..मजेदार बात यह है कि समय हम सभी के पास बराबर मात्रा में है। इस मामले में कोई गरीब या अमीर नहीं है। पर इस प्राप्त समय का कौन, कितना और कैसा सदुपयोग करता है, उसका आधार तो हर व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और समझ पर है।
आज जिस काम की आवश्यकता है, या जिस कार्य को आज ही पूर्ण हो जाना चाहिए, उसके लिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि वह आज ही पूर्ण हो जाए। आज के कार्य को कल के भरोसे छोडऩा उचित नहीं, क्योंकि कल को जब सूर्यदेव आयेंगे तो उनके साथ ही कल के हमारे कार्य भी आ उपस्थित होंगे। इसलिए कल के कार्यों की सूची में आज के कार्यों को सम्मिलित करके कल की सूची को अनावश्यक लम्बी मत करो। हाँ, यदि आज की कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि कार्य कल पर छोडऩा अनिवार्य और अवश्यम्भावी हो गया तो उसे कल पर छोड़ दें, लेकिन कल के विषय में उसे इतना ना छोड़ें कि आने वाला कल भी उस एक कार्य में ही व्यतीत हो जाये।
समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं। समय का हर पल बहुमूल्य है। प्रतिक्षण बेशकीमती है। काल का कोई क्षण सामान्य नहीं होता। यह असामान्य और अद्भुत होता है, क्योंकि वह कोई क्षण ही था, जिसने हमें जीवन दिया। वह कोई क्षण ही है जो सफलता और असफलता का अनुदान देता है। हर क्षण एक अनोखा अवसर लेकर आता है। उस क्षण के सदुपयोग में ही सच्ची सार्थकता है। दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रबल संकल्प-बल से समय चक्र को बलात इच्छानुकूल मोड़ा जा सकता है। यही बुद्धिमत्ता है। अध्यात्म-जगत में भी समय के महत्व को स्वीकारा गया है। समय का परिस्थिति के अनुरूप उचित और सार्थक ढंग से उपयोग करना समय-प्रबंधन कहलाता है। काल का नियम ही है ‘‘अनवरत-निरंतर बहना।’’ इस सच्चाई को समझा जाए कि हम भी इस धारा में बह रहे हैं। इसलिए हम अपने समय, दिन, महीने और वर्षों का सदुपयोग करना सीख जाएं। ऐसी कार्य योजना बनाई जाए, जिसमें प्रत्येक वर्ष के साथ प्रत्येक दिन और हर पल के उदे्श्यपूर्ण उपयोग का सुअवसर प्राप्त हो। ध्यान रहे, कार्य योजना एकांगी न हो, बहुआयामी हो। इसमें हमारे चिंतन, चरित्र और व्यवहार से लेकर परिवार, समाज के नियम-विधान को संपूर्ण रूप से समय के सामंजस्य के साथ प्रतिपादित किया जाए। इस समय सबसे अधिक आवश्यक कार्य यही है कि हम अपनी सारी योग्यता, शक्ति और विद्वत्ता स्वराज्य की प्राप्ति में लगा दें। हमारी सारी शक्ति, सारी ऊर्जा बस एक ही केन्द्र पर व्यय हो। हमारा ध्यान बगुले की भाँति केवल अपने शिकार पर ही होना चाहीए। हम भटकें नहीं अन्यथा सारे पुरुषार्थ पर पानी फिर जाएगा।
श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को ये ही तो कहा कि इस समय अपनी शक्ति और ऊर्जा को किसी मोहादि के कारण विखण्डित मत कर, बल्कि पूर्ण मनोयोग से एकाग्रता उत्पन्न कर और कर्तव्य को पहचानकर अपने एक लक्ष्य पर कार्य कर। अर्जुन ने श्रीकृष्ण के इस उपदेश को हृदयंगम किया तो इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से लिखा गया। कहते हैं कि लोग आते हैं और लोग जाते हैं, पर समय सदा बिना किसी के लिए रुके चलता ही रहता है। समय को हम कभी पकड़ नहीं पाते हैं, जितना पीछे पड़ते हैं, उतना ही वह आगे निकल जाता है। बड़ी विचित्र-सी बात है कि हम समय का महत्व जानते हुए भी उसे व्यर्थ जाया करते हैं। इसका मूल कारण है ‘समय प्रबंधन’ करने में हमारी असमर्थता। हम यह भूल जाते हैं कि जीवन प्रबंधन के लिए समय का प्रबंधन करना अति आवश्यक है, वरना अस्त-व्यस्तता हमारे जीवन पर हावी हो जाती है। अच्छा समय प्रबंधन अच्छी समझ पर निर्भर होता है। जब तक हम इस संसाधन को ठीक से समझ नहीं पाएंगे, तब तक हम इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
मजेदार बात यह है कि समय हम सभी के पास बराबर मात्रा में है। इस मामले में कोई गरीब या अमीर नहीं है। पर इस प्राप्त समय का कौन, कितना और कैसा सदुपयोग करता है, उसका आधार तो हर व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और समझ पर है।
समय के प्रबंधन के लिए सबसे पहले यह खोजना होगा की हमारा समय बरबाद किन कामों में होता है। नियोजन की कमी, काम दूसरों को न सौंप पाना, तरह-तरह की बाधा, ईष्र्या, घृणा, क्रोध, जैसी कई निजी समस्याएं हमारा बहुत-सा समय बेवजह ले लेती हैं। इन सबसे बचने के लिए कबीर का फॉर्मूला हमारे काम का है- ‘‘काल करे सो आज कर।’’
कार्य हमारी जिंदगी में चार प्रकार के होते हैं:-
1. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण
2. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण
3. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं
4. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण
1. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण: छात्र को परीक्षा के समय पढ़ाई से ज्यादा अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण कार्य कुछ और नहीं होता है।
2. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण: जैसे कि पढ़ाई अगर सतत की जाये तो निश्चित ही परीक्षा में अच्छे अंक आयेंगे और परीक्षा के समय पढ़ाई अत्यावश्यक नहीं रहेगी। जैसे अपने स्वास्थ्य के लिये अगर रोज व्यायाम करेंगे तो यह भी अत्यावश्यक नहीं है परंतु महत्वपूर्ण है।
3. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं: जैसे कि फोन कॉल अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं, हो सकता है कि केवल टाईम पास करने के लिये किसी मित्र ने ऐसे ही फोन लगाया हो। किसी को सिगरेट पीना है तो उसके लिये यह अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। नई फिल्म जैसे ही टॉकीज में लगती है दौड़ पड़ते हैं देखने के लिये, क्या यह तीन महीने बाद नहीं देखी जा सकती, क्या है यह, यह अत्यावश्यक कार्य है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। जिन विचारों पर मन का नियंत्रण नहीं होता।
4. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण: जैसे की फालतू में सोते रहना, टाईम पास करना, ओर्कुट या फेसबुक पर रहना, ऐसे ही सर्फिंग करते रहना।
समय प्रबंधन का फॉर्मुला:
पहला: पहले प्रकार के कार्यों में कमी (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) करना जिससे हमें कभी गुस्सा नहीं आये। जो लोग दूसरे प्रकार के कार्य नहीं करते हैं वे ही पहले प्रकार को आने की दावत देते हैं, अगर समय पर सब कार्य कर लिया जाये तो पहले प्रकार (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) की नौबत ही नहीं आयेगी।
दूसरा: तीसरे प्रकार के कार्यों (अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं) को मना करना, जो कि केवल हम मन को खुश करने के लिये करते हैं या कुछ क्षणों के सुख के लिये करते हैं, हमे हमेशा दूसरे प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना चाहिये।
तीसरा: चौथे प्रकार के कार्यों से हमेशा बचना चाहिये, केवल दूसरे प्रकार (अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण) के कार्य में व्यस्त रहना चाहिये।
व्यक्ति दूरदर्शी हो तथा समय पर निर्णय ले सकें। ज्योतिष शास्त्र और प्रबंधन के परस्पर संबंध की बात करें तो संसार के समस्त प्राणी भिन्न-भिन्न प्रकृति के बने हैं और उनकी आदतें, गुण, प्रकृति, सोचने का तरीका, मानसिक और शारीरिक क्षमताएँ आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। ज्योतिष शास्त्र व्यक्तियों पर पडऩे वाले ग्रहों के प्रभावों को जानकर उनके संबंध में ठोस धारणा का निर्धारण करने का शास्त्र है। ज्योतिष शास्त्र में शनि व्यक्ति में अनुशासन की भावना और उसकी मनोवैज्ञानिक स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि कमजोर स्थिति में हों और उन पर राहु या अन्य अशुभ प्रभाव हुआ तो ऐसा व्यक्ति उत्तरदायित्व लेने से सकुचाता है अथवा जिम्मेदारी से बचने का प्रयास करता है। ज्योतिष में केवल एक शनि ग्रह के इतने से अध्ययन से किसी व्यक्ति की इतनी बड़ी कमजोरी का आसानी से पता चल जाता है, जो व्यवसाय में घातक हो सकती है और ऐसे व्यक्ति की प्रबंधकीय क्षमता में नियुक्ति व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होगी।
व्यक्तित्व और ग्रह:
ज्योतिष शास्त्र में मंगल को निरंकुश एवं प्रभावशाली माना जाता है और यदि मंगल पर राहु या शनि का प्रभाव हो जाए तो ऐसा व्यक्ति अवश्य ही दूसरों पर हावी होने की चेष्टा करता है, अपने अधीनस्थों पर निरंकुश शासन करना चाहता है। ऐसा व्यक्ति ग्रहो के प्रभाव में प्रबंधक बन तो सकता है परंतु अधीनस्थ तनावग्रस्त रहते हैं तो ऐसी स्थिति में वह लंबे समय तक टिक नहीं पाता। यह सामान्य मनोविज्ञान है कि निरंकुश शासन बहुत लंबे समय तक नहीं चलता और उसके खिलाफ विद्रोह आसान हो जाता है। मंगल यदि कुंडली में शुभ स्थान में स्थित हों और शुभ बृहस्पति से प्रभावित हों तो ऐसा व्यक्ति तीव्र गति से व्यवसाय को उन्नति की ओर ले जाकर श्रेष्ठ प्रबंधक सिद्ध हो सकता है। यदि जन्मपत्रिका में बुध प्रधान हों तो ऐसा व्यक्ति प्रबंधक कम परंतु प्लानर अधिक अच्छा साबित होता है। अच्छी नीतियां बनाना और उस पर अमल कराना बुध ग्रह कर सकते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यापारों में विभिन्न प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध शुभ स्थिति में हों, तो ऐसा व्यक्ति मार्केटिंग प्रबंध में सफल रहता है। जबकि शनि और गुरू की शुभ स्थिति वाला व्यक्ति एक सफल कार्मिक प्रबंधक हो सकता है। कुछ ऐसे प्रबंधक होते हैं जो भूतकाल के अनुभवों के आधार पर अपने भावी निर्णय लेते हैं, ऐसे व्यक्तियों के जन्म पत्रिका में शनि, पंचम भाव में द्विस्वभाव राशि में पाए जाते हैं। जबकि कुछ प्रबंधक वर्तमान में चल रहे कठोर संघर्ष को पीछे छोड़कर कार्य या व्यवसाय को आगे बढ़ाते हैं, ऐसे व्यक्तियों की जन्म कुंडलियों में गुरू त्रिकोण एवं मंगल दशम भाव को प्रभावित करते हुए पाए जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पूर्ण उत्तरदायित्व लेकर कार्य को अंजाम देते हैं। ग्रहों का गोचर भी प्रबंधन में बड़ी मदद कर सकता है, यदि आवश्यक सलाह ले ली जाये तो सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है। प्रबंधक और अधीनस्थ : प्रबंधक नेतृत्व करके अधीनस्थों पर नियंत्रण करता है और उनकी क्षमताओं का अधिकतम दोहन करता है। ऐसे अधिकांश व्यक्ति मेष, वृष, वृश्चिक या धनु राशि के होते हैं तथा इन पर मंगल का प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है और यदि मंगल, शनि ग्रह से प्रभावित होते हैं तो ऐसे व्यक्ति कुछ हद तक स्वार्थी प्रकृति के हो जाते हैं और अपने व्यवसाय को चलाने के लिए सौदेबाजी करने से नहीं चूकते। ऐसे व्यक्ति शीर्ष प्रबंधन में सफल होते हैं परंतु वास्तविक प्रशंसा के पात्र नहीं हो पाते क्योंकि वे अपने अधीनस्थों की भावनाओं से अधिक अपने लाभ की सोचते हैं। जिन व्यक्तियों की कुंडली में सूर्य और चंद्रमा केन्द्र में होते हैं, वे क्षमतावान, महत्वाकांक्षी, संवेदनशील और अहंवादी होते हैं। यदि इनका राहु से युति, दृष्टि संबंध हो तो इनकी अहंवादिता बढ़ जाती है और ये दूसरों को गिराने की सोचने लगते हैं, वे दूसरों को आगे बढऩे नहीं देना चाहते। अत: ऐसे लोग प्रबंधक नहीं हो पाते या लंबे समय तक नहीं रह पाते। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरू, शुक्र का प्रभाव चन्द्रमा पर होता है तो ऐसे व्यक्ति में समायोजन, प्रबंधन क्षमता बढ़ जाती है और वह सभी को साथ लेकर चलने लगता है, अपने अधीनस्थों के हित एवं संस्था के लाभों के लिए कार्य करने लगता है। एक सफल प्रबंधक के गुण यही होने चाहिए कि वह सबको साथ लेकर चले।
व्यक्ति और प्रबंधकीय गुण:
जब हम ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में किसी प्रबंधक के गुणों को परिभाषित करते हैं तो हम ग्रहों की स्थिति, परस्पर संबंध पर विचार करते हैं। यहाँ हम पाठकों की सुविधा के लिए प्रबंधकीय गुणों में ग्रहों की भूमिका को समझने के दृष्टिकोण से सूर्य की विभिन्न राशियों में स्थिति पर विचार कर रहे हैं:-
मेष: यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य मेष राशि में हों तो ऐसा व्यक्ति प्रबंधकीय दृष्टिकोण से सफल रहता है, उसको प्रतिष्ठा मिलती है और अधीनस्थ भी उसका सम्मान करते हैं परंतु वे कई बार राजा की भाँति क्रोध का प्रदर्शन करता है और अपने सम्मान में कमी कर लेता है। लोग उससे डरते तो हैं परंतु दिल से सम्मान नहीं कर पाते।
वृष: ऐसा व्यक्ति स्थिर मति का होता है, लिये हुए निर्णय पर दृढ़ रहता है परन्तु यदि उसका अधीनस्थ सटीक सलाह देता है तो वह तदनुसार मान भी लेता है।
मिथुन: मिथनु राशि में सूर्य होते हैं तो व्यक्ति अपने व्यवसाय के उद्देश्यों, अपेक्षाओं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अधीनस्थों से व्यक्तिगत स्तर पर मिलकर स्पष्ट करता है और उनका अधिकतम सहयोग बंटोरता है।
कर्क: कर्क राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति अपने अधीनस्थों से, फर्म या उद्यम के प्रति निष्ठा चाहता है और उन्हें समझाने में सफल रहता है।
सिंह: सिंह राशि में सूर्य होने पर वह व्यक्ति नवाचार में निपुण होता है, वह नवसृजन और आधुनिक विचारों को तुरंत स्वीकार कर लेता है, युवा वर्ग के अधीनस्थों को अवसर उपलब्ध कराता है, उसमें उद्यम के लिए कुछ करने की अपार संभावनाएँ रहती हैं। ऐसे व्यक्ति का व्यवसाय सफल रहता है।
कन्या: एक सफल संगठनकत्ता एवं योजनाकार होता है परन्तु कई बार मुख्य विषय से भटक कर गौण विषयों में अटक जाता है। इनमें गतिशीलता का अभाव होता है, इनके अधीनस्थ तो इनसे संतुष्ट होते हैं परन्तु व्यापार को बहुत अधिक तरक्की नहीं दे पाते।
तुला: तुला राशि में सूर्य हों, तो ऐसा व्यक्ति व्यवसाय में ईमानदारी को महवपूर्ण मानता है, वह चाहता है कि उसके अनुसार ही कार्य हो परंतु ऐसे व्यक्ति को अपने किये गये कार्यो का श्रेय नहीं मिल पाता, जिससे वह कुण्ठित होता है और अच्छे अवसरों को भी अपने हाथ से गँवा देता है। प्रबंधक में ऐसे गुणों का होना उचित नहीं है।
वृश्चिक: ऐसे व्यक्ति के साथ कार्य करना कठिन होता है। वह सोचता है कि वह जो भी कार्य करता है, सही करता है। वह अधीर होता है, जिसके कारण वह गलत निर्णय का शिकार भी हो जाता है। इनमें अधीनस्थों के साथ चलने की क्षमता का अभाव पाया जाता है। ये सफल प्रबंधक नहीं होते।
धनु: ऐसे व्यक्ति केवल महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान देते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति सहज और सरल वातावरण को गंभीर बना देते हैं। ये सही समय पर सही चोट तो करते हैं परन्तु ये चालाकी को भूल जाते हैं कि व्यवसाय में सब कुछ सामान्य चलता है।
मकर: ऐसे व्यक्ति कार्यो में मेहनत को महत्वपूर्ण मानते हैं। ये अपने प्रयासों और कठोर परिश्रम के बल पर दूसरों के समक्ष मिसाल पेश करते हैं। ये अपने कार्य में निपुण होते हैं।
कुंभ: कुंभ राशि के सूर्य वाले व्यक्ति समानता का व्यवहार करते हैं, दूसरों को अपने पर हावी नहीं होने देते, सत्य और ईमानदारी, परस्पर मधुर संबंधों पर विश्वास करते हैं तथा वे जानते हैं अधीनस्थों से कैसे अधिकतम कार्य कराया जा सकता है। सफल प्रबंधक होते हैं।
मीन: मीन राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति भावनात्मक अधिक होते हैं, वे हर व्यक्ति व्यक्ति को योग्यता की कसौटी पर खरा न उतरते हुए भी पर्याप्त मौके देते हैं इसलिए कई बार स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाते। आज व्यवसाय में निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं और यदि बड़ी कम्पनियां या कॉरपोरेट जगत के व्यक्ति अपने एम्पलॉयज को नियुक्त करते समय ज्योतिष को ध्यान में रखें तो कम्पनी की सफलता का ग्राफ बढ़ सकता है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
No comments:
Post a Comment