Tuesday, 5 May 2015

आधुनिक जीवन की जटिलताएॅ और ज्योतिषीय उपाय


आधुनिक जीवन की जटिलताएॅ और ज्योतिषीय उपाय -

सत्रहवीं शताब्दी को प्रबोधन का युग, अठारहवी शताब्दी को तर्क का युग, उन्नीसवीं शताब्दी को प्रगति का युग और बीसवीं शताब्दी को दुष्चिंता का युग कहा जाता है। सार्थक और संतोषप्रद जीवन का मार्ग कभी भी आसान नहीं था किंतु वर्तमान जीवन जटिल और कठिन प्रतीत होता है वरन् दिन-प्रतिदिन जीवन की जटिलताएॅ बढ़ती ही जा रही हैं। आज हमारा ज्ञान अणु और जीन के विषय में बहुत विकसित है किंतु प्रेम और सौहार्द्र तथा जीवनयापन हेतु आवष्यक जीवनमूल्यों का ज्ञान अत्यंत न्यून होता जा रहा है। असंतुष्ट, चिंतित तथा तनावयुक्त लोगों की भीड़ दिखाई देती है। समाज में कुछ लोग इन तनावों, कुण्ठाओं तथा प्रतिबलों की किसी ना किसी रूप में व्यवस्था कर लेते हैं किंतु कुछ अन्य लोगों के लिए यह स्थिति अत्यंत कठिन और जटिल होती है। आुधनिक काल में नगरीय जीवन में स्वार्थ इतना रचाबसा हुआ है कि आसपड़ोस का कुषलक्षेम पूछने का समय नहीं मित्रता तो दूर की बात है। साथ ही श्रेष्ठता की भावना, पूर्वाग्रह, आर्थिक असंतुलन, पारिवरिक रिष्तों का तनाव जीवन में जटिलताओं को और बढ़ा देता है। इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति अगर अपनी कुंठाओ या तनाव पर नियंत्रण ना रख पाये तो मानसिक रूप से असंतुलित हो जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार व्यक्ति का लग्न, सप्तम तथा एकादष भाव या भावेष की स्थिति उसके व्यवहार पर नियंत्रण, संगीसाथी तथा दैनिक जीवन में निरंतरा को प्रर्दषित करता है यदि किसी व्यक्ति के उक्त भाव तथा उस भाव के स्वामी ग्रह उच्च, अनुकूल स्थिति में हों तो जातक का नियंत्रण अपने व्यवहार पर होता है तथा उसके साथी उसके तनाव को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर तनाव या कुंठा की स्थिति में जीवन की जटिलताएॅ बढ़ती जाती है अतः जीवन की जटिलताओं को नियंत्रित करने हेतु उक्त ग्रहों के आवष्यक ज्योतिष उपाय लेकर जीवन में शांति, सुकून तथा समृद्धि को बरकार रखा जा सकता है।




 Pt.P.S Tripathi
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