अधिक संपन्न एबं समृद्ध लोगों की सुख-सुविधाओं पर दृष्टि केन्दित करने एबं उनसे अपनी तुलना करने वाले लोग कभी सुखी-संतुष्ट नहीं हो सकते, उन्हें सदैव अभाव का अनुभव खटकता रहेगा। दूसरों की संपन्नता, पद-प्रतिष्ठा एवं भौतिक उपलब्धियों से अपनी स्थिति की बराबर तुलना करते रहने से अपने में हीन भावना आती है और अपनी समझ, शक्ति एवं योग्यता पर अविश्वास होने लगता है। हमें अपने को दूसरों से अधिक समझदार एवं योग्य तो नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि इससे अहंकार बढने लगता है, परंतु हम उस दिशा में आगे बढने के लिए प्रयास करते है। परंतु हमें यह भी समझना चाहिए कि किसी दिशा में हम चाहे कितना हो संपन्न क्यों न हो जाये, हमें अपने से अधिक संपन्न और समृद्ध लोग दिखाई पडेगे हम दुखी रहेंगे और हमें अभाव का अनुभव होता रहेगा। इसलिए हमेँ अपनी दृष्टि बदलनी होगी और अपनी समझ, प्राप्ति और योग्यतानुसार श्रम करते हुए संतोष करना होगा । यदि हमेँ अपनी समझ, शक्ति और योग्यता का संपूर्ण उपयोग करने हेतु अपनी कुंडली के अनुसार समझ बढ़ाने के लिए अपने तीसरे एवं पंचम स्थान के ग्रहों को अनुकूल करने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार अपनी शक्ति और योग्यता के लिए लग्न, तीसरे, पंचम, दसम एवं एकादष स्थान के ग्रहों को अनुकूल करने हेतु मंत्रजाप, दान तथा रत्नधारण करना चाहिए। जीवन में अपने प्रारब्ध के अनुरूप प्राप्ति हेतु अपने पित्रों का आर्षीवाद तथा अनुकूलता प्राप्ति हेतु पितृषांति कराना चाहिए। सूक्ष्म जीवों की सेवा करनी चाहिए इसके साथ अपने अनुकूल ग्रहों का रत्न धारण करने से जीवन में साकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर सुख प्राप्त कर सकते हैं।
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