सौभाग्य सुंदरी व्रत -
एक समय की बात है कि नारद अनेक-अनेक लोकों का भ्रमण करते हुए जीवों को दुखी देखकर पितामह ब्रम्हाजी के पास पहुॅचे और उन्होंने ब्रम्हाजी से अलग-अलग योनि में सुख दुख पाते हुए व्याधिग्रस्त दुखी जीवो के दुख का कारण पूछा। तब ब्रम्हाजी ने कहा वत्स, ये जो पंच महाभूतो से बना शरीर कर्म रूपी बीज का पौधा है। जिन्होेंने दान किए वे सुखी व सुदंर होते हैं। तप के प्रभाव से बलि व सुभग होते हैं। इसके विपरीत निंदा, धन का अपहरण, दान ना करने वाले जीव क्रमषः दरिद्री, व्याधिग्रस्त तथा दुर्भग होते हैं। तब नारद ने ब्रम्हाजी से सभी मनुष्यों के लिए ऐसा कर्म पूछा कि जिससे सभी सौभाग्यवान और सुंदर हों। तब ब्रम्हाजी ने कहा कि भगवान शंकर ने ब्रम्हार्षि वषिष्ठ पर कृपा करके सौभाग्य सुंदरी का व्रत कहा था, वह मैं तुमसे कहता हूॅ। एक समय की बात है मेघवती नाम की दासी जो कुरूप तथा दुर्भाग्यषाली थी वह किसी को पहुॅचाने एक ब्राम्हण के घर गई। वहाॅ ब्राम्हण देवता बहुत सी स्त्रियों को सौभाग्य सुंदरी व्रत की कथा सुना रहे थे। जो सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। ज्ञान वैराग्य देने वाली है। भगवान षिव कहते हैं कि एक दिन पावर्ती को यह कथा मैंने सुनाई थी। जिसके प्रभाव से पावर्ती को सुंदर रूप तथा सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस व्रत को मेघवती ने भी यत्नपूर्वक किया। जिसके प्रभाव से वह परमसुंदरी, सुषीला, सर्वलक्षण युक्त निषादराज की कन्या बनी। चूॅकि उसने जूठा अन्न खाया था इस कारण वह निषादयोनि में उत्पन्न हुई। चूॅकि उसने दान नहीं दिया था इस कारण उसे भोगने के लिए कुछ नहीं मिला परंतु व्रत के प्रभाव से वह पतिव्रता हुई। यह व्रत मार्गषीर्ष माह के कृष्णपक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसमें अपामार्ग (चिचड़ा) के दातून से व्रत करना चाहिए और भगवती पावर्ती का पूजन करना चाहिए। इस व्रत की पावर्ती सौभाग्य सुंदरी या वषिनी के नाम से जानी जाती हैं। सौभाग्य सुंदरी का व्रत वर्षभर के तृतीया का व्रत होता है। इस दिन जल में आंवला डालकर अध्र्य दें दे तथा कंकोल का प्रासन रात में करें। घी, शक्कर मिले बटको का नैवेद्य करें। घी का दीपक जलाकर रात्रि जागरण करें। इस नियम से इस व्रत को करने से सभी प्रकार की कामनाएॅ पूर्ण होती हैं।
Pt.P.S Tripathi
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