ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार लिखा है जिसे कोई भी नहीं बदल सकता। खासकर मनुष्य के जीवन की निम्नांकित तीन घटनाओं को कोई नहीं बदल सकता। 1. जन्म, 2. परण (विवाह) एवं 3. मरण (मृत्यु)। मनुष्य के जीवन की यह तीन घटनाएं भाग्य के अनुसार होती हैं और यह भी कहा गया है कि विवाह के लिये जोड़े स्वर्ग में बनते हैं, इसमें मनुष्य का कोई रोल नहीं है। इस कारण विवाह के पश्चात् पति पत्नी को सामंजस्य बनाए रखते हुए सुख पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। रामायण में भी श्री तुलसीदास जी ने उल्लेख किया है कि ”होइहंै वही जो राम रूचि राखा“ इसका तात्पर्य है कि ईश्वर के द्वारा लिखे गये भाग्य के अनुसार जीवन चलता है। किसी मनुष्य का जन्म महल में होता है और किसी का झोपड़ी में, यह भी उसके पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार होता है। परंतु महल में जन्मे कुछ व्यक्ति भी कुछ समय पश्चात् अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते हैं, यह उसके जन्म के समय स्थित ग्रहों के अनुसार होता है। मनुष्य के भविष्य के संबंध में ज्योतिष ही एक ऐसी विद्या है जिससे भविष्य की योजना बनाकर आगे बढ़ने से सफलता मिलती है। मनुष्य जन्म लेता है तो मृत्यु अवश्य होगी वह भी निर्धारित समय पर इसे कोई नहीं बदल सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि यदि भाग्य नहीं बदला जा सकता तो मनुष्य के लिए ज्योतिष की उपयोगिता क्या है। यह सत्य है कि ज्योतिषी की सलाह से भाग्य नहीं बदला जा सकता, परंतु अनुभव ने यह सिद्ध कर दिया है कि शुभ ग्रह एवं योग कारक ग्रहों के रत्न (जेम स्टोन) धारण करने से लोगों को लाभ मिला और अनिष्टकारी ग्रहों के मंत्र जाप, दान एवं संबंधित देवता की पूजा करने से अनिष्ट होने से रूका या कम हुआ। कई ज्योतिष ग्रंथों एवं वेद-शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि अशुभ ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्र जाप, उनकी वस्तुओं का दान या ग्रह से संबंधित देवता की आराधना करने से ग्रहजनित अनिष्ट फल कम होने की प्रबल संभावना रहती है। इन नियमों के अनुसार सलाह से अनेक लोगों को लाभ प्राप्त हुआ। सर्वश्रेष्ठ उपाय के तौर पर शुभ ग्रह एवं योगकारी ग्रह के रत्न धारण करने से करीब-करीब सभी लोगों को लाभ हुआ। किस राशि एवं लग्न के व्यक्ति को कौन सा रत्न धारण लाभकारी है इसका उल्लेख नीचे किया जा रहा है - व्यक्तित्व के निखार के लिए लग्नेश एवं त्रिकोणेश दोनों के रत्न धारण करना चाहिए। इनसे भाग्योदय भी त्वरित गति से होगा। कुछ विद्वानों का मत है कि नीच राशि स्थित ग्रह यदि लग्नेश या त्रिकोणेश भी हो, तब भी उसका रत्न नहीं धारण करना चाहिए। परंतु यह सिद्ध पाया गया कि यदि उक्त ग्रह नीच का हो ता उसका रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। अनुभव में ऐसा पाया गया है कि बहुत सारे व्यक्ति जिन्हें शिक्षा, व्यवसाय अथवा अन्य क्षेत्रों में सफलता नहीं मिल रही थी, उन्होंने उपयुक्त रत्न धारण किए तो उन्हें आशातीत सफलता प्राप्त हुई। एक जातक जिसका वृश्चिक लग्न है और गुरु मकर में नीच राशि में है, वह बार-बार सी.ए. की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो रहा था, उसे पीला पुखराज और माणिक्य पहनाया गया और वह अंतिम परीक्षा में पास होकर चार्टर्ड अकाउंटेंट बन गया। क्र.लग्न लग्नेश लग्नेश त्रिकोणेश का रत्न का रत्न 1 मेष मंगल मूंगा पुखराज 2 वृष शुक्र हीरा पन्ना एवं नीलम 3 मिथुन बुध पन्ना हीरा 4 कर्क चंद्र मोती मूंगा 5 सिंह सूर्य माणिक्य मूंगा 6 कन्या बुध पन्ना हीरा 7 तुला शुक्र हीरा नीलम 8 वृश्चिक मंगल मूंगा पुखराज 9 धनु गुरु पुखराज माणिक्य 10 मकर शनि नीलम हीरा 11 कुंभ शनि नीलम हीरा 12 मीन गुरु पुखराज मोती इसी प्रकार जिस वृश्चिक राशि एवं लग्न वाले व्यक्ति का भाग्येश चंद्र नीच राशि में रहते हैं, उसे मोती बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है एवं तुला राशि वाले को शनि मेष में नीच राशि का होने से नीलम बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। उपर्युक्त दोनों प्रकरणों में चंद्र एवं शनि योगकारी होने से बहुत लाभकारी होना चाहिए, परंतु नीच राशि स्थित होने से बहुत अशक्त है। उनका रत्न पहनना बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ है। महर्षि वाराह मिहिर ने पंच महापुरूष राजयोगों की व्याख्या अपने ग्रंथ वृहत्संहिता में इस प्रकार की है: पांच तारा ग्रह (मंगल, बुध, गुरु, शुक्र या शनि) में से एक-एक ग्रह के बलवान रहने पर पंच महापुरूष राजयोग बनते हैं। ये स्थान, दिक्, काल, चेष्टा आदि बलों से युक्त हों, स्वोच्चगत या स्वक्षेत्री उक्त ग्रह केंद्र भावांें में स्थित हों, तो गुरु से हंस, शनि से सस, मंगल से रूचक, बुध से भद्र तथा शुक्र से मालव्य पंच महापुरूष राजयोग की सृष्टि होती है। ऐसे योग वाले को क्रमशः हंस में पुखराज, सस में नीलम, रूचक में मूंगा, भद्र में पन्ना और मालव्य में हीरा बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। इस कारण व्यक्ति इस प्रकार के रत्न धारण करके लाभान्वित हो सकते हैं। विभिन्न बीमारियों में भी रत्न बहुत लाभकारी होते हैं: यह वर्ण चिकित्सा ही है, जिसमें रत्न लाभकारी सिद्ध हुए हैं- हृदय रोग में माणिक्य (रूबी) लाभकारी है। इससे रक्त का संचालन ठीक गति से होता है तथा आॅक्सीजन भी हृदय के साथ रक्त को ठीक मात्रा में मिलती है। यदि शरीर में कैल्शियम की कमी हो, तो मोती लाभकारी है। यह हड्डी की कमजोरी, शरीर का दुबलापन, ज्वर तथा हृदय की धड़कन को भी नियंत्रित करता है। लाल मूंगा गर्भवती महिला को गर्भपात से बचाता है और पुरूष को जीवनशक्ति प्रदान करता है। यह ज्वर और पीलिया में भी लाभकारी है। गर्भवती महिला के लिए हरा पन्ना सुरक्षित प्रसव में सहायक है। यह दम्मे के रोग को भी कम करता है। हमारे महर्षियों ने अपनी खोज से यह निष्कर्ष निकाला है कि जिस वस्तु का रंग जितना गहरा होगा, वह उतना ही अधिक अपने गुण की अभिव्यक्ति करेगा। इसी सिद्धांत पर रत्नों का मूल्य है। रत्नों में रंग का घनत्व अधिक होने से वे अधिक लाभकारी सिद्ध हुए हैं और होते भी हैं। इसी सिद्धांत के अनुसार हमें लाभकारी रत्न धारण करना चाहिए। विभिन्न रत्नों को धारण करने के लिए उन ग्रहों के दिन, यानि मोती के लिए सोमवार, माणिक्य के लिए रविवार, मूंगे के लिए मंगलवार, पन्ना के लिए बुधवार, पुखराज के लिए गुरुवार, हीरे के लिए शुक्रवार और नीलम के लिए शनिवार उपयुक्त रहते हैं। यह भी अवश्य देख लें कि शुक्ल पक्ष हो और उक्त दिन 4, 8, 9, 14 तिथियां न हों। इन तिथियों में रत्न धारण जैसे शुभ कार्य वर्जित हैं। अब लाल किताब के अनुसार कुछ टोटकों का वर्णन किया जा रहा है, इनके पालन से असंख्य रोगों को लाभ हुआ है। उनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है: यदि किसी का सूर्य कर्म स्थान (दशम) में पीड़ित हो तो यह टोटका है कि बहते पानी में तांबे का सिक्का बहा देना लाभकारी रहेगा। प्रत्येक भाव में सूर्य अनिष्टकारी होने पर भिन्न-भिन्न टोटके दिये गये हैं। सभी का वर्णन करना संभव नहीं है यह सिद्धांत सभी ग्रहों के लिए हैं। इसी प्रकार यदि चंद्र पीड़ित हो तो मां का बीमार रहना मानसिक चिंता रहना, दम्मे आदि कष्ट हो सकते हैं। इसके लिए चांदी को बहते पानी में बहा देना अच्छा रहेगा। दूसरा टोटका यह भी है कि रात को दूध या पानी का एक बर्तन सिरहाने में रखकर सो जायें और अगले सवेरे यह कीकर के वृक्ष पर डाल दें। चंद्रमा के कष्ट को दूर करने के लिए श्री शिव आराधना लाभकारी है। प्रत्येक भाव में पीड़ित चंद्र के लिए भिन्न-भिन्न टोटके हैं जैसे चंद्र तृतीय भाव में पीड़ित हो तो हरे रंग का कपड़ा कन्याओं को दान में देना आदि और चतुर्थ में चंद्र पीड़ित हो तो रात्रि को दूध नहीं पियें, हो सके तो सोमवार को पीड़ितों को दूध पिलायें। यदि मंगल अनिष्टकारी हो तो तंदूर की मीठी रोटी दान करें, रेवड़ियां पानी में बहा दें या मीठा भोजन दान करें। मंगल के लिए बजरंग बली जी की आराधना करें और प्रसाद चढ़ाकर ग्रहण करें। बुध अनिष्ट रहने पर कौड़ियों को जलाकर उनकी राख नदी में उसी दिन बहा दें और तांबे के पैसे में छेद करके पानी में बहा दें, या बुध से संबंधित वस्तुएं दान करें, जैसे हरी मूंग, हरा कपड़ा, चांदी। बुध के कष्ट दूर करने के लिए श्री दुर्गाजी की आराधना ”श्री दुर्गा सप्तशती“ का पाठ करना बहुत लाभप्रद रहेगा। यदि हो सके तो नाक छिदवाएं। महिलाएं यह काम सरलता से कर सकती हैं। यदि बुध के कारण कोई रोग हो तो कोला फल (पेठा बनाने के काम आने वाला फल) किसी देवी के मंदिर में दान करें। पीपल का वृक्ष गमले में लगा कर परिक्रमा करें। गुरु की वस्तुएं जैसे चना दाल, हल्दी साबुत, केसर, तांबा (सोने की जगह), पीले फूल, केसरिया कपड़ा गुरुवार के दिन दान करें। शुक्र के अनिष्टकारी होने से अपने भोजन में से कुछ भोजन निकाल कर गाय को खिलाएं। गाय को घास (चारा) खिलाएं। शुक्र से संबंधित वस्तु दान करें और श्री महालक्ष्मी जी की आराधना करें। शनि कष्टकारी होने पर मछलियों को आटा खिलाएं। कौवों को अपने खाने में से कुछ खिलाना लाभप्रद रहता है। शनि से संबंधित वस्तुएं दान करें और शिवजी की पूजा-आराधना करें। केतु के अनिष्टकारी रहने पर काले कुत्ते को खाना खिलाना, श्री गणेश जी की पूजा, आराधना करना लाभप्रद रहता है। यदि आपके लड़के का व्यवहार आपके साथ ठीक नहीं है तो उपर्युक्त विधि से कुत्ते को रोटी खिलाएं और मंदिर में कंबल दान करें। राहु यदि किसी जन्मपत्री में अनिष्टकारी हो तो नारियल को पानी में बहा दें और जौ को दूध में धो कर तथा कोयले को पानी में बहाने से लाभ होगा। राहु की वस्तुएं ”जमादार“ को दान में देने से भी लाभ होगा। यदि किसी पर अपराध प्रकरण चल रहा हो तो वह भी उपर्युक्त विधि से ही उपाय करें। प्रकरण में लाभ होगा। उपर्युक्त उपाय विधि दिन में ही करें, रात में नहीं करें। मान्यता यह भी है कि किसी का शनि पंचम स्थान में हो तो मकान बनाते समय उसके पुत्र को कष्ट होगा। यह सिद्धांत उसके अपने मकान पर लागू होगा, उसके पुत्र द्वारा बनाये गये मकान पर लागू नहीं होगा। यदि किसी पत्री में सूर्य, शनि साथ हों और पत्नी का स्वभाव ठीक नहीं हो, तो पत्नी के वजन के बराबर ज्वार दान करें। इससे लाभ होगा। सिद्धांत बहुत अच्छे हैं और उनके द्वारा बताये गये उपाय अधिकतर बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं।

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