Friday, 5 June 2015

मानसून का मिजाज और ज्योतिषीय गणना -

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भारत की लगभग आधी से ज्यादा आबादी खेती के लिए बारिश पर निर्भर है, लेकिन बीते एक दशक में मानसून का मिजाज काफी बदल गया है. मानसून पर प्रदूषण और गर्मी के दिनों में जंगलों में आग लगने की वजह से पैदा हुए धुएं कारण गर्मियों में अब भारत के ऊपर भूरे रंग की एक धुएं की परत छाने की वजह से सूर्य की किरणें परावर्तित हो जाती हैं. मानसून का आना और सूर्य की किरणों का परावर्तित होना अलग अलग घटनाएं हैं, लेकिन जब ये दोनों टकराती हैं तो मानसून का व्यवहार बदल जाता है. भारत में बारिश के स्वभाव में आए बदलाव की वजह से हिमालयी राज्यों में कई नदियां रास्ता बदल चुकी हैं अब बारिश बहुत ज्यादा और लंबे समय तक हो रही है. इसकी वजह से नदियां लबालब हो रही हैं साथ ही जमीन की उर्वरता और जैव विविधता को भी भारी नुकसान हुआ है. इन घटनाओं का अगर हम ज्योतिषीय विवेचन करें तो देखते हैं कि बीते कुछ समय से, विषेषकर जब से राहु कलयुग में प्रभावी हुआ है तब से ही प्लीस्टिक या फाईबर की चीजों का चलन आरंभ हुआ और साथ ही जब से नीच के शनि का उच्चस्थ शनि की ओर भ्रमण चल रहा है और गुरू का गोचर में विपरीत प्रभाव शुरू हुआ तब से ही इंसान मनमर्जी करने के कारण राहु संबंधी चीजों का उपयोग कर वातावरण के प्रति असहिष्णु हो गया है, जिसके कारण प्रदूषण और भौतिकता की अति के कारण जंगल की कमी से वातावरण में इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। बीते कई सालों से चल रही इस प्रकार की प्रक्रिया को अब जब शनि और गुरू गोचर में उच्च तथा अनुकूल राषि में चल रहे हैं तब कठोरता से प्रकृति के नियमों का पालन
करते हुए पृथ्वी तथा इंसान को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

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सिकलसेल से बचने के ज्योतिषीय उपाय-



सिकल सेल रोग माता-पिता से प्राप्त असामान्य जीन से उत्पन्न आनुवांशिक विकार है। सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं, अस्थि-मज्जा में बनती हैं व उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्तवाहिकाओं में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं का आकार अर्धचंद्र/हंसिया(सिकल) जैसा हो जाता है। ये असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। अवरूद्ध रक्त प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और विभिन्न अंगो को क्षति पहुँचाता है। सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और सामान्यतः मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। सिकलसेल होने का ज्योतिषीय कारण है कि जब भी सप्तम भाव, नवम भाव या भावेष छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए या इन ग्रहों पर राहु की दृष्टि हो जाए अथवा चंद्रमा शनि से पापाक्रांत होकर इन ग्रहों पर अपना असर दिखाए या लग्न में राहु अथवा शनि हो साथ ही शनि, मंगल अथवा चंद्रमा राहु से आक्रांत हो तो ऐसे जातक को सिकलसेल की बीमारी आसानी से पकड़ती है, यदि इसके साथ अष्टम या नवम भाव भी राहु ग्रसित हो अनुवांषिक बीमारी होने की स्थिति बनती है अतः ऐसे जातक कोे सिकलसेल की बीमारी होती है। अतः किसी विद्वान ज्योतिषीय से अपनी कुंडली का विष्लेषण कराकर उपर्युक्त ग्रह स्थिति में से कोई दोष बन रहा हो तो उसका उपयुक्त निदान लेना चाहिए।



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वट सावित्री व्रत-स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व



स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपी विष्णुः स्याद्वरूपी शिवो यतः
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। अतः किसी मंदिर में या बरगद (वट) के पेड़ के नीचे बैठ कर इस दिन व्रत पूजा करने का विधान है। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को हिन्दू महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं । भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है।
वट सावित्री व्रत और पूजन---

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार मीठा भोजन करना चाहिए। इस वर्ष वट सावित्री का व्रत रविवार (17  मई, 2015 ) को भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि में हैं।

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स्कीन एलर्जी और ज्योतिषीय कारण

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खुजली या एलर्जी दरअसल यह त्वचा की दर्द तंत्रिकाओं की उत्तेजना है। जब हमारी तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं, तो हमें खुजलाहट का अनुभव होता है, इसमें दर्द का अहसास नहीं होता। त्वचा में एलर्जी अथवा खुजली की समस्या से कमोबेश सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है, जो कि स्कैबीज, जुआ, दाद, पायोडरमा, तेज गर्मी, कीड़े के काटने, एलर्जी या त्वचा के सूख जाने इत्यादि से हो सकती है। किंतु कई लोगों की यह आम समस्या होती है जो उन्हें अकसर होती रहती है। जिसे मेडिकल सांईस द्वारा नहीं जाना जा सकता है कि किसी को क्यू लगातार एलर्जी होती है। किंतु ज्योतिषीय गणना द्वारा पता चलता है कि अगर लग्न, तीसरे, छठवे, एकादष अथवा द्वादष स्थान में शनि या इन स्थानों के ग्रह स्वामी शनि से आक्रांत हों अथवा लग्न तीसरे स्थान में राहु हो तो ऐसे जातक को स्कीन एलर्जी की संभावना होती है। अगर इनकी ग्रह दषाएॅ चले तो ये समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। अतः किसी जातक को लगातार ऐसे परेषानी दिखाई दे तो अपनी कुंडली में इन स्थानों में उपस्थित शनि अथवा राहु की शांति कराना, आहार में एलर्जी उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए।


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मधुमेह की बीमारी और ज्योतिषीय वजह-

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मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। बीमारी में शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त में ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। किंतु इसका ज्योतिषीय कारण भी है। अगर किसी जातक की कुंडली में शुक्र शुभ भाव में हो और शुक्र की दषा चले अथवा शुक्र क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो जाए तो शुक्र या राहु की दषा में मधुमेह जैसी बीमारी की शुरूआत होती है। अतः अपनी कुंडली का समय पूर्व विष्लेषण कराकर अपने ग्रह दषाओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अगर आपकी कुंडली में शुक्र इत्यादि ग्रहों की उपयुक्त स्थिति बन रही हो तो चिकित्सकीय निदान के साथ आवष्यक ज्योतिषीय उपाय भी आजमाना चाहिए जिससे बेहतर स्वास्थ्य एवं सुख की प्राप्ति हो सके।


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प्रेम में पंगा क्यू ????

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सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे आधुनिक काल में प्रेम का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। यह प्रेम जब माता-पिता, भाई-बहनों, दोस्त-रिष्तेदारों से हो सकता है तब किसी से भी होता है। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।


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अब शनि का ही भरोसा -

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वर्तमान परिवेष में जब शुचिता और न्याय का अपना कार्य प्रषासन स्तर पर संभव नहीं और लोगो का भरोसा शासन और प्रषासन से उठता जा रहा है। वहीं पर कुछ समय से लगातार वरिष्ठ और ताकतवर लोगों के न्यायिक प्रक्रिया द्वारा दोषी ठहराये जाने से ये साबित होता है कि अब धरातल पर न्याय और शुचिता स्थापित करने में कानून व्यवस्था को आगे आना ही पड़ेगा। किंतु कानून अपना कार्य भी तब ही कर पा रहा है जब दंडाधिकारी की महती भूमिका का निर्वाह संभव है अर्थात् तुला एवं वृष्चिक का शनि अब अपना काम कर रहा है और न्याय की धारा बहती दिख रही है। अतः जिस ने भी अन्याय किया या अन्याय का साथ दिया उसे जरूर ही अब सोचना चाहिए। शनि ने अपना दंड उठा लिया है...सावधान वृष्चिक का शनि अपनी चाल से चल


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जानिये आज के सवाल जवाब 1 05/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज के सवाल जवाब 05/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज का राशिफल 05/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से





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जानिये आज 05/06/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "क्या आपकी बॉस से नहीं पटती-ज्योतिषीय कारक




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जानिये आज का पंचांग 05/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से





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Thursday, 4 June 2015

बचत का ज्योतिषीय पहलू -


बचत क्या है? असल में बचत कमाई के बाद की गई खर्च के बाद भी बची हुई कमाई है। अर्थात् यदि आपकी कमाई खर्च से ज्यादा होगी तब ही आपकी बचत होगी और यदि आपकी कमाई खर्च से कम होगी तब आपके उपर ब्याज होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि यदि आपको बचत करना होगा तो निष्चित ही आपको अपनी कमाई बढ़ानी होगी। यदि इसे हम ज्योतिषीय रूप में देखें तो कमाई को हम एकादष स्थान से और व्यय को द्वादष स्थान से देखते हैं तब यदि एकादष स्थान बलि होगा तो कमाई अधिक तथा यदि द्वादष स्थान बलि होगा तो खर्च अधिक। अतः यदि एकादष स्थान बलि हो तब ही किसी जातक के जीवन में बचत संभव है। इस प्रकार यदि बचत करना हो तो अपने एकादष स्थान के ग्रह की गणना कर उस ग्रह को बली बनाकर बचत संभव है.. इसके लिए एकादष भाव के स्वामी ग्रह की ग्रह शांति.. मंत्रजाप... एव दान करें...

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अनुषासन लड़को को सिखाने से रूक सकता है अपराध जाने ज्योतिषीय विष्लेषण-

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      समाज ही नहीं अपितु प्रकृति प्रदत्त अंतर भी मनुष्य में दिखाई देती है। ज्योतिषीय रूप में देखें तो पुरूष अर्थात् मेष राषि का मंगल और कन्या अर्थात् तुला राषि का शुक्र यहीं से बल का अंतर प्रकृति प्रदत्त है। इसी प्रकार मेष लग्न से तीसरा स्थान बुध और तुला से तीसरा स्थान धनु का स्वामी गुरू। बुध और बृहस्पति अर्थात् सोच का अंतर बुध जहाॅ तनाव और एडिक्षन देता है वहीं गुरू संतुलित व्यवहार प्रदान करता है, आप देखेंकि ज्यादातर पुरूष किसी ना किसी प्रकार के एडिक्षन के आदी होते हैं वहीं कितना भी तनाव सहकर भी कोई महिला व्यसन नहीं करती। मेष से एकादष अर्थात् दैनिक दिनचर्या को देखें तो शनि और तुला से एकादष स्थान सूर्य अर्थात् दैनिक जीवन में भी सूर्य की गंभीरता लड़कियों को ज्यादा एकाग्र बनाता है वहीं शनि जिद्द और भटकाव देता हैं इस प्रकार कुंडली के द्वादष भाव से सभी प्रकार के व्यवहारिक और भावनाओ को दर्षाता है। इस लिए जब भी किसी परिवार में लड़को और लड़कियों को षिक्षा तथा संस्कार देने की बात हो तो उनकी प्रकृति के अनुरूप समाज तथा समय-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हमेषा ही अनुषासन एवं नियम का पालन कराने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार कुंडली के अनुसार सामाजिक रूप से पनप रहे अन्याय और अव्यवस्था को रोकने हेतु लड़को के जीवन में भी ज्यादा अनुषासन, सहिष्णुता का पालन कराने हेतु उपाय आजमाने का प्रयास करना चाहिए। ना सिर्फ लड़कियों के लिए अपितु लड़को के जीवन में भी बंधन, नियम तथा संस्कार का समावेष एक सुरक्षित तथा सौम्य माहौल के लिए जरूरी है।


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विश्व में शान्ति हेतु मनायें बुद्ध पूर्णिमा -

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भगवान बुद्ध ने बैसाख पूर्णिमा ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया। सृष्टि में गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे महापुरुष रहे जिनका जन्म भी इस दिन हुआ है और उनकी मृत्यु भी इसी दिन हुई थी। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने कठिन तपस्या कर बोधित्व प्राप्त किया उसका रोपण भी बैसाख पूर्णिमा को ही हुआ था। बैसाख पूर्णिमा के शुभ अवसर को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। मनुष्य जितना अधिक अधीर एवं असंयमी है मानसिक तनावों का शिकार हो कर लोभी, कामी, क्रोधी और हिंसक को उठा है। मानवीय मूल्यों का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। ऐसी हालत में गौतम बुद्ध के सिद्धांतों का प्रतिपादित आज ज्यादा प्रासंगिक है। यदि भगवान बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग पर हम चलने लगें तो विश्व को शान्ति के मार्ग पर आगे ले जा सकते हैं।
ज्योतिषीय विद्या अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

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मर्यादा रेखा का पालन ही जीवन में सफलता का मूलमंत्र -


जीवन को समृद्धशाली एवं सुखहाल बनाने के लिए व्यक्ति को सुशील, सदाचारी एवं संस्कावान होना आवश्यक है, यही वह कारण हैं जिनके द्वारा आत्मविश्वास एवं बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। जब भी व्यक्ति अपने समस्त कामों में अनुशासन का पालन करता है तो उसके विचार भी व्यवस्थित हो जाते हैं। किंतु उसके विपरीत यदि उसके जीवन में अपने या परिवार या समाज द्वारा बनाई गई मर्यादा रेखा का उल्लंघन होता है, तब से उसके जीवन में तबाही प्रवेष कर जाती है। इस तबाही को किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथमतः उसके एकादष स्थान, तीसरा स्थान एवं उसके गोचर की दषाओं के द्वारा जाना जा सकता है। यदि किसी की कुंडली में लग्न, तीसरे या एकादष स्थान में राहु या इन स्ािानों के स्वामी ग्रह विपरीत भाव में बैठ जाए तो ऐसे लोगो के जीवन में अनुषासन विलुप्त हो जाता है और इसी समय यदि राहु, शनि या शुक्र की दषा भी चल जाए तो ये सोने में सुहागा का कार्य करता है अतः किसी भी उम्र में यदि इस तरह के विपरीत भाव दिखाई दें तो जीवन में तबाही को रोकने के लिए ग्रहों की शांति कराना, मंत्रों का जाप एवं व्रत रखना चाहिए।


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