Saturday, 20 June 2015

विवाह में मूहुर्त गणना का पूर्ण महत्व


विवाह संस्कार को भारतीय समाज में एक धर्म का दर्जा दिया गया है, जिसमें दो व्यक्ति का जीवन एक होकर उनका नया जन्म माना जाता है। इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न उसी प्रकार महत्व रखता है, जिस प्रकार जन्म का समय। विवाह का मूहुर्त निकालते समय वर एवं वधु की कुंडलियों का परीक्षण कर दोनों की कुंडली के मिलान तथा नक्षत्रों की अनुकूल स्थिति के अनुरूप अनुकूल ग्रह दषाओं के अनुसार विवाह का समय निर्धारित करना चाहिए। माना जाता है जिस समय वर-कन्या का विवाह संस्कार होता है, उसी तिथि तथा समय को वर-कन्या का नया जन्म मान कर विवाह का समय निर्धारित करते हुए उन ग्रह दषाओं का अनुकूल और प्रतिकूल असर उनके वैवाहिक जीवन के सुख-दुख तथा आपसी संबंधों में मिठास या मतभेद का पता लगाया जा सकता है। विवाह का समय निर्धारित करते समय विषेष रूप से तीन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला वर का सूर्य बल अर्थात् जिस तिथि में विवाह हो रहा हो, उस समय वर के सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। वर की जन्मराषि से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवे स्थान में सूर्य होतो शुभ होता है, पाॅचवें, दूसरे, सांतवें, नवें में मध्यम तथा चार, आठ, बारहवें भाव में अषुभ फल देता है। इसी तरह से विवाह के समय कन्या की बृहस्पति की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए बृहस्पति की अच्छी स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम एक, तीन, छः, दस भाव में मध्यम और चार, आठ, बारह में अषुभ होता है। साथ ही दोनों की मिलाकर चंद्रमा की स्थिति बेहतर होनी चाहिए। दोनों की कुंडलियों में जन्मराषि से चंद्रमा की स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम, एक, तीन, छः भाव में मध्यम तथा चार, आठ, बारह भाव में अषुभकारी होता है। अतः इन ग्रह दषाओं तथा ग्रहों के अनुकूल स्थिति पर विवाह होने पर वैवाहिक सुख तथा जीवन में प्रेमभाव बना रहता है साथ ही जीवन के सभी सुख समय पर प्राप्त होते हैं।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

No comments: