृति का आधार है। शुक्र ही सौंदर्य, काम व ऐश्वर्य का प्रतीक है। जब हमारा मन किसी वस्तु, व्यक्ति, सौंदर्य या धन को देखकर आकर्षित हुआ, तो शुक्र ने अपना कार्य कर दिया। हृदय में विचार तरंगे उठनी शुरु हो गई, तो सूर्य का कार्य पूर्वा हुआ। मन उसकी कल्पना में खो गया, तो चंद्र को कार्य मिल गया। बुद्धि द्वारा वस्तु को पाने की इच्छा हुई, तो बुध ने कार्य किया। इच्छा की पूर्ति के लिए हम वेग से आगे बढ़े, पराक्रम किया तो मंगल ने कार्य किया। उसका दिन-रात चिंतन किया, गुरु का कार्य हुआ। उसे पाने के लिए कठिन परिश्रम किया- शनि ने साथया। वस्तु के मिलने पर अहंकार हो गया तो राहू खुश हुआ। अब अगर किसी भी वस्तु को पाने की तमन्ना शेष नहीं रही तो मोक्ष का कारक ग्रह केतू मोक्ष दिलवा देगा। यह नौ ग्रह आपको कुछ देना चाहते हैं। हमें उसको पाने की योग्यता अपने अंदर विकसित करनी है। आप सभी ग्रहों को अपने लिए शुभकर बना सकते हैं, अपने कर्मों द्वारा, उनकी पूजा अर्चना द्वारा व विभिन्न उपायों द्वारा। आमतौर पर छठे, आठवें व बारहवें भाव को शुभ नहीं कहा जाता है। छठे भाव को शुभ किए बिना आप आज्ञाकारी नौकर प्राप्त नहीं कर सकते। आठवें भाव को शुभ किए बिना लंबी आयु कैसे मिलेगी। बारहवां भाव तो व्यय करवाएगा ही, यदि उस व्यय को शुभ कर्मों की ओर मोड़ दोगे, तो मानसिक शांति मिलेगी वह हम अपने भविष्य को उज्जवल बनाएगें। अगर उस व्यय को शराब, वेश्या व जूए आदि में लगाएंगे तो शुभ फल कैसे पाएंगे। अब वास्तु शास्त्र के विषय में विचार करते हैं। अथर्ववेद का एक उपवेद है स्थापत्य वेद। यह उपवेद ही हमारे वास्तु शास्त्र का आधार है। परमयिता परमात्मा ने हमारे कल्याण के लिए हमें बहुत सी विद्याएं दी हैं। यदि आप वेदों पर और भगवान पर विश्वास करते हैं तो कोई कारण नहीं कि वास्तु पर विश्वास करें। जिस प्रकार हमारा शरीर पंचमहाभूतों से मिलकर बना है, उसी प्रकार किसी भी भवन के निमाण में पंच महाभूतों का पर्याप्त ध्यान रखा जाए तो भवन में रहने वाले सुख से रहेंगे। ये पंचमहाभूत हैं- पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश। जब पंचमहाभूतों से शरीर बन जाता है तो मन, बुद्धि और अहंकार के सहित आत्मा का उसमें प्रवेश होता है। पंचम महाभूतों के लिए पांच ग्रहों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। पृथ्वी के लिए मंगल, जल के लिए शुक्र, अग्नि के लिए सूर्य, वायु के लिए शनि और आकाश के लिए बृहस्पति को माना गया है। मन के लिए चंद्रमा, बुद्धि के लिए बुध और अंहकार के लिए राहू को माना गया है। केतु मोक्ष का कारक है। इसी प्रकार इन नौ ग्रहों का हमारे वास्तु से भी अटूट संबंध हैं। पूर्व दिशा का स्वामी ग्रह सूर्य, आग्नेय का शुक्र, दक्षिण का मंगल, नैत्त्य का राहू-केतू, पश्चिम का शनि, वायव्य का चंद्रमा, उत्तर का बुध और ईशान का बृहस्पति स्वामी है। किसी दिशा विशेष में दोष होने पर उस दिशा से संबंधित ग्रह पीड़ित होता है और अपने अशुभ फल देता है। किसी दिशा के पीड़ित होने या किसी ग्रह के पीड़ित होने पर व्यक्ति को एक समान ही कष्ट मिलते हैं। मानलीजिए किसी व्यक्ति कुंडली में सूर्य पीड़ित है तो उस व्यक्ति को सरकार से परेशानी, सरकारी नौकरी में परेशानी, नाम व प्रतिष्ठा पर आंच, पिता से संबंध ठीक न होना, सिरदर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, चर्म रोग, अस्थि रोग व मस्तिष्क की दुर्बलता आदि हो सकती है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के घर में पूर्व दिशा में दोष होने पर, वहां शौचालय होने पर, कूड़ा करकट व कबाड़ इकट्ठा होने पर सूर्य देवता पीड़ित होते हैं और उस व्यक्ति को वे सभ्ीा कष्ट हो सकते हैं जो कुंडली में सूर्य पीड़ित होने पर होते हैं। सूर्य से संबंधित उपायन करने पर पूर्व दिशा के वास्तु दोष से होने वाले कष्टों में कमी आती है। दूसरी तरफ अगर पूर्व दिशा के वास्तु दोषों के वास्तु उपायों से ठीक कर दिया जाए, तब भी सूर्य से संबंधित कष्टों में कमी आती है। इसी प्रकार आप सभी दिशाओं से संबंधित ग्रहों की पूजा पाठा मंत्र, जप, यंत्र स्थापन आप वास्तु उपायों द्वारा सभी इन ग्रहों को पीड़ित होने से बचा सकते हैं और उनसे होने वाले कष्टों से छुटकारा पा सकते हैं। नवग्रहों के उपाय: 1.सुखी समाज का आधार: यदि कोई व्यक्ति अपने नवग्रहों द्वारा पीड़ित है तो उसे सबसे पहले अपने सामाजिक परिवेश को सुधारना चाहिए। आज हर व्यक्ति सुखी की चाह में वह कहां-कहां नहीं भटकता। धन, विचाग्रा, शराब, योगा इत्यादि। इन सबके पीछे भागते-भागते वह अपने समजा से दूर होता जा रहा है। सुखी समाज सुखी परिवारों से बनता है और सुखी परिवार, सुखी व्यक्ति से। आज व्यक्ति के पास अपने परिवार के लिए ही समय नहीं है। भाई-बहन, माता-पिता, गुरु, स्त्री, नाना, दादा आदि के साथ संबंधों की गरिमा समाप्त होती जा रही है। सूर्य से पीड़ित व्यक्ति को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए, उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। चंद्र से पीड़ित व्यक्ति माता की सेवा करे व उनका आशीर्वाद लें। भाई की सेवा करने से मंगल शुभफल देता है। बहन, बेटी, बुआ व मौसी की सेवा करने से बुधदेव प्रसन्न होते हैं। स्त्री का सम्मान करने से शुक्र शुभ फलदायी होगा। नौकरों को खुश रखने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। दादा की सेवा करने से राहू व नाना की सेवा करने से केतु शुभ फलदायी होगा। समाज के इन व्यक्तियों से संबंध सुधारकर आप स्वयं तो सुखी होंगे ही, आपका परिवार और समाज भी सुखी हो जाएगा। सुखी समाज ही हमारे सुख का आधार है। 2.दान द्वारा उपाय: दान का मतलब है- अपनी इच्छा से किसी वस्तु को किसी दूसरे को अर्पित करना। दान यदि सुपात्र दिया जाए तो अति उत्तम है। दान को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- सात्विक दान- बिना किसी फल की इच्छा से किसी कोई वस्तु दान या उपहार देना। राजसिक दान- नवग्रहों की शांति के लिए किसी को कोई वस्तु दानन या उपहार देना। तामसिक दान- किसी का अहित करने के लिए उसे तामसी वस्तुओं का दान देना। यथा- शराब, सिगरेट, मीट, चरस व गांजा इत्यादि। दान देने के लिए कुछ उत्तम वस्तुएं इस प्रकार हैं- गाय दान: गाय के शरीर में सभी देवी देवता व चैदह भुवन निवास करते हैं इसलिए गो दान करने से इस लोक और परलोक में भी कल्याण होता है। शुक्र संबंधी दोषों को दूर करने के लिए गो दान उत्तम उपाय हैं। भूमि दान: भूमि के दान को सर्वोत्तम दान माना गया है। मंगल संबंधी दोषों की शांति के लिए भूमिदान का उपाय बताया जाता है। दशांश का दान: अपनी कमाई का दसवां हिस्सा किसी सुपात्र को दान देना या शुभ कर्मों में लगाना आत्म शुद्धि व धन शुद्धि के लिए बहुत ही अच्छा उपाय है। नवग्रहों की शांति के लिए दान: किसी पीड़ित गह की शांति के लिए उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान शुभ फलदायी होता है। इसके अतिरिक्त अन्न व भोजनदान, जल का दान, तुला दान, शय्या दान, स्वर्ण दान, पादुका दान, धार्मिक पुस्ताकं का दान भी शुभ फलदायी कहा गया है। 3. स्नान द्वारा उपाय: शास्त्रों में कहा गया है कि पवित्र गंगा नदी में स्नान करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। विशेषकर पूर्णिमा, अमावस, संक्रांति, शिवरात्रि, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण आदि पर्वों पर स्नान, दान, जप, अनुष्ठान आदि करने से विशेष पुण्य प्राप्त होते हैं। अर्धुर्कुभ व कुंभ आदि महापर्व पर लाखों की संख्या में लोग हरिद्वार, काशी, उज्जैन आदि तीर्थों पर सामिहिक स्नान व दान आदि करते हैं। सोमवी अमावस, शनिवारी अमावस आदि पर भी स्नान दान का विशेष महत्व है। 4.व्रत का महत्व: किसी भी देवी देवता की कृपा पाने के लिए उस देवी देवता के वार या त्यौहार विशेष पर नियम संयम पूर्वक उपवास करना व्रत कहलाती है। सप्ताह के दिनों को सात ग्रहों की शांति के लिए व्रत रखे जाते हैं। संक्रांति व पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की प्रसन्नता के लिए व्रत किया जाता है। रामनवमी, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि आदि पर्वों पर करोड़ों लोग व्रत रखते हैं। शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की एकादशियों को विष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए फलाहारी या निराहारी व्रत रखने का विधान है। करवाचैथ को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। अहोई अष्टमी को महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। चैत्र व आश्विन शुक्ल पक्ष में मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए नवरात्रों के फलाहारी व्रत रखे जाते है। 5.तीर्थ यात्रा का महत्व: हिंदू धर्म में तीर्थों का बड़ा महत्व है। नदी तटों पर बने स्नान घाट हो या देवी या देवताओं के सिद्ध तीर्थ स्थल होें सभी की बड़ी महत्ता व मान्यता है। शिव ज्योर्तिलिंगों के दर्शन हों, मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के सिद्ध स्थान हों, हनुमान जी के सिद्ध तीर्थ हों या सप्तपुरियां हों सभी की महिमा अपरंपार है। चातुर्मास में सप्तपुरियों का दर्शन मोक्ष प्रदान करने वाला है। ये सप्तपुरियां हैं- हरिक्षर, मथुरा, द्वारिका, अयोध्या, कांचीपुरम, वाराणसी व उज्जैन। इसके अतिरिक्त चार धाम तीर्थ यात्रा का भी बहुत महत्व है- पूर्व में जगन्नाथपुरी, पश्चिम में द्वारकापुरी, उत्तर में बदरीधाम व दक्षिण में रामेश्वरम धाम। 6.यज्ञ का महत्व: यज्ञ का अर्थ सिर्फ मंत्रों द्वारा हवन करना ही नहीं है। यह एक विस्तृत संदर्भ में प्रयोग होता है। वेदों में पांच प्रकार के यज्ञ कहे गये हैं। इन यज्ञों को करने से हम देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण से मुक्त होते हैं। ये पांच यज्ञ इस प्रकार हैं- ब्रह्म यज्ञ: निर्गुण या सगुण ब्रह्म की उपासना कर हम ईश्वर को याद करते हैं। ब्रह्म मुहूर्त व संध्या समय में ईश्वर की आराधना, वेद पाठ, स्वाध्याय व आरती इसी श्रेणी में आते हैं। देव यज्ञ: देव ऋण से मुक्ति दिलाने वाले कर्म यथा देवताओं की पूजा, सत्संग व अग्निहोत्र कर्म इसी श्रेणी में आते हैं। पितृ यज्ञ: सृष्टि की वृद्धि करने के निर्मित संतान की उत्पत्ति करके हम अपने पितृ ऋण से उऋण होते हैं। अपने दिवंगत पितरों की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण व दान आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं। वैश्व देव यज्ञ: जिस अग्नि से हमने भोजन बनाया है उस भोजन का कुछ अंश अग्नि को अर्पित करना वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है। गाय, कुत्ते व कौवे को भोजन का अंश देना भी इसी श्रेणी में आता है। अतिथि यज्ञ: अतिथि को देवता तुल्य समझने वाले भारतीय समाज में अतिथि को सर्वोपरि माना गया है। याचिका को दान देना, धर्म की रक्षा के लिए धर्म स्थल की पूजा, सेवा व दान देना, साधु सन्यासियों की सेवा व सहायता करना इसी श्रेणी के यज्ञ कहलाते हैं। सत्कर्मों का महत्व: प्रभु कृष्ण ने गील के सोहलवें अध्याय के पहले से तीसरे श्लोक में कहा गया है कि देव तुल्य पुरुषों में ये गुण होते हैं। निर्भयता, आत्म शुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान शनि का अनुशीलन, दान, आत्म संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोध विहिनता, त्याग, शांति दूसरों के दोष न देखना, समस्त जीवों कर करुणा, लोभविहिनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईष्र्या तथा मान की अभिलाषा से मुक्ति। हमें अपने अपने अंदर इन गुणों को विकसित करते हुए शुद्ध भक्त बनने की कोशिश करनी चाहिए। जो निश्चय पूर्वक मन और बुद्धि को परमात्मा में स्थित करके भक्ति में लगाए रहता है, हर्ष शोक आदि द्वंद्वों से रहित है, प्रभु से कोई इच्छा नहीं करता, मा-अपमान, सर्दी-गर्मी, सुख-दुख, यश-अपयश में सम रहता है, ऐसे भक्त प्रभु को अत्यधिक प्रीय हैं। यज्ञ, दान, तप, तीर्थ व व्रत आदि जो भी सत्कर्म किए जाते हैं, कर्म योगी को वह केवल संसार के हित के लिए ही करने चाहिए। शुद्ध भक्ति निष्काम होती है, वही परम कल्याणकारी है। जो परमज्ञानी है और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है, वह सर्वश्रेष्ठ है। प्रभु श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि शुद्ध भक्त मुझे अत्यंत प्रिय है। जिसकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित हे, वे देवताओं की शरण जाते हैं और अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा के विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं। देवता विशेष की पूजा द्वारा अपनी इच्छा की पूर्तिे करते हैं। देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं किंतु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं। आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए हमें अपना स्वभाव सतोगुणी बनाना और सतोगुणी स्वभाव विकसित करने के लिए हमें कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। सबसे पहले हमें सभी प्रकार के नशीले पदार्थों का त्याग करना चाहिए जैसे- सिगरेट, शराब, भांग, गांजा इत्यादि। दूसरे हमें शाकाहारी भोजन करना चाहिए। तीसरे पराई स्त्री/पुरुष से संपर्क नहीं बनाएं। चैथे किसी प्रकार का जुआ, सट्टा आदि नहीं खेलना चाहिए। इस प्रकार से जीती गई राशि गलत कार्यों में ही खर्च होगी। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन कुछ समय भगवद स्मरण में लगाना चाहिए। भगवद स्मरण करने के लिए आप प्रतिदिन गीता या भागवत् के कुछ अंश पढ़ सकते हैं। दूसरों से भगवत ज्ञान की चर्चा कर सकते हैं। श्री विग्रह की पूजा कर सकते हैं। भगवान को प्रेम सहित फल-फूल व जल अर्पिण कर सकते हैं। प्रतिदिन महामंत्र का जप करें। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह आत्मा शुद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ मंत्र है। इन विधि विधानों का पालन करते हुए आप स्वयं महसूस करेंगे कि आप आध्यात्मिक उन्नति कर रहे हैं और ग्रह जनित कष्टों से छुटकारा पाते जा रहे है। अपने कष्टों से छुटकारा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना और भगवान की भक्ति से अच्छा कोई उपाय नहीं है। नव ग्रहों से मिलने वालु सुख इस प्रकार हैं- सूर्य राज्य लक्ष्मी नाम प्रतिष्ठा, सरकार से लाभ चंद्र आरोग्य लक्ष्मी स्वास्थ्य मंगल उऋण लक्ष्मी ऋणों से मुक्ति बुध सुज्ञान लक्ष्मी अच्छा ज्ञान गुरु सुपुत्र लक्ष्मी आज्ञाकारी पुत्र शुक्र सुभार्या लक्ष्मी आज्ञाकारी पत्नी शनि श्रेष्ठ लक्ष्मी पापरहित कमाई, मेहनता का फल राहु सुमित्र लक्ष्मी अच्छा मित्र केतु सुकीर्ति लक्ष्मी यश व सम्मान इसी प्रकार कुंडली के बारह के बारह भाव व्यक्ति को कुछ न कुछ देना चाहते हैं। प्रत्येक भाव से मिलने वाले सुख इस प्रकार हैं- भाव फल 1 निरोगी काया 2 धन व माया, अच्छा कुटुंब 3 मित्र व छोटे भाई 4 सुंदर घर 5 आज्ञाकारी पुत्र 6 आज्ञाकारी नौकर (कोई रोग व शत्रु) 7 कुलवंती वार (अच्छे कुल से पत्नी) 8 लंबी आयु व पत्नी का कुटुंब 9 पूजा पाठ व धर्म का पालन 10 कर्मशील रहो 11 पाप रहित कमाई 12 शभु कार्यों पर व्यय (कमाई का दसवां हिस्सा दान करों)

ज्योतिष द्वारा शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का निवारण.........

कुंडली में ग्रहों की स्थिति और सितारों की नजर बताती है। आपके करियर का राज:- हर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कठिन परिश्रम कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है। अपने भाग्य और कड़ी मेहनत के बल पर ही कोई, विद्यार्थी परीक्षा में श्रेष्ठ अंकों को प्राप्त कर सकता है। किसी भी तरह की परीक्षा में इंटरव्यू में जाने के पूर्व बड़ों का अशीर्वाद लेना चाहिए। मीठे दही में तुलसी का पत्ता मिलाकर सेवन करना चाहिए इस तरह के उपायों से सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इन्हीं में कुछ मंत्रों यंत्रों एवं सरल टोटकों के प्रभाव से अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है। मंत्र: ।। ¬ नमो भगवती सरस्वती बाग्वादिनी ब्रह्माणी।। ।। ब्रह्मरुपिणी बुद्धिवर्द्धिनी मम विद्या देहि-देहि स्वाहा।। अपनी जिह्ना को तालु में लगाकर माॅ सरस्वती के बीज मंत्रों का उच्चारण करने से माॅ सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। किसी भी सफलता की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का 11 बार या 21 बार इस मंत्र का जप करने से सफलता की प्राप्ति होती है और इस मंत्र का नित्य सुबह जप करें। ।। जेहि पर कृपा करहि जनु जानी।। ।। कबि उर अजिर नचकहि बानी।। गुरुवार के दिन केसर की स्याही से भोजपत्र पर इस यंत्र का निर्माण करें। इस यंत्र में सब तरह से योग करने पर जोड़ 20 आएगा। इस ताबीज को गले धारण करें। इससे परीक्षा में सफलता की प्राप्ति होगी। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह अध्ययन करते समय उनका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। जिन विद्यार्थियों को परीक्षा देेने से पहले उत्तर भूलने की आदत हो। उन्हें परीक्षा के समय जाने से पहले अपने पास कपूर व फिटकरी पास रखकर जाना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा को हटाते हैं। परीक्षा के समय जब कठिन विषय की परीक्षा हो तो पास में गुरुवार के दिन मोर पंख रखें। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्Ÿा में उठकर अपनी पढ़ाई का अध्ययन करना चाहिए, जिससे लंबे समय तक विष का विद्यार्थी के ज़हन में ताजा बना रहता है। परीक्षा में जाने से पहले मीठे दही का सेवन करना चाहिए। दिन शुभ व्यतीत होता है। भगवान गणेश जी को हर बुधवार के दिन दूर्बा चढ़ाने से बच्चों की बुद्धि कुशाग्र होती है। इसलिए गणेश जी का सदैव स्मरण करें। जब आपका सूर्य स्वर (दायां स्वर) नासिका का चल रहा है। तब अपने कठिन विषयों का अध्ययन करें। तो वह शीघ्र याद हो जाएगा। इसी प्रकार कक्ष में प्रवेश करते समय भी चल रहे स्वर का ध्यान रखकर प्रवेश करें। ‘परीक्षा में सफलता प्राप्त करने हेतु’ परीक्षा भवन में प्रवेश करते समय भगवान राम का ध्यान करें और निम्नलिखित मंत्र का ग्यारह बार जप करें। ।। प्रबसि नगर कीजे सब काजा।। ।। हृदय राखि कौशलपुर राजा।। गुरु व अंत में चैपाई के संपुट अवश्य लगाएं। यह बहुत प्रभावी टोटके हैं। ‘शिक्षा दीक्षा में रुकावट दूर करने के लिए’’ क्रिस्टल के बने कछुए का उपयोग प्रमुख होता है। क्रिस्टल के कछुए को विद्यार्थी के मेज पर रखना चाहिए। एकाग्रता बनी रहती है। साथ ही सफेद चंदन की बनी मूर्ति टेबल पर रखनी चाहिए रुकावटें धीरे-धीरे दूर होने लगती है। परीक्षा में सफलता के लिए परीक्षा में जाते समय विद्यार्थी को केसर का तिलक लगाएं और थोड़ा सा उसकी जीभ पर भी रखें उसे सारा सबक याद रहेगा और सफलता मिलेगी। चांदी की दो अलग-अलग कटोरी में दही पेड़ा रखकर माॅ सरस्वती के चित्र के आगे ढककर रखें और बच्चे की सफलता के लिए कामना करें। मां सरस्वती का स्मरण कर बच्चे को परीक्षा के लिए निकलने से तीन घंटा पूर्व एक कटोरी खिलाना है और परीक्षा के लिए जाते भक्त दूसरी कटोरी का प्रसाद खिलएं सफलता मिलेगी। ‘विद्या में आने वाले विघ्न को दूर करेने हेतु’ मंदिर में सफेद काले कंबल तथा धार्मिक पुस्तकों का दान करें। 40 दिन तक प्रतिदिन एक केला गणेश जी के मंदिर में उनके आगे रखें। वारों के अनुसार परीक्षा देने के समय किए जाने वाले उपायः सोमवार के दिन पेपर देने जा रहे हों तो दर्पण में अपना प्रतिबिंव देखकर जाएं। शिवलिंग पर पान का पत्ता चढ़ाकर जाएं। मंगलवार: हनुमानजी को गुड़, चने का भोज लगाकर प्रसाद खाकर जाएं। बुधवार: गणेजजी को दूर्वा चढ़ाकर, धनिया चबाकर जाएं। बृहस्पतिवार: केसर का तिलक लगाकर परीक्षा देने जाएं और अपने साथ पीली सरसों रखें। शुक्रवार: श्वेत वस्त्र धारण करके, मीठे दूध में चावल देवी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करें। शनिवार: अपनी जेब में राई के दाने रखकर परीक्षा देने जाएं। रविवार: दही व गुड़ अपने मुख में रखकर परीक्षा देने जाएं। इनमें किसी एक मंत्र का प्रयोग अवश्य करें।

प्राचीन भारतीय हिमालयों के जड़ी-बूटियां.......

प्राचीन भारतीय ऋषि-महर्षियों को जड़ी-बूटियों का पूर्ण ज्ञान था। यह दुर्लभ विद्या समुद्र मंथन के समय धन्वन्तरी के साथ पैदा हुई। ये वनस्पतियां रोग मुक्ति तो करती हैं ही, इनका विधि-विधान से प्रयोग करें तो तांत्रिक लाभ भी चमत्कारी ढंग से लिया जा सकता है जिससे मानव जीवन में समस्याओं से तुरंत मुक्ति मिलती है। उत्तराखंड सदियों से जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है। रामचरितमानस में लक्ष्मण मूर्छा को दूर करने के लिए रामभक्त हनुमान द्वारा संजीवनी द्रोण पर्वत से ले जायी गई मानी जाती है। उत्तरांचल में अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी पाई जाती रही हैं जो पारंपरिक काल से आयुर्वेदिक चिकित्सा का आधार रही है जिनकी ख्याति एशिया और यूरोप के अनेक देशों में फैल रही है। च्यवन, चरक, सुश्रुत, कश्यप और जीव आदि अनेक ऋषि-मुनियों व वैद्यों ने जिस आयुर्वेदिक पद्धति को जड़ी-बूटियों के मिश्रण से जीवनदायी बनाया उसका आधार उत्तराखंड ही रहा है। कहा जाता है कि हिमालय क्षेत्र में लगभग अलौकिक चमत्कारी 800 जड़ी-बूटियां पाई जाती रही हैं, जिनमें से आज अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां लुप्तप्राय हो चुकी हैं। वनस्पति जगत में अनेकानेक जड़ी-बूटियां भरी पड़ी हैं। हमारे पूर्वजों ने उनके दिव्य ज्ञान के आधार पर उनमें से कई जड़ी-बूटियों को खोजा तथा उनका विस्तृत उल्लेख भी हमारे आयुर्वेद शास्त्रों व अन्य ग्रंथों के माध्यम से उल्लेखित किया है। उन्हीं प्राचीन दुर्लभ चमत्कारी वनस्पतियों में से कुछ संतानदायी जड़ी-बूटियों का वर्णन इस लेख में किया जा रहा है: 1. लक्ष्मणा कथिता पुत्रदावश्यं लक्ष्मणा मुनिपुंगवै। लक्ष्मणार्क तु या सेवेद्वन्ध्यापि लभतेसुतम्।। लक्ष्मणा मधुरा शीता स्त्रीवन्ध्यात्व विनाशिनी। रसायनकरी बल्या त्रिदोषशमनी परा।। अर्थात-हमारे ऋषि-महर्षि तथा आयुर्वेदाचार्यों ने दिव्य चमत्कारी जड़ी-बूटी लक्ष्मणा को पुत्र देने वाली कहा है। लक्ष्मणा के अर्क को अगर बांझ भी सेवन करती है तो पुत्र होता है। लक्ष्मणा कंद मधुर, शीतल, स्त्री के बांझपन को नाश करके रसायन व बलकारक है। लक्ष्मणा बेल पत्र के जैसी होती है। इसके पत्तों पर खून की सनी लाल-लाल छोटी-छोटी बूंदें होती हैं। लक्ष्मणा और पुत्र जननी ये दो लक्ष्मणा के संस्कृत नाम हैं। इसके अलावा भी अपने-अपने राज्य व स्थान विशेष की क्षेत्रीय भाषाओं में नागपत्री, पुत्रदा, पुत्रकन्दा, नागिनी, और नागपुत्री के नाम से जाना जाता है। एक आयुर्वेद शास्त्र के प्राचीन ग्रंथ में लक्ष्मणा के लिए उल्लेख प्राप्त होता है और यह भी उल्लेखित है कि लक्ष्मणा बहुत कम मिलती है तथा इस दिव्य चमत्कारी वनस्पति लक्ष्मणा की उपलब्धि उस ग्रंथ में हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों व ऊंचे पहाड़ांे में बताई गई है। शरद ऋतु में लक्ष्मणा में फल-फूल आते हैं। कार्तिक मास में शनिवार के दिन सायं काल के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर खैर की लकड़ी की चार खिलें उसके चारों ओर गाड़कर धूप-दीप एवं नैवेद्य से पूजा करके निमंत्रण दे आयें फिर पुष्य, हस्त, या मूल नक्षत्र में लक्ष्मणा को उखाड़ लायंे और पीछे न देखें। पुत्र देने वाली इस लक्ष्मणा की जड़ को दूध में पीसकर उस द्रव्य पदार्थ को पी लें। जिसके पुत्र न होता हो तो पुत्र होगा और बांझपन से मुक्ति मिलेगी तथा यदि पुत्र होकर मर जाता है तो नहीं मरेगा और पुत्रियां अधिक होती हों तो इसके प्रभाव से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। 2.शिवलिंगी ऋतु स्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है इसमें कोई शंका या संशय नहीं है। बांझपन के श्राप से जूझ रही स्त्रियों की गोद में बालक खेल रहे हैं, उनका घर हरा-भरा हो गया है। आयुर्वेद के ‘‘वैद्यरत्न’’ में लिखा है- ‘‘शिवलिंगी फलमेकमृत्वन्ते यावला गिलति। बन्ध्यापि पुत्ररत्नं लभते सानात्र किचिंत नसन्देहः।। अर्थात - आयुर्वेद के ग्रंथ वैद्यरत्न में संस्कृत शब्दावली के अंतर्गत शिवलिंगी के कई नामोल्लेख किये गये है- शिवलिंगी, लिगिनी, बहुपुत्री, ईश्वरी, शिवमल्लिका, चित्रकला, और लिंगसम्भूता आदि कई नामों से बहुचर्चित है। बंगाली भाषा में इसे शिवलिंगीनी, मरहटी तथा पश्चिमी लैटिन भाषा में इसे ब्रायोनिया लेसिनियोसा के नाम से जाना जाता है। यह स्वाद में चरपरी गरम और बदबूदार होती है। यह शिवलिंगी सर्वसिद्धि दात्री, तांत्रिक वशीकरण में और पारे को बांधने वाली हैं, इसकी बेल चलती है। इसके फल नीचे गोल और छोटे बेर के समान होते हैं। फलों के ऊपर सफेद चित्र होते हैं इस कारण से इसका एक नाम चित्रकला भी है। फलों में से बीज निकलते हैं। उनकी आकृति भी शिवलिंग के समान होती है इसलिए शिवलिंगी कही गई है और इसके पत्तों का आकार अरण्ड के समान होता है। अतः पुष्य या अन्य शुभ नक्षत्र योग में ऋतुस्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है तथा यदि संतान होकर मर जाता है तो शिवलिंगी का फल उनके लिए कवच है। 3. नागकेशर नागकेशर और जीरा इन दोनों को देशी गाय के घी में अगर कोई स्त्री ऋतुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक पीती है तो गर्भ धारण हो जाता है। भैषज्रत्नावली आयुर्वेद ग्रंथ में कहा गया है - ‘‘नागकेशर संयुक्तमूलेन घृतंपक्वं पयोन्वितम्। अर्थात- नागकेशर और जीरा को ऋ तुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक घी के साथ पीती रहें और सहवास करें तो निश्चित तौर पर बांझ स्त्री भी पुत्रवती होती है। इसमें कोई संशय नहीं है।

कुंडली में अष्टम चंद्र....

अष्टम चंद्र यानि जन्म कुंडली में आठवें भाव में स्थित चंद्र। आठवां भाव यानि छिद्र भाव, मृत्यु स्थान, क्लेश‘विघ्नादि का भाव। अतः आठवें भाव में स्थित चंद्र को लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथों में अशुभ माना गया है और वह भी जीवन के लिए अशुभ। जैसे कि फलदीपिका के अध्याय आठ के श्लोक पांच में लिखा है कि अष्टम भाव में चंद्र हो तो बालक अल्पायु व रोगी होता है। एक अन्य ग्रंथ बृहदजातक में भी वर्णित है कि चंद्र छठा या आठवां हो व पापग्रह उसे देखें तो शीघ्र मृत्यु होगी। जातक तत्वम के अध्याय आठ के श्लोक 97 में भी आठवें चंद्र को मृत्यु से जोड़ा गया है। ज्योतिष के ग्रंथ मानसागरी के द्वितीय अध्याय के श्लोक आठ में वर्णित है कि यदि चंद्र अष्टम भाव में पाप ग्रह के साथ हो तो शीघ्र मरण कारक है। इसी कारण से अधिकतर ज्योतिषी अष्टम चंद्र को अशुभ कहते हैं और जातक को उसकी आयु के बारे में भयभीत कर पूजादि करवा कर धन लाभ भी लेते हैं, ज्योतिष के प्रकांड ज्ञानी भी जन्मपत्री में अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री को लपेटना शुरू कर देते हैं, वे अष्टम चंद्र को ऐसा सर्प मानते हैं जिसके विष को जन्म कुंडली में स्थित शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध रूपी अमृत भी निष्प्रभावी नहीं कर सकते। वे अष्टम चंद्र को भय का प्रयाय व साक्षात मृत्यु का देवता मानते हैं, मैंने स्वयं अनेक पंडितों को अष्टम चंद्र की भयानकता बताते देखा है। परंतु यह सर्वथा गलत है कि अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री के अन्य शुभ योगों, लग्न व लग्नेश की स्थिति, अष्टम व अष्टमेश की स्थिति आदि को भूल जाएं और अष्टम चंद्र को देखते ही अशुभ बताना शुरू कर दें, क्या इस अष्टम चंद्र की भयानकता हमें इतना सम्मोहित कर देती है कि इसे देखते ही मृत्यु या प्रबल अरिष्ट के रूप में अपना निर्णय सुनाने लगते हैं, बिना यह विचार किए कि सुनने वाले जातक को ऐसे मुर्खतापूर्ण निर्णय से कितना आघात पहुंचता है। यह अपने आप में नकारात्मक ज्योतिष है और हमें इससे बचना चाहिए। केवल मृत्यु या भयानकता ही अष्टम चंद्र का प्रतीक नहीं है वरन् आशा व जीवन का प्रतीक भी अष्टम चंद्र ही है। अतः अष्टम चंद्र का केवल नकारात्मक पक्ष ही नहीं, बल्कि इसके सकारात्मक पक्ष पर भी गहन विचार करने के बाद ही ज्योतिषी को अपना निर्णय सुनाना चाहिए। आइए अष्टम चंद्र के बारे में ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों में लिखित निम्न श्लोकों पर एक नजर डालें जो अष्टम चंद्र के सकारात्मक पक्ष को उजागर करते हैं अर्थात भयभीत करने से बचाते हैं: 1. जातक परिजात में लिखा है कि जिस जातक का कृष्ण पक्ष में दिन का जन्म हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का जन्म हो और उसकी जन्म कुंडली में छठा या आठवां चंद्र हो, शुभ व पाप दोनों प्रकार के ग्रहों से दृष्ट हो तो भी मरण नहीं होता। ऐसा चंद्र बालक की पिता की तरह रक्षा करता है। 2. मानसागरी में कहा गया है कि लग्न से अष्टम भावगत चंद्र यदि गुरु, बुध या शुक्र के द्रेष्काण में हे तो वही चंद्र मृत्यु पाते हुए की भी निष्कपट रक्षा करता है। अब इन श्लोकों पर तो ज्योतिषीगण ध्यान देने की आवश्यकता समझते नहीं या ध्यान देना ही नहीं चाहते जो अष्टम चंद्र का सकारात्मक पक्ष उजागर करते हैं बल्कि नकारात्मक पक्ष को उजागर कर स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः हमें अष्टम चंद्र से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह जीवन का प्रयाय भी बन जाता है यदि निम्न सिद्धांत इस पर लागू हों तो: 1.जातक का जन्म कृष्ण पक्ष में दिन का हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का हो। 2.जन्म कुंडली में चंद्र शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध की राशि में हो या इन्हीं ग्रहों से दृष्ट हो। 3.द्रेष्काण कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो। 4. नवांश कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो।

लग्नानुसार कालसर्प दोष के फल



लग्नानुसार कालसर्प योग का फलादेश पं. एम. सी. भट्ट कालसर्प योग प्रत्येक लग्न में अलग-अलग प्रकार का फल देता है तथा काल सर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। इन स्थितियों में विभिन्न व्यक्तियों को क्या विशिष्ट उपलब्धियां होती हैं अथवा व्यक्ति किन विषम परिस्थितियों में फंसकर रह जाता है, इसका विवचेन लग्नानुसार किया गया है। विभिन्न लग्नों में काल सर्प योग होने पर किस प्रकार के फल मिलते हैं, उसका विवरण निम्न प्रकार से है :- मेष-वृश्चिक लग्न : मेष-वृश्चिक दोनों लग्नों का लग्नेश मंगल है। इन लग्नों की कुंडलियों में कालसर्प योग बनता हो तो जातक को न तो नौकरी में संतुष्टि मिलती है और न व्यापार में सफलता। नौकरी और व्यापार में भीषण चढ़ाव-उतार देखने पड़ते हैं। उत्तरोत्तर संघर्षों के कारण इनका आत्मविश्वास टूट जाता है। जीवन भर की दाल-रोटी की कमाई का ठोस मार्ग नहीं मिलता। असंतोष और बेचैनी बढ़ाने वाले कई कारण स्वयं ही पैदा होते रहते हैं। कुल मिलाकर जीवन अशांत एवं निराशापूर्ण रहता है। वृषभ- तुला लग्न : वृषभ और तुला लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक अपने रोजगार के विषय में प्रायः चिंतित रहता है। उसे डर रहता है कि जो रोजगार का साधन उसके हाथ में है, वह न जाने कब हाथ से निकल जायेगा। इस भयग्रस्त विचार के कारण उसकी जीवन नौका लड़खड़ाती हुई कब डूब जायेगी, यही विचार उसे भयभीत बनाता है। जातक को विश्वास नहीं होता कि वह अपनी मंजिल तक पहुंच चुका है और अब उसे केवल दो-चार कदम ही और आगे बढ़ना है। आत्मविश्वास कम होता है और वह अशांत एवं बेचैन होकर घबराकर उसी स्थान पर लौट आता है, जहां से वह चला था। इसका परिणाम यह होता है कि जहां पहले उन्होंने अपने पैर जमाये थे वह जमीन ही पैरों के नीचे से खिसक जाती है और वह जमीन दलदल में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह की आत्मघात करने वाली घटनाओं का वह शिकार बनता है। वृषभ और तुला लग्न का लग्नेश शुक्र है। मिथुन - कन्या लग्न : मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक नौकरी में उच्च पद पाने के स्वप्न जरूर देखते हैं, पर उन्हें कामयाबी हासिल नहीं होती। स्टील फर्नीचर का व्यापार या कोई अन्य कल-कारखाना लगायें तो उसमें बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गुजारे भर की आमदनी भी मुश्किल से हो पाती है। खरीद-बिक्री, कमीशन एजेंसी, दलाली का कार्य करें तो दस बार में कमाया मुनाफा एक ही बार के घाटे में साफ हो जाता है। कागज, कपड़ा, अनाज, किराना, जनरल मर्चेंट, गृहोपयोगी सामग्री, होटल-मोटल, रेस्टोरेंट आदि के व्यापार में ऐसे जातकों को सफल होते देखा गया है। लेकिन श्रेष्ठजनों को इनके बर्ताव से बार-बार दुख उठाना पड़ता है। और फलस्वरूप श्रेष्ठजनों के शाप से इनकी क्षति भी होती है। मिथुन और कन्या लग्न का लग्नेश बुध है। कर्क लग्न : कर्क लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक न सफलतापूर्वक नौकरी कर सकते हैं और न ही कोई व्यवसाय। डाक्टर, वकील, ज्योतिषी, ट्यूटर, कलाकार आदि स्वतंत्र कार्यों में विशेषज्ञ बनकर काफी धन कमाते हैं, फिर भी वे शरीर से अस्वस्थ एवं परिवार से असंतुष्ट रहते हैं। चतुराई, चालाकी और मौकापरस्ती से वे हमेशा अपना रंग-ढ़ंग बदलते हुए कार्य करते रहते हैं। चारों तरफ उन्हें प्रतिष्ठा मिलती है। इनके हाथ में धन तभी रह पायेगा जब वे थोड़ा-बहुत ही क्यों न हो, दान-पुण्य अवश्य करें। कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा है। सिंह लग्न : सिंह लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक अपनी आजीविका और परिवार के लिये सदैव चिंतित रहते हैं। अपने व्यवसाय में बार-बार तेजी का लाभ इन्हें मिलता है, लेकिन ऐसे भी प्रसंग आते हैं कि एक ही झटके की गहरी मंदी कमरतोड़ नुकसान पहुंचाती है। इनकी पूंजी धीरे-धीरे बढ़ती नजर आती है लेकिन एक ही झटके में वह साफ भी हो जाती है। ऐसे जातक नौकरी करना पसंद नहीं करते। परंतु परिस्थितिवश मजबूर होकर थोड़े समय के लिये ही क्यों न हो, पराधीनता स्वीकारनी ही पड़ती है। पारिवारिक एकता बनाये रखना इनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। वे दृढ़प्रतिज्ञ, कठोर और जिद्दी भी होते हैं। सिंह लग्न का लग्नेश सूर्य है। धनु-मीन लग्न : धनु एवं मीन लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक पराधीन कार्य में या नौकरी में सफल नहीं होते। बाहरी स्त्रियों के सहयोग से स्वतंत्र कार्यक्षेत्र में अपनी जड़ मजबूत बनाते हैं। परंतु घर की किसी स्त्री के षड्यंत्र का शिकार होकर असफल भी होते हैं। दलाली, कमीशन, एजेंसी या कन्सलटेंसी एवं राजनीति में ऐसे जातक यश एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। समाज में भी बहुचर्चित बने रहते हैं, परंतु अपने संकोचशील स्वभाव के कारण धन का अभाव बना रहता है। कमाया धन भी खोना पड़ता है। पारिवारिक जीवन बहुत ही संघर्षमय होता है। सीने में दुखदर्द एवं चेहरे पर मुस्कान लिये घूमते हैं। दूसरों का उपकार करने के लिये बेचैन रहते हैं। परोपकारी होते हैं, लेकिन परोपकार से अपयश ही मिलता है। धनु एवं मीन लग्न का लग्नेश गुरु है। मकर-कुंभ लग्न : मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है। अवसर मिलने पर देश से अधिक परदेश में कामयाबी हासिल करते हैं। पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। पैतृक संपत्ति का उचित लाभ इन्हें नहीं मिलता। स्वयं संपत्ति जुटाते हैं, परंतु उससे न स्वयं और नही अपने परिवार को संतुष्ट कर पाते हैं। खनिज, पेट्रोलियम, ऐसिड, कोयला, दवाइयों या केमिकल लाइन में नौकरी अथवा व्यापार करके अच्छी सफलता प्राप्त करते हैं पर जीवन में ऐसा झटका लगता है कि सारी कमाई डूब जाती है। शेयर, सट्टा, मटका-लाटरी में अच्छा धन प्राप्त होता है। मकर एवं कुंभ लग्न का स्वामी शनि है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं। मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है, परदेश में कामयाबी हासिल होती है परंतु पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। तथा पैतृक संपत्ति का उचित लाभ नहीं मिलता। कालसर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल : कालसर्प योग की सभी कुंडलियों में सदैव बुरे ही फल नहीं मिलते। अपवाद स्वरूप कुछ ग्रहयोगों के कारण अच्छे तथा मिश्रित फल भी जातक को प्राप्त होते हैं। इन ग्रह योगों को दृष्टिगत नहीं रखने से भी फलित गलत हो सकता है। 1. कालसर्प योग की कुंडली में एक कारक ग्रह उच्च का बलवान हो और दूसरा कोई भी ग्रह उच्च का हो तो ऐसे जातक हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा लेते हैं। असंभव लगने वाले कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न करा लेते हैं। ऐसे जातक धुन के पक्के और रंगीन मिजाज के धनी होते हैं। कालसर्प योग के साथ किसी भाव में सूर्य-चंद्र की युति हो तो जातक उन्नति के लिये अथक परिश्रम करते हैं, मुसीबतों का सामना करते हैं और अंततोगत्वा सफल जीवन बिताते हैं। किंतु उनका अधिकांश धन दुष्टों के कब्जे में जाकर अपव्यय होता है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं। 2. कालसर्प की कुंडली में केमद्रुम योग' तथा 'शकट योग' बनता हो तो ऐसे जातक बिना पूंजी के या कम पूंजीवाले काम करके अपनी जरूरतों को पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। परंतु धनवान बनने की कामना से किये हुए कामों में उन्हें सफलता नहीं मिलती। अक्सर कर्ज लेकर ही अपना काम चलाते हैं और लिये ऋण को बार-बार चुकता करते रहते हैं। यदि भाग्यवश इन्हें स्वतंत्र कारोबार में रूपया मिल भी गया तो वह इनके जीवनकाल ही में समाप्त हो जाता है। व्यापार, उद्योग में भारी रकम लगाई हो तो इसे इनकी तबाही का प्रारंभ समझना चाहिये। 3. कालसर्प योग की कुंडली में चंद्रमा से केंद्रस्थ गुरु और बुध से केंद्रस्थ शनि हो तो ऐसे जातक पर्याप्त मात्रा में ऐश्वर्य भोगते हैं। कामातुर और विलासी होते हैं। कम परिश्रम से अधिक रुपया ये कमा जरूर लेते हैं और बड़ी से बड़ी कामनापूर्ति भी कर लेते हैं। वृत्ति से धार्मिक भी होते हैं, फिर भी सदैव अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट रहते हैं। परिवार के व्यवहार से दुखी होने से सुख चैन की नींद भी नहीं सो पाते। अपने शत्रुओं को भी शरण देते हैं। ऐसे जातक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में तंत्र-मंत्र की साधना कर सकें तो इस दिशा में बड़ी सफलता उनके हाथ लगती है। इनकी आंखों में एक खास चमक होती है जिसकी वजह से वे किसी को भी सहज ही में आकर्षित कर लेते हैं। 4. कालसर्प योग की कुंडली में शनि-सूर्य युति, शनि-मंगल युति या राहु केतु के साथ शनि-मंगल सूर्य से एकाधिक योग बनता हो तो ऐसे जातक का जन्म ही संघर्ष में होता है, यानी पैदा होते ही संघर्षों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। विद्यार्जन, नौकरी, व्यवसाय, पत्नी, संतान आदि के लिये एक विशिष्ट सीमा तक परेशानियां रहती हैं। अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट होकर दूसरों के अहसानों तले दबे-दबे रहते हैं। कर्ज के सागर में डूबे रहते हैं। पुराना कर्ज चुकाने के लिये नया कर्ज लेने का सिलसिला बना ही रहता है। परिवार, मित्र एवं रिश्तेदारों से हमेशा छले जाते हैं। कर्ज लेकर भी किसी मित्र की मदद की तो वह मित्र भी धोखा दे जाता है। उसको दी रकम टुकड़े-टुकड़े में बटकर भी पूरी वसूल नहीं होती है। मन मुटाव होकर दोस्त दुश्मन में बदल जाता है। इनकी हर वस्तु पर दुष्टों की नजर होती है। जान-माल की क्षति के लिये कभी-कभी लोग तंत्र-मंत्र, टोना-टोका भी इनके ऊपर करते हैं। इन सबके बावजूद ये जातक शान से जीते हैं और शान से ही मरते है। काल सर्प योग से कोई बच नहीं सकता। प्रस्तुत जन्मपत्री में वासुकि नामक कालसर्प योग बना है। उसके अनुसार जातक का एक-एक क्षण संकटों और अभावों के बीच व्यतीत हुआ है। जिस-जिस को चाहा, उसने ही धोखा दिया। जिन-जिन लोगों से दूर रहने की कोशिश की, उन्हीं लोगों को बार-बार सामने देखना पड़ा। अभाव, कर्ज, अहसान, अशांति जैसे विकारों से बच नहीं सका।

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Wednesday, 22 June 2016

Karma

The horoscope is a microscopic epitome of multifaceted long life. Various aspects of life have been divided into twelve houses (Bhavas) of natal chart (Janmalagan) of horoscope. Nine planets -Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu and Ketu -take their position in respective houses in accordance with the time of birth. Position of planets in different houses (Bhavas) and their power (Bal) by virtue of their position in particular sign (Rashi) and aspect (Drishti) and conjuction (Yuti) with malefic/benefic planet form combination/promises (Yogas) like Rajyoga, Panch Mahapurush Yoga, Dhan Yoga, Budhaditya Yoga, Gaj Kesari Yoga, and so on. There are 108 Rajyogas and many more Yogas provided in scriptures. Such Rajyogas show promise of good health, wealth, achievements in different aspects of life and high status in society and politics, etc.
Now the question arises as to how and when the result of the Yogas will materialize? It depends on MahaDasha/Anter Dasha/ Pratyanter Dasha and transit (Gochar) of the planets involved in forming the Rajyoga. The Dashas (period) will occur and the planet involved will transit the house concerned to bring the results.
Dasha : A period of 120 years has been earmarked as life span in the form of Vimshottari Dasha. This 120 years’ Vimshottari Dasha again has been divided into Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu and Ketu -nine planets. During the long span of life from birth to death, these planets come by turn with specific number of years as their Maha Dasha, Antar Dasha for shorter span and Pratyanter Dasha as again shorter span.
Karmas (deeds) play very important role in whatsever we are receiving, or losing in life. Different times of birth form the different map of planets in the natal chart, hence different combinations. Some of them form very good Rajyoga for very healthy and wealthy life, while others bring Daridra (pauper) yog. It is only because of slight difference in time of birth which can very well be the result of past Karmas. With the difference of few minutes in time of birth, one will become the king and the other will be doomed. It is all past Karmas that govern the date of birth and accordingly the promises in the natal chart.
Karma is the panacea and the Karma is the root cause of all pains and problems too. It is a time tested fact that venom can be treated with the same venom. While nothing can undo the destiny, the good Karmas can relax the ill effect of past Karmas to some extent.
Through the mirror of natal chart and with the help of planets posited on constellations (Nakshatra) with some specific longitude, whatsever good, or bad lies in the destiny, could well be seen through. The small map of planetary positions reflects various aspects of life, like past Karmas, health and wealth, wife/husband relationship, relation with parents, with children, with co-borns with friends, gains & losses in business, status in society, success in. politics, education and profession, visit abroad, nature and speech, character and chastity, illness and even death. It all needs a thorough concentration and proper usage of the astrological means and supports.
Astrology has been very much in practice and accepted by the society since time immemorial. Many mystics and sages have left the plethora of scriptures on Astrology as legacy to the present generation. It becomes our moral responsibility to preserve it. We must learn and practise difference ways and means provided in the basic compilation ‘Brihat Parashar Hora Shastra’. All astrological tools, like natal chart, Navansh, Chalit, Dreshkan, Saptamansh Varga, Dasha, - Antar Dasha, transit, Shad Bal and Bhav Bal, Disha Bal, Ashtakvarga, exaltation & debilitation of planets, exchange of planets and aspect and conjuction etc. must be given due consideration before coming to a conclusion. We should strengthen the sanctity of our ancestral heritage of astrology.

Role of Saturn in prediction of horoscope

Saturn as karaka (significator) of the malefic 6th, 8th and 12th house in the horoscope is the most dreaded planet. It is assigned 19 years in Vimshottari Dasa and slowly transits through a house in 2½ years. Its transit through the 3rd, 6th and 11th house from Moon, i.e., nearly 7½ years out of 30 years that it takes to go round the zodiac is favourable. Thus Saturn has the longest influence, and its location and strength in a person’s horoscope indicates the pattern of events he will experience in life according to his prarabdha (result of past karma).
However, Saturn gives the best result when it becomes functional benefic for the horoscope. For example, for Tula (Libra) lagna Saturn gives the best result, and second best for Vrishabha (Taurus) lagna by virtue of becoming a Yogakaraka( Lord of Kendra and Trikona houses). It gives good result for Makar (Capricorn) and Kumbha ( Aquarius) lagna as lagna lord. When for these four lagnas Saturn is also well posited and aspected by benefics, it produces excellent results during its dasa-bhukti and transit.
Saturn gives mixed result for Mithuna ( Gemini), Kanya ( Virgo), Dhanu ( Sagittarius) and Meena (Pisces) lagnas, and proves unfavourable for the remaining lagnas. Like other malefic planets. Saturn gives good result when posited in an Upachaya ( 3, 6, 10 or 11) house. In addition, Saturn’s location in any Kendra, which is its own or exaltation sign, forms Sasa Yoga, one of the Panchmahapurusha Yogas that bestows name, fame, wealth and authority to the native during its dasa and bhukti. Lucky is the person for whom Saturn is favourable and strong in the horoscope.
Saturn has special 10th and 3rd full aspects, in addition to the normal 7th aspect. These aspects adversely affect the affairs of the house receiving it, and afflict the planets posited there, but these aspects are favourable when Saturn becomes a functional benefic in the horoscope. Among these aspects, the 10th aspect is the most powerful, then comes the 7th , and the 3rd aspect is the weakest. Saturn’s aspect on Venus spoils the conjugal life of the person.
Its aspect on Jupiter induces the native to self-abnegation in religious and spiritual pursuits and sometimes causes compromise of moral principles. Saturn’s aspect on the Sun makes the native toil hard in life and face separation from, or even death of father in some cases. Saturn’s aspect on Moon makes the native simple, calm and calculative and gives distress to mother. Saturn’s aspect on Mars makes the native aggressive and cruel, while their mutual aspect portends violent end. Saturn’s aspect on Mercury gives crooked and selfish mentality. Its aspect on Rahu makes the native shrewd and causes chronic ailments. The benefic aspect of powerful Jupiter and Venus on Saturn tones down its malefic effect.
Saturn owns two consecutive signs in the Zodiac, namely, Capricorn and Aquarius. Capricorn being the 10th sign of the Zodiac represents karma (action) and Aquarius the 11th sign denotes labh (gains). Thus Saturn controls profession, status and financial position of the native. It not only influences the affairs of the house of its location, but also of the houses on both sides of its location. Through its ownership, location and aspects, if there is no overlapping of houses, Saturn influences as many as eight houses in any horoscope. This makes the position of Saturn in any horoscope decisive and it is prudent to properly assess the disposition and strength of Saturn before making any prediction. Saturn is a deterministic planet and acts for good or bad without any restraint.
In addition, Saturn has two special features. The first one is the infamous Sadesati ( 7½ years’ period) when Saturn transits through the house prior to natal Moon, the Moon sign, and the sign next to Moon. This cycle repeats in 30 years in everybody’s life. During Sadesati Saturn controls the flight of imagination of the native’s mind and makes him depressed, lonely and self- dependent. If Moon in a horoscope is already afflicted by Saturn, Mars, Rahu or Ketu individually or jointly, or Moon is weak and located in a trika ( 6/8/12) house, the effect of Sadesati is severe.
When Sadesati occurs during the dasa of Saturn, Sun, Moon, Mars or Rahu, then it causes considerable hardship in respect of the houses occupied and aspected by Saturn in the natal horoscope, as well as those aspected during transit. The astrologers are well aware of the trials and tribulations caused by Saturn to an individual during Sadesati.
The second special feature is ‘Shani vat Rahu’, i.e. Rahu is like Saturn. It is observed that in case of Tula lagna born, for which Saturn becomes Yogakaraka, if its dasa comes very late in the native’s life, then Saturn confers its favourable result during the dasa of Rahu. If such an individual has both Rahu and Saturn dasas in his life time, then the results experienced are par excellence.