Monday, 4 May 2015

अक्षय नवमी




अक्षय नवमी -

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है।  धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। चरक संहिता के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी को महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था। प्रातःकाल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिषा की ओर उन्मुख होकर षोड़षोचार से पूजन कर वृक्ष के तने में दूध चढ़ायें कपूर वर्तिका से आरती करें तथा सात परिक्रमा कर वृक्ष के नीचे भोजन करायें तथा दान करें। आंवले के वृक्ष की पूजा तथा आंवले का सेवन करने से निरोगी काया की प्राप्ति होती है तथा अमोघ फल की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में वणिक की पत्नी को कोढ़ रोग हो जाने से उसे पति तथा देष से निकाला दे दिया गया। वणिक पत्नी जंगल-जंगल भटकने की लगी। एक ऋषि द्वारा उसे उपाय के रूप में कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी को बताया गया कि आंवले का सेवन करें तथा आवंले के वृक्ष का पूजन कर उसके नीचे ही अपना भोजन बनाकर ग्रहण करें साथ ही उसके तेल का सेवन करने से उसको रोग से मुक्ति प्राप्त होकर स्वस्थ एवं सुंदर काया प्राप्त होगी। वणिक पत्नी से यथास्थिति उपाय किया और रोग से मुक्ति प्राप्त किया।



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