Sunday, 27 December 2015

दिसंबर 2015 माह में मीन राशि

आप सिद्धांतों के अनुयायी रूढि़वादी हैं, तो आप धार्मिक रिवाजों और प्रथाओं के पालन में अंधविश्वासी, कठोर भी हो सकते हैं। इस बात पर आपके परिवार विशेषकर आपके बच्चो से मतभेद संभव।
परिवार: पारिवारिक मामलों के लिए यह माह अच्छा नहीं कहा जाएगा इसलिए घर परिवार से जुड़े मामलों को निबटाने में बडी सतर्कता बरतें। आपके मित्र और परिवार के लोगों के बर्ताव में भी आप कुछ अंतर महसूस करेंगे। इन तमाम कारणों से आप मानसिक रूप से कष्ट का अनुभव करेंगे।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिहाज से माह को अनुकूल नहीं कहा जाएगा। यद्यपि बीमारी या रोग छोटे ही होंगे लेकिन परेशानी अक्सर बनी रह सकती है। रक्त और त्वचा से संबंधित रोगों के पनपने की संभावना है। शरीर की गर्मी के कारण आप एलर्जी से पीडित हो सकते हैं।
कार्यक्षेत्र: कार्यक्षेत्र से सम्बंधित कुछ न कुछ परेशानियां आपको सदैव घेरे रहेंगी। इन तमाम कारणों के चलते इस अवधि में किसी नए काम के बारे में सोचना या नए काम की शुरुआत करना जोखिम भरा काम होगा। आप स्वयं में आत्मविश्वास की कमी का अनुभव करेंगे।
धन: इस माह की शुरुआत में आपकी आमदनी प्रभावित रहेगी। इस कारण आर्थिक स्थिति कमजोर रहेगी। यदि आप जुआ, लाटरी आदि के माध्यम से कमाई करते हैं तो इनमें बड़ा निवेश करने से बचें।
विद्या: इस माह का प्रथम भाग आपकी शिक्षा के लिए अनुकूल नहीं है। आप अपनी विषय वस्तु पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएंगे, जिससे परिणाम खराब आयेगा। लेकिन माह का दूसरा भाग आपके लिए अनुकूल रहेगा।
उपाय:
1. अपने साथ चांदी का एक टुकड़ा रखें।
2. पीली चीजों का दान करें।
३. बृहस्पति मंत्र ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में मकर राशि

सामन्यत: आप स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं। आप परिश्रमी व्यक्ति हैं लेकिन कुछ मामलों में आप बातूनी भी हैं, जिसके कारण आपकी कोई योजना समय से पूर्व गोपनीयता खो सकती है। अपने जीवन साथी के साथ समायोजन करने में आपको बडी मेहनत करनी पडती है।
परिवार: तीसरे भाव में केतु का गोचर आपके घरेलू और पारिवारिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इसलिए घर परिवार के लोगों से कुछ वैचारिक मतभेद रह सकता है। छोटी छोटी बातों पर झगड़ें और विवाद हो सकते हैं।
स्वास्थ्य: कुछ मौसम जनित बीमारियों को छोडकर कोई विशेष बीमारी होने के योग नहीं हैं। लेकिन जीवन साथी का स्वास्थ्य आपको मानसिक रूप से चिन्तित रख सकता है। कुल मिलाकर इस माह में आपको स्वास्थ्य को लेकर चिंता करने जैसी स्थिति नहीं हैं।
कार्यक्षेत्र: आपके कार्यक्षेत्र के लिए यह माह अनुकूल रहेगा। इस अवधि में आप सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे। व्यापार/व्यवसाय में लाभ प्राप्त कर सकेंगे। नौकरी पेशा लोगों के लिए समय कम ठीक है।
धन: यदि आपके पास कोई पुराना कर्ज है तो आप इस माह उससे छुटकारा पा सकते हैं। व्यापार-व्यवसाय के माध्यम से अच्छा लाभ प्राप्त कर पाएंगे। लेकिन जमीन जायदाद के मामलों में बहुत ही सावधानी से निवेश करें।
विद्या: आप इस माह बुद्धिजीवियों की संगति में रहेंगे और अपने अध्ययन से जुड़े मामलों में सही निर्णय लेंगे। इस काम में आपके सहपाठी भी आपका सहयोग करेंगे। अध्यापको/प्राध्यापकों के साथ आपके संबंध मजबूत होंगे। अत: चिंताओं से दूरी बनाए रखना जरूरी होगा।
उपाय:
1. प्रतिदिन माता के मंदिर जाएं।
2. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें।
3. मन की शांति के लिए सेवा करें।
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दिसंबर 2015 माह में धनु राशि

धनु राशि वाले इस माह कुछ हद तक आलसी या सुस्त भी हो सकते हैं। इसका प्रभाव आपके कार्यक्षेत्र पर पड सकता है।
परिवार: पारिवारिक मामलों में माह का पूर्वान्ह मिश्रित फलदायी रहेगा। आरम्भिक महीने में पारिवारिक संबंधों में कुछ तनाव रह सकता है। परिवार के किसी सदस्य को लेकर मन में चिंता रह सकती है। मित्रों और हितैषियों से मदद मिलेगी।
स्वास्थ्य: आपका स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है। आपको पेट की तकलीफ परेशान कर सकती है, खान-पान पर संयम रखकर इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
कार्यक्षेत्र: छोटे कामों के लिये भी आपको बहुत मेहनत करनी पड़ सकती है। नौकरी के हालात बदतर होते जायेंगे। लेकिन शीघ्र ही आप इन पर नियंत्रण पा लेंगे। हर काम को संयम से करने की सलाह भी आपको दी जाती है।
धन: पैसों को लेकर आपको विशेष परेशानी नहीं होगी। शुरुआत में रुपए पैसों को लेकर आपको थोडी ज्यादा मेहनत करने पड सकती है लेकिन बाद में आपकी सारी इच्छाएं और महत्वाकांक्षाएं पूरी होंगी।
विद्या: यदि आप किसी भाषा विशेष को सीखने के लिए अध्ययन कर रहे हैं तो यह समय आपके उत्तम है। किसी विशेष पाठ्क्रम में प्रवेश लेने के लिए आपको घर से दूर जाकर पढाई करनी पड सकती है।
उपाय:
1. दूध और चीनी दान करें।
2. कुत्ते को मीठी रोटी दे।
3. बृहस्पति मंत्र ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में वृश्चिक राशि

स्वतन्त्र रुप से कार्य करने की चाह होने के कारण आप अपने कार्यो में दूसरों का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते है। आप परम्पराओं में कम विश्वास रखते हैं। इस माह पारिवारिक वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मिलित होना आपके लिए परेशानी का कारण होगा।
परिवार: पारिवारिक मामलों में यह माह मिलेजुले परिणाम देने वाला रहेगा। परिवार के लोगों की इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति होगी। परिवार के किसी सदस्य की बीमारी की वजह से आप चिंतित रह सकते हैं।
स्वास्थ्य: माह के शुरुआत में आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कुछ बेकार के कामों में खुद को उलझा कर आप स्वयं को थका लेंगें। अत: इससे बचने का प्रयास करें। परिवार के लोगों का स्वास्थ्य भी प्रतिकूल रह सकता है।
कार्यक्षेत्र: इस माह दसम सूर्य का गोचर लग्न में है। साथ की केतु गुरु भी अनुकूलता लिए हुए है। व्यापार या नौकरी इत्यादि के विकासशील होने की अच्छी संभावनाएं रहेंगी। आप बहु प्रतीक्षित व्यवसायिक यात्रा करेंगे। इस दौरान हर क्षेत्र से आपको सम्मान मिलेगा।
धन: यदि आपके पैसे कहीं फसे हुए हैं तो थोडे से प्रयास से वो आपको मिल जाएंगे। इन सबके बावजूद खर्चे कमाई से अधिक रह सकते हैं।
विद्या: आप दर्शन व साहित्य के विद्यार्थी हैं तो आपको विशेष सफलता मिल सकती है। किसी नए विषय में भी आपकी रुचि बढ सकती है। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग ले रहे हैं तो आपको किसी भी तरह की लापरवाही बरतना ठीक नहीं रहेगा। अन्यथा आपका अध्ययन प्रभावित हो सकता है।
उपाय:
1. चावल, शक्कर दान करें।
2. भगवान शिव की पूजा करें।
3.  मंगल मंत्र क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में तुला राशि

आप गहरी दूरदर्शिता के साथ यथार्थवादी और अधिक से अधिक आदर्शवादी भी हैं। इस माह आप स्वभाव से थोडे चंचल भी हो सकते हैं।
परिवार: यह माह आपके पारिवारिक मामलों से जुड़े हर मामले में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। यहां तक कि मित्र और रिश्तेदार अपनी बातों से मुकर सकते हैं। आपके मन में घर-परिवार को लेकर एक असुरक्षा की भावना पनप सकती है।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिए यह माह अनुकूल नहीं है। अत: स्वास्थ्य को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही उचित नहीं होगी। शनि का गोचर आपको शारीरिक कष्ट देने का संकेत है। शारीरिक के अलावा मानसिक कष्ट भी रह सकते हैं। दिमाग को शांति नहीं मिलेगी।
कार्यक्षेत्र: कार्यक्षेत्र में कुछ व्यवधान रह सकते हैं। यदि आप कुछ नया करने जा रहे हैं तो उस क्षेत्र से जुड़े अनुभवी लोगों की सलाह जरूर लें। व्यर्थ की यात्राओं से बचें। जोखिम उठाने के लिये यह उपयुक्त समय नहीं है।
धन: धन को लेकर निरंतरता नहीं बन पाएगी। फंसा हुआ या रुका हुआ धन प्राप्त करने में परेशानियां रह सकती हैं।
विद्या: विद्यार्थियों के लिए कडी मेहनत करने पर थोडी सफलता है। यदि आप कोई परीक्षा दे रहे हैं तो आपकी मेहनत के अनुरूप आपको परिणाम नहीं मिलेंगे। इन सबके बावजूद आशावादी होना निराशावादी होने से अच्छा है।
उपाय:
1. नौकरी और व्यवसाय में लाभ के लिए उडद दाल दान करें।
2. बहते पानी में नारियल बहाएं और माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
3. शुक्र मंत्र द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में कन्या राशि

इस समय आपकी रुचि कला और साहित्य में हो सकती है। आपके व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव है इस कारण लोग आपसे जल्द ही प्रभावित हो जाते हैं।
परिवार: यह माह पारिवारिक मामलों के लिए मिला जुला रहेगा। हालाकि आपको परिवारिक माहौल से सहारा मिलेगा। परिवार के साथ आप तीर्थाटन पर जा सकते हैं। लेकिन राहु और मंगल का गोचर अनुकूल न होने के कारण परिवारजनों की सभी अपेक्षाएं पूरी न होने के कारण घरेलू वातावरण तनावपूर्ण रह सकता है।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिहाज से माह का पूर्वान्ह अधिकांश समय अनुकूल रहेगा। इस अवधि का उपयोग आप मन को एकाग्र करने के लिए भी कर सकते हैं। इस अवधि में ऑख की पीड़ा भी हो सकती है।
कार्यक्षेत्र: कार्यक्षेत्र के लिहाज़ से यह माह मिश्रित फलदायी रहेगा। बृहस्पति की अनुकूलता आपको कई मामलों में सफल बनाएगी। आप प्रचुर सफलता और सम्मान प्राप्त करेंगे। जोखिम उठाने की प्रवृति पर भी अंकुश लगाए।
धन: धन की आमदनी की निरंतरता में कुछ व्यवधान आ सकता है। लेकिन इस माह धन प्राप्ति की संभावना है तो आप उसे प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन किसी नए काम को शुरु करने के लिए बड़ा निवेश करने से बचना जरूरी है।
विद्या: इस माह का प्रथम भाग आपकी शिक्षा के लिए पूरी तरह से अनुकूल है। लेकिन दूसरे भाग में आपको कुछ व्यवधान मिल सकते हैं। परम्परागत शिक्षार्थियों के लिए समय अनुकूल है।
उपाय:
1. दही या दूध से अभिषेक करें।
2. साईजी की पूजा करें।
3. गुरू मंत्र का जप करें।
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दिसंबर 2015 माह में सिंह राशि

इस पूरे माह आपकी भाग-दौड़ बहुत ज्यादा हो सकती है। आपकी यात्राएँ भी बहुत ज्यादा होने की संभावना बनती है। जो व्यक्ति नौकरी की तलाश में हैं उन्हें इस माह नई नौकरी मिलने की संभावना बनती है। प्रेम संबंधों के लिए यह माह सामान्य से अच्छा रह सकता है।
परिवार: पारीवारिक दृष्टि से यह माह मिश्रित रहेगा। आपको क्रोध ज्यादा आ सकता है और आप जरा-जरा सी बात पर चिड़चिड़े हो सकते हैं।
स्वास्थ्य: आपको कान में दर्द की शिकायत हो सकती है। आपको कंधो से संबंधित कुछ हल्के-फुल्के व्यायाम करने चाहिए अन्यथा आप कंधे के दर्द से बहुत ज्यादा परेशान हो सकते हैं।
कैरियर: माह के दूसरे सप्ताह के बाद से कैरियर के लिए समय अनुकूल रहेगा। आप जो चाहते हैं वह आपको मिलने की संभावना बनती है। माह के आरंभ में आपको अपने क्रोध पर काबू पाना होगा।
धन: धनागमन के नए स्तोत्र बन सकते हैं। यदि आप अपना किराए का घर बदलना चहते हैं तो अभी ना बदलें क्योकि यदि आपने अभी घर परिवर्तन किया तो नए स्थान पर ज्यादा दिन नही टिक पाएंगे।
विद्या: माह अनुकूल रहेगा, आप अव्वल स्थान प्राप्त कर सकते हैं। प्रतियोगी परी़क्षाओं में बैठने वाले बच्चों के लिए माह कुछ कठिन सिद्ध हो सकता है। तैयारी पूरी होने के बावजूद परीक्षा के समय मन कुछ दुविधा में और भ्रमित हो सकता है।
उपाय:
1. हनुमान चालीसा का पाठ करें।
2. मंगल का व्रत करें।

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दिसंबर 2015 माह में कर्क राशि

इस माह आपकी सारी ऊर्जा और भागदौड़ घर-परिवार व कार्यक्षेत्र के लिए बने रहने की संभावना बनती है। भाई-बहनों से भी पूरा सहयोग मिलने की संभावना बनती है। आपके व्यवसायिक संबंधों में वृद्धि होने की संभावना बनती है।
परिवार: आपके लिए यह माह सुख व दुख दोनों से मिला-जुला हो सकता है। आपका दाम्पत्य जीवन में कलह क्लेश होने की संभावना बनती है। बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करें। आप समझदारी का परिचय देते हुए कभी प्यार से तो कभी सख्ती से घर में सुखद माहौल बनाए रखने का प्रयास करें।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिहाज से आपके लिए यह माह मिश्रित रहेगा। आपको शारीरिक स्वास्थ्य की बजाय मानसिक परेशानियों के कारण तनाव बना रह सकता है। इससे आपका रक्तचाप अकसर उच्च बना रह सकता है।
कैरियर: कैरियर में आप जल्दबाजी या उत्तेजित होकर कोई निर्णय ना लें। माह मध्य तक का समय संयम और धैर्य से निकालें। उच्चाधिकारियो के साथ किसी तरह की बहस में ना पड़ें। आपको नए अनुबंध मिल सकते हैं लेकिन उनके कार्यान्वित होने में समय लग सकता है।
धन: धन की स्थिति सामान्य रहेगी। अगर बजट का ध्यान रखेंगे तो मानसिक तौर पर शांति रहेगी।
विद्या:  आपके लिए यह माह सामान्य से कुछ अच्छा रहने की संभावना बनती है। आप अपनी सारी ऊर्जा एकत्रित करके मन को एकाग्रचित्त करके पढ़ाई करेंगे तो आपको शीघ्र ही सभी कुछ स्मरण हो सकता है।
उपाय:
1. सूर्य को जल दें।
2. ॐ घृणि सूर्याय नम: का जाप भी करें।
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दिसंबर 2015 माह में मिथुन राशि

आप एक व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं। आपके स्वभाव में लचीलापन आसानी से देखने को मिल जाता है। इस माह आप बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रह सकते हैं।
परिवार: पारिवारिक मामलों के लिए यह माह अधिक अनुकूल नहीं है। बच्चो के बर्ताव से आपकी भावनाएं आहत हो सकती हैं। आपके बच्चों का स्वास्थ्य, स्वभाव अच्छा नहीं रहेगा। लेकिन सूर्य की स्थिति इस बात का संकेत कर रही है कि आपके कार्यक्षेत्र में संबंध संतोषप्रद रहेंगे।
स्वास्थ्य: शनि छठवें में होने से चिंता करना भी स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। खान-पान पर संयम रखें अन्यथा उदर विकार होने की सम्भावना है।
कार्यक्षेत्र: आपके कर्म स्थान का स्वामी त्रितीयस्थ है अत: इस अवधि में आपकी सृजनात्मक क्षमता और विवेक का सामंजस्य होगा। फलस्वरूप आप अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने में सफल होंगे। किंतु आर्थिक तौर पर ज्यादा लाभकारी नहीं होगा।
धन: आर्थिक मामलों के लिए यह माह शुभ नहीं कहा जाएगा। आप कुछ ऐसे कामों में उलझे रह सकते हैं जो कम फायदा देने वाले होंगे। कुछ ऐसे खर्चें भी सामने आ सकते हैं जिनकी आपने उम्मीद नहीं की होगी।
विद्या: विद्यार्थियों के लिए भी यह माह अधिक अनुकूल नहीं हैं। स्वास्थ्य की प्रतिकूलता अथवा भटकाव के कारण भी आपका अध्ययन प्रभावित रह सकता है।
उपाय:
1. लड्डू मंदिर में बाटें।
2. पन्ना धारण करें।
3. गुरुओं और पीपल के पेड़ की सेवा करें।
4. बुध मंत्र ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में वृषभ राशि

इस माह आप अपने प्रयासों द्वारा किसी भी परिस्थिति को संभाल सकने में सक्षम हैं। किंतु मंगल के राहु से पापाक्रांत होकर पंचम में होने से पार्टनर के स्वस्थ की हानि संभव।
परिवार: चतुर्थ भाव में स्थित बृहस्पति घर परिवार का माहौल अशांत कर सकता है कार्यों से संबंधित यात्राओं के कारण आपको अपने परिवार से दूर रहना पडेगा।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के लिहाज से यह माह आपके लिए बहुत अच्छा नही प्रतीत हो रहा है। दशमेश शनि जो समय-समय पर आपके स्वास्थ्य को पीडित कर सकता है यह अस्वस्थता छोटी-मोटी बीमारी के कारण ही होगी।
कार्यक्षेत्र: कार्यक्षेत्र के लिए यह माह अच्छा नहीं रहेगा। कुछ विषम परिस्थियां भी सामने आ सकती हैं। कुछ कामों में आप अनुभवी लोगों की सलाह को नजरअंदाज कर सकते हैं और गलत निर्णय लेकर चिंताग्रस्त हो सकते हैं।
धन: आर्थिक मामले के लिए यह माह मध्यम रहेगा। आमदनी की अपेक्षा खर्च अधिक होगा।
विद्या: बुध के कारण आप में एकाग्रता अच्छी रहेगी। फलस्वरूप अध्ययन में आपकी गहरी रुचि रहेगी। यदि आप बैंकिग, मैनेजमेंट या व्यवस्थापन से जुड़े पाठ्यक्रम से जुडऩा चाह रहे हैं या उस क्षेत्र से जुड़े हैं तो आपको उत्तम फलों की प्राप्ति होगी। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेना चाह रहे हैं तो उसके लिहाज से भी समय अनुकूल है।
उपाय:
1. मंदिर में नारियल और मूंग चढायें।
2. भगवान गणेश की पूजा करें।
३. शुक्र मंत्र द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का जप करें।

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दिसंबर 2015 माह में मेष राशि

लग्रेश मंगल के षष्ठम होने के कारण आप में क्रोध की अधिकता देखने को मिलेगी। सप्तमस्थ शुक्र होने के कारण आप आर्थिक सम्पन्नता और एशो-आराम का आनंद लेंगे। भाग्येश बृहस्पति भाग्यशाली व धार्मिक बना रहा है। शनि आपको शारीरिक कष्ट दे रहा है। इस समय आप थोड़े बेचैन और असंतुष्ट भी हो सकते हैं।
परिवार: पंचम भाव में स्थित बृहस्पति परिवार के सदस्यों की संख्या में बढोत्तरी करवा सकता है। अर्थात घर परिवार में किसी का जन्म हो सकता है अथवा किसी का विवाह आदि हो सकता है।
स्वास्थ्य: रोग भाव में स्थित मंगल राहू से आक्रांत होने के कारण समय-समय पर आपके स्वास्थ्य को बिगडने का प्रयास करेगा। अत: इस माह स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहना उचित होगा। जहां तक सम्भव हो गैर जरूरी यात्राओं से बचें।
कार्यक्षेत्र: दशमेश शनि के अष्टम भाव में होने कारण कामों में बाधा आ सकती है। आप कई बडें कामों में सफल भी होगें लेकिन व्यापार के लिए किसी कानूनी झंझट में पडने से बचें। राहु की स्थिति साझे में काम करने वालों के लिए शुभ नहीं रहेंगी।
धन: धनेश शनि के व्यय भाव में होने से किसी माध्यम से आपका पैसा खो सकता है। अत: कोई जोखिम भरा निवेश करने से बचें साथ ही पैसों की सुरक्षा को लेकर सचेत रहें।
विद्या: विद्यार्थियों के लिए यह माह सामान्य रहेगा लेकिन किसी नए पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने से पहले सचेत रहने की आवश्यकता है। अधिक आत्मविश्वासी होने से भी बचना जरूरी होगा। किसी पर आवश्यकता से अधिक विश्वास और निर्भरता उचित नहीं होगी।
उपाय:
1. मंगल राहू की शांति करें।
2. गाय की सेवा करें।
3. मंगल मंत्र क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: का जप करें।
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Saturday, 26 December 2015

आयुर्वेद विज्ञान में व्यक्तित्व विकास



आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि यह विज्ञान मात्र शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य संवर्धन का ही विवेचन नहीं करता, अपितु मनुष्य के आर्थिक, सामाजिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्वास्थ्य की विवेचना भी इसका उद्देश्य है। कहा है: ”शरीरेन्द्रिय सत्वात्म संयोगो आयुः“ शरीर के साथ सत्वात्म की विवेचना ही व्यक्तित्व विवेचना है। सत्वात्म का विभिन्न परिमाणों में सम्मिश्रण ही व्यक्तित्व के बहुविध स्वरूपों का प्रदर्शन है। इस व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतंत्र रूप से भूत विद्या नामक चिकित्साशास्त्र की अवधारणा संहिताकारों ने की जिसका मूल स्रोत अथर्ववेद की अथर्वण परंपरा से संभवतः गृहीत किया गया है। क्या है व्यक्तित्व: मानस के विभिन्न क्रिया व्यापार के परिणामस्वरूप व्यवहार के रूप में प्राप्त जो विचार है उसे व्यक्तित्व कहते हैं। कुछ विद्वान ”मनोविचय“ को व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किया है। जिस प्रकार शारीरिक क्रियाओं को समझाने के लिए शरीरविचय की आवश्यकता होती है वैसे ही मानस व्यापार के माध्यम से मनोविचय का परिज्ञान होता है। व्यक्तित्व का आभास मनोविचय के माध्यम से भी होता है। मनस स्वयं अतींद्रिय है इसलिए उसके व्यापार दृष्ट एवं अदृष्ट दोनों प्रकार के होते हैं। इस सूक्ष्म एवं अतींद्रिय मनस के व्यापारों को समझने के लिए चित्त, बुद्धि, अहंकार के विषय का ज्ञान कर व्यक्तित्व ज्ञान किया जाता है। कहा भी है: ”शरीर विचयः शरीरोपकारार्थमिष्यते। ज्ञात्वा हि शरीरतत्वं शरीरोपकारकेषुभावेषु ज्ञानमुत्पद्यते। तस्मात् शरीरविचयं प्रशंसन्ति कुशलाः। चरकसंहिता शारीर 6/3 सभी दर्शन के आचार्य मनस का अस्तित्व स्वीकार करते हैं लेकिन मन के निष्क्रियत्व, क्रियत्व, विभुत्व, अविभुत्व निर्विकार और चिदंश स्वरूप को मानने में एकमत नहीं हैं। मानस के संगठन में संस्कार या संस्कार पुंज का विशेष स्थान है। संस्कार प्रत्येक जीवन के अनुभवों के आधार पर सत्व, रज और तम गुणों से संपृक्त होते हैं। मानस की रचना एवं क्रिया में संस्कार कोषों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे हम मानस व्यापार के द्वारा समझ सकते हैं। आचार्य चरक का मत है कि मन अचेतन होने पर भी क्रियाशील है और उसको चैतन्यांश आत्मा से प्राप्त होता है। कहा भी है: अचेतनं क्रियावच्चमश्चेतयिता परः, युक्तस्य मनसा तस्य निर्दिश्यन्ते विभोः क्रियाः। चेतनावान् यतश्चात्मा ततः कत्र्तानिगद्यते, अचेतनत्वाच्च मनः क्रियावदपिनोच्यते। जिस प्रकार देह या शरीर के निर्माण में त्रिदोषों का महत्व है उसी प्रकार महागुणों का महत्व ‘मानस प्रकृति’ या ‘व्यक्तित्व’ निर्माण में स्वीकार किया गया है। महागुण या सत्व, रजस् या तमस गुणों का प्राधान्य ही व्यक्तित्व या मानस प्रकृति का परिचायक है। यह प्रकृति या व्यक्तित्व आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार शुक्र आत्र्तव के माध्यम से प्राप्त होता है। यथाः शुक्रात्र्तवस्थैर्जन्मादौविषेणैव विषीक्रिमे, तैश्च तिस्र प्रकृतियोः हीन मध्योत्तमापृथक्। मातरं पितरं चैके मन्यन्ते जन्मकारणम् स्वभावं परनिर्माणं यदृच्छाचापरे जनाः। आचार्य सुश्रुत ने प्रकृति की परिभाषा करते हुए बतलाया है कि शुक्र शोषित संयोग में जो दोष प्रबल होता है उसी से प्रकृति उत्पन्न होती है। कहा भी है ”प्रकृतिर्नाम जन्ममरणान्तराल भाविनी गर्भावक्रान्ति समये स्वकारणोद्रेक जनिता निर्विकारिणी दोषस्थितिः।“ व्यक्तित्व या प्रकृति प्रकार एवं विनियोग: आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन धातु साम्य है, अतः प्रकृति का अर्थ धातु साम्य के साथ ही सन्निहित है। जब प्रकृति का अर्थ स्वभाव किया जाता है तब इससे शरीर और मानस व्यक्तित्व का ग्रहण किया जाता है। स्वभावदृष्टया शरीर मानस प्रकृति और देह प्रकृति का परिचायक है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इन दोनों प्रकार की प्रकृतियों का निर्माण गर्भावस्था में ही होता है। यह पोषण पंचमहाभूतात्म, षडरसात्मक आहार जो माता ग्रहण करती है उसी के अंश से गर्भ को प्राप्त होता है। आचार्य चरक ने चरक संहिता सूत्रस्थान 1/5 में कहा है कि शरीर में ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है जिसकी त्रिदोषों या पंच महाभूतों से उत्पत्ति न हुई हो। आचार्य सुश्रुत ने भी पंचमहाभूतों/त्रिदोषों को शरीर की प्राथमिक इकाई के रूप में स्वीकार किया है और ये ही शरीर के सामान्य क्रिया व्यापार को नियमित करते हैं। व्यक्तित्व या मानस प्रकृति के प्रतिनिधित्व के रूप में सत्व, रजस और तमस को भी आधार रूप में मानते हैं। अतः यहां पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सत्व, रज एवं तम पंचमहाभूतों या त्रिदोषों से अलग नहीं हैं। डाॅ. ए. लक्ष्मीपति का मत है कि त्रिदोष या पंचमहाभूत अथवा महागुण (सत्व, रज, तम) शरीर कोशिकाओं के चारों ओर स्थित होते और उन्हें ठोस, गैस और द्रव रूपात्मक द्रव्यसत्ता से पोषण प्रदान करते हैं। आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक क्रिया का सुव्यवस्थित, एवं पारदर्शी स्वरूप मिलने के कारण और प्रत्यक्ष प्रमाण से अधिकाधिक ज्ञापित होने के कारण इसे ‘न्यूरोह्यूमर्स’ के रूप में प्रतिपादित करते हैं। आयुर्वेदीय संहिताओं में इस तरह के भी संदर्भ हैं कि गर्भधारण से पूर्व एवं धारण के पश्चात जिस प्रकार के आचार-विचार, व्यवहार, खान-पान का प्रयोग मां करती है उसका भी प्रभाव गर्भ पर पड़ता है। आधुनिक विज्ञानवेत्ता भी इससे सहमत हैं। व्यक्तित्व एवं ज्योतिष विज्ञान: आयुर्वेद की प्रमुख संहिताओं चरक सुश्रुत एवं अष्टांग संग्रह और अष्टांग हृदय सहित संहितेतर ग्रंथों में शरीरशास्त्र औषधि ग्रहण एवं प्रयोग विधि, निर्माण विधि के संदर्भ में ज्योतिषीय आधारों को ग्रहण करने का निर्देश दिया गया है। ज्योतिषशास्त्र का आधार मुख्य रूप से ग्रहों, नक्षत्रों को माना गया है और इनका ही ‘जातक’ के जन्मकाल, स्थान विशेषादि से गणितीय गणना के आधार पर आकलन कर सुखासुख विवेक निर्धारित किया जाता है। सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु, मंगल, शुक्र, राहु, शनि आदि कुंडली के अनुसार सुखासुख विवेक को प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक ग्रह का अपना नैसर्गिक फल होता है। भावाधीश फल का लग्नेश के अनुसार फल बदल जाता है। इसी को आधार मानकर आयुर्वेद के आचार्य साध्यासाध्य व्याधि का विचार कर सकते हैं। अनेक असाध्य व्याधियों का उल्लेख भी है जिनकी साध्यासाध्यता औषधि प्रयोग और ज्योतिषीय फलादेश के आधार पर निश्चित की जा सकती है। यह बात महत्वपूर्ण है कि जहां आयुर्वेद विज्ञान कार्य कारण सिद्धांत के अनुसार शरीराभिनिवृत्ति, द्रव्यमनि निवृत्ति, रोगारोग्य कारणों सहित व्यक्तित्व का प्रतिवादन करता है वहीं ज्योतिष विज्ञान संभावनाओं के आधार पर जातक के गुणावगुणों और दुःख-सुखादि भावों को बताने में समर्थ है। अतः दोनों विज्ञानों का समन्वय कर चिकित्सा जगत की समस्याओं का निवारण किया जा सकता है।

पुष्य नक्षत्र

पुष्य नक्षत्र कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। यह नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सौरमंडल में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि, 3 अंश, 20 कला से 3 राशि, 16अंश, 40 कला तक है। यह नक्षत्र विषुवत रेखा से 18अंश, 9 कला, 56विकला उत्तर में स्थित है. मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं, तो तीर के समान आकाश में दृष्टिगोचर होते हैं। इसके तीर की नोंक अनेक तारा समूहों के पुंज के रूप में दिखाई देती है. पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं। सूर्य जुलाई के तृ्तीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिन्दु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है। पुष्य-नक्षत्र शरीर के आमाशय, पसलियों व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है. यह शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन्हें दृढ़, पुष्ट और निरोगी बनाता है. पुष्य नक्षत्र के देवगुरु वृहस्पति ज्ञान-विज्ञान व नीति-निर्धारण में व्यक्ति को अग्रणी बनाते हैं. यह नक्षत्र शनिदशा को दर्शाता है. शनि स्थिरता का सूचक है.
इसलिए पुष्य नक्षत्र में किये गये कार्य स्थायी होते हैं. पुष्य नक्षत्र का योग सर्वविध दोषों को हरनेवाला और शुभ फलदायक माना गया है। अगर पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से युक्त या ग्रहों से बाधित हो और ताराचक्र के अनुसार प्रतिकूल हो, तो भी विवाह को छोड़ कर शेष सभी कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह हैं और इसके देवता गुरू माने जाते हैं। इन दोनों ग्रहों के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करते हैं लेकिन इसमें इनकी मेहनत और लगनशीलता का बड़ा योगदान होता है। बचपन में किये गये संघर्ष के कारण कम उम्र में ही दुनियादारी और जीवन के उद्देश्यों को समझ जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैए इसे नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है। ऐसे में पुष्य नक्षत्र में जन्मा जातक भी सभी नक्षत्रों से अलग होता रहता है।
ऐसा जातक व्यावहारिक, स्पष्टवादी, शीघ्रता से बोलने वाला, आलोचक, विश्वासपूर्ण पद प्राप्त करने वाला, अधिकारी, मंत्री, राजा, तकनीकी मस्तिष्क का, अपने कार्य में निपुण तथा सबके द्वारा प्रशंसित होता है। यह साधारण सी बात पर चिंतित हो जाएंगे किंतु विषम परिस्थितियों का साहसपूर्ण सामना करते हैं। यह ईश्वर भक्त तथा दार्शनिक विचारों के होते हुए भी सांसारिक कार्यों में सफल माने जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र में जन्म होने से जातक शांत हृदय, सर्वप्रिय, विद्वान, पंडित, प्रसन्नचित्त, माता-पिता का भक्त, ब्राह्मणों और देवताओं का आदर और पूजा करने वाला, धर्म को मानने वाला, बुद्धिमान, राजा का प्रिय, पुत्रयुक्त, धन वाहन से युक्त, सम्मानित और सुखी होता है। पुष्य नक्षत्र में जन्म होने से जातक मध्यम कद लंबा, गौर श्याम वर्ण, चिंतनशील, सावधान, तत्पर, आत्मकेंद्रित, क्रमबद्ध और नियमबद्ध, अल्पव्ययी, रूढ़ीवादी, सहिष्णु, बुद्धिमान तथा समझदार होता है। विद्वानो के मत से पुष्य नक्षत्र के दौरान किए गए कार्यो में निश्चित सफलता प्राप्त होती हैं। शास्त्रों में पुष्य योग को 100 दोषों को दूर करने वाला, शुभ कार्य उद्देश्यों में निश्चित सफलता प्रदान करने वाला एवं बहुमूल्य वस्तुओं कि खरीदारी हेतु सबसे श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायी योग माना गया है।
गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थ अमृतसिद्धि योग बनता है। रविवार को पुष्य नक्षत्र पडऩे से रवि पुष्य योग बनता है जो सबसे अच्छा बताया गया है।
शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वाद्धसिद्धि योग होता है। पुष्य नक्षत्र को ब्रह्माजी का श्राप मिला था। इसलिए शास्त्रोक्त विधान से पुष्य नक्षत्र में विवाह वर्जित माना गया है।

पुष्य नक्षत्र पुरुष नक्षत्र है:
भले ही इसमें नारीत्व के गुण, संवेदनशीलता व ममता कुछ अधिक मात्रा में हों. इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता गुरु पुरुष देवता है. इस नक्षत्र में शरीर का मुख व चेहरा आता है. चेहरे के भावों का पुष्य से विशेष संबंध है। यह नक्षत्र पित्त प्रकृ्ति का है। इस नक्षत्र की दिशा पश्चिम, पश्चिम-उत्तर तथा उत्तर दिशा है. इस बात का भी ध्यान रखें कि कर्क राशि की दिशा उत्तर तो नक्षत्रपति शनि को पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है।

स्वामी शनि:
पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि होने से विद्वानों ने इसे तमोगुण प्रधान माना है। अत: यह तामसिक नक्षत्र है. पुष्य जल तत्व प्रधान नक्षत्र है। यह चन्द्रमा की राशि कर्क में स्थित है. चन्द्रमा व कर्क राशि दोनों ही जल तत्व प्रधान हैं, पुन: नक्षत्र का देवता गुरु भी स्थूल व कफ प्रधान होने से जल तत्व की प्रधानता को दर्शाता है. विद्वानों ने पुष्य नक्षत्र को देवगण माना है।

पुष्य नक्षत्र उध्र्वमुखी:
पुष्य नक्षत्र उध्र्वमुखी होने से जातक महत्वाकांक्षी व प्रगतिशील होता है, पौष चन्द्र मास का उत्तरार्ध, जो जनवरी मास में पड़ता है, को पुष्य नक्षत्र का मास माना जाता है। शुक्ल व कृ्ष्ण पक्ष की दशमी का संबंध पुष्य नक्षत्र से माना जाता है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि व राशि स्वामी चन्द्र होने से जातक कर्तव्यनिष्ठ, दायित्व निर्वाह में कुशल व परिश्रमी होता है. इस नक्षत्र को जन समुदाय को प्रभावित करने वाला नात्र माना गया है। पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण का अक्षर ‘हू’ है. द्वितीय चरण का अक्षर ‘हे’ है. तृ्तीय चरण का अक्षर ‘हो’ है. चतुर्थ चरण का अक्षर ‘ड’ है. पुष्य नक्षत्र की योनि मेष है। पुष्य नक्षत्र को ऋषि मरीचि का वंशज माना गया है।

* अर्थ- पोषण
* देव- बृहस्पति
* इसे ‘‘ज्योतिष्य और अमरेज्य’’ भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है- देवताओं का पूज्य।
* इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है, पर इसके गुण गुरु के गुणों से अधिक मिलते हैं।
* पुष्य में बृहस्पति का व्रत और पूजन किया जाता है।
* पुष्य नक्षत्र के देवता शनि को माना जाता है।
* पीपल के पेड को पूष्य नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग पीपल वृक्ष की पूजा करते है।
* इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में पीपल वृक्ष के पेड़ को भी लगाते है।


प्रात: काल में कर-दर्शन

करागे्र वसते लक्ष्मी करमध्ये च सरस्वती।
करमूले च गोविन्दम् प्रभाते कर दर्शनम्।।
भावार्थ- कर अर्थात हाथ, अग्रे अर्थात अगला भाग अर्थात अग्रिम भाग, वसते- निवास करना, लक्ष्मी- धन (संपदा, सुख, वैभव) करमध्ये- हाथ का बीच का भाग, च- और, सरस्वती वाणी, वाक की देवी अर्थात विद्या की देवी, करमूले- हाथ का मूल स्थान, अर्थात हथेली व भुजा का संगम स्थल जहां से भाग्य हाथ शुरू होता है, अर्थात कलाई, गोविन्दम्- ईश्वर, प्रभाते- प्रात:काल, कर दर्शनम्- दर्शन करना।
अर्थात हाथ के अग्र भाग में अर्थात अंगुलियों पर लक्ष्मी का वास होता है और हाथ के मध्य हथेली में सरस्वती निवास करती हैं, तथा हाथ के मूल में ईश्वर का निवास होता है क्योंकि सृष्टि का आदिमूल परमेश्वर है। इसलिए प्रात: काल में इनका दर्शन अवश्य करो।
लक्ष्मी का आदान-प्रदान अंगुलियों से गिनकर किया जाता है, इसलिए लक्ष्मी का निवास अंगुलियों पर बताया है, इसके अलावा सरस्वती देवी हथेली के मध्य में रहती है और इन दोनों के मूल में ईश्वर का निवास है अर्थात ईश्वर का निवास मूल स्थान में है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि लक्ष्मी व सरस्वती दोनों का एक साथ निवास करना सौभाग्यशाली होता है। लक्ष्मी का वाहन उल्लू तथा सरस्वती का वाहन हंस है और जिस प्रकार उल्लू व हंस एक समय पर, एक स्थान पर नही रह सकते उसी प्रकार सरस्वती व लक्ष्मी मनुष्य के पास एक साथ नही रह सकते और यदि मनुष्य के पास दोनों एक साथ रहती हैं, तो वह मनुष्य ईश्वर की असीम अनुकंपा का पात्र होगा और ऐसे मनुष्य विरले हुआ करते हैं।
लक्ष्मी मनुष्य को अहंकार प्रदान करती है। अहंकार अज्ञानता की निशानी है। सरस्वती का वाहन हंस शुभ्र, श्वेत, धवल निर्मल होता है और श्वेत ज्ञान का प्रतीक है। इसलिए अहंकार और ज्ञान जिस प्रकार एक जगह नही रह सकते, उसी प्रकार लक्ष्मी व सरस्वती एक जगह नही रह सकती। यह कठिन ही नही बल्कि असंभव है, लेकिन जो ज्ञानी पुरूष होते हैं, उनके यहां लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ निवास कर सकती हैं, परंतु तब निवास कर सकती हैं जबकि लक्ष्मी व सरस्वती दोनों के मूल में मनुष्य ने प्रथमत: जगदाधार ईश्वर को रखा है, जो ईश्वर आदिमूल है। अर्थात ईश्वर को प्रथमत: रखने वाला मनुष्य लक्ष्मी एवं सरस्वती दोनों की कृपा का पात्र होगा।
हाथ मनुष्य की कर्मेन्द्रिय है, मनुष्य के शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां व पांच ही कर्मेन्द्रियां होती हंै। हस्त इंद्रिय हाथ के ऊपर रहती है, जो लेनदेन की क्रिया समय अनुसार करती है। हाथों पर इंद्र देवता का निवास होता है। इसलिए अपने हाथों को (अपनी हस्त इंद्रियों को) हमेशा ही इंद्र के समान परमार्थ, परोपकार, लोकोपकार के कार्य में लगाना ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर, लाभकारी, गुणकारी होता है। प्रात:काल में इसलिए अपनी हस्त इंद्रियों का दर्शन उपरोक्त विचार एवं प्रकार से अवश्य करना चाहिए। तभी जीवन सफल, सुफल, समृद्घ एवं परमार्थी तथा अंत में मुमुक्ष होकर मोक्ष पद प्राप्त करने में सफल होता है।

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Friday, 25 December 2015

प्रात: काल में कर दर्शन

करागे्र वसते लक्ष्मी करमध्ये च सरस्वती।
करमूले च गोविन्दम् प्रभाते कर दर्शनम्।।
भावार्थ- कर अर्थात हाथ, अग्रे अर्थात अगला भाग अर्थात अग्रिम भाग, वसते- निवास करना, लक्ष्मी- धन (संपदा, सुख, वैभव) करमध्ये- हाथ का बीच का भाग, च- और, सरस्वती वाणी, वाक की देवी अर्थात विद्या की देवी, करमूले- हाथ का मूल स्थान, अर्थात हथेली व भुजा का संगम स्थल जहां से भाग्य हाथ शुरू होता है, अर्थात कलाई, गोविन्दम्- ईश्वर, प्रभाते- प्रात:काल, कर दर्शनम्- दर्शन करना।
अर्थात हाथ के अग्र भाग में अर्थात अंगुलियों पर लक्ष्मी का वास होता है और हाथ के मध्य हथेली में सरस्वती निवास करती हैं, तथा हाथ के मूल में ईश्वर का निवास होता है क्योंकि सृष्टि का आदिमूल परमेश्वर है। इसलिए प्रात: काल में इनका दर्शन अवश्य करो।
लक्ष्मी का आदान-प्रदान अंगुलियों से गिनकर किया जाता है, इसलिए लक्ष्मी का निवास अंगुलियों पर बताया है, इसके अलावा सरस्वती देवी हथेली के मध्य में रहती है और इन दोनों के मूल में ईश्वर का निवास है अर्थात ईश्वर का निवास मूल स्थान में है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि लक्ष्मी व सरस्वती दोनों का एक साथ निवास करना सौभाग्यशाली होता है। लक्ष्मी का वाहन उल्लू तथा सरस्वती का वाहन हंस है और जिस प्रकार उल्लू व हंस एक समय पर, एक स्थान पर नही रह सकते उसी प्रकार सरस्वती व लक्ष्मी मनुष्य के पास एक साथ नही रह सकते और यदि मनुष्य के पास दोनों एक साथ रहती हैं, तो वह मनुष्य ईश्वर की असीम अनुकंपा का पात्र होगा और ऐसे मनुष्य विरले हुआ करते हैं।
लक्ष्मी मनुष्य को अहंकार प्रदान करती है। अहंकार अज्ञानता की निशानी है। सरस्वती का वाहन हंस शुभ्र, श्वेत, धवल निर्मल होता है और श्वेत ज्ञान का प्रतीक है। इसलिए अहंकार और ज्ञान जिस प्रकार एक जगह नही रह सकते, उसी प्रकार लक्ष्मी व सरस्वती एक जगह नही रह सकती। यह कठिन ही नही बल्कि असंभव है, लेकिन जो ज्ञानी पुरूष होते हैं, उनके यहां लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ निवास कर सकती हैं, परंतु तब निवास कर सकती हैं जबकि लक्ष्मी व सरस्वती दोनों के मूल में मनुष्य ने प्रथमत: जगदाधार ईश्वर को रखा है, जो ईश्वर आदिमूल है। अर्थात ईश्वर को प्रथमत: रखने वाला मनुष्य लक्ष्मी एवं सरस्वती दोनों की कृपा का पात्र होगा।
हाथ मनुष्य की कर्मेन्द्रिय है, मनुष्य के शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां व पांच ही कर्मेन्द्रियां होती हंै। हस्त इंद्रिय हाथ के ऊपर रहती है, जो लेनदेन की क्रिया समय अनुसार करती है। हाथों पर इंद्र देवता का निवास होता है। इसलिए अपने हाथों को (अपनी हस्त इंद्रियों को) हमेशा ही इंद्र के समान परमार्थ, परोपकार, लोकोपकार के कार्य में लगाना ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर, लाभकारी, गुणकारी होता है। प्रात:काल में इसलिए अपनी हस्त इंद्रियों का दर्शन उपरोक्त विचार एवं प्रकार से अवश्य करना चाहिए। तभी जीवन सफल, सुफल, समृद्घ एवं परमार्थी तथा अंत में मुमुक्ष होकर मोक्ष पद प्राप्त करने में सफल होता है।

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पंच सति

हिन्दू धर्म में पंच सतियों का बड़ा महत्व है। ये पांचो सम्पूर्ण नारी जाति के सम्मान की साक्षी मानी जाती हैं। विशेष बात ये है कि इन पांचो स्त्रियों को अपने जीवन में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और साथ ही साथ समाज ने इनके पतिव्रत धर्म पर सवाल भी उठाए लेकिन इन सभी के पश्चात् भी वे हमेशा पवित्र और पतिव्रत धर्म की प्रतीक मानी गई। कहा जाता है कि नित्य सुबह इनके बारे में चिंतन करने से सारे पाप धुल जाते हैं। ऋ ऋ
अहल्या:
अहल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी। देवराज इन्द्र इनकी सुन्दरता पर रीझ गए और उन्होंने अहल्या को प्राप्त करने की जिद ठान ली। पर मन ही मन वे, अहल्या के पतिव्रत से डरते भी थे। एक बार रात्रि में हीं उन्होंने गौतम ऋषि के आश्रम पर मुर्गे के स्वर में बांग देना शुरू कर दिया। गौतम ऋषि ने समझा कि सवेरा हो गया है और इसी भ्रम में, वे स्नान करने निकल पड़े। अहल्या को अकेला पाकर इन्द्र ने गौतम ऋषि के रूप में आकर अहल्या से प्रणय याचना की और उनका शील भंग किया। गौतम ऋषि जब वापस आये तो अहल्या का मुख देख कर वे सब समझ गए। उन्होंने इन्द्र को नपुंसक होने का और अहल्या को शिला में परिणत होने का श्राप दे दिया। युगों बाद श्रीराम ने अपने चरणों के स्पर्श से अहल्या को श्राप मुक्त किया।
मन्दोदरी:
मंदोदरी मय दानव और हेमा अप्सरा की पुत्री, राक्षसराज रावण की पत्नी और इन्द्रजीत मेघनाद की माता थी। पुराणों के अनुसार रावण के विश्व विजय के अभियान के समय, मय दानव ने रावण को अपनी पुत्री दे दी थी। जब रावण ने सीता का हरण कर लिया तो मंदोदरी ने बार बार रावण को समझाया कि वो सीता को सम्मान सहित लौटा दें। रावण की मृत्यु के पश्चात् मंदोदरी के करुण रुदन का जिक्र आता है। श्रीराम के सलाह पर रावण के छोटे भाई विभीषण ने मंदोदरी से विवाह कर लिया था।
तारा:
तारा, समुद्र मंथन के समय निकली अप्सराओं में से एक थी। ये वानरराज बालि की पत्नी और अंगद की माता थी। रामायण में हालाँकि इनका जिक्र बहुत कम आया है लेकिन ये अपनी बुधिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थीं। पहली बार बालि से हारने के बाद जब सुग्रीव दुबारा लडऩे के लिए आया तो इन्होने बालि से कहा कि अवश्य हीं इसमें कोई भेद है लेकिन क्रोध में बालि ने इनकी बात नहीं सुनी और मारे गए। बालि की मृत्यु के पश्चात् इनके करुण रुदन का वर्णन है। श्रीराम की सलाह से बालि के छोटे भाई सुग्रीव से इनका विवाह होता है। जब लक्षमण क्रोध पूर्वक सुग्रीव का वध करने किष्किन्धा आये तो तारा ने हीं अपनी चतुराई और मधुर व्यवहार से उनका क्रोध शांत किया।
कुन्ती:
श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थी। इनका असली नाम पृथा था लेकिन महाराज कुन्तिभोज ने इन्हें गोद लिया था जिसके कारण इनका नाम कुंती पड़ा। इनका विवाह भीष्म के भतीजे और धृतराष्ट के छोटे भाई पांडू से हुआ। विवाह से पूर्व भूलवश इन्होने महर्षि दुर्वासा के वरदान का प्रयोग सूर्यदेव पर कर दिया जिनसे कर्ण का जन्म हुआ लेकिन लोकलाज के डर से इन्होने कर्ण को नदी में बहा दिया। पांडू के संतानोत्पत्ति में असमर्थ होने पर उन्होंने उसी मंत्र का प्रयोग कर धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीमऔर इन्द्र से अर्जुन को जन्म दिया। इन्होने पांडू की दूसरी पत्नी माद्री को भी इस मंत्र की दीक्षा दी जिससे उन्होंने अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव को जन्म दिया।
द्रौपदी:
ये पांचाल के राजा महाराज द्रुपद की पुत्री, धृष्टधुम्न की बहन और पांचो पांडवो की पत्नी थी। श्रीकृष्ण ने इन्हें अपनी मुहबोली बहन माना। ये पांडवों के दु:ख और संघर्ष में बराबर की हिस्सेदार थी। पांच व्यक्तियों की पत्नी होकर भी इन्होने पतिव्रत धर्म का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। कौरवों ने इनका चीर-हरण करने का प्रयास किया और ये, इनके पतिव्रत धर्म का हीं प्रभाव था कि स्वयं श्रीकृष्ण को इनकी रक्षा के लिए आना पड़ा। श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को इन्होने हीं पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी। यही नहीं, जब पांडवों ने अपने शरीर को त्यागने का निर्णय लिया तो उनकी अंतिम यात्रा में भी उनके साथ थीं।
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नववर्ष के आगमन पर संकल्प करें काल करे सो आज कर


..मजेदार बात यह है कि समय हम सभी के पास बराबर मात्रा में है। इस मामले में कोई गरीब या अमीर नहीं है। पर इस प्राप्त समय का कौन, कितना और कैसा सदुपयोग करता है, उसका आधार तो हर व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और समझ पर है।
आज जिस काम की आवश्यकता है, या जिस कार्य को आज ही पूर्ण हो जाना चाहिए, उसके लिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि वह आज ही पूर्ण हो जाए। आज के कार्य को कल के भरोसे छोडऩा उचित नहीं, क्योंकि कल को जब सूर्यदेव आयेंगे तो उनके साथ ही कल के हमारे कार्य भी आ उपस्थित होंगे। इसलिए कल के कार्यों की सूची में आज के कार्यों को सम्मिलित करके कल की सूची को अनावश्यक लम्बी मत करो। हाँ, यदि आज की कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि कार्य कल पर छोडऩा अनिवार्य और अवश्यम्भावी हो गया तो उसे कल पर छोड़ दें, लेकिन कल के विषय में उसे इतना ना छोड़ें कि आने वाला कल भी उस एक कार्य में ही व्यतीत हो जाये।
समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं। समय का हर पल बहुमूल्य है। प्रतिक्षण बेशकीमती है। काल का कोई क्षण सामान्य नहीं होता। यह असामान्य और अद्भुत होता है, क्योंकि वह कोई क्षण ही था, जिसने हमें जीवन दिया। वह कोई क्षण ही है जो सफलता और असफलता का अनुदान देता है। हर क्षण एक अनोखा अवसर लेकर आता है। उस क्षण के सदुपयोग में ही सच्ची सार्थकता है। दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रबल संकल्प-बल से समय चक्र को बलात इच्छानुकूल मोड़ा जा सकता है। यही बुद्धिमत्ता है। अध्यात्म-जगत में भी समय के महत्व को स्वीकारा गया है। समय का परिस्थिति के अनुरूप उचित और सार्थक ढंग से उपयोग करना समय-प्रबंधन कहलाता है। काल का नियम ही है ‘‘अनवरत-निरंतर बहना।’’ इस सच्चाई को समझा जाए कि हम भी इस धारा में बह रहे हैं। इसलिए हम अपने समय, दिन, महीने और वर्षों का सदुपयोग करना सीख जाएं। ऐसी कार्य योजना बनाई जाए, जिसमें प्रत्येक वर्ष के साथ प्रत्येक दिन और हर पल के उदे्श्यपूर्ण उपयोग का सुअवसर प्राप्त हो। ध्यान रहे, कार्य योजना एकांगी न हो, बहुआयामी हो। इसमें हमारे चिंतन, चरित्र और व्यवहार से लेकर परिवार, समाज के नियम-विधान को संपूर्ण रूप से समय के सामंजस्य के साथ प्रतिपादित किया जाए। इस समय सबसे अधिक आवश्यक कार्य यही है कि हम अपनी सारी योग्यता, शक्ति और विद्वत्ता स्वराज्य की प्राप्ति में लगा दें। हमारी सारी शक्ति, सारी ऊर्जा बस एक ही केन्द्र पर व्यय हो। हमारा ध्यान बगुले की भाँति केवल अपने शिकार पर ही होना चाहीए। हम भटकें नहीं अन्यथा सारे पुरुषार्थ पर पानी फिर जाएगा।
श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को ये ही तो कहा कि इस समय अपनी शक्ति और ऊर्जा को किसी मोहादि के कारण विखण्डित मत कर, बल्कि पूर्ण मनोयोग से एकाग्रता उत्पन्न कर और कर्तव्य को पहचानकर अपने एक लक्ष्य पर कार्य कर। अर्जुन ने श्रीकृष्ण के इस उपदेश को हृदयंगम किया तो इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से लिखा गया। कहते हैं कि लोग आते हैं और लोग जाते हैं, पर समय सदा बिना किसी के लिए रुके चलता ही रहता है। समय को हम कभी पकड़ नहीं पाते हैं, जितना पीछे पड़ते हैं, उतना ही वह आगे निकल जाता है। बड़ी विचित्र-सी बात है कि हम समय का महत्व जानते हुए भी उसे व्यर्थ जाया करते हैं। इसका मूल कारण है ‘समय प्रबंधन’ करने में हमारी असमर्थता। हम यह भूल जाते हैं कि जीवन प्रबंधन के लिए समय का प्रबंधन करना अति आवश्यक है, वरना अस्त-व्यस्तता हमारे जीवन पर हावी हो जाती है। अच्छा समय प्रबंधन अच्छी समझ पर निर्भर होता है। जब तक हम इस संसाधन को ठीक से समझ नहीं पाएंगे, तब तक हम इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
मजेदार बात यह है कि समय हम सभी के पास बराबर मात्रा में है। इस मामले में कोई गरीब या अमीर नहीं है। पर इस प्राप्त समय का कौन, कितना और कैसा सदुपयोग करता है, उसका आधार तो हर व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और समझ पर है।
समय के प्रबंधन के लिए सबसे पहले यह खोजना होगा की हमारा समय बरबाद किन कामों में होता है। नियोजन की कमी, काम दूसरों को न सौंप पाना, तरह-तरह की बाधा, ईष्र्या, घृणा, क्रोध, जैसी कई निजी समस्याएं हमारा बहुत-सा समय बेवजह ले लेती हैं। इन सबसे बचने के लिए कबीर का फॉर्मूला हमारे काम का है- ‘‘काल करे सो आज कर।’’
कार्य हमारी जिंदगी में चार प्रकार के  होते हैं:-
1. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण
2. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण
3. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं
4. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण
1. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण: छात्र को परीक्षा के समय पढ़ाई से ज्यादा अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण कार्य कुछ और नहीं होता है।
2. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण: जैसे कि पढ़ाई अगर सतत की जाये तो निश्चित ही परीक्षा में अच्छे अंक आयेंगे और परीक्षा के समय पढ़ाई अत्यावश्यक नहीं रहेगी। जैसे अपने स्वास्थ्य के लिये अगर रोज व्यायाम करेंगे तो यह भी अत्यावश्यक नहीं है परंतु महत्वपूर्ण है।
3. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं: जैसे कि फोन कॉल अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं, हो सकता है कि केवल टाईम पास करने के लिये किसी मित्र ने ऐसे ही फोन लगाया हो। किसी को सिगरेट पीना है तो उसके लिये यह अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। नई फिल्म जैसे ही टॉकीज में लगती है दौड़ पड़ते हैं देखने के लिये, क्या यह तीन महीने बाद नहीं देखी जा सकती, क्या है यह, यह अत्यावश्यक कार्य है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। जिन विचारों पर मन का नियंत्रण नहीं होता।
4. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण: जैसे की फालतू में सोते रहना, टाईम पास करना, ओर्कुट या फेसबुक पर रहना, ऐसे ही सर्फिंग करते रहना।

समय प्रबंधन का फॉर्मुला:
पहला: पहले प्रकार के कार्यों में कमी (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) करना जिससे हमें कभी गुस्सा नहीं आये। जो लोग दूसरे प्रकार के कार्य नहीं करते हैं वे ही पहले प्रकार को आने की दावत देते हैं, अगर समय पर सब कार्य कर लिया जाये तो पहले प्रकार (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) की नौबत ही नहीं आयेगी।
दूसरा: तीसरे प्रकार के कार्यों (अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं) को मना करना, जो कि केवल हम मन को खुश करने के लिये करते हैं या कुछ क्षणों के सुख के लिये करते हैं, हमे हमेशा दूसरे प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना चाहिये।
तीसरा: चौथे प्रकार के कार्यों से हमेशा बचना चाहिये, केवल दूसरे प्रकार (अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण) के कार्य में व्यस्त रहना चाहिये।
व्यक्ति दूरदर्शी हो तथा समय पर निर्णय ले सकें। ज्योतिष शास्त्र और प्रबंधन के परस्पर संबंध की बात करें तो संसार के समस्त प्राणी भिन्न-भिन्न प्रकृति के बने हैं और उनकी आदतें, गुण, प्रकृति, सोचने का तरीका, मानसिक और शारीरिक क्षमताएँ आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। ज्योतिष शास्त्र व्यक्तियों पर पडऩे वाले ग्रहों के प्रभावों को जानकर उनके संबंध में ठोस धारणा का निर्धारण करने का शास्त्र है। ज्योतिष शास्त्र में शनि व्यक्ति में अनुशासन की भावना और उसकी मनोवैज्ञानिक स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि कमजोर स्थिति में हों और उन पर राहु या अन्य अशुभ प्रभाव हुआ तो ऐसा व्यक्ति उत्तरदायित्व लेने से सकुचाता है अथवा जिम्मेदारी से बचने का प्रयास करता है। ज्योतिष में केवल एक शनि ग्रह के इतने से अध्ययन से किसी व्यक्ति की इतनी बड़ी कमजोरी का आसानी से पता चल जाता है, जो व्यवसाय में घातक हो सकती है और ऐसे व्यक्ति की प्रबंधकीय क्षमता में नियुक्ति व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होगी।

व्यक्तित्व और ग्रह:
ज्योतिष शास्त्र में मंगल को निरंकुश एवं प्रभावशाली माना जाता है और यदि मंगल पर राहु या शनि का प्रभाव हो जाए तो ऐसा व्यक्ति अवश्य ही दूसरों पर हावी होने की चेष्टा करता है, अपने अधीनस्थों पर निरंकुश शासन करना चाहता है। ऐसा व्यक्ति ग्रहो के प्रभाव में प्रबंधक बन तो सकता है परंतु अधीनस्थ तनावग्रस्त रहते हैं तो ऐसी स्थिति में वह लंबे समय तक टिक नहीं पाता। यह सामान्य मनोविज्ञान है कि निरंकुश शासन बहुत लंबे समय तक नहीं चलता और उसके खिलाफ विद्रोह आसान हो जाता है। मंगल यदि कुंडली में शुभ स्थान में स्थित हों और शुभ बृहस्पति से प्रभावित हों तो ऐसा व्यक्ति तीव्र गति से व्यवसाय को उन्नति की ओर ले जाकर श्रेष्ठ प्रबंधक सिद्ध हो सकता है। यदि जन्मपत्रिका में बुध प्रधान हों तो ऐसा व्यक्ति प्रबंधक कम परंतु प्लानर अधिक अच्छा साबित होता है। अच्छी नीतियां बनाना और उस पर अमल कराना बुध ग्रह कर सकते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यापारों में विभिन्न प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध शुभ स्थिति में हों, तो ऐसा व्यक्ति मार्केटिंग प्रबंध में सफल रहता है। जबकि शनि और गुरू की शुभ स्थिति वाला व्यक्ति एक सफल कार्मिक प्रबंधक हो सकता है। कुछ ऐसे प्रबंधक होते हैं जो भूतकाल के अनुभवों के आधार पर अपने भावी निर्णय लेते हैं, ऐसे व्यक्तियों के जन्म पत्रिका में शनि, पंचम भाव में द्विस्वभाव राशि में पाए जाते हैं। जबकि कुछ प्रबंधक वर्तमान में चल रहे कठोर संघर्ष को पीछे छोड़कर कार्य या व्यवसाय को आगे बढ़ाते हैं, ऐसे व्यक्तियों की जन्म कुंडलियों में गुरू त्रिकोण एवं मंगल दशम भाव को प्रभावित करते हुए पाए जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पूर्ण उत्तरदायित्व लेकर कार्य को अंजाम देते हैं। ग्रहों का गोचर भी प्रबंधन में बड़ी मदद कर सकता है, यदि आवश्यक सलाह ले ली जाये तो सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है। प्रबंधक और अधीनस्थ : प्रबंधक नेतृत्व करके अधीनस्थों पर नियंत्रण करता है और उनकी क्षमताओं का अधिकतम दोहन करता है। ऐसे अधिकांश व्यक्ति मेष, वृष, वृश्चिक या धनु राशि के होते हैं तथा इन पर मंगल का प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है और यदि मंगल, शनि ग्रह से प्रभावित होते हैं तो ऐसे व्यक्ति कुछ हद तक स्वार्थी प्रकृति के हो जाते हैं और अपने व्यवसाय को चलाने के लिए सौदेबाजी करने से नहीं चूकते। ऐसे व्यक्ति शीर्ष प्रबंधन में सफल होते हैं परंतु वास्तविक प्रशंसा के पात्र नहीं हो पाते क्योंकि वे अपने अधीनस्थों की भावनाओं से अधिक अपने लाभ की सोचते हैं। जिन व्यक्तियों की कुंडली में सूर्य और चंद्रमा केन्द्र में होते हैं, वे क्षमतावान, महत्वाकांक्षी, संवेदनशील और अहंवादी होते हैं। यदि इनका राहु से युति, दृष्टि संबंध हो तो इनकी अहंवादिता बढ़ जाती है और ये दूसरों को गिराने की सोचने लगते हैं, वे दूसरों को आगे बढऩे नहीं देना चाहते। अत: ऐसे लोग प्रबंधक नहीं हो पाते या लंबे समय तक नहीं रह पाते। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरू, शुक्र का प्रभाव चन्द्रमा पर होता है तो ऐसे व्यक्ति में समायोजन, प्रबंधन क्षमता बढ़ जाती है और वह सभी को साथ लेकर चलने लगता है, अपने अधीनस्थों के हित एवं संस्था के लाभों के लिए कार्य करने लगता है। एक सफल प्रबंधक के गुण यही होने चाहिए कि वह सबको साथ लेकर चले।

व्यक्ति और प्रबंधकीय गुण:
जब हम ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में किसी प्रबंधक के गुणों को परिभाषित करते हैं तो हम ग्रहों की स्थिति, परस्पर संबंध पर विचार करते हैं। यहाँ हम पाठकों की सुविधा के लिए प्रबंधकीय गुणों में ग्रहों की भूमिका को समझने के दृष्टिकोण से सूर्य की विभिन्न राशियों में स्थिति पर विचार कर रहे हैं:-
मेष: यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य मेष राशि में हों तो ऐसा व्यक्ति प्रबंधकीय दृष्टिकोण से सफल रहता है, उसको प्रतिष्ठा मिलती है और अधीनस्थ भी उसका सम्मान करते हैं परंतु वे कई बार राजा की भाँति क्रोध का प्रदर्शन करता है और अपने सम्मान में कमी कर लेता है। लोग उससे डरते तो हैं परंतु दिल से सम्मान नहीं कर पाते।
वृष: ऐसा व्यक्ति स्थिर मति का होता है, लिये हुए निर्णय पर दृढ़ रहता है परन्तु यदि उसका अधीनस्थ सटीक सलाह देता है तो वह तदनुसार मान भी लेता है।
मिथुन: मिथनु राशि में सूर्य होते हैं तो व्यक्ति अपने व्यवसाय के उद्देश्यों, अपेक्षाओं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अधीनस्थों से व्यक्तिगत स्तर पर मिलकर स्पष्ट करता है और उनका अधिकतम सहयोग बंटोरता है।
कर्क: कर्क राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति अपने अधीनस्थों से, फर्म या उद्यम के प्रति निष्ठा चाहता है और उन्हें समझाने में सफल रहता है।
सिंह: सिंह राशि में सूर्य होने पर वह व्यक्ति नवाचार में निपुण होता है, वह नवसृजन और आधुनिक विचारों को तुरंत स्वीकार कर लेता है, युवा वर्ग के अधीनस्थों को अवसर उपलब्ध कराता है, उसमें उद्यम के लिए कुछ करने की अपार संभावनाएँ रहती हैं। ऐसे व्यक्ति का व्यवसाय सफल रहता है।
कन्या: एक सफल संगठनकत्ता एवं योजनाकार होता है परन्तु कई बार मुख्य विषय से भटक कर गौण विषयों में अटक जाता है। इनमें गतिशीलता का अभाव होता है, इनके अधीनस्थ तो इनसे संतुष्ट होते हैं परन्तु व्यापार को बहुत अधिक तरक्की नहीं दे पाते।
तुला: तुला राशि में सूर्य हों, तो ऐसा व्यक्ति व्यवसाय में ईमानदारी को महवपूर्ण मानता है, वह चाहता है कि उसके अनुसार ही कार्य हो परंतु ऐसे व्यक्ति को अपने किये गये कार्यो का श्रेय नहीं मिल पाता, जिससे वह कुण्ठित होता है और अच्छे अवसरों को भी अपने हाथ से गँवा देता है। प्रबंधक में ऐसे गुणों का होना उचित नहीं है।
वृश्चिक: ऐसे व्यक्ति के साथ कार्य करना कठिन होता है। वह सोचता है कि वह जो भी कार्य करता है, सही करता है। वह अधीर होता है, जिसके कारण वह गलत निर्णय का शिकार भी हो जाता है। इनमें अधीनस्थों के साथ चलने की क्षमता का अभाव पाया जाता है। ये सफल प्रबंधक नहीं होते।
धनु: ऐसे व्यक्ति केवल महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान देते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति सहज और सरल वातावरण को गंभीर बना देते हैं। ये सही समय पर सही चोट तो करते हैं परन्तु ये चालाकी को भूल जाते हैं कि व्यवसाय में सब कुछ सामान्य चलता है।
मकर: ऐसे व्यक्ति कार्यो में मेहनत को महत्वपूर्ण मानते हैं। ये अपने प्रयासों और कठोर परिश्रम के बल पर दूसरों के समक्ष मिसाल पेश करते हैं। ये अपने कार्य में निपुण होते हैं।
कुंभ: कुंभ राशि के सूर्य वाले व्यक्ति समानता का व्यवहार करते हैं, दूसरों को अपने पर हावी नहीं होने देते, सत्य और ईमानदारी, परस्पर मधुर संबंधों पर विश्वास करते हैं तथा वे जानते हैं अधीनस्थों से कैसे अधिकतम कार्य कराया जा सकता है। सफल प्रबंधक होते हैं।
मीन: मीन राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति भावनात्मक अधिक होते हैं, वे हर व्यक्ति व्यक्ति को योग्यता की कसौटी पर खरा न उतरते हुए भी पर्याप्त मौके देते हैं इसलिए कई बार स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाते। आज व्यवसाय में निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं और यदि बड़ी कम्पनियां या कॉरपोरेट जगत के व्यक्ति अपने एम्पलॉयज को नियुक्त करते समय ज्योतिष को ध्यान में रखें तो कम्पनी की सफलता का ग्राफ बढ़ सकता है।
 
Pt.P.S.Tripathi
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नये साल में करें ज्योतिष अनुसार व्यक्तित्व में करें सुधार

मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करने के अनेक पहलुओं पर विचार करके उनमें सुधार लाने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जिन में से व्यक्तित्व का सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण है जैसा कि हम जानते है व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलू है ।
1. बाहरी स्वरूप
2. आन्तरिक स्वरूप या मानसिक व्यक्तित्व
बाहरी स्वरूप:
बाहरी व्यक्तित्व व्यक्ति के शारीरिक ढाचे उसके रूप रंग उसके अंगों के आकार व प्रकार से बना होता है और वह सभी का जैसा होता है वैसा ही दिखाई देता है बाहरी स्वरूप में सामान्य व्यक्तियो की भांति अधिकतर लोग दिखाई देते है लेकिन कुछ व्यक्तियों में शारीरिक विकास होता है जो की या तो जन्मजात होता है या किसी घटना या दुर्घटना के कारण हो जाता है शारीरिक विकास मनुष्य की कार्य क्षमता पर प्रभाव डालता है। ज्योतिष में व्यक्ति के शारीरिक गठन, लक्षण तथा रंग-रूप का विचार नवमांश, कारकांश एवं लग्न के स्वामी से किया जात है. वरन्दा लग्न को व्यक्ति के रूप-रंग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इस ज्योतिषीय विधि में बताया गया है कि अगर केतु और शनि लग्न में हो, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में हो तो व्यक्ति की त्वचा का रंग लालिमा लिये होता है. सरकुलर चेहरा चंद्रप्रधान होता है। ऐसे चेहरे वाले लोग कल्पनाशील, घरेलू, आलसी और ऊर्जा की कमी महसूस करने वाले होते हैं।
शनि की युति शुक्र या राहु से होने पर व्यक्ति दिखने में सांवला होता है। उन लोगों की त्वचा निली आभा लिये होती है जिनकी कुण्डली में शनि के साथ बुध की युति बनती है. अगर आपकी कुण्डली में मंगल व शनि की युति लग्न, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में बन रही है तो आपकी त्वचा का रंग लाल और पीली आभा लिए होगी। वहीं गुरू के साथ शनि की युति होने से आप अत्यंत गोरे हो सकते हैं। चन्द्र के साथ शनि की युति होने से भी आपकी त्वचा निखरी होती है। मेष लग्न के जातक देखने में दुबले-पतले, वृषभ लग्न के जातकों का छोटा कद, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व होता है। मिथुन लग्न के जातक मध्यम कद के होते हैं। कर्क लग्न के जातक पतले तथा मध्यम कद के होते हैं। सिंह लग्न के जातक मध्यम कद एवं संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं। इनका शारीरिक गठन संतुलन लिये हुए होता है। कन्या लग्न में उत्पन्न जातक मध्यम कद के होते हैं। आपका व्यक्तित्व ?सा होता है कि कोई भी सहजता से आपकी ओर आकर्षित हो जाता है। तुला लग्न का स्वामी शुक्र होने के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में शुक्र का प्रभाव दिखाई देता हैं। इनका बड़ा चेहरा, सुन्दर और विशाल आँखें, घुंघराले बाल, मध्यम कद और सामान्य शरीर होता है। इनके चेहरे पर एक विशेष आकर्षण होता है, जिस कारण लोग इनकी ओर खींचे चले जाते हैं। इनके व्यक्तित्व पर मंगल का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। ये लम्बे और पतले होते हैं। इनके व्यक्तित्व में गुरू का प्रभाव देखने को मिलता है इनकी छाती पुष्ठ और ऊंची है और बड़ा शरीर होने के साथ-साथ कद सामान्य होता है। ये थोड़े मोटे होते हैं मकर लग्न वाले व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इनकी आँखें गहरी और सुन्दर होती है। इनका कद लम्बा परन्तु शरीर से ये पतले होते हैं। इनमें झुककर चलने की आदत होती है, ये लोग अपनी आँखें नीची करके चलते हैं। इनका सिर बड़ा और नाक लम्बी होती है। कुंभ लग्न के व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है। ऐसे व्यक्ति लम्बे, पतले, सुन्दर और आकर्षित दिखते हैं। कमर थोड़ी-सी झुकी हुई या हल्का सा झुककर चलन इनकी आदत में शुमार होता है। इनकी आँखें गहरी होती हैं और नीचे की ओर देखकर ही चलते हैं। मीन लग्न वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व गुरू के समान होता है। मध्यम ऊंचाई, गोल और सुन्दर आँखें और थोड़े मोटे होते हैं। चेहरे पर एक तेज होता है।
आन्तरिक स्वरूप या मानसिक व्यक्तित्व:
मानसिक व्यक्तित्व किसी भी व्यक्ति की मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पक्ष आधारित होता है अर्थात किसी व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है उसके विचार, उसकी भावनाएं, उसकी सोच, उसकी समझने की शक्ति सब कुछ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर निर्भर होता है अत: व्यक्तित्व में सुधार के लिए हमें दो प्रकार से सचेत होना पड़ता है ।
मेष लग्न चर लग्न है अर्थात् चलायमान। ये एक जगह टिककर नहीं बैठ सकते हैं निरन्तर क्रियाशील रहना इनके स्वभाव में होता है। लग्न के स्वामी मंगल होने की वजह से सेनापति की भांति अनुशासनप्रिय होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य में बैठे रहना पसंद नहीं होता है। अग्नि तत्त्व होने से आपको क्रोध बहुत अधिक आता है लेकिन जितनी शीघ्रता से क्रोध आता है उतनी शीघ्रता से उतर भी जाता है। मेष लग्न के जातक दिल के साफ होते हैं तथा जो भी कहना होता है उसे सामने ही बोल देते हैं।
वृषभ लग्न के जातकों स्थिर लग्न होने से इनका स्वभाव स्थिरता लिये हुए होता है। ये जो भी कार्य करते हैं उसे पूरा करके ही हटते हैं। शुक्र के प्रभाव होने से अपने कार्यस्थल पर आप हर आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। आप अपने पहनावे पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं।
लग्न के स्वामी बुध होने की वजह से कठिन से कठिन काम को भी आप अपनी बुद्धि कौशल से आसान बना लेते हैं।द्विस्वभाव लग्न होने से आपके स्वभाव में भी दोहरापन (वास्तव में लचीलापन) होता है। समय के अनुसार अपने व्यवहार को बदल लेना अथवा हर परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेना, वातावरण को अपने अनुसार ढाल लेना या स्वयं वातावरण के अनुसार ढल जाना आपके स्वभाव की विशेषता होती है।आप खाली नहीं बैठ सकते हैं। हर समय व्यस्त रहना कुछ नया करने की इच्छा आपमें रहती है। आपका हँसमुख स्वभाव आपको हर जगह लोकप्रिय बनाता है।
कर्क लग्न जोकि एक जलतत्त्व है इसलिए जिस प्रकार जल अपने लिए रास्ता बना ही लेता है उसी प्रकार कर्क लग्न के व्यक्ति भी अपना कार्य निकाल ही लेते हैं। चर लग्न है इसलिए लगातार कार्य करना आपका स्वभाव होता है।आप अत्यधिक भावनात्मक होते हैं इसलिए आपके निर्णय कई बार गलत भी हो जाते हैं। आपके स्वभाव में कई बार जिद्दीपन आ जाता है।
सिंह लग्न के जातक अत्यंत तेजस्वी एवं आत्मविश्वासी होते हैं। अग्नि की ही भांति ऊर्जावान होते हैं किसी भी कार्य को करने से पीछे नहीं हटते हैं जो कार्य प्रारंभ करते हैं उसे पूरा करके ही बैठते हैं। नीतियाँ बनाना एवं उन पर कार्य करना इन्हें पसंद होता है। अनुशासनहीनता इन्हें बर्दाश्त नहीं होती है। जो नियम ये बनाते हैं, उन पर स्वयं भी कार्य करते हैं और दूसरों से करवाते भी है। अपना मान सम्मान इन्हें बहुत प्रिय होता है।
लग्न पर बुध का प्रभाव होने से आप अत्यंत बुद्धिमान होते हैं।आपका मस्तिष्क अत्यंत रचनात्मक होता है। नित नये विचारों को जन्म देना एवं उस पर कार्य करना आपका स्वभाव है। पृथ्वी तत्त्व होने से जिस प्रकार पृथ्वी सभी को धारण करती है उसी प्रकार आपके अन्दर भी सहनशीलता कूट-कूट कर भरी होती है। आप जब तक सहा जाये, सहते हैं और यही हर बात को सहन करने की आपकी आदत गंभीर रोगों को जन्म देती है। वायु प्रकृति होने से आप स्वयं को हर परिस्थिति में ढाल लेते हैं। कितनी भी कठिन समस्या हो आप अपना मानसिक संतुलन बनाये रखते हैं तथा समस्याओं से घबराते नहीं है। आप सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को खुश रखने का प्रयास करते हैं जो किसी के लिए भी संभव नहीं है।
तुला लग्न का स्वामी शुक्र होने के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में शुक्र का प्रभाव दिखाई देता हैं। इनका स्वभाव सौम्यता लिये होता है क्योंकि उनको स्वभाव में सब कुछ संतुलित करके चलने की आदत विद्यमान होती है। परन्तु कभी-कभी ये जितने सौम्य होते हैं, जरूरत पड़ने पर उतने ही कठोर भी बन जाते हैं। ऐसे व्यक्ति व्यवहार पसंद होते हैं और सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति होने के कारण सबके साथ एक समान व्यवहार करते हैं।
ऐसे व्यक्ति को भोग विलास की वस्तुओं का उपभोग करना और खरीदना ज्यादा पसंद होता है। नई टेक्नोलॉजी इन्हें पसंद होती है। ये व्यक्ति नये चिन्तन व परीक्षण करने वाले (क्रियटिव) होते हैं और संगीत,गायन, नृत्य, एक्टिंग आदि चीजें पसंद करते हैं और ये गुण भी इनमें विद्यमान रहते हैं।
वृश्चिक लग्न वाले स्वभाव में उग्रता होने के कारण नेतृत्व शक्ति अच्छी होती है परन्तु स्थिर स्वभाव होने के कारण जीवन में स्थिरता रहती है। हर काम को टिक कर करते हैं। जल तत्त्व होने के कारण जिस तरह जल कभी बहुत शान्त और कभी उसमें उग्रता आने पर सब-कुछ तहस-नहस कर देता है ये चंचल मस्तिष्क वाले तथा अधिक भावुक प्रकृति के होते हैं, जिस कारण इन्हें छोटी-छोटी बातों का बुरा लग जाता है।
इनके व्यक्तित्व में गुरू का प्रभाव देखने को मिलता है,जिस कारण ये लोग आस्तिक और दर्शन शास्त्र में रूचि रखते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी बातों में गंभीरता लिये होते हैं। धनी, सम्मानित और समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। ये लोग अच्छे सलाहकार साबित होते हैंइन लोगों की वित्त प्रबंधन/सलाह अच्छी होती है। ये लोग पैसों का हिसाब-किताब भलीभांति रख पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में लगातार अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित रहते हैं और जब तक उसको प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक शान्ति से नहीं बैठते हैं। धन संयम/प्रबंधन (वर्तमान में वित्तीय प्रबंधक या सलाहकार) की कला से ओतप्रोत रहते हैं।
मेहनती होते हैं, इसलिए बिना रूके निरन्तर कार्य करते रहते हैं, जिस कारण इनके किये हुए कार्यो में गलतियों की संभावना कम रहती है।इनको न्याय पसंद होता है और कभी किसी के साथ धोखा नहीं करते। ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी असफलता मिलने पर निराश हो जाते हैं इन्हें अपना एकाधिकार पसंद होता है इसलिये ऐसे व्यक्तियों के ज्यादा मित्रगण नहीं होते क्योंकि ये किसी पर विश्वास नहीं कर पाते हैं।
कुंभ लग्न के व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है। ऐसे व्यक्ति में सबसे अलग व्यवहार और संयमशील होने की आदत होती है। कभी-कभी इनका स्वाभिमान अहंकार में परिवर्तित होने लगता है। ऐसे व्यक्तियों की साहित्य में रूचि होती है और अच्छे साहित्यकार के रूप में भी सामने आते हैं। ये लोग थोड़े शर्मीले होते हैं इसलिए भीड़ में आकर अपनी बात नहीं कह पाते।
गुरू के समान आदर और सम्मान पाने वाले होते हैं। बहुत जल्दी लोगों के बीच में अपनी जगह बना लेते हैं।ऐसे व्यक्ति अच्छे वक्ता, गुरू और सलाहकार साबित होते हैं। थोड़े से पारम्परिक होते हैं अत: आसानी से अपनी जड़ों से दूर नहीं जा पाते।
इन्हें आसानी से गुस्सा नहीं आता परन्तु जब आता है तो कोई भी नहीं बचा पाता। ऐसे व्यक्ति गंभीर होते हैं और सभी बातें भूल सकते हैं परन्तु अपनी परम्परा और सिद्धान्तों को नहीं भूल सकते। धर्म के विरूद्ध जाकर ना तो कुछ करते है और ना ही करने देते हैं, महत्वकांक्षी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी उम्र से बड़ी-बड़ी अर्थात् परिपक्व बातें करते हैं और इन्हें सुनना अच्छा लगता है। इनकी कार्यप्रणाली सादी और सरल होती है परन्तु ये लोक अक्सर ज्ञान बाँटते हुए दिखाई देते हैं।
1. भौतिक या शारीरिक
2. मानसिक या मनोवैज्ञानिक
उपरोक्त दोनों प्रकार के पहलूओं में सुधार लाने के लिए अनेकानेक प्रक्रियाएं की जाती है जिनका वर्णन निम्न प्रकार है। शरीर माध्यम अर्थात शरीर निश्चय रूप से सभी धर्मो का मुख्य साधन है शारीरिक प्रक्रिया में निम्न प्रकार से सुधार लाये जा सकते हैं।
1.शरीर की देखभाल या रखरखाव- इसके अन्तर्गत शरीर कं अंगों के निरन्तर देखभाल से हमारा शरीर और उसकी दिखावट ठीक रहती है । सारा दिन कार्य करने के उपरान्त शरीर में थकावट भी होती है और अगले दिन कामलिए शारीरिक क्षमता को बनाये रखना होता है इसके लिए बालों की देखभाल कटिंग, तेल या क्रीम लगाना कंघी करना शामिल है उसके अतिरिक्त आखों को स्वच्छ रखना गुलाब जल सुरमा अथवा काजल आदि का प्रयोग किया जाता है हाथों और पैरों के नाखुन समय-समय पर काटते रहना चाहिए चेहरे की चमक बनाये रखने के लिए क्रीम आदि का प्रयोग कते रहना चाहिए इसी प्रकार शरीर के बाहय अंगों को ठीक प्रकार देखभाल से शारीरिक सुधार होता है । शारीरिक व बाहरी सुधार के लिए निम्न क्रियाएं करनी चाहिए मेष लग्न के जातक तेज मसालेदार भोजन करने की वजह से आपको पित्त संबंधी समस्याएँ अधिक रहती है। आपको अपने खान-पान में कम मसाले वाला भोजन उपयोग करना चाहिए और पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए।
* वृषभ लग्न के जातकों का मसाले वाला तीखा भोजन करने की वजह से आपको पेट संबंधी समस्या भी रहती है। आपको गैस से संबंधित रोग हो सकते हैं।
* मिथुन लग्न के जातक आप मिश्रित प्रकृति होने के कारण आपको रोग भी मिश्रित अर्थात् कई प्रकार के ही होते हैं। आपको खान-पान में विशेष रूप से घर से बाहर के खाने का परहेज करना चाहिए।
* कर्क ठण्डी वस्तुओं के अत्यधिक सेवन से आपको कफ संबंधी समस्या अधिक होती है अत: आपको गर्म वस्तुओं का सेवन भी करना चाहिए।
* सिंह लग्न के जातक अत्यधिक क्रोध करना एवं तीखा राजसी भोजना अधिक करना आपकी सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अपने खान-पान पर एवं क्रोध पर नियंत्रण रखें। कन्या लग्न में उत्पन्न जातकउसी प्रकार आपके अन्दर भी सहनशीलता कूट-कूट कर भरी होती है। आप जब तक सहा जाये, सहते हैं और यही हर बात को सहन करने की आपकी आदत गंभीर रोगों को जन्म देती है।
* तुला लग्न का स्वामी इन्हें वात संबंधी पेरशानी अधिक रहती है। ऐसे व्यक्तियों को चटपटा खाना पसंद होता है। परन्तु इन्हें तीखा नहीं खाना चाहिये अन्यथा शरीर में पित प्रकृति बढ़ जाने से परेशानी उठानी पड़ सकती है।
* वृश्चिक लग्न वाले आपको पित्त से संबंधित परेशानी हो सकती है। पानी का सेवन अधिक करें। अपने राजसी एवं एैश्वर्यशाली जीवनशैली पर नियंत्रण रखें। अति किसी भी चीज की हानिकारक होती है।
* धनु लग्न वाले इनकी कफ विकृत्ति होने के कारण इन पर मौसम के परिवर्तन का बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है, जिसके लिए इन्हें सादा पानी और आयुर्वेदिक दवाइयों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
* मकर लग्न वाले काम के साथ आपको अपने खाने-पीने पर भी ध्यान देना चाहिए। लंबे समय तक भूखे ना रहकर बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।
* कुंभ लग्न के व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है। ऐसे व्यक्ति चिड़चिड़े होते हैं और बदन दर्द, दमा से पीडि़त होते हैं।
* मीन लग्न वाले व्यक्ति मोटापे ज्यादा खाने के कारण बदहजमी के मरीज होते हैं।
* मेष लग्न के लिए एलर्जी, त्वचा रोग, सफेद दाग, स्पीच डिसऑर्डर, नर्वस सिस्टम की तकलीफ आदि रोग संभावित हो सकते हैं।
* वृषभ लग्न के लिए हार्मोनल प्रॉब्लम, मूत्र विकार, कफ की अधिकता, पेट व लीवर की तकलीफ और कानों की तकलीफ सामान्य रोग है।
* मिथुन लग्न के लिए रक्तचाप (लो या हाई), चोट-चपेट का भय, फोड़े-फुँसी, ह्रदय की तकलीफ संभावित होती है।
* कर्क लग्न के लिए पेट के रोग, लीवर की खराबी, मति भ्रष्ट होना, कफजन्य रोग होने की संभावना होती है।
* सिंह लग्न के लिए मानसिक तनाव से उत्पन्न परेशानियाँ, चोट-चपेट का भय, ब्रेन में तकलीफ, एलर्जी, वाणी के दोष आदि परेशानी देते हैं।
* कन्या लग्न के लिए सिरदर्द, कफ की तकलीफ, ज्वर, इन्फेक्शन, शरीर के दर्द और वजन बढ़ाने की समस्या रहती है।
* तुला लग्न के लिए कान की तकलीफ, कफजन्य रोग, सिर दर्द, पेट की तकलीफ, पैरों में दर्द आदि बने रहते हैं।
* वृश्चिक लग्न के लिए रक्तचाप, थॉयराइड, एलर्जी, फोड़े-फुँसी, सिर दर्द आदि की समस्या हो सकती हैं।
* धनु लग्न के लिए मूत्र विकार, हार्मोनल प्रॉब्लम, मधुमेह, कफजन्य रोग व एलर्जी की संभावना होती है।
* मकर लग्न के लिए पेट की तकलीफ, वोकल-कॉड की तकलीफ, दुर्घटना भय, पैरों में तकलीफ, रक्तचाप, नर्वस सिस्टम से संबंधित परेशानियाँ हो सकती हैं।
* कुंभ लग्न के लिए कफजन्य रोग, दाँत और कानों की समस्या, पेट के विकार, वजन बढऩा, ज्वर आदि की संभावना हो सकती है।
* मीन लग्न के लिए आँखों की समस्या, सिर दर्द, मानसिक समस्या, कमर दर्द, आलस्य आदि की समस्या बनी रह सकती है।
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नहीं बदल सकता स्वाभाव और चरित्र

महाभारत की एक छोटी सी कथा है। पांडव वन में वेश बदलकर रह रहे थे। वे ब्राह्मण के रूप में रह रहे थे। एक दिन मार्ग में उन्हें कुछ ब्राह्मण मिले। वे द्रुपद राजा की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में जा रहे हैं। पाण्डव भी उनके साथ चल पड़े। स्वयंवर में एक धनुष को झुकाकर बाण से लक्ष्य भेद करना था। वहां आए सभी राजा लक्ष्य भेद करना तो दूर धनुष को ही झुका नहीं सके। अंतत: अर्जुन ने उसमें भाग लिया। अर्जुन ने धनुष भी झुका लिया और लक्ष्य को भी भेद दिया। शर्त के अनुसार द्रौपदी का स्वयंवर अर्जुन के साथ हो गया। पाण्डव द्रौपदी को साथ ले कर कुटिया में आ गए। द्रुपद को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन जैसे वीर युवक के साथ करना चाहता था। द्रुपद ने पाण्डवों की वास्तविकता पता लगाने का एक उपाय किया। एक दिन राजभवन में भोज का आयोजन रखा। उसमें पाण्डवों को द्रौपदी और कुंती के साथ बुलाया गया। उन्होंने राजमहल को कई वस्तुओं से सजाया।
एक कक्ष में फल फूल, आसन, गाय, रस्सियां और बीज जैसी किसानों के उपयोग की सामग्री रखवाई। एक अन्य कक्ष में युद्ध में काम आने वाली सामग्री रखी गई। इस तरह सुसज्जित राजमहल में पाण्डवों को भोज कराया गया। भोजन के बाद सभी अपनी पसंद की वस्तुएं आदि देखने लगे। ब्राह्मण वेशधारी पाण्डव सबसे पहले उसी कक्ष में गए जहां अस्त्र-शस्त्र रखे थे। राजा द्रुपद उनकी सभी क्रियाओं को बड़ी सूक्ष्मता से देख रहे थे। वे समझ गए कि ये पांचों ब्राह्मण नहीं हैं। जरूर ये क्षत्रिय ही हैं। अवसर मिलते ही उन्होंने युधिष्ठिर से बात की और पूछ ही लिया सच बताएं आप ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय। आपने ब्राह्मण के समान वस्त्र जरूर पहन रखे हैं पर आप हैं क्षत्रिय। युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे। उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे सचमुच क्षत्रिय ही हैं और स्वयंवर की शर्त पूरी करने वाला व्यक्ति और कोई नहीं स्वयं अर्जुन ही है। यह जानकर द्रुपद खुश हो गया। वह जो चाहता था वही हुआ।
कई बार ऐसा होता है कि लोग अपने काम और रहन-सहन से हटकर वेश बना लेते हैं, अपनी पहचान छुपा लेते हैं लेकिन कपड़े और आभूषणों से कभी आपका स्वभाव और चरित्र नहीं बदल सकता। न ही आपका धर्म प्रभावित हो सकता है। वह तो आपके व्यवहार में है और जब भी वक्त आता है आपका धर्म, स्वभाव और चरित्र कपड़ों के आवरण से बाहर आकर हकीकत बता देता है।
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जलवायु संकट


पिछले ग्यारह हजार तीन सौ सालों की तुलना में आज पृथ्वी सबसे गर्म है। उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक सागर में इस बार 1970 के बाद सबसे कम बर्फ जमी है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव से बाहर दुनिया का सबसे बड़ा बर्फ भंडार, तिब्बत में ही है। इसी नाते तिब्बत को ‘दुनिया की छत’ कहा जाता है। इस नाते आप तिब्बत को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कह सकते हैं। यह तीसरा धु्रव, पिछले पांच दशक में डेढ़ डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की नई चुनौती के सामने विचार की मुद्रा में है। नतीजे में इस तीसरे धु्रव ने अपना अस्सी प्रतिशत बर्फ भंडार खो दिया है। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा चिंतित हैं कि 2050 तक तिब्बत के ग्लेशियर नहीं बचेंगे। नदियां सूखेंगी और बिजली-पानी का संकट बढ़ेगा। तिब्बत का क्या होगा?
वैज्ञानिकों की चिंता है कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार जितनी तेज होगी, हवा में उत्सर्जित कार्बन का भंडार उतनी ही तेज रफ्तार से बढ़ता जाएगा। जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभावों के लिहाज से यह सिर्फ तीसरे धु्रव नहीं, पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की तैयारी बैठकों को लेकर आ रही रिपोर्टें बता रही हैं कि मौसमी आग और जलवायु पर उसके दुष्प्रभावों को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। इसे कम करने के लिए तैयारी बैठकें लगातार चल रही हैं। हम लोग 1992 से अपनी पृथ्वी चिंता में दुबले हुए जा रहे है। विश्व नेता कई बार मिले। सरकारों के प्रतिनिधी वार्ताकारों ने अपने आपको खपाएं रखा। बर्लिन, क्योटो, ब्यूनसआर्यस, माराकेस, नई दिल्ली, मिलान, फिर ब्यूनसआर्यस, मांट्रीयल, नेरौबी, बाली, कोपेनगहेगन, दोहा और लीमा मतलब कहां-कहां नहीं जमावड़ा लगा। सिलसिला सा बना हुआ है। विश्व नेता, उनके प्रतिनिधी मिलते है, दलीले देते है, गुस्सा होते है और एक-दूसरे के ललकारते हुए कहते है कि वह एक्शन ले, समझौता करें, वायदे के साथ पृथ्वी को बचाने का प्रोटोकॉल अपनाएं।
इन तमाम कोशिशों का अंत नतीजा अभी तक सिर्फ दो सप्ताह की बैठक बाद बने 1992 का संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कॉनवेंशन फ्रेमवर्क और 1997 का कयोटो प्रोटोकॉल है। मतलब कुछ भी नहीं। यों मानने को माना जाता है कि पृथ्वी के गरमाने को रोकने के आंदोलन में कयोटो प्रोटोकॉल मोड़ निर्णायक था। लेकिन तथ्य यह भी है कि कयोटो में सालों की मेहनत के बाद 1997 में जो संधि हुई वह 2005 में जा कर अमल में आई और उसके परिणाम निराशाजनक थे।
क्योटो संधि इसलिए व्यर्थ हुई क्योंकि जिन्हं वायदों पर अमल करना था उन मुख्य देशों ने वैसा नहीं किया। अपनी बात से मुकरे। अमेरिका और चीन बड़े जिम्मेवार देश थे तो भारत भी समस्या को बढ़वाने और उलझवाने में पीछे नहीं था। कुछ प्रगति हुई भी, योरोपीय देशों ने अपनी वाहवाही बनाई, क्योटो के वायदे अनुसार अपना अमल बताया तो उसके पीछे हकीकत सोवियत साम्राज्य के बिखरने बाद कबाड़ हुए कारखानों के बंद होने की थी।
लगातार हर साल पिछले बीस सालों से दुनिया के देशों के प्रतिनिधी बंद कमरों में बंद होते है, सौदेबाजी करते है और उत्सर्जन रोकने, खुदाई घटाने की वायदेबाजी सोचते है। लेकिन असल दुनिया लगातार यही मंत्र जाप कर रही है कि ‘ड्रील बेबी ड्रील’! मतलब निकालों कोयला-तेल और उड़ाओं धुंआ! तभी अमेरिका के शेल फील्ड और गल्फ की खाड़ी पर आर्कटिक के ग्लेशियर कुर्बान हुए जा रहे है।
नतीजा सामने है। इस दशक का हर वर्ष 1998के पहले के हर वर्ष के मुकाबले अधिक गर्म हुआ है। 2015 इतिहास में दर्ज अभी तक के रिकार्ड का सर्वाधिक गर्म वर्ष घोषित हुआ है। कोई आश्चर्य नहीं जो दिल्ली में अभी भी हम ठंड महसूस नहीं कर रहे है और चेन्नई में बारिश का कहर बरपा। खतरा गंभीर है और घड़ी की सुई बढ़ रही है। जलवायु विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि सिर्फ तीस वर्ष बचे है, सिर्फ तीस। अपने को हम संभाले। कार्बन उत्सर्जन रोके अन्यथा बढ़ी गर्मी ऐसी झुलसाएगी कि तब बच नहीं सकेगें। उस नाते संयुक्त राष्ट्र के क्रिश्चियन फिग्यूरेस का यह कहा सही है कि जलवायु इमरजेंसी है इसलिए भागना बंद करें।
दुनिया के सभी देश बुनियादी तौर पर खुद की चिंता करने वाले है। हम एक ही वक्त स्वार्थी है और झगडालु भी। पेरिस में जितने देशों की भागीदारी है उन सभी में हर देश कार्बन उत्सर्जन को उतना ही रोकने को तैयार होंगा जिससे उनकी आर्थिकी को नुकसान न हो। और हां, हर देश यह भी चाह रहा है कि दूसरा देश, सामने वाला जरूर यह वायदा करें कि वह जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपना कार्बन उत्सर्जन बांधेगा। इसी के चलते पिछले तमाम अधिवेशन हल्के वायदों और बिना ठोस एक्शन के खत्म हुए थे। बावजूद इसके पेरिस की मौजूदा सीओपी21 इसलिए आखिरी अवसर है क्योंकि 2011 में वार्ताकारों में सहमति बनी थी कि कुछ भी हो 2015 के आखिर तक सौदा होगा। तभी दुनिया के लगभग सभी देशों के प्रतिनिधियों को यह करार करना ही है कि वे भविष्य के अपने उत्सर्जन को रोकने और जलवायु को गर्म होने से रोकने के लक्ष्य में कहां तक जा सकते है। क्या यह मुमकिन होगा? क्या महाखलनायक माने जाने वाले चीन, भारत और अमेरिका झुकेगे?
जोखिम बढ़ रही है, लगातार बढ़ती जा रही है। वक्त का तकाजा है कि जलवायु कूटनीति सिरे चढ़े। यह वैश्विक समस्या है। अस्तित्व का खतरा है तो जबरदस्त आर्थिक असर का खतरा भी लिए हुए है। यह हर कोई मान रहा है कि ऐसे परिवर्तन जरूरी है जिनसे जलवायु का बदलना रूके और अंतत: ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन पूरी तरह रूक ही जाए। इसके लिए आर्थिकियों का ट्रांसफोरमेशन भी जरूरी है!
सो यह विश्व व्यवस्था का कुल झमेला है। वैश्वीकरण के जिस मुकाम पर आज हमारी दुनिया है। भूमंडलीकरण के बाद की जो नई विश्व व्यवस्था है उसमें एक साथ इतनी तरह के चैलेंज बने है कि एक तरफ दुनिया में जहा एकजुटता बन रही है, साझापन बन रहा है तो वही यह सहमति भी नहीं होती कि कैसे आगे बढ़ा जाए? फिर मसला आतंक के काले झंड़ेे का हो, सशस्त्र संघर्ष का हो, आर्थिकियों के बेदम होने का हो या जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो। ये सब हम इंसानों की बनाई समस्याएं है। पर इंसान को यह इमरजेंसी भी समझ नहीं आ रही है कि पृथ्वी को, इस ग्रह को सूखाने, आग का गोला बनने देने के कैसे दुष्परिणाम होंगे!
इसलिए पेरिस में जमा राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों के लिए गतिरोध तोडऩे और कार्रवाई करने का वक्त है। यदि हवाई हमले और बम फेंकने के फैसले क्षण भर में लिए जा सकते है, युद्व की घोषणा तुरंत हो सकती है तो ऐसा करने वाले नेता उतने ही साहसी, व्यवहारिक निर्णय जलवायु परिवर्तन मसले पर क्यों नहीं कर सकते जिन पर अरबों लोगों याकि पूरी मानव जाति का भविष्य दांव पर है।
सच पूछिए तो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा खासकर गरीब देशों में जिस तरह की परियोजनाओं को धन मुहैया कराया जा रहा है, यदि कार्बन उत्सर्जन कम करने में उनके योगदान का आकलन किया जाए, तो मालूम हो जाएगा कि उसकी चिंता कितनी जुबानी है और कितनी जमीनी। यों तिब्बत को अपना कहने वाला चीन भी बढ़ती मौसमी आग और बदलते मौसम से चिंतित है, पर क्या वाकई? तिब्बत को परमाणु कचराघर और पनबिजली परियोजनाओं का घर बनाने की खबरों से तो यह नहीं लगता कि चीन को तिब्बत या तिब्बत के बहाने खुद के या दुनिया के पर्यावरण की कोई चिंता है।
भारत ने भी कार्बन उत्सर्जन में तीस से पैंतीस फीसद तक स्वैच्छिक कटौती की घोषणा की है। इसके लिए गांधी जयंती का दिन चुना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जीवन शैली में बेहतर बदलाव के लिए चेतना पैदा करने से लेकर स्वच्छ ऊर्जा और वन विकास के सुझाव पेश किए हैं। निस्संदेह, इसकी प्रशंसा होनी चाहिए; मगर क्या इन घोषणाओं पर आगे बढऩे के रास्ते सुगम बनाने की वाकई कोई हमारी सोच है?
उपभोग बढ़ेगा और छोटी पूंजी का व्यापार गिरेगा। गौर कीजिए कि इस डर से पहले हम में से कई मॉल संस्कृति से डरे, तो अधिकतर ने इसे गले लगाया; गर्व से कहा कि यह उत्तर बिहार का पहला मॉल है। अब डराने के लिए नया ई-बाजार है। यह ई-बाजार जल्द ही हमारे खुदरा व्यापार को जोर से हिलाएगा, कोरियर सेवा और पैकिंग उद्योग और पैकिंग कचरे को बढ़ाएगा। ई-बाजार अभी बड़े शहरों का बाजार है, जल्द ही छोटे शहर-कस्बे और गांव में भी जाएगा। तनख्वाह के बजाय, पैकेज कमाने वाले हाथों का सारा जोर नए-नए तकनीकी घरेलू सामान और उपभोग पर केंद्रित होने को तैयार है। जो छूट पर मिलेज् खरीद लेने की भारतीय उपभोक्ता की आदत, घर में अतिरिक्त उपभोग और सामान की भीड़ बढ़ाएगी और जाहिर है कि बाद में कचरा। सोचिए! क्या हमारी नई जीवन शैली के कारण पेट्रोल, गैस और बिजली की खपत बढ़ी नहीं है? जब हमारे जीवन के सारे रास्ते बाजार ही तय करेगा, तो उपभोग बढ़ेगा ही। उपभोग बढ़ाने वाले रास्ते पर चल कर क्या हम कार्बन उत्सर्जन घटा सकते हैं?
हमारी सरकारें पवन और सौर ऊर्जा के बजाय, पनबिजली और परमाणु बिजली संयंत्रों की वकालत करने वालों के चक्कर में फंसती जा रही हैं। वे इसे ‘क्लीन एनर्जी-ग्रीन एनर्जी’ के रूप में प्रोत्साहित कर रहे हैं। हमें यह भी सोचने की फुरसत नहीं कि बायो-डीजल उत्पादन का विचार, भारत की आबोहवा, मिट््टी व किसानी के कितना अनुकूल है और कितना प्रतिकूल? हकीकत यह है कि अभी भारत स्वच्छ ऊर्जा की असल परिभाषा पर ठीक से गौर भी नहीं कर पाया है। हमें समझने की जरूरत है कि स्वच्छ ऊर्जा वह होती है, जिसके उत्पादन में कम पानी लगे तथा कार्बन डाइऑक्साइड व दूसरे प्रदूषक कम निकलें। इन दो मानदंडों को सामने रख कर सही आकलन संभव है। पर हमारी अधिकतम निर्भरता अब भी कोयले पर ही है।
ठीक है कि पानी, परमाणु और कोयले की तुलना में सूरज, हवा, पानी और ज्वालामुखियों में मौजूद ऊर्जा को बिजली में तब्दील करने में कुछ कम पानी चाहिए, पर पनबिजली और उसके भारतीय कुप्रबंधन की अपनी अन्य सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियां हैं। ऐसे में सौर और पवन ऊर्जा के प्रोत्साहन के लिए हमने क्या किया। कुछ नहीं, तो उपकरणों की लागत कम करने की दिशा में शोध तथा तकनीकी और अर्थिक मदद तो संभव थी। समाज की जेब तक इनकी पहुंच बनाने का काम तो करना ही चाहिए था। अलग मंत्रालय बना कर भी हम कितना कर पाए? सब जानते हैं कि ज्वालामुखियों से भू-ऊर्जा का विकल्प तेजी से बढ़ते मौसमी तापमान को कम करने में अंतत: मददगार ही होने वाला है। भारत के द्वीप-समूहों में धरती के भीतर ज्वालामुखी के कितने ही स्रोत हैं। जानकारी होने के बावजूद हमने इस दिशा में क्या किया?
हम इसके लिए पैसे का रोना रोते हैं। हमारे यहां कितने फुटपाथों का फर्श बदलने के लिए कुछ समय बाद जान-बूझ कर पत्थर और टाइल्स को तोड़ दिया जाता है। क्या दिल्ली के मोहल्लों में ठीक-ठाक सीमेंट-सडक़ों को तोड़ कर फिर वैसा ही मसाला दोबारा चढ़ा दिया जाना फिजूलखर्ची नहीं है। ऐसे जाने कितने मदों में पैसे की बरबादी है। क्यों नहीं पैसे की इस बरबादी को रोक कर, सही जगह लगाने की व्यवस्था बनती; ताकि लोग उचित विकल्प को अपनाने को प्रोत्साहित हों। जरूरी है कि हम तय करें कि अब किन कॉलोनियों को सार्वजनिक भौतिक विकास मद में सिर्फ रखरखाव की मामूली राशि ही देने की जरूरत है।
उक्त तथ्य तो विचार का एक क्षेत्र विशेष मात्र हैं। जलवायु परिवर्तन के मसले को लेकर दुनिया का कोई भी देश अथवा समुदाय यदि वाकई गंभीर है, तो उसे एक बात अच्छी तरह दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि जलवायु परिवर्तन, सिर्फ मौसम या पर्यावरण विज्ञान के विचार का विषय नहीं है। मौसम को नकारात्मक बदलाव के लिए मजबूर करने में हमारे उद्योग, अर्थनीति, राजनीति, तकनीक, कुप्रबंधन, लालच, बदलते सामाजिक ताने-बाने, सर्वोदय की जगह व्यक्तियोदय की मानसिकता, और जीवनशैली से लेकर भ्रष्टाचार तक का योगदान है। इसके दुष्प्रभाव भी हमारे उद्योग, पानी, फसल, जेब, जैव विविधता, सेहत, और सामाजिक सामंजस्य को झेलने पड़ेंगे। हम झेल भी रहे हैं, लेकिन सीख नहीं रहे।
यह जलवायु परिवर्तन और उसकी चेतावनी के अनुसार स्वयं को न बदलने का नतीजा है कि आज तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नकदी फसलों को लेकर मौत पसरी है। नए राज्य के रूप में तेलंगाना ने 1,269 आत्महत्याओं का आंकड़ा पार कर लिया है। सूखे के कारण आर्थिक नुकसान बेइंतहा हैं। पिछले तीन सप्ताह के दौरान आंध्र के अकेले अनंतपुर के हिस्से में बाईस किसानों ने आत्महत्या की। जिन सिंचाई और उन्नत बीज आधारित योजनाओं के कारण, ओडि़शा का नबरंगपुर कभी मक्का के अंतरराष्ट्रीय बीज बिक्री का केंद्र बना, आज वही गिरावट के दौर में है।
भारत का कपास दुनिया में मशहूर है। फिर भी कपास-किसानों की मौत के किस्से आम हैं। कभी भारत का अनाज का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब का हाल किसी से छिपा नहीं है। इसने पहली हरित क्रांति के दूरगामी असर की पोल खोल दी है। इसकी एक के बाद, दूसरी फसल पिट रही है। बासमती, बढि?ा चावल है; फिर भी पंजाब के परमल चावल की तुलना में, बासमती की मांग कम है। इधर पूरे भारत में दालों की पैदावार घट रही है। महंगाई पर रार बढ़ रही है। यह रार और बढेÞगी; क्योंकि मौसम बदल रहा है। उन्नत बीज, कीटों का प्रहार झेलने में नाकाम साबित हो रहे हैं और देसी बीजों को बचाने की कोई जद््दोजहद सामने आ नहीं रही। यह तटस्थता कल को औद्योगिक उत्पादन भी गिराएगी। नतीजा? स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का यह दौर, मानव सभ्यता में छीना-झपटी और वैमनस्य का नया दौर लाने वाला साबित होगा।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर को हमें प्रकृति द्वारा मानव कृत्यों के नियमन के कदम के तौर पर लेना चहिए। हम नमामि गंगा में योगदान दें, न दें; हम एकादश के आत्म नियमन सिद्धांतों को मानें, न मानें; पर यह कभी न भूलें कि प्रकृति अपने सिद्धांतों को मानती भी है और दुनिया के हर जीव से उनका नियमन कराने की क्षमता भी रखती है। जिन जीवों को यह जलवायु परिवर्तन मुफीद होगा, उनकी जीवन क्षमता बढ़ेगी।
कई विषाणुओं द्वारा कई तरह के रसायनों और परिस्थितियों के बरक्स प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेने के कारण, डेंगू जैसी बीमारियां एक नई महामारी बन कर उभरेंगी। आइए, मोहनदास करमचंद गांधी नामक उस महान दूरदर्शी की इस पंक्ति को बार-बार दोहराएं- ‘पृथ्वी हरेक की जरूरत पूरी कर सकती है, लालच एक व्यक्ति का भी नहीं।’
जलवायु परिवर्तन में नियंत्रण के लिए पेरिस मे बारह दिनी जलवायु सम्मेलन शुरू हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के 195 सदस्य देश इसमें भागीदारी कर रहें हैं। इस बैठक में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर वैश्विक सहमति बनने की उम्मीद इसलिए है क्योंकि अमेरिका, चीन और भारत जैसे औद्योगिक देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने पर रजामंदी पहले ही जता दी है। साथ ही माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट ने पर्यावरण परियोजनाओं के समर्थन के लिए एक अरब डॉलर की राशि राष्ट्रमण्डल द्वारा शुरू की गई हरित वित्त संस्था को देने की घोषणा की है। तैयार हो रही इस पृष्ठभूमि से लगता है पेरिस का जलवायु सम्मेलन दुनिया के लिए फलदायी सिद्ध होने जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जलवायु में हो रहे परिवर्तन को नियंत्रित करने की दृष्टि से ‘अमेरिका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक तिहाई कमी लाने की घोषणा पहले ही कर दी है। चीन और भारत ने भी लगभग इतनी ही मात्रा में इन गैसों को कम करने का वादा अंतरराष्ट्रिय मंचों से किया है। ऐसा इसलिए जरूरी है, क्योंकि धरती के भविष्य को इस खतरे से बढ़ी दूसरी कोई चुनौती नहीं है। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए ये देश कोयला आधारित बिजली का उत्पादन कम करेंगे। अमेरिका में कोयले से कुल खपत की 37 फीसदी बिजली पैदा की जाती है। कोयले से बिजली उत्पादन में अमेरिका विष्व में दूसरे स्थान पर है। पर्यावरण हित से जुड़े इन लक्ष्यों की पूर्ति 2030 तक की जाएगी।
पिछले साल पेरु के शहर लीमा में 196देश वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए राष्ट्रिय संकल्पों के साथ, आम सहमति के मसौदे पर राजी हुए थे। इस सहमति को पेरिस में शुरू हुए अंतरराष्ट्रिय जलवायु सम्मेलन की सफलता में अहम् कड़ी माना जा रहा है। दुनिया के तीन प्रमुख देशों ने ग्रीन हाउस गैसों में उत्सर्जन कटौती की जो घोषणा की है, उससे यह अनुमान लगाना सहज है कि पेरिस सम्मेलन में सार्थक परिणाम निकलने वाले हैं। यदि इन घोषणा पर अमल हो जाता है तो अकेले अमेरिका में 32 प्रतिशत जहरीली गैसों का उत्सर्जन 2030 तक कम हो जाएगा। अमेरिका के 600 कोयला बिजली घरों से ये गैसें दिन रात निकलकर वायुमंडल को दूशित कर रही हैं। अमेरिका की सड?ो पर इस समय 25 करोड़ 30 लाख कारें दौड़ रही हैं। यदि इनमें से 16करोड़ 60 लाख कारें हटा ली जाती हैं तो कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्पादन 87 करोड़ टन कम हो जाएगा।
पेरू में वैश्विक जलवायु परिवर्तन अनुबंध की दिशा में इस पहल को अन्य देशों के लिए भी एक अभिप्रेरणा के रूप में लेना चाहिए। क्योंकि भारत एवं चीन समेत अन्य विकासशील देशों की सलाह मानते हुए मसौदे में एक अतिरिक्त पैरा जोड़ा गया था। इस पैरे में उल्लेख है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े कॉर्बन उत्सर्जन कटौती के प्रावधानों को आर्थिक बोझ उठाने की क्षमता के आधार पर देशों का वर्गीकरण किया जाएगा,जो हानि और क्षतिपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित होगा। अनेक छोटे द्विपीय देशों ने भी इस सिद्धांत को लागू करने के अनुरोध पर जोर दिया था। लिहाजा अब धन देने की क्षमता के आधार पर देश कॉर्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के उपाय करेंगे। माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट ने छोटे द्वीपीय 53 देशों वाले राष्ट्रमण्डल का नेतृत्व करते हुए ही 1 अरब डॉलर की राशि देने की घोषणा की है।
पेरू से पहले के मसौदे के परिप्रेक्ष्य में भारत और चीन की चिंता यह थी कि इससे धनी देशों की बनिस्बत उनके जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर ज्यादा बोझ आएगा। यह आशंका बाद में ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्जियन’ के एक खुलासे से सही भी साबित हो गई थी। मसौदे में विकासशील देशों को हिदायत दी गई थी कि वे वर्ष 2050 तक प्रति व्यक्ति 1.44 टन कॉर्बन से अधिक उत्सर्जन नहीं करने के लिए सहमत हों, जबकि विकसित देशों के लिए यह सीमा महज 2.67 टन तय की गई थी। इस पर्दाफाष के बाद कॉर्बन उत्सर्जन की सीमा तय करने को लेकर चला आ रहा गतिरोध पेरू में संकल्प पारित होने के साथ टूट गया था। नए प्रारूप में तय किया गया है कि जो देश जितना कॉर्बन उत्सर्जन करेगा, उसी अनुपात में उसे नियंत्रण के उपाय करने होंगे। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में फिलहाल चीन शीर्श पर है। अमेरिका दूसरे और भारत तीसरे पायदान पर है। अब इस नए प्रारूप को ‘जलवायु कार्रवाई का लीमा आह्वान’ नाम दिया गया है। पर्यावरण सुधार के इतिहास में इसे एक ऐतिहासिक समझौते के रुप में देखा जा रहा है। क्योंकि इस समझौते से 2050 तक कॉर्बन उत्सर्जन में 20 प्रतिशत तक की कमी लाने की उम्मीद जगी है।
यह पहला अवसर था, जब उत्सर्जन के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ चुके चीन, भारत, ब्राजील और उभरती हुई अन्य अर्थव्यवस्थाएं अपने कॉर्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए तैयार हुईं थीं। सहमति के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य देश अपने कॉर्बन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य को पेरिस सम्मेलन में पेश करेंगे। यह सहमति इसलिए बन पाई थी, क्योंकि एक तो संयुक्त राष्ट्र के विषेश दूत टॉड स्टर्न ने उन मुद्दों को पहले समझा, जिन मुद्दों पर विकसित देश समझौता न करने के लिए बाधा बन रहे थे। इनमें प्रमुख रुप से एक बाधा तो यह थी कि विकसित राष्ट्र, विकासशील राष्ट्रों को हरित प्रौद्योगिकी की स्थापना संबंधी तकनीक और आर्थिक मदद दें। दूसरे, विकसित देश सभी देशों पर एक ही सशर्त आचार संहिता थोपना चाहते थे, जबकि विकासशील देश इस शर्त के विरोध में थे। दरअसल विकासशील देशों का तर्क था कि विकसित देश अपना औद्योगिक – प्रौद्योगिक प्रभुत्व व आर्थिक समृद्धि बनाए रखने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा का प्रयोग कर रहे हैं। इसके अलावा ये देश व्यक्तिगत उपभोग के लिए भी ऊर्जा का बेतहाशा दुरुपयोग करते हैं। इसलिए खर्च के अनुपात में ऊर्जा कटौती की पहल भी इन्हींं देशों को करनी चाहिए। विकासशील देशों की यह चिंता वाजिब थी, क्योंकि वे यदि किसी प्रावधान के चलते ऊर्जा के प्रयोग पर अकुंष लगा देंगे तो उनकी समृद्ध होती अर्थव्यवस्था की बुनियाद ही दरक जाएगी। भारत और चीन के लिए यह चिंता महत्वपूर्ण थी, क्योंकि ये दोनों, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं। इसलिए ये विकसित देशों की हितकारी इकतरफा शर्तां के खिलाफ थे।
अब पेरिस में समझौते का स्पष्ट और बाध्यकारी प्रारूप सामने आएगा। लिहाजा अनेक सवालों के जवाब फिलहाल अनुत्तरित बने हुए हैं। पेरु मसौदे में इस सवाल का कोई उत्तर नहीं है कि जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए वित्तीय स्त्रोत कैसे हासिल होंगे और धनराशि संकलन की प्रक्रिया क्या होगी? हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने पेरू में जो बयान दिया था, उससे यह अनुमान लगा था कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन के आसन्न संकट को देखते हुए नरम रुख अपनाने को तैयार हो सकता है। क्योंकि केरी ने तभी कह दिया था कि ‘गर्म होती धरती को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन पर समझौते के लिए अब ज्यादा विकल्पों की तलाश एक भूल होगी, लिहाजा इसे तत्काल लागू करना जरुरी है।’ अमेरिका को यह दलील देने की जरूरत नहीं थी, यदि वह और दुनिया के अन्य अमीर देश संयुक्त राष्ट्र की 1992 में हुई जलवायु परिवर्तन से संबंधित पहली संधि के प्रस्तावों को मानने के लिए तैयार हो गए होते ? इसके बाद 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल में भी यह सहमति बनी थी कि कॉर्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण सभी देशों का कर्तव्य है, साथ ही उन देशों की ज्यादा जवाबदेही बनती है जो ग्रीन हाउस गैसों का अधिकतम उत्सर्जन करते हैं। लेकिन विकसित देशों ने इस प्रस्ताव को तब नजरअंदाज कर दिया था, किंतु अब सही दिशा में आते दिख रहे हैं।
दरअसल जलवायु परिवर्तन के असर पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि सन् 2100 तक धरती के तापमान में वृद्धि को नहीं रोका गया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। क्योकि इसका सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ रहा है। भविष्य में अन्न उत्पादन में भारी कमी की आशंका जताई जा रही है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एशिया के किसानों को कृषि को अनुकूल बनाने के लिए प्रति वर्ष करीब पांच अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना होगा। हमारे सामने जो चुनौतियां आज विद्यमान हैं वह प्रकृति जन्य नहीं, वरन मानव की स्व प्रदत्त हैं। वस्तुत: इसके वाबजूद धन्य है यह नेचर जिसने उसी मानव के हाथ में स्वयं को सवांरने का अवसर भी दे दिया है लेकिन दुनिया के मनुष्य हैं कि समस्यायें तो उत्पन्न कर लेते हैं और जब समाधान की बात आती है तो विश्वभर के देश आपस में बातें तो बहुत करते हैं लेकिन व्यवहारिक धरातल पर भारत जैसे कुछ ही देश गंभीरतापूर्वक आगे आते हैं। भारत में मौसम का मिजाज तमाम पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए नई राह पर चल रहा है। इससे कहीं बेमौसम बरसात हो रही है तो कहीं भारी बर्फबारी। बदलते मौसम ने देश में कई मौसमी बीमारियों को भी बड़े पैमाने पर न्योता दे दिया है। उसके इस मिजाज ने मौसम विज्ञानियों को भी चिंता में डाल दिया है। इस सदी में यह पहला मौका है जब किसी साल मौसम के मिजाज में इतना ज्यादा बदलाव देखने को मिल रहा है. भारत ही नहीं, ग्लोबल वार्मिंग का असर अब दुनिया के कई देशों में स्पष्ट नजर आने लगा है. भारत में इसके इतने गहरे असर का यह पहला मौका है। उनके मुताबिक, इसी वजह से पिछले एक दशक में भारी बर्फबारी, सूखा, बाढ़, गरमी के मौसम में ठंड और ठंड के मौसम में गरमी जैसी घटनाएं बढ़ी हैं मौसम के इस तेजी से बदलते मिजाज की वजह से देश की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच रहा है।

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वर्ष 2015 में भारत की राजनीती

अंग्रेजी वर्ष 2015 को भारत के राजनीति में आया एक मोड़ मानूंगा जबकि की बिहार के चुनाव परिणाम ने एक सबक सबों को दिया की आप बहुत दिनों तक बहुतों को धोखे में नहीं रख सकते हैं। मैंने कभी यह नहीं माना की नरेन्द्र मोदी की जीत उनकी ही थी वल्कि वह कांग्रेस की हार अधिक थी। भारत की जनता इतनी मूर्ख नहीं कि वह राहुल बनाम मोदी में किसको चुने और यह उनका प्रारब्ध ही था जबकि वह भारतीय जनता पार्टी की सबसे दयनीय स्थिति में प्रधानमंत्री के पद के लिए इस प्रकार चुन लिए गए या उन्होंने अपने को चुनवा लिया जो की सांघिक संघटनों में अनुश्रुत था। कोई व्यक्ति अपने लिए पद का निर्णय ले यह सांघिक परम्पराओं में कभी हो ही नहीं सकता और यही हुआ। यदि यह संघ के मंजे लोंगों का निर्णय होता तो मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री नहीं, केंद्र में भेज दिए गए होते, पार्टी के ही पद पर ही सही और वे बंगारू लक्ष्मण जैसों से अछे अध्यक्ष हो ही सकते थे संभव: गडकरी से भी अच्छा।
पर होना कुछ और था-
भारतीय राजनीति का कोर्पोरेटीकरण, जो कि कभी भी दीनदयाल उपाध्याय के अनुयायियों को स्वीकारणीय नहीं होना था, एक कमरे में बना जनसंघ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रीय से राजमाता सिंधिया के दिनों में क्षेत्रीय और फिर वाजपयी-आडवानी के समय में राष्ट्रीय बनी पर उन दोनों के ही गलती या कहें सांघिक परम्पराओं की अनुपालना न करने से नया नेतृत्व नहीं आ पाया और एक बार एक सच्चे अर्थों में एक राष्ट्रीय दल ने एक क्षेत्रीय नेता को देश के सामने मोदी के रूप में खडा कर दिया जिसके पास अपने राज्य का तो अनुभव था पर देश का नहीं और ट्रंप कार्ड उसकी अपनी पिछड़ी जाति का होना था जिस तथाकथित गरीब के पीछे एक धनी प्रांत के बड़े लोग थे। कहा जाता है की चुनावी प्रचार में 16000 करोड़ रुपये का इंधन फूंका गया। चुनाव एमपी नही पीएम का हो गया, किसी राष्ट्रपति प्रणाली की तरह जो सांघिक एकात्म खांचे में बैठता तो जरूर है पर किसी क्षेत्रीय नेता को सामने करना एक विरोधाभास भी ला देता है।
सिद्धांतों की कसौटी पर मोड, जीत गया पर संघ के अनेक आदर्श हांर गए। ऐसा नही की मेरे जैसे कुछ लोग जो इसके विपरीत सोचते हों वे भाजपा के विरोधी हों या उसके विरोधी के जीत की आश लगाये हों पर मन न माने तो आप क्या करेंगे- नोटा दबा सकते, घर में बैठ सकते, पर जो जश्न मना उसमे शरीक भी नहीं हो सकते। कमल खिल गया, संसद की कतारों में भर गया, पर जब उन सांसदों की पृष्ठभूमि पर ध्यान गया अधिकाश कल तक कमल को कोसने वाले दलबदलू, अपराधी, वंश परम्पराओं में आये, बहुकोटीपति से भरा केशरिया बाना जिसने पहले ही अपने एक तिहाई रंग को कुर्बान कर दिया था अब स्पष्टत: उस दल का रूप था जिसके विरोध में वह बना था।
केवल एक बात पूरी हुई की हिन्दू के नाम पर जीता भी जा सकता हैज्मैंने 1967 से अब तक के चुनावों को देखा है, सरकारी सेवा के समय की चुनावी अलिप्तता को छोड़ सदैव इसी जनसांघिक विचारधारा का रहा हूँ जैसा अनुमान था और आंकड़े थे भाजपा बिहार में हार गया, पहले बिहार के उपचुनावों, वाराणसी के निकायों में और अब गुजरात के गाँव में भी हारा है, बिहार में लोग सोचते हैं की महागठबंधन ने भाजपा को हराया है , मुझे लगता है की भाजपा के कार्यकत्र्ताओं ने भाजपा को हराया है- करीब 30 वर्ष के सरकारी सेवा के बाद मुझमें चुनावी सक्रियता थी पर मैं भाजपा के साथ नहीं था, न ही इसके विरोधियों के साथ था, मैं कार्यकर्ताओं के साथ था, मैंने उनकी वेदना को निकट से खास कर मिथिला में देखा , जो मेरे बिछुड़े अनेक साथी 1975-77 के बाद से लगातार भाजपा के साथ थे वे मन रहे थे की भाजपा का उम्मीदवार हार जाये- तो भाजपा को हारना ही था, वह हार गयी, मैंने उनकी एक बागी सभा में भी कहा था की हिम्मत करें खड़े हों जीतने के बाद जम्मू की 1977 की कहानी दोहरावें- पर मैं भावुक था, वे राजनीती के खिलाड़ी, वे जानते थे की भाजपा का उम्मीदवार कैसे हारेंगे.. भाजपा का उम्मीदवार हारा, भाजपा का कार्यकर्ता जीता, जो भाजपा हारी जो भाजपा थी ही नहीं।
आखिर इस हार का जिम्मेवार कौन है, स्वयम प्रधानमंत्री जिसे हिन्दू में किसी ने ‘सी एम आफ इंडिया’ लिखा था, सी एमम को पी एम बनाने का मैं इसीलिये विरोधी था.. मैं नरेन्द्र मोदी का व्यक्तिगत विरिधी नहीं हूँ, मैं उन प्रक्रियाओं का विरोधी हूँ जिससे वे आगे गए, वे स्वस्थ नहीं थे।
मेरी बातें बहुत सारे लोंगों को जंचेगी नहीं पर मेरा यह सुविचारित मत है की हमें देश के बारे में एकात्म भाव से सोचना चाहिए और बिहार की जनता ने जो ठोकर दी है वह आत्मालोचना के लिए पर्याप्त होनी चाहिए- साम, दाम, दंड, भेद से राजनीति चलती है पर राष्ट्रनीति इससे ऊपर है, राष्ट्र क्या अब भी दलबदल, धनपति, जातिपाति की गणना भाजपा को करनी है तो इसकी विरोधी में क्या दुर्गुण थे, यही सब ना.. इस मामले में बिहार के चुनाव ने बता दिया है की सोच सच्ची करें तभी जनता साथ रहेगी। प्रश्न चुनाव हरने या जीतने का हो सकता है पर इसके मायने अधिक हैं- यदि उस पर विचार हुवा तभी यात्रा जारी रहेगी- कंटकाकीर्ण स्वयं स्वीकृत मार्ग पर चलने वाले को जीत या हार में समभावी होना चाहिए तभी परम वैभव की कल्पना का चित्र हम मन से जन तक के मन में उकेर सकेंगे।
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