समाज ही नहीं अपितु प्रकृति प्रदत्त अंतर भी मनुष्य में दिखाई देती है। ज्योतिषीय रूप में देखें तो पुरूष अर्थात् मेष राषि का मंगल और कन्या अर्थात् तुला राषि का शुक्र यहीं से बल का अंतर प्रकृति प्रदत्त है। इसी प्रकार मेष लग्न से तीसरा स्थान बुध और तुला से तीसरा स्थान धनु का स्वामी गुरू। बुध और बृहस्पति अर्थात् सोच का अंतर बुध जहाॅ तनाव और एडिक्षन देता है वहीं गुरू संतुलित व्यवहार प्रदान करता है, आप देखेंकि ज्यादातर पुरूष किसी ना किसी प्रकार के एडिक्षन के आदी होते हैं वहीं कितना भी तनाव सहकर भी कोई महिला व्यसन नहीं करती। मेष से एकादष अर्थात् दैनिक दिनचर्या को देखें तो शनि और तुला से एकादष स्थान सूर्य अर्थात् दैनिक जीवन में भी सूर्य की गंभीरता लड़कियों को ज्यादा एकाग्र बनाता है वहीं शनि जिद्द और भटकाव देता हैं इस प्रकार कुंडली के द्वादष भाव से सभी प्रकार के व्यवहारिक और भावनाओ को दर्षाता है। इस लिए जब भी किसी परिवार में लड़को और लड़कियों को षिक्षा तथा संस्कार देने की बात हो तो उनकी प्रकृति के अनुरूप समाज तथा समय-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हमेषा ही अनुषासन एवं नियम का पालन कराने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार कुंडली के अनुसार सामाजिक रूप से पनप रहे अन्याय और अव्यवस्था को रोकने हेतु लड़को के जीवन में भी ज्यादा अनुषासन, सहिष्णुता का पालन कराने हेतु उपाय आजमाने का प्रयास करना चाहिए। ना सिर्फ लड़कियों के लिए अपितु लड़को के जीवन में भी बंधन, नियम तथा संस्कार का समावेष एक सुरक्षित तथा सौम्य माहौल के लिए जरूरी है।
Pt.P.S Tripathi
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