Tuesday, 5 May 2015

कुशल प्रबंधन में सहायक ग्रह



कुशल प्रबंधन में सहायक ग्रह  


जितनी सूक्ष्मता प्रबंधन विषय में आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक बारीकियों और सूक्ष्म गणनाओं का विषय है- कुंडली विवेचन। कुशल प्रबंधन मानवीय श्रम के बेहतरीन संयोजन और कुशलतम व्यवस्थापन का नाम है। इसी प्रकार कुंडली की विवेचना भी सूक्ष्मतम गणनाओं और व्यापक अनुभव का फलितार्थ है। इन दोनों का तालमेल और सामंजस्य कुल मिलाकर एक ऐसे संस्थान की रचना करने के लिए पर्याप्त है जो अपने क्षेत्र में बेरोकटोक निरंतर शीर्ष की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

शून्य का जन्मदाता कहलाने वाला भारत वैदिक गणित और ज्योतिष विद्या में भी काफी पुराने समय से अग्रणी रहा है। वैदिक गणित को अमेरिका की सर्वोच्च स्पेस एजेंसी नासा ने भी अपनी पूरी-पूरी मान्यता प्रदान की है एवं कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों में इसकी विशेष कक्षाएं लग रही हैं। ठीक इसी प्रकार भारतीय ज्योतिष विद्या और कुंडली विवेचना को भी पाश्चात्य जगत्में शनैः-शनैः मान्यता मिलती जा रही है। व्यक्ति विशेष के भूत, वर्तमान और भविष्य को एक एकीकृत रूप से खुली पुस्तक के रूप में सामने रख देने वाले शास्त्र को भारतीय ज्योतिष कहा गया है।

इन ज्योतिष शास्त्रों में व्यक्ति विशेष की जन्मकुंडली का सबसे बड़ा महत्व है, क्योंकि इसी से इसका सम्पूर्ण जीवन चरित्र छुपा होता है। यदि उस व्यक्ति विशेष के संपूर्ण गुण दोषों से प्रबंधन कर्ता समय के पूर्व वाकिफ हो जाएं तो वह उसे सर्वोपयुक्त स्थान पर नियुक्त करते हुए संस्थान को अधिकतम लाभ दिला सकता है। प्रबंधन का प्रथम सूत्र ही यही है कि सक्षम व्यक्ति संस्थान के भविष्य को उज्ज्वल बनाते हैं और ज्योतिष शास्त्र यह बताने में सक्षम है कि कौन-सा व्यक्ति संस्थान के लिए लाभदायक रहेगा। उसके गुण-दोषों की विवेचना के साथ ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों का भी अध्ययन सकारात्मक कहा जा सकता है।

प्रथम बुध क्योंकि बुध विचारशीलता की अभिव्यक्ति प्रदान करता है तो गणित से संबंधित भी इस ग्रह की विशेषता होती है। मंगल-मंगल उत्साहवर्धक, साहस महत्वाकांक्षा एवं उच्च मनोबल की अभिव्यक्ति देती है। गुरु-गुरु ज्ञान, अनुभव प्रथक्करण निरीक्षण के साथ तत्व ज्ञान की अभिव्यक्ति करने वाला होता है। शनि-शनि कुशल प्रशासन सत्ता में महत्व बढ़ाने वाला होता है। एक उत्तम प्रबंधक में उपरोक्त ग्रहों के गुणों का समावेश होना चाहिए।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


सफल खिलाड़ी बनने के ग्रह संयोग



सफल खिलाड़ी बनने के ग्रह संयोग -
प्राचीनकाल से खेल के प्रति रूझान रहा है, जिसका कारण लोगों को एकजुट रखना तथा शरीर सौष्ठव को कायम रखने से रहा है किंतु वर्तमान काल में खेल से धन शोहरत के साथ अपार लोकप्रियता तथा बड़ी-बड़ी कंपनियों से अनुबंध के साथ धन तथा नौकरी का लाभ भी प्राप्त होता है। खेल में कैरियर बनाने तथा उस खेल से सफलता प्राप्ति हेतु ग्रह, ग्रह संबंध, ग्रह दृष्टि, भावेष से संबंध, ग्रह दषाएॅ आदि के द्वारा खेल में सफल कैरियर तथा सफलता के उपाय आजमाकर धन तथा यष प्राप्त किया जा सकता है। खेल में ताकत तथा साहस का सबसे बड़ा योगदान होता है। साहस का संबंध ज्योतिषीय दृष्टिकोण से मंगल से माना जाता है। मंगल यदि कुुंडली में बलवान होकर पराक्रमभाव या भावेष, कर्मभाव या भावेष से मित्र संबंध बनाता हो, तो जातक साहसी खिलाड़ी बनने की योग्यता रखता है साथ ही अगर लग्न या लग्नेष से संबंध बने तो जातक हष्ट-पुष्ट जुझारू भी होता है। खेल के प्रकार के अनुरूप ग्रह स्थिति अनुकूल होने पर खेल में यष तथा धन की प्राप्ति का योग बनता है। क्रिकेट या हाॅकी जैसे दौड-भाग वाले खेलों में षष्ठेष तथा अष्टमेष बलवान होने के साथ भाग्येष अनुकूल होना आवष्यक होता है वहीं दिमागी खेल शतरंज जैसे खेल में एकाग्रता के साथ बुद्धि की चपलता का होना आवष्यक हेाता है तब लग्न, तृतीयेष, पंचमेष के साथ एकादषेष का उच्च होना जरूरी होता है। यदि खेल से संबंधित ग्रहों का संबंध दषमेष से बने तो उस खेल में नेतृत्व प्राप्ति का संयोग भी बनता है। इस प्रकार खेल में कैरियर की संभावना तलाषने से पूर्व अपनी ग्रह स्थिति और अनुकूल दषाओं का अध्ययन कर उपयुक्त उपाय आजमाने से प्रसिद्धि तथा धन प्राप्त किया जा सकता है। खेल में प्रसिद्धि प्राप्त करने हेतु मंगल का व्रत, दान करने से भी सफलता प्राप्त होता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


प्रदोष व्यापिनी अमावस्या -



प्रदोष व्यापिनी अमावस्या -

मार्गषीर्ष मास की अमावस्या को अपने पितरों तथा पूर्वजो को पूजन, याद करने तथा उनकी मुक्ति हेतु दान करने का होता है। इस माह में किए गए दान एवं पूण्य जीवन में सुख तथा समृद्धिदायी होती है साथ ही कष्टों को दूर करने वाली होती है। मार्गषीर्ष मास के अमावस्या को जिस भी जातक की कुंडली में पितर दोष हो, उसे इस अमावस्या को पितृ श्राद्ध करने हेतु स्नान-दान कर व्रत करने से जीवन में कष्ट से राहत प्राप्त करने का दिन माना जाता है। इस दिन किए गए सभी दान एवं श्राद्ध पितरों की मुक्ति का माना जाता है। इस दिन ब्राम्हणों को भोजन तथा दान देकर तृप्त करने से पितरों की मुक्ति होना माना जाता है। इस दिन प्रातःकाल नदी के स्नान से निवृत्त होने के उपरांत सभी प्रकार के भोज एवं दानसामग्री लेकर संकल्प के साथ दान करने के उपरांत सायंकाल द्वार पर दीपक जलाकर एक दोनें में पूरी, खीर आदि पकवान रख दिए जाते हैं, जिसमें खाद्य सामग्री पितरों की रास्ते की भूख मिटाने तथा दीपक उनके रास्ते को प्रज्जवलित करने हेतु रखा जाता है। इस प्रकार पितरों के मुक्ति की कामना से दान करने से जीवन में ग्रहदोष की निवृत्ति होकर परिवार सुखी होता है।





Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



संबंधों को अनुकूल कर जीवन में सुख प्राप्त करें



संबंधों को अनुकूल कर जीवन में सुख प्राप्त करें -

ग्रह, नक्षत्र हमारे आपसी रिष्तों पर अपना पूरा प्रभाव डालते हैं। इस संबंध में ज्योतिषषास्त्र में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में प्रत्येक ग्रह से कोई ना कोई रिष्ता जुड़ा होता है तथा प्रत्येक भाव से रिष्तेदारो की स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूर्य से जहाॅ पिता तथा पितातुल्य संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है वहीं पर चंद्रमा से माॅ, मौसी तथा माता संबंधी रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मंगल से भाई तथा मित्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो बुध से बहन, बुआ, बेटी, साली और इससे संबंधित रिष्तों के बारे में जाना जा सकता है वहीं पर गुरू से पिता, दादा, गुरू तथा देव का पता चलता है शुक्र से पत्नी तथा स्त्री का पता चलता है शनि से चाचा, माता, सेवक तथा अधिनस्थों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो राहु से साला और ससुर तथा केतु से संतान और नाना जैसे रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही भाव भी रिष्तों के विषय में जानकारी देते हैं, जिसमें लग्न से स्वयं, दूसरे स्थान से कुटुंब, तीसरे स्थान से छोटे भाई-बहन तथा पड़ोसियों एवं सहायकों के बारे में जाना जा सकता है तो चतुर्थ भाव से माॅ, ससुर तथा नजदीकी रिष्तेदारों के बारे में जानकारी मिलती है तो पंचम से संतान, दोस्त, प्रेमी-प्रेमिका, समाज के संबंध में जाना जा सकता है। षष्ठम स्थान से मातृपक्ष, सेवक तो सप्तम स्थान से जीवनसाथी, पार्टनर के बारे में जानकारी प्राप्त हेाती है तो अष्टम स्थान पितृ संबंधी रिष्तों की जानकारी देता है वहीं नवम स्थान दादा तथा पारिवारिक बुजुर्गो के संबंध में सूचना देता है दषम स्थान से पिता, अधिकारी तथा सहयोगियों के बारे में जाना जा सकता है। एकादष स्थान से बड़े भाई-बहन तथा दोस्तों के बारे में जाना जा सकता है तो द्वादष स्थान से पिता पक्ष तथा, जीवनसाथी से संबंध जाना जाता है तो आध्यामिक रिष्तों के बारे में जाना जाता है अतः इनमें से किसी भी भाव या भावेष की स्थिति प्रतिकूल होने पर उस रिष्तें से हानि तथा कष्ट की संभावना बनती है तो जिस भाव या भावेष की स्थिति अनुकूल हो वह रिष्ता जीवन में सुख तथा सहायक बनता है। इस प्रकार जीवन में कौन सा रिष्ता सहयोगी होगा तथा किस रिष्ते से सुख प्राप्त होगा इसकी जानकारी कुंडली के भाव या भावेष से जाना जा सकता है। इस प्रकार जिस रिष्ते से कष्ट प्राप्त हों, उस भाव या भावेष से संबंधित ज्योतिषीय उपाय अपनाकर जीवन में सुख प्राप्त किया जा सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


आधुनिक जीवन की जटिलताएॅ और ज्योतिषीय उपाय


आधुनिक जीवन की जटिलताएॅ और ज्योतिषीय उपाय -

सत्रहवीं शताब्दी को प्रबोधन का युग, अठारहवी शताब्दी को तर्क का युग, उन्नीसवीं शताब्दी को प्रगति का युग और बीसवीं शताब्दी को दुष्चिंता का युग कहा जाता है। सार्थक और संतोषप्रद जीवन का मार्ग कभी भी आसान नहीं था किंतु वर्तमान जीवन जटिल और कठिन प्रतीत होता है वरन् दिन-प्रतिदिन जीवन की जटिलताएॅ बढ़ती ही जा रही हैं। आज हमारा ज्ञान अणु और जीन के विषय में बहुत विकसित है किंतु प्रेम और सौहार्द्र तथा जीवनयापन हेतु आवष्यक जीवनमूल्यों का ज्ञान अत्यंत न्यून होता जा रहा है। असंतुष्ट, चिंतित तथा तनावयुक्त लोगों की भीड़ दिखाई देती है। समाज में कुछ लोग इन तनावों, कुण्ठाओं तथा प्रतिबलों की किसी ना किसी रूप में व्यवस्था कर लेते हैं किंतु कुछ अन्य लोगों के लिए यह स्थिति अत्यंत कठिन और जटिल होती है। आुधनिक काल में नगरीय जीवन में स्वार्थ इतना रचाबसा हुआ है कि आसपड़ोस का कुषलक्षेम पूछने का समय नहीं मित्रता तो दूर की बात है। साथ ही श्रेष्ठता की भावना, पूर्वाग्रह, आर्थिक असंतुलन, पारिवरिक रिष्तों का तनाव जीवन में जटिलताओं को और बढ़ा देता है। इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति अगर अपनी कुंठाओ या तनाव पर नियंत्रण ना रख पाये तो मानसिक रूप से असंतुलित हो जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार व्यक्ति का लग्न, सप्तम तथा एकादष भाव या भावेष की स्थिति उसके व्यवहार पर नियंत्रण, संगीसाथी तथा दैनिक जीवन में निरंतरा को प्रर्दषित करता है यदि किसी व्यक्ति के उक्त भाव तथा उस भाव के स्वामी ग्रह उच्च, अनुकूल स्थिति में हों तो जातक का नियंत्रण अपने व्यवहार पर होता है तथा उसके साथी उसके तनाव को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर तनाव या कुंठा की स्थिति में जीवन की जटिलताएॅ बढ़ती जाती है अतः जीवन की जटिलताओं को नियंत्रित करने हेतु उक्त ग्रहों के आवष्यक ज्योतिष उपाय लेकर जीवन में शांति, सुकून तथा समृद्धि को बरकार रखा जा सकता है।




 Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



सामाजिक विकास से संबंधित ज्योतिष कारक -



सामाजिक विकास से संबंधित ज्योतिष कारक -

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का एक सदस्य है और समाज के अन्य सदस्यों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्य उसके प्रति प्रक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रया उस समय प्रकट होती है जब समूह के सदस्यों के जीवन मूल्य तथा आदर्ष ऊॅचे हों, उनमें आत्मबोध तथा मानसिक परिपक्वता पाई जाए साथ ही वे दोषमुक्त जीवन व्यतीत करते हों। परिणाम स्वरूप एक स्वस्थ समाज का निमार्ण होगा तथा समाज में नागरिकों का योगदान भी साकारात्मक होगा। सामाजिक विकास में सहभागी होने के लिए ज्योतिष विषलेषण से व्यक्ति की स्थिति का आकलन कर उचित उपाय अपनाने से जीवन मूल्य में सुधार लाया जा सकता है साथ ही लगातार होने वाले अपराध, हिंसा से समाज को मुक्त कराने में भी उपयोगी कदम उठाया जा सकता है। समाज और संस्कृति व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिमान होता है, जिसमें आवष्यक नियंत्रण किया जाना संभव हो सकता है। सामाजिक तौर पर व्यवहार को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक स्तर पर विद्यालय जिसमें स्कूल में बच्चों के आदर्ष उनके षिक्षक होते हैं। षिक्षकों के आचरण व व्यवहार, रहन-सहन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके सौहार्दपूण व्यवहार से साकारात्मक और विपरीत व्यवहार से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है, जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी बच्चे की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल षिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्षाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर षिक्षा तथा षिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अतः मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेष अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


कार्तिक पूर्णिमा -



कार्तिक पूर्णिमा -
कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषव्यापिनी उत्सव विधान से मनाने का आदि काल से महत्व है। पूर्णिमा का व्रत गृहस्थों के लिए अति शुभ फलदायी होता है। प्रायः स्नान कर व्रत के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा कर दिनभर उपवास करने के उपरांत चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अध्र्य देने के साथ खीर का भोग लगाकर मीठा भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। इस दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी इस दिन से सृष्टि चक्र का पुनः पालन शुरू करते हैं इसलिए इसे देवताओं की दीपावली भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा, यमुना या किसी नदी का स्नान कर दीपदान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन कृतिका नक्षत्र होतो महाकार्तिकी होती है तथा भरणी नक्षत्र होने से विशेष फलदायी होती है। इस दिन व्रत करके चंद्रोदय होने पर दीपदान करने के उपरांत बैल या गाय करने की प्रथा प्राचीन समय में थी। ब्राम्हणों को दान तथा भोजन कराने के उपरांत व्रत का पारण करने से सर्वमनोकामना की पूर्ति होती है। साथ ही मान्यता है कि चंद्रमा मन का कारक ग्रह है अतः पूर्णिमा व्रत के करने से मानसिक शांति के साथ पारिवारिक सामंजस्य और सौहार्द बढ़ता है।
कथा -
त्रिपुर नामक एक दैत्य ने प्रयाग में रहकर इतना तप किया कि उसके तेज से लोक जलने लगा। उसको मोह में बाधने के लिए देवताओं ने अनेक अपसराएॅ भेजी किंतु वह दैत्य किसी के भी वश में नहीं आया। ऐसा देखकर ब्रम्हाजी ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने को कहा तब उसने अमर रहने का वर मांगा। ब्रम्हाजी ने जब उस दैत्य से कहा कि ऐसा वर संभव नहीं है तब उसने वर मांगा कि मेरी मौत ना देवता, ना मानव ना निशाचर ना स्त्री ना रोगी से हो। वर देकर ब्रम्हाजी प्रस्थान कर गए। ऐसा वर पाकर त्रिपुर को घमंड हो गया और वह सभी देवताओं तथा देवलोक के साथ सभी को बंधक बनाकर तबाह करने लगा। इससे देवताओं के साथ मानव भी हाहाकार करने लगे। जब सभी देव भी पराजित होने लगे तब ब्रम्हाजी ने कहा कि एक ऐसा है जोकि ना देव है ना मानव ना निशाचर ना स्त्री ना ही रोगी वह है तीनों लोकों का कर्ता वृषध्वज महादेव। तब सभी मिलकर महादेव की शरण में पहुॅचें। षिवजी की महिमा सुनकर दैत्य त्रिपुर भी असुरों की सेना लेकर कैलाशपर्वत पर धावा बोल दिया। तब षिवजी ने एक ही बाण से दैत्य का वध किया। उस दिन सभी देवों ने मिलकर महादेव की आरती लेने हेतु दीपदान किया। उस दिन से किसी भी प्रकार के कष्ट, रोग तथा दुख को हरने हेतु दीपदान कर चंद्रोदय के समय शिवजी की आराधना करने से सभी दुख और पाप समाप्त होते हैं ऐसी मान्यता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in




बैकुंठ चतुदर्शी व्रत -



बैकुंठ चतुदर्शी व्रत -
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी को पाप मुक्ति तथा बैकुण्ठ प्राप्ति हेतु बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु की प्रियता के लिए किया जाता है। इस दिन निराहर रहते हुए भगवान विष्णु की प्रतिष्ठा कर कमल के फूल से विधिवत पूजा कर धूप, दीप चंदन आदि पदार्थो से आरती उतारकर भोग लगायें।
कथा -
एक बार नारदजी बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने नारदजी से आने का कारण जानना चाहा। नारदजी बोले हे भगवन आपको पृथ्वीवासी कृपा निधान कहते हैं किंतु इससे तो केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं। साधारण नर-नारी नहीं। इसलिए कोई ऐसा उपास बताइये जिससे साधारण नर-नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाए। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि नारद कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दषी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा। इसके बाद भगवान ने जय-विजय को बुलाकर आदेष दिया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दषी को स्वर्ग के द्वार खोल दिए जायें। इस दिन जो भी किंचित मात्र भी मुझे स्मरण करेगा, उसे बैकुंठधाम प्राप्त होगा।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



कैसे करें अपनों में तनाव से बचाव


कैसे करें अपनों में तनाव से बचाव -

आज की प्रतिद्धंदिता की स्थिति तथा लगातार हर क्षेत्र में परेषानी, कार्य का दबाव, समय की कमी, कुंठाओं और भौतिकसंपन्नता की चाहत के कारण व्यवहार का चिड़चिड़ापन तथा क्रोध ज्यादातर स्थिति में नजदीकी रिष्तों को प्रभावित करता है। जब व्यक्ति तनाव में होता है तो वह अपने सबसे नजदीकी रिष्तों के प्रति असहिष्णुता का व्यवहार कर बैठता है जबकि साथी को उसके तनाव के कारण की अज्ञानता उस व्यवहार की सच्चाई से अनभिज्ञता के कारण रिष्तों में भी तनाव देती हैं ऐसी स्थिति में रिष्तों में भी दूरी बढ़ने से उस जातक का तनाव लगातार चरम पर होता है और रिष्तें दूर से दूर होते जाते हैं और कई बार इसी तनाव के कारण दोस्ती का टूटना, जीवनसाथी से तलाक की नौबत तक आ जाती है। इस तनाव को समझने के लिए जातक के तृतीयेष, सप्तम, पंचम तथा एकादष भाव या भावेष संबंध किसी भी प्रकार से षष्ठम, अष्टम या द्वादष स्थान या राहु के साथ लग्न में या तीसरे स्थान में शनि होने से जातक का व्यवहार कठोर हो जाता है, जिससे उसके रिष्ते प्रभावित होते हैं और इस तनाव का असर सबसे ज्यादा उसके रिष्तों के दरार के रूप में दिखाई देती है। तनाव के कारण इस बढ़ती दूरी को कम करने हेतु शनिवार का व्रत, काली वस्तुओं के दान के साथ मंगलगौरी की पूजा करने से तनाव कम करने के साथ रिष्तों में आपसी सामंजस्य उत्पन्न होती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in






Monday, 4 May 2015

जानिये आज 04/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "विश्व में शान्ति हेतु मनायें बुद्ध पूर्णिमा"

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज के सवाल जवाब(1) 04/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से


जानिये आज के सवाल जवाब 04/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज का राशिफल 04/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज का पंचांग 04/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


प्रबोधनी एकादशी, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक-


प्रबोधनी एकादशी, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक-

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रबोधनी या देवउठनी, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है।
देवात्थान एकादशी-
माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को शयन से जगते हैं। अतः इन चार माह में कोई भी मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते। विष्णुजी के जागरण के उपरांत कार्तिक मास की एकादशी को प्रबोधनी या देवत्थान एकादशी के तौर पर मनाया जाता है। इसमें दीपदान, पूजन तथा ब्राम्हणभोज कराकर दान से धन-धान्य, स्वास्थ्य में लाभ होता है।
तुलसी विवाह
कार्तिक मास में पूरे माह दीपदान तथा पूजन करने वाले वैद्यजन एकादशी को तुलसी और शालिग्राम का विवाह रचाते हैं। समस्त विधि विधान से विवाह संपन्न करने पर परिवार में मांगलिक कर्म के योग बनते हैं ऐसी मान्यता है।
भीष्म पंचक
कहा जाता है कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ किंतु भीष्म पितामह शरशया पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तब श्री कृष्ण पाॅच पांडवों को लेकर मिलने गए। उपयुक्त समय जानकर युधिष्ठिर ने पितामह से प्रार्थना की आप राज्य संबंधी उपदेश कहें, तब भीष्म ने पाॅच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश किया। जिसे सुनने से संतुष्ट श्री कृष्ण ने पितामह से वादा किया अब के बाद जोभी इन पाॅच दिनों तक उॅ नमो वासुदेवाय के मंत्र का जाप कर पाॅच दिनों तक व्रत का पालन करते हुए उपदेश ग्रहण करेगा तथा अंतिम दिन में तिल जौ से हवन कर संकल्प का पारण करेगा, उसे सभी सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति होगी, जोकि भीष्म पंचक के नाम से जाना जायेगा। तब से इस विधान को नियम से करने वालों को जीवन के कष्ट समाप्त होकर सुख की प्राप्ति होती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

अक्षय नवमी




अक्षय नवमी -

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है।  धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। चरक संहिता के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी को महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था। प्रातःकाल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिषा की ओर उन्मुख होकर षोड़षोचार से पूजन कर वृक्ष के तने में दूध चढ़ायें कपूर वर्तिका से आरती करें तथा सात परिक्रमा कर वृक्ष के नीचे भोजन करायें तथा दान करें। आंवले के वृक्ष की पूजा तथा आंवले का सेवन करने से निरोगी काया की प्राप्ति होती है तथा अमोघ फल की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में वणिक की पत्नी को कोढ़ रोग हो जाने से उसे पति तथा देष से निकाला दे दिया गया। वणिक पत्नी जंगल-जंगल भटकने की लगी। एक ऋषि द्वारा उसे उपाय के रूप में कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी को बताया गया कि आंवले का सेवन करें तथा आवंले के वृक्ष का पूजन कर उसके नीचे ही अपना भोजन बनाकर ग्रहण करें साथ ही उसके तेल का सेवन करने से उसको रोग से मुक्ति प्राप्त होकर स्वस्थ एवं सुंदर काया प्राप्त होगी। वणिक पत्नी से यथास्थिति उपाय किया और रोग से मुक्ति प्राप्त किया।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता हेतु करें अष्म स्तोत्र का पाठ



प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता हेतु करें अष्म स्तोत्र का पाठ:-

सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे।  इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


एमबीए के किस क्षेत्र का चुनाव करें, जाने अपनी कुंडली से



एमबीए के किस क्षेत्र का चुनाव करें, जाने अपनी कुंडली से -

इस वैष्वीकयुग में अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान तथा कंपनियाॅ कार्य कर रहीं हैं। अब देष में ही बैठकर विदेषी कंपनियों में सर्विस प्राप्त करने के चांस उपलब्ध हैं। हर कंपनी में मार्केटिंग मैनेजमेंट, फायनेंस मैनेजमेंट, ह्मेन रिसोर्स मैनेजमेंट, एड मैनेजमेंट, कंसल्टेंसी, टूरिज्म के साथ कई अनेक क्षेत्र मैनेजमेंट हेतु खुले हुए हैं, जिसमें कार्य तथा वेतन का स्तर लुभावना होता है। आज का हर युवा तथा परिवार चाहता है कि अच्छी आय तथा जीवन सुखपूर्वक हो। किसी जातक के जीवन में आय तथा बहुराष्टीय कंपनी में कार्य हेतु कितनी संभावना है इसका पता आपके मैनेजमेंट संबंधी षिक्षा की संभावना से जाना जा सकता है। एमबीए की षिक्षा हेतु ज्योतिषीय गणना में कुंडली कके लग्न या लग्नेष, तृतीयेष, पंचम या पंचमेष, गुरू तथा प्रबंध का कारक बुध तथा इन सभी का संबंध व्यक्ति के एमबीए में सफलता तथा क्षेत्र को दर्षाता है। यदि गुरू तथा बुध का संबंध या दृष्टि संबंध लाभभाव से बन रहा हो तो जातक फायनेंस से संबंधित क्षेत्र में एमबीए करता है। सूर्य से संबंध स्थापना करने पर कंसल्टेंट से संबंधित एमबीए का कार्य करता है। वहीं शनि या मंगल से संबंधित होने पर मार्केटिंग से संबंधित क्षेत्र बनता है। इस प्रकार अन्य ग्रहों का संबंध गुरू या बुध से बनने पर एमबीए कर उच्च पद पर आसीन होने तथा प्रारंभ से ही उच्च वेतन प्राप्ति हेतु जानकारी लेने तथा कमी को दूर करने हेतु ज्योतिष विष्लेषण करना कैरियर के नये क्षेत्र में सफलता का द्वार खोल सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

गजेंद्र मोक्ष की स्तुति से प्राप्त करें धनसुख



गजेंद्र मोक्ष की स्तुति से प्राप्त करें धनसुख -

अर्थस्य अर्थोलोके अर्थात् इस अर्थ युगीन दुनिया में कहीं ना कहीं धन की बड़ी महत्ता समझ में आती है। चाहें वें पारिवारिक रिष्तें हों या सामाजिक जिम्मेदारियाॅ सबकुछ पैसों पर आश्रित होता है। आर्थिक पक्ष के कमजोर होने पर सभी आवष्यक कार्य में रूकावट आती हैं तो वहीं रिष्तें भी खराब होते ही हैं। कुंडली में लग्नेष एवं सप्तमेष का 6, 8 या 12 भाव में हो तो आर्थिक कष्ट या धन संबंधित कमी से जीवन बाधित होता है। 6, 8 या 12 भाव के स्वामी होकर द्वितीय या एकादष भाव से संबंध स्थापित होने पर धन सुख में बाधा के कारण  परिवार परेषान होता है। इसके अलावा लग्नेष या तृतीयेष का निर्बल होकर क्रूर स्थान या क्रूर ग्रहों के साथ होना भी जीवन में दुख तथा कष्ट का कारण बनता है। द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम या द्वादष भाव पर क्रूर ग्रह का होना भी जीवन में कष्ट का कारण घरेलू या आर्थिक कमी बनता है। यदि किसी के जीवन में आर्थिक कष्ट उत्पन्न हो रहा हो गजेंद्र मोक्ष का पाठ तथा मंगल का व्रत करना चाहिए। गजेंद्र मोक्ष को अपने आप में एक अद्भुत संतुति कहा जाता है। इसके प्रयोग से किसी भी प्रकार के कष्टनिवारण में आषातीत सफलता प्राप्त होती है। कलयुग में गजेंद्र मोक्ष की स्तुति हर प्रकार के सुख सौभाग्य हेतु तथा हर प्रकार के समस्याओं से मुक्ति में पूरी तरह से सफल है। गजेंद्रमोक्ष के प्रयोग हेतु किसी शुभ मुहूर्त में स्वार्थ सिद्धि योग या अमृत सिद्धि योग में प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर विष्णुजी की प्रतिमा के समक्ष, उन या कुष के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठ जाएॅ। धूप-दीप आरती के उपरांत गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र-श्रीमद्भागवत का पाठ कर भगवान विष्णुजी की आरती कर हवन आदि करें, उसके उपरांत नित्य एक माला गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से जीवन में अर्थ, कर्ज के तनाव से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जिससे जीवन सुचारू रूप से सुखपूर्वक बीतता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

भाईदूज का त्योहार



भाईदूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाई के कल्याण के लिए व्रत कर पूजा करती हैं और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। आज के दिन बहन भाईयों को तेल मलकर नदी में स्नान करना चाहिए। इस दिन भाईयों को बहन के यहाॅ ही भोजन करना चाहिए। बहने भाई को भोजन कराकर टीका करती हैं और भाई उनसे आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तथा रक्षा का संकल्प करते हैं। एक बार की बात है कि सूर्य की पत्नी छाया जिसकी दो संताने थी यम और यमुना। बहन यमुना भाई यम से हमेशा आग्रह करती थी कि वे घर आकर भोजन करें लेकिन यम हमेशा टाल जाते। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया और बहन यमुना के पास चले आयें। भाई को देखते हुए बहन प्रसन्न हुई और स्वागत कर तिलक कर भोजन कराया और इससे यमराज प्रसन्न हुए। उन्होंने यमुना से वर मांगने को कहा तो बहन यमुना ने भाई से वर मांगा कि आप प्रतिवर्ष आज के ही दिन मेरे घर भोजन करने जरूर आयेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका कर भोजन कराये उसे आपका भय ना रहे। तभी से भाईदूज की परंपरा चली आ रही है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

कार्तिक मास और गोवर्धन पूजा



कार्तिक मास और गोवर्धन पूजा -;अन्नकूटद्ध
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाये जाते हैं। अन्न कूट और गोवर्धन पूजा द्वापर में भगवान कृष्ण द्वारा प्रारंभ की गई। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं का स्नान कराकर मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर षोडशोपचार से इसकी पूजा की जाती है और रात्रि में तेल का दीपक जलाकर उसकी परिक्रमा करते हैं।
एक बार की बात है कि गोपिकायें गोवर्धन पवर्त की तराई में छप्पन भोग बनाकर भगवान इंद्र की पूजा कर रही थीं, जब कृष्ण ने पूछा तो गोपिकाओं ने बताया कि इंद्र की कृपा से वर्षा होती है, इसलिए हम इंद्र की पूजा कर रही हैं। भगवान ने कहा कि वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है। तब तो हमें इंद्र की जगह गोवर्धन पवर्त की पूजा करनी चाहिए और फिर सभी ग्वाल बालों के साथ कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की। इंद्र नाराज होकर मूसलाधार बारिश करने लगे। भगवान कृष्ण के साथ सारे ग्वाल-बाल गोधर्वन पर्वत पहुॅचे और भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पवर्त को छत्ते की तरह अपनी कनिष्ठा उंगली में सात दिन तक धारण किया और इस तरह गोवर्धन की पूजा प्रारंभ हुई। तभी से गोवर्धन पूजन के पश्चात् अन्न कूट मनाया जाता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

कार्तिक अमावस्या और दीपावली को महालक्ष्मी पूजन



कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इससे पूर्व लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए घरों की साफ-सफाई की जाती है। कहाॅ जाता है कि इस दिन भगवान रामचंद्र चैदह वर्ष का वनवास पूरा कर रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने खुशी में दीपमालायें जलाकर महोत्सव मनाया था। इसी दिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। तभी से विक्रमी संवत का आरंभ माना जाता है। यह नव वर्ष का पहला दिन होता है। आज के दिन व्यापारी खाते बदल कर नये खातों का आरंभ करते हैं। समय के साथ नये कैलेण्डर वर्ष आ चुके हैं परंतु खातों की पूजा की परंपरा आज भी है। खाता कलम दवात तराजू और तिजोरी आदि की पूजा की जाती है। इस दिन कुछ लोग जुआ भी खेलते हैं। शायद इसका मूल लक्ष्य वर्षभर में भाग्य की परीक्षा करना है। परंतु इस चक्कर में लोगों का दिवाला भी निकल जाता है।
आज के दिन लोग लक्ष्मी, कुबेर, गणेश, इंद्र, विष्णु, सरस्वती एवं काली की पूजा करते हैं। दीपावली के दिन छः मुख वाले दीपक तथा छब्बीस छोटे दीपक जलाने का विधान है। इन सब दीपकों को प्रज्जवलित करके रोली, खिल बताशें चावल, गुड, अबीर गुलाल आदि से भगवान की पूजा की जाती है। धनतेरस में खरीदे हुए लक्ष्मीजी की मूर्ति या अन्य जेवरात सामने रख उसमें लक्ष्मीजी का ध्यान कर पूजन करना चाहिए।
इस दिन पूजनस्थल के मध्य में एक बड़ा अखण्ड दीपक जलाकर रात्रि जागरण एवं ओं हृीं महालक्ष्म्यै नमः इस महालक्ष्मी मंत्र का जप करना चाहिए तथा ब्रम्ह मूहुर्त में घर का कूड़ा रखकर सूपे में रखकर बाहर ले जाना चाहिए, इसे अलक्ष्मी का विसर्जन कहते हैं तथा हाथ-पैर धोकर दरवाजे पर खडे़ होकर महालक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए।
एक बार की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल में पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया पिलाया और ढेर सारे उपहार दिये। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो। अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी के तुलना में हमारे यहाॅ तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी। साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। बेटी ने चैका लगाया और चैमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहाॅ डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, साल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजन की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चैकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

कार्तिक मास की नरक चतुदर्शी और यम की पूजा



आज के दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए तेल लगाकर अपामार्ग के पौधे सहित जल में स्नान करना चाहिए और संध्या काल में दीप दान करना चाहिए। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था। एक बार रंतीदेवी नामक राजा हुए थे। वे बड़े धर्मात्मा और दानी थे। उनकी अंतिम काल में यमदूत उन्हें नरक ले जाने के लिए आयें, राजा ने यमदूतों से इस बारे में प्रश्न किया तो यमदूतों ने बताया कि तुम्हारे द्वार से एक ब्राम्हण भूखा लौट गया था, इसलिए तुम्हे नरक जाना पड़ेगा। यह सुनकर राजा ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु बढ़ाने के लिए विनती की। यमदूतों ने स्वीकार कर लिया। अब राजा ने ऋषियों से इस पाप का प्रायश्च्छित पूछा। तब ऋषियों ने बताया कि हे राजन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को व्रत रखकर भगवान कृष्ण का पूजन करों, ब्राम्हणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर फिर ब्राम्हणों से अपना अपराध कहकर क्षमा मांगना, इससे मुक्ति मिलेगी। राजा ने इस दिन नियम पूर्वक व्रत किया और विष्णुलोक की प्राप्ति की।
इस दिन सौंर्दय रूप श्री कृष्ण की पूजा भी की जाती है। कुछ लोग इसे रूप चतुदर्शी भी कहते हैं। एक समय भारत वर्ष में हिरर्णयगर्भ नामक नगर में एक योगीराज रहते थे। उन्होंने चित्त को एकाग्र कर समाधि लगा ली। उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। योगीराज दुखी हुए, उसी समय वहाॅ नारदमुनि प्रगट हुए। योगीराज ने अपने रोग का कारण पूछा। नारदजी ने कहा कि आप भगवान का चिंतन तो करते हैं परंतु देह आचार्य का पालन नहीं करते। योगीराज ने रोग का निदान पूछा। नारदजी ने कहा कि कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुदर्शी को भगवान कृष्ण का पूजन और व्रत करों तो तुम्हारा देह पुनः पूर्व की भांति हो जायेगा। योगीराज ने ऐसा ही किया और उसी समय उनका शरीर पूर्ववत हो गया। तब से ही इस चतुदर्शी को रूप चतुदर्शी कहने लगे।
इस दिन को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले आटा, तेल और हल्दी का उबटन लगाकर स्नान करें। थाली में सोलह एक मुखी छोटे दीपक तथा एक चर्तुमुख आटे का दीपक जलायें। फिर षोडशोपचार से इनका पूजन करें एवं सोलह दीपको को घर के अंदर तथा एक चर्तुमुख दीपक को घर के दरवाजे पर रखें और लक्ष्मी जी के आगे चैक पूरकर धूप, दीप से पूजन करें इससे सभी प्रकार की सिद्धियाॅ प्राप्त होती हैं।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

धनतेरस में कुबेर लक्ष्मी जी की पूजा



कार्तिक मास की त्रयोदशी धनत्रयोदशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन धनवंतरी समुद्र से अमृत कलश लेकर आये थे, इसलिए वैद्य जन आज के दिन धनवंतरी की पूजा करते हैं और इसे धनवंतरी जयंती कहते हैं। आज के दिन धरतेरस के पूजन और दीपदान को विधि पूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है ऐसा यमराज ने यमदूतों को बताया। इस दिन यम की पूजा भी होती है। इस दिन स्त्रियाॅ आटे का चर्तुमुख तेल का दीपक बनाकर दरवाजे पर प्रज्जवलित करते हैं।  
इस दिन लक्ष्मी कुबेर आदि की पूजा की जाती है। कहते हैं कि भगवान के श्राप से लक्ष्मीजी को 12 वर्ष के लिए किसान के घर पर रहना पड़ा बाद में जब किसान ने लक्ष्मी जी को वापस भेजने से इंकार कर दिया, तो लक्ष्मीजी ने किसान से कहा कि कल धनतेरस है तुम अपना घर स्वच्छ करके रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और मेरी पूजा करना इसके बाद मैं तुम्हारे घर में स्थाई तौर पर वास करूंगी पर अदृश्य रहूॅगी। तभी से धनतेरस के दिन स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए लोग रात्रिकाल में घी का दीपक जलाकर लक्ष्मी-कुबेर का पूजन करते हैं।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

रंभा एकादषी व्रत



रंभा एकादषी व्रत -
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादषी को रंभा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादषी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है। इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर मंदिर में श्री कृष्ण पूजन करना चाहिए। इस व्रत में दस चीजों के त्याग का महत्व है जिसमें जौ, गेहूॅ, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर दाल, प्याज ग्रहण नहीं करना चाहिए। मौन रहकर गीता का पाठ या उपदेष सुनना चाहिए। पाप से बचना तथा हानि पहुॅचाने से बचना चाहिए। व्रत की समाप्ति पर दान-दक्षिणा कर फलो का भोग लगाया जाता है। व्रत की रात्रि जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती इस दिन व्रत करके चंद्रोदय होने पर दीपदान करने के उपरांत बैल या गाय करने की प्रथा प्राचीन समय में थी। ब्राम्हणों को दान तथा भोजन कराने के उपरांत व्रत का पारण करने से सर्वमनोकामना की पूर्ति होती है। अतः व्रत के करने से मानसिक शांति के साथ पारिवारिक सामंजस्य और सौहार्द बढ़ता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

करक संतुष्टी व्रत



करक संतुष्टी व्रत -

जिस प्रकार एकादषी तिथि को विष्णु भगवान तथा त्रयोदषी तिथि को षिवजी की तिथियाॅ मानी जाती हैं उसी प्रकार से कृष्णपक्ष की चतुर्थी को विध्यविनाषक गणेष भगवान की विषिष्ट तिथि होती है। प्राचीन काल में हल्दी को गणेष भगवान की मूर्ति के रूप में पूजा जाता था जोकि आज भी मान्य है। माना जाता है कि हल्दी में मंगलकारी, धन तथा ज्ञान का वास होता है अब भी माना जाता है कि हल्दी ना केवल एंटीसेप्टिक होता है बल्कि जीवन में हर प्रकार से मांगलिक होता है इसलिए ही मंगलकार्य में हल्दी का प्रयोग विषेषरूप से किया जाता है। अतः सर्वप्रथम पूजे जाने वाले भगवान गणेष यहाॅ तक द्वार, पत्रिका के मुख्यपृष्ठ तथा किसी कार्य की शुरूआत में गणेष की मूर्ति या मंत्र का उल्लेख करते हुए कार्य शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गणपति का पूजन कर आव्हान करने से कार्य के सभी विध्न समाप्त होकर कार्य निर्विध्न रूप से पूर्ण होता है। भगवान गणेष को संकट हरने वाला देव माना जाता है अतः कार्तिक मास की चतुर्थी को भगवान गणेष के संकटहरन के रूप में पूजन का विधान है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख तथा सौभाग्य का विध्न समाप्त होता है साथ ही रोग या हानि से संबंधित कष्ट दूर होता है। इस व्रत में मंगलवार की रात्रि को जब आकाष में तारे दिखाई दे तो चंद्रदेव को अध्र्य देते हुए व्रत का प्रारंभ करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान और देव, पितृ तर्पण के बाद गणपति का पूजन शास्त्रोक्त विधान से करना चाहिए। गणेष भगवान को दूर्वा, दही, गुड़ और चावल का भोग लगा जाता है, उसके उपरांत अपामार्ग की एक सौ अठ्ठहत्तर समिधाओं में धी और दही मिलाकर हवन कर ब्राम्हण भोज  तथा तांम्रपात्र का दान करने का विधान है। इस व्रत से आरोग्यता, समृद्धि के साथ बुद्धि तथा विवेक की भी वृद्धि होती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


वाराह चतुदर्शी व्रत

Image result for vishnu

वाराह चतुदर्शी व्रत -

आष्विन मास की शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी को वाराह चतुर्दषी व्रत किया जाता है। भूत-प्रेत, पाप मुक्ति तथा सुख ऐष्र्वय प्राप्ति हेतु वाराह चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु के वाराह स्वरूप की प्रियता के लिए किया जाता है। इस दिन निराहर रहते हुए भगवान वाराह की प्रतिष्ठा कर विधिवत पूजा कर धतूरा, बेलपत्र, धूप, दीप चंदन आदि पदार्थो से आरती उतारकर भोग लगायें।
आष्विन मास में चतुर्दषी को प्रेत बाधा अथवा आकस्मिक हानि या कष्ट जिसका कारण भूत-प्रेत की छाया को माना जाता है हेतु जो नर-नारी इस व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा। इस दिन जो भी किंचित मात्र भी मुझे स्मरण करेगा, उसे नजरदोष अथवा आकस्मिक हानि से राहत प्राप्त होकर सुख तथा शांति प्राप्त होगी।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

पद्मनाथ द्वादषी पूजन - मनवांछित फल प्राप्ति का अचूक तरीका


Image result for vishnu
पद्मनाथ द्वादषी पूजन - मनवांछित फल प्राप्ति का अचूक तरीका-

आष्विनी शुक्ल मास भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत का मास माना जाता है इसकी द्वादषी में की गई पूजन, व्रत तथा दान बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में विष्णु की नाभी से उत्पन्न कमल को पद्मनाभ कहा गया। जिसमें तप दान से सभी कल्याण करने वाला बताया गया है। आष्विनी शुक्ल मास के हर दिन में किए गए तप का अपना अलग ही महत्व होता है। आष्विनी शुक्ल मास में मनवांछित फल प्राप्ति हेतु पद्मनाथ द्वादषी पूजन का बहुत महत्व है। इसमें ब्रम्ह मूहुर्त में तिल का तेल शरीर में मलकर स्नान करने के उपरांत विष्णु पूजन करने का विधान है।  इसके लिए विष्णु स्त्रोत के श्लोकों से पूजा और अभिषेक करें। जिसमें फूल, फल, चावल, दूध, शक्कर चढ़ाकर आरती करने के उपरांत दान करें तथा भजन कीर्तन करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा को क्षीर से स्नान कराकर कर दान देने के उपरांत बिना नमक का आहार ग्रहण करें। इससे शारीरिक व्याधि दूर होकर स्वास्थ्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करना विषेष हितकर होता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान जागृतवस्था में आने हेतु अंगडाई लेते हैं। जिससे पद्मासीन ब्रम्ह ओंकार की ध्वनि करते हैं। उक्त ध्वनि से जगत का कल्याण हेाता है। अतः इस दिन की गई पूजा से भगवान सीधे प्रसन्न होते हैं अतः सभी कष्टों की निवृत्ति होकर सुख की प्राप्ति होती है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

पापांकुषा एकादषी



पापांकुषा एकादषी -

आष्विन मास की शुक्लपक्ष की एकादषी को पापांकुषा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार पाप रूपि हाथी को महावत रूपी अंकुष से बेधने के कारण इसका नाम पापांकुषा एकादषी पड़ा। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्री का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान की अर्चना की जाती है। इसके बाद फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामथ्र्य अनुसार भगवान को अर्पित करते हैं। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनकर विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने के पष्चात् फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करने का महत्व है। जैसा के इसके नाम से ज्ञात होता है कि जिन व्यक्तियों को किसी भी प्रकार का कष्ट हो अथवा जो व्यक्ति सुख प्राप्ति की कामना करते हों, उनके लिए पापांकुषा एकादषी का व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। यदि कोई कष्ट जैसे स्वास्थ्य, षिक्षा या अन्य सुखों को प्राप्त करने का अभिलाषी हो, उसे इस व्रत के करने से सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

विजयादसमी




विजयादसमी -

विजय दसमी का व्रत या दषहरा का पर्व आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। इस दिन रामचंद्रजी ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इस लिए भी इस दिन को विजयदषमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए सायंकाल में पूजन का विधान है, जिससे जीवन में कार्यसिद्धि लाभ प्राप्त हो। विजय-प्रमाण, शमीपूजन, नवरात्र पारणा, दुर्गा विसर्जन इस पर्व के महान कर्म हैं। इस पर्व को दुखों को हराकर सुखविजय अर्थात् सुख तथा समृद्धि प्राप्ति होती है।
कथा - पावर्ती ने भगवान षिव से दषहरे तथा दुर्गा उपासना के परणा का फल जानना चाहा तो भगवान षिव ने कहा कि ‘‘आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए इस मूहुर्त में भगवान रामचंद्र जी ने रावण पर विजय हेतु लंकाविजय का काल निर्धारित किया था। अतः इस काल एवं तिथि में किए गए प्रयास में सफलता प्राप्ति का योग बनता है। अतः विजय दषमी का पर्व इच्छित फल की सफलता हेतु किया जाता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

माॅ दुर्गा के पाॅचवें रूवरूप "माॅ स्कन्दमाता"



माॅ दुर्गा के पाॅचवें रूवरूप को स्कन्दमाता के नाम से मनाया जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘‘कुमार कार्तिकेय’’ , जोकि प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे तथा शक्तिधर के नाम से जिनकी महिमा है, इन स्कन्द की माता के रूप में पूजी जाती हैं। देवी के विग्रह में गोद में बालरूप में स्कन्द बैठे हुए हैं; चार भुजाओं वाली देवी के दाहिनी ओर के उपर वाली भुजा से स्कन्द को पकड़े हुए हैं और नीचे वाली भुजा से कमल पुष्प थामे हुए हैं। बायी ओर वाली भुजा के उपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचेवाली भुजा में भी कमलपुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। पाॅचवें दिन पूजी जाने वाली इस देवी की साधना से साधक का मन विषुद्ध चक्र में अवस्थित हो जाता है। इससे समस्त ब्राह्य क्रियाओं और चित्तवृत्तियों का लोप होता है। उनका मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना देवी स्कन्दमाता के स्वरूप में तल्लीन हो जाता है। स्कन्दमाता की भक्ति से समस्त इच्छाएॅ पूर्ण हेा जाती है इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होता है। स्कन्दमाता की साधना भवसागर के दुखों से मुक्ति देकर मोक्ष प्रदायिनी होती है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

आरोग्य और यष की देवी-माॅ कूष्माण्डा



आरोग्य और यष की देवी-माॅ कूष्माण्डा -

माॅ दुर्गा के चैथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद्र हल्की हॅसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ‘ईषत्’ हास्य द्वारा ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की थी, जिसके पूर्व सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था। इनकी शरीर की कांति तथा प्रभा सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है जिसके कारण इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं के पास है। माॅ कूष्माण्डा का स्वरूप है आठ भुजाओं वाली माता के सात हाथों में क्रमषः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलष, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देनेवाली जपमाला है। कूम्हड़े का भोग इन्हें सर्वाधिक प्रिय है चूॅकि संस्कृत में कूम्हड़े का नाम कूष्माण्ड है जिसके कारण इनका नाम कूष्माण्डा देवी हुआ। इस दिन साधक क मन ‘अनाहत’ चक्र में प्रविष्ट होता है। अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली माता कूष्माण्डा की साधना से आयु, यष, बल और आरोग्य में वृद्धि होती है। माॅ कूष्माण्डा की सहजभाव से सेवाभक्ति करने पर माॅ कूष्माण्डा मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख तथा समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली माता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

माॅ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘माॅ चंद्रघण्टा"



माॅ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘चंद्रघण्टा’’ है। नवरात्रि उपासना में तीसरे तीन परम शक्तिदायक और कल्याणकारी स्वरूप की आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण माता के इस रूप का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं तथा सभी हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित है। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा यु़द्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घण्टे की सी भयानक चण्डध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं।
नवरात्र के तीसरे दिन माता के इस रूप की पूजा होती है, जिसमें साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। माॅ चंद्राघण्टा के पूजन से समस्त पाप और बाधाएॅ विनष्ट होती है। इनका वाहन सिंह है अतः इनकी उपासना से सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भयता प्राप्त होती है। घण्टे की ध्वनि से प्रेत-बाधादि से रक्षा होती है। इनकी आराधन से होने वाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि वीरता-निर्भयता के साथ सौम्यता एवं विनम्रता का भी विकास होता है। इनके मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति गुण की वृद्धि तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य होने से साधक हो शांति और सुख का अहसास होता है। माता के इस रूप की साधना करने से समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त हेाकर सहज ही परमपद प्राप्त होता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या




स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या -

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आष्विन मास की प्रति तथा आष्विन मास की अमावस्या तक का समय अपने पितरों तथा पूर्वजो को पूजन, याद करने तथा उनकी मुक्ति हेतु दान करने का होता है। इस माह में किए गए दान एवं पूण्य जीवन में सुख तथा समृद्धिदायी होती है साथ ही कष्टों को दूर करने वाली होती है। आष्विन मास के अमावस्या को पितृपक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। पूरे 15 दिवस चलने वाले इस पितरतर्पण का विसर्जन आष्विन मास की अमावस्या को किये जाने का विधान है। इस दिन किए गए सभी दान एवं श्राद्ध पितरों की मुक्ति का माना जाता है। इस दिन ब्राम्हणों को भोजन तथा दान देकर तृप्त करने से पितरों की मुक्ति होना माना जाता है। इस दिन प्रातःकाल नदी के स्नान से निवृत्त होने के उपरांत सभी प्रकार के भोज एवं दानसामग्री लेकर संकल्प के साथ दान करने के उपरांत सायंकाल द्वार पर दीपक जलाकर एक दोनें में पूरी, खीर आदि पकवान रख दिए जाते हैं, जिसमें खाद्य सामग्री पितरों की रास्ते की भूख मिटाने तथा दीपक उनके रास्ते को प्रज्जवलित करने हेतु रखा जाता है। इस प्रकार  िपतरों को विदा करने से जीवन में ग्रहदोष की निवृत्ति होकर परिवार सुखी होता है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

चतुर्दषी का श्राद्ध करके पायें जीवन मे आषांतित सफलता




चतुर्दषी का श्राद्ध करके पायें जीवन मे आषांतित सफलता -
स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या आपकी कुंडली में राहु प्रभावकारी है। यदि आपकी कुंडली में राहु दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही राहु की दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो राहु की शांति के लिए आष्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दषी को प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पितर तथा देव तर्पण कर ब्राम्हणों को उचित मात्रा में भोजन तथा दान देने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष



त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष  -

ज्योतिषषास्त्र में कालपुरूष के जन्मांग में सूर्य हैं राजा, बुध हैं मंत्री, शनि हैं जज, राहु और केतु प्रशासक हैं, गुरू हैं मार्गदर्शक, चंद्रमा हैं मन और शुक्र है वीर्य। जब कभी भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो राहु और केतु उसे दण्डित करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। पर शनि के न्यायालय में सबसे पहला दण्ड प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे व्यवहार से और सदाचरण से शनि को प्रसन्न करके बचा जा सकता है। शनि के दया के व्यवहार से प्रसन्न होते हैं। वहीं निर्दयता, झूठ या पाखंड उनकी अप्रसन्नता का कारण होता है।
आष्विन का महिना पितृदोष से उत्पन्न पाप श्राप से मुक्ति कराने वाला तथा श्री की प्राप्ति कराने वाला महिना है। इस महिने में शनिवार के दिन अगर त्रयोदषी पड़े तो इसमें घर की साफ-सफाई करके प्रातःकाल स्नान कर सभी प्रकार के कष्टों की निवृत्ति के लिए तथा अक्षय कल्याण की प्राप्ति के लिए सूर्यास्त के बाद दरवाजे पर दीया रोशन करें तथा पूजन स्थल पर पूर्व की ओर मुख करके सामने कलश स्थापित कर उसमें गेंहू और नगदी रखकर तर्पण करें। उसके पश्चात् रात्रिकाल में ओं शं शनैश्चराय नमः का 11 हजार जाप कर अगले दिन प्रातः स्नान करें फिर तिल जौ आदि से दशांश हवन करें पश्चात् जरूरत मदों को भोजन करावें तथा यथाशक्ति आचार्य तथा याचकों को दान करें। ऐसा करने से भगवान शनि की कृपा होती है और जीवन में पितरदोष से उत्पन्न हानि तथा कष्टों से मुक्ति प्राप्त होकर सफलता मिलती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in