शनि ग्रह सबसे बड़े व धीमी गति के होने के कारण धरती पर अपना सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं। गोचर में भ्रमण करते हुये ये एक साथ 6 राशियों पर अपना नियंत्रण रखते हैं जिस कारण इनका फलित ज्योतिष में अपना अलग ही महत्व रहता है। अनुभवों से ज्ञात होता है कि शनि, मंगल व राहु गोचर में अपना शुभ फल लग्न से 62 अंश के बिन्दु पर होने पर देते हैं जबकि अन्य अंशों के बिन्दु में होने पर ये सभी ग्रह अपना अशुभफल प्रदान करते हैं। गुरु ग्रह इसी अंश के बिन्दु पर अपना सर्वोत्तम शुभ फल प्रदान करते हैं जबकि अन्य अंशों के बिन्दुओं पर केवल शुभफल ही देते हैं तथा लग्न से 200 अंश के बिन्दु में गुरु अशुभ फल देते हैं। जन्म लग्न से शनि का गोचर जातक विशेष के मस्तिष्क को कुंद करता है। जातक की सेहत खराब होने लग जाती है तथा लंबा व बड़ा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है (टीबी. जैसे रोग इस दौरान ज्यादा पाये जाते हैं), जातक को दुर्घटनाआंे का भय होने लगता है। स्त्री जातकांे में इस समय प्रेम संबंधांे में निराशा, तलाक,विधवापन जैसी परेशानियाँ देखी गयी हैं। ऐसा नहीं है कि ये गोचर सारे अशुभ प्रभाव ही देता है। अनुभव में देखा गया है कि जो जातक तुला, मकर या कुम्भ लग्न के थे उन्हंे शनि के इस गोचर ने शुभ फल भी प्रदान किए। इसके अतिरिक्त जिनकी पत्रिका मे शनि शुभ अवस्था में थे उन्हें शनि के इस गोचर ने बीमारी से मुक्ति, स्त्री सुख व स्त्री मिलन जैसे सुख भी प्रदान किए (जिनकी पत्नी उनसे दूर रहती हो वह वापस आ जाती हैं )। इसी प्रकार के नतीजे मंगल,सूर्य राहु, केतु के लग्न से गोचर करने पर भी पाये गए । यदि गोचरीय शनि को मंगल प्रभाव दे रहा हो तो जातक को बुरे वक्त से गुजरना पड़ता है, उसे आलोचना का शिकार होना पड़ता है। यदि शनि पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जातक को उसकी ईमानदारी का शानदार इनाम मिलता है। यही वह समय होता है जब जातक समाज में अपना ऊंचा स्थान पा जाता है। जब शनि लग्न से 60 अंश पर से गुजरता है तब जातक को जमीन जायदाद एवं व्यापार संबंधी लाभ प्राप्त होते हैं। जमीन से किसी भी प्रकार जुड़े व्यक्तियों को बहुत लाभ मिलता है। घर से गए व्यक्ति,गायब हुये व्यक्ति वापस अपने घर आ जाते हैं। यदि यह शनि मंगल के प्रभाव मंे हो तो जातक के छोटे भाई-बहनांे क स्वास्थ्य की हानि होती है। रिश्तेदारों व पड़ोसियों से तनाव पैदा करता है, यदि इस शनि को गुरु ग्रह देख रहा हो तो परिवार में सुखों की वृद्धि होती है, संतान का जन्म होता है। लेखकों के लिए यह समय अति शुभ होता है, राजनीति से जुड़े लोगों की समस्या का समाधान होता है। कला से जुड़े व्यक्तियों, कलाकारों का सम्मान होता है तथा धरती पर दुधारू पशुओं की वृद्धि होती है। जब शनि गोचर में लग्न से 90 अंशों से गुजरता है तो जातक विशेष को अचानक हानि का सामना करना पड़ता है, माता या मातृपक्ष के किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है, कोर्ट कचहरी के चक्करांे के कारण अनावश्यक खर्च होता है, धन हानि के साथ-साथ स्थान परिवर्तन भी होता है। यदि यह शनि शुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो इन सभी अशुभफलों में कमी होकर जातक को धनप्राप्ति व नई परिस्थितियों,उम्मीदों का सामना करना पड़ता है। लग्न से 120 अंशांे पर गोचर करने पर शनि संबंधांे को तोड़ने का कार्य करता है, संतान को कष्ट व स्वास्थ्य हानि होती है। कुछ अवस्थाओं में बड़े बच्चे अपने माता-पिता की अवहेलना भी करने लगते हैं। यदि इस शनि पर कोई शुभ ग्रह प्रभाव डाल रहा हो तो जातक तीर्थयात्रा व धार्मिक शिक्षा का अध्यापन करता है। यदि यह शनि स्वगृही हो या शुभ हो तो राजनीतिज्ञांे को अपने शत्रुओं पर विजय दिलाता है और यदि इस शनि पर पाप प्रभाव हो तो बड़ों के द्वारा दंड,कानून द्वारा सजा, विस्थापन,मृत्यु तथा घर वालों को बीमारी जैसे फल प्राप्त होते हैं। इस गोचर से व्यापारियांे व कारोबारियों को नुकसान होता है, स्त्री जातकांे को विवाह में बाधाएं व पति सुख में कमी जैसे फलों का सामना करना पड़ता है। मजदूर वर्ग हड़ताल जैसी समस्याओं का सामना करता है, चोटिल होता है। शनि का लग्न के 180 अंशांे पर गोचर जातक विशेष को पत्नी की स्वास्थ्य हानि, परीक्षा मंे असफलता, किसी इल्जाम मंे फंसना, नौकरांे से मतभेद तथा पालतू जानवरांे की हानि जैसे फल देता है। जब शनि का गोचर लग्न से 199 अंश पर होता है तब जातक विशेष को पत्नी की हानि, संपत्ति बंटवारा, स्वयं के अस्तित्व पर संदेह,नौकरी में अवनति जैसे फल प्राप्त होते हैं। अगर इस शनि के गोचर पर पाप प्रभाव हो तो जातक को अवसाद, असहयोग,नकारात्मक सोच के कारण आत्महत्या जैसे विचार आते हैं।
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