ज्योतिष में रुचि रखने वाले उच्च/ नीच के ग्रहों से रोजाना मुखातिब होते हैं और ग्रहों की इस स्थिति के आधार पर फलकथन भी करते हैं। शाब्दिक परिभाषा के आधार पर ‘उच्च’ का तात्पर्य सामान्य स्तर से ऊँचा और ‘नीच’ का तात्पर्य सामान्य स्तर से नीचा होता है। इस लेख का विषय है कि ग्रह उच्च/नीच के क्यों और कैसे होते हैं? खगोलीय दृष्टिकोण आज यह तथ्य सर्वविदित है कि सौरमण्डल के सभी सदस्य ग्रह अपने गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे हैं और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। चूंकि जातक (प्रेक्षक) पृथ्वी पर जन्म लेता है इसलिये अगर हम ग्रहों को पृथ्वी से देखें तो किसी ग्रह विशेष का ‘उच्च’ वह बिंदु हुआ जब वह पृथ्वी से अधिकतम दूरी (सूर्य सिद्धांत के अनुसार मंदोच्च) पर होता है। इसी प्रकार ‘नीच’ वह बिंदु हुआ जब वह पृथ्वी से न्यूनतम दूरी (सूर्य सिद्धांत के अनुसार शीघ्रोच्च) पर होता है। भचक्र (चित्र) को 12 बराबर भागों में बांटा गया है और प्रत्येक भाग एक राशि का प्रतिनिधित्व करता है। कौन से ग्रह कितने डिग्री पर उच्च और नीच होता है यह निम्न तालिका में वर्णित है। वैदिक दृष्टिकोण फलित में जातक की कुंडली के योगों, दशाओं, अष्टकवर्ग और गोचर के अतिरिक्त ग्रहों की शक्ति एवं दुर्बलता का आकलन भी किया जाता है। ग्रहों के बल का निर्धारण षड्बल गणना-पद्धति के अंतर्गत आता है और जिसे सभी विद्वानों द्वारा निर्विवादित मान्यता प्राप्त है। ‘षड्बल’ संस्कृत भाषा का शब्द है और इसका अर्थ है, छह प्रकार के बल यानी ग्रहों के द्वारा छह स्रोतों से प्राप्त बल का आकलन। महर्षि पराशर के अनुसार छह प्रकार के बल स्रोत हैं: स्थान बल, दिग्बल, कालबल, चेष्टा बल, नैसर्गिक बल, दृग्बल। सभी प्रकार के बलों को पद्धतिनुसार निकालने के पश्चात ही किसी ग्रह के बल का आकलन किया जाता है। चूंकि लेख का विषय उच्च/नीच है तो हम उसी पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। उच्च/नीच बल, स्थान बल के पाँच भागों में से एक है। अन्य चार हैं: सप्तवर्ग बल, ओज युग्म बल, केंद्र बल और द्रेष्काॅण बल। अर्थात, कुल छह स्रोतों में से ‘स्थान बल’ एक है और ‘स्थान बल’ के पाँच भागों में से उच्च/नीच बल एक है। किसी ग्रह के किसी राशि विशेष में स्थित होने से उसे केवल अतिरिक्त उच्च/नीच स्थान बल प्राप्त होता है। अर्थात, ग्रहों का कुल षड्बल ही फलित के दृष्टिकोण से उपयोग में लाना चाहिये और कुंडली में केवल उच्च/नीच के ग्रहों के होने मात्र से कभी भी तत्काल कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिये। उच्च और नीच क्यों? ग्रह उच्च/नीच के क्यों माने जाते हैं? यह तर्कसंगत रूप में कहीं भी परिभाषित नहीं मिल पाया है। फिर भी अगर समझने का प्रयास करें: हम यह जानते हैं कि सभी ग्रहों और राशियों के अपने-अपने गुण/ तत्व/ स्वभाव/ प्रवृत्ति/ मैत्री/ वर्ण होते हैं। तो क्या यह किसी प्रकार राशि विशेष के गुण/ तत्व/ स्वभाव/ प्रवृत्ति/ मैत्री/ वर्ण से तो संबंधित नहीं है? चंद्र, वृषभ राशि में उच्च के होते हैं। चंद्र एक जल तत्व ग्रह है और वृषभ एक पृथ्वी तत्व राशि है। पृथ्वी अर्थात स्थिरता होने से जल प्रवाह को मजबूत आधार, स्थिरता और दिशा मिलती है और इस कारणवश चंद्र के कारक तत्वों में वृद्धि होती है जैसे भावनाओं का संतुलन भली-भांति हो पाता है जिससे आपसी संबंधों में भी लाभ प्राप्ति होती है। चन्द्र, वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं। वृश्चिक एक स्थिर राशि के साथ-साथ जल तत्व प्रधान राशि भी है। जल तत्व/प्रवाह की अधिकता (चन्द्र भी जल तत्व) के फलस्वरूप चंद्र के कारक तत्वों में असंतुलन हो जाता है। जिस प्रकार जल की अधिकता (बाढ़) से सब कुछ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार भावनाओं के असंतुलन या कमजोर इच्छा शक्ति से भी कष्ट और परेशानियां बहुत बड़ी लगती हैं और जीवन का संतुलन पूर्णतः बिगड़ जाता है। मंगल, मकर राशि में उच्च के होते हैं। मंगल एक अग्नि तत्व ग्रह है और मकर एक स्थिर एवं पृथ्वी तत्व राशि है। मंगल की अग्नि/ आक्रामकता/शक्ति का एक स्थिर राशि में धैर्य पूर्ण ढंग से, संतुलित एवं सकारात्मक रूप से उपयोग होता है। इसलिये, मंगल मकर राशि में अतिरिक्त स्थान बल प्राप्त कर उच्च के होते हैं। मंगल, कर्क में नीच के होते हैं। कर्क एक जल तत्व राशि है जो अग्नि को बुझा देती है। अर्थात, मंगल अपना स्थान बल पूर्णतः खो देते हैं और जातक में उदाहरणतः कम साहस, डरपोकपन या अनावश्यक क्रोध आ सकता है। बुध, कन्या राशि में उच्च के होते हैं। बुध, अपनी बुद्धिमानी, वाणी, व्यावहारिकता, विश्लेषणात्मक शक्ति आदि के कारक हैं और एक पृथ्वी तत्व ग्रह हैं। कन्या एक द्विस्वभाव एवं पृथ्वी तत्व राशि है। अर्थात, पृथ्वी तत्व ग्रह को पृथ्वी तत्व राशि में एक शक्तिशाली आधार मिलता है और व्यावहारिकता और मानसिक श्रेष्ठता को बनाने या बनाये रखने में सहायता मिलती है। बुध, मीन राशि में नीच के होते हैं। मीन एक जल तत्व और द्विस्वभाव राशि है। जल राशि में बुद्धिमानी, वाणी, व्यावहारिकता, विश्लेषणात्मक शक्ति आदि को ठोस आधार नहीं मिल पाता है और अव्यावहारिकता बढ़ती है। स्थिरता की कमी के कारण बुध स्थान शक्ति खो देते हैं और स्वयं को मीन राशि में सर्वाधिक निर्बल पाते हैं। गुरु, कर्क राशि में उच्च के होते हंै। कर्क, एक जल तत्व राशि है। गुरु, एक आकाश तत्व एवं ज्ञान का ग्रह है जिन्हें जल में प्रबल प्रवाह मिलता है जो ज्ञान के विस्तार में सहायक होता है। अर्थात, गुरु अपने कारक तत्वों में अत्यधिक तेजी से वृद्धि कर पाते हैं। गुरु, मकर में नीच के होते हैं। मकर एक स्थिर राशि है जो ज्ञान के विस्तार/प्रवाह में ठहराव का वातावरण निर्मित करता है। ज्ञान व्यक्ति को पैसे, यश और शक्ति से भी अधिक अहंकारी बनाता है। गुरु की कारक तत्वों में कमी से जातक अहंकारी, भौतिकवादी और स्वार्थी हो जाता है। शुक्र, मीन राशि में उच्च के होते हैं। शुक्र, एक जल तत्व प्रधान ग्रह है और मीन एक द्विस्वभाव व जल तत्व प्रधान राशि है। शुक्र की राजसिक प्रवृत्ति के कारण उनको भोग-विलास, सौन्दर्य, कला, प्रशंसा इत्यादि प्रिय हैं। हालाँकि, शुक्र का जल तत्व और मीन का जल तत्व जल की अधिकता प्रदर्शित करता है परन्तु मीन पर गुरु का स्वामित्व है इसीलिए इस राशि में जल प्रवाह संतुलित, सकारात्मक व ज्ञान वर्धक है। शुक्र, कन्या में नीच के होते हैं। शुक्र एक जल तत्व प्रधान ग्रह हैं और कन्या एक पृथ्वी तत्व व द्विस्वभाव राशि है। शुक्र के ऐश्वर्य एवं भोग-विलास की इच्छा को कन्या का पृथ्वी तत्व स्थिरता प्रदान करता है अर्थात उनकी पूर्ति होने से रोकता है। जातक भौतिकवादी बन सकता है और भोग-विलास प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है अर्थात, बलहीन या नीच का होता है। शनि, तुला में उच्च के होते हैं। शनि वायु तत्व प्रधान ग्रह है और तुला वायु तत्व प्रधान राशि है। वायु तत्व को वायु राशि का साथ मिलने से अतिरिक्त स्थान बल प्राप्त होता है और अत्यधिक अनुकूल वातावरण बनता है। सबल शनि, जातक को भय से मुक्ति, तप-तपस्या, न्याय, सहिष्णुता, दयालुता इत्यादि प्रदान करता है। शनि, मेष में नीच के होते है। शनि वायु तत्व ग्रह हैं और मेष अग्नि तत्व राशि है। वायु के प्रवाह में अग्नि का सम्मिलित होना केवल नुकसान का ही द्योतक हो सकता है। निर्बल शनि, जातक को मानसिक और शारीरिक हानि जैसे दरिद्रता, बीमारी आदि देता है।
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