Monday, 13 June 2016

पारिवारिक जीवन में कष्ट....कराएं पितृ दोषों की शांति

शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं... जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है... कहा तो यहाॅ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है... गरूड पुराण में वर्णन है और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है.... उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है... इससे जाहिर होता है कि आपका प्रारब्ध कभी ही आप पर असर दिखा सकता है...अतः अपने भाग्यवृद्धि तथा सुख समृद्धि हेतु अपने कर्म अच्छे रखने चाहिए..इसके साथ ही पितृदोष की शांति कराना चाहिए तथा अन्नदान करना चाहिए।

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