भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र श्री कार्तिकेय को जन्म के पश्चात से ही सात कृतिकाओं ने पाला-पोसा था तथा कुमार अवस्था को प्राप्त होने के पश्चात ही श्री कार्तिकेय प्रथम बार कैलाश पर्वत पर अपने माता पिता भगवान शिव तथा भगवती पार्वती के पास गये थे तथा तत्पश्चात उन्होनें तारकसुर नामक राक्षस का वध किया था जिसे भगवान ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता था। इसी कारण से श्री कार्तिकेय का बचपन गुप्त रूप से कृतिकाओं के पास ही व्यतीत हुआ ताकि तारकासुर श्री कार्तिकेय के बाल्यकाल के समय की अवधि में उनका कोई अहित न कर सके। इस प्रसंग से कृतिका शब्द का अर्थ समझने में सहायता मिलती है क्योंकि इन सात कृतिकाओं ने ही तारकासुर का वध करने वाले श्री कार्तिकेय के पालन के कार्य को सिद्ध किया था। इस प्रकार कृतिका शब्द तथा उसी के अनुसार यह नक्षत्र कहीं न कहीं कार्य की सिद्धि से जुड़ा हुआ है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार की जाने वाली गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले सत्ताइस नक्षत्रों में से कृतिका को तीसरा नक्षत्र माना जाता है। कृतिका शब्द का अर्थ है कार्य को करने वाली तथा इस अर्थ को और अच्छी प्रकार से समझने के लिए शिव पुराण के एक प्रसंग के बारे में चर्चा करते हैं। भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र श्री कार्तिकेय को जन्म के पश्चात से ही सात कृतिकाओं ने पाला-पोसा था तथा कुमार अवस्था को प्राप्त होने के पश्चात ही श्री कार्तिकेय प्रथम बार कैलाश पर्वत पर अपने माता पिता भगवान शिव तथा भगवती पार्वती के पास गये थे तथा तत्पश्चात उन्होनें तारकसुर नामक राक्षस का वध किया था जिसे भगवान ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता था। इसी कारण से श्री कार्तिकेय का बचपन गुप्त रूप से कृतिकाओं के पास ही व्यतीत हुआ ताकि तारकासुर श्री कार्तिकेय के बाल्यकाल के समय की अवधि में उनका कोई अहित न कर सके। इस प्रसंग से कृतिका शब्द का अर्थ समझने में सहायता मिलती है क्योंकि इन सात कृतिकाओं ने ही तारकासुर का वध करने वाले श्री कार्तिकेय के पालन के कार्य को सिद्ध किया था। इस प्रकार कृतिका शब्द तथा उसी के अनुसार यह नक्षत्र कहीं न कहीं कार्य की सिद्धि से जुड़ा हुआ है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका नक्षत्र के प्रतीक चिन्ह का चित्रण सामान्य तौर पर कुल्हाड़ी, कटार या तेज धार वाले ऐसे ही अन्य शस्त्रों तथा औजारों के रुप में किया जाता है जो काटने के काम में प्रयोग किये जाते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार अग्नि को भी कृतिका नक्षत्र के प्रतीक चिन्ह के रुप में चित्रित किया जाता है जो इस नक्षत्र के अग्नि स्वभाव को दर्शाता है।
कृतिका नक्षत्र में छ: तारे मिलकर खुरपे या फरसे की आकृति का निर्माण करते हैं। वैदिक साहित्य में कृतिका नक्षत्र में सात तारे माने गए हैं। ''तैत्रिय ब्राह्मणÓÓ में कृतिका नक्षत्र में सात आहुतियों का प्रावधान है। इस नक्षत्र पर अग्निदेव का स्वामित्व है। ग्रहों में सूर्य इस नक्षत्र का अधिष्ठाता है। कृतिका नक्षत्र दो तरह का माना जा सकता है, पहला भाग जो मंगल की मेष राशि के अंतर्गत आता है और दूसरा जो शुक्र की वृषभ राशि के अंतर्गत आता है। यह मिश्र नक्षत्र है, इसमें लगभग सभी कार्य किये जा सकते हैं। कृतिका भी अधोमुख नक्षत्र है, अत: इसमें भी भरणी के समान अधोगमन वाले कार्य किये जा सकते हैं। कार्तिक मास में कृतिका नक्षत्र के दिन कोई भी शुभ या विशेष कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शून्यसंज्ञक होता है। मंगलवार को कृतिका नक्षत्र सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण करता है, इस नक्षत्र से अमृतसिद्धि योग नहीं बनता। इस नक्षत्र के लिए गूलर के वृक्ष की पूजा की जाती है। कृतिका ब्राह्मण जाति का नक्षत्र है। यह स्त्री वाचक नक्षत्र है और काल पुरुष के शरीर में भौहों का आधिपत्य रखता है। इसका राशि स्वामी मंगल, योनी मेष, नदी अन्त्य और गण राक्षस का होता है। आँखें और कार्निया पर भी इसी नक्षत्र का नियंत्रण होता है। कंठ नली और निचले जबड़े पर इस नक्षत्र का स्वामित्व होता है।
कारकत्व:-
सुनार, लुहार, अग्नि से सम्बंधित कार्य करने वाले, ज्वलनशील पदार्थों का कार्य, तेज़ाब, गैस, यज्ञ कार्य करने वाले, गुप्त धन से सम्बंधित, तिजोरी, सुरंग, सफ़ेद फूलों के पदार्थ, ब्यूटी पार्लर, भाषा शास्त्र, व्याकरणाचार्य, ज्योतिषी, श्मशान, खान के कार्मिक इत्यादि।
नक्षत्रफल:-
कम खाने वाले (वृष में हो तो अधिक खाने वाले), तेजस्वी (जहां जायें छा जाये) दानी, विपरीत लिंग के बारे में बातचीत के शौकीन, अनुशासित, तुनक मिज़ाज और लगनशील होते हैं। धार्मिक, संस्कारी, धनी और स्वाध्याय करने वाले होते हैं। नक्षत्र पीडि़त हो तो परस्त्रीगामी होते हैं।
पदार्थ:-
तिल, जौ, हीरेसोना, चांदी, ताम्बा, लोहा आदि धातु।
व्यक्ति:-
अग्निपूजक, पारसी, कर्मकांडी, अग्नि से जीविकोपार्जन करने वाले, मन्त्रज्ञ, क्र.क्च.ढ्ढ. के अधिकारी, हजामत बनाने वाले (नाई), ढ्ढहृष्टह्ररूश्व-ञ्ज्रङ्ग, स््ररुश्वस्-ञ्ज्रङ्ग, स्श्वक्रङ्कढ्ढष्टश्व-ञ्ज्रङ्ग, पंचांग व कैलेंडर छापने वाले।
कृतिका नक्षत्र का वैदिक मंत्र:-अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यामयम्। अपा गुं रेता गुं सिजिंवति:।।
बीमारियाँ:-
कील-मुंहासे, दृष्टि-दोष, गर्दन के रोग, गले में रोग, घुटने पर निशान।
मानसिक गुण:-
दोस्तों के झुण्ड में रहने वाला, आदर सत्कार में कुशल, विलासी, सामाजिक, रचनात्मक प्रवृत्ति, सरकार व राज्य कर्मचारियों से लाभ।
व्यवसाय:-
सरकारी विभागों से लाभ, कभी-कभी ऋणग्रस्त भी हो सकते हैं। कलाकार, शिल्पी, दवा का काम, अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी, फोटोग्राफी का काम करने वाला। ञ्ज्रङ्ग-ष्टह्ररुरुश्वष्टञ्जह्रक्र, केशों का काम, इत्र का व्यापार इत्यादि।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार श्री कार्तिकय को कृतिका नक्षत्र का देवता माना जाता है जिसके चलते इस नक्षत्र पर शिव पुत्र श्री कार्तिकेय का भी प्रबल प्रभाव रहता है तथा उनके कई गुण एवं विशेषताएं इस नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होतीं हैं। श्री कार्तिकेय के युद्ध कौशल की विशेषताएं, उनकी विनम्रता, उनकी तीव्र बुद्धि तथा अन्य कई विशेषताएं इस नक्षत्र के माध्यम से साकार रुप प्राप्त करती हैं जिनके चलते कृतिका नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले बहुत से जातक सैन्य कला में कुशल देखे जाते हैं क्योंकि शिव पुत्र श्री कार्तिकेय स्वयं इस कला मे निपुण थे तथा वे तारकासुर के साथ निर्णायक युद्ध करने वाली देव सेना के सेनापति भी थे। वैदिक ज्योतिष के अनुसार अग्नि देव को भी कृतिका नक्षत्र का देवता माना जाता है जिसके कारण यह नक्षत्र अग्नि देव के प्रभाव में भी आ जाता है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को कृतिका नक्षत्र का स्वामी ग्रह माना जाता है तथा इस कारण सूर्य का भी इस नक्षत्र पर प्रबल प्रभाव रहता है। अग्नि देव के अग्नि तत्व तथा सूर्य की आग्नेय उर्जा के प्रभाव में आने के कारण इस नक्षत्र में अग्नि तत्व तथा उर्जा की मात्रा भरपूर रहती है जिसके कारण इस नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातकों में भी उर्जा की मात्रा सामान्य से अधिक ही रहती है। सूर्य को नवग्रहों का राजा माना जाता है तथा सूर्य को युद्ध कला में भी निपुण माना जाता है तथा सूर्य की युद्ध कला की विशेषताएं भी इसी नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होतीं हैं जिसके कारण इस नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातक युद्ध क्षेत्र से जुड़े व्यवसायों में कार्यशील देखे जाते हैं। कृतिका नक्षत्र का पहला चरण मेष राशि में आता है जबकि इस नक्षत्र के शेष तीन चरण वृष राशि में आते हैं जिसके कारण कृतिका नक्षत्र पर इन राशियों का तथा इनके स्वामी ग्रहों मंगल तथा शुक्र का प्रभाव भी पड़ता है।
कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि मेष राशि में स्थित होने वाले कृतिका नक्षत्र के पहले चरण के प्रभाव में आने वाले जातकों की युद्ध कला तथा युद्ध से जुड़े कार्यों में रुचि उन जातकों की अपेक्षा बहुत अधिक रहती है जो कृतिका नक्षत्र के वृष राशि में स्थित होने वाले तीन चरणों में से किसी एक चरण के प्रभाव में होते हैं। इस धारणा का कारण यह माना जाता है कि मेष राशि तथा इसके स्वामी मंगल ग्रह, दोनों को ही वैदिक ज्योतिष में अग्नि तत्व से जोड़ा जाता है तथा मंगल ग्रह को वैदिक ज्योतिष में शौर्य, पराक्रम तथा युद्ध कला के साथ भी जोड़ा जाता है जबकि वृष राशि को वैदिक ज्योतिष में पृथ्वी तत्व से जुड़ी एक सौम्य राशि माना जाता है तथा शुक्र ग्रह को वैदिक ज्योतिष में युद्ध कला के साथ न जोड़ कर रचनात्मकता तथा सुंदरता के साथ जोड़ा जाता है जिसके कारण वृष राशि तथा शुक्र ग्रह के प्रभाव में आने वाले कृतिका नक्षत्र के अंतिम तीन चरणों पर रचनात्मकता तथा सृजन का प्रभाव युद्ध से कहीं अधिक रहता है। इसी कारण कृतिका नक्षत्र के अंतिम तीन चरणों के प्रभाव में आने वाले जातकों की युद्धक प्रवृति सामान्यतया नियंत्रण में रहती है तथा ऐसे जातक सीधे रुप से युद्ध से जुड़े व्यवसायों को न चुनकर ऐसे कार्यक्षेत्रों को चुनते हैं जिनमें इन्हें अपनी रचनात्मक प्रवृति का प्रदर्शन करने का भरपूर अवसर मिले। कृतिका नक्षत्र पर विभिन्न प्रकार की शक्तियों का प्रभाव होने के कारण इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भी एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो सकते हैं तथा किसी कुंडली में कृतिका के प्रभाव में आने वाले जातक का स्वभाव तय करने के लिए यह निश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि कुंडली में कृतिका नक्षत्र पर सबसे अधिक प्रभाव उपर बताईं गईं शक्तियों में से किस शक्ति का है।
उदाहरण के लिए यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह का प्रबल प्रभाव है तथा शुक्र कुंडली में पूर्ण रुप से बलशाली है तथा कुंडली में जातक पर कृतिका नक्षत्र का प्रभाव वृष राशि में स्थित होने के कारण है तो ऐसे जातक की किसी प्रकार की युद्ध कला से न जुड़कर किसी प्रकार के रचनात्मक कार्य से जुडऩे की संभावना बहुत अधिक रहती है जबकि इसके विपरीत कुंडली में शुक्र का प्रभाव तथा बल बहुत कम होने पर कृतिका नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातक की रचनात्मक रुचि उतनी प्रबल नहीं देखी जाती। कृतिका नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक बहुत बुद्धिमान, तेजस्वी तथा प्रभावशाली होते हैं तथा इस नक्षत्र का प्रभाव सामान्यतया जातक को स्वतंत्र विचारों तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व का स्वामी बना देता है। कृतिका के जातक किसी भी कार्य, वस्तु अथवा रहस्य की जड़ तक पहुंचने के लिए तत्पर रहते हैं तथा इनकी विशलेषनात्मक शक्ति बहुत तीव्र होती है। कृतिका के प्रबल प्रभाव वाले जातक अपने काम समय पर तथा नियम से करना पसंद करते हैं तथा इन्हें प्रत्येक काम को बिल्कुल ठीक प्रकार से ही करने की आदत होती है तथा आधे अधूरे ढंग से काम करने वाले लोग इन्हें पसंद नहीं होते। कृतिका के जातक प्रत्येक कार्य, वस्तु तथा व्यक्ति में कमियां निकालने में बहुत निपुण होते हैं तथा अपनी इसी विशेषता के कारण इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक बहुत अच्छे आलोचक बनने में सक्षम होते हैं। बातचीत तथा व्यवाहर में आम तौर पर कृतिका के जातक बहुत सभ्य होते हैं तथा ऐसे जातक शिष्टाचार का विशेष ध्यान रखने वाले होते हैं। कृतिका के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की शिक्षा प्राप्त करने में भी बहुत रुचि रहती है तथा इनमें से कई जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करके विभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्रों में नाम कमाते हैं।
आइए अब चर्चा करते हैं कृतिका नक्षत्र से जुड़े कुछ अन्य तथ्यों की जिन्हें वैदिक ज्योतिष के अनुसार विवाह कार्य के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में महत्वपूर्ण माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका नक्षत्र को एक स्त्री नक्षत्र माना जाता है जिसका कारण बहुत से वैदिक ज्योतिषी इस नक्षत्र पर कृतिकाओं का प्रभाव मानते हैं। वैदिक ज्योतिष में कृतिका नक्षत्र को ब्राहमण वर्ण प्रदान किया जाता है जिसकी व्याख्या बहुत से वैदिक ज्योतिषी इस नक्षत्र की कार्यशैली के आधार पर करते हैं क्योंकि कृतिका नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले अधिकतर जातक जन कल्याण के लिए ही कार्य करना पसंद करते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका नक्षत्र को राक्षस गण प्रदान किया जाता है जिसका कारण बहुत से वैदिक ज्योतिषी इस नक्षत्र का किसी न किसी प्रकार से युद्ध के साथ जुडऩा मानते हैं। वैदिक ज्योतिष कृतिका नक्षत्र को राजसिक गुण प्रदान करता है तथा कृतिका नक्षत्र के इस गुण निर्धारण का कारण अधिकतर वैदिक ज्योतिषी इस नक्षत्र पर राजसिक ग्रह सूर्य का प्रभाव मानते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका नक्षत्र पंच तत्वों में से पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
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