कुछ लोगों का स्वाभाव होता है कि वे जल्दी-जल्दी अपना काम बदलते रहते हैं। एक काम को ठीक से किये बिना असफलता के डर से कार्य बदल देते हैं या उस कार्य को छोड़कर दूसरे काम में ध्यान देने लगते हैं। काम को अच्छे से किए बिना बदलने से स्थायी सफलता मिलने तथा विष्वास प्राप्त करने में भी अवरोध आता है। अतः अपनी रूचि और योग्यतानुसार किसी एक लक्ष्य तथा दिषा का चुनाव कर उस कार्य को तत्परतापूर्वक स्थायी रूप से करने से सफलता निष्चित ही प्राप्त होगी। यदि किसी के जीवन में स्थिरप्रज्ञ होना हो तो उसे अपनी कुंडली का अध्ययन कराया जाना चाहिए और अस्थिरता को रोकने के लिए कुंडली के तीसरे एवं एकादष स्थान का अध्ययन कर देखना चाहिए कि कहीं तीसरे स्थान का स्वामी कमजोर है तो कमजोर मानसिकता के कारण आत्मविष्वास की कमी के चलते स्थिरता में बाधक होता है वहीं यदि एकादष स्थान का स्वामी विपरीत हो तो दैनिक-दैनिंदन कार्य में स्थिरता केा कम कर देता है। इसी प्रकार यदि दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्य स्थान में राहु हो या इन स्थानों का स्वामी राहु से पापाक्रांत हो जाए तो भी जीवन में स्थाईत्व की कमी हो सकती है। अतः अगर अस्थाईत्व प्रकृति ही सफलता में बाधक हो तो तीसरे, एकादष एवं राहु की शांति कराना, मंत्र का जाप करना तथा सूक्ष्म जीवों की सेवा करना चाहिए, जिससे स्थिरप्रज्ञ बन जा सकता है और जीवन में स्थाई सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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