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Friday, 29 September 2017
Thursday, 28 September 2017
माँ सिद्धिदात्री कि पूजा से होती है सिद्धि की प्राप्ति
- आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘महानवमी’ कहा जाता है. इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है.
- आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है.
- यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है. हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है.
- माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं.
- देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं.
- देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी.
- देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है.
- मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान अज्ञान, तमस, असंतोष आदि से निकालकर स्वाध्याय, उद्यम, उत्साह, कर्त्तव्यनिष्ठा की ओर ले जाता है और नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है.
- हमारी तृष्णाओं व वासनाओं को नियंत्रित करके हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करते हुए हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देता है.
पूजन विधि
सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है. हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए. हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए. बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए. दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अतः सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है. देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें. भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए. हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए.
मंत्र
देवी की स्तुति के लिए निम्न मंत्र कहा गया है-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। कामनाओं की पूर्ति होती है।
कन्या पूजन
नवरात्र के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान देती हैं।
कन्या पूजन विधि
जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है, उन्हें गृह प्रवेश पर कन्याओ का पुरे परिवार के सदस्य पुष्प वर्षा से स्वागत करे और नव दुर्गा के सभी नौ नामो के जयकारे लगाये। अब इन कन्याओ को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरो को बारी बारी दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथो से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छुकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद पैरो पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रुपी कन्याओ को इच्छा अनुसार भोजन कराये। भोजन के बाद कन्याओ को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा दे, उपहार दे और उनके पुनः पैर छूकर आशीष ले। इनके पूजन से दुःख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे-
1.त्रिमूर्ति- तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
2.कल्याणी - चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
3.रोहिणी - पाँच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
4.कालिका - छः वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
5.चण्डिका - सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
6.शाम्भवी - आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।
7.दुर्गा - नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
8.सुभद्रा - दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।
- आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है.
- यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है. हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है.
- माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं.
- देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं.
- देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी.
- देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है.
- मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान अज्ञान, तमस, असंतोष आदि से निकालकर स्वाध्याय, उद्यम, उत्साह, कर्त्तव्यनिष्ठा की ओर ले जाता है और नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है.
- हमारी तृष्णाओं व वासनाओं को नियंत्रित करके हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करते हुए हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देता है.
पूजन विधि
सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है. हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए. हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए. बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए. दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अतः सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है. देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें. भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए. हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए.
मंत्र
देवी की स्तुति के लिए निम्न मंत्र कहा गया है-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। कामनाओं की पूर्ति होती है।
कन्या पूजन
नवरात्र के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान देती हैं।
कन्या पूजन विधि
जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है, उन्हें गृह प्रवेश पर कन्याओ का पुरे परिवार के सदस्य पुष्प वर्षा से स्वागत करे और नव दुर्गा के सभी नौ नामो के जयकारे लगाये। अब इन कन्याओ को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरो को बारी बारी दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथो से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छुकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद पैरो पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रुपी कन्याओ को इच्छा अनुसार भोजन कराये। भोजन के बाद कन्याओ को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा दे, उपहार दे और उनके पुनः पैर छूकर आशीष ले। इनके पूजन से दुःख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे-
1.त्रिमूर्ति- तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
2.कल्याणी - चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
3.रोहिणी - पाँच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
4.कालिका - छः वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
5.चण्डिका - सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
6.शाम्भवी - आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।
7.दुर्गा - नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
8.सुभद्रा - दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।
Wednesday, 27 September 2017
Tuesday, 26 September 2017
माँ कात्यायनी पूजा से पायें भाग्य
“चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥“
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥“
- महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं. और नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी आराधना होती है.
- माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।
- चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी हैं.
- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कालिंदी यमुना नदी के किनारे पर जाकर बृज की गोपिकाओं ने भी माँ कात्यायनी की पूजा कि थी.
- मां कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं, तो उनके विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति होती है.
- षष्ठी देवी बालकों की रक्षिता और आयुप्रदा देवी हैं. षष्ठी देवी वंश विकास और रक्षा की देवी हैं. जन्म के छठे दिन मां कात्यायनी देवी भाग्य लिखने आती हैं. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं. इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।
- माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।
- चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी हैं.
- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कालिंदी यमुना नदी के किनारे पर जाकर बृज की गोपिकाओं ने भी माँ कात्यायनी की पूजा कि थी.
- मां कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं, तो उनके विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति होती है.
- षष्ठी देवी बालकों की रक्षिता और आयुप्रदा देवी हैं. षष्ठी देवी वंश विकास और रक्षा की देवी हैं. जन्म के छठे दिन मां कात्यायनी देवी भाग्य लिखने आती हैं. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं. इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि -
छठे दिन माँ कात्यायनी जी की पूजा में सर्वप्रथम कलश और गणपति की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें. इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करें और ओम देवी कात्यायानाई नमः इस मंत्र का जाप 108 बार जाप करें.
छठे दिन माँ कात्यायनी जी की पूजा में सर्वप्रथम कलश और गणपति की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें. इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करें और ओम देवी कात्यायानाई नमः इस मंत्र का जाप 108 बार जाप करें.
देवी कात्यायनी के मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
देवी माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ और देवी माँ कात्यायनी के कवच का पाठ भक्त को अवश्य रूप करना चाहिए. नवरात्री में देवी माँ दुर्गा सप्तशती पाठ का किया जाना भक्तों के लिए बेहद लाभ दायक सिद्ध होता है।
Monday, 25 September 2017
Saturday, 23 September 2017
Thursday, 21 September 2017
Wednesday, 20 September 2017
Tuesday, 19 September 2017
Monday, 18 September 2017
Sunday, 17 September 2017
Friday, 15 September 2017
Thursday, 14 September 2017
Wednesday, 13 September 2017
Tuesday, 12 September 2017
Monday, 11 September 2017
Sunday, 10 September 2017
Saturday, 9 September 2017
मिथुन सितम्बर 2017 मासिक राशिफल
इस माह बड़े निवेश के जोख़िम से बचना ही आपके लिए बेहतर होगा। विदेश में किसी भी प्रकार से आपके प्रोफेशनल संबंधों में वृद्धि होगी। आय की तुलना में अनावश्यक खर्च बढ़ जाएंगे। प्रोफेशनल मोर्चे पर विस्तार संबंधी योजनाओं पर खर्च करने के बाद आपके प्रोजेक्ट अधूरा छोड़ने की संभावना रहेगी। धार्मिक यात्रा की संभावनाएं भी प्रबल बनती दिखाई दे रही हैं। हांलाकि, भाई-बहन के साथ बातचीत में आपकी वाणी में कटुता नहीं आए इसका विशेष ख्याल रखें। परिवार के साथ व्यवहार में आपको नियंत्रण रखना पड़ेगा। फिलहाल, आप उद्यम शुरू करने के लिए जोश में रहेंगे। चल-अचल पैतृक संपत्ति से संबंधित विवादों का भी धीमी गति से समाधान होगा। वाहन संबंधी कार्य पूर्ण होने की संभावना है। महीने के अंतिम सप्ताह में आपके घर में मेहमानों की आवाजाही अधिक रहेगी।
आर्थिक स्थिति- आर्थिक मोर्चे पर आपके लिए यह समय अच्छा कहा जाएगा। इस माह आपकी आर्थिक स्थिति उत्तम रहेगी। व्यावसायिक कारणों से शारीरिक परिश्रम व दौड़-धूप बढ़ेगी। अचल संपति अथवा ज़मीन के कारोबार से आपको अच्छा ख़ासा आर्थिक लाभ मिलने के संकेत हैं। आर्थिक सफलता प्राप्त करने के लिए आपको व्यावसायिक क्षेत्र में अपने मित्रों या भाई- बहनों से सलाह-मशवरा लेना लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
जहां तक हो सके आपके द्वारा किये जा रहे आर्थिक व्यवहारों का लिखित रुप से रिकार्ड रखें। शुरु के चरण में आप परिवार की खुशी हेतु खर्च करेंगे।
जहां तक हो सके आपके द्वारा किये जा रहे आर्थिक व्यवहारों का लिखित रुप से रिकार्ड रखें। शुरु के चरण में आप परिवार की खुशी हेतु खर्च करेंगे।
स्वास्थय- सेहत का मामला इस समय काफी अच्छा रहने की सम्भावना है। आप जोश, ऊर्जा, उमंग व उत्साह से भरे रहेंगे। मित्रों व भाई-बहनों के साथ घूमने-फिरने के अनेक मौके मिलने के कारण आपकी मानसिक प्रसन्नता बनी रहेगी। इस समय आपको अपने स्वभाव में क्रोध की अधिकता महसूस हो सकती है। आपको इस अवधि के दौरान अपनी जीवन शैली में खूब नियमितता बरतने की सलाह दी जाती है।
Friday, 8 September 2017
वृषभ सितम्बर 2017 मासिक राशिफल
आपकी प्रवृति गंभीर बनी रहेगी । भाग्य पूरी तरह से आपके पक्ष में रहेगा । आपकी कार्यक्षमता काफी अच्छी बनी रहेगी। जीवनसाथी या भागीदार की तरफ से लाभ होगा। विद्यार्थियों की अध्ययन में धीरे-धीरे एकाग्रता और रुचि अधिक बढ़ेगी। जमीन-मकान-वाहन से संबंधित कामकाज होंगे। हांलाकि, माता की तबीयत नरम-गरम रहेगी। विदेश रहने वाले या वतन से लंबे समय से दूर रहने वाले जातकों को वतन वापस आने का योग बनेगा। धर्म-कर्म के कार्यों में आपकी रुचि जागृत होगी। मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले जातकों को नए अवसर मिलने की संभावना रहेगी। कोर्ट- कचहरी के केस में अवरोध आ सकते हैं। फिलहाल, आपके स्थान परिवर्तन होने का योग भी चल रहा है। परोपकार व समाज सेवा जैसे कार्यों में आप बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। भाई-बहनों का आपको भरपूर सुख व सहयोग प्राप्त होगा। आपको कम मेहनत से ज्यादा लाभ प्राप्त होगा। सेहत पढ़ाई में बाधक बन सकती है।
आर्थिक स्थिति- यह माह धनार्जन के लिए अनुकूल रहेगा। अगर आप किसी नए व्यापार में निवेश की सोच रहे हैं तो कर सकते है । काम-धंधे में बढ़ोत्तरी होने से आपकी आमदनी बढ़ेगी। नए उद्यमों या व्यवसायों से जुड़ने का मौका मिलेगा। नौकरी की स्थिति बेहतर रहेगी। हालांकि, भागीदारी अथवा किसी भी प्रकार के संयुक्त साहस करने के कामकाज धीमी गति से यूं ही चलते रहेंगे। भागीदारी के बिज़नेस में आपको ज्यादा आनंद नहीं आएगा।
स्वास्थ्य- आपका स्वास्थ्य इस दौरान काफी अच्छा रहने की सम्भावना है। आपमें उत्साह और स्फूर्ति की मात्रा अच्छी रहेगी। दूर स्थान पर रहने वाले किसी प्रियजन के साथ समय बिताने का प्रसंग बनेगा जो आपमें उल्लास हो बढ़ाएगा। सामान्य बीमारियां आपका रास्ता नहीं रोक पाएंगी। आपकी सकारात्मकता व रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी। आकस्मिक चोट लगने की आशंका को देखते हुए एेसा कोई काम नहीं करे जिसमें जोखिम हो।
Thursday, 7 September 2017
Wednesday, 6 September 2017
Tuesday, 5 September 2017
Monday, 4 September 2017
Sunday, 3 September 2017
Saturday, 2 September 2017
Friday, 1 September 2017
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