Tuesday, 14 April 2015

संतान सुख प्राप्ति के योग




संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्य
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य एमंगलए गुरु पुरुष ग्रह हैं द्य शुक्र एचन्द्र स्त्री ग्रह हैं द्य बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं द्य संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है द्य शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं द्य सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है द्य गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है द्यपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है द्य पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है द्य
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है द्य जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त एनीच दृशत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी द्य
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए द्यजातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट एशुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें द्यराशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें द्यशेष राशि ; बीज द्धतथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है द्य इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट एमंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें द्यशेष राशि; क्षेत्र द्ध तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है द्य बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है एशुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है द्य शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें द्य पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए द्य
सूर्यादि ग्रह नीच एशत्रु आदि राशि नवांश मेंएपाप युक्त दृष्ट एअस्त एत्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है द्य योग कारक ग्रह की पूजा एदान एहवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है द्य फल दीपिका के अनुसार रू.
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः द्य
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै द्यद्य
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है द्य बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप एदान एहवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है द्य पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं द्य हरिवंश पुराण का श्रवण करें द्यसूर्य रत्न माणिक्य धारण करें द्य रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहुएगुड एकेसर एलाल चन्दन एलाल वस्त्र एताम्बाए सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें द्य सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है द्य गायत्री जाप से ए रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन एलाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है द्य विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं द्य
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान एगायत्री का जाप करें द्य श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी एहस्त एश्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप एपुष्प एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें द्यसोमवार को चावल एचीनी एआटाए श्वेत वस्त्र एदूध दही एनमक एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप एशत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें द्यलाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा एचित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें द्य मंगलवार को गुड शक्कर एलाल रंग का वस्त्र और फल एताम्बे का पात्र एसिन्दूर एलाल चन्दन केसर एमसूर की दाल इत्यादि का दान करें द्य
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप एतुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण एविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें द्यहरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषाएज्येष्ठा एरेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य बुधवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें द्य बुधवार को कर्पूरएघीए खांडए एहरे रंग का वस्त्र और फल एकांसे का पात्र एसाबुत मूंग इत्यादि का दान करें द्य तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है द्य
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु एब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु एविशाखा एपूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए पीले पुष्पए हल्दी एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्यपुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं द्य केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें द्यगुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें द्य गुरूवार को घीए हल्दीए चने की दाल एबेसन पपीता एपीत रंग का वस्त्र एस्वर्णए इत्यादि का दान करें द्यफलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं द्य
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ .ब्राह्मण एकिसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान एब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान एश्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी एपूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए श्वेत पुष्पए अक्षत आदि से पूजन कर लें
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं द्यशुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें द्य शुक्रवार को आटा एचावल दूध एदहीए मिश्री एश्वेत चन्दन एइत्रए श्वेत रंग का वस्त्र एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएंएरुद्राभिषेक करें एशनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करेंद्य नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य एअनुराधा एउत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्य
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली ए लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं द्य काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्यशनिवार के नमक रहित व्रत रखें द्य ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएकाले जूते एकाला कम्बल ए काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्यश्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है द्य
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च द्यनमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः द्यद्य
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च द्य नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते द्यद्य
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः द्य नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुतेद्यद्य
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमःद्य नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने द्यद्य
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुतेद्यसूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च द्यद्य
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुतेद्य नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते द्यद्य
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय चद्य नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमःद्यद्य
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे द्यतुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात द्यद्य
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा द्य त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतःद्यद्य
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः द्यद्य
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल एकाले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी द्य
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें एगोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्राएस्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्यरांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्य ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएसतनाजा एनारियल ए रांगे की मछली एनीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्य मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है द्य
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें ए सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें द्य
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें द्य आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी द्य
1ण् संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें द्य केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें द्य १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें द्य
2ण् पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें द्य
3ण् यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ; २३ध्३२द्ध से हवन कराएं द्य
4ण् अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ; ३ध्२०ध्१द्ध से जाप व हवन कराएं द्य
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः द्य
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें द्य तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवनए१००० से तर्पण ए१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं द्य
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें द्य
7ण् संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा एमन्त्र का नित्य जाप करें द्य ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा द्य द्य
8ण्पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ; निर्णयामृत द्ध
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करेंद्यप्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें द्य सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू एघी एशक्कर का भोग लगाएं द्य आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ .आठ बार प्रणाम करें द्य नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें द्य अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें द्य
9ण् पुत्र व्रत ;वराह पुराण द्ध
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें द्य अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं द्य बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें द्य वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता द्य गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं कृकृ
प्रथम मास कृ दृ शुक्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को द्ध
द्वितीय मास कृमंगल ; गुड एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को द्ध
तृतीय मास कृ गुरु ; पीला वस्त्र एहल्दी एस्वर्ण ए पपीता एचने कि दाल ए बेसन व दक्षिणा गुरूवार को द्ध
चतुर्थ मास कृ सूर्य ; गुड ए गेहूं एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा रविवार को द्ध
पंचम मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
षष्ट मास कृ दृ.शनि ; काले तिल एकाले उडद एतेल एलोहा एकाला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को द्ध
सप्तम मास कृदृ बुध ; हरा वस्त्र एमूंग एकांसे का पात्र एहरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को द्ध
अष्टम मास कृ. गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में द्ययदि पता न हो तो अन्न एवस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें द्य
नवं मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए द्यपंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह एपंचमेश और उसका नवांशेश एपंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रहएपंचमेश से युक्त ग्रह एसप्तमान्शेष एबृहस्पति एलग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं द्य
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए द्य गुरु गोचर वश लग्न एपंचम भाव एपंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है द्य लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें द्य प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है द्य गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति ए दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है द्य पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है द्य बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण ;पंचम एनवम स्थान द्ध में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है द्यलग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है द्य लग्नेश एसप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है द्य
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ए2 ए4 ए5 ए7 ए9 ए1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ए6 10 ए11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री .पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है द्य आधान काल में गुरु लग्न एपंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है द्य
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है द्य रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है द्यरजस्वला होने की तिथि से 4ए6ए8ए10ए12ए14ए16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5ए7ए9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती हैद्य याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य एहस्तएपुनर्वसु एअभिजितएअनुराधा एपूर्वा फाल्गुनी ए पूर्वाषाढ़एपूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान पुत्र कारक होता है द्य कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए द्य ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात द्य
श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा

जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार


जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं वंश परंपरा की वृद्धि के लिए  परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैं महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैं
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है

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बाँझपन कोई रोग नहीं है

बाँझपन कोई रोग नहीं है जिससे कोई शारीरिक कष्ट होवे। किन्तु यह एक आवश्यकता है। जो शारीरिक संरचना में किसी ग्रंथि विशेष या उस विशेष ग्रंथि के रस विशेष के अविकसित होने के कारण उत्पन्न होती है। इसके ज्योतिषीय कारक निम्न प्रकार बताये गए हैं।
यदि कुंडली में मंगल, सूर्य एवं शुक्र तीनो निर्बल हों, तथा नवमांश कुंडली में इन तीनो में कोई दो नीच राशिगत हो, तो संतान हीनता होती है।
यदि ग्यारहवें भाव में शनि एवं राहु मेष राशि में हो तथा सूर्य नीचस्थ हो तो जटिल एवं असाध्य संतान हीनता होती है।
यदि ग्यारहवें भाव में तुला का सूर्य मंगल के साथ हो तथा वक्री शनि मिथुन राशिगत हो तो संतान हीनता होती है।
यदि पांचवें शुक्र एवं उच्च का ही शनि क्यों न हो, लग्न में नीचस्थ मंगल हो तो असाध्य संतानहीनता का योग बनता है।
यदि लग्नेश, पंचमेश एवं सप्तमेश की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो अवश्य संतानहीनता होती है।
यदि दशमांश कुंडली में दशमेश लग्नेश या पंचमेश के साथ छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो तो संतानहीनता होती है।
यदि पंचमेश-अष्टमेश का स्थान परिवर्तन हो तथा ग्यारहवें भाव में चन्द्र-राहु की युति हो तो असाध्य संतानहीनता होती है।
यदि पंचमेश-व्ययेश का स्थान परिवर्तन हो, तथा नवमांश कुंडली में ग्रहण योग बना हो तो संतानहीनता होती है।
गुरु उच्च का होकर लग्न में ही क्यों न हो, यदि नीच चन्द्रमा के साथ राहु तथा नीच का शनि कुंडली में हो तो संतानहीनता होती है।
अभी मैं इसके निवारण का एक उदाहरण ग्रहों के प्रतिनिधि खनिज एवं वनस्पतियों के आधार पर प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सबसे पहले मैं संतानहीनता के उपरोक्त प्रथम उदाहरण को लेता हूँ। इसमें मंगल, सूर्य एवं शुक्र तीन ग्रह हैं। इसमें मंगल का प्रतिनिधि खनिज ताम्बा, अभ्रक एवं स्वर्ण सिन्दूर है। सूर्य का प्रतिनिधि खनिज स्वर्ण, कस्तूरी एवं रस सिन्दूर है। शुक्र का प्रतिनिधि खनिज कान्त लौह, बंग, प्रवाल एवं कपूर है। सूर्य की प्रतिनिधि वनस्पति जावित्री, मंगल की जायफल एवं शुक्र की कपूरबेल है।
अभी हम देखते है कि किस ग्रह की महादशा चल रही है। महादशा निर्धारण के लिए पाराशारोक्त विधि अपनानी चाहिये। अर्थात जिसके लिये विंशोत्तरी लागू हो या अष्टोत्तरी या षोडशोत्तरी, उसके अनुसार दशा निर्धारित कर लें। जिस ग्रह की महादशा होवे, उस ग्रह का जन्म कालिक अंश तथा पंचमेश के जन्मकालिक अंश में कितने अंश का अंतर है। जितना अंतर हो उसका कला बना लें। उदाहरण के लिए जैसे मंगल की महादशा चल रही हो। जन्म के समय मंगल सिंह में 23/12/23 पर है। तथा पंचमेश गुरु जन्म के समय धनु में 13/45/26 पर है। मंगल का अंश लगभग 10 ज्यादा है। अब 10 अंश का 600 कला हुआ। इसमें वर्तमान आयु जो पूरी हो चुकी हो जैसे चालीस साल पांच महीने तो चालीस लेगें, इस चालीस से 600 में भाग देगें। तो भागफल डेढ़ (1.5) आयेगा। इस प्रकार ऊपर के बताये पदार्थ प्रत्येक डेढ़-डेढ़ तोला लेकर, भष्म बनाकर एक में मिला लेगें। ध्यान रहे एक गृह के अनेक प्रतिनिधि खनिज एवं वनस्पति हो सकते है। किन्तु लेना प्रत्येक ग्रह का कोई तीन प्रतिनिधि खनिज या वनस्पति ही है। इस प्रकार उपरोक्त उदाहरण में पूरा भष्म साढ़े तेरह तोला होगा। फिर हम देखते हैं कि उपरोक्त उदाहरण में कौन सा ग्रह नीच का है। हम यहाँ मंगल को मान लेते हैं, मंगल नीच का है। मंगल की नीच राशि कर्क है। इसका स्वामी चन्द्रमा है। चन्द्रमा का पदार्थ (यह प्रतिनिधि द्रव रूप में होना चाहिए) जल है। अत: ऊपर वाले भष्म में से एक-एक रत्ती भष्म को जल के साथ दोनों संध्या अर्थात प्रात:-सायं ग्रहण करें। (देखें आचार्य मांडव्य कृत ग्रहभैषज्य)
हिदू मतावलंबियों को यह औषधि लेने से पूर्व निम्न मंत्र को पढऩे का विधान है-
नम: परमात्मने परब्रह्म मम शरीरम पाहि पाहि कुरु कुरु स्वाहा।
यद्यपि उपरोक्त मन्त्र में प्रत्यक्ष कुछ व्याकरण संबंधी अशुद्धियाँ दिखाई दे रही है। किन्तु शास्त्र विधान के अनुसार इन्हें शुद्ध करने का आदेश नहीं है। गैर हिन्दू मतावलंबी के सम्बन्ध में तद्धर्म के अनुसार ईश स्मरण का विधान बताया गया है।

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व्यावसायिक प्रतिष्ठान


पंचतत्वों से परिपूर्ण आपका व्यावसायिक प्रतिष्ठान आपके मान सम्मान में वृद्धि करने वाला, आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने वाला एवं उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने में मदद करने वाला होता है। अक्सर व्यवसायी ऊंची पगड़ी एवं किराया देकर दुकान लेता है और उस पर जी जान से श्रम और पुंजी लगाने के बावजूद दुकान उतना फायदा नही देती जितना वह चाहता है अथवा कभी भी वह नुकसान देना भी शुरु कर देती है। एक कुशल व्यवसायी को जब ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियां झेलनी पड़ती है तो वह अपने भाग्य को कोसा है जबकि उसने स्वयं दुकान में वास्तु संबंधी भूले की है।
दुकान का रंग, बैठने की स्थ्तिि एवं तिजोरी के स्थान जैसी गौण लगने वाली चीज़ों को वास्तु अनुसार अपना कर दुकान की बिक्री को बहुत शीघ्र बढ़ाया जा सकता है।यहां कुछ ऐसे ही अनुभूत वास्तु सुत्रों का वर्णन किया गया है जिनके प्रयोग से दुकानदार अपने व्यवसाय को सफलतापूर्वक संचालित कर सकता है।
दुकान सिंह मुंखी हो। दुकान की लम्बाई चैड़ाई से अधिक से अधिक दुगुनी हो सकती है, इससे अधिक लम्बी नही होनी चाहिए। टेढ़ी-मेढ़ी दुकाने नुकसान दायक होती है।
दुकान उत्तराभिमुखी एवं पूर्वाभिमुखी उत्तम मानी गई है। पश्चिम मुखी दुकान में बिक्री एवं मंदी का दौर चलता रहता है। दक्षिणाभिमुखी दुकाने केवल उन्ही व्यावसायियों के लिए ठीक है जिनकी कुण्डली में राहु कारक है। कुण्डली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय चतुर्थ, पंचम, षष्टम, अष्टम, नवम और एकादश भाव को राहू कारक माना गया है। राशियों के अन्र्गत मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या वृश्चिक और मीन राशि के राहू को कारक समझना चाहिए।
दुकान के मुख्य द्वार पर मार्ग आकर समाप्त नही होना चाहिए। अगर मार्ग दुकान के मुख्य द्वार को छोड़कर अन्य हिस्सों पर समाप्त होता है तो ये प्रतिष्ठान के लिए बुरा नही है।
दुकान के उत्तर में वित्त संबंधी कार्यालय, वायव्य में या रिक्त स्थान, पश्चिम में बड़ी इमारतें, आग्नेय में बिजली का खम्भा, ट्रान्सफार्मर या भट्टी एवं इशान दिशा में प्याऊ या मन्दिर हो तो इसके फायदे भी आपके प्रतिष्ठान को मिलेंगे।
दुकान में तहखाना (बेसमेंट) नही हो तो अच्छा है। तहखाना बनाना आवश्यक हो तो ईशान कोण में बनाये एवं इसमेंसफेद रंग करें।
दुकान के दो पार्ट्स (खण्ड) किये जाने है तो आगे का भाग बड़ा होगा एवं पिछे का छोटा।
दुकान में दुछती का निर्माण दक्षिण, पश्चिम अथवा नैऋत्य में करें।
दुकान के फर्श एवं छत की ढाल उत्तर, पूर्व अथवा ईशान दिशा में रखनी चाहिए।
द्वार के ऊपर विज्ञापन बोर्ड अथवा ग्राहकों को आकर्षित करने वाली सामग्री इस प्रकार से लगाए कि आपके द्वार का कोई भी भाग उस सामग्री से छिपे नही। द्वार वेध होने से दुकान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
जिन दुकानों के मुख्य द्वार उत्तर दिशा में होते है वे व्यावसायिक दृष्टि से अच्छे चलते है। पूर्व दिशा में खुलने वाली दुकान, पुस्तक भण्डार, कागज, विद्या एवं कपड़े के लिए उत्तम मानी गई है। वाहनों के शो-रुम पूर्व में वायव्य दिशा मुख वाली दुकानों में अच्छे चलते देखे गये है। दुकान का मुख्यद्वार पूर्व के आग्नेय कोण में हो तो वह होटल ढाबे, मिठाई की दुकान, बिजली के सामान के लिए श्रेष्ठ है। सर्राफा, सोना-चांदी की दुकान एवं महिलाओं से सम्बन्धित वस्तुओं के लिए दक्षिण या आग्नेय कोण में द्वार वाली दुकानें अच्छी चलती देखी गई है। मोटर पाटर््स के लिए दक्षिणाभिमुखी दुकान शुभ कारक होती है।
दुकान को नैऋत्य कोण में इस प्रकार बैठना चाहिए कि उसका मुख उत्तर, पूर्व या ईशान दिशा में रहें।
दुकान के दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में ज्यादा एवं भारी सामान रखें। पूर्व व उत्तर दिशा खुली जगह रखने का प्रयास करें। जल्दी बिक्री का सामान वायव्य कोण में रखें। फायदा निश्चित रुप से होगा।
दुकान के ईशान दिशा में भगवान का आला बनायें। पूर्व या पश्चिम में भगवान का मुंह रखें। देवी की प्रतिमा को उत्तराभिमुखी नही रखनी चाहिए। हनुमानजी की प्रतिमा का मुंख नैऋत्य दिशा में सर्वोत्तम है। पानी की मटकी भी यहां रखी जा सकती है।
दुकान के दरवाजे के बाहर और अन्दर गणेश जी का स्टिकर लगाये। अन्दर वाले गणेश जी की दृष्टि दुकान मालिक पर एवं दूसरे की ग्राहक पर पड़नी चाहिए।
दुकान का फर्नीचर लकड़ी का बना होना चाहिए। आम एवं तेन्दूक की लकड़ी अथवा बहुत ज्यादा पुरानी लकड़ी का प्रयोग नही करें। अक्सर दुकानदार दुकान का सुन्दरता बढ़ानें के लिए गोल या तिरछा काउन्टर बनाते है, जो कि गलत है। काउन्टर हमेशा समकोण में होना चाहिए।
कैश काउन्टर दक्षिण की दीवार से सटा होना चाहिए। वह उत्तर दिशा की तरफ खुलना चाहिए अथवा कैश काउन्टर को पश्चिम की ओर इस प्रकार स्थापित करें कि पूर्व की
तरफ खुलें। कैश काउन्टर या तिजोरी कभी भी दक्षिण दिशा की ओर नही खुलनी चाहिए।
दुकान के मुख्य द्वार के बाहर दर्पण का प्रयोग वर्जित है।
दुकान के ग्राहको को बैठने के लिए गद्दा लगा हो तो उस पर सफेद रंग की चादर (छलनी) ही प्रयोग करें।
सफेद, गुलाबी, हल्का हरा, हल्का नीला, रंग प्रायः सभी किस्मों की दुकानों में किया जा सकता है।

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कैसे मिलेगा भवन सुख




व्यक्ति को स्वयं के मकान या भवन का सुख तभी मिल सकता है, जब जन्मकुण्डली में भवन सुख का योग बनता हो या ग्रह स्थिति भवन सुख के अनुकूल हो। कुण्डली में निम्नलिखित ग्रह-स्थिति हो,तो व्यक्ति को पूर्ण रुप से भवन सुख मिलता है -
1. व्यक्ति की कुण्डली का चतुर्थ भाव भूमि और भवन से संबंध रखता है। भूमि का कारक ग्रह मंगल को माना गया है, अतः जन्मकुण्डली में भूमि कारक ग्रह मंगल की स्थिति सुदृढ़ हो और चतुर्थ भाव जिसे सुख स्थान भी कहते, उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि, स्थिति हो तथा इसके साथ लग्नेष भी हो।
2. लग्नेष चतुर्थ भाव में हो और चतुर्थेष लग्न में हो या किसी चतुर्थेष किसी शुभ ग्रह के साथ युति करके केन्द्र अथवा त्रिकोण भाव में हो, तो उत्तम गृह-योग बनता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं के पुरुषार्थ और पराक्रम से सुख-सुविधाओं से युक्त मकान बनता है।
3. चतुर्थ भाव में मंगल और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव में कोई ग्रह अपनी उच्च राषि में स्थित हो, चतुर्थेष केन्द्र या त्रिकोण भाव में हो, तो ऐसा व्यक्ति बड़े बंगले या महल का स्वामी होता है।
4. चतुर्थेष तथा लग्नेष दोनों चतुर्थ भाव में स्थित हो, तो अकस्मात् गृह प्राप्ति योग बनता है। इस प्रकार का घर प्रायः दूसरों के द्वारा बनाया हुआ होता है।
5. यदि द्वितीयेष चतुर्थ में और चतुर्थेष द्वितीय भाव में स्थित हो, तो उत्तम भवन बनने के योग होते है।
6. यदि लग्नेष चतुर्थ में स्थित हो और चतुर्थेष लग्न में स्थित हो, तो जातक को भूमि सुख और मकान बनने का सुख प्राप्त होता है।
7. लाभेष, भाग्येष, धनेष, लग्नेष की दषा-अन्तर्दषा में चतुर्थेष का प्रत्यन्तर हो, तो उस समय मकान बनने का योग होता है।
8. चन्द्रमा यदि द्वितीय भाव में, गुरु चतुर्थ भाव में स्थित हो एवं शनि, राहु, केतु, भौम शुभ हो, तो भूमि, मकान तथा वाहन योग बनता है।
9. द्वितीय भाव में मंगल की स्थिति मध्यायु में मकान का योग बनाती है।
10. कुछ ऐसे ग्रह योग होते है, जिनमें ग्रह नाष योग बनता है, जैसे चतुर्थेष द्वादष भावस्थ हो तथा पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो अथवा चतुर्थेष और नवमेष द्वादष भाव में बैठे हो, तो व्यक्ति को अपनी स्वयं की सम्पत्ति से और मकान से हाथ धोना पड़ता है। ऐसी दषा में चतुर्थेष को बलवान करना चाहिए साथ ही उसका जप करना चाहिए और ऋण मोचन मंगल स्त्रोत का पाठ भी नित्य करना चाहिए।

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कबाड़ घर के नियम


भवन में अनेक अनुपयोगी अथवा यदा-कदा प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को रखने के लिए कबाड़घर बनाया जाता है। घर बड़ा है तो स्वतः ही एक कमरा अनुप्रयुक्त सामग्री से भर दिया जाता है। कुछ लोग सामान को इकट्ठा करते रहते है चाहे वो काम में आए अथवा नही। भविष्य में काम लाने की आषा में ऐसे सामानों का ढेर लग जाता है। ऐसे सामानों को नैऋत्य कोण के कमरे में रखें। कभी भी कबाड़घर आग्नेय, ईषान अथवा दक्षिण दिषा में नही होना चाहिए। विषेष कर ईषान कोण को त्याग ही देना सही होगा। इसकी लम्बाई और चैड़ाई न्यूनतम हो और इसका द्वार भी अन्य द्वारों से छोटा रखें।
कबाड़घर को किसी व्यक्ति को रहने, सोने अथवा किराए पर नही दिया जाना चाहिए। गृहस्वामी ऐसे व्यक्ति से सदैव परेषान रहेगा।
कबाड़घर के नीचे तहखाना नही हो और न ही इसकी दीवारों में सीलन आये। पानी का रखना या देवी-देवताओं की तस्वीर भी इसमें नही रखनी चाहिए। इसके द्वार के समीप कोई गप-षप बातचीत आदि नही करनी चाहिए न ही जोर से ठहाका लगाएं और न ही गुस्से में अथवा ऊंची आवाज में बात करें। यह घर की खुषियों के लिए हानिकारक है।

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बैठक कक्ष


फ्लैट की आग्नेय, नैऋत्य अथवा दक्षिण दिषा को छोड़कर बैठक कक्ष को यथासंभव ईषान, पूर्व, उत्तर अथवा वायव्य दिषा में बनाना हितकर रहता है।
सोफा-सेट, दीवान, चारपाईयां आदि दक्षिण या पष्चिमी दीवारों के सहारे व्यवस्थित करनी चाहिए। बैठक कक्ष का ईषान कोना सदैव खाली रखना चाहिए। इसको पूर्णतया खाली रखते हुए अधिक से अधिक मिट्टी के सजावटी फूलदान रखने चाहिए जिनमें पानी भरा रहें। इन फूलदानों में मनीप्लांट रखना श्रेयस्कर होता है। सुन्दर फूलदान कमरे के वायव्य, उत्तर या पूर्व दिषा में भी रखें जा सकते है।
फ्लैट के किसी भी कमरे में अथवा कमरे के बाहर गमले में कैक्टस नही लगाना चाहिए। इसकी अपेक्षा गुलाब, क्रोटन, पाम, मनीप्लांट या फर्न आदि को बड़े तथा सुन्दर फुलदानों में लगाना अच्छा रहता है। बैठक कक्ष के ईषान, उत्तर या पूर्व दिषा में लटकाने वाले गमले नही लगाने चाहिए। ये कमरे के पष्चिम दिषा में लगाए जा सकते है। यदि टी.वी. को कमरे के वायव्य कोने में लगाया गया तो वह सदैव खुला रहेगा। शो-केस, धातु निर्मित दिखावटी सामान, जानवरों के माॅडल (आकृतिया) आदि दक्षिण या पष्चिम दिषा में रखने चाहिए। तिपाई चैकोर अथवा आयताकार होनी चाहिए यह गोल अथवा कटे हुए कोनो वाली नही होनी चाहिए।
यदि बैठक कक्ष में पलंग (बिछौना) रखना हो तो इसे दक्षिण या पष्चिम में रखना चाहिए। शयन के समय पांव दक्षिण की ओर कभी नही होने चाहिए।


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रसोई घर




रसोई का घर में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका संबंध हमारे पोषण तथा स्वास्थ्य से है परन्तु यदि रसोई घर वास्तु के अनुसार बना हो तो उसकी स्थिति का प्रभाव हमारे जीवन, पोषण व स्वास्थ्य पर बहुत लाभप्रद पड़ता है। अग्निदेव दक्षिण-पूर्व के कारक है। इसलिए यदि घर के दक्षिण-पूर्वी कोने को रसोई घर के लिए प्रयोग किया जाए तो यह सबसे सर्वोत्तम दिषा है और अतिषुभकारी प्रभाव डालती है।
यदि दक्षिण-पूर्व में रसोई घर के लिए स्थान उपलब्ध न हो तो उत्तर-पष्चिम या पष्चिम दिषा को चुनना चाहिए। रसोई को चूल्हे के लिए सर्वोत्तम स्थान पूर्व में दीवार से थोड़ा हटकर होना चाहिए। चूल्हा रसोई घर के प्रवेष द्वार के बिलकुल सामने न रखा जाए। खाना पकाते समय ग ृहस्वामिनी का मुख पूर्व में होना चाहिए जिससे काम करते हुए प्रसन्नता और ताजगी का आभास होता रहे।
रसोई घर से पानी के निकास की दिषा उत्तर-पूर्व होनी चाहिए। रसोई का द्वार पूर्व, उत्तर या वायव्य कोण के पष्चिम दिषा में रखना लाभकारी होगा। सामान रखने के लिए उपयुक्त स्थान दक्षिण या पष्चिम है जिससे यह स्थान भारी होने से शुभ फल देता है।
रसोई घर बनाते समय कुछ विषेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसका निर्माण उत्तर-पूवें में न किया जाए क्योंकि इस दिषा में रसोई बनाने से मानसिक तथा नुकसान की घटनाओं में वृध्दि होती है। मानसिक तनाव के चलते दुर्घटना या नुकसान का भय बना रहता है।
दक्षिण-पष्चिम दिषा में भी रसोई का निर्माण नही करना चाहिए क्योंकि इससे पारिवारिक कलह और बीमारियों को बढ़ावा मिलता है और इसके साथ-साथ धन व्यर्थ कामों पर खर्च होता है। खिड़की या रोषनदान की व्यवस्था पूर्व या उत्तर दिषा में होनी चाहिए। रसोई में माइक्रोवेव ओवन, मिक्सर ग्राइंडर आदि को दक्षिण दिषा में रखना चाहिए। निकासी पंखे की व्यवस्था पूर्व-उत्तर या उत्तर-पष्चिम में होनी चाहिए। यदि फ्रिज को रसोई में रखना हो तो इसे उत्तर-पूर्व में रखें।

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शयन मुद्राओं से जाने व्यक्तित्व



प्रत्येक का निजी कक्ष उसका शयनकक्ष होता है और ज्यादातर समय शयनकक्ष में बीतता है। सभी व्यक्तिाओं का साने का ढंग भी अलग-अलग होता है। वास्तु अनुरुप सोया व्यक्ति गहरी नींद का आनन्द भोगता है वही गलत तरीके से सोने वाला कई प्रकार की मानसिक परेषानियों को झेलता है। मात्र सोने के ढंग को सही करके व्यक्ति अपने स्वभाव को बदल सकता है। शयन मुद्राओं की विविधता व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य को दर्षाती है-
1. पश्चिम की तरफ के नैऋत्य कोने में घर में स्वामी का शयनकक्ष होना चाहिए। घर के एक से अधिक तल्ले (मंजिलें) है तो घर के स्वामी या बड़े लड़के ऊपर वाली मंजिल पर पष्चिम की तरह के नैऋत्य कोने में अपना शयनकक्ष रखना चाहिए। नव दम्पत्तियों का शयनकक्ष उत्तर दिषा मध्य से थोड़ा वायव्य कोण की ओर होना चाहिए। इससे दम्पत्ति में प्यार की भावना बढे़गी और कभी भी तलाक जैसी नौबत नही आएगी। नव दम्पत्ति को पूर्वी दिषा एवं आग्नेय कोण में शयन नही करना चाहिए क्योंकि आग्नेय कोण में शयन करने से परस्पर विवाद बढ़ते है। वायव्य कोण भी नव दम्पत्तियों के लिए वर्जित है। पूर्वी दिषा वाले शयनकक्ष में बच्चे सो सकते है। घर की अविवाहित लड़िकयों एवं मेहमानों को हमेषा वायव्य कोण में सुलाए क्योंकि वायव्य कोण में उच्चाटन की प्रकृति होती है। लड़की अत्याधिक चंचल स्वभाव की होकर मां-बाप के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
2. सदा पूर्व या दक्षिण दिषा की तरफ सिर करके सोना चाहिए। पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या प्राप्त होती है। दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृध्दि होती है। पष्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता रहती है तथा उत्तर की तरफ सिर करके सोने से हानि तथा आयु क्षीण होती है।
3. दक्षिण की ओर सिराहना ऊंचा और ढाल उत्तर दिषा की ओर हो। बैड दीवार से सटा हुआ न हो।
4. दांई करवट सोने वाला व्यक्ति पित्त संबंधी बिमारियों से पीडि़त रहता है।
5. सदैव बांई करवट लेकर सोना चाहिए। कहावत भी है वाम करवट सोए, काल बैठ के रोए।
6. अपने हाथों को छाती पर रखकर सोने वाले व्यक्ति नींद में घबराहट महसूस करते है, डरावने स्वप्न देखते है और वे अनहोनी की आषंका से चिन्तित रहते है।
7. सोते समय जो व्यक्ति अपने मुंह को हाथों से ढक लें उनमें आत्मविष्वास की कमी झलकती है।
8. जो व्यक्ति हाथ-पैर सिकोड़कर, पैरों को पेट से मिलाकर सोता है उसमें अविष्वास की भावना पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति डरपोक और शारीरिक दृष्टि से कमजोर होते है।
9. आसमान की ओर मुंह करके सोने वाली महिलाएं प्रायः स्वार्थी प्रवृत्ति की पाई जाती है। ऐसी महिलाएं ह्रदय रोग से ग्रसित होती है।
10. तकिए को बाहों में लेकर या बगल में तकिया रखकर उसपर हाथ रखकर सोने वाले व्यक्तियों में आत्मसम्मान की नितान्त अभाव व असुरक्षा की भावना होती है।
11. ऐसे व्यक्ति जो सोते समय सिर से पांव तक अपने आप को किसी चादर से ढक लेते है। वे अत्यन्त संकोची प्रवृत्ति के होते है।
12. कुछ महिलाएं या पुरुष बहुत कम या निर्वस्त्र सोना पसन्द करते है। ऐसे पुरुष स्वभाव से रसिक, कल्पनायषील व भावुक होते है। शारीरिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं स्वस्थ तथा निडरता इनका विषेष गुण होता है।
13. मुंह खुला रखकर सोने वाला व्यक्ति परिश्रमी होता है। शारीरिक दृष्टि से सामान्य किन्तु मानसिक दृष्टि से तनाव ग्रस्त होते है।
14. आधी आंखे खोलकर सोने वाले व्यक्ति भाग्यवान होते है। उनमें सहयोग की भावना होती है किन्तु कुछ अपवाद स्वरुप लालची प्रवृत्ति के भी होते है।
15. सोते समय बड़बड़ाने वाले व्यक्ति मानसिक तनाव का षिकार होते है। ऐसे व्यक्ति के पेट में किड़े होने की सम्भावना ज्यादा होती है।
16. सोते समय पैर एवं हाथों को इधर-उधर पटकने वाले व्यक्ति असुरक्षा की भावना से घिरे होते है।
17. पांव के नीचे तकिया लगाकर सोने वाले कल्पनाषील होते है। वे यथार्थता से कोसो दूर होते है।
18. सिर के नीचे मोटा तकिया लगाकर सोने वाला व्यक्ति पीठ दर्द से पीडि़त रहता है।
19. ऐसा व्यक्ति जो अन्धेरे में सोना पसन्द करता है, वह डरपोक होता है।
20. अधोमुख होकर, नग्न होकर, दूसरे की शय्या पर, टूटी हुई खाट पर तथा जनषून्य घर पर नही सोना चाहिए। देवस्थान पर भी सोना वर्जित है।
21. भीगे पैर नही सोना चाहिए। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी प्राप्त होती है।
22. रात्रि में पगड़ी बांधकर नही सोना चाहिए। सिर को नीचे करके, झूठे मुंह सोना भी वर्जित है।
23. स्वस्थ मनूष्य को आयु रक्षा के लिए ब्रम्ह मुहूर्त में उठना चाहिए। दिन में सूर्योदय के बाद सोना आयु को क्षीण करने वाला है। प्रातःकाल और रात्रि के आरम्भ में भी नही सोना चाहिए।
24. पलंग के ठिक सामने दर्पण नही होना चाहिए।
25. जिन व्यक्तियों को कमर अथवा रीढ़ की हड्डी में दर्द हो उन्हें सफेद चैक का एक टुकड़ा अपने पलंग की दरी के नीचे रखकर सोना चाहिए। इससे शीघ्र ही दर्द से छुटकारा मिल जाता है।
26. यदि अत्यधिक दर्द हो रहा हो तो हल्दी की पांच गांठे रखकर सोये।
27. यदि कोई गुप्त शत्रु परेषान कर रहा हो तो चांदी के पांच सर्प बनाकर उनकी आंखों में सुरमा लगाकर अपने पैरों के नीचे दबाकर सो जाने से शत्रु परेषान नही करेगा।
28. शत्रु से कष्ट हो रहा हो तो चांदी की मछली बनाकर अपने तकिए के नीचे रखकर सोए।
29. रात्रि में बुरे सपने आते हो तो अपने सिरहाने तांबे के पात्र में गंगाजल भरकर रख लेना चाहिए बुरे सपने नही आएंगे।
30. हार्ट अटैक के समय तुरन्त आग्नेय दिषा में लेट जाना चाहिए यानि सिर आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) दिषा में होना चाहिए।
31. हल्के प्रकाष एवं चांदनी रात में सोने वाला व्यक्ति व्यावहारिक एवं आनन्दित रहता है।

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कैसे हो आपके लाडले-लाडली की शादी


भारत के हर समुदाय में विवाह योग्य युवक युवतीयों को मनपसन्द साथी मिलना एक बड़ी समस्या है। इस कारण बहुत से व्यक्तियों के विवाह योग्य उम्र हो जाने पर भी विवाह नही हो पाता है। मां-बाप अपने होनहार- पढ़े लिखे बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी के लिए परेषान रहते है। कभी-कभी विवाह की बात बनते-बनते बिगड़ जाती है और कई बार बन जाने के बाद बिगड़ जाती है। इसका कारण किसी को भी समझ नही आता। इस समस्या में अन्य कारणों के अलावा एक महत्वपूर्ण कारण होता है, उसे भवन का दोषपूर्ण वास्तु जहां वे निवास करते है।
ईषान दिषा में वास्तु संबंधी दोष होने पर जैसे ईषान दिषा की ओर चारदीवारी का कटा, घटा या गोल होना अत्यन्त अषुभ है। जिसका प्रभाव वहा रहने वाली विवाह योग्य सन्तान पर भी पड़ता है।
निवास स्थान के ईषान, उत्तर या पूर्व में भूमिगत पानी की टंकी, कुआं या बोर होना बहुत शुभ होता है। इससे सन्तान की तरक्की व खुषहाली देखने का सुख मिलता है, उचित समय पर विवाह होता है व वंष वृध्दि होती है। उपरोक्त दिषाओ के अलावा अन्य किसी भी दिषा में हो तो इसके विपरीत परिणाम देखने को मिलते है।
यदि मुख्य द्वार के सामने कोई बाधा होती है तो उसे द्वार वेध कहा जाता है, जैसे बिजली का खम्बा, स्तम्भ, वृक्ष खूली नाली या सामने के भवन का धारदार कोना इत्यादि। यह स्थिति अषुभ होती है। इससे प्रेम या शादी में काफी रुकावाट आती है।
विवाह योग्य बच्चों को हमेषा डबल बेड पलंग पर सुलाना चाहिए। चाहे वे अकेले ही क्यों ना सोये। इससे शीघ्र जीवन साथी मिलने की संभावना बढ़ती है। ध्यान रहे कि पलंग के ऊपर किसी भी प्रकार का बीम या टांड होना अषुभ है।
यदि आपकी लड़की का विवाह नही हो पा रहा हो तो उसे अपने घर के वायव्य कोण में सुलाएं। उसका बिस्तर उसके कमरे में पष्चिम दीवार से लगा हुआ होना चाहिए जो तीनों ओर से उपयोग में लिया जा सके। वायव्य कोण में भूमिगत पानी की टंकी, बोर, कुआं, सेप्टिक टैंक या किसी भी प्रकार से नीचा होने पर कन्या सन्तान घर में कम और बाहर ज्यादा रहती है व कई बार अपनी मर्जी से बिना बताये भाग कर विवाह कर लेती है।
फेंगषूई के अनुसार विवाह योग्य बच्चे के शयनकक्ष के प्रवेषद्वार के सामने वाली दीवार का दायां कोना प्यार का होता है। यह कोना दबा या कटा होने से मनचाहा प्यार नही मिल पाता। ऐसे कटे हुए स्थान पर कमरे के अन्दर एक दर्पण न बहुत छोटा न बड़ा पर्याप्त ऊंचाई पर इस प्रकार लगाना चाहिए जिसमें की व्यक्ति का पूरा चेहरा दिखाई दें, ताकि वह अपने मनचाहे प्यार को पा सके।
अपने शयनकक्ष में विवाह योग्य बच्चों को पियोनिया के फूल रखने चाहिए लेकिन हरे पेड़-पौधे न रखें। व्यवसाय से संबंधित कोई भी वस्तु शयनकक्ष में न रखें।
लड़की के शयनकक्ष में चन्द्रमा का चित्र या कोई शो पीस हो तो लगा दें। उसके शयनकक्ष में क्रिसमस ट्री लगा दें। इसे उत्तर की ओर रखें। पूर्णिमा की रात्रि को एक बाल्टी पानी छत में खुला रख छोड़ दें। प्रातः इस जल से स्नान करवा दें। ऐसा सात पूर्णिमा करें।

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स्वभाव


दसम भाव कर्म स्थान होता है। जिसका मुख्य रुप से यह अर्थ होता है कि जातक जीवन में क्या करेगाा। किसी व्यक्ति के अस्तित्व का महत्वपूर्ण पहलू उसका क्रियाकलाप होता है और भले ही वह सांसारिक या आध्यात्मिक हो, ये चीजे 10 वें भाव के भीतर आती है। सन्यास योग भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस मामले में जातक अपने में या अपने आसपास दैवी षक्ति देखने के लिए अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है।
नीचे कुछ योग दिये जाते है जिनसे 10 वे भाव के महत्व को दर्षाया गया है।
यदि 10 वे भाव में बृहस्पति, बुध, सूर्य और शनि पीडित हो तो वो व्यक्ति दुराचरण में फंस जाता है। यदि यहां पर चन्द्रमा पीडित हो तो जातक जुआरी और व्यवहार से प्रचण्ड होता है। यदि दसमाधिपति उच्च का हो किन्तु 6,8 या 12 वें भाव में स्थित हो तो वह जो भी अच्छा काम आरंभ करेगा वह पूरा नही होगा। यदि 9 या 10 वें भाव में शुभ ग्रह स्थित हो और उनके अधिपति तथा बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो तो जातक परम्परा और नैतिकता के अनुरुप उच्च कर्म करने वाला उत्तम व्यक्ति होगा। यदि 5 व 10 वें भावों में ग्रह और लग्नाधिपति, 9 और 10 वां भाव सादबल में बली हो तो जातक धर्मग्रन्थों और वेद शास्त्र का विद्वान होगा। दीक्षा के परिणाम स्वरुप वह अन्तज्र्ञानी होगा।
यदि 10 वें भाव में तीन बली ग्रह अपनी राषि, उच्च या शुभ वर्ग में हो और दसमाधिपति भी बली हो तो जातक सन्यासी होगा। परन्तु यदि दसमाधिपति निर्बल हो और सप्तम भाव में हो तो जातक बुरे आचरण का होगा। यदि 10 वें भाव में द्वितीयेष और सप्तेष दोनों ग्रह हो तो जातक व्यसनी होगा। यदि केन्द्र या त्रिकोण में दसम भाव सहित पांच ग्रह विघमान हो तो जातक महान अध्यात्म शक्ति वाला साधु होगा जो जीवन मुक्त हो जाएगा। यदि 10 वें भाव में चार ग्रह हो तो जातक वैरागी होता है। यदि इन दोनो मामलों में एक ग्रह सूर्य हो और दबा हुआ हो तो पवित्र और आध्यात्मिक होते हुए जातक विष्व में विख्यात नही होगा।
यदि शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा यदि शनि व मंगल के नवांष में चन्द्रमा हो और शनि से दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है और संसार में ख्याति प्राप्त करता है। यदि लग्नाधिपति निर्बल हो और ग्रहों की दृष्टि से मुक्त हो किन्तु वह स्वयं शनि निर्बल लग्नाधिपति पर दृष्टि डाल रहा हो तब भी जातक सन्यासी होगा। यदि शनि या लग्नाधिपति की दृष्टि चन्द्र राषि पर हो तो जातक धार्मिक संस्था का सदस्य बनता है यदि चन्द्रमा मंगल की राषि में पडा हो और शनि से दृष्ट हो तो यह सन्यासी योग होता है।

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सरस्वती स्तोत्र –

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रान्विता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ।।1।।
आशासु राशीभवदंगवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देsरविन्दासनसुन्दरि त्वाम ।।2।।
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात ।।3।।
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ।।4।।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ।।5।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम ।।6।।
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेsखिलमनोरथदे महार्हे, विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम ।।7।।
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे, श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये, विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम ।।8।।
मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता, ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण, भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ।।9।।
मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये, मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि:, शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम ।।10।।
ब्रह्मा जगत सृजति पालयतीन्दिरेश:, शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै: ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे, न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षा: ।।11।।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: ।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति ।।12।।
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: ।
वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्य: एव च ।।13।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोsस्तु ते ।।14।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।15।।

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लक्ष्मी प्राप्ति के लिए करें अष्ट लक्ष्मी साधना

महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है। लक्ष्मी जी के ये आठ स्वरुप जीवन की आधारशिला है। इन आठों स्वरूपों में लक्ष्मी जी जीवन के आठ अलग-अलग वर्गों से जुड़ी हुई हैं। इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है।
ऊँ आद्य लक्ष्म्यै नम :
ऊँ विद्यालक्ष्म्यै नम :
ऊँ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम :
ऊँ अमृतलक्ष्म्यै नम :
ऊँ काम लक्ष्म्यै नम :
ऊँ सत्य लक्ष्म्यै नम :
ऊँ भोग लक्ष्म्यै नम :
ऊँ योग लक्ष्म्यै नम :
इस साधना को पुष्य नक्षत्र,पूर्णिमा,गुरुवार,धनतेरस,दीपावली जब भी धन की जरुरत हो फ़ौरन इनकी साधना की सकती है

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शुक्र स्तोत्र –



नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित ।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ।।1।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: ।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर: ।।2।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: ।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ।।3।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर: ।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ।।4।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे ।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान ।।5।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन ।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ।6।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम ।।7।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ।।8।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ।।9।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम ।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम ।।10।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम ।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै: ।।11।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात ।।12।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा ।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ।।13।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ।।14।।

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शनि स्तोत्र-



नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।१।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।।

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