Wednesday, 17 June 2015

जन्मजन्मांतरण की भारतीय अवधारणा



संसार में कुछ वर्ग विशेष के लोग यह मानते हैं कि व्यक्ति का बार-बार जन्म नहीं होता तथा प्रत्येक व्यक्ति का केवल एक ही जन्म होता है। इस धारणा को यदि सच मान लिया जाए तो मानव जीवन से जुड़े ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त नहीं हो पाते जिनका प्राप्त होना अति आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो क्या कारण है कि संसार में कोई व्यक्ति राजा के घर जन्म लेता है जबकि वहीं कोई दूसरा व्यक्ति किसी निर्धन अथवा भिक्षु के घर जन्म लेता है। जहां कोई व्यक्ति जीवन भर भांति-भांति के सुखों का भोग करता है, वहीं कोई अन्य व्यक्ति आजीवन दुखों को ही झेलता रहता है। कोई आजीवन स्वस्थ रहता है तो कोई जन्म से ही अथवा छोटी आयु से ही विभिन्न प्रकार के रोगों से पीडि़त रहता है। किसी का ध्यान धर्म कर्म के कार्यों में बहुत लगता है जबकि किसी अन्य की रुचि केवल अर्धम तथा अनैतिकता में ही रहती है। यदि कोई पिछला जन्म नहीं होता तो क्यों विभिन्न प्रकार के व्यक्ति संसार में विभिन्न प्रकार के स्वभाव तथा भाग्य लेकर आते हैं और क्या है ऐसा विशेष जिससे किसी व्यक्ति का भाग्य निश्चित होता है।
ऐसे और ऐसे बहुत से प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हिंदु धर्म के वेद-शास्त्रों तथा महापुरुषों द्वारा समय-समय पर संसार को प्रदान किये गये मार्गदर्शन का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है जिसके अनुसार व्यक्ति के वर्तमान जीवन में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का सीधा संबंध व्यक्ति के पिछले जन्मों से जड़ा हुआ है तथा व्यक्ति के वर्तमान जीवन के अच्छे बुरे कर्मों का संबंध उसके भविष्य के जन्मों से जुड़ा हुआ है। भारत भूमि पर सदियों से ही अध्यात्म, कर्मवाद तथा ज्योतिष जैसी धारणाओं का अपना एक विशेष स्थान रहा है तथा समय-समय पर विभिन्न वर्गों के लोगों ने इनसे मार्गदर्शन भी प्राप्त किया है। इन धारणाओं में विश्वास रखने वाले लोगों के मन में यह प्रश्न समय-समय पर उठता रहता है कि आखिर क्यों किसी व्यक्ति के बार-बार जन्म होते रहते हैं और पुनर्जन्म के क्या संभव कारण हो सकते हैं या होते हैं। आईए आज इस लेख के माध्यम से यह चर्चा करते हैं कि किसी आत्मा के बार-बार जन्म लेकर भूलोक पर आने के क्या संभव कारण हो सकते हैं।
किसी भी आत्मा विशेष के बार-बार जन्म लेकर भूलोक पर आने के मुख्य दो कारण अच्छे-बुरे कर्मों का भोग और उस आत्मा विशेष द्वारा विभिन्न जन्मों में लिये गये संकल्प होते हैं। इस लेख के माध्यम से हम इन दोनों ही कारणों का बारी बारी से विश्लेषण करेंगे तथा देखेंगे कि किस प्रकार अच्छे बुरे कर्मों के फलों से बंधी तथा अपने संकल्पों से बंधी कोई आत्मा विशेष बार-बार जन्म लेती है।
अच्छे बुरे कर्मों के भोग के कारण होने वाले पुनर्जन्मों के बारे में जानने से पूर्व आईए पहले यह जान लें कि वास्तव में अच्छे या बुरे कर्म जिन्हें सुकर्म या कुकर्म भी कहा जाता है, ऐसे कर्म वास्तव में होते क्या हैं। वैसे तो अच्छे और बुरे कर्मों की परिभाषा कई बार इतनी उलझ जाती है कि बड़े से बड़े पंडितों के लिए भी ये तय कर पाना कठिन हो जाता है कि किसी समय विशेष पर किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किया जाने वाला कोई कर्म अच्छा है या बुरा, किंतु अधिकतर मामलों में कुछ सरल दिशानिर्देशों के माध्यम से अच्छे और बुरे कर्म का निर्धारण किया जा सकता है। जन सामान्य के समझने के लिए यह आसान नियम बहुत उपयोगी है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा किये गये किसी कार्य से दूसरों का लाभ होता है तो ऐसे कर्म अच्छा कर्म है तथा यदि किसी व्यक्ति द्वारा किये गये किसी कार्य से दूसरों को हानि होती है तो ऐसा कर्म बुरा कर्म है अर्थात जिससे किसी दूसरे का भला हो, ऐसे कर्म को सुकर्म कहते हैं तथा जिससे किसी दूसरे को हानि या क्षति हो, ऐसे कर्म को दुष्कर्म कहते हैं।
अच्छे बुरे कर्मों की मूल परिभाषा समझ लेने के पश्चात आइए अब देखें कि किस तरह से बुरे और यहां तक कि अच्छे कर्म भी किसी आत्मा के बार-बार जन्म लेने का कारण बन सकते हैं। कोई भी आत्मा जब अपने किसी जन्म विशेष में विभिन्न प्रकार के बुरे कर्म करती है तो उस उन बुरे कर्मों के लिए निश्चित फल भुगतने के लिए पुन: जन्म लेकर आना पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति ने अपने किसी जीवन में अपनी पत्नि का बहुत उत्पीडऩ किया है अथवा उसने अपने उस जन्म में अपने लाभ के लिए बहुत से व्यक्तियों को कष्ट पहुंचाये हैं या फिर उसने किसी व्यक्ति की हत्या जैसा जघन्य कर्म किया है तो इन सब बुरे कर्मों के लिए विधि के विधान में निश्चित फल भुगतने के लिए ऐसे व्यक्ति को पुन: जन्म लेकर आना पड़ेगा और अपने बुरे कर्मों के फल भुगतने पड़ेंगे। इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार के बुरे कर्म होते हैं जिन्हें करने की स्थिति में किसी आत्मा विशेष को ऐसे कर्मों के फलों के भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेने पड़ सकते हैं। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अपने किसी पिछले जन्म में किये गये बुरे कर्मों का फल भगतने के लिए एक नये जन्म में आई हुई आत्मा अधिकतर उस नये जन्म में भी कई प्रकार के बुरे कर्म कर देती है जिनके फल भुगतने के लिये उस पुन: जन्म लेकर आना पड़ता है। इस प्रकार बुरे कर्म करने का और फिर उनके फल भुगतने का यह क्रम चलता रहता है और इस क्रम के फेर में फंसी आत्मा बार-बार जन्म लेती रहती है।
बुरे कर्मों के पश्चात आईए अब देखें कि किसी व्यक्ति के द्वारा किये गए अच्छे कर्म कैसे उस व्यक्ति के पुनर्जन्म का कारण बन सकते हैं। अनेक व्यक्ति तो इस बात को सुनकर ही आश्चर्य करने लग पड़ते हैं कि अच्छे कर्म करने से भी बार-बार जन्म लेना पड़ सकता है और यदि ऐसा होता है तो क्यों। इसका कारण समझने के लिए मान लीजिए किसी व्यक्ति ने अपने किसी जन्म में किसी मंदिर में कोई बड़ी धन राशि दान में दे दी या इस मंदिर के निर्माण अथवा विस्तार के लिए अन्य कोई अच्छा कर्म कर दिया तथा साथ ही साथ यह इच्छा भी रख ली कि इस दान अथवा इस अच्छे कर्म के फलस्वरूप इसे इसका कोई इच्छित फल प्राप्त हो जैसे कि बहुत सा धन प्राप्त हो या बहुत यश प्राप्त हो या ऐसा ही कुछ और प्राप्त हो। अब इस अच्छे कर्म के बदले में मांगा गया फल, आवश्यक नहीं है कि इस व्यक्ति को इसके उसी जन्म में प्राप्त हो जाये क्योंकि ऐसा संभव है कि किन्हीं सीमितताओं के चलते अथवा किन्हीं अन्य कारणों के चलते इस व्यक्ति द्वारा मांगा गया फल उसे इस जन्म में प्राप्त न हो सकता हो। ऐसी स्थिति में ऐसे अच्छे कर्म का फल व्यक्ति के अगले जन्म तक के लिए स्थगित हो जाता है तथा ऐसे व्यक्ति को उस फल की प्राप्ति के लिए पुन: जन्म लेना पड़ता है क्योंकि इस व्यक्ति ने अपने उस अच्छे कर्म के फल की कामना की थी तथा नियति के नियम के अनुसार अब इस व्यक्ति को वह फल तो प्राप्त होना ही है फिर भले ही इस व्यक्ति को उस फल की प्राप्ति के लिए एक जन्म और भी लेना पड़े। इसी प्रकार अपने किसी जन्म विशेष में कोई भी व्यक्ति विशेष फल की इच्छा रखते हुए अनेक प्रकार के अच्छे कर्म करता है जिनमें से कुछ कर्मों के फल तो उसे उसी जीवन में प्राप्त हो जाते हैं किंतु कुछ अच्छे कर्मों के फल अगले जन्म के लिए स्थगित हो जाते हैं जिसके कारण ऐसे व्यक्ति को पुन: जन्म लेना पड़ता है और अपने अगले जन्म में भी ऐसे ही कुछ फल की ईच्छा के साथ किये गए अच्छे कर्मों के कारण ऐसे व्यक्ति को पुन: एक और जन्म लेना पड़ पड़ सकता है और इस प्रकार बार-बार जन्म लेने का यह क्रम चलता रहता है।
यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि अच्छे कर्म का फल प्राप्त करने के लिये किसी व्यक्ति को पुन: जन्म तभी लेना पड़ता है जब उस व्यक्ति ने ऐसा अच्छा कर्म करते समय फल की इच्छा की हो। यदि कोई व्यक्ति अपने किसी जन्म में अनेक ऐसे अच्छे कर्म करता है जिनके लिये ऐसा व्यक्ति फल की इच्छा नहीं रखता तो ऐसे बिना फल की इच्छा रखे किये गये अच्छे कर्म व्यक्ति के पुनर्जन्म का कारण नहीं बन सकते क्योंकि इस व्यक्ति ने तो अपने अच्छे कर्मों का फल मांगा ही नहीं अथवा चाहा ही नहीं जिसके चलते इन कर्मों के भुगतान के लिए पुनर्जन्म नहीं होता। इसी को निष्काम कर्म कहते हैं अर्थात ऐसा कर्म जो एक अच्छा कर्म है किन्तु उसे करने के समय कर्ता ने किसी भी प्रकार के फल की इच्छा नहीं की है। इसलिए किसी व्यक्ति के अच्छे कर्म उसके पुनर्जन्म का कारण केवल तभी बन सकते हैं जब इन कर्मों को करते समय ऐसे व्यक्ति ने इन कर्मों के शुभ फलों की इच्छा की हो, अन्यथा नहीं।
कुछ लोग कई बार ऐसा प्रश्न भी पूछ लेते हैं कि इस प्रकार तो यदि हम बुरा कर्म करके उसके फल की इच्छा भी न करें तो ऐसा बुरा कर्म भी निष्काम कर्म हो जाएगा और इस प्रकार हमें बुरे कर्म के फल का भुगतान करने के लिए भी पुन: जन्म नहीं लेना पड़ेगा। यह केवल एक भ्रांति ही है कि बुरा कर्म भी निष्काम हो सकता है तथा इस तथ्य को भली प्रकार से समझने के लिए सबसे पहले यह जान लें कि बुरे कर्म का फल एक ऋण की भांति होता है जबकि अच्छे कर्म का फल एक कमाई की भांति और जैसा कि हम सब जानते ही हैं की जिस व्यक्ति ने किसी से ऋण लिया हो, ऐसे ऋण को माफ कर देना ऋण लेने वाले के हाथ में नहीं होता तथा इसलिये चाह कर भी कोई ऋण लेने वाला व्यक्ति केवल अपनी इच्छा मात्र से उस ऋण से अपने आप को मुक्त करने का संकल्प लेकर ऋण मुक्त नहीं हो सकता तथा ऋण से वास्तविक मुक्ति के लिये इस व्यक्ति को यह ऋण चुकाना ही पड़ेगा। इस लिए बुरे कर्म को बिना फल की इच्छा से करने के पश्चात भी उसका फल भोगना ही पड़ता है। वहीं पर किसी अच्छे कर्म का फल हमारी कमाई होता है या हमारी जमापूंजी होता है तथा इसे ठीक उसी प्रकार अपने संकल्प से छोड़ा जा सकता है जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी कमाई या जमापूंजी को छोड़ सकता है। बिना फल की इच्छा के किया गया शुभ कर्म ही निष्काम कर्म कहलाता है तथा सभी प्रकार के कर्मों में केवल निष्काम कर्म ही ऐसा कर्म है जो व्यक्ति के बार-बार जन्म लेने का कारण नहीं बनता। इसका कारण भी बहुत स्पष्ट ही है, आपने परिश्रम किया और आपने उस परिश्रम का फल न लेने का निश्चय किया। परिश्रम का फल लेना या न लेना परिश्रम करने वाले की इच्छा पर ही निर्भर करता है तथा संसार में प्रत्येक व्यक्ति को नि:शुल्क परिश्रम करने की स्वतंत्रता प्राप्त है किंतु संसार में किसी भी व्यक्ति को ऋण लेकर अपने आप ही उस ऋण को माफ करने की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है तथा ऐसे ही नियम अच्छे बुरे कर्मों के फलों के विधान में भी सत्य होते हैं।
इस लिये यहां इस बात को जान लेना और समझ लेना आवश्यक है कि जन्म के बाद जन्म लेने की इस यात्रा में किसी आत्मा के मोक्ष अथवा मुक्ति प्राप्त करने में जितनी बड़ी बाधा बुरे कर्म होते हैं, उतनी ही बड़ी बाधा फल की ईच्छा रखकर किये गये अर्थात सकाम अच्छे कर्म भी होते हैं क्योंकि दोनों ही स्थितियों में आपको ऐसे कर्मों के फल भुगतने के लिये पुन: जन्म लेना पड़ता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि आत्मा की मुक्ति की यात्रा में बुरे कर्म लोहे की बेडिय़ां जबकि सकाम अच्छे कर्म सोने की बेडिय़ां हैं किंतु बेड़ी तो बेड़ी ही है फिर चाहे वह लोहे की हो अथवा सोने की। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि बार-बार जन्म लेने के इस क्रम से आपको छुटकारा प्राप्त हो तथा आपको मोक्ष अथवा मुक्ति प्राप्त हो तो उसके लिये आवश्यक है कि आप बुरे कर्मों को करना बंद कर दें तथा अच्छे कर्मों को करते समय उनके फल की इच्छा को त्याग दें अर्थात ''निष्कामÓÓ अच्छे कर्म करें जिसके चलते आपको ऐसे कर्मों के फल भुगतने के लिये पुन: जन्म नहीं लेना पड़ेगा।


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