Monday, 4 May 2015

माॅ दुर्गा के पाॅचवें रूवरूप "माॅ स्कन्दमाता"



माॅ दुर्गा के पाॅचवें रूवरूप को स्कन्दमाता के नाम से मनाया जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘‘कुमार कार्तिकेय’’ , जोकि प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे तथा शक्तिधर के नाम से जिनकी महिमा है, इन स्कन्द की माता के रूप में पूजी जाती हैं। देवी के विग्रह में गोद में बालरूप में स्कन्द बैठे हुए हैं; चार भुजाओं वाली देवी के दाहिनी ओर के उपर वाली भुजा से स्कन्द को पकड़े हुए हैं और नीचे वाली भुजा से कमल पुष्प थामे हुए हैं। बायी ओर वाली भुजा के उपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचेवाली भुजा में भी कमलपुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। पाॅचवें दिन पूजी जाने वाली इस देवी की साधना से साधक का मन विषुद्ध चक्र में अवस्थित हो जाता है। इससे समस्त ब्राह्य क्रियाओं और चित्तवृत्तियों का लोप होता है। उनका मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना देवी स्कन्दमाता के स्वरूप में तल्लीन हो जाता है। स्कन्दमाता की भक्ति से समस्त इच्छाएॅ पूर्ण हेा जाती है इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होता है। स्कन्दमाता की साधना भवसागर के दुखों से मुक्ति देकर मोक्ष प्रदायिनी होती है।


Pt.P.S Tripathi
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