परिवार रूपी रथ के पहिए हैं पति और पत्नी। यदि इनके मध्य वैचारिक एवं शारीरिक संबंध अच्छे नहीं होंगे तो परिवार में कलह होना निश्चित है। पारिवारिक कलह गृहस्थ-सुख को नष्ट कर देती है। इसके पीछे पति-पत्नी के पारस्परिक संबंधों का अच्छा न होना अथवा परिवार के अन्य सदस्यों के मध्य वैचारिक असमानता मूल कारण होती है। भरपूर पारिवारिक सुख तभी मिल पाता है जब पति-पत्नी एक दूसरे को भली-भांति समझें, उनमें वैचारिक समानता हो, शारीरिक रूप से भी एक दूसरे को जानें और एक दूसरे को भरपूर सहयोग दें। कैसे जानें कि पति-पत्नी के मध्य संबंध कैसे होंगे? जब आप यह जान जाएंगे कि पति-पत्नी के मध्य पारस्परिक संबंध कैसे होंगे, तो यह भी निश्चित कर सकेंगे कि पारिवारिक कलह होगी या नहीं। यदि आपके पास वर-वधू अथवा पति-पत्नी की कुंडलियां हों तो आप पति-पत्नी के पारस्परिक संबंध का विचार पांच प्रकार से कर सकते हैं- - लग्नेश व सप्तमेश की स्थिति से - लग्नेश, जन्म राशीश व सप्तमेश की स्थिति से - नवमांश कुंडली के विश्लेषण से - अष्टक वर्ग द्वारा - मेलापक द्वारा लग्नेश व सप्तमेश की स्थिति से पति-पत्नी के पारस्परिक संबंध का विचार पति-पत्नी के पारस्परिक संबंध का विचार करने के लिए कुंडली में अधोलिखित पांच ज्योतिषीय योगों का विश्लेषण करें। - लग्नेश सप्तम भाव में एवं सप्तमेश लग्न भाव में स्थित हो तो पति-पत्नी के बीच उत्तम प्रीति रहती है। - लग्नेश एवं सप्तमेश के मध्य परस्पर दृष्टि संबंध हो तो पति-पत्नी के संबंध मधुर रहते हैं। - लग्नेश एवं सप्तमेश परस्पर युत संबंध अच्छे रहेंगे। यदि लग्नेश और सप्तमेश के स्वामियों के मध्य परस्पर पंचधा मैत्री विचार करने पर अधिमित्र या मित्र संबंध हों, तो सोने में सुहागे वाली स्थिति हो जाएगी और परस्पर सहयोग बढ़ जाएगा। इसके विपरीत यदि अधोलिखित चार स्थितियां कुंडली में हों, तो परिवार में परेशानियां, कलह, बाधाएं, संकट आदि आते हैं। फलस्वरूप अपमान, अपयश, मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के साथ-साथ आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है और संतान का भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है। - लग्नेश एवं सप्तमेश परस्पर छठे-आठवें या दूसरे-बारहवें में स्थित हों, तो गृहस्थ जीवन में परेशानियां आती हैं। - लग्नेश व सप्तमेश में से एक नीच राशि में या त्रिक भाव में स्थित हो तो गृहस्थ जीवन में अनेक कष्ट आते हैं। - यदि पति का लग्नेश अशुभ स्थिति में हो तो स्वयं की ओर से तथा यदि सप्तमेश अशुभ स्थिति में हो तो पत्नी की ओर से अनेक संकट उत्पन्न होते हैं। - गृहस्थ सुख के लिए सप्तमेश का द्वितीय भाव में स्थित होना उतना ही हानिकारक है जितना द्वितीयेश का सप्तम भाव में स्थित होना। लग्नेश, जन्म राशीश व सप्तमेश की स्थिति से पति-पत्नी के पारस्परिक संबंध का विचार लग्नेश या जन्म राशीश स्वयं जातक का एवं सप्तमेश जीवनसाथी का परिचायक है। यदि इन दोनों ग्रहों में मित्रता हो तो दाम्पत्य जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। नवमांश कुंडली द्वारा पारिवारिक कलह का विचार नवमांश कुंडली से स्त्री सुख एवं पति-पत्नी के पारस्परिक संबंधों व जीवनसाथी के गुणादि का विचार किया जाता है। नवमांश कुंडली द्वारा फल विचारते समय नवमांश लग्न एवं नवमांशेश का भी ध्यान रखना चाहिए। लग्नेश एवं नवमांश स्वामी में परस्पर मैत्री हो तो पति-पत्नी के संबंध मधुर, यदि शत्रुता हो तो कटु और सम हो तो सामान्य रहते हैं। नवमांशेश अपने नवमांश में हो या स्वराशिस्थ अथवा उच्चस्थ हो, शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो जातक श्रेष्ठ गुणों से युक्त व उत्तम स्वभाव वाला होता है तथा सुन्दर स्त्री का सुख बिना परिश्रम के ही प्राप्त कर लेता है। नवमांश कंुडली में जो ग्रह स्ववर्ग में, वर्गोत्तमी या उच्च का होकर केन्द्र या त्रिकोण में शुभ राशि में स्थित हो, उस ग्रह से संबंधित समस्त सुख मिलते हैं और स्त्री व परिवार का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। इसके विपरीत हो तो व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित ऋणात्मक फल मिलता है और पारिवारिक सुख भी नहीं मिलता । यदि नवमांश स्वामी जन्मकुंडली में स्वगृही हो या 3, 5, 7, 9 या 10 वें भाव में स्थित हो तो जातक को सुंदर, गुणी और भाग्यशाली स्त्री का सुख मिलता है। पुरुष या स्त्री की नवमांश कुंडली में सप्तम भाव में शुभ ग्रह अर्थात बली चंद्र, गुरु या शुक्र हो तो जातक और जातका भाग्यशाली, सुखी एवं स्त्री या पुरुष का सुख पाने वाले होते हैं। नवमांशेश पाप ग्रह हो, पापग्रह या क्रूर ग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक की स्त्री कलह करने वाली होती है और उससे निभाव मुश्किल होता है। जन्मकुंडली का लग्नेश अर्थात लग्न का स्वामी नीच या शत्रु नवमांश में स्थित हो तो स्त्री के कारण कलह, क्लेश, कष्ट आदि का सामना करना पड़ता है और विवाह आदि शुभ कार्यों में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। नवमांश कुंडली का सप्तम भाव पापग्रहों से युत या दृष्ट हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि का अभाव हो तो जातक या जातका के जीवनसाथी की अकाल मृत्यु की संभावना रहती है अथवा विवाह सुख में कमी रहती है। यदि नवमांश स्वामी पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो जितने ग्रहों से दृष्ट या युत हो उतनी स्त्रियों से कष्ट मिलता है या संबंध बिगड़ते हैं। इसी प्रकार स्त्री की कुंडली में पुरुषों का विचार करना चाहिए। किसी पुरुष या स्त्री की नवमांश कुंडली में शुक्र-मंगल परस्पर राशि परिवर्तन करें तो उसके विवाहेतर प्रेम संबंध होने की प्रबल संभावना रहती है। यदि नवमांश स्वामी जन्म कुंडली में छठे भाव में स्थित हो तो स्त्री को कष्ट या स्त्री संबंधी परेशानियां मिलती हैं, आठवें भाव में स्थित हो तो पारिवारिक कलह, क्लेश एवं वियोग तक हों तो पति-पत्नी में आजीवन उत्तम सामंजस्य बना रहता है। - लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक पत्नी का भक्त होता है और उसके अनुसार चलता है। - सप्तमेश लग्न में हो तो पत्नी पति की आज्ञाकारिणी होती है। यदि इन योगों में से दो या दो से अधिक योग कुंडली में हों तो समझ लें कि पति-पत्नी के मध्य का दुख भोगना पड़ता है। बारहवें भाव में स्थित हो तो धन की हानि होती है और आय से अधिक व्यय होता है। नवमांश लग्नेश राहु या केतु के साथ हो तो जातक की स्त्री पति के विरुद्ध आचरण करने वाली, कलहकारी एवं कठोर वाणी का प्रयोग करने वाली होती है। नवमांश स्वामी बारहवें भाव में हो तो जातक अपनी स्त्री से संतुष्ट नहीं रहता है। यदि नवमांश स्वामी पापग्रह हो और पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो उसकी स्त्री कटु वचन बोलने वाली एवं कलहकारी होती है। मेलापक द्वारा पारिवारिक कलह का विचार मेलापक अर्थात कुंडली मिलान करते समय दैवज्ञ सावधानी नहीं रखते हैं। कुंडलियों में परस्पर गुण मिलान करके मेलापक की इति कर देते हैं। मेलापक करते समय परस्पर कुंडलियों का भी मिलान करते हुए इन तथ्यों पर विचार करना चाहिए कि पति या पत्नी संन्यास तो नहीं ले लेगी, उनकी कुंडलियों में तलाक या अलगाव का योग तो नहीं, अल्पायु योग तो नहीं, वैधव्य योग तो नहीं? यह भी देखना चाहिए कि दोनों परस्पर एक दूसरे को सहयोग करेंगे या नहीं। इस पर भी ध्यान दें कि वाद-विवाद, झगड़े, आत्महत्या, हत्या, सन्तानहीनता, चरित्र से भ्रष्ट होना आदि से संबंधित योग तो नहीं है। विवाह पूर्व ही वर-कन्या की कुंडलियों का विश्लेषण कर लिया जाए तो पारिवारिक कलह से बचा जा सकता है। सप्तम भाव, सप्तमेश, द्वितीय भाव व द्वितीयेश एवं लग्नेश व नवमांश लग्नेश परस्पर सुसंबंध न बनाएं, पापग्रहों से दृष्ट या युत हों एवं निर्बल हों तो पारिवारिक सुख नहीं मिलता, अपितु कलह ही रहती है। पारिवारिक कलह से मुक्त होने की सरल रीति उचित ढंग से मेलापक करना है।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment