Friday, 25 December 2015

नहीं बदल सकता स्वाभाव और चरित्र

महाभारत की एक छोटी सी कथा है। पांडव वन में वेश बदलकर रह रहे थे। वे ब्राह्मण के रूप में रह रहे थे। एक दिन मार्ग में उन्हें कुछ ब्राह्मण मिले। वे द्रुपद राजा की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में जा रहे हैं। पाण्डव भी उनके साथ चल पड़े। स्वयंवर में एक धनुष को झुकाकर बाण से लक्ष्य भेद करना था। वहां आए सभी राजा लक्ष्य भेद करना तो दूर धनुष को ही झुका नहीं सके। अंतत: अर्जुन ने उसमें भाग लिया। अर्जुन ने धनुष भी झुका लिया और लक्ष्य को भी भेद दिया। शर्त के अनुसार द्रौपदी का स्वयंवर अर्जुन के साथ हो गया। पाण्डव द्रौपदी को साथ ले कर कुटिया में आ गए। द्रुपद को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन जैसे वीर युवक के साथ करना चाहता था। द्रुपद ने पाण्डवों की वास्तविकता पता लगाने का एक उपाय किया। एक दिन राजभवन में भोज का आयोजन रखा। उसमें पाण्डवों को द्रौपदी और कुंती के साथ बुलाया गया। उन्होंने राजमहल को कई वस्तुओं से सजाया।
एक कक्ष में फल फूल, आसन, गाय, रस्सियां और बीज जैसी किसानों के उपयोग की सामग्री रखवाई। एक अन्य कक्ष में युद्ध में काम आने वाली सामग्री रखी गई। इस तरह सुसज्जित राजमहल में पाण्डवों को भोज कराया गया। भोजन के बाद सभी अपनी पसंद की वस्तुएं आदि देखने लगे। ब्राह्मण वेशधारी पाण्डव सबसे पहले उसी कक्ष में गए जहां अस्त्र-शस्त्र रखे थे। राजा द्रुपद उनकी सभी क्रियाओं को बड़ी सूक्ष्मता से देख रहे थे। वे समझ गए कि ये पांचों ब्राह्मण नहीं हैं। जरूर ये क्षत्रिय ही हैं। अवसर मिलते ही उन्होंने युधिष्ठिर से बात की और पूछ ही लिया सच बताएं आप ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय। आपने ब्राह्मण के समान वस्त्र जरूर पहन रखे हैं पर आप हैं क्षत्रिय। युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे। उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे सचमुच क्षत्रिय ही हैं और स्वयंवर की शर्त पूरी करने वाला व्यक्ति और कोई नहीं स्वयं अर्जुन ही है। यह जानकर द्रुपद खुश हो गया। वह जो चाहता था वही हुआ।
कई बार ऐसा होता है कि लोग अपने काम और रहन-सहन से हटकर वेश बना लेते हैं, अपनी पहचान छुपा लेते हैं लेकिन कपड़े और आभूषणों से कभी आपका स्वभाव और चरित्र नहीं बदल सकता। न ही आपका धर्म प्रभावित हो सकता है। वह तो आपके व्यवहार में है और जब भी वक्त आता है आपका धर्म, स्वभाव और चरित्र कपड़ों के आवरण से बाहर आकर हकीकत बता देता है।
Pt.P.S.Tripathi
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