गुरुवार के अचूक प्रयोग ................
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः | न गुरोरधिकं ज्ञानं तस्मै श्री गुरुवे नमः ||७७ ||
ध्यान मूलं गुरोर्मुर्तिम पूजा मूलं गुरो: पदम् | मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरो: कृपा ||८६ ||
ध्यान मूलं गुरोर्मुर्तिम पूजा मूलं गुरो: पदम् | मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरो: कृपा ||८६ ||
गुरु की महता प्रतिपादित करने हेतु उपरोक्त गुरु गीता के प्रथम अध्याय के दो श्लोक पर्याप्त हे ....
गुरु के बिना ज्ञान नहीं हे और गुरु ही संसार के समस्त तत्व का आदि तत्व हे तथा गुरु ही सभी तपो का राजा हे अर्थात गुरु की सेवा करके जो फल मिलता हे गुरु के संतुष्ट होने से वो फल संसार के अन्य सभी तपो से श्रेष्ठ हे ....गुरु व ज्ञान दोनों परस्पर पूरक हे एक के आभाव में एक का अस्तित्व संभव नहीं हे ....|
इसी लिए हमारी पूजा अर्चना...ध्यान साधना और इनसब का लक्ष्य मोक्ष यह सभी गुरु की सेवा और गुरु की कृपा में ही निहित हे ....
ध्यान का मूल (जड़ )गुरु की मूर्ति हे गुरु का रूप हे ...पूजा का मूल गुरु के पाद्य हे अर्थात गुरु के चरण हे ...और सभी मंत्रो का मूल गुरु के श्री मुख से निकले वाक्य हे जो गुरु के वचनों को गुरु की कही बातो को अक्षरशः निःस्वार्थ भाव से पालन करता हे वह तमाम मंत्र सिद्ध मान्त्रिक से भी श्रेष्ठ हे और इन सब प्रपंचो का लक्ष्य जो मोक्ष हे वह भी बिन गुरु कृपा के नहीं मिल सकता हे ..आप ने सभी जप तप होम हवन ...किये किन्तु यदि गुरु कृपा नहीं हुई तो मोक्ष संभव नहीं वही यदि कुछ ना कर के मात्र गुरु की बातो पर अमल किया तो गुरु की कृपा से मोक्ष सहज हो जाएगा .|
आज हम गुरु की बाते इस लिए कर रहे हे की यह जो नवरात्री का पर्व चल रहा हे चैत्र नवरात्रि के साथ राम नवमी की नवरात्रि भी कहा जाता हे एवं भगवान श्री राम चन्द्र जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में कर्क राशि के चन्द्र पर हुआ था ; और नक्षत्र पुनर्वसु के स्वामी बृहस्पति हे साथ ही इस नक्षत्र के साथ एक कथा जुडी हुई हे वो यह हे की यह नक्षत्र पूर्व में ऋषि कौडिन्य थे कालांतर में तपोबल से अमर हो नक्षत्र बन गए ..इसका उल्लेख "श्री गुरु चरित्र " के अनंत व्रत महिमा में किया गया हे |
साथ ही कर्क राशी गुरु की अपनी उच्च राशी होती हे एक तो उच्च राशि उस पर अपना ही नक्षत्र ..यह योग सोने पे सुहागा हो गया .यह संयोग चैत्र माह में अर्थात वर्ष के प्रथम माह ..प्रथम शुक्ल पक्ष की नवमी और तो और इस समय आदित्य अर्थात सूर्य देव अपने मित्र गुरु की राशि मीन स्थित होते हे एवं श्री राम भी सूर्य वंश में जन्म को आये ..इतने सारे शुभ शकुन और योग से ओतप्रोत यह नवरात्री का त्यौहार होता हे इसी त्यौहार में "श्री राम रक्षा स्तोत्र " की सिद्धि होती हे .|
इस पक्ष के पूर्ण होने अर्थात पूर्णिमा पर श्री राम भक्त हनुमान जी का जन्म दिवस भी आता हे |
श्री हनुमान जी की राम भक्ति, भक्ति की पराकाष्ठ हे ...स्वामी भक्त ..का ऐसा समर्पण कहीं और नहीं मिलता .|
अतः यदि इस माह के शुक्लपक्ष में गुरुवार को या जिस दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो उस दिन और संयोग से दोनों एक ही दिन भले एक घंटे दो घंटे के लिए भी साथ हो तो अतिउत्तम ...इस दिन किये गए किसी भी प्रकार के सिदधी के प्रयास शत प्रतिशत सफल होते पाए गए हे विशेष कर यदि साधना भगवन राम या हनुमान या शिव की हो तो ..........
गुरु के बिना ज्ञान नहीं हे और गुरु ही संसार के समस्त तत्व का आदि तत्व हे तथा गुरु ही सभी तपो का राजा हे अर्थात गुरु की सेवा करके जो फल मिलता हे गुरु के संतुष्ट होने से वो फल संसार के अन्य सभी तपो से श्रेष्ठ हे ....गुरु व ज्ञान दोनों परस्पर पूरक हे एक के आभाव में एक का अस्तित्व संभव नहीं हे ....|
इसी लिए हमारी पूजा अर्चना...ध्यान साधना और इनसब का लक्ष्य मोक्ष यह सभी गुरु की सेवा और गुरु की कृपा में ही निहित हे ....
ध्यान का मूल (जड़ )गुरु की मूर्ति हे गुरु का रूप हे ...पूजा का मूल गुरु के पाद्य हे अर्थात गुरु के चरण हे ...और सभी मंत्रो का मूल गुरु के श्री मुख से निकले वाक्य हे जो गुरु के वचनों को गुरु की कही बातो को अक्षरशः निःस्वार्थ भाव से पालन करता हे वह तमाम मंत्र सिद्ध मान्त्रिक से भी श्रेष्ठ हे और इन सब प्रपंचो का लक्ष्य जो मोक्ष हे वह भी बिन गुरु कृपा के नहीं मिल सकता हे ..आप ने सभी जप तप होम हवन ...किये किन्तु यदि गुरु कृपा नहीं हुई तो मोक्ष संभव नहीं वही यदि कुछ ना कर के मात्र गुरु की बातो पर अमल किया तो गुरु की कृपा से मोक्ष सहज हो जाएगा .|
आज हम गुरु की बाते इस लिए कर रहे हे की यह जो नवरात्री का पर्व चल रहा हे चैत्र नवरात्रि के साथ राम नवमी की नवरात्रि भी कहा जाता हे एवं भगवान श्री राम चन्द्र जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में कर्क राशि के चन्द्र पर हुआ था ; और नक्षत्र पुनर्वसु के स्वामी बृहस्पति हे साथ ही इस नक्षत्र के साथ एक कथा जुडी हुई हे वो यह हे की यह नक्षत्र पूर्व में ऋषि कौडिन्य थे कालांतर में तपोबल से अमर हो नक्षत्र बन गए ..इसका उल्लेख "श्री गुरु चरित्र " के अनंत व्रत महिमा में किया गया हे |
साथ ही कर्क राशी गुरु की अपनी उच्च राशी होती हे एक तो उच्च राशि उस पर अपना ही नक्षत्र ..यह योग सोने पे सुहागा हो गया .यह संयोग चैत्र माह में अर्थात वर्ष के प्रथम माह ..प्रथम शुक्ल पक्ष की नवमी और तो और इस समय आदित्य अर्थात सूर्य देव अपने मित्र गुरु की राशि मीन स्थित होते हे एवं श्री राम भी सूर्य वंश में जन्म को आये ..इतने सारे शुभ शकुन और योग से ओतप्रोत यह नवरात्री का त्यौहार होता हे इसी त्यौहार में "श्री राम रक्षा स्तोत्र " की सिद्धि होती हे .|
इस पक्ष के पूर्ण होने अर्थात पूर्णिमा पर श्री राम भक्त हनुमान जी का जन्म दिवस भी आता हे |
श्री हनुमान जी की राम भक्ति, भक्ति की पराकाष्ठ हे ...स्वामी भक्त ..का ऐसा समर्पण कहीं और नहीं मिलता .|
अतः यदि इस माह के शुक्लपक्ष में गुरुवार को या जिस दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो उस दिन और संयोग से दोनों एक ही दिन भले एक घंटे दो घंटे के लिए भी साथ हो तो अतिउत्तम ...इस दिन किये गए किसी भी प्रकार के सिदधी के प्रयास शत प्रतिशत सफल होते पाए गए हे विशेष कर यदि साधना भगवन राम या हनुमान या शिव की हो तो ..........
इन सिद्ध योग में किये जाने वाले चमत्कारी प्रयोग....
१.* अविवाहितो के विवाह हेतु ......
काल ..तीन....सूर्योदय के समय उगते सूरज के ३० मिनट ..मध्यान काल जब सूरज सर पर हो अर्थात दोपहर को १२:१५ से १२:४५ के मध्य या शाम को सूर्यास्त के समय से लेकर आधे घंटे के भीतर ......
जिनका विवाह नहीं हो रहा हे ...स्नानं कर शुद्धि पूर्वक ..कन्या हे तो सर से नहाना हे ...किसी भी शिवालय में जाए यदि शिवालय जमीन से निचे तल घर या गर्भ गृह में हो तो उत्तम साथ में घर पर कुट्टी हुए हल्दी का चूर्ण और चन्दन शुद्ध इत्र न मिले तो चन्दन को घीस कर उसमे गंगा जल मिला कर उसे लेप जेसा बना ले .साथ ही एक केला डंठल सहित एक अनार साबुत यदि डंठल पत्ती हो तो उत्तम ...ताम्बुल दो ..दो लौंग , दो इलायची ,कच्चा सूत , खारक ,बादाम खुल्ले सिक्के ...एवं दूध मिर्श्रित जल जिसमे मिश्री ,केशर घुली हुई हो ...और यदि जल शीतल हो तो बेहतर ...लेकर जाएं साथ ही कुछ फुल ले फुल कमल के हो या गुलाब के हो वर्ण लाल या श्वेत ....
देवालय में जा कर आसन बिछा कर बैठ जाए मन ही मन गणेश अपने इष्ट ..गुरु .कुल देव स्थान देव को श्रृद्धा से नमन कर कार्य सिद्धि की प्रार्थना करें व बताए की किस कार्य सिद्धि के लिए आप पूजन कर रहे हे फिर थोडा जल लेकर उसमे अक्षत पुष्प सुपारी एक सिक्का ले कर भगवन श्री राम सीता से अपने विवाह की इच्छा दोहराएं एवं जेसा आपका जोड़ा बना एवं जेसा आपका आपस में प्रेम रहा हे वेसा ही हमें भी वरदान दे ऐसी प्रार्थना कर गणेश सहित सभी दिशाओं एवं गृहों पितरो को नमन यह प्रार्थना करे की आप सभी हमारे इस कार्य में हमारी सहायता करे ..जिस दिशा में जिस गृह से जिस पितृ के आशीष से यह कार्य सिध्ह होने वाला हे आप कृपा करे ....आप सभी की कृपा प्राप्ति हेतु ही यह पूजन किया जा रहा हे ..|
फिर शिव को जल से नहलाएं एवं उसपर हल्दी का लेप करे उस पर चन्दन का इत्र या लेप कर उससे से और हल्दी के मिश्रण से सीता राम लिखे ...लिंग और जल धारी दोनों पे फिर ..पुष्प अर्पण करे फिर ताम्बुल यानी पान उसपर लौंग इलायची खारक बादाम सुपारी सिक्का रखे .उस पर एक श्रीफल एवं उसपर ७ रुपये सिक्के के रूप में रखे ....फिर जो हल्दी का घोल शेष हे उसमे सवाहाथ कच्चा सूत ले उसे हल्दी में पूरी तरह से पिला कर ले इस प्रकार दो धागे पीले तैयार करना हे एक लिंग पर रखना हे एवं एक जल धारी पर रखना हे ...साथ ही मन ही मन प्रार्थना करना हे जिस प्रकार आपने एक दूजे को पीले कंकण बांधे ठीक मेरे भी बंधवा दो ....फिर केले और अनार के फल शिव लिंग के पास रख कर पानी गिरा दे फल पर और कहे आप दोनों यह फल गृहण करे एवं मुझे भी ऐसा ही फल दे ...
विशेष फल आदि साहित्य साफ शुद्ध और गुणवत्ता वाला होना चाहिए जेसा आप अर्पण करेंगे वेसा ही वापस मिलेगा और सम्पूर्ण पूजन के दौरान सीता राम सीता राम का जाप मन ही मन चलता रहे ध्यान रहे .|
फिर जो पुष्प लाये हे उनकी एक माला तैयार करे और वो शिव लिंग पर चढ़ा दे यदि वह पार्वती की मूर्ति अलग से हे तो उसे भी नहला कर हल्दी इत्र का लेप ऊपर बताये तरीके से करना हे एवं सवा हाथ कच्चा सूत लेकर उसे पिला कर उसमे सोलह गठान लगा कर माता के गले में पहनाना हे यह कन्या के लिए हे किन्तु एक माला सफ़ेद या लाल पुष्प की लेकर शिव लिंग और पारवती माता दोनों को आ जाए ऐसे पहनाना हे यह कन्या ..चिरंजीव दोनों को करना हे |और ऐसे में घर से पान का पूरा सामान जो बताया हे ऊपर एक अतिरिक्त व फल भी अतिरिक्त ले कर जाए जो अतिरिक्त हे वो माँ पारवती को चढ़ाए ..कार्य सिद्धि हेतु गणेश जी को पहले एक पुष्प अर्पण कर गुड की डली पान पर रख दे ...फिर पूजा प्रारम्भ करे
२.नौकरी ..व्यापार ....रोजगार हेतु ..
शिव लिंग पर ..नवनीत से अभिषेक करें ..चन्दन का इत्र लगाये तथा तिल्ली के तेल का चतुर्मुखी दीपक लगाये ..एवं राज गिरे के लड्डू या खस खस अंजीर की बनी मिठाई का भोग लगाये ...
थोडा सा इत्र बच जाए तो साथ ले आये एवं अपने गल्ले या घर में तिजोरी में रख दे हो सके तो थोडा सा रोज लगा कर निकले ..उसमे और दूसरा अन्य चन्दन इत्र मिला कर बढ़ा सकते हे ....
||श्री राम जय राम जय जय राम ...||||.ॐ ह्रीम ह्रीम ऐम श्रीम श्रीम ॐ ||
उपरोक्त मंत्र का सतत जप पूजन दौरान करते रहे ...
संकल्प आदि पूजन विधि पहले की तरह हे हे बस उद्देश्य व्यापार वृद्धि या रोजगार प्रप्ति ...होगा .
१.* अविवाहितो के विवाह हेतु ......
काल ..तीन....सूर्योदय के समय उगते सूरज के ३० मिनट ..मध्यान काल जब सूरज सर पर हो अर्थात दोपहर को १२:१५ से १२:४५ के मध्य या शाम को सूर्यास्त के समय से लेकर आधे घंटे के भीतर ......
जिनका विवाह नहीं हो रहा हे ...स्नानं कर शुद्धि पूर्वक ..कन्या हे तो सर से नहाना हे ...किसी भी शिवालय में जाए यदि शिवालय जमीन से निचे तल घर या गर्भ गृह में हो तो उत्तम साथ में घर पर कुट्टी हुए हल्दी का चूर्ण और चन्दन शुद्ध इत्र न मिले तो चन्दन को घीस कर उसमे गंगा जल मिला कर उसे लेप जेसा बना ले .साथ ही एक केला डंठल सहित एक अनार साबुत यदि डंठल पत्ती हो तो उत्तम ...ताम्बुल दो ..दो लौंग , दो इलायची ,कच्चा सूत , खारक ,बादाम खुल्ले सिक्के ...एवं दूध मिर्श्रित जल जिसमे मिश्री ,केशर घुली हुई हो ...और यदि जल शीतल हो तो बेहतर ...लेकर जाएं साथ ही कुछ फुल ले फुल कमल के हो या गुलाब के हो वर्ण लाल या श्वेत ....
देवालय में जा कर आसन बिछा कर बैठ जाए मन ही मन गणेश अपने इष्ट ..गुरु .कुल देव स्थान देव को श्रृद्धा से नमन कर कार्य सिद्धि की प्रार्थना करें व बताए की किस कार्य सिद्धि के लिए आप पूजन कर रहे हे फिर थोडा जल लेकर उसमे अक्षत पुष्प सुपारी एक सिक्का ले कर भगवन श्री राम सीता से अपने विवाह की इच्छा दोहराएं एवं जेसा आपका जोड़ा बना एवं जेसा आपका आपस में प्रेम रहा हे वेसा ही हमें भी वरदान दे ऐसी प्रार्थना कर गणेश सहित सभी दिशाओं एवं गृहों पितरो को नमन यह प्रार्थना करे की आप सभी हमारे इस कार्य में हमारी सहायता करे ..जिस दिशा में जिस गृह से जिस पितृ के आशीष से यह कार्य सिध्ह होने वाला हे आप कृपा करे ....आप सभी की कृपा प्राप्ति हेतु ही यह पूजन किया जा रहा हे ..|
फिर शिव को जल से नहलाएं एवं उसपर हल्दी का लेप करे उस पर चन्दन का इत्र या लेप कर उससे से और हल्दी के मिश्रण से सीता राम लिखे ...लिंग और जल धारी दोनों पे फिर ..पुष्प अर्पण करे फिर ताम्बुल यानी पान उसपर लौंग इलायची खारक बादाम सुपारी सिक्का रखे .उस पर एक श्रीफल एवं उसपर ७ रुपये सिक्के के रूप में रखे ....फिर जो हल्दी का घोल शेष हे उसमे सवाहाथ कच्चा सूत ले उसे हल्दी में पूरी तरह से पिला कर ले इस प्रकार दो धागे पीले तैयार करना हे एक लिंग पर रखना हे एवं एक जल धारी पर रखना हे ...साथ ही मन ही मन प्रार्थना करना हे जिस प्रकार आपने एक दूजे को पीले कंकण बांधे ठीक मेरे भी बंधवा दो ....फिर केले और अनार के फल शिव लिंग के पास रख कर पानी गिरा दे फल पर और कहे आप दोनों यह फल गृहण करे एवं मुझे भी ऐसा ही फल दे ...
विशेष फल आदि साहित्य साफ शुद्ध और गुणवत्ता वाला होना चाहिए जेसा आप अर्पण करेंगे वेसा ही वापस मिलेगा और सम्पूर्ण पूजन के दौरान सीता राम सीता राम का जाप मन ही मन चलता रहे ध्यान रहे .|
फिर जो पुष्प लाये हे उनकी एक माला तैयार करे और वो शिव लिंग पर चढ़ा दे यदि वह पार्वती की मूर्ति अलग से हे तो उसे भी नहला कर हल्दी इत्र का लेप ऊपर बताये तरीके से करना हे एवं सवा हाथ कच्चा सूत लेकर उसे पिला कर उसमे सोलह गठान लगा कर माता के गले में पहनाना हे यह कन्या के लिए हे किन्तु एक माला सफ़ेद या लाल पुष्प की लेकर शिव लिंग और पारवती माता दोनों को आ जाए ऐसे पहनाना हे यह कन्या ..चिरंजीव दोनों को करना हे |और ऐसे में घर से पान का पूरा सामान जो बताया हे ऊपर एक अतिरिक्त व फल भी अतिरिक्त ले कर जाए जो अतिरिक्त हे वो माँ पारवती को चढ़ाए ..कार्य सिद्धि हेतु गणेश जी को पहले एक पुष्प अर्पण कर गुड की डली पान पर रख दे ...फिर पूजा प्रारम्भ करे
२.नौकरी ..व्यापार ....रोजगार हेतु ..
शिव लिंग पर ..नवनीत से अभिषेक करें ..चन्दन का इत्र लगाये तथा तिल्ली के तेल का चतुर्मुखी दीपक लगाये ..एवं राज गिरे के लड्डू या खस खस अंजीर की बनी मिठाई का भोग लगाये ...
थोडा सा इत्र बच जाए तो साथ ले आये एवं अपने गल्ले या घर में तिजोरी में रख दे हो सके तो थोडा सा रोज लगा कर निकले ..उसमे और दूसरा अन्य चन्दन इत्र मिला कर बढ़ा सकते हे ....
||श्री राम जय राम जय जय राम ...||||.ॐ ह्रीम ह्रीम ऐम श्रीम श्रीम ॐ ||
उपरोक्त मंत्र का सतत जप पूजन दौरान करते रहे ...
संकल्प आदि पूजन विधि पहले की तरह हे हे बस उद्देश्य व्यापार वृद्धि या रोजगार प्रप्ति ...होगा .
३.ऋण मुक्ति ...मकान दूकान के प्राप्ति हेतु ..
एक दिन पहले लाल मसूर की दाल को काली गाय के दूध में भिगो ले फिर दुसरे दिन जब पूजन करना हे उसे पीस ले और उसका पेस्ट बना ले यह पेस्ट ले जाकर शिवलिंग पर पूजन करने के बाद लगा दे अर्थात इस पेस्ट से लिंग पुर्णतः ढक जाना चाहिए ध्यान रहे आप के बाद कोई फिर उस लिंग की पूजा ना करे कम से कम दो प्रहार अर्थात ६ घंटे तक ....भोग भी केशरिया ..याने गाजर का हलवा ...इमरती या पपीते का हलवा आदि का ही लगाना हे ...फिर महादेव को सफ़द वस्त्र पर अपने सपने का घर गेरू पर बना कर अर्पण कर अपने निजी घर के लिए प्रार्थना करना हे ऋण मुक्ति के लिए कुछ सिक्के गुप्त रूप से देवालय में चढ़ा कर या छोड़ कर आना हे ...यदि आप दो प्रहर के बाद पुनः जा कर लगाया हुआ पेस्ट निकाल कर किसी लाल सांड को या गाय को खिला सकते हे तो कार्य सिद्धि सहस्र गुना अर्थात हजार गुना बढ़ सकती हे पर यह उत्तर पूजा होगी तो इसमें मिश्रि मिले गाय के दूध से फिर एक बार शिव को नहला कर दही भात व मिश्री का भोग लगाना होगा
आते वक्त या जाते वक्त पलट कर नहीं देखना हे इससे प्रभाव विपरीत दिशा में हो सकता हे ....
समस्त कामाना पूर्ति हेतु ...
संतान प्राप्ति,अटूट धन प्राप्ति ....नैसर्गिक सौंदर्य प्राप्ति ....यश प्राप्ति ..मोक्ष प्राप्ति ..तत्व ज्ञान प्राप्ति ....मनचाहा जीवन साथी प्राप्ति ..अर्थात जो चाहो सब पाओ यदि यह प्रयोग कर आजमाओ .
शिव लिंग की महा निशा काल (मध्य रात्री १२:३० ०२:०० ) में निम्न द्रव्य से ब्राहमणसपति सूक्तं ,पुरुषसूक्तं,श्री सूक्तं,रूद्र तथा शिव महिम्न के मात्र एक एक आवर्तन से ही कार्य सिद्धि ..यदि ऐसे सोलह पुनर्वसु प्रयोग कर लिए जाए तो तीनो लोक में ऐसा कुछ भी नहीं जो असंभव हो ...पर समय ..स्थान द्रव्य सूक्त व उनका क्रम एक सा होना अनिवार्य हे ...तथा इसमें कोई रोक टोक ..पूछ ताछ ...निषेध हे सिर्फ मंत्र बोलने हेतु ही बोलना हे बाकी मौन व्रत का पालन करना हे ....पूजन पूरा षोडशोपचार होगा ...सीता रामचन्द्राय ..उमा महेश्वर सांगाय सह परिवाराय ..के नाम से ..
द्रव्य ....श्रीफल जल....इक्षु रस.....(गौ)नवनीत ....गौ क्षीर,चन्दन इत्र,द्राक्ष रस ,अनंत बीज रस, कर्दली फल रस..पदम् गंध इत्र.....केवडा इत्र...पानडी इत्र ...|
कर्दपली के पत्ते पे समस्त सूखे मेवे का भोग ....तथा(गौ ) पंचामृत एवं पञ्च गव्य से स्नान व् शेष का भोग .मांगलिक स्नान ...व शंखोदक अत्यंत अनिवार्य ......|
एक दिन पहले लाल मसूर की दाल को काली गाय के दूध में भिगो ले फिर दुसरे दिन जब पूजन करना हे उसे पीस ले और उसका पेस्ट बना ले यह पेस्ट ले जाकर शिवलिंग पर पूजन करने के बाद लगा दे अर्थात इस पेस्ट से लिंग पुर्णतः ढक जाना चाहिए ध्यान रहे आप के बाद कोई फिर उस लिंग की पूजा ना करे कम से कम दो प्रहार अर्थात ६ घंटे तक ....भोग भी केशरिया ..याने गाजर का हलवा ...इमरती या पपीते का हलवा आदि का ही लगाना हे ...फिर महादेव को सफ़द वस्त्र पर अपने सपने का घर गेरू पर बना कर अर्पण कर अपने निजी घर के लिए प्रार्थना करना हे ऋण मुक्ति के लिए कुछ सिक्के गुप्त रूप से देवालय में चढ़ा कर या छोड़ कर आना हे ...यदि आप दो प्रहर के बाद पुनः जा कर लगाया हुआ पेस्ट निकाल कर किसी लाल सांड को या गाय को खिला सकते हे तो कार्य सिद्धि सहस्र गुना अर्थात हजार गुना बढ़ सकती हे पर यह उत्तर पूजा होगी तो इसमें मिश्रि मिले गाय के दूध से फिर एक बार शिव को नहला कर दही भात व मिश्री का भोग लगाना होगा
आते वक्त या जाते वक्त पलट कर नहीं देखना हे इससे प्रभाव विपरीत दिशा में हो सकता हे ....
समस्त कामाना पूर्ति हेतु ...
संतान प्राप्ति,अटूट धन प्राप्ति ....नैसर्गिक सौंदर्य प्राप्ति ....यश प्राप्ति ..मोक्ष प्राप्ति ..तत्व ज्ञान प्राप्ति ....मनचाहा जीवन साथी प्राप्ति ..अर्थात जो चाहो सब पाओ यदि यह प्रयोग कर आजमाओ .
शिव लिंग की महा निशा काल (मध्य रात्री १२:३० ०२:०० ) में निम्न द्रव्य से ब्राहमणसपति सूक्तं ,पुरुषसूक्तं,श्री सूक्तं,रूद्र तथा शिव महिम्न के मात्र एक एक आवर्तन से ही कार्य सिद्धि ..यदि ऐसे सोलह पुनर्वसु प्रयोग कर लिए जाए तो तीनो लोक में ऐसा कुछ भी नहीं जो असंभव हो ...पर समय ..स्थान द्रव्य सूक्त व उनका क्रम एक सा होना अनिवार्य हे ...तथा इसमें कोई रोक टोक ..पूछ ताछ ...निषेध हे सिर्फ मंत्र बोलने हेतु ही बोलना हे बाकी मौन व्रत का पालन करना हे ....पूजन पूरा षोडशोपचार होगा ...सीता रामचन्द्राय ..उमा महेश्वर सांगाय सह परिवाराय ..के नाम से ..
द्रव्य ....श्रीफल जल....इक्षु रस.....(गौ)नवनीत ....गौ क्षीर,चन्दन इत्र,द्राक्ष रस ,अनंत बीज रस, कर्दली फल रस..पदम् गंध इत्र.....केवडा इत्र...पानडी इत्र ...|
कर्दपली के पत्ते पे समस्त सूखे मेवे का भोग ....तथा(गौ ) पंचामृत एवं पञ्च गव्य से स्नान व् शेष का भोग .मांगलिक स्नान ...व शंखोदक अत्यंत अनिवार्य ......|
यदि उपरोक्त प्रयोग निर्विघ्न सतत सोलह चैत्र शुक्ल पुनर्वसु को कर लिया जाए तो समस्त कामना पूर्ति तय हे पर ..नियम वही हे स्थान समय सामग्री व विधि क्रम नहीं बदलना चाहिए .|
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
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