भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा माना गया है कि चंद्रमा मन का कारक होता है। चूॅकि किसी मानव के जीवन में उसकी सफलता तथा असफलता का बहुत बड़ा कारण उसका मन होता है अतः यदि कोई व्यक्ति सफल है या असफल इसका बहुत कुछ निर्धारण चंद्रमा की स्थिति से किया जा सकता है। चंद्रमा यदि लग्न में हो तो जातक ऐष्वर्यषाली, सुखी, मधुरभाषी, स्थूल शरीर वाला, द्वितीय स्थान में सुंदर, परदेषवासी, भ्रमणषील तृतीय स्थान में तपस्वी, आस्तिक, कलाप्रेमी, गले का रोगी, चतुर्थभाव में होने पर दानी, रागद्धेष रहित, क्रोधी, पंचम स्थान में विनीत, व्यसनी, मित्रयुक्त छठवे स्थान में होने पर विलासी, धार्मिक, लोकप्रिय, सप्तम स्थान पर होने पर अस्थिर, दुखी,प्रवासी अष्टम स्थान पर मातृभक्त, कलाप्रेमी, विवादी, मिथ्याभाषी नवम स्थान पर सात्विक, तेजस्वी, मानी दसम स्थान पर विद्धान, दयालु, कला में माहिर एकादष स्थान पर आलसी, दानी मधुरवाणी युक्त तथा द्वादष स्थान पर क्रोधी, व्यसनी, कलाकार हो सकता है। किंतु चंद्रमा के विपरीत स्थान में होने पर विपरीत असरकारी भी होता है अतः मानसिक कमजोर तथा निर्णय लेने में बाधा दे सकता है अतः चंद्रमा के दोषों को दूर करने हेतु चंद्रमा के वस्तुओं का दान जिसमें विषेषकर शंख, कपूर, दूध, दही, चीनी, मिश्री, श्वेत वस्त्र, इत्यादि तथा मंत्रजाप जिसमें उॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः या उॅ नमः षिवाय का 11 हजार जाप तथा रूद्राभिषेक प्रमुख माना जाता है। इन उपायो के आजमाने से शुभ फल में वृद्धि तथा अषुभ फलों में कमी होती है।
Pt.P.S Tripathi
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