विष्वव्यापी आतंक का नया नाम है ... इंफ्लुएंजा वाइरस जो एच1एन1 की वजह से फैलती है। प्रांरभ में इस रोग का वायरस सुअरों से इंसानों में फैला और फिर इंसानों के इंसानों से संपर्क में आने के कारण पूरी दुनिया को चपेट में लेता गया। अमरीका में 1976 का स्वाइन फ्लू- 5 फरवरी, 1976 को अमरीका के फोर्ट डिक्स में अमरीकी सेना के सैनिकों को थकान की समस्या होने लगी बाद में पता लगा कि यह बीमारी स्वाइन फ्लू ही है और एच1एन1 वायरस के नए स्ट्रेन की वजह से फैल रही है। सुअरों को एविएन और हूमेन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खांसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी और इंसान तीनों के जीन मिलने से बना एच1एन1 वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू वायरस से अलग है। बर्ड फ्लू और मानवीय फ्लू के विषाणु से सुअरों में संक्रमण शुरू हुआ। फिर सुअर के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) से मिलकर नए वायरस स्वाइन इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) का जन्म हुआ। तब इन्फ्लुएंजा ए (एच1 एन1) का सुअर से मनुष्य में संक्रमण संभव हो सका। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस किसी भी मौसम में फैल सकता है और हर आयुवर्ग के लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। स्वाइन फ्लू के दौरान बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खांसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस लगातार अपना स्वरूप बदलने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का स्वाईन फलू पर भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यह रोग होली के बाद समाप्त हो जाएगी क्योंकि होली दहन के बाद संक्रमण का स्तर कम हो जाएगा क्योंकि तापमान का अंतर मिट जाएगा तथा वायरस का प्रकोप भी वातावरण में समाप्त होने लगेगा। चिकित्सकीय हल निकालने का प्रयास तो लगातार जारी है किंतु हमें अपनी जिम्मेदारी को देखते हुए इसका ज्योतिषीय कारण और निदान भी देखना चाहिए। देखा जाए तो हमें कालपुरूष की वर्तमान कुंडली देखनी चाहिए। कालपुरूष की कुंडली में आज चतुर्थेष चंद्रमा रोगभाव में राहु से पापाक्रांत है और मारक तथा मारकेष शुक्र व्ययभाव में राहु से पापदृष्ट होकर अष्टमेष मंगल से आक्रांत है। अतः संक्रमण से फैलने वाले रोग का समय और दसमेष और एकादषेष शनि अष्टमस्थ होने से कान, नाक और गले से संबंधित एलर्जी के कारण रोग तथा जो रोग लिवर तथा फेफडे को प्रभावित करें साथ ही कालपुरूष की मारकेष की दषा के कारण यह रोग आसानी से समाप्त होती नहीं दिखती। अतः इस समय यज्ञ, हवन तथा मंत्रजाप करना चाहिए।
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Tuesday, 23 June 2015
इंफ्लुएंजा वाइरस ज्योतिष्य विश्लेषण
विष्वव्यापी आतंक का नया नाम है ... इंफ्लुएंजा वाइरस जो एच1एन1 की वजह से फैलती है। प्रांरभ में इस रोग का वायरस सुअरों से इंसानों में फैला और फिर इंसानों के इंसानों से संपर्क में आने के कारण पूरी दुनिया को चपेट में लेता गया। अमरीका में 1976 का स्वाइन फ्लू- 5 फरवरी, 1976 को अमरीका के फोर्ट डिक्स में अमरीकी सेना के सैनिकों को थकान की समस्या होने लगी बाद में पता लगा कि यह बीमारी स्वाइन फ्लू ही है और एच1एन1 वायरस के नए स्ट्रेन की वजह से फैल रही है। सुअरों को एविएन और हूमेन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खांसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी और इंसान तीनों के जीन मिलने से बना एच1एन1 वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू वायरस से अलग है। बर्ड फ्लू और मानवीय फ्लू के विषाणु से सुअरों में संक्रमण शुरू हुआ। फिर सुअर के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) से मिलकर नए वायरस स्वाइन इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) का जन्म हुआ। तब इन्फ्लुएंजा ए (एच1 एन1) का सुअर से मनुष्य में संक्रमण संभव हो सका। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस किसी भी मौसम में फैल सकता है और हर आयुवर्ग के लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। स्वाइन फ्लू के दौरान बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खांसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस लगातार अपना स्वरूप बदलने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का स्वाईन फलू पर भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यह रोग होली के बाद समाप्त हो जाएगी क्योंकि होली दहन के बाद संक्रमण का स्तर कम हो जाएगा क्योंकि तापमान का अंतर मिट जाएगा तथा वायरस का प्रकोप भी वातावरण में समाप्त होने लगेगा। चिकित्सकीय हल निकालने का प्रयास तो लगातार जारी है किंतु हमें अपनी जिम्मेदारी को देखते हुए इसका ज्योतिषीय कारण और निदान भी देखना चाहिए। देखा जाए तो हमें कालपुरूष की वर्तमान कुंडली देखनी चाहिए। कालपुरूष की कुंडली में आज चतुर्थेष चंद्रमा रोगभाव में राहु से पापाक्रांत है और मारक तथा मारकेष शुक्र व्ययभाव में राहु से पापदृष्ट होकर अष्टमेष मंगल से आक्रांत है। अतः संक्रमण से फैलने वाले रोग का समय और दसमेष और एकादषेष शनि अष्टमस्थ होने से कान, नाक और गले से संबंधित एलर्जी के कारण रोग तथा जो रोग लिवर तथा फेफडे को प्रभावित करें साथ ही कालपुरूष की मारकेष की दषा के कारण यह रोग आसानी से समाप्त होती नहीं दिखती। अतः इस समय यज्ञ, हवन तथा मंत्रजाप करना चाहिए।
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