अष्टम चंद्र यानि जन्म कुंडली में आठवें भाव में स्थित चंद्र। आठवां भाव यानि छिद्र भाव, मृत्यु स्थान, क्लेश‘विघ्नादि का भाव। अतः आठवें भाव में स्थित चंद्र को लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथों में अशुभ माना गया है और वह भी जीवन के लिए अशुभ। जैसे कि फलदीपिका के अध्याय आठ के श्लोक पांच में लिखा है कि अष्टम भाव में चंद्र हो तो बालक अल्पायु व रोगी होता है। एक अन्य ग्रंथ बृहदजातक में भी वर्णित है कि चंद्र छठा या आठवां हो व पापग्रह उसे देखें तो शीघ्र मृत्यु होगी। जातक तत्वम के अध्याय आठ के श्लोक 97 में भी आठवें चंद्र को मृत्यु से जोड़ा गया है। ज्योतिष के ग्रंथ मानसागरी के द्वितीय अध्याय के श्लोक आठ में वर्णित है कि यदि चंद्र अष्टम भाव में पाप ग्रह के साथ हो तो शीघ्र मरण कारक है। इसी कारण से अधिकतर ज्योतिषी अष्टम चंद्र को अशुभ कहते हैं और जातक को उसकी आयु के बारे में भयभीत कर पूजादि करवा कर धन लाभ भी लेते हैं, ज्योतिष के प्रकांड ज्ञानी भी जन्मपत्री में अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री को लपेटना शुरू कर देते हैं, वे अष्टम चंद्र को ऐसा सर्प मानते हैं जिसके विष को जन्म कुंडली में स्थित शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध रूपी अमृत भी निष्प्रभावी नहीं कर सकते। वे अष्टम चंद्र को भय का प्रयाय व साक्षात मृत्यु का देवता मानते हैं, मैंने स्वयं अनेक पंडितों को अष्टम चंद्र की भयानकता बताते देखा है। परंतु यह सर्वथा गलत है कि अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री के अन्य शुभ योगों, लग्न व लग्नेश की स्थिति, अष्टम व अष्टमेश की स्थिति आदि को भूल जाएं और अष्टम चंद्र को देखते ही अशुभ बताना शुरू कर दें, क्या इस अष्टम चंद्र की भयानकता हमें इतना सम्मोहित कर देती है कि इसे देखते ही मृत्यु या प्रबल अरिष्ट के रूप में अपना निर्णय सुनाने लगते हैं, बिना यह विचार किए कि सुनने वाले जातक को ऐसे मुर्खतापूर्ण निर्णय से कितना आघात पहुंचता है। यह अपने आप में नकारात्मक ज्योतिष है और हमें इससे बचना चाहिए। केवल मृत्यु या भयानकता ही अष्टम चंद्र का प्रतीक नहीं है वरन् आशा व जीवन का प्रतीक भी अष्टम चंद्र ही है। अतः अष्टम चंद्र का केवल नकारात्मक पक्ष ही नहीं, बल्कि इसके सकारात्मक पक्ष पर भी गहन विचार करने के बाद ही ज्योतिषी को अपना निर्णय सुनाना चाहिए। आइए अष्टम चंद्र के बारे में ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों में लिखित निम्न श्लोकों पर एक नजर डालें जो अष्टम चंद्र के सकारात्मक पक्ष को उजागर करते हैं अर्थात भयभीत करने से बचाते हैं: 1. जातक परिजात में लिखा है कि जिस जातक का कृष्ण पक्ष में दिन का जन्म हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का जन्म हो और उसकी जन्म कुंडली में छठा या आठवां चंद्र हो, शुभ व पाप दोनों प्रकार के ग्रहों से दृष्ट हो तो भी मरण नहीं होता। ऐसा चंद्र बालक की पिता की तरह रक्षा करता है। 2. मानसागरी में कहा गया है कि लग्न से अष्टम भावगत चंद्र यदि गुरु, बुध या शुक्र के द्रेष्काण में हे तो वही चंद्र मृत्यु पाते हुए की भी निष्कपट रक्षा करता है। अब इन श्लोकों पर तो ज्योतिषीगण ध्यान देने की आवश्यकता समझते नहीं या ध्यान देना ही नहीं चाहते जो अष्टम चंद्र का सकारात्मक पक्ष उजागर करते हैं बल्कि नकारात्मक पक्ष को उजागर कर स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः हमें अष्टम चंद्र से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह जीवन का प्रयाय भी बन जाता है यदि निम्न सिद्धांत इस पर लागू हों तो: 1.जातक का जन्म कृष्ण पक्ष में दिन का हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का हो। 2.जन्म कुंडली में चंद्र शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध की राशि में हो या इन्हीं ग्रहों से दृष्ट हो। 3.द्रेष्काण कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो। 4. नवांश कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment