Monday, 22 June 2015

पितृदोष का एक प्रमुख कारण भू्रण हत्या -


वैदिक शास्त्रों तथा पुराणों में सौभाग्यवती पतिव्रता नारी तथा कुमारी कन्याओं को देवी का प्रतीक माना गया है, वहीं मनुस्मृति में तो यहाँ तक कह दिया है कि- ‘‘एक आचार्य दस अध्यापकों से श्रेष्ठ हैं, एक पिता सौ आचार्यों से श्रेष्ठ है और एक माता एक हजार पिताओं से श्रेष्ठ है।’’ इतनी सारी विशेषताओं से समन्वित एक नारी अपनी स्वाभाविक ममता का गला घोंटकर उसके गर्भ में पल रहे जीव की हत्या या भू्रण हत्या जैसे कर्म की साक्षी बनती है तब उसके ममता तथा नारित्व पर जो बीतती है वह उस माॅ को ही पता होता है। उस हत्या को कैसे सामान्य हत्या से परे माना जा सकता है? गर्भ का जीव भी एक स्वतंत्र मानव-प्राणी है। गर्भधान के प्रथम क्षण से ही उसकी विकास यात्रा प्रारंभ हो जाती है। यह उत्तरोत्तर विकास-क्रिया जीव के बिना असंभव है। जब एक कण में आत्मा का वास होता है तब एक भू्रण या मानव का किसी भी रूप में समय से पूर्व मृत्यु को प्राप्त करने पर उसकी अतृप्त वासनायें बाकी रह ही जाती हैं। चूॅकि उस भू्रण का गर्भ में आते ही आत्म का वास हो जाता है अतः उसको मारने का प्रयास किया जाय या मार दिया जाय तो पितृ दोष का असर शुरू हो जाता है, इस तरह जीव हत्या का पाप पूरे वंष को भोगना होता है।
धर्म सिंधु ग्रंथ के पेज नं.-222 एवं 223 उल्लेख है कि ऐसे जातक को जिन्हें इस प्रकार के पितृदोष को दूर करने वास्तु नारायणबलि और नागबलि करना उचित है। यह नारायणबलि और नागबलि शुक्लपक्ष की एकादषी में, पंचमी में अथवा श्रवण नक्षत्र में किसी नदी के किनारे देवता के मंदिर में करना चाहिए। ये पूजा अम्लेष्वर घाम में खारून नदी के तट पर भगवान शंकरजी के मंदिर में शास्त्रोक्त विधि विधान से होती है।
Pt.P.S Tripathi
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