Thursday, 7 May 2015

नकारात्मक विचार मन में क्यों आते हैं - कारण एवं उपाय -

Image result for negative thinking
नकारात्मक विचार - कारण एवं उपाय -
आधुनिक भागदौड़ के इस जीवन में प्रायः सभी व्यक्तियों को चिंता सताती रहती है। हर आयुवर्ग तथा हर प्रकार के क्षेत्र से संबंधित अपनी-अपनी चिंता होती हैं। चिंता को भले ही हम आज रोग ना माने किंतु इसके कारण कई प्रकार के लक्षण ऐसे दिखाई देते हैं जोकि सामान्य रोग को प्रदर्षित करते हैं। अगर यह चिंता कारण विषेष या समय विषेष पर हो तो चिंता की बात नहीं होती किंतु कई बार व्यक्ति चिंता करने का आदि होता है, जिसके कारण उसे हर छोटी बात पर चिंता हो जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे रासायनिक स्त्राव का असंतुलन माना जाता है किंतु वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस चिंता का दाता मन को संचालित करने वाला ग्रह चंद्रमा तथा व्यक्ति की जन्मकुंडली में तृतीय स्थान को माना जाता है। चंद्रमा के प्रत्यक्ष प्रभाव को आप सभी महसूस करते हैं जब ज्वार-भाठा या पूर्णिमा अमावस्या आती है। चंद्रमा का पूर्ण संबंध हमारे मानसिक क्रियाकलापों से है अगर चंद्रमा या तृतीयेष नीच राषि में स्थिति हो या षष्ठेष से युति या षष्ठस्थ हो या राहु केतु से युत हो तो व्यक्ति में तनाव जन्मजात गुण होता है। चूॅकि कालपुरूष का चतुर्थभाव चंद्रमा का भाव होता है अतः बहुत हद तक चतुर्थभाव का प्रतिकूल होना या चतुर्थेष का प्रतिकूल होना भी तनाव का कारण होता है। चंद्रमा या तृतीयेष का अष्टमस्थ या द्वादषस्थ होना भी लगातार तनाव का कारण देता रहता है। विषेषकर इन ग्रह या इनसे संबंधित ग्रहों की गोचर में व्यक्ति पर मानसिक असंतुलन दिखाई देती है। चिंता से मुक्ति हेतु पीडि़त व्यक्ति को अपनी वर्तमान परिथितियों पर नजर रखते हुए उनमें बदलाव का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा अपने जीवन में लगातार चिंता के कारणों तथा उससे जुड़े लोग तथा स्थिति को बेहतर करने का प्रयास करने के अलावा चंद्रमा को मजबूत करने तथा राहु की शांति के अलावा तृतीयेष का उपयुक्त उपाय करने से व्यक्ति को चिंता से मुक्ति मिल सकती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


शुक्र की दषा का फल - सुख तथा समृद्धि का प्रारंभ -

Image result for happiness

शुक्र की दषा का फल - सुख तथा समृद्धि का प्रारंभ -

ज्योतिषिय विज्ञान में व्यक्ति को सुख तथा समृद्धि प्रदान कर्ता ग्रह शुक्र को माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र क्रूर स्थान पर हो तो उसे शुक्र की दषा में विषेष लाभ प्राप्त होता है किंतु यदि शुक्र राहु या सूर्य से आक्रांत हो तो उसके विपरीत प्रभाव के अनुसार सुख में कमी का भी कारण बनता है। किसी भी जातक की कुंडली में शुक्र की दषा में मकान, वाहन घरेलू सुख में वृद्धि के साथ ही शुक्र अपनी दषा का फल अवष्य जातक को दिखाता है वह हैं राजरोग का लगना। राजरोग अर्थात् शुगर, कोलेस्ट्राल, वजन का बढ़ना इत्यादि रोग जिसे आधुनिक भाषा में राजरोग कहा जाता है। किसी जातक की कुंडली में शुक्र की दषा अथवा अंर्तदषा में खान-पान में परिवर्तन, सुख में वृद्धि तथा शारीरिक क्षमता में कमी आने का कारक शुक्र ग्रह है। शुक्र की दषा चलने पर बिना कुंडली की जानकारी के यह जाना जा सकता है कि यदि किसी जातक को खान-पान, घरेलू सुख में वृद्धि तथा मानप्रतिष्ठा में बढ़ोतरी का कारक शुक्र है। अतः इस दषा का विपरीत प्रभाव ताउम्र चलने वाली बिमारियों से भी लगाया जा सकता है। शुक्र की दषा में कोलेस्ट्राल का बढ़ना, शुगर का बढ़ना तथा मोटापा का बढ़ना इत्यादि प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यदि किसी को इस प्रकार से सुख में वृद्धि हो तो उसे शुक्र के विपरीत प्रभाव अर्थात् बिमारियों से बचाव हेतु ज्यादा मेहनत व्यायाम, तथा खान-पान में सर्तकता बरतने के साथ माता दुर्गा जी के दर्षन करना तथा दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए जिससे शुभ प्रभाव में र्वृिद्ध सुख में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव में कमी अर्थात् बिमारियों से बचाव में सहायता प्राप्त हो सके। 



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


              

कब होगा स्वयं का मकान, जानिए हस्तरेखा से

Image result for house cartoon

कब होगा स्वयं का मकान, जानिए हस्तरेखा से
जो लोग किराए के मकान में रहते हैं, उनका सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनका भी एक छोटा ही सही, लेकिन सुंदर सा मकान हो। जहां वह निश्चिंत होकर अपने परिवार के साथ रह सके। न मकान मालिक की टेंशन हो और न ही दूसरे किराएदारों की झिकझिक। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की हाथ की रेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि उस व्यक्ति का कभी अपना मकान भी होगा या नहीं, और यदि होगा तो यह स्थिति कब बनेगी। आज हम आपको उन रेखाओं के बारे में बता रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति के स्वयं के मकान के बारे में बताते हैं-
1- भूमि का ग्रह मंगल है। हस्तरेखा में मंगल का क्षेत्र से भूमि व भवन का पता चलता है। वस्तुत: मंगल का क्षेत्र का उच्च का होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग देता है। मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत का बली होना भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है।
2- हस्तरेखा में मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत के उपर किसी रेखा का होन भी ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
3- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत मजबूत हो तो भी ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर(भवन) बनाता है।
4- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत से कोई रेखा भाग्य रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति के पास अपना बंगला या महलनुमा भवन होता है जिसमें कलात्मक बगीचा या जलाशय होता है।
5- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो तो ऐसे व्यक्ति का भवन दूसरों से अलग, सुंदर आकर्षक एवं नूतन साज-सज्जा से युक्त होता है।
6- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो साथ में इन रेखाओ से चलकर कोई रेखा भाग्य या जीवन रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति को अचानक निर्मित भवन की प्राप्ति होती है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


बिमारियों की ज्योतिष वजह,कारण और निवारण

Image result for diseases clipart


वैदिक दर्षनों में ‘‘यथा पिण्डे तथा ब्रहाण्डे’’ कर सिद्धांत प्रचलित है, जिसके अनुसार सौर जगत में सूर्य और चंद्रमा आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों एवं क्रिया कलापों में जोे नियम है वही नियम मानव शरीर पर है। जिस प्रकार परमाणुओं के समूह से ग्रह बनें हैं उसी प्रकार से अनन्त परमाणुओं जिन्हें शरीर विज्ञान की भाषा में कोषिकाएॅ कहते हैं हमारा शरीर निर्मित हुआ है। ग्रह नक्षत्रों तथा शरीर सतत संबंध में हैं उनकी स्थिति तथा परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है इसका साक्ष्य जलवायु परिवर्तन से महसूस किया जा सकता है। मानव शरीर अग्नि, पृथ्वी, जल और वायु जैसे तत्वों से मिलकर यह नष्वर शरीर निर्मित हुआ है। ज्योतिष का फलित भाग इन ग्रहों, नक्षत्रों तथा राषियों के मानव शरीर पर प्रभाव का अध्ययन करता है। वैदिक मान्यता है कि पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अर्थात् पिछले जन्म में किया गया पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। वैदिक दर्षनों में कर्म के संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण ये तीन भेद माने जाते हैं। फलित ज्योतिष में संचित कर्म के फल का विचार आधार कुंडली या जन्मकुंडली में बने योगों द्वारा किया जाता है, जिसमें अंधत्व, काणत्व, मूकत्व या बधिरत्व आदि जन्मजात रोगों का विचार करते हैं। प्रारब्ध के फल का विचार दषाओं द्वारा किया जाता है जिसमें वात, पित्त या कफ के विपर्यय द्वारा उत्पन्न रोग तथा विकारों का विचार किया जाता है। क्रियमाण फल का विचार आहार-विहार आदि द्वारा किया जाता है, जिन्हें दषाओं और अंतरदषाओं के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। ज्योतिष ने पंचतत्वों में प्रधानता के आधार पर ग्रहों में इन तत्वों को अनुभव किया है कि रवि और मंगल अग्नि तत्व के ग्रह हैं और यह शरीर की ऊर्जा तथा जीने की शक्ति का कारक है। अग्नि तत्व की कमी से शरीर का विकास अवरूद्ध होकर रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। शुक्र और चंद्रमा जल तत्व के कारक हैं। जब शरीर में पोषण संचार का कारक है और शुक्राणु जल में जीवित रहकर सृष्टि के विकास तथा निर्माण में सहायक होता है। अतः जल तत्व की कमी से आलस्य और तनाव उत्पन्न कर शरीर की संचार व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है। बृहस्पति तथा राहु आकाष तत्व हैं और ये व्यक्ति के पर्यावरण तथा आध्यात्मिक जीवन से सीधा संबंध रखते हैं। बुध पृथ्वी तत्व है जोकि बुद्धि क्षमता तथा निर्णय की शक्ति दर्षाती है। शनि वायु तत्व है जोकि जीवन में वायु सदृष्य कार्य करती है। अतः जब ये ग्रह भ्रमण करते हुए संवेदनषील राषियों के अंगों को प्रभावित करते हैं तब इन अंगों को नुकसान होता है या उनका नाकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। संसार या तो नियमबद्ध सृष्टि है या नियमरहित। यदि सूर्य इत्यादि ग्रह पूर्ण अनुषासन, व्यवस्था एवं नियमितता का पालन करते हैं तो ब्रम्हाण्ड में दैवयोग या आकस्मिक घटना नाम की कोई चीज नहीं है। महर्षियों का मानना है कि ब्रम्हाण्ड में घटने वाली प्रत्येक घटना एक निष्चित नियम द्वारा बंधी है तो मनुष्य कर्म के नियमों द्वारा निष्चित तथा सुनियोजित है। ज्योतिष में ग्रहों का दूषित प्रभाव दूर करने के अनेक उपाय हैं। प्रयासों तथा अदृष्टफल की अनुभूति में तारतम्य कर सकता है। इसलिए कुंडली में ग्रहों का विवेचन कर आप निरोगी रह सकते हैं।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


तनाव से प्रभावित व्यवसाय

Image result for stress and business cartoon
तनाव से प्रभावित व्यवसायिक सफलता -

आज की आधुनिक जीवनषैली में तनाव का होना लाजिमी है। सुबह उठने से लेकर रात के अंतिम प्रहर तक कोई ना कोई बात या कार्य या व्यवहार तनाव का कारण बनता ही है। किंतु कई बार व्यक्ति तनाव के कारण इतना ज्यादा परेषान हो जाता है कि इस तनाव का असर उसके कैरियर या व्यवसायिक कार्य को भी प्रभावित करती है। तनाव के ज्यादा होने के कारण जातक का कार्य के प्रति अनिच्छा तथा अरूचि होने से उसके व्यवसायिक रिष्तों को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही इससे उसके इन रिष्तों का असर उसके व्यवसायिक कार्य पर पड़ने के कारण हानि उठाने की नौबत आने लगती है। इसके होने का कारण होता है कि जब भी जातक तनाव में होता है तो वह या तो किसी से बात करना पसंद नहीं करता या बात करता है तो उसकी शैली से नाराजगी जाहिर होती है, जिससे लोग उससे दूरी बनाने लगते हैं। ऐसा होने का कारण तनाव तो होता है चिकित्सकीय सलाह तनाव को कम करने हेतु दवाईयों द्वारा तथा उस परिस्थिति को ठहराया जा सकता है किंतु ज्योतिष आधार पर इस तनाव का कारण ज्ञात किया जाना ज्यादा आसान होता है। जब भी किसी जातक का तृतीयेष षष्ठम, अष्टम या द्वादष भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति तनाव का जल्दी ही षिकार होता है। जब भी इस ग्रह स्थिति में उस ग्रह की दषा या अंतरदषा चलती है तो व्यक्ति का तनाव उभरकर दिखाई देता है। इस तनाव से उस जातक का मनोबल कमजोर पड़ता है, जिससे उसके कार्य करने की अनिच्छा, लगातार बीमारी का अहसास तथा अकेले रहने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने से उसका व्यवसाय प्रभावित होता है। इस तनाव का कारण ज्ञात कर तनाव को कम करने की ज्योतिषीय उपाय कर तनाव को समाप्त कर व्यवसाय में लाभ की स्थिति बनाई जा सकती है। जातक की कुंडली का विवेचन कर तृतीयेष ग्रह की शांति, मानसिक तनाव का कारण दूर कर तथा सौंदर्य लहरी का नित्य पाठ कर व्यवसायिक स्थिति में वापस लाभ प्राप्त किया जा सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


तनाव से उत्पन्न मोटापा -

download (1)
तनाव से उत्पन्न मोटापा -

तनाव मनःस्थिति से उपजा विकार है। मनःस्थिति एवं परिस्थिति के बीच असंतुलन एवं असामंजस्य उत्पन्न होने के कारण तनाव पैदा होता है। तनाव के कारण मन पर गहरी दरार पड़ती है, जिससे कई प्रकार के मनोविकार दिखाई देते हैं, जिसके कारण मन अषांत होना, अस्वस्थता महसूस होने के साथ कई बार तनाव की इस स्थिति में लगातार भूख का अहसास होता है। चूॅकि तनाव में कार्य के प्रति अनिच्छा होने के साथ ही नींद कम होती है अतः इस स्थिति में लगातार भूख का अहसास होने से भोजन या किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ का लगातार सेवन करने के कारण व्यक्ति मोटापा का षिकार होने लगता है। अगर तनाव की दषा में भूख बढ़ गई हो या मोटापा बढ़े तो उस तनाव के कारण उत्पन्न मोटापा को दूर करने हेतु तनाव के कारण कारणों की खोज कर दूर करने हेतु ज्योतिषय निदान लाभकारी उपाय हो सकता है। चूॅकि तनाव के लिए जातक का तृतीयेष भाव या भावेष कारक होता है। अगर तनाव के कारण ओवर इटिंग हो तो इसका कारण जातक के तृतीयेष का षष्ठम, अष्टम या द्वादष स्थान में होने के साथ शनि या शुक्र का लग्नस्थ या चतुर्थ भाव में होकर राहु से पापाक्रंात होने पर या दूसरे या छठवें स्थान से किसी भी प्रकार से संबंध स्थापित करने पर जातक तनाव की स्थिति में ज्यादा भोजन करने लगता है। ऐसी स्थिति में तनाव को उत्पन्न उस ग्रह की शांति तथा उपाय कर तनाव को कम कर मोटापे को दूर किया जा सकता है। अगर तनाव के कारण मोटापा उत्पन्न हो रहा हो तो जातक को ग्रह शांति के साथ नित्य एक माला उॅ नमः भगवते वायुदेवाय का जाप करना चाहिए।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


परीक्षा के डर से उत्पन्न तनाव -


परीक्षा के डर से उत्पन्न तनाव -

परीक्षा के समय ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की होड़, साथी बच्चों से तुलना, लक्ष्य का पूर्व निर्धारित कर उसके अनुरूप प्रदर्षन तथा इसी प्रकार के कई कारण से परीक्षा के पहले बच्चों के मन में तनाव का कारण बनता है। परीक्षा में अच्छे अंक की प्राप्ति के लिए किया गया तनाव अधिकांषतः नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है क्योंकि तनाव के कारण स्मरणषक्ति कम होती है, जिसके कारण पूर्व में तैयार विषय भी याद नहीं रह जाता, घबराहट के कारण स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है, साथ ही अनिद्रा, सिरदर्द तथा स्टेसहार्मोन के कारण एकाग्रता की कमी से परीक्षा का परिणाम भी विपरीत आता है, जोकि डिप्रेषन का कारण बनता है। अतः परीक्षा के डर के कारण उत्पन्न तनाव को दूर करने हेतु ज्योतिषीय तथ्य का सहारा लिया जा सकता है। जब भी परीक्षा से पहले तनाव के कारण सिरदर्द या अनिद्रा की स्थिति बने तो तृतीयेष ग्रह को शांत करने का उपाय आजमाते हुए चंद्रमा तथा राहु की स्थिति तथा दषाओं एवं अंतरदषाओं का निरीक्षण कर उक्त ग्रहों के लिए उचित मंत्र जाप, दान द्वारा मनःस्थिति पर नियंत्रण किया जा सकता है। साथ ही ऐसे में जातक को चाहिए कि हनुमान जी के दर्षन कर हनुमान चालीसा का पाठ कर एकाग्रता बढ़ाते हुए शांत मन से पढ़ाई करनी चाहिए साथ ही मन को प्रसन्न करने का उचित उपाय आजमाने से तनाव से मुक्त हुआ जा सकता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


तनाव से खराब होते रिष्तें-


तनाव से खराब होते रिष्तें-

आज की प्रतिद्धंदिता की स्थिति तथा लगातार हर क्षेत्र में परेषानी, कार्य का दबाव, समय की कमी, कुंठाओं और भौतिकसंपन्नता की चाहत के कारण व्यवहार का चिड़चिड़ापन तथा क्रोध ज्यादातर स्थिति में नजदीकी रिष्तों को प्रभावित करता है। जब व्यक्ति तनाव में होता है तो वह अपने सबसे नजदीकी रिष्तों के प्रति असहिष्णुता का व्यवहार कर बैठता है जबकि साथी को उसके तनाव के कारण की अज्ञानता उस व्यवहार की सच्चाई से अनभिज्ञता के कारण रिष्तों में भी तनाव देती हैं ऐसी स्थिति में रिष्तों में भी दूरी बढ़ने से उस जातक का तनाव लगातार चरम पर होता है और रिष्तें दूर से दूर होते जाते हैं और कई बार इसी तनाव के कारण दोस्ती का टूटना, जीवनसाथी से तलाक की नौबत तक आ जाती है। इस तनाव को समझने के लिए जातक के तृतीयेष, सप्तम, पंचम तथा एकादष भाव या भावेष संबंध किसी भी प्रकार से षष्ठम, अष्टम या द्वादष स्थान या राहु के साथ लग्न में या तीसरे स्थान में शनि होने से जातक का व्यवहार कठोर हो जाता है, जिससे उसके रिष्ते प्रभावित होते हैं और इस तनाव का असर सबसे ज्यादा उसके रिष्तों के दरार के रूप में दिखाई देती है। तनाव के कारण इस बढ़ती दूरी को कम करने हेतु शनिवार का व्रत, काली वस्तुओं के दान के साथ मंगलगौरी की पूजा करने से तनाव कम करने के साथ रिष्तों में आपसी सामंजस्य उत्पन्न होती है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



तनाव से उत्पन्न अवसाद -



तनाव से उत्पन्न अवसाद -

वर्तमान युग की आरामदायी जीवनषैली तथा भौतिकतावादी वस्तुओं की भरमार के बीच उच्च प्रतिस्पर्धी और असुरक्षित जीवन को सुरक्षा तथा सुविधा संपन्न बनाने के प्रयास में अपने कैरियर को उच्च दिषा तथा दषा देने की चाह जहाॅ हर माता-पिता के मन में होती है वहीं इसकी पैठ बाल उम्र से बच्चों को स्वयं जकड़ लेती है, जिससे अच्छा कैरियर तथा उच्च जीवनषैली अथवा विदेष में अच्छी नौकरी प्राप्ति हेतु प्रयास के फेर में कई बार बहुत बुद्धिमान तथा योग्य बच्चे भी अपने प्रदर्षन से स्वयं असंतुष्ट होकर तनाव में आ जाते हैं तथा कई बार यह तनाव अपनो के द्वारा अज्ञात रह जाने के कारण अवसाद की स्थिति भी निर्मित होती है। बच्चों के कैरियर या लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में छोटी सी असावधानी कई योग्य बच्चों के तनाव तथा अवसाद से उनके कैरियर के भटकाव का कारण भी बनता है। तनाव या अवसाद की विभिन्न स्थिति को कुंडली के माध्यम से बहुत अच्छी प्रकार विष्लेषित किया जा सकता है। यदि किसी जातक का तृतीयेष बुध होकर अष्टम स्थान में हो तो जल्दी तनाव में आने का कारण बनता है वहीं किसी प्रकार से क्रूर ग्रह या राहु से आक्रांत या दृष्ट होने पर यह तनाव अवसाद में जाने का प्रमुख माध्यम बन जाता है। जब बुध की दषा या अंतरदषा चले तो ऐसे में तनाव को होना प्रभावी रूप से दिखाई देता है। ऐसे में व्यक्ति को कम नींद, आहार तथा व्यवहार में अंतर दिखाई देता है। इस प्रकार तनाव का प्रभाव उस जातक के प्रदर्षन पर भी दिखाई देता है। अतः यदि किसी भी प्रकार से तृतीयेष बुध अष्टम में हो और बुध की दषा या अंतरदषा चले तो जातक को बुध की शांति के साथ गणपति के मंत्रों का वैदिक जाप हवन तर्पणा मार्जन आदि कराकर हरी वस्तुओं के सेवन के साथ तनाव से बाहर आकर सामान्य प्रयास करने से भी अवसाद आने में मददगार साबित होती है।

कर्ज से मुक्ति कैसे पाएँ जाने ज्योतिष द्वारा


कर्ज से मुक्ति हेतु ज्योतिषीय उपाय -

वर्तमान दौर में व्यक्ति को कर्ज लेना ना केवल आवष्यक बल्कि मजबूरी भी है। आज के आधुनिक दौर में सभी आवष्यक कार्यो हेतु कर्ज लेना पड़ता फिर वह बच्चों की षिक्षा विवाह के लिए हो या मकान वाहन के लिए। हर अहम परिस्थिति में कर्ज लेना जरूरी हो गया है। कई बार कुछ कर्ज आसानी से चुक जाते हैं तो कई कर्ज बोझ बढ़ाने का ही कार्य करते हैं। अतः यदि कर्ज लेते समय नक्षत्र, लग्न एवं राषि पर विचार करते हुए अपनी ग्रह दषाओं के अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्णय लेते हुए कर्ज लिया जाए तो बोझ ना होकर ऐष्वर्या तथा उन्नति बढ़ाने का साधन भी बन सकता है। अतः 27 नक्षत्रों में से 1.अष्विनी, 2.मृगषिरा, 3.पुनवर्सु, 5.चित्रा, 6.विषाखा, 8.अनुराधा, 9.श्रवण, 10.ज्येष्ठा, 11.धनिष्ठा, 12.षतभिषा, 13.रेवती ये नक्षत्र कर्ज हेतु उचित नक्षत्र हैं, जिनमें लिया गया कर्ज चुकाने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता वहीं पर हस्त, भरणी, पुष्य, स्वाति इत्यादि नक्षत्र कर्ज लेने हेतु प्रतिकूल फल देते हैं। उसी प्रकार चर लग्न में कर्जा लेना इसलिए उचित होता है क्योंकि इस लग्न में कर्ज आसानी से चुक जाता है किंतु इस लग्न में कर्ज देना उचित नहीं होता। वहीं पर द्विस्वभाव लग्न में लिया गया कर्ज चुकान के उपरांत भी चुका हुआ नहीं दिखता। स्थिर लग्न में लिया गया कर्ज चुकाने में बहुत कष्ट, विवाद की संभावना होती है अतः इन लग्नों में कर्ज लेने से बचना चाहिए। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अपनी राषि तथा ग्रह स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कर्ज लेना या देना चाहिए। अगर कोई ग्रह प्रतिकूल हैं उनकी स्थिति तथा दषाओं में कर्ज लेने से बचना ही तनाव से मुक्ति का सरल उपाय है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



कालसर्प दोष



कालसर्प दोष का ज्योतिषीय यर्थाथ -

ज्योतिषीय आधार पर कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है ‘‘काल’’ और ‘‘सर्प’’ । काल का अर्थ समय और सर्प का अर्थ सांप अर्थात् समय रूपी सांप। ज्योतिषीय मान्यता है कि जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के मध्य आ जाते हैं या एक ओर हो जाते हैं तो कालसर्प येाग बनता है। मान्यता है कि जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है, उसके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कालसर्प योग में सभी ग्रह अर्धवृत्त के अंदर होता है। ऋग्वेद के अनुसार राहु और केतु ग्रह नहीं है बल्कि असुर हैं। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिससे सूर्य ग्रहण होता है उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चंद्रग्रहण लगता है। वैदिक परंपरा में विष्णु को सूर्य कहा गया है जो कि दीर्धवृत्त के समान है। राहु केतु दो संपात बिंदु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिंदुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने पर कालसर्प बनता है। जो व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।
ज्योतिषीय मान्यता है कि राहु और केतु छायाग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवेंभाव पर होते हैं जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तो कालसर्प दोष बनता है। राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं। राहु जिनकी कुंडली में अनुकूल फल देने वाला होता है, उन्हें कालसर्प दोष में महान उपलब्धियां हासिल होती हैं। इस दोष में जातक से परिश्रम करवाता है और उसके अंदर की कमियां को दूर करने की प्रेरणा देता है जिससे व्यक्ति जुझारू, संघर्षषील और साहसी बनता हैं इस योग के प्रभाव में अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग और निरंतर आगे बढ़ने हेतु सदा परिश्रम करने से कालसर्प दोष योग बन सकता है। कालसर्प योग में स्वराषि एवं उच्च राषि में स्थित गुरू, उच्च राषि का राहु, गजकेषरी योग, चतुर्थ केंद्र विषेष लाभ प्रदान करता है। अकर्मण्य होने तथा उसके परिणामस्वरूप निराष होकर प्रयास छोड़ने से कालसर्प दोष बन जाता है किंतु लगनषील तथा परिश्रमी बनकर प्रयास करने से कालसर्प दोष ना रहकर योग बन जाता है। कालसर्प दोष में परिश्रमी तथा लगनषील बनने के साथ पितृदोष निवारण उपाय तथा राहु शांति कराना भी उचित होता है।



Pt.P.S Tripathi
Landline no-0771-4050500




निरंतर बदलाव हेतु प्रयास - केतु की दषा



निरंतर बदलाव हेतु प्रयास - केतु की दषा -

निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


विदेष यात्रा तथा ज्योतिषीय योग -

Image result for aeroplane cartoon

विदेष यात्रा तथा ज्योतिषीय योग -
प्राचीन काल में विदेष यात्रा अषुभ माना जाता था, संभवतः जिसके कारण प्राचीन पुस्तकों में विदेष यात्रा के लिए किसी विषेष कारक का उल्लेख नहीं किया गया है। परंतु प्राचीन काल में जहाज यात्रा का जिक्र अवष्य है, जोकि प्रायः लंबी दूरी की यात्रा या विदेष की यात्रा मानी जाती थी। आधुनिक काल में विदेष यात्रा तथा वहाॅ निवास करने की महत्ता इतनी ज्यादा है कि प्रायः हर व्यक्ति जानना चाहता है कि वह जीवन में विदेष यात्रा कर पायेगा या नहीं अथवा उसकी कुंडली में विदेष यात्रा के योग हैं कि नहीं। किसी व्यक्ति की विदेष यात्रा से संबंधित जानकारी हेतु उस व्यक्ति का लग्नाधिपति, द्वादषेष, नवमभाव तथा नवमाधिपति तथा सप्तमेष या सप्तमाधिपति पर विचार किया जाता है। छोटी यात्रा को तीसरे स्थान तथा दूरस्थ स्थान पर निवासरत होने के लिए चतुर्थेष को भी महत्व दिया जाना चाहिए। यदि किसी जातक के लग्नाधिपति की अपे्रक्षा द्वादषेष उत्तम स्थिति में हो, या उच्च तथा मित्र राषि में हो तो जातक जन्मभूमि में सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थेष, पंचमेष और नवमेष परस्पर संबंधित हो तो जातक उच्च षिक्षण हेतु विदेष जाता है। यदि इनका संबंध बुध ग्रह से हो तो जातक षिक्षा, अनुसंधान, अध्ययन या लेखन कार्य हेतु यदि इनका संबंध बृहस्पति ग्रह से हो तो प्रोफेसर या व्याख्यान हेतु जाता है। नवमाधिपति और दसमाधिपति संबंधित हो तो जातक जीवनवृत्ति अथवा व्यवसाय या नौकरी हेतु विदेष जाता है। इनके साथ यदि षष्ठेष की भी युति हो तो जातक सरकारी कार्य से विदेष जाता है तथा उसे नियोक्ता द्वारा भेजा जाता है। यदि द्वादषेष तथा दषमेष एवं एकादषेष का संबंध हो तो जातक राजनैतिक उद्देष्य से विदेष यात्रा करता है। यदि सप्तमाधिपति तथा सूर्य का संबंध भी बन रहा हो तो राजनयिक या षिष्टमंडल के रूप में विदेष प्रवास करता है। यदि द्वादषेष, लग्नाधिपति का संबंध किसी प्रकार से शुक्र या सप्तमेष से स्थापित हो रहा हो तो विवाह के उपरांत विदेष प्रवास के योग बनते हैं। यदि एकादषेष तथा द्वादषेष का संबंध किसी प्रकार से शुक्र और शनि का संबंध बन रहा हो तो कला या हुनर के प्रदर्षन हेतु विदेष प्रवास कर यष प्राप्त करता है। यदि कमजोर लग्नाधिपति तथा षष्ठेष से संबंध स्थापित हो रहा हो तो चिकित्सा कारणों से विदेष प्रवास होता है। यदि नवमेष या द्वादषेष का पापग्रहों से प्रभाव हो तो धृणित कार्यो अथवा अपराध हेतु विदेष जाना बनता है। यदि द्वादषेष तथा नवमेष का संबंध शनि एवं बृहस्पति से संबंध स्थापित हो रहा हो तो धार्मिक कर्म या आध्यात्मिक उद्देष्य हेतु विदेष प्रवास करता है। इस प्रकार किसी जातक की जन्म कुंडली तथा निरयणभाव का सूक्ष्म अध्ययन कर विदेष प्रवास के योग तथा कारणों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है साथ ही ग्रहों के गोचर के अनुसार ग्रह दषाओं में विदेष यात्रा का समय ज्ञात किया जा सकता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



ज्योतिष विवेचन से जाने अपना कर्म क्षेत्र -



ज्योतिष विवेचन से जाने अपना कर्म क्षेत्र -
शिक्षा पूर्ण करते ही हर व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकता होती है धन कमाना। किंतु कई बार व्यक्ति असमंजस में होता है कि उसे नौकरी करनी चाहिए या व्यापार। कई बार व्यक्ति नौकरी में असफल या शिक्षा में असफल होने पर व्यापार करना चाहता है। किंतु कभी भी किसी प्रकार का व्यापार करने से पूर्व अपनी जन्म कुंडली की विवेचना कर कर यह जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए कि उसे कौन सा व्यापार लाभ देगा। इसके अतिरिक्त यह भी देख लेना चाहिए कि व्यापार या कार्य की दिशा कौन सी होगी। साझेदारी में व्यापार फलदायी होगा या नहीं। यदि साझेदारी में व्यापार सफल होगा तो किस राशि, नक्षत्र के व्यक्ति के साथ व्यापार उचित होगा। साथ ही अपने कार्य-व्यवसाय में सहायक ग्रह नक्षत्र एवं प्रतिकूल ग्रह दशाओं की जानकारी तथा उससे संबंधित उपाय आपके व्यापार को सफल ही नहीं बनाते अपितु आपको अच्छी व्यवसायिक सफलता के साथ पर्याप्त मात्रा में धन, ऐश्वर्या तथा यश भी दिलाते हैं। अतः व्यापार से धन कमाने के लिए किस माध्यम से धन प्राप्ति का योग बन सकता है, इसके लिए आपकी कुंडली का लग्न, तृतीयेश, सप्तमेश, भाग्येश, दशमेश एवं चंद्रमा से दशम में कौन सा ग्रह बलवान होगा यह देखना चाहिए। लग्न या चंद्र लग्न से दशम का स्वामी तथा उस राशि का स्वामी किस नंवाश में है, उससे संबंधित व्यापार से धन प्राप्त होने के योग बनते हैं। अगर दशमेश स्थिर है तो अपने देश में धन कमाने के योग और चर राशि का हो तो विदेश से धन कमाने के योग बनते हैं और यदि द्विस्भाव है तो दोनों स्थानों से धन प्राप्ति में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही तृतीयेश अगर बलवान नहीं है या प्रतिकूल स्थिति में स्थित होगा तो आपका मनोबल कम होने से भी आपको कार्य में अच्छी सफलता प्राप्त होने में बाधक हो सकता हैै। अतः यदि आप व्यापार से संबंधित क्षेत्र से धन कमाने के इच्छुक हैं तो सर्वप्रथम अपने ग्रह दशाओं के अतिरिक्त ग्रह स्थिति एवं साझेदारी में संबंधित व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर उचित समय, स्थान, वित्तीय स्थिति, साझेदारी का फैसला करते हुए सावधानी से निर्णय आपको धन प्राप्ति में सहायक होगा।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

शनि प्रभाव

Image result for शनि

शनि प्रभाव -दबंगता तथा आत्मनिर्भरता -

सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। किसी व्यक्ति की कुंडली में इन स्थिति में शनि का प्रभाव या किसी भी स्थान पर शनि की उपस्थिति व्यक्ति को स्व-प्रेरणा से कार्य करने की आदत देता है यदि लग्न या पंचम या सप्तम तथा सप्तमेष पर शनि किसी भी प्रकार से प्रभाव डालें तो व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार रिष्ता स्वीकार करता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


रिष्तों में बाधक अहंकार:दूर करने के ज्योतिषीय उपाय



किसी व्यक्ति का व्यवहार मधुर होने के लिए उसका लग्नेष तथा तृतीयेष की बलवान और शुभ स्थान पर स्थिति होना चाहिए, जिससे पारस्परिक आनंद का कारण बनता है। किसी दो व्यक्ति का लग्नेष, तृतीयेष एवं सप्तमेष का जन्म कुंडली में शुभ भावों में युति या दृष्टि संबंध हो अथवा दोनों का एक दूसरे के नवांष में हों तो परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है। इन पर किसी भी ग्रह की क्रूर दृष्टि का ना होना उनके रिष्तों में कभी भी मतभेद नहीं ला सकता है। लग्नेष, तृतीयेष एवं सप्तमेष एक दूसरे से 6, 8 या 12 भाव में हो तो परस्पर शत्रु भाव से रिष्तो में कटुता आती है तथा जीवन बाधित होता है। 6, 8 या 12 भाव के स्वामी होकर तृतीय या सप्तम भाव से संबंध स्थापित होने पर सुख में बाधा का कारण बनता है। इसके अलावा लग्नेष, तृृतीयेष या सप्तमेष का निर्बल होकर क्रूर स्थान या क्रूर ग्रहों के साथ होना भी मित्रवत् तथा मधुर रिष्तों में दुख तथा कष्ट का कारण बनता है। द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम या द्वादष भाव पर क्रूर ग्रह का होना भी मधुरता को कम करने का कारण बनता है। यदि किसी के जीवन में किसी विषेष रिष्तों में कटुता तथा कष्ट उत्पन्न हो रहा हो तो उसे अपने जीवन में मधुर तथा सामंजस्य लाने हेतु विधि पूर्वक नकुल मंत्र का जाप कराना चाहिए या स्वयं करना चाहिए। जिस प्रकार नकुल ने अहि का विच्छेद करके सत्य का रूप धारण किया उसी प्रकार अपने जीवन में मधुरता की कामना से नकुल मंत्र -‘‘ यथा नकुलो विच्छिद्य संदधात्यहिं पुनः। एवं कामस्य विच्छिन्नं स धेहि वो यादितिः।। का जाप दुर्गादेवी के षोडषोपचार पूजन के उपरांत विधिवत् संकल्प लेकर इस मंत्र का जाप करने से रिष्तों की समस्त विषमाताएॅ समाप्त होकर जीवन में सुख प्राप्त होता है।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



मैनेजमेंट में कैरियर कैसे बनाएँ :ज्योतिष विश्लेषण



मैनेजमेंट में कैरियर कैसे बनाएँ :ज्योतिष विश्लेषण
इस वैष्वीकयुग में अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान तथा कंपनियाॅ कार्य कर रहीं हैं। अब देष में ही बैठकर विदेषी कंपनियों में सर्विस प्राप्त करने के चांस उपलब्ध हैं। हर कंपनी में मार्केटिंग मैनेजमेंट, फायनेंस मैनेजमेंट, ह्मेन रिसोर्स मैनेजमेंट, एड मैनेजमेंट, कंसल्टेंसी, टूरिज्म के साथ कई अनेक क्षेत्र मैनेजमेंट हेतु खुले हुए हैं, जिसमें कार्य तथा वेतन का स्तर लुभावना होता है। आज का हर युवा तथा परिवार चाहता है कि अच्छी आय तथा जीवन सुखपूर्वक हो। किसी जातक के जीवन में आय तथा बहुराष्टीय कंपनी में कार्य हेतु कितनी संभावना है इसका पता आपके मैनेजमेंट संबंधी षिक्षा की संभावना से जाना जा सकता है। एमबीए की षिक्षा हेतु ज्योतिषीय गणना में कुंडली कके लग्न या लग्नेष, तृतीयेष, पंचम या पंचमेष, गुरू तथा प्रबंध का कारक बुध तथा इन सभी का संबंध व्यक्ति के एमबीए में सफलता तथा क्षेत्र को दर्षाता है। यदि गुरू तथा बुध का संबंध या दृष्टि संबंध लाभभाव से बन रहा हो तो जातक फायनेंस से संबंधित क्षेत्र में एमबीए करता है। सूर्य से संबंध स्थापना करने पर कंसल्टेंट से संबंधित एमबीए का कार्य करता है। वहीं शनि या मंगल से संबंधित होने पर मार्केटिंग से संबंधित क्षेत्र बनता है। इस प्रकार अन्य ग्रहों का संबंध गुरू या बुध से बनने पर एमबीए कर उच्च पद पर आसीन होने तथा प्रारंभ से ही उच्च वेतन प्राप्ति हेतु जानकारी लेने तथा कमी को दूर करने हेतु ज्योतिष विष्लेषण करना कैरियर के नये क्षेत्र में सफलता का द्वार खोल सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


कैरियर में सफलता कैसे पाएँ:ज्योतिष विश्लेषण



कैरियर में सफलता कैसे पाएँ

एजुकेषन तथा कैरियर में सफलता एवं उन्नति हेतु जातक में अनेक गुण होने चाहिए, जोकि एक ही व्यक्ति में संभव नहीं है। किसी व्यक्ति के पास वाकशक्ति होती है तो किसी के पास कार्यनिष्ठा तो कोई कार्य में दक्ष होने से सफल होता है।
किसी व्यक्ति में कार्यक्षमता का स्तर कितना है यह शनि की स्थिति से देखना चाहिए। यदि शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे।
किसी व्यक्ति में यदि अच्छी समझ होगी तो उसे समझने में दिक्कतों का सामना कम करना पड़ेगा। किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि गुरू उत्तम स्थिति या अनुकूल हो तो उसकी समझने की क्षमता अच्छी होगी। साथ ही स्मरणशक्ति प्रबल बनाने में भी गुरू का प्रभाव होता है, जिससे सही समय तथा सही जगह पर उसे प्रयोग करने से अच्छी सफलता की प्राप्ति हो सकती है।
किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए।
इस प्रकार व्यक्तित्व के साथ प्रयास का स्तर तथा बौद्धिक क्षमता किसी जातक के उन्नति तथा सफलता में सहायक होता है। यदि इन में किसी प्रकार की परेषानी हो रही हो तो उस क्षेत्र विषेष से संबंधित उपाय तथा आवष्यक सावधानी इच्छुत सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान बनाता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


Wednesday, 6 May 2015

सलमान खान

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज के सवाल जवाब 06/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज का पंचांग और सलमान खान के बारे में 06/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


मनोरोग और ज्योतिष



मनोरोग और ज्योतिष -

मनोरोग या मानस रोग मस्तिष्क रोग है। व्यक्ति का मस्तिष्क संसार में आष्र्चयजनक विकास और विनाष का कारक होता है। भारतीय विद्वान मानते हैं कि मस्तिष्क की स्थिरता, प्रसन्नता एवं सम अवस्था में रहने पर ही व्यक्ति का विकास साकारात्मक होता है। मन की प्रसन्नता हो तो बृद्धि विकसित होती है अथवा मन में तीव्र मानसिक उलझन, चिंता, विषाद हो तो विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किंतु ज्योतिष गणना द्वारा मनोरोग को जाना जा सकता है। ज्योतिष गणना के अनुसार लग्न मस्तिष्क का घोतक होता है और तीसरा स्थान मन का कारक होता है। किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, लग्नेष तृतीयेष या तीसरा स्थान छठवां, आठवां या बारहवा हो अथवा क्रूर ग्रहों से दूषित हो तो जातक हो मनोरोग होने की संभावना होती है। विषेषकर सूर्य अथवा चंद्रमा क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर कहीं भी हो तो भी मनोरोग हो सकता है चूॅकि चंद्रमा मन का कारक होता है वहीं सूर्य आत्मा का। मंगल क्रोध का कारक होता है अतः यदि ये ग्रह मंगल से आक्रांत हो तो जातक मनोरोग में क्रोधी प्रवृत्ति का होता है। इसी प्रकार राहु से आक्रांत होने पर कल्पनाषील, विभिन्न ग्रहों के अनुसार पागलपन में व्यक्ति का व्यवहार अलग हो सकता है। कई बार मनोरोग के कारण नींद ना आना, बुरे ख्याल आना, सपना या लोगों के प्रति नाकारात्मक व्यवहार, हिस्टीरिया, नषे का आदि आदि दिखाई देता है। पंचमेष का अष्टम या द्वादष में होने पर भी मानसिक रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। मनोरोग को दूर करने हेतु मन को मजबूत करने के उपाय तथा ग्रह शांति कराना चाहिए।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


सामाजिक अपराध - ज्योतिष कारक -

Image result for social crime

सामाजिक अपराध - ज्योतिष कारक -

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का एक सदस्य है और समाज के अन्य सदस्यों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्य उसके प्रति प्रक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रया उस समय प्रकट होती है जब समूह के सदस्यों के जीवन मूल्य तथा आदर्ष ऊॅचे हों, उनमें आत्मबोध तथा मानसिक परिपक्वता पाई जाए साथ ही वे दोषमुक्त जीवन व्यतीत करते हों। परिणाम स्वरूप एक स्वस्थ समाज का निमार्ण होगा तथा समाज में नागरिकों का योगदान भी साकारात्मक होगा। साथ ही लगातार होने वाले अपराध, हिंसा से समाज को मुक्त कराने में भी उपयोगी कदम उठाया जा सकता है। समाज और संस्कृति व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिमान होता है, जिसमें आवष्यक नियंत्रण किया जाना संभव हो सकता है। सामाजिक तौर पर व्यवहार को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक स्तर पर विद्यालय जिसमें स्कूल में बच्चों के आदर्ष उनके षिक्षक होते हैं। षिक्षकों के आचरण व व्यवहार, रहन-सहन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके सौहार्दपूण व्यवहार से साकारात्मक और विपरीत व्यवहार से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है। सामाजिक विकास में सहभागी होने के लिए ज्योतिष विषलेषण से व्यक्ति की स्थिति का आकलन कर उचित उपाय अपनाने से जीवन मूल्य में सुधार लाया जा सकता है जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी बच्चे की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल षिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्षाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर षिक्षा तथा षिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अतः मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेष अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

किस्मत खराब होने का ज्योतिष सच -




किस्मत खराब होने का ज्योतिष सच -

पुरूषार्थ का महत्व भाग्य से अधिक है साथ ही अधिकांष लोगो की मान्यता होती है कि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती जितना कर्म किया जाता है उसी के अनुरूप फल मिलता है किंतु जीवन की कई अवस्थाओं पर नजर डाले तो भाग्य की धारणा से इंकार नहीं किया जा सकता। भारतीय शास्त्र में कर्म को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जोकि क्रमषः संचित कर्म, क्रियामाण कर्म और प्रारब्ध है। जो वर्तमान में कर्म किया जाता है वहीं क्रियामाण कर्म कहा जाता है जिसका कोई फल अभी हमें प्राप्त नहीं है अर्थात् वहीं कर्म भविष्य में संचित कर्म बनता है। इन्हीं संचित कर्म में से जिसका फल हमें प्राप्त हो जाता है वह चाहें अच्छा हो या बुरा प्रारब्ध कहा जा सकता है। अब देखें कि संचित कर्म का विचार - वह कर्म जिसका परिणाम हमें वर्तमान में नहीं प्राप्त होता माना जाता है कि वह किसी भी जनम में प्राप्त हो सकता है जिसका उल्लेख आप वंषषास्त्र से कर सकते हैं क्योंकि जन्म के समय किसी भी प्रकार के कर्म के बिना भी जीव उच्च-नीच, अमीर-गरीब, स्वस्थ या अस्वस्थ होने के तौर पर प्राप्त करता है जिसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में जातक के जन्मकुंडली के पंचम या पंचमेष के आधार पर किया जा सकता है। कर्म का दूसरा भाग है प्रारब्ध। प्रारब्ध को अपने इसी जन्म में भोगना हेाता है अर्थात इसे उत्पति कर्म भी कहा जा सकता है जोकि व्यक्ति के जींस तय कर देते हैं कि उसका प्रारब्ध क्या होगा अर्थात् गर्भधारण के समय ही उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। प्रयत्न के बिना ही पैदा होते ही जो कुछ प्राप्त होता है या अप्राप्त रह जाता है वह प्रारब्ध होता है। कुंडली में प्रारब्ध केा नवम भाव या नवमेष से देखा जा सकता है। अब कर्म के तीसरे स्वरूप क्रियामाण को देखें। क्रियामाण अर्थात् जो वर्तमान में कर्म चल रहा है मतलब इसे हम पुरूषार्थ कह सकते हैं। भारतीय मान्यता है कि इंसान के 12 वर्ष अर्थात् कालपुरूष के भाग्य के एक चक्र के पूरा होने के उपरांत क्रियामाण का दौर शुरू हो जाता है जोकि जीवन के अंत तक चलता है। अब व्यक्ति की षिक्षा उसकी रूचि सामाजिक स्थिति पारिवारिक तथा निजी परिस्थिति पसंद नापसंद, प्रयास तथा उसमें सकाकरात्मक या नाकारात्मक सोच से व्यक्ति का क्रियामाण उसके जीवन को प्रतिकूल या अनुकूल स्थिति हेतु प्रभावित करता है अतः पुरूषार्थ या क्रियामाण कर्म ही संचित होकर प्रारब्ध बनता है अतः जीवन के सिर्फ कर्म के आधार पर नहीं वरन् कर्म और भाग्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है जोकि कुंडली के पंचम, नवम और दषम स्थान से देखा जाता है इसमें प्रयास का स्तर, मनोभाव या सहयोग कि स्थिति देखना भी आवष्यक होता है जोकि कुंडली के अन्य भाव से निर्धारित होता है अतः मानव जीवन में भाग्य का भी अहम हिस्सा होता है।



 Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


कर्ज से मुक्ति हेतु ज्योतिषीय उपाय -



कर्ज से मुक्ति हेतु ज्योतिषीय उपाय -

वर्तमान दौर में व्यक्ति को कर्ज लेना ना केवल आवष्यक बल्कि मजबूरी भी है। आज के आधुनिक दौर में सभी आवष्यक कार्यो हेतु कर्ज लेना पड़ता फिर वह बच्चों की षिक्षा विवाह के लिए हो या मकान वाहन के लिए। हर अहम परिस्थिति में कर्ज लेना जरूरी हो गया है। कई बार कुछ कर्ज आसानी से चुक जाते हैं तो कई कर्ज बोझ बढ़ाने का ही कार्य करते हैं। अतः यदि कर्ज लेते समय नक्षत्र, लग्न एवं राषि पर विचार करते हुए अपनी ग्रह दषाओं के अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्णय लेते हुए कर्ज लिया जाए तो बोझ ना होकर ऐष्वर्या तथा उन्नति बढ़ाने का साधन भी बन सकता है। अतः 27 नक्षत्रों में से 1.अष्विनी, 2.मृगषिरा, 3.पुनवर्सु, 5.चित्रा, 6.विषाखा, 8.अनुराधा, 9.श्रवण, 10.ज्येष्ठा, 11.धनिष्ठा, 12.षतभिषा, 13.रेवती ये नक्षत्र कर्ज हेतु उचित नक्षत्र हैं, जिनमें लिया गया कर्ज चुकाने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता वहीं पर हस्त, भरणी, पुष्य, स्वाति इत्यादि नक्षत्र कर्ज लेने हेतु प्रतिकूल फल देते हैं। उसी प्रकार चर लग्न में कर्जा लेना इसलिए उचित होता है क्योंकि इस लग्न में कर्ज आसानी से चुक जाता है किंतु इस लग्न में कर्ज देना उचित नहीं होता। वहीं पर द्विस्वभाव लग्न में लिया गया कर्ज चुकान के उपरांत भी चुका हुआ नहीं दिखता। स्थिर लग्न में लिया गया कर्ज चुकाने में बहुत कष्ट, विवाद की संभावना होती है अतः इन लग्नों में कर्ज लेने से बचना चाहिए। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अपनी राषि तथा ग्रह स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कर्ज लेना या देना चाहिए। अगर कोई ग्रह प्रतिकूल हैं उनकी स्थिति तथा दषाओं में कर्ज लेने से बचना ही तनाव से मुक्ति का सरल उपाय है।




Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

कालसर्प दोष का ज्योतिषीय यर्थाथ -



कालसर्प दोष का ज्योतिषीय यर्थाथ -

ज्योतिषीय आधार पर कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है ‘‘काल’’ और ‘‘सर्प’’ । काल का अर्थ समय और सर्प का अर्थ सांप अर्थात् समय रूपी सांप। ज्योतिषीय मान्यता है कि जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के मध्य आ जाते हैं या एक ओर हो जाते हैं तो कालसर्प येाग बनता है। मान्यता है कि जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है, उसके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कालसर्प योग में सभी ग्रह अर्धवृत्त के अंदर होता है। ऋग्वेद के अनुसार राहु और केतु ग्रह नहीं है बल्कि असुर हैं। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिससे सूर्य ग्रहण होता है उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चंद्रग्रहण लगता है। वैदिक परंपरा में विष्णु को सूर्य कहा गया है जो कि दीर्धवृत्त के समान है। राहु केतु दो संपात बिंदु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिंदुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने पर कालसर्प बनता है। जो व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।
ज्योतिषीय मान्यता है कि राहु और केतु छायाग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवेंभाव पर होते हैं जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तो कालसर्प दोष बनता है। राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं। राहु जिनकी कुंडली में अनुकूल फल देने वाला होता है, उन्हें कालसर्प दोष में महान उपलब्धियां हासिल होती हैं। इस दोष में जातक से परिश्रम करवाता है और उसके अंदर की कमियां को दूर करने की प्रेरणा देता है जिससे व्यक्ति जुझारू, संघर्षषील और साहसी बनता हैं इस योग के प्रभाव में अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग और निरंतर आगे बढ़ने हेतु सदा परिश्रम करने से कालसर्प दोष योग बन सकता है। कालसर्प योग में स्वराषि एवं उच्च राषि में स्थित गुरू, उच्च राषि का राहु, गजकेषरी योग, चतुर्थ केंद्र विषेष लाभ प्रदान करता है। अकर्मण्य होने तथा उसके परिणामस्वरूप निराष होकर प्रयास छोड़ने से कालसर्प दोष बन जाता है किंतु लगनषील तथा परिश्रमी बनकर प्रयास करने से कालसर्प दोष ना रहकर योग बन जाता है। कालसर्प दोष में परिश्रमी तथा लगनषील बनने के साथ पितृदोष निवारण उपाय तथा राहु शांति कराना भी उचित होता है।



Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in