पाराशर मुनि ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शुभाशुभ विचार करने हेतु वर्ग कुंडलियों की उपयोगिता बताई है। जन्मपत्रिका से किसी घटना का संकेत मिलता है तो उसकी पुष्टि संबंधित वर्ग कुंडली से होती है। ऐसी वर्ग कुंडली है त्रिशांश अर्थात क्ध्30। जातक के जीवन में रोग, दुर्घटना एवं घोर संकट की पुष्टि त्रिशांश कुंडली द्वारा अच्छे ढंग से हो सकती है। आइए जानें कैसे करें त्रिशांश गणना एवं त्रिशांश कुंडली के आधार पर फल कथन ... भचक्र से आने वाले शुभाशुभ उर्जा का प्रभाव समस्त चराचर जीव जगत पर पड़ता है। इससे हमारा शरीर भी अछूता नहीं है। शुभ प्रभाव होने पर हम प्रसन्नता एवं स्वस्थ अनुभव करते हैं और नकारात्मक प्रभाव से अप्रसन्न एवं अस्वस्थ अनुभव करते हैं और नकारात्मक प्रभाव से अप्रसन्न एवं अस्वस्थ अनुभव करते हैं। ज्योतिष में लग्न को देह एवं चंद्र को मन माना है। अतः जन्म लग्न एवं चंद्र की स्थिति अर्थात इन पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव से इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि व्यक्ति स्वस्थ, प्रसन्नचित्त रहेगा अथवा रोगी, क्लांत एवं चिंतित रहेगा। यदि जन्म लग्न पर शुभ प्रभाव है और चंद्र पर अशुभ प्रभाव है तो व्यक्ति का शरीर बाहर से तो स्वस्थ दिखाई दे सकता है परंतु मानसिक रूप से कमजोरी, पीड़ा, बेचैनी एवं मानसिक रोग हो सकते हैं। इसी प्रकार चंद्र पर शुभ प्रभाव हो एवं जन्म लग्न पर अशुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति में उत्साह, अच्छी मानसिक क्षमताएं एवं उर्वर मस्तिष्क हो सकता है लेकिन शरीर साथ न दें। अतः व्यक्ति का जन्म लग्न-लग्नेश एवं चंद्रमा शुभ एवं बली होना आवश्यक है। इनमें से एक भी कमजोर एवं पीड़ित हुआ तो जन्मपत्रिका कमजोर की श्रेणी में आ जाती है और कुंडली में उपस्थित राजयोग भी अपना पूर्णफल देने में असमर्थ होते हैं। सामान्यतया हम लग्न कुंडली से कोई किसी घटना के शुभाशुभ को देखते हैं और उसकी पुष्टि नवांश कुंडली द्वारा करते हें। नवांश से स्त्री विचार एवं ग्रह की क्षमता जांची जा सकती है। प्रायः ऐसा देखने में आ रहा है कि समस्त घटनाओं की पुष्टि करने में नवांश सदैव सहायक नहीं होता है। पाराशर मुनि ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शुभाशुभ विचार करने हेतु वर्ग कुंडलियों की उपयोगिता बताई है। जन्मपत्रिका से किसी घटना का संकेत मिलता है तो उसकी पुष्टि संबधित वर्ग कुंडली से होती है। ऐसी ही एक वर्ग कुंडली है त्रिशांश अर्थात् डी-30। जिसका उपयोग जातक के जीवन में होने वाले अरिष्ट की जानकारी हेतु किया जाता है। त्रिशांश कुंडली प्रायः त्रिशांश कुंडली का उपयोग स्त्री का चरित्र, स्वभाव ज्ञात करने में किया जाता है परंतु पाराशर मुनि के अनुसार अरिष्ट अर्थात् रोग, दुर्घटना एवं घोर संकट की पुष्टि त्रिशांश कुंडली द्वारा अच्छे ढंग से हो सकती है। त्रिशांश की गणना पांच-पांच अंशों का एक त्रिशांश माना गया है और सभी विषम राशियों में क्रमशः 5, 5, 8, 7 अंशों में क्रमशः मेष, कुंभ, धनु, मिथुन एवं तुला का त्रिशांश तथा सभी सम राशियों में क्रमशः 5, 7, 8, 5, 5 अंशों में वृष, कन्या, मीन, मकर एवं वृश्चिक का त्रिशांश होता है। त्रिशांश एवं अरिष्टकाल ज्योतिष के अनुसार किसी भी जन्मपत्रिका में अरिष्ट, रोग एवं रोग पीड़ित अंग का अनुमान निम्न बिन्दुओं के आधार पर लगाया जाता है कि 1. जन्म लग्न पर पाप प्रभाव हो, 2. लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में हो, 3. भाव एवं भावेश तथा कालपुरूष की संबंधित राशि एवं उसका स्वामी तथा कारक एक साथ पीड़ित होने पर उस राशि एवं भाव को व्यक्त करने वाले अंग में रोग पीड़ा होने का अनुमान लगाया जाता है। 4. यह रोग 6,8,12वें एवं मारक भाव तथा इनसे संबंध रखने वाले ग्रहों की दशान्तर्दशा में संभव होता है और इसकी पुष्टि त्रिशांश में करनी चाहिए। प्रायः ऐसा माना जाता है कि त्रिशांश लग्नेश के शुभयुक्त, शुभदृष्ट होने एवं शुभ भावों में होने से व्यक्ति का जीवन दुर्घटना एवं अनिष्ट रहित होता है।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment