प्राचीन भारतीय ऋषि-महर्षियों को जड़ी-बूटियों का पूर्ण ज्ञान था। यह दुर्लभ विद्या समुद्र मंथन के समय धन्वन्तरी के साथ पैदा हुई। ये वनस्पतियां रोग मुक्ति तो करती हैं ही, इनका विधि-विधान से प्रयोग करें तो तांत्रिक लाभ भी चमत्कारी ढंग से लिया जा सकता है जिससे मानव जीवन में समस्याओं से तुरंत मुक्ति मिलती है। उत्तराखंड सदियों से जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है। रामचरितमानस में लक्ष्मण मूर्छा को दूर करने के लिए रामभक्त हनुमान द्वारा संजीवनी द्रोण पर्वत से ले जायी गई मानी जाती है। उत्तरांचल में अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी पाई जाती रही हैं जो पारंपरिक काल से आयुर्वेदिक चिकित्सा का आधार रही है जिनकी ख्याति एशिया और यूरोप के अनेक देशों में फैल रही है। च्यवन, चरक, सुश्रुत, कश्यप और जीव आदि अनेक ऋषि-मुनियों व वैद्यों ने जिस आयुर्वेदिक पद्धति को जड़ी-बूटियों के मिश्रण से जीवनदायी बनाया उसका आधार उत्तराखंड ही रहा है। कहा जाता है कि हिमालय क्षेत्र में लगभग अलौकिक चमत्कारी 800 जड़ी-बूटियां पाई जाती रही हैं, जिनमें से आज अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां लुप्तप्राय हो चुकी हैं। वनस्पति जगत में अनेकानेक जड़ी-बूटियां भरी पड़ी हैं। हमारे पूर्वजों ने उनके दिव्य ज्ञान के आधार पर उनमें से कई जड़ी-बूटियों को खोजा तथा उनका विस्तृत उल्लेख भी हमारे आयुर्वेद शास्त्रों व अन्य ग्रंथों के माध्यम से उल्लेखित किया है। उन्हीं प्राचीन दुर्लभ चमत्कारी वनस्पतियों में से कुछ संतानदायी जड़ी-बूटियों का वर्णन इस लेख में किया जा रहा है: 1. लक्ष्मणा कथिता पुत्रदावश्यं लक्ष्मणा मुनिपुंगवै। लक्ष्मणार्क तु या सेवेद्वन्ध्यापि लभतेसुतम्।। लक्ष्मणा मधुरा शीता स्त्रीवन्ध्यात्व विनाशिनी। रसायनकरी बल्या त्रिदोषशमनी परा।। अर्थात-हमारे ऋषि-महर्षि तथा आयुर्वेदाचार्यों ने दिव्य चमत्कारी जड़ी-बूटी लक्ष्मणा को पुत्र देने वाली कहा है। लक्ष्मणा के अर्क को अगर बांझ भी सेवन करती है तो पुत्र होता है। लक्ष्मणा कंद मधुर, शीतल, स्त्री के बांझपन को नाश करके रसायन व बलकारक है। लक्ष्मणा बेल पत्र के जैसी होती है। इसके पत्तों पर खून की सनी लाल-लाल छोटी-छोटी बूंदें होती हैं। लक्ष्मणा और पुत्र जननी ये दो लक्ष्मणा के संस्कृत नाम हैं। इसके अलावा भी अपने-अपने राज्य व स्थान विशेष की क्षेत्रीय भाषाओं में नागपत्री, पुत्रदा, पुत्रकन्दा, नागिनी, और नागपुत्री के नाम से जाना जाता है। एक आयुर्वेद शास्त्र के प्राचीन ग्रंथ में लक्ष्मणा के लिए उल्लेख प्राप्त होता है और यह भी उल्लेखित है कि लक्ष्मणा बहुत कम मिलती है तथा इस दिव्य चमत्कारी वनस्पति लक्ष्मणा की उपलब्धि उस ग्रंथ में हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों व ऊंचे पहाड़ांे में बताई गई है। शरद ऋतु में लक्ष्मणा में फल-फूल आते हैं। कार्तिक मास में शनिवार के दिन सायं काल के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर खैर की लकड़ी की चार खिलें उसके चारों ओर गाड़कर धूप-दीप एवं नैवेद्य से पूजा करके निमंत्रण दे आयें फिर पुष्य, हस्त, या मूल नक्षत्र में लक्ष्मणा को उखाड़ लायंे और पीछे न देखें। पुत्र देने वाली इस लक्ष्मणा की जड़ को दूध में पीसकर उस द्रव्य पदार्थ को पी लें। जिसके पुत्र न होता हो तो पुत्र होगा और बांझपन से मुक्ति मिलेगी तथा यदि पुत्र होकर मर जाता है तो नहीं मरेगा और पुत्रियां अधिक होती हों तो इसके प्रभाव से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। 2.शिवलिंगी ऋतु स्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है इसमें कोई शंका या संशय नहीं है। बांझपन के श्राप से जूझ रही स्त्रियों की गोद में बालक खेल रहे हैं, उनका घर हरा-भरा हो गया है। आयुर्वेद के ‘‘वैद्यरत्न’’ में लिखा है- ‘‘शिवलिंगी फलमेकमृत्वन्ते यावला गिलति। बन्ध्यापि पुत्ररत्नं लभते सानात्र किचिंत नसन्देहः।। अर्थात - आयुर्वेद के ग्रंथ वैद्यरत्न में संस्कृत शब्दावली के अंतर्गत शिवलिंगी के कई नामोल्लेख किये गये है- शिवलिंगी, लिगिनी, बहुपुत्री, ईश्वरी, शिवमल्लिका, चित्रकला, और लिंगसम्भूता आदि कई नामों से बहुचर्चित है। बंगाली भाषा में इसे शिवलिंगीनी, मरहटी तथा पश्चिमी लैटिन भाषा में इसे ब्रायोनिया लेसिनियोसा के नाम से जाना जाता है। यह स्वाद में चरपरी गरम और बदबूदार होती है। यह शिवलिंगी सर्वसिद्धि दात्री, तांत्रिक वशीकरण में और पारे को बांधने वाली हैं, इसकी बेल चलती है। इसके फल नीचे गोल और छोटे बेर के समान होते हैं। फलों के ऊपर सफेद चित्र होते हैं इस कारण से इसका एक नाम चित्रकला भी है। फलों में से बीज निकलते हैं। उनकी आकृति भी शिवलिंग के समान होती है इसलिए शिवलिंगी कही गई है और इसके पत्तों का आकार अरण्ड के समान होता है। अतः पुष्य या अन्य शुभ नक्षत्र योग में ऋतुस्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है तथा यदि संतान होकर मर जाता है तो शिवलिंगी का फल उनके लिए कवच है। 3. नागकेशर नागकेशर और जीरा इन दोनों को देशी गाय के घी में अगर कोई स्त्री ऋतुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक पीती है तो गर्भ धारण हो जाता है। भैषज्रत्नावली आयुर्वेद ग्रंथ में कहा गया है - ‘‘नागकेशर संयुक्तमूलेन घृतंपक्वं पयोन्वितम्। अर्थात- नागकेशर और जीरा को ऋ तुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक घी के साथ पीती रहें और सहवास करें तो निश्चित तौर पर बांझ स्त्री भी पुत्रवती होती है। इसमें कोई संशय नहीं है।
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