Wednesday 3 August 2016

सिंह अगस्त 2016 मासिक राशिफल

माह के शुरूआती सप्ताह की शुरूआत में आपको मित्रों, बड़ों और लोगों का सहयोग मिलता रहेगा। आर्थिक लाभ भी प्राप्त होगा। हालांकि इस सप्ताह के मध्य में आप को कोर्ट कचहरी अथवा किसी सरकारी कार्य पर खर्च करना होगा। जो लोग कम्युनिकेशन अथवा कमिशन के काम से जुड़े हैं, उन्हें विशेषकर आने वाले समय में फायदा होगा। दूसरे सप्ताह नौकरी और व्यापार के लिए शुभ फल प्रदान करेगा। शनि भी इस सप्ताह मार्गी बन रहा है। इससे आपके वैवाहिक जीवन में चल रही तकलीफ काफी हद तक कम होगी। इस समय आप किसी प्रलोभन का शिकार नहीं हों। माह के उत्तरार्ध की शुरूआत में आप के स्वभाव में थोड़ा सा गुस्सा रहेगा। आप आवश्यकता से अधिक आत्मविश्वास में रहेंगे, इसके कारण काम न बिगड़े, इसका विशेष ध्यान रखें। आँखों की तकलीफ होने की भी संभावना है। आपको आर्थिक लाभ होगा। नौकरी में भी तकलीफ कम होगी। माह उत्तरार्ध के दूसरे हिस्से में आप किसी वस्तु, ज्वैलरी और सोना-चांदी अथवा नई चीज-वस्तु की खरीद कर सकते हैं। आप शेयर मार्केट में भी निवेश कर सकते हैं। नौकरी में प्रमोशन होगा। नौकर चाकर का सुख अच्छी मात्रा में मिलता रहेगा। वर्तमान समय में विशेषकर जो संगीत के क्षेत्र में हैं उनको जोरदार सफलता मिलने की संभावना है।टिप्सः बुधवार को मूंग दाल एवं काले कपड़े का दान करें।
प्रेम-संबंध- इस समय आपमें प्रेम की भावनाएं अत्यधिक अधिक रहेगी। नए संबंध बनाने में आपके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी न हो इसका जरा ख्याल रखें। वर्तमान में पिता अथाव वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संबंधों में तनाव रहेगा। 17 तारीख के बाद कुछ सुधार दिखाई पड़ेगा। माता के साथ संबंधों में मतभेत रहने की संभावना है। 14 तारीख के बाद संबंध फिर से बहाल हो जाएंगे। संबंधों में आप कम्युनिकेशन को अधिक महत्व देंगे। दांपत्य संबंधों को काफी आहिस्ता से संभालें।
आर्थिक स्तिथि- इस महीने के पूर्वार्ध में विशेषकर सरकारी या कानूनी कार्यों में काफी खर्चों की संभावना है। वसीयत या पैतृक संपत्ति से जुड़े मामलों में 17 तारीख के बाद राहत मिलती दिखाई देगी। दूसरे सप्ताह के बाद गुरू के आपके धन स्थान में आने से आगामी एक वर्ष तक आपको आर्थिक मोर्चे पर अनुकूलता प्राप्त होगी। भागीदारी के कार्यों में आर्थिक व्यवहार करते समय सतर्कता रखनी जरूरी होगी। वाहन या मकान में खर्च होने की संभावनाए हैं।
स्वास्थ्य- जो जातक ब्लडप्रेशर, हृदय से संबंधित बीमारी, रक्त परिभ्रमण में अवरोध, कोलेस्ट्रोल की समस्या, पीठ दर्द, दाहिनी आंख में सूजन से परेशान है उनको पहले पखवाड़े में अपना विशेष ध्यान रखना होगा। इस महीने आपका ध्यान अपने सौदर्य की ओर होगा और प्रथम पखवाड़े में ब्यूटी ट्रीटमेंट में धन व्यय कर सकते हैं। मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए परिवार सहित किसी छोटी सी पिकनिक पर जाने की योजना बना सकते हैं।

कर्क अगस्त 2016 मासिक राशिफल

इस माह की शुरूआत में स्वास्थ्य की तकलीफ होने की संभावना बन रही है। जो जातक मधुमेह से पीड़ित हैं, उनको विशेष परहेज रखने की जरूरत रहेगी। आंखों में भी दर्द-पीड़ा का अनुभव होने की संभावना है। परिजनों की मांगों की पूर्ति के लिए खर्च की मात्रा अधिक रहेगी। जो लोग विदेश से व्यवसायिक रूप से जुड़े हुए हैं अथवा आयात निर्यात का कारोबार करते हैं, उन्हें अभी खूब लाभ होगा। कर्क राशि से तीसरे भाव में गुरू है, जो अविवाहित जातकों के लिए सकारात्मक संकेत दे रहा है । कर्क जातकों के लिए राहत की बात है कि लंबे समय से जीवन साथी एवं कारोबारी सहयोगी के साथ चल रहे वैचारिक मतभेद खत्म होंगे एवं मानसिक प्रसन्नता महसूस होगी। जो जातक लेखन या कम्युनिकेशन के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं या इस क्षेत्र में व्यवसाय करते हैं, उनको माह के उत्तरार्ध में प्रगति की संभावना प्रबल है। इस सप्ताह में आप को आर्थिक लाभ होगा। लोन, उधार वसूली के लिए भी लाभदायी समय है। पिता से जुड़ी परेशानियां इस समय कम होने की संभावना है। आपको ससुराल पक्ष के किसी सदस्य के शुभ कार्य अर्थात् विवाह या सगाई जैसे कार्यक्रम में जाना पड़ेगा। उनकी को जवाबदारी आप पर हो तो उससे भी आपको राहत मिलेगी। २९ और ३० तारीख़ पारिवारिक और पेशेवर जीवन के लिए शुभ है। टिप्सः गुरूवार को पीले का रंग का इस्तेमाल करें। बेसन से बनी कोर्इ वस्तु खाएं।
आर्थिक स्तिथि- आर्थिक मोर्चे पर थोड़ी खींचतान बनी रहेगी। शुरूआत में धन स्थान में राहु के साथ बुध, शुक्र और गुरू की युति है। दूसरे सप्ताह के बाद आप अपने आर्थिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए लंबी अवधि के निवेश का विचार कर सकते हैं। 17 तारीख के बाद पैतृक संपत्ति प्राप्त होने की संभावनाए प्रबल होंगी। उत्तरार्ध में आप प्रोफेशनल मामलों में खर्च करेंगे। रूपयों की वसूली से जुड़ी यात्राओं की संभावनाए प्रबल होगी।
शिक्षा-विद्यार्थी जातकों को हाल में मानसिक चंचलता और दुविधा का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, उच्च शिक्षा में आपकी महत्वाकांक्षा के कारण आप पढ़ाई में लगे रहेंगे, पर किसी-न-किसी अवरोध के कारण आप अपेक्षित परिणाम से वंचित रहने के आसार हैं। उत्तरार्ध का समय शैक्षणिक प्रगति प्रदान करने वाला प्रतीत होता है। अंतिम समय में आपके विचारों में सकारात्मकता आएगी और उच्च शिक्षा के लिए मानसिक तौर पर दृढ़ नजर आएंगे।
स्वास्थ्य- इस महीने में जिन्हें कंधों की हड्डियों या मांसपेशियों, दांत में दुःखावों, जीभ से संबंधित पीड़ा हैं उनको शुरूआत के समय में काफी चौकन्ना रहना होगा। दूसरे पखवाड़े में रीढ़ की हड्डियों में दर्द, सरदर्द, चेहरे की त्वचा इत्यादि रोगों बहुत सावधानी लेनी पड़ेगी। इस समय के दौरान पैदा हुए रोग की ठीक से पहचान न हो पाने से आपके दिन कष्ट में बीत सकते हैं। अस्तु, किसी भी प्रकार के विकार को नजरअंदाज न करें।

आत्महत्या ले जाती है नर्क-मार्ग की ओर

अक्सर यह सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति ने तनाव में आकर आत्महत्या कर ली, किसी ने घर वालो को जहर देकर खुद भी जहर खा लिया, तो कोई छात्र वांछित परीक्षा परिणाम न मिलने से सोसाईड कर लिया. ये सारी चीजें हमेंं एक प्रश्न के सामने ला खड़ा करती हैं. ‘‘क्या तनाव हम पर बहुत ज्यादा दबाव डालता है और क्या हम इसका मुकाबला करने मेंं असमर्थ हैं?’’प्रतीत होता है कि तनाव दुनिया मेंं किसी अन्य चीज से ज्यादा प्रचलित, स्वीकृत, हिंसक और खतरनाक चीज है. कोई तनाव की पहचान कैसे करे और इससे कैसे निपटे? हालांकि तनाव का मुकाबला करने के लिए कई तरह के कौशल हम विकसित कर सकते हैं लेकिन उन सब मेंं ध्यान सबसे उपर है. ध्यान करने के लिए एक शर्त आवश्यक है और वह है जागरूकता. अगर कोई अपने तनाव के प्रति सचेत नहीं है और इससे मुकाबला करने मेंं किसी प्रकार की कमी है, तो वह बैठकर ध्यान कैसे कर सकता है? हम अपनी दैनिक दिनचर्याओं मेंं कई गहरे तनाव से गुजरते हैं जिससे हम पूरी तरह अंजान रहते हैं और जिससे हम पीडि़त होते हैं. और जिस भी तनाव से हम पीडि़त होते हैं, उसका मूल स्थान हमारा रिश्ता, हमारा काम, हमारा एक दूसरे से बातचीत करना, हमारा सपना, हमारी महत्वकांक्षा, हमारा बैंक बैलैंस, लोन और मॉर्गिज या हमारे शौक और जुनून नहीं है बल्कि हमारी सोच है. तनाव हमारी सोच मेंं बसता है. अगर हम तनाव को परिभाषित करें तो यह घटनाओं, परिस्थितियों और लोगों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है. बाहरी दुनिया केवल एक ट्रिगर का काम करती है और हमारा तनाव हमारी प्रतिक्रिया को निर्धारित करता है. और ऐसा हो सकता है कि एक के प्रति तनाव का जो कारण हो वही कारण दूसरे के प्रति ना हो. तनाव को प्रभावहीन बनाने के लिए हमेंं अलग-अलग तरीकों का सहारा लेना चाहिए जो पलायनवाद, युक्तिकरण, स्वीकृति, आक्रामकता, सहनशीलता, धैर्य या एक अलग रूप धारण करना हो सकता है.
क्या होता है जब हम अत्यधिक तनाव मेंं होते हैं? जब हम महसूस करते हैं कि हम अवांछित या अप्रिय परिस्थिति का सामना कर रहें हैं तो हमारा शरीर असभ्य लड़ाई या लड़ाई की प्रतिक्रिया की मुद्रा मेंं चला जाता है और हमारे शरीर मेंं ऐसे हार्मोंस का स्राव होता है जो लडऩे के लिए या उस परिस्थिति से भाग जाने के लिए उकसाता है. लेकिन अब ज्यादातर तनाव हमेंं अपने डेस्क के सामने बैठे-बैठे हो जाता है और हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं होता जिससे हम भाग सकें या लड़ सकें. हालंकि ये शक्तिशाली हार्मोंस हमारी कोशिकाओं और उत्तकों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं और समय के साथ उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इसके कारण हमारे कई अंग जैसे दिल, दिमाग, किडनी, पेट, आंत और अन्य अंग कई बिमारियां के चपेट मेंं आ जाती हैं.
तनाव से लडऩे का सबसे अच्छा तरीका क्या है? तनाव से लडऩे का कौशल हम सब के अंदर है लेकिन इसकी तुलना आज कल पैसों से की जा रही है. जब भी हम तनाव मेंं होते हैं, हम उससे बाहर आने के लिए कुछ पैसे खर्च कर देते हैं. इन पैसों को प्यार, हंसी, अच्छे संबंध, आनंदायक काम कर, अपने दिल का अनुसरण कर और जीवन के प्रति भावुकता से बदला जा सकता है. इसे संगीत, अध्ययन, अच्छे विचार, प्रार्थना और ध्यान के द्वारा परिपूर्ण किया जा सकता है. इन सबसे अधिक जिस चीज की आवश्यकता होती है वह है जागरूकता. हमारे शरीर, दिमाग, सोच, एहसास, शरीर के दर्द और तकलीफ की जागरूकता असामान्य नींद और भूख का अनुभव कराती है और ये सब तनाव के संकेत हैं. हमेंं स्थिति को शांत करने के लिए बैठकर इसका आत्मविश्लेषण करना चाहिए, इससे पहले कि काफी देर हो जाए. जरा इसके अध्यात्मिक पहलू पर भी ध्यान दें कि अगर हमारे कर्मबंधन में कष्ट भागना लिखा है तो हजार जन्म लेकर भी हमें हमारे किये गये पापों के हिसाब से कष्ट भोगना ही होगा. हम आत्महत्या करके दुख, तकलीफ , लोक-लज्जा, यश-अपयश या किसी रोग से पीछा नहीं छुड़ा सकते. अभी आत्महत्या करके मर जाएंगे तो अगले जन्म में काटने पड़ेंगे. इसके बाद फिर से जन्म, फिर से दुख, कष्ट, रोग और संताप। इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि अच्छे कर्म करके और अपने दायित्वों को निभाते हुये अपने पुराने पाप का प्रायश्चित करें, और धीरे-धीरे पुण्य करके पापों को काटें। सद्कर्म करें और फिर देखिये आपको सुख मिलना प्रारंभ हो जाएगा. और आगे भी कर्म अच्छे रहे तो निश्चित तौर पर स्वर्ग मिल जाएगा जिससे बार बार पृथ्वी में जन्म लेकर कष्ट भोगने की तकलीफ भी न रहेगी.
इतना मजबूर क्यूँ????
क्यों आत्महत्या या आत्महत्या की धमकी एक विकल्प का काम कर रही है? कभी-कभी असफल होने का भय लोगों को मरने पर मजबूर कर देता है. बौद्धनन सांग्ये खाद्रो कहती हैं कि जीवन की परेशानियों से निपटने का यह सही तरीका नहीं है. वो उन बौद्धों की बात करती हैं जिन्होंने बुद्ध के समय मेंं अपने जीवन को खत्म कर दिया था. ‘‘बुद्ध के कुछ अनुयायी पीड़ा पर ध्यान कर रहे थे और इस बात पर चिंतन कर रहे थे कि दुनियां मेंं इतना दुख कैसे है. वो इस चिंतन से निराशा मेंं चले गये और उन्होंने आत्महत्या कर ली. बुद्ध कहते हैं कि यह सही तरीका नहीं है. आप खुद को मारकर इस पीड़ा से मुक्ति नहीं पा सकते हैं.’’ खाद्रों कहती हैं कि आत्महत्या को किसी भी समस्या का एक कुशल समाधान नहीं माना जा सकता है क्योंकि बौद्धों का मानना है कि भले ही हम मर जाये पर इससे हमारा अस्तित्व खत्म नहीं हो जाता. यह केवल इस जीवन का अंत है, पर हमारे दिमाग और चेतना के रूप मेंं यह अस्तित्व जीवित रहेगी क्योंकि फिर से हम एक दूसरे जीवन मेंं प्रवेश करेंगे. कर्म के परिणामस्वरूप जिस भी पीड़ा का अनुभव हमने किया है उसका सृजन हमने इस जीवन और बीते हुए जीवन दोनों मेंं किया है. इस कर्म से मुक्त होने के लिए हमेंं आध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है ना कि आत्महत्या की.
वह कहती हैं, ‘‘हम अपने कर्म को आध्यात्मिक अभ्यास और ध्यान से शुद्ध कर सकते हैं. कर्म को समाप्त करने के लिए खुद को मारना आवश्यक नहीं है. कर्म जिससे आप पीडि़त हैं वो इस जन्म और अगले जन्म दोनों मेंं हमेंशा आपके साथ रहेगा. हो सकता है आपका अगला जीवन इससे भी ज्यादा पीड़ादायी हो.’’ खाद्रो के अनुसार हमेंं अपने जीवन को संजोना चाहिए और इसका पोषण करना चाहिए. वह कहती हैं, ‘‘आप बुजुर्ग तिब्बती पुरुषों और महिलाओं मंत्र जाप करते, प्रार्थना के मालाओं को घुमाते हुए और स्तूप के चारों ओर चक्कर लगाते देख सकते हैं. अगर आप सच मेंं बूढ़े हैं तो आप भी यही अभ्यास कर सकते हैं. इसका मूल ज्यादा से ज्यादा दिनों तक जीवित रहना है और इस राह को अपनाकर आप अच्छे कर्म कर सकते हैं और अपने बुरे कामों को शुद्ध कर सकते हैं.’’

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Tuesday 2 August 2016

सिहावा की गोद में

सिहावा मेंं सप्त ऋषियों के आश्रम विभिन्न पहाडिय़ों मेंं बने हुये हैं। उनमेंं मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है। श्री राम ने अपने वनवास के समय दण्डाकारण्य मेेंं स्थित आश्रम मेंं जाकर यहां बसे ऋषियों से भेंट कर सिहावा मेंं ठहर कर कुछ समय व्यतीत किया। सिहावा महानदी का उद्गम स्थल है। दूर-दूर तक फैली पर्वत श्रेणियों मेंं निवासरत अनेक ऋषि-मुनियों और गुरूकुल मेंं अध्यापन करने वाले शिक्षार्थियों का यह सिहावा क्षेत्र ही जनस्थान है। यहां राम साधु-सन्यासियों एवं मनीषियों से सत्संग करते रहे। सीतानदी सिहावा के दक्षिण दिशा मेंं प्रवाहित होती है, जिसके पाश्र्व मेंं सीता नदी अभ्यारण बना हुआ है। इसके समीप ही वाल्मीकि आश्रम है। यहाँ पर कुछ समय व्यतीत किया। सिहावा मेंं आगे राम का वन मार्ग कंक ऋषि के आश्रम की ओर से काँकेर पहुँचता है। कंक ऋषि के कारण यह स्थान कंक से काँकेर कहलाया।रायपुर से धमतरी होते हुए 140 किलो मीटर पर नगरी-सिहावा है, यहाँ रामायण कालीन सप्त ऋषियों के प्रसिद्ध आश्रम हैं। नगरी से आगे चल कर लगभग 10 किलोमीटर पर भीतररास नामक ग्राम है। वहीं पर श्रृंगि पर्वत से महानदी निकली है। कर्णेश्वर महादेव मंदिर, गणेश घाट, हिरंगी हाथी खोट का आश्रम, दंतेश्वरी की गुफा, अमृत कुंड और महामाई मंदिर उल्लेखनीय पवित्र स्थल हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कई अन्य पौराणिक ऋषियों के आश्रम भी यहां हैं। ये आश्रम एक ही स्थान पर न होकर दूर-दूर हैं लेकिन कुल मिलाकर इसे सिहावा क्षेत्र ही कहा जाता है।
यहां सडक़ पर स्वागत द्वार लगा है ‘‘धमतरी जिले मेंं आपका स्वागत है।’’ यानी आश्रम कांकेर जिले मेंं स्थित है। फरसिया गांव के पास महामाई का मन्दिर है। यहीं एक कुण्ड है। यही कुण्ड महानदी का उद्गम है। मन्दिर प्रांगण मेंं ही एक रजवाहा (नहर) भी बह रहा है। यह सोण्ढूर बांध से बहकर आता है। कुण्ड चारों तरफ से पक्का बना है। एक कोने मेंं एक नाली निकलकर खेतों मेंं बहती चली गई है। आश्रम के पुजारी बताते हैं कि यही महानदी है और यहीं से यह अपनी यात्रा शुरू कर देती है।
यह इलाका एक मैदानी इलाका है लेकिन पूर्वी घाट के पहाड़ यहां से ज्यादा दूर नहीं। अगर आसपास ऊंची जमीन हो तो निचले इलाकों मेंं धरती से स्वत: पानी निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन यह अद्भुत है कि एक छोटे से जलस्त्रोत से इतनी बड़ी नदी बन जाती है। कुण्ड का पानी साफ है और जिसमेंं खुद की स्वच्छ तस्वीर दीखती है।
पौराणिक विशेषता:
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल, जिसका विस्तार पश्चिम मेंं त्रिपुरी से लेकर पूर्व मेंं उड़ीसा के सम्बलपुर और कालाहण्डी तक था, का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का ‘कोशल’ प्रदेश, जो कि कालान्तर मेंं ‘उत्तर कोशल’ और ‘दक्षिण कोशल’ नाम से दो भागों मेंं विभक्त हो गया, का ‘दक्षिण कोशल’ ही वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल मेंं ‘चित्रोत्पला’ था) का मत्स्यपुराण तथा महाभारत के भीष्म पर्व मेंं वर्णन है-
चित्रोत्पला चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा।
मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।
(महाभारत - भीष्मपर्व 9/34)
मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च।
तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।
(मत्स्यपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण 50/25)
चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका।
तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।
(ब्रह्मपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण 19/31)
वाल्मीकि रामायण मेंं भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट उल्लेख है। यहाँ स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम मेंं निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या मेंं राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। इस दृष्टि से राम को धरती पर लाने का प्रमुख श्रेय छत्तीसगढ़ को ही प्राप्त है। राम के काल मेंं यहाँ के वनों मेंं ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि मेंं राम यहाँ आये थे। दण्डकारण्य क्षेत्र मेंं सीता माता का पता लगाया गया था। सिहावा पर्वत का पौराणिक नाम महेन्द्रचल या महेन्द्रपर्वत जिसका उल्लेख पुराणों मेंं भी मिलता है। महाभारत काल मेंं इस पर्वत पर भगवान परशुराम जी का आश्रम होने की मान्यता है । इसी पर्वत पर दानवीर कर्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी ।
भृगु ऋषि आश्रम: यह आश्रम अभ्यारण्य मेंं स्थित है। असल मेंं उदन्ती और सीतानदी अभयारण्य दोनों जुड़वा अभयारण्य हैं। पता नहीं चलता कि कि महामाई मन्दिर से निकलकर हम उदन्ती मेंं घुसे या सीतानदी मेंं। भृगु आश्रम जाने का रास्ता बिल्कुल कच्चा है और कुछ पैदल भी चलना पड़ जाता है। यहां बिल्कुल सन्नाटे मेंं और वीराने मेंं एक छोटी सी कुटिया है। एक साधु रहते हैं। बताते हैं कि यहां एक के बाद एक सात छोटे-छोटे तालाब हैं। यहां वनों मेंं पसरी शांति मन को एक सम्मोहन से बांध लेती है। पहाड़ी के नीचे झांकने पर सिहावा नगर की सुन्दरता खण्डाला से भी कहीं अधिक आकर्षक जान पड़ती है। नीचे आकार लेती नन्ही महानदी है जो सोलह किलोमीटर की यात्रा कर और फिर वहां से लौटकर पश्चिम से पूर्व की ओर बह चली है।
शृंगी ऋषि आश्रम:
यह सिहावा का एक प्रमुख आश्रम है। श्रृंगी ऋषि सप्तऋषियों मेंं से एक है। शृंगी ऋषि ही थे जिनके आशीर्वाद से राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति हुई। यहां एक बंजर सी पहाड़ी है जिस पर बड़े-बड़े पत्थर और कुछ पौधे दिखाई देते हैं। नीचे बराबर मेंं ही महानदी बहती है। अपने उद्गम से मुकाबले यहां यह कुछ बड़ी हो गई है। अब यह छोटे रूप मेंं नहीं बहती बल्कि अब इसका अपना क्षेत्र है।
यहां पहाडी पर भी एक छोटा सा कुंड है, कुछ लोग कहते हैं कि महानदी का एक उद्गम यह भी है। इसका सीधा सम्बन्ध नीचे बह रही महानदी से है। अगर इस कुण्ड मेंं फूल आदि डाले जायें तो वे महानदी मेंं पहुंच जाते हैं। इस शुष्क पथरीली पहाड़ी के शीर्ष पर पानी का कुण्ड होना एक चमत्कार ही है। शायद कोई भूविज्ञानी ही बता सकता है कि यहां कुण्ड मेंं पानी क्यों है। वो भी ऐसे कुण्ड मेंं जो सीधा नीचे महानदी से जुड़ा है। यह भी प्रसिद्ध है कि यहां पहाडी पर खोखले पत्थर हैं जो बजते हैं।
पहाड़ी से नीचे उतरने पर फि र एक आश्रम मिलता है। यहां पर भी कई साधु मिलते हैं। एक ने बताया कि साधु ही वे लोग हैं जो बिना पैसे के पूरे देश मेंं घूम लेते हैं, उन्हें कहीं भी न बोलने चालने की असुविधा होती, न खाने-पीने की और न उठने बैठने की। यहां से निकले पर कर्क आश्रम ही मिलता है। सिहावा की यात्रा का यही अंतिम पड़ाव होता है। यदि पास मेंं बस्तर जैसा प्राकृतिक सौन्दर्य निहारना है तो सिहावा-नगरी एक आदर्श पर्यटन स्थल के रुप मेंं दिखाई देता है।

नागा साधु: सम्पूर्ण जानकारी एवं इतिहास

सभी साधुओं में नागा साधुओं को सबसे ज्यादा हैरत और अचरज से देखा जाता है। यह आम जनता के बीच एक कौतुहल का विषय होते है। यदि आप यह सोचते है की नागा साधु बनना बड़ा आसान है तो यह आपकी गलत सोच है। नागा साधुओं की ट्रेनिंग सेना के कमांडों की ट्रेनिंग से भी ज्यादा कठिन होती है, उन्हें दीक्षा लेने से पूर्व खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है। पुराने समय में अखाड़ों में नाग साधुओं को मठो की रक्षा के लिए एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा की मठों और मंदिरों की रक्षा के लिए इतिहास में नाग साधुओं ने कई लड़ाइयां भी लड़ी हंै। आज इस लेख में हम आपको नागा साधुओं के बारे में उनके इतिहास से लेकर उनकी दीक्षा तक सब-कुछ विस्तारपूर्वक बताएंगे।
नाग साधुओं के नियम:-
वर्तमान में भारत में नागा साधुओं के कई प्रमुख अखाड़े हंै। वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं।
1. ब्रह्मचर्य का पालन- कोई भी आम आदमी जब नागा साधु बनने के लिए आता है, तो सबसे पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है। उससे लंबे समय ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है। इस प्रक्रिया में सिर्फ दैहिक ब्रह्मचर्य ही नहीं, मानसिक नियंत्रण को भी परखा जाता है। अचानक किसी को दीक्षा नहीं दी जाती। पहले यह तय किया जाता है कि दीक्षा लेने वाला पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त हो चुका है अथवा नहीं।
2. सेवा कार्य- ब्रह्मचर्य व्रत के साथ ही दीक्षा लेने वाले के मन में सेवाभाव होना भी आवश्यक है। यह माना जाता है कि जो भी साधु बन रहा है, वह धर्म, राष्ट्र और मानव समाज की सेवा और रक्षा के लिए बन रहा है। ऐसे में कई बार दीक्षा लेने वाले साधु को अपने गुरु और वरिष्ठ साधुओं की सेवा भी करनी पड़ती है। दीक्षा के समय ब्रह्मचारियों की अवस्था प्राय: 17-18से कम की नहीं रहा करती और वे ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य वर्ण के ही हुआ करते हैं।
3. खुद का पिंडदान और श्राद्ध- दीक्षा के पहले जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, वह है खुद का श्राद्ध और पिंडदान करना। इस प्रक्रिया में साधक स्वयं को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। इसके बाद ही उसे गुरु द्वारा नया नाम और नई पहचान दी जाती है।
4. वस्त्रों का त्याग- नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुए वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते। नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है। भस्म का ही श्रंगार किया जाता है।
5. भस्म और रुद्राक्ष- नागा साधुओं को विभूति एवं रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है, शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। नागा साधु को अपने सारे बालों का त्याग करना होता है। वह सिर पर शिखा भी नहीं रख सकता या फिर संपूर्ण जटा को धारण करना होता है।
6. एक समय भोजन- नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है। जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है।
7. केवल पृथ्वी पर ही सोना- नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गादी पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल पृथ्वी पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।
8. मंत्र में आस्था- दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
9. अन्य नियम- बस्ती से बाहर निवास करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी को ही प्रणाम करना आदि कुछ और नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ते हैं।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया:-
नाग साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। उनको आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। जानिए कौन सी प्रक्रियाओं से एक नागा को गुजरना होता है-
तहकीकात- जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
महापुरुष-
अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं।
अवधूत-
महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं। ये संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं। इनका एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा।  
लिंग भंग- इस प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं। इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है।
नागाओं के पद और अधिकार- नागा साधुओं के कई पद होते हैं। एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।
महिलाएं भी बनती है नाग साधू:
वर्तमान में कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधू की दीक्षा दी जाती है। इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी काफी है। वैसे तो महिला नागा साधू और पुरुष नाग साधू के नियम कायदे समान ही है। फर्क केवल इतना ही है कि महिला नागा साधू को एक पिला वस्त्र लपेट केर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहन कर  स्नान करना पड़ता है। नग्न स्नान की अनुमति नहीं है, यहाँ तक की कुम्भ मेले में भी नहीं।
अजब-गजब है नागाओं का श्रंगार:
श्रंगार सिर्फ महिलाओं को ही प्रिय नहीं होता, नागाओं को भी सजना-संवरना अच्छा लगता है। फर्क सिर्फ इतना है कि नागाओं की श्रंगार सामग्री, महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधनों से बिलकुल अलग होती है। उन्हें भी अपने लुक और अपनी स्टाइल की उतनी ही फिक्र होती है जितनी आम आदमी को। नागा साधु प्रेमानंद गिरि के मुताबिक नागाओं के भी अपने विशेष श्रंगार साधन हैं। ये आम दुनिया से अलग हैं, लेकिन नागाओं को प्रिय हैं। जानिए नागा साधु कैसे अपना श्रंगार करते हैं-
भस्म- नागा साधुओं को सबसे ज्यादा प्रिय होती है भस्म। भगवान शिव के औघड़ रूप में भस्म रमाना सभी जानते हैं। ऐसे ही शैव संप्रदाय के साधु भी अपने आराध्य की प्रिय भस्म को अपने शरीर पर लगाते हैं। रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैंं। यह भस्म भी ताजी होती है। भस्म शरीर पर कपड़ों का काम करती है।
फूल- कई नागा साधु नियमित रूप से फूलों की मालाएं धारण करते हैं। इसमें गेंदे के फूल सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इसके पीछे कारण है गेंदे के फूलों का अधिक समय तक ताजे बना रहना। नागा साधु गले में, हाथों पर और विशेषतौर से अपनी जटाओं में फूल लगाते हैं। हालांकि कई साधु अपने आप को फूलों से बचाते भी हैं। यह निजी पसंद और विश्वास का मामला है।
तिलक- नागा साधु सबसे ज्यादा ध्यान अपने तिलक पर देते हैं। यह पहचान और शक्ति दोनों का प्रतीक है। रोज तिलक एक जैसा लगे, इस बात को लेकर नागा साधु बहुत सावधान रहते हैं। वे कभी अपने तिलक की शैली को बदलते नहीं है। तिलक लगाने में इतनी बारीकी से काम करते हैं कि अच्छे-अच्छे मेकअप-मैन मात खा जाएं।
रुद्राक्ष- भस्म ही की तरह नागाओं को रुद्राक्ष भी बहुत प्रिय है। कहा जाता है रुद्राक्ष भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुए हैं। यह साक्षात भगवान शिव के प्रतीक हैं। इस कारण लगभग सभी शैव साधु रुद्राक्ष की माला पहनते हैं। ये मालाएं साधारण नहीं होतीं। इन्हें बरसों तक सिद्ध किया जाता है। ये मालाएं नागाओं के लिए आभा मंडल जैसा वातावरण पैदा करती हैं। कहते हैं कि अगर कोई नागा साधु किसी पर खुश होकर अपनी माला उसे दे दे तो उस व्यक्ति के वारे-न्यारे हो जाते हैं।
लंगोट- आमतौर पर नागा साधु निर्वस्त्र ही होते हैं, लेकिन कई नागा साधु लंगोट धारण भी करते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे भक्तों के उनके पास आने में कोई झिझक ना रहे। कई साधु हठयोग के तहत भी लंगोट धारण करते हैं- जैसे लोहे की लंगोट, चांदी की लंगोट, लकड़ी की लंगोट। यह भी एक तप की तरह होता है।
हथियार- नागाओं को सिर्फ साधु नहीं, बल्कि योद्धा माना गया है। वे युद्ध कला में माहिर, क्रोधी और बलवान शरीर के स्वामी होते हैं। अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते हैं। ये हथियार इनके योद्धा होने के प्रमाण तो हैं ही, साथ ही इनके जीवनचर्या का भी हिस्सा हैं।
चिमटा- नागाओं में चिमटा रखना अनिवार्य होता है। धुनि रमाने में सबसे ज्यादा काम चिमटे का ही पड़ता है। चिमटा हथियार भी है और औजार भी। ये नागाओं के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा होता है। ऐसा उल्लेख भी कई जगह मिलता है कि कई साधु चिमटे से ही अपने भक्तों को आशीर्वाद भी देते थे। महाराज का चिमटा लग जाए तो नैया पार हो जाए।
रत्न- कई नागा साधु रत्नों की मालाएं भी धारण करते हैं। महंगे रत्न जैसे मूंगा, पुखराज, माणिक आदि रत्नों की मालाएं धारण करने वाले नागा कम ही होते हैं। उन्हें धन से मोह नहीं होता, लेकिन ये रत्न उनके श्रंगार का आवश्यक हिस्सा होते हैं।
जटा- जटाएं भी नागा साधुओं की सबसे बड़ी पहचान होती हैं। मोटी-मोटी जटाओं की देख-रेख भी उतने ही जतन से की जाती है। काली मिट्टी से उन्हें धोया जाता है। सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है। अपनी जटाओं के नागा सजाते भी हैं। कुछ फूलों से, कुछ रुद्राक्षों से तो कुछ अन्य मोतियों की मालाओं से जटाओं का श्रंगार करते हैं।
दाढ़ी- जटा की तरह दाढ़ी भी नागा साधुओं की पहचान होती है। इसकी देखरेख भी जटाओं की तरह ही होती है। नागा साधु अपनी दाढ़ी को भी पूरे जतन से साफ रखते हैं।
पोषाक चर्म- जिस तरह भगवान शिव बाघंबर यानी शेर की खाल को वस्त्र के रूप में पहनते हैं, वैसे ही कई नागा साधु जानवरों की खाल पहनते हैं- जैसे हिरण या शेर। हालांकि शिकार और पशु खाल पर लगे कड़े कानूनों के कारण अब पशुओं की खाल मिलना मुश्किल होती है, फिर भी कई साधुओं के पास जानवरों की खाल देखी जा सकती है।
नाग साधुओं का इतिहास:
भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म 8वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की। ९८२७५-२३४५६  ९८२७४-०२४४४
आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें 40 हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
नागा साधुओं के प्रमुख अखाड़े:
भारत की आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया। इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें। इस समय 13 प्रमुख अखाड़े हैं जिनमें प्रत्येक के शीर्ष पर महन्त आसीन होते हैं। इन प्रमुख अखाड़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं:-
1. श्री निरंजनी अखाड़ा:- यह अखाड़ा 826ईस्वी में गुजरात के मांडवी में स्थापित हुआ था। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकस्वामी हैं। इनमें दिगम्बर, साधु, महन्त व महामंडलेश्वर होते हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर व उदयपुर में हैं।
2. श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा:- यह अखाड़ा 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया की सांसें उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए रुक जाती हैं।
3. श्री महानिर्वाण अखाड़ा:- यह अखाड़ा 681 ईस्वी में स्थापित हुआ था, कुछ लोगों का मत है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ इसका जन्म स्थान हरिद्वार में नील धारा के पास मानते हैं। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में हैं। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था।
4. श्री अटल अखाड़ा:- यह अखाड़ा 569 ईस्वी में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में भी हैं।
5. श्री आह्वान अखाड़ा:- यह अखाड़ा 646में स्थापित हुआ और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसका आश्रम ऋषिकेश में भी है। स्वामी अनूपगिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।
6. श्री आनंद अखाड़ा:- यह अखाड़ा 855 ईस्वी में मध्यप्रदेश के बेरार में स्थापित हुआ था। इसका केंद्र वाराणसी में है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में भी हैं।
7. श्री पंचाग्नि अखाड़ा:- इस अखाड़े की स्थापना 1136में हुई थी। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रहमचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं।
8.श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा:- यह अखाड़ा ईस्वी 866में अहिल्या-गोदावरी संगम पर स्थापित हुआ। इनके संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनका मुख्य दैवत गोरखनाथ है और इनमें बारह पंथ हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और इनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।
9. श्री वैष्णव अखाड़ा:- यह बालानंद अखाड़ा ईस्वी 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ। समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था। 1848तक शाही स्नान त्र्यंबकेश्वर में ही हुआ करता था। परंतु 1848में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर झगड़े हुए। श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया। उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्था पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे। आज भी यह स्नान नासिक में ही होता है।
10. श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा:-  इस संप्रदाय के संस्थापक श्री चंद्रआचार्य उदासीन हैं। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। उनकी शाखाएं शाखा प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में है।
11. श्री उदासीन नया अखाड़ा:- इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने विभक्त होकर स्थापित किया। इनके प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर में हैं।
12. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा:- यह अखाड़ा 1784 में स्थापित हुआ। 1784 में हरिद्वार कुंभ मेले के समय एक बड़ी सभा में विचार विनिमय करके श्री दुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।
13. निर्मोही अखाड़ा:- निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। पुराने समय में इसके अनुयायियों को तीरंदाजी और तलवारबाजी की शिक्षा भी दिलाई जाती थी।

कोहिनूर हीरा


प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरे की खोज वर्तमान भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गुंटूर जिले मेंं स्थित गोलकुंडा की खदानों मेंं हुई थी जहां से दरियाई नूर और नूर-उन-ऐन जैसे विश्व प्रसिद्ध हीरे भी निकले थे। पर यह हीरा खदान से कब बाहर आया इसकी कोई पुख्ता जानकारी इतिहास मेंं नहीं है।
कोहिनूर का अर्थ होता है रोशनी का पहाड़, लेकिन इस हीरे की चमक से कई सल्तनत के राजाओ का सूर्य अस्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है और यह मान्यता अब से नहीं तेरहवी शताब्दी से है। इस हीरे का प्रथम प्रमाणिक वर्णन बाबरनामा मेंं मिलता है जिसके अनुसार 1294 के आस-पास यह हीरा ग्वालियर के किसी राजा के पास था हालांकि तब इसका नाम कोहिनूर नहीं था। पर इस हीरे को पहचान 1306मेंं मिली जब इसको पहनने वाले एक शख्स ने लिखा की जो भी इंसान इस हीरे को पहनेगा वो इस संसार पर राज करेगा पर इसी के साथ उसका दुर्भाग्य शुरू हो जाएगा। हालांकि तब उसकी बात को उसका वहम कह कर खारिज कर दिया गया पर यदि हम तब से लेकर अब तक का इतिहास देखे तो कह सकते है की यह बात काफी हद तक सही है।
कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया। 14वी शताब्दी की शुरुआत मेंं यह हीरा काकतीय वंश के पास आया और इसी के साथ 1083 ई. से शासन कर रहे काकतीय वंश के बुरे दिन शुरू हो गए और 1323 मेंं तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई मेंं हार के साथ काकतीय वंश समाप्त हो गया।
काकतीय साम्राज्य के पतन के पश्चात यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन मेंं जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल मेंं ही नजरबंद कर दिया।
1739 मेंं फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और नादिर शाह अपने साथ तख्ते ताउस और कोहिनूर हीरों को पर्शिया ले गया। उसने इस हीरे का नाम कोहिनूर रखा। 1747 ई. मेंं नादिरशाह की हत्या हो गयी और कोहिनूर हीरा अफगानिस्तान शांहशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया। और उनकी मौत के बाद उनके वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास पहुंचा। पर कुछ समय बाद मो. शाह ने शाह शुजा को अपदस्त कर दिया। 1813  ई.  मेंं, अफगानिस्तान के अपदस्त शांहशाह शाह शूजा कोहीनूर हीरे के साथ भाग कर लाहौर पहुंचा। उसने कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रंजीत सिंह को दिया एवं इसके एवज मेंं राजा रंजीत सिंह ने, शाह शूजा को अफगानिस्तान का राज-सिंहासन वापस दिलवाया।  
इस प्रकार कोहिनूर हीरा वापस भारत आया। लेकिन कहानी यही खत्म नहीं होती है कोहिनूर हीरा के आने के कुछ सालों बाद महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो जाती है और अंग्रेज सिख साम्राज्य को अपने अधीन कर लिये। इसी के साथ यह हीरा ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो जाता है। कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन ले जाकर महारानी विक्टोरिया को सौप दिया जाता है तथा उसके शापित होने की बात बताई जाती है। महारानी के बात समझ मेंं आती है और वो हीरे को ताज मेंं जड़वा के 1852 मेंं स्वयं पहनती है तथा यह वसीयत करती है की इस ताज को सदैव महिला ही पहनेगी। यदि कोई पुरुष ब्रिटेन का राजा बनता है तो यह ताज उसकी जगह उसकी पत्नी पहनेगी।
पर कई इतिहासकारों का मानना है की महिला के द्वारा धारण करने के बावजूद भी इसका असर खत्म नहीं हुआ और ब्रिटेन के साम्राज्य के अंत के लिए भी यही जिम्मेंदार है। ब्रिटेन 1850 तक आधे विश्व पर राज कर रहा था पर इसके बाद उसके अधीनस्थ देश एक एक करके स्वतंत्र हो गए।
793 कैरेट का था कोहिनूर:
कहा जाता है की खदान से निकला हीरा 793 कैरेट का था। अलबत्ता 1852 से पहले तक यह 186कैरेट का था। पर जब यह ब्रिटेन पहुंचा तो महरी को यह पसंद नहीं आया इसलिए इसकी दुबारा कटिंग करवाई गई जिसके बाद यह 105.6कैरेट का रह गया।
क्या है कोहिनूर हीरे की कीमत:
कोहिनूर हीरा अपने पुरे इतिहास मेंं अब तक एक बार भी नहीं बिका है यह या तो एक राजा द्वारा दूसरे राजा से जीता गया या फिर इनाम मेंं दिया गया। इसलिए इसकी कीमत कभी नहीं लग पाई। पर इसकी कीमत क्या हो सकती है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की आज से 60 साल पूर्व हांगकांग मेंं एक ग्राफ पिंक हीरा 46मिलियन डॉलर मेंं बिका था जो की मात्र 24.78कैरेट का था। इस हिसाब से कोहिनूर की वर्तमान कीमत कई बिलियन डॉलर होगी।

अगस्त 2016 मिथुन मासिक राशीफल

माह की शुरूआत में आप नए उद्यम एवं कार्य करने के लिए प्रेरित होंगे। परंतु, इस समय आपको लाभ प्राप्त करने का लालच अधिक रहेगा। प्रलोभन के कारण आप किसी को ठगने की कोशिश करेंगे या कोर्इ आपको ठग सकता है। हालांकि, कमीशन, दलाली और लेखन के कार्य में सफलता मिलेगी। आँखों के संबंध में सावधानी बरतें। परिवार या जीवन साथी के साथ कोई मतभेद न हो, इसका भी ध्यान रखें। दूसरे सप्ताह गुरू राशि बदलकर कन्या राशि में प्रवेश करेगा, जो आपके लिए सामान्य फलदायी रहेगा। आपको मकान-वाहन की चिंता या हृदय की अशांति का अनुभव होगा। इसके बाद का समय कुल मिलाकर शुभ है। नए प्रेम संबंध बनेंगे। यह संबंध कदाचित लंबे समय तक न टिकें, ऐसी संभावना है। तीसरे सप्ताह दौरान जब सूर्य राशि बदलकर सिंह में प्रवेश करेगा, तो आपको पिता की तरफ से अधिक सहयोग नहीं मिलेगा, किसी भी मामले में। इसके अलावा वसीयत संबंधी कामों में देरी का सामना करना पड़ रहा था, उसका कोई रास्ता निकलेगा। चौथे सप्ताह की शुरूआत से परिस्थितियों में बदलाव महसूस करेंगे। जायदाद या जमीन-वाहन से जुड़े कार्यों में सफलता मिलेगी। नौकरी और व्यापार से संबंधित कार्य भी पूर्ण होंगे। फ्रेशर्स को अच्छे अवसर प्राप्त होंगे। टिप्सः वैवाहिक जीवन में अहं का टकराव नहीं हो, इसका ध्यान रखें।
प्रेम-संबंध-इस समय आपको अपने मित्र मंडली अथवा भाई-बहन के परिचितों मे से कोई योग्य पात्र मिल सकता है। विशेषकर, दूसरे सप्ताह के बाद आप विपरीत लिंगी जातकों की ओर अधिक झुके हुए रहेंगे। पहले पखवाड़े में आपकी वाणी से दंभ का भाव न दिखाई पड़े, इसका जरा ख्याल रखें। कामकाज के स्थल पर लोगों के साथ विनम्रता रखने की गणेशजी सलाह दे रहे हैं। पुराने संबंध फिर से जीवंत हो सकते हैं।
कैरिअर-विद्यार्थी जातकों की हाल में अभ्यास में रुचि रहेगी जिसमें खास रूप से विशेष रूप से विज्ञान व रिसर्च के कार्यों में आप गहराई से उतरने का प्रयास करेंगे। आपको उत्तम फल की प्राप्ति होने की संभावना है। जो लोग इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे हैं अथवा व्यवसायिक मोर्च पर आगे बढ़ने के लिए किसी प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उनको 14 तारीख के बाद सफलता प्राप्त हो सकती है। 17 तारीख के बाद मित्रों के साथ पढ़ाई से संबंधित यात्राएं होने की संभावना है। हालांकि, यात्राओं में सावधानी रखनी आवश्यक होगी।
आर्थिक स्तिथि- आर्थिक मामलों में क्रमशः सुधार आएगा। आप कोई नया उद्यम लगाने या व्यवसाय के विस्तार हेतु कोई बड़ा खर्च कर सकते हैं। 12 तारीख के बाद परिवारजनों की खुशी हेेतु कीमती चीजों की खरीद कर सकते हैं। अपने आसपास के परिवेश को सुधारने के लिए खर्च कर सकते हैं। भाग्यशाली समय नहीं होने के कारण किसी प्रकार का जोखिम न लें। निवेश से जुड़े निर्णय सोच-विचारकर लें।
स्वास्थ्य- इस महीने आपके रोग स्थान में मंगल व वक्री शनि की युति होने से स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना होगा। वैसे पिछले पखवाड़े में शनि के मार्गी होने से पुरानी बीमारियों में उपचार का असर मंद गति से होता दिखाई देगा। जो लोग एसिडिटी, पेट में जलन, आँखों की तकलीफ, दांतों में सूजन, गर्दन की हड्डियों की व्याधियों से कष्ट में हैं उनको 17 तारीख के बाद राहत मिलने की संभावना है। हालांकि, पिछले पखवाड़े में खतरनाक कामों में अपने आप को चोट लगने से बचाएं।

अगस्त 2016 वृषभ मासिक राशिफल

इस माह की शुरूआत में जातकों को थोड़ा सा सतर्क रहने की जरूरत रहेगी। आप प्रलोभन में आकर किसी को ठगने का प्रयत्न करेंगे या आप स्वयं ठगे जाएंगे। शेयर मार्केट के साथ जुड़े लोगों को किसी भी सौदे में सावधानी रखनी चाहिए। पारिवारिक क्षेत्र में वैचारिक मतभेद और कलह की संभावना का संकेत मिल रहा है।नर्इ प्रोपर्टी लेने के लिए आप विचार कर सकते हैं। गुरू महाराज का राशि परिवर्तन संतान प्राप्ति, प्रगति, प्रेम संबंध में सफलता तथा विद्यार्थियों को प्रगति का संकेत दे रहा है। पूर्वार्ध में जातक धार्मिक यात्रा का आयोजन कर सकते हैं। नए संबंध के लिए व्यक्ति का चुनाव करते हुए थोड़ी सावधानी रखें। उत्तरार्ध की शुरूआत में मुसीबत, विघ्न और स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ रहेगी। कदाचित इच्छित काम समय पर पूरा नहीं हो। आर्थिक मामलों में खींचतान रह सकती है। २१ तारीख के पश्चात शुक्र राशि बदलकर कन्या राशि में प्रवेश कर रहा है, जो आपके लिए शुभ फलदायी रहेगा। प्रेम संबंध में आगे बढ़ने के इच्छुक जातक प्रेम प्रस्ताव रखने के सक्षम होंगे। बिजनेस, शेयर मार्केट अथवा कमीशन, कम्युनिकेशन में अप्रत्याशित सफलता और लाभ मिलेगा। २४ तारीख़ के पश्चात खर्च, शारीरिक तकलीफ अथवा जीवन साथी के साथ व्यवहार में भी तनाव संकेत मिल रहा है। टिप्सः हल्दी एवं पानी से शिवलिंग की पूजा करें। गुरूवार को पीले कपड़े पहनें।
कैरिअर-महीने के प्रारंभ में आप प्रोफेशनल मामलों के लिए यात्राएं कर सकते हैं। जो लोग शेयर बाजार या सट्टे की प्रवृत्तियों से जुड़े हैं वे पूर्व के पखवाड़े में योजनापूर्वक लाभ उठा सकते हैं। हाल में आपके कर्म स्थान में केतु के होने से शत्रुओं व विरोधियों से टक्कर लेते हुए रास्ता बनाना होगा। कामकाज में सतर्कता और आर्थिक व्यवहारों में सजगता रखनी होगी।
प्रेम-संबंध- इस महीने के शुरू का समय प्रेम संबंधों के लिए सामान्य रहेगा। दूसरे सप्ताह से गुरू के आपके पंचम भाव में आने से आगामी एक वर्ष तक शुभ समय रहेगा। नए संबंधों की शुरूआत होने की संभावना है। हालांकि, पूर्व के पखवाड़े में बुध के यहां आने से वर्तमान संबंधों में नीरसता आ सकती है। पर महीने के अंत में शुक्र के भी यहां आने से स्थिति सुधरेगी। सप्तम भाव में मंगल व शनि की युति के कारण दांपत्य जीवन में क्रोध को अंकुश में रखना पड़ेगा।
आर्थिक स्तिथि- इस महीने आपकी आर्थिक स्थिति सामान्य रहने की संभावना है। वर्तमान में आप अपने परिवारजनों और आसपास के लोगों के लिए अधिक धन खर्च करेंगे। दूसरे सप्ताह के बाद आप अपनी संतान की ओर से कुछ अपेक्षा रख सकते हैं। नए निवेश के इच्छुक जातक जहां तक संभव हो 17 तारीख के बाद ही कोई निर्णय लें। वसीयत या पारिवारिक संपत्ति से जुड़े मामलों में दूसरे पखवाड़े में अवरोध की संभावना रहेगी।
स्वास्थ्य- इस महीने विशेष तौर पर आपको छाती में दुःखाव, फूड पोइज़निंग इत्यादि समस्याओं से बचकर रहना होगा। उत्तरार्ध के समय में आपको रीढ़ की हड्डियों में दर्द की शिकायत होने की संभावना है। संतान संबंधी समस्याओं का पिछले पखवाड़े में हल निकलने की उम्मीद है। जिन लोगों को कोई गंभीर बीमारी है उनको पूर्वार्ध के समय में विशेष चौकन्ना रहना पड़ेगा।

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Monday 1 August 2016

अगस्त 2016 मेष मासिक राशीफल

शुक्र, बुध, गुरू एवं राहु सिंह में एकत्र हो रहे हैं, जिसके कारण आपके सामने विद्या, संतान और प्रेम संबंधी प्रश्न खड़े होने की संभावना है। हालांकि, माह की शुरूआत में नौकरी और व्यवसाय संबंधित कार्य पूरे हो सकते हैं। व्यावसायिक प्रयोजन से बाहर जाने या यात्रा का प्रोग्राम बन सकता है। शेयर मार्केट या किसी विषय में अत्यधिक लालच से आप धोखे का शिकार होंगे। ७ तारीख़ के पश्चात बुरा चाहने वालों की संख्या बढ़ेगी। हालांकि, बिजनस और धन के संबंध में गुरू का गोचर शुभ प्रदान देगा। कोर्ट- कचहरी का कोई मामला हो तो उस से मुक्ति मिल सकती है। उत्तरार्ध की शुरूआत से २० तारीख़ तक का समय काफी अनुकूल है। यह समय नौकरी-व्यवसाय में उन्नति तथा विदेशगमन के लिए प्रगतिकारक दिखाई दे रहा है। आर्थिक समृद्धि का योग भी अभी प्रबल बन रहा है। अचानक लाभ तथा किसी पुराने मित्र मुलाकात होने की संभावना है। जब शुक्र राशि बदलकर कन्या में प्रवेश करेगा तो आपके लिए शत्रुओं की तरफ से चिंता और मुश्किल बढ़ने का संकेत दे रहा है। खर्च में वृद्धि की संभावना बन रही है। धार्मिक और जन सेवा के कार्यों पर भी खर्च होगा। गुप्त शत्रुआें से सावधान रहें। टिप्सः बुधवार को आेम राम राहुवे नमः मंत्र का जाप करें। सफार्इ कर्मचारियों काले कपड़े का दान करें। प्रेम संबंध में सावधानी बरतें।
महीने के शुरूआत में प्रेम संबंधों में काफी ध्यान रखना होगा। आपके पंचम स्थान पर राहु, गुरू, बुध व शुक्र की युति नीरसता व अहं का कारण बन सकती है। आपमें विपरीत लिंगी सदस्यों के प्रति आकर्षण रहेगा, पर संबंधों में कोई विशेष प्रयास करने पर आप धोखे का शिकार हो सकते हैं। महीने के उत्तरार्ध में सूर्य व राहु की युति तनाव का कारण बन सकती है।
आपके धन स्थान के मालिक शुक्र का महीन के शुरूआत से ही पंचम स्थान में राहु के साथ युति में होने से शेयर बाजार जैसे कामों या व्यर्थ की जगहों पर धन का निवेश हो सकता है। मनपसंद के व्यक्ति,संतान या शिक्षा में धन खर्च होने की संभावनाए अधिक है। 12 तारीख के बाद आप नियमित आवक को बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। पुश्तैनी या पैतृक संपत्ति के मामले में पूर्वार्ध का समय लाभकारी रहेगा।
विद्यार्थी जातकों के लिए शुरूआत का समय काफी संघर्षपूर्ण प्रतीत होता है। समझ शक्ति व पढ़ने की इच्छा शक्ति होने पर भी पंचम स्थान पर विद्यमान राहु के कारण कोई न कोई अवरोध आ सकता है। उत्तरार्ध के समय में व्यवसायिक कारणों अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आपको आराम रहेगा। जो लोग अनुसंधान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं, उनको 17 तारीख के बाद मेहनत व अवरोध के बीच से होकर आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना होगा।
आपके अष्टम स्थान में अग्नि तत्व वाला मंगल व वक्री शनि युति में है। इसके बाद महीने के उत्तरार्ध में आपके रोग स्थान में गुरू, बुध और शुक्र युति में आएंगे। शुरूआत की तुलना में महीने के पिछले पखवाड़े में आपके अपने स्वास्थ्य के संबंध में सावधानी रखनी होगी। पूरे महीने संतान प्राप्ति की समस्या रहेगी। गर्भवती महिलाओं को अपना ध्यान रखना होगा। 20 तारीख के बाद पाचन, छाती में दर्द, मधुमेह इत्यादि रोग हो सकते हैं।

साप्ताहिक राशिफल 01-07 अगस्त, 2016

मेष राशि -
मेष राशि वाले जातकों के.....द्वितीयेष एवं सप्तमेष शुक्र.... पंचममस्थ होकर राहु से पापाक्रांत होने से..इस सप्ताह संतान, समाज, संपत्ति और मित्र सभी...आपके लिए दुख का कारक है... संतान के अध्ययन तथा स्वास्थ्यगत कष्ट.....पारिवारिक अशांति से मानसिक तनाव रहेगा....तथा मित्रो या भागीदारों के साथ विवाद तथा धन संबंधी कष्ट संभव हैं....साथ ही किसी कार्य की शुरूआत हो जाने के कारण तनाव बढ़ सकता है...... विवेक एवं संयम से काम लें ...साथ ही... उदर संबंधी विकार से बचने के लिए शुक्र के उपाय करें तो लाभ होगा-
1. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2. माॅ महामाया के दर्शन करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...
4.

वृषभ -
वृषभ राशि वालें जातकों के... भाग्येष और दषमेष शनि....सप्तमस्थ स्थान में...विपरीत राजयोग कारक... आपके काम में भाग्य भी आपके साथ होगा....जो भी काम आप सोचेंगे...उसके लिए रास्ता तथा व्यक्ति से अचानक सहयोग प्राप्त होने से काम आसानी से संभव....रूके काम करने का प्रयास कर सकते हैं....निष्चित सफलता मिलेगी......नये प्रोजेक्ट या नवीन कार्य का प्रारंभ करने से लाभ की प्राप्ति...अध्ययनरत हों तो अच्छे परिणाम से उन्नति के लिए दोस्तों से दूरी जरूरी होगी, तभी रास्ते खुलेंगे...रक्त विकार या पुराने रोग कष्टकारी हो सकते हैं... शनि के बुरे प्रभाव से उत्पन्न कष्ट की शांति के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. उड़द या तिल दान करें....
3. षिव पूजन करें....

मिथुन
मिथुन राशि वाले जातकों के.... षष्ठेष एवं एकादषेष मंगल के... षष्ठस्थ होने से....इस हफ्ते प्रथमार्थ में नवीन कार्य आरंभ करने के लिए लोन से संबंधित कार्य की शुरूआत कर सकते हैं...जिसमें लोन से संबंधित क्षेत्र में किसी पूर्व परिचित या मित्र के अचानक मिलने से काम तत्काल एवं बिना बाधा आसानी से होने से चिंता समाप्त होकर मन प्रसन्न होगा... साथ ही कार्य का एक्सटेंषन कर सकते हैं...लाभ की प्राप्ति...खान-पान की... अनियमितता तथा क्वालिटी से शारीरिक कष्ट संभव....कष्ट को दूर करने के लिए -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..

कर्क -
कर्क राशि वाले सभी जातकों के.... लग्नेष चंद्रमा के लग्नस्थ होने से.... यात्रा की संभावना...कृषि या कृषि संबंधित क्षेत्र से अच्छे लाभ की संभावना...निरपेक्ष रहने से कुटुंब एवं दोस्तों के सलाह एवं काम में मदद से प्रसन्नता तथा दोस्तों में विष्वसनीयता तथा करीबी... किंतु चंद्रमा के कारण पर उपदेष कुषल बहुतेरे...अर्थात् स्वयं आलस्य के कारण कार्य में विलंब एवं टालने के कारण हानि एवं श्वासरोग से कष्ट संभव ...काम समय पर करने एवं सेहत से संबंधित कष्टों से बचाव के लिए -
1. ऊॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2. दूध, चावल, शंख, स्वेत वस्त्र, मोती का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...

सिंह -
सिंह राशि वाले सभी जातकों के......पंचमेष और अष्टमेष बृहस्पति के लग्नस्थ होने से किंतु राहु से पापाक्रांत होने के कारण ....इस सप्ताह आपको वसीहत में साहित्य या अध्ययन सामग्री प्राप्त हो सकती है...अथवा...सामाजिक कार्य या समारोह में शामिल होने हेतु यात्रा की संभावना....यष सम्मान की प्राप्ति.... किंतु...आर्थिक स्थिति चिंता का कारण हो सकता है... पूर्ण प्रयास करने के उपरांत भी विद्यार्थियों को मनचाही सफलता प्राप्त नहीं होगी... बृहस्पति के निम्न उपाय करने चाहिए -
1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...

कन्या -
कन्या राशि वाले सभी जातकों के... द्वादश स्थान में राहु....सामाजिक प्रतिष्ठा और आकस्मिक लाभ के योग बन सकते हैं....किंतु यदि आप थोड़ा भी धर्म या नीति विरूद्ध कार्य करें...तो बनते कार्य बिगड़ने के साथ ही अपयष तथा हानि भी संभव...इस समय....किसी भी प्रकार के भूमि.. वाहन...संपत्ति संबंधी कार्य में सावधान रहें...अर्थात्...ठीक तरह कागजात की जाॅच कर लें....माता के स्वास्थ्य की चिंता संभव.... अतः राहु जनित दोषों को दूर करने के लिए -
1. ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. मूली का दान करें..
3. सूक्ष्म जीवों को आहार दें..

तुला -
तुला राशि वाले सभी जातकों के.... एकादषेेष सूर्य के दसमस्थ होने से...इस सप्ताह शासकीय पक्ष या कार्य से लाभ तथा वाहन या मकान संबंधी कार्य से लाभ या वित्त की प्राप्ति.....कामों में मामा या प्रतिद्वंदी का आकस्मिक सहयोग प्राप्त होकर कार्य पूर्ण होना आष्चर्यजनक हो सकता है...सप्ताह के बीच में आकस्मिक लाभ या हानि का योग बन सकता है....सच्चे रहे तो लाभ तथा अनैतिक तरीका अपनाने से हानि.... अतः अपने व्यवहार में पारदर्षीता रखें एवं शारीरिक कष्ट से बचाव के लिए सूर्य के निम्न उपाय आजमायें -
1. प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प, चंदन तथा शक्कर मिलाकर अध्र्य देते हुए ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें, सूर्य नमस्कार करें..
2. गुड़.. गेहू... दान करें..
3. आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...

वृश्चिक
वृश्चिक राशि वालें सभी जातकों के....तृतीयेष और चतुर्थेष शनि के.....लग्नस्थ होने से... वाणी की कुषलता एवं आत्मविष्वास का स्तर उच्च होने से....कार्य में नेतृत्व तथा गोपनीय कार्य में सहभागिता से अच्छा लाभ प्राप्त होगा....कार्यकुषल होने से कार्यस्तर या सहयोगियों की अपेक्षा स्थिति बेहतर हो सकती है... साथ ही वाहन तथा सामाजिक सुख का स्तर काफी अच्छा होगा...किंतु कंधे या कान में चोट या दर्द से परेषान हो सकते हैं...शनि से उत्पन्न कष्ट की निवृत्ति के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. उड़द या तिल दान करें,
5. अधिनस्थ कार्य करने वाले की यथा संभव सहायता करें,

धनु
धनु राशि वाले सभी जातकों के...तीसरे स्थान में केतु के कारण..... इस सप्ताह आपके रिष्तों में या व्यवसायिक स्थिति में परिवर्तन संभव....भागीदारी में विवाद का निपटारा होने की संभावना...साथ ही पुरानी दोस्ती में अच्छी गर्माहट हो सकती है...या कोई पुराना दोस्त मिल सकता है,....साथ ही इस सप्ताह चोट-मोच या जानवरों से एलर्जी की थोड़ी प्राब्लम हो सकती है तथा हार्मोन से संबंधित कष्ट भी दिखाई दे सकता है... केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि एवं कष्टों की निवृत्ति के लिए -
1. ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
3. हल्दी, नारियल का दान करें...

मकर -
मकर राशि वाले सभी जातकों के.... चतुर्थेष एवं एकादषेष मंगल के.... एकादशस्थ होने से.... वाहन सुख तथा आय में वृद्धि होने से...चल संपत्ति का क्रय कर सकते हैं.... अवसर का आप पूरा लाभ ले सकने में सफल रहेंगे...पारिवारिक सुख तथा साथ मिलेगा....व्यसन से स्वयं को बचा कर रखें एवं मित्रों के बीच खान-पान में सतर्कता बरतें...साथ ही पूरे सप्ताह उत्साह कायम रखने तथा तंदुरूस्त रहने के लिए मंगल के निम्न उपाय आजमायें -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..

कुंभ -
कुंभ राशि वाले जातकों के.... चतुर्थेष एवं भाग्येष शुक्र के....सप्तमस्थ होकर राहु से पापाक्रांत होने से... घरेलू स्थान का शुक्र होने के कारण पारिवारिक खर्च में बढ़ोतरी, अशांति तथा भाग्य में बाधा देकर एसोसियेश में व्यय भी कराता है...अतः इस सप्ताह आप आकस्मिक हानि और विवाद से बचने का प्रयास करें...किंतु यह विवाद स्वास्थ्य को भी परेशान करेगा...सामथ्र्य एवं योग्यता से अधिक महत्वाकांक्षा आपके लिए हानिकारक हो सकता है.... अतः शुक्र जनित तनाव से निवारण के लिए -
5. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
6. माॅ महामाया के दर्शन करें...
7. चावल, दूध, दही का दान करें...
8.
मीन -
मीनराशि वालों सभी जातकों के....पंचमेष चंद्रमा के...पंचमस्थ होने से.... अध्ययन या अध्यापन संबंधी कार्य में नवीनता से...यष तथा प्रतिष्ठा की प्राप्ति संभव....दोस्तों का अच्छा सहयोग कार्य में सफलता दिलाने में सहायक हो सकता है.....राजनैतिक मान-सम्मान की प्राप्ति के योग भी बन सकते हैं....इस सप्ताह रिष्तों को लेकर भावुक होने की संभावना....नये रिष्ते बनने के संकेत....जल तथा कफ या एलर्जी से कष्ट की संभावना....अतः बचाव के लिए .....
1. ऊॅ सों सोमाय नमः का जाप करें...
2. अन्नपूर्णा स्त्रोत का जाप करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...




मेष राशि -
मेष राशि वाले जातकों के.....द्वितीयेष एवं सप्तमेष शुक्र.... पंचममस्थ होकर राहु से पापाक्रांत होने से..इस सप्ताह संतान, समाज, संपत्ति और मित्र सभी...आपके लिए दुख का कारक है... संतान के अध्ययन तथा स्वास्थ्यगत कष्ट.....पारिवारिक अशांति से मानसिक तनाव रहेगा....तथा मित्रो या भागीदारों के साथ विवाद तथा धन संबंधी कष्ट संभव हैं....साथ ही किसी कार्य की शुरूआत हो जाने के कारण तनाव बढ़ सकता है...... विवेक एवं संयम से काम लें ...साथ ही... उदर संबंधी विकार से बचने के लिए शुक्र के उपाय करें तो लाभ होगा-
1. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2. माॅ महामाया के दर्शन करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...
4.

वृषभ -
वृषभ राशि वालें जातकों के... भाग्येष और दषमेष शनि....सप्तमस्थ स्थान में...विपरीत राजयोग कारक... आपके काम में भाग्य भी आपके साथ होगा....जो भी काम आप सोचेंगे...उसके लिए रास्ता तथा व्यक्ति से अचानक सहयोग प्राप्त होने से काम आसानी से संभव....रूके काम करने का प्रयास कर सकते हैं....निष्चित सफलता मिलेगी......नये प्रोजेक्ट या नवीन कार्य का प्रारंभ करने से लाभ की प्राप्ति...अध्ययनरत हों तो अच्छे परिणाम से उन्नति के लिए दोस्तों से दूरी जरूरी होगी, तभी रास्ते खुलेंगे...रक्त विकार या पुराने रोग कष्टकारी हो सकते हैं... शनि के बुरे प्रभाव से उत्पन्न कष्ट की शांति के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. उड़द या तिल दान करें....
3. षिव पूजन करें....

मिथुन
मिथुन राशि वाले जातकों के.... षष्ठेष एवं एकादषेष मंगल के... षष्ठस्थ होने से....इस हफ्ते प्रथमार्थ में नवीन कार्य आरंभ करने के लिए लोन से संबंधित कार्य की शुरूआत कर सकते हैं...जिसमें लोन से संबंधित क्षेत्र में किसी पूर्व परिचित या मित्र के अचानक मिलने से काम तत्काल एवं बिना बाधा आसानी से होने से चिंता समाप्त होकर मन प्रसन्न होगा... साथ ही कार्य का एक्सटेंषन कर सकते हैं...लाभ की प्राप्ति...खान-पान की... अनियमितता तथा क्वालिटी से शारीरिक कष्ट संभव....कष्ट को दूर करने के लिए -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..

कर्क -
कर्क राशि वाले सभी जातकों के.... लग्नेष चंद्रमा के लग्नस्थ होने से.... यात्रा की संभावना...कृषि या कृषि संबंधित क्षेत्र से अच्छे लाभ की संभावना...निरपेक्ष रहने से कुटुंब एवं दोस्तों के सलाह एवं काम में मदद से प्रसन्नता तथा दोस्तों में विष्वसनीयता तथा करीबी... किंतु चंद्रमा के कारण पर उपदेष कुषल बहुतेरे...अर्थात् स्वयं आलस्य के कारण कार्य में विलंब एवं टालने के कारण हानि एवं श्वासरोग से कष्ट संभव ...काम समय पर करने एवं सेहत से संबंधित कष्टों से बचाव के लिए -
1. ऊॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2. दूध, चावल, शंख, स्वेत वस्त्र, मोती का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...

सिंह -
सिंह राशि वाले सभी जातकों के......पंचमेष और अष्टमेष बृहस्पति के लग्नस्थ होने से किंतु राहु से पापाक्रांत होने के कारण ....इस सप्ताह आपको वसीहत में साहित्य या अध्ययन सामग्री प्राप्त हो सकती है...अथवा...सामाजिक कार्य या समारोह में शामिल होने हेतु यात्रा की संभावना....यष सम्मान की प्राप्ति.... किंतु...आर्थिक स्थिति चिंता का कारण हो सकता है... पूर्ण प्रयास करने के उपरांत भी विद्यार्थियों को मनचाही सफलता प्राप्त नहीं होगी... बृहस्पति के निम्न उपाय करने चाहिए -
1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...

कन्या -
कन्या राशि वाले सभी जातकों के... द्वादश स्थान में राहु....सामाजिक प्रतिष्ठा और आकस्मिक लाभ के योग बन सकते हैं....किंतु यदि आप थोड़ा भी धर्म या नीति विरूद्ध कार्य करें...तो बनते कार्य बिगड़ने के साथ ही अपयष तथा हानि भी संभव...इस समय....किसी भी प्रकार के भूमि.. वाहन...संपत्ति संबंधी कार्य में सावधान रहें...अर्थात्...ठीक तरह कागजात की जाॅच कर लें....माता के स्वास्थ्य की चिंता संभव.... अतः राहु जनित दोषों को दूर करने के लिए -
1. ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. मूली का दान करें..
3. सूक्ष्म जीवों को आहार दें..

तुला -
तुला राशि वाले सभी जातकों के.... एकादषेेष सूर्य के दसमस्थ होने से...इस सप्ताह शासकीय पक्ष या कार्य से लाभ तथा वाहन या मकान संबंधी कार्य से लाभ या वित्त की प्राप्ति.....कामों में मामा या प्रतिद्वंदी का आकस्मिक सहयोग प्राप्त होकर कार्य पूर्ण होना आष्चर्यजनक हो सकता है...सप्ताह के बीच में आकस्मिक लाभ या हानि का योग बन सकता है....सच्चे रहे तो लाभ तथा अनैतिक तरीका अपनाने से हानि.... अतः अपने व्यवहार में पारदर्षीता रखें एवं शारीरिक कष्ट से बचाव के लिए सूर्य के निम्न उपाय आजमायें -
1. प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प, चंदन तथा शक्कर मिलाकर अध्र्य देते हुए ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें, सूर्य नमस्कार करें..
2. गुड़.. गेहू... दान करें..
3. आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...

वृश्चिक
वृश्चिक राशि वालें सभी जातकों के....तृतीयेष और चतुर्थेष शनि के.....लग्नस्थ होने से... वाणी की कुषलता एवं आत्मविष्वास का स्तर उच्च होने से....कार्य में नेतृत्व तथा गोपनीय कार्य में सहभागिता से अच्छा लाभ प्राप्त होगा....कार्यकुषल होने से कार्यस्तर या सहयोगियों की अपेक्षा स्थिति बेहतर हो सकती है... साथ ही वाहन तथा सामाजिक सुख का स्तर काफी अच्छा होगा...किंतु कंधे या कान में चोट या दर्द से परेषान हो सकते हैं...शनि से उत्पन्न कष्ट की निवृत्ति के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. उड़द या तिल दान करें,
5. अधिनस्थ कार्य करने वाले की यथा संभव सहायता करें,

धनु
धनु राशि वाले सभी जातकों के...तीसरे स्थान में केतु के कारण..... इस सप्ताह आपके रिष्तों में या व्यवसायिक स्थिति में परिवर्तन संभव....भागीदारी में विवाद का निपटारा होने की संभावना...साथ ही पुरानी दोस्ती में अच्छी गर्माहट हो सकती है...या कोई पुराना दोस्त मिल सकता है,....साथ ही इस सप्ताह चोट-मोच या जानवरों से एलर्जी की थोड़ी प्राब्लम हो सकती है तथा हार्मोन से संबंधित कष्ट भी दिखाई दे सकता है... केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि एवं कष्टों की निवृत्ति के लिए -
1. ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
3. हल्दी, नारियल का दान करें...

मकर -
मकर राशि वाले सभी जातकों के.... चतुर्थेष एवं एकादषेष मंगल के.... एकादशस्थ होने से.... वाहन सुख तथा आय में वृद्धि होने से...चल संपत्ति का क्रय कर सकते हैं.... अवसर का आप पूरा लाभ ले सकने में सफल रहेंगे...पारिवारिक सुख तथा साथ मिलेगा....व्यसन से स्वयं को बचा कर रखें एवं मित्रों के बीच खान-पान में सतर्कता बरतें...साथ ही पूरे सप्ताह उत्साह कायम रखने तथा तंदुरूस्त रहने के लिए मंगल के निम्न उपाय आजमायें -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..

कुंभ -
कुंभ राशि वाले जातकों के.... चतुर्थेष एवं भाग्येष शुक्र के....सप्तमस्थ होकर राहु से पापाक्रांत होने से... घरेलू स्थान का शुक्र होने के कारण पारिवारिक खर्च में बढ़ोतरी, अशांति तथा भाग्य में बाधा देकर एसोसियेश में व्यय भी कराता है...अतः इस सप्ताह आप आकस्मिक हानि और विवाद से बचने का प्रयास करें...किंतु यह विवाद स्वास्थ्य को भी परेशान करेगा...सामथ्र्य एवं योग्यता से अधिक महत्वाकांक्षा आपके लिए हानिकारक हो सकता है.... अतः शुक्र जनित तनाव से निवारण के लिए -
5. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
6. माॅ महामाया के दर्शन करें...
7. चावल, दूध, दही का दान करें...
8.
मीन -
मीनराशि वालों सभी जातकों के....पंचमेष चंद्रमा के...पंचमस्थ होने से.... अध्ययन या अध्यापन संबंधी कार्य में नवीनता से...यष तथा प्रतिष्ठा की प्राप्ति संभव....दोस्तों का अच्छा सहयोग कार्य में सफलता दिलाने में सहायक हो सकता है.....राजनैतिक मान-सम्मान की प्राप्ति के योग भी बन सकते हैं....इस सप्ताह रिष्तों को लेकर भावुक होने की संभावना....नये रिष्ते बनने के संकेत....जल तथा कफ या एलर्जी से कष्ट की संभावना....अतः बचाव के लिए .....
1. ऊॅ सों सोमाय नमः का जाप करें...
2. अन्नपूर्णा स्त्रोत का जाप करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...



सोलह सोमवार का व्रत भाग्य के लिए फलदायी

सोमवार का व्रत श्रावण, चैत्र, वैसाख, कार्तिक और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू किया जाता है. कहते हैं इस व्रत को 16 सोमवार तक श्रद्धापूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यहां जानें सोलह सोमवार की व्रत कथा और क्या है इसकी पूजा विधि...
सोलाह सोमवार व्रत कथा:
एक समय की बात है पार्वती जी के साथ भगवान शिव भ्रमण करते हुए धरती पर अमरावती नगरी में आए, वहां के राजा ने शिवजी का एक मंदिर बनवाया था. शंकर जी वहीं ठहर गए. एक दिन पार्वती जी शिवजी से बोली- नाथ! आइए आज चौसर खेलें. खेल शुरू हुआ, उसी समय पुजारी पूजा करने को आए.पार्वती जी ने पूछा- पुजारी जी! बताइए जीत किसकी होगी? वह बोले शंकर जी की, पर अंत में जीत पार्वती जी की हुई. पार्वती ने झूठी भविष्यवाणि के कारण पुजारी जी को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया, और वह कोढ़ी हो गए. कुछ समय के बाद उसी मंदिर में स्वर्ग से अप्सराएं पूजा करने के लिए आईं और पुजारी को देखकर उनसे कोढ़ी होने का कारण पूछा.
शिव आरती करेगी दुखों का निवारण
उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए पुजारी जी ने सारी बात बताई. तब अप्सराओं ने उन्हें सोलह सोमवार के व्रत के बारे में बताते हुए और महादेव से अपने कष्ट हरने के लिए प्रार्थना करने को कहा. पुजारी जी ने उत्सुकता से व्रत की विधि पूछी. अप्सरा बोली- बिना अन्न व जल ग्रहण किए सोमवार को व्रत करें, और शाम की पूजा करने के बाद आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा तथा मिट्‌टी की तीन मूर्ति बनाएं और चंदन, चावल, घी, गुड़, दीप, बेलपत्र आदि से भोले बाबा की उपासना करें.बाद में चूरमा भगवान शंकर को चढ़ाएं और फिर इस प्रसाद को 3 हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा लोगों में बांटे, दूसरा गाए को खिलाएं और तीसरा हिस्सा स्वयं खाकर पानी पिएं. इस विधि से सोलह सोमवार करें और सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर भोग लगाकर बांट दें. फिर परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें. ऐसा करने से शिवजी तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करेंगे. यह कहकर अप्सरा स्वर्ग को चली गईं.
इस स्तुति से पाएं भगवान शिव की अपार कृपा
पुजारी जी यथाविधि व्रत कर पूजन करने लगे और रोग मुक्त हुए. कुछ दिन बाद शिव-पार्वती दोबारा उस मंदिर में आए. पुजारी जी को कुशल पूर्वक देख पार्वती ने उनसे रोग मुक्त होने का कारण पूछा. तब पुजारी ने उनसे सोलाह सोमवार की महिमा का वर्णन किया. जिसके बाद माता पार्वती ने भी यह व्रत किया और फलस्वरूप रूठे हुए कार्तिकेय जी मां के आज्ञाकारी हुए.इस पर कार्तिकेय जी ने भी मां गौरी से पूछा कि क्या कारण है कि मेरा मन आपके चरणों में लगा? जिस पर उन्होंने अपने व्रत के बारे में बतलाया. तब गौरीपुत्र ने भी व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें अपना बिछड़ा हुआ मित्र मिला. मित्र ने भी अचानक मिलने का कारण पूछा और फरि व्रत की विधि जानकर उसने भी विवाह की इच्छा से सोलाह सोमवार का व्रत किया.व्रत के फलस्वरूप वह विदेश गया, वहां राजा की कन्या का स्वयंवर था. उस राजा का प्रण था कि हथिनी जिसको माला पहनाएगी उसी के साथ पुत्री का विवाह होगा. वह ब्राह्‌मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से एक ओर जा बैठा. हथिनी ने माला उस ब्राह्‌मण कुमार को पहनाई. धूमधाम से विवाह हुआ तत्पश्चात दोनों सुख से रहने लगे.
व्रत की विधि‍ पूरी न करने पर रानी हुई अभागी
एक दिन राजकन्या ने पूछा- नाथ! आपने कौन सा पुण्य किया जिससे राजकुमारों को छोड़ हथिनी ने आपका वरण किया. ब्राह्‌मण ने सोलह सोमवार का व्रत विधिवत बताया. राज-कन्या ने पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया और सर्वगुण संपन्न पुत्र प्राप्त किया. बड़े होने पर पुत्र ने पूछा- माता जी! किस पुण्य से आपको मेरी प्राप्ति हुई? राजकन्या ने अपने पुत्र को भी शिव जी के इस व्रत के बारे में बतलाया.तब उसके पुत्र ने राज्य की कामना से सोलाह सोमवार व्रत किया. तभी राजा के दूतों ने आकर उसे राज्य-कन्या के लिए वरण किया. इसके उसका विवाह संपन्न हुआ और राजा के दिवंगत होने पर ब्राह्‌मण कुमार को गद्‌दी मिली. फिर वह इस व्रत को करता रहा. एक दिन उस राजा ने अपनी पत्नी से पूजन सामग्री शिवालय में ले चलने को कहा, परंतु उसने दासियों द्वारा भिजवा दी.जब राजा ने पूजन समाप्त किया तो आकाशवाणी हुई कि वह अपनी पत्नी को निकाल दे, नहीं तो वह तेरा सत्यानाश कर देगी. प्रभु की आज्ञा मान उसने रानी को निकाल दिया. रानी भाग्य को कोसती हुई नगर में एक बुढ़िया के पास गई. दीन देखकर बुढ़िया ने इसके सिर पर सूत की पोटली रख बाजार भेजा, रास्ते में आंधी आई, पोटली उड़ गई. बुढ़िया ने उसे फटकार कर भगा दिया.वहां से वह रानी तेली के यहां पहुंची तो सब बर्तन चटक गए, उसने भी निकाल दिया. पानी पीने नदी पर पहुंची तो नदी सूख गई. सरोवर पहुंची तो हाथ का स्पर्श होते ही जल में कीड़े पड़ गए, उसने उसी जल को पीया. आराम करने के लिए जिस पेड़ के नीचे जाती वह सूख जाता. वन और सरोवर की यह दशा देखकर ग्वाल इसे मंदिर के गुसाई के पास ले गए.सारी गाथा जान वह समझ गए यह कुलीन अबला आपत्ति की मारी है. तब वह धैर्य बंधाते हुए बोले- बेटी! तू मेरे यहां रह, किसी बात की चिंता मत कर. रानी आश्रम में रहने लगी, परंतु जिस वस्तु पर इसका हाथ लगे उसी में कीड़े पड़ जाते. दुखी हो गुसाईं जी ने पूछा- बेटी! किस देव के अपराध से तेरी यह दशा हुई? रानी ने बताया – मैंने पति आज्ञा का उल्लंघन किया और महादेव जी के पूजन में नहीं गई.

केवल महिलाएं ही क्यूँ कर पाती हैं टैरो कार्ड रीडिंग

भविष्य जानने के लिए जन्म कुंडली, हस्तरेखा और न्यूमरोलॉजी का सहारा लिया जाता है। ज्योतिष की दुनिया में छिपे सवालों का जवाब देने के लिए मौजूद इन सभी विधाओं में एक और विधा भी है जिसे टैरो कार्ड रीडिंग कहा जाता है।
ताश के पत्तों की तरह दिखने वाले इन टैरो कार्ड के ऊपर कुछ रहस्यमय प्रतीकात्मक चिह्न बने होते हैं जो संबंधित व्यक्ति के साथ भविष्य में होने वाली घटनाओं को बहुत हद तक अनुमानित कर सकते हैं। व्यक्ति के प्रश्नों के एवज में वे कार्ड स्वयं उत्तर देते हैं, जिनके ऊपर उसके साथ होने वाले हालात निर्भर करते हैं।
आपको जानकार हैरानी होगी कि भविष्य की सटीक जानकारी देने वाली टैरो कार्ड रीडिंग की इस विधा को सबसे पहले चौदहवीं शताब्दी में इटली में मनोरंजन के माध्यम के तौर पर अपनाया गया था। लेकिन बहुत ही जल्द यह विद्या यूरोप के बहुत से देशों में फैल गई और धीरे-धीरे इसे मात्र मनोरंजन का साधन ना मानकर भविष्य जानने की गूढ़ विद्या के तौर पर अपना लिया गया। 18वीं शताब्दी तक पहुंचते-पहुंचते टैरो कार्ड रीडिंग इंग्लैंड व फ्रांस में भी बहुत लोकप्रिय हो गई।
टैरो कार्ड के ऊपर अंक, रंग, संकेत तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश जैसे पांच तत्व दर्शाए गए होते हैं, जिनके आधार पर भविष्य का अनुमान लगाया जाता है। आपने देखा होगा की जहाँ ज्योतिष की अन्य विधाओं में पुरुषों का बोल बाला है वही टैरो कार्ड पढऩे वाले लोगों में अधिकांशत: महिलाएं ही होती हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि टैरो कार्ड एक ऐसी प्रणाली है जिसमें गणित का जरा भी प्रयोग नहीं होता, बस अनुमान लगाने की क्षमता सटीक और अचूक होनी चाहिए। वैज्ञानिक तौर पर भी यह प्रमाणित है कि अनुमान लगाने की क्षमता पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होती है। इसलिए टैरो कार्ड रीडर महिलाएं ही होती है।
टैरो कार्ड रीडिंग के अंतर्गत डेक (ताश के पत्तों) में से उठाए गये कार्ड पर बने चित्रों व संकेतों के क्या अर्थ हैं, वह किस ओर इशारा कर रहे हैं, आपके भविष्य को किस दिशा में मोड़ सकते हैं, के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है। साथ ही वे कार्ड प्रश्नकर्ता की वर्तमान समय और उसकी मानसिक स्थिति भी दर्शाते हैं।
टैरो में 78कार्ड होते है। जिनमें से 22 कार्ड मेजर अर्काना, अर्काना शब्द लैटिन भाषा से निकला है जिसका अर्थ है रहस्यमयी, व 56कार्ड माइनर अर्काना होते हैं। 56माइनर कार्ड में से 16कार्ड रायल अर्काना या कोर्ट कार्ड कहलाते हैं, जिनमें जैसे किंग, क्वीन, नाइट व पेज जैसे पत्ते शामिल है। माइनर अर्काना में शामिल 56कार्ड को वैंडस, कप्स, सोडर्स व पैन्टाकल्स नामक 4 भागों में बांटा गया है। माइनर अर्काना में अंकों का महत्व बहुत अधिक होता है।
जहाँ एक ओर मेजर आर्काना ब्रह्मांड के मूल तत्वों और विभिन्न राशियों को अभिव्यक्त करता है वहीं माइनर अर्काना इन्हीं तत्वों को रोजमर्रा की घटनाओं पर लागू कर ये बताता है कि भविष्य में क्या होने वाला है।
टैरो कार्ड रीडिंग में माइनर अर्काना को जिन चार भागों में विभाजित किया गया है वो हैं, वैंड्स: वैंड्स का कार्ड ऊर्जा, आत्मविश्वास, जोखिम, इच्छाशक्ति, ताकत, सृजनशीलता व रचनात्मकता को अभिव्यक्त करता है। कप्स: कप्स कार्ड कामनाओं, इच्छाओं, वैवाहिक जीवन, प्रेम, मानवीयता, आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। सोडर्स: घृणा, शत्रुता, गति, साइंस, तर्क, न्याय, योद्धा व मानसिक स्पष्टता को दर्शाता है। पेन्टाकल्स: व्यापार, वित्त, उद्योग, स्वास्थ्य, संपत्ति व रचनात्मकता को अभिव्यक्त करता है। माइनर के अलावा मेजर अर्काना में 0-22 तक कार्ड होते हैं जो अलग-अलग महत्व रखते हैं।

ज्ञानवान उतथ्य

कौशल देश मेंं देवदत्त नाम का एक विख्यात ब्राह्मण रहता था। देवदत्त का विवाह रोहिणी नामक एक सुंदर कन्या से सम्पन्न हुआ। किंतु अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी देवदत्त के कोई संतान नहीं हुई। इस कारण वह सदैव दु:खी रहता था। एक बार देवदत्त के हृदय मेंं पुत्रेष्टि यज्ञ करने का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होंने शीघ्र ही तमसा नदी के तट पर एक विशाल यज्ञ-मण्डप का निर्माण करवाया। यज्ञ सम्पन्न कराने के लिए उसने सुहोत्र, यज्ञवल्क्य, बृहस्पति, पैल, गोभिल आदि ऋषियों को आमंत्रित किया। निश्चित समय पर यज्ञ का शुभारम्भ हुआ।
यज्ञ-वेदी पर ऋषि गोभिल सामवेद का गान करते हुए रथन्तर मंत्र का उच्चारण कर रहे थे। तभी मंत्रोच्चारण करते समय उनका स्वर भंग हो गया। इससे देवदत्त कुपित होकर गोभिल ऋषि से बोला—‘‘हे मुनिवर! आप बड़े ज्ञानी हैं। मैं यह यज्ञ पुत्र-प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ और आपने इस सकाम यज्ञ मेंं स्वरहीन मंत्र का उच्चारण कर दिया। आप जैसे ज्ञानी ऋषि को यह शोभा नहीं देता।’’
देवदत्त के कटु वचन सुनकर गोभिल ऋषि क्रोधित होते हुए बोले—‘‘दुष्ट! प्रत्येक प्राणी के शरीर मेंं श्वास आते-जाते हैं। स्वर का भंग होना इसी का परिणाम है। इसमेंं किसी का भी दोष नहीं होता। तुमने बिना सोचे-विचारे कटु वचनों का प्रयोग किया है। इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम्हारे घर उत्पन्न होने वाला पुत्र महामूर्ख और हठी होगा।’’ गोभिल के शाप से देवदत्त भयभीत हो गया और उनसे क्षमा माँगते हुए बोला —‘‘ऋषिवर! मेंरे अपराध को क्षमा करें। पुत्र के अभाव ने मुझे अत्यंत विचलित कर दिया था। मैं अज्ञानी यह भूल गया था कि यज्ञ के लिए आए ऋषिगण साक्षात् देवस्वरूप होते हैं। ऋषिवर! मुझे पर दया करें। मूर्ख प्राणी का इस संसार मेंं कोई अस्तित्व नहीं होता। जीवन मेंं उसे ज्ञान, मान, सम्मान, धन और वैभव कदापि प्राप्त नहीं होते। हे मुनिवर! आप तो महान तपस्वी हैं। अज्ञानियों का उद्धार करना ही आपका कार्य है। कृपा करके आप मेंरा भी इस शाप से उद्धार करें।’’ यह कहकर देवदत्त गोभिल ऋषि के चरणों मेंं गिरकर अपने आँसुओं से उनके चरण धोने लगा। देवदत्त की निर्मल प्रार्थना से गोभिल ऋषि का क्रोध शांत हो गया और वे बोले—‘‘वत्स ! मुख से निकले वचन कभी वापस नहीं आते। जो शाप मैं दे चुका हूँ, वह तो सिद्ध होगा ही। किंतु मैं तुम्हें यह आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारा पुत्र महामूर्ख होकर फिर विद्वान हो जाएगा।’’ ऋषि से यह वर प्राप्त कर देवदत्त अति प्रसन्न हुआ। तत्त पश्चात् पूर्ण यज्ञ किया गया। सभी उपस्थित ऋषि-मुनि विधिपूर्वक विदा हुए।
उचित समय के पश्चात् यज्ञ-फल के रूप मेंं रोहिणी ने रोहिणी नक्षत्र मेंं ही सुंदर बालक को जन्म दिया। मनोरथ सिद्ध होने पर देवदत्त ने निर्धनों को धन, अन्न और वस्त्रों का दान किया। उस बालक का नाम उतथ्य रखा गया।
कुछ बड़ा होने पर उतथ्य की शिक्षा आरम्भ हुई। गुरु उतथ्य को पढ़ाने लगे, किंतु उतथ्य एक भी शब्द का उच्चारण न कर सका। इस प्रकार बारह वर्ष व्यतीत हो गए थे। उतथ्य पहले के समान ही मूर्ख रहा। आस-पास के सभी गाँवों मेंं यह प्रचलित हो गया कि देवदत्त जैसे महान विद्वान का पुत्र महामूर्ख है। सभी लोग उसका उपहास करने लगे। इससे उतथ्य के मन मेंं वैराग्य उत्पन्न हो गया और वह सबकुछ त्यागकर वन मेंं चला गया।
वन मेंं उतथ्य ने गंगा के तट के निकट पर्णकुटी बनाई और कंद-मूल खाकर ब्रह्मचर्य का पालन करने लगा। उसने यह नियम बना लिया कि वह कभी झूठ नहीं बोलेगा। सत्यव्रत का पालन करते हुए उतथ्य ने चौदह वर्ष बिता दिए। इन चौदह वर्षों मेंं उसने न तो कोई उपासना की और न ही कोई मंत्र जपा अथवा विद्या प्राप्त की। किंतु यह बात चारों ओर फैल गई कि मुनि उतथ्य सत्यव्रत का पालन करते हैं। उनके मुख से निकली वाणी मिथ्या नहीं होती। इस प्रकार उस का नाम उतथ्य के स्थान पर सत्यव्रत पड़ गया।
एक बार एक शिकारी शिकार खेलने के उद्देश्य से वन मेंं आया। वन मेंं घूमते हुए उसकी दृष्टि एक वराह (सूअर) पर पड़ी। उसने शीघ्र ही बाण चलकर वराह को घायल कर दिया। बाण वराह के पैर मेंं जा लगा था। बाण लगने से वराह भयभीत होकर, अपने प्राण बचाने के लिए उतथ्य की कुटिया के निकट झाड़ी मेंं छिप गया।
घायल वराह को देखकर उतथ्य का हृदय दया से भर गया। तभी वराह का पीछा करते हुए वह शिकारी वहाँ आ पहुँचा। शिकारी ने देखा कि सामने उतथ्य आसन पर बैठा है। शिकारी ने सिर झुकाकर उतथ्य को प्रणाम किया और उससे वराह के बारे मेंं पूछा।
उतथ्य धर्मसंकट मेंं फँस गया। उसने सोचा कि यदि सत्य बोलता है तो शिकारी वराह को मार डालेगा और यदि असत्य बोलता है तो उसका सत्यव्रत टूट जाएगा। तभी अचानक उसका विवेक जाग उठा, जैसे अचानक बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ती हो गयी हो और तब उसने कहा—‘‘हे व्याध! मैंने जिन आँखों से देखा है, वे बोल नहीं सकतीं और जो जिह्वा बोल सकती है, उसने वराह को नहीं देखा। इसलिए मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दूँ?’’ उतथ्य की बात सुनकर शिकारी निराश होकर वहाँ से लौट गया। उस एक क्षण मेंं उतथ्य को जो ज्ञान मिला उससे वह वाल्मीकि के समान एक महान कवि और विद्वान बन गया। उसकी विद्वता की आभा चारों ओर फैलने लगी। यज्ञों और अन्य धार्मिक उत्सवों मेंं उसका यश गाया जाने लगा। उसकी कीर्ति सुनकर उसका पिता देवदत्त वन मेंं गया और उसे मनाकर वापस घर ले आया। ईश्वर के आशीर्वाद से मूर्ख उतथ्य को ज्ञान, मान, सम्मान और वैभव की प्राप्ति हुई।

बृहस्पति की महादशा का फल

यदि कुंडली मेंं बृहस्पति कारक हो,उच्च राशी, मूल त्रिकोण राशी, स्वर राशी या मित्र राशी मेंं स्थित हो, शुभ ग्रह से युक्त अथवा दुष्ट हो तथा केंद्र अथवा त्रिकोण मेंं स्थित हो तो अपनी दशा मेंं जातक को बहुत शुभ फल प्रदान करता है। यदि बृहस्पति नीच राशी का होकर उच्च नवांश मेंं हो तो जातक राज्यकृपा प्राप्त करता है, पदोन्नति होती है, गुरुकृपा से विद्योपार्जन होता है, देवाराधना मेंं वित्त रमता है तथा जातक धन-कीर्ति पा लेता है। बृहस्पति की शुभ दशा मेंं जातक चुनाव मेंं विजयी होकर ग्रामसभा का प्रधान, पालिकाप्रधान अथवा विधानसभा का सदस्य भी बन जाता है। केन्दीय मंत्रिमंडल की कृपा पाकर धन-धान्य मेंं वृद्धि कर लेता है तथा यशोभागी होता है। दर्शन के प्रति उसकी रूचि बढ़ती है, वेद-वेदांग का अध्ययन करने का अवसार मिलता है तथा जातक अनेक अच्छे ग्रंथो की रचना करता है, जिसके कारण देश-विदेश मेंं उसकी ख्याति फैलती है। अनेक वरिष्ट अधिकारियों से उसके सम्पर्क बढ़ते हैं, विदेश यात्रा के योग बनते है तथा राज्याधिकार प्राप्त करने के अवसर भी मिलते हैं। जातक का बौद्धिक विकास होकर उसमेंं न्यायपरायणता आती है तथा जातक ऐसे कार्य करता है जिससे देश और समाज का कल्याण हो। वह धार्मिक कार्यों मेंं विशेष रुचि लेता है तथा प्याऊ व घार्मिक स्थानों के निर्माण मेंं धन का सद्व्यय करता है। कथा-कीर्तन मेंं बढ़-चढक़र भाग लेता है, ब्राह्मण, गुरु और साधुओं के उदर-साकार को संदेय तत्पर रहता है। बृहस्पति की शुभ दशा मेंं जातक के घर मेंं अनेक मंगल कार्य होते हैं। देह मेंं निरोगता व मन मेंं प्रसन्नता बनी रहती है। पुत्रोत्सव से मन मेंं हर्ष होता है, घर मेंं सुख-शान्ति बनी रहती है और पत्नी का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है। शत्रु परास्त होते है वाद-विवाद मेंं विजय मिलती है। परीक्षार्थी इन दिनों मेंं सफल रहते हैं। प्रतियोगिता परीक्षा मेंं सफलता मिलती है क्या उच्च पद प्राप्त होता है। जातक की मन्त्रणाशक्ति का विकास होता है तथा उसकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण हो जाती हैं। जातक इस दशाकाल मेंं राज्य की ओर से उच्च सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त कर लेता है।
यदि बृहस्पति उच्च राशि का हो, लेकिन नवांश मेंं नीच का हो गया हो तो जातक घोर कष्ट भोगता है। उसका धन चोरों द्वारा हरण कर लिया जाता है, स्त्री से वियोग होता है, संतान के कारण उसे अपयश मिलता है। यदि बृहस्पति अकारक हो, नीच राशि, शत्रु राशि, अस्त, वक्री एव पाप मध्यत्व मेंं होकर बुरे भावों मेंं स्थित हो तथा पापी ग्रह से युक्त अथवा दुष्ट हो तो अनेकानेक अशुभ फलों का अनुभव कराता है। यदि बृहस्पति राहू से संबंध करता हो तो जातक को सर्पदंश का भय बनता है, विषपान से देह-पीड़ा भोगनी पड़ती है, शत्रु के द्वारा शस्त्रघात का भय भी बनता है। यदि बृहस्पति मारक ग्रह के साथ हो तो मृत्युसम कष्ट अथवा मृत्यु भी हो सकती है, स्त्री पुत्रों द्वारा अपमानित होना पड़ता है तथा अनेक कष्ट झेलना पड़ते हैं। जातक मेंं अधीरता आ जाती है, स्थिर मति से कोई भी कार्य न करने के कारण प्रत्येक कार्य मेंं उसे असफलता ही मिलती है। वह ब्राह्मण, गुरु से द्वेष रखता है। अपने उच्चधिकारियों के विरोध का उसे सामना करना पड़ता है तथा जातक की पदोन्नति मेंं बार-बार विघ्न उपस्थित होते हैं। परीक्षार्थियों को परीक्षा मेंं कठिनता से ही सफलता मिलती है। परिजनों से मनोमालिन्य बढ़ता है, तीर्थ पर जाने का अवसर प्रथम तो मिलता ही नहीं, मिले भी तो कोई विघ्न उपस्थित होकर जाना स्थगित करा देता है। स्वयं को भी रोगों के कारण प्रताडि़त होना पड़ता है, सन्तान के स्वास्थ्य की चिन्ता बनती है। यदि अशुभ बृहस्पति शत्रु स्थान मेंं हो तो जातक गुल्परोग, रक्तातिसार एवं कष्ट रोग से पीडित होता है। यदि बृहस्पति अष्टम भाव मेंं हो तो अपनी दशा मेंं जातक को वाहन, आवास व सन्तान की हानि कराता है। जातक को विदेशवास तक करना पड़ता है। व्यय स्थानगत होकर शय्या सुख मेंं कमी, स्त्री की मृत्यु अथवा वियोग, राज्यदण्ड का भय, बान्धवों को कष्ट तथा विदेश यात्रा मेंं स्वय को कष्ट जैसे फल प्रदान करता है।

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