Friday, 10 April 2015

बच्चों की छः आदतें और असफलता :-


bachho ki 6 adaten aur asaflta
बच्चों की छः आदतें और असफलता :-
यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षन प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन पाता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षन की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है जिससे आज्ञाकारी ना होने के कारण बढ़ती उम्र में गलत संगत या गलत निर्णय लेकर अपना भविष्य खराब कर बैठता है। ऐसी स्थिति में उसके ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं।


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