कुंडली में यदि शनि ग्रह बलशाली हो तो जातक को आवासीय सुख प्रदान करता है। निम्न वर्ग का नेतृत्व प्राप्त होता है। दुर्बल शनि शारीरिक दुर्बलता-शिथिलता, निर्धनता, प्रमाद एवं व्याधि प्रदान करता है- मन्दे पूर्णबले गृहादिसुखृद भिल्लाधिपत्यं भवेन्नयूने विलहरः शरीरकृशता रोगोऽपकीर्तिर्भवेत।। शनि ग्रह किसी भी एक राशि में लगभग 2 वर्ष 6 माह विचरण करते हुये लगभग 30 वर्ष में 12 राशियों का भोग करते हैं। शनि ग्रह के इस राशि भ्रमण को ही गोचर कहते हैं। शनि ग्रह का किसी एक राशि में भ्रमण करने से शुभ या अशुभ फल भी 2 वर्ष 6 माह तक ही रहता है। शनि ग्रह के चंद्रमा की राशि (जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो) से भिन्न-भिन्न भाव में भ्रमण करने से किस-किस प्रकार का कर्मफल प्राप्त होता है, उल्लेख किया जा रहा है- 1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं। 2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं। 3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं। 4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं। 5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों मंे न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं। 6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है। 7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता। 8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है। 9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती हंै, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते। 10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है। 12. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
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Monday, 23 May 2016
विभिन्न लग्नों में सप्तम भावस्थ गुरु का प्रभाव एवं उपाय
पौराणिक कथाओं में गुरु को भृगु ऋृषि का पुत्र बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को सर्वाधिक शुभ ग्रह माना गया है। गुरु को अज्ञान दूर कर सद्मार्ग की ओर ले जाने वाला कहा जाता है। सौर मंडल में गुरु सर्वाधिक दीर्घाकार ग्रह है। धनु व मीन इसकी स्वराशियां हैं। धनु व मीन द्विस्वभाव राशियां हैं। अतः गुरु द्विस्वभाव राशियों का स्वामी होने के कारण इसमें स्थिरता एवं गतिशीलता के गुणों का प्रभाव है। यह कर्क राशि में उच्च का व मकर राशि में नीच का होता है। कर्क व मकर राशि दोनों ही चर राशियां हैं जिसके कारण गुरु अपनी उच्चता व नीचता का फल बड़ी तेजी से दिखाता है। सूर्य, चंद्र, मंगल इसके मित्र हैं। निर्बल, दूषित व अकेला गुरु सप्तम भावस्थ होने पर व्यक्ति को स्वार्थी, लोभी व अविश्वनीय बनाता है। वहीं शुभ राशिस्थ सप्तमस्थ गुरु व्यक्ति को विनम्र, सुशील सम्मानित बनाता है। जीवन साथी भी सुंदर व सुशील होता है। ‘‘स्थान हानि करो जीवा’’ के सिद्धांत के आधार पर गुरु शुभ व सबल होने पर भी, जिस स्थान में बैठता है उस स्थान की हानि करता है। परंतु जिन स्थानों पर दृष्टि डालता है उन स्थानों को बलवान बनाता है। सप्तम स्थान प्रमुख रूप से वैवाहिक जीवन का भाव माना गया है। सामान्यतः सप्तम भावस्थ गुरु को अशुभ फलप्रद कहा जाता है। पुरूष राशियों में होने पर जातक का अपने जीवन साथी से मतभेद की स्थिति बनती है। वहीं स्त्री राशियों में होने पर जीवन साथी से अलगाव की स्थति ला देता है। सप्तमस्थ गुरु जातक का भाग्योदय तो कराता है परंतु विवाह के बाद। प्रस्तुत है विभिन्न लग्नों में सप्तमस्थ गुरु के फलों का एक स्थूल विवेचन। 1. मेष लग्न मेष लग्न में गुरु नवमेश व द्वादशेश होकर सप्तमस्थ होता है तथा लग्न, लाभ व पराक्रम भाव में दृष्टिपात करता है। सप्तम भाव में तुला राशि का होता है। अतः भाग्येश, सप्तमस्थ होने के कारण निश्चय ही विवाह के बाद भाग्योदय होता है। समाज के बीच मिलनसार होता है। जिसके कारण जीवन साथी से भौतिक दूरी बनी रहती है। 2. वृष लग्न वृष लग्न में गुरु अष्टमेश व एकादशेश होकर वृश्चिक राशि में सप्तमस्थ होकर लाभ, लग्न एवं पराक्रम भाव पर दृष्टिपात करता है। इसकी मूल त्रिकोण राशि अष्टम स्थानगत होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उत्पन्न होती हैे। ससुराल धनाढ्य होता है परंतु स्वयं धन के मामले में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। 3. मिथुन लग्न मिथुन लग्न में गुरु सप्तम व दशम भाव का स्वामी होकर सप्तम भावस्थ होकर हंस योग का निर्माण करता है। हंस योग को राज योग कहा जा सकता है जिसका परिणाम गुरु की दशा-अंतर्दशा में प्राप्त होता है। परंतु इस लग्न में गुरु को सर्वाधिक केंद्रेश होने का दोष लगता है अतः विवाह एवं वैवाहिक जीवन के मामलों में पृथकता देता है। गुरु यदि वक्री या अस्त हो तो स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है। 4. कर्क लग्न कर्क लग्न में गुरु षष्ट्म एवं नवम भाव का स्वामी होकर अपनी नीच राशि में सप्तमस्थ होता है। निश्चय ही नवमेश होने के कारण विवाह के बाद भाग्योदय होता है। परंतु मूल त्रिकोण राशि षष्टम् भाव में पड़ने के कारण जीवन साथी का स्वास्थ्य प्रतिकूल ही रहता है। धन के मामलों में, लाभ की जगह हानि का सामना करना पड़ता है। 5. सिंह लग्न सिंह लग्न में गुरु पंचमेश व अष्टमेश होकर कुंभ राशि में सप्तमस्थ होता है। पंचमेश होने के कारण अति शुभ होता है। ससुराल पक्ष धनाढ्य होता है। परंतु अष्टमेश होने के कारण जीवन साथी को उदर की पीड़ा देता है। जीवन साथी का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। परिवार से ताल मेल नहीं बैठ पाता। 6. कन्या लग्न कन्या लग्न में गुरु चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में हंस योग का निर्माण करता है जिसके कारण जातक का विवाह उच्च कुल के धनाढ्य परिवार में होता है। परंतु इस लग्न में गुरु को केंद्रेश होने का दोष होता है जिसके कारण विवाहोपरांत जीवन साथी से मतभेद व निराशाजनक परिणाम प्राप्त होने शुरू हो जाते हैं। इस स्थिति में गुरु, यदि वक्री या अशुभ प्रभाव में होता है तो जीवन साथी से अलगाव की स्थिति आ सकती है। 7. तुला लग्न तुला लग्न में गुरु तृतीय व षष्ठ भाव का स्वामी होकर मेष राशि का सप्तम भावगत होता है। भावेश की दृष्टि से यह पूर्णतः अकारक रहता है। मेष राशि में सप्तमस्थ होने से जातक निडर, साहसी बनता है। अपने पराक्रम से धनार्जन करता है। ऐश्वर्य प्रदान करता है। परंतु जीवन साथी के लिए मारक होकर, उसका स्वास्थ्य प्रभावित करता है। 8. वृश्चिक लग्न वृश्चिक लग्न में गुरु द्वितीयेश व पंचमेश होकर वृष राशि में सप्तमस्थ होता है। पंचमेश होने के कारण गुरु शुभ रहता है। धन के मामलों में अच्छा परिणाम देता है। परंतु संतान पक्ष से विवाद की स्थिति पैदा करता है जिसके कारण जीवन साथी से टकराव की नौबत आती है। वस्तुतः जातक को सांसारिक सुखों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता। 9. धनु लग्न धनु लग्न में गुरु लग्नेश व चतुर्थेश होकर सप्तमस्थ होता है। गुरु की लग्न पर पूर्ण दृष्टि लग्न को बलवान बनाती है। वस्तुतः जातक सुंदर व सुशील, जीवन साथी प्राप्त करता है। माता-पिता का सुख एवं भूमि, भवन, संतान का सुख प्राप्त करता है। जीवन साथी, माता पिता व संतान का सहयोग प्राप्त करता है। ससुराल से संपत्ति प्राप्त करने के योग बनते है। 10. मकर लग्न मकर लग्न में गुरु द्वादश एवं तृतीय भाव का स्वामी होकर, सप्तम भाव में हंस योग का निर्माण करता है। वस्तुतः जातक विद्वान होता है। जीवन साथी सुंदर व सुशील होता है। मुखमंडल में तेज होता है। जीवन साथी के प्रति समर्पित होता है। 11. कुंभ लग्न कुंभ लग्न में गुरु धन व लाभ भाव का स्वामी हो कर अपने मित्र सूर्य की राशि में सप्तमस्थ होता है। साथ ही गुरु की पूर्ण दृष्टि, लाभ स्थान को मजबूती प्रदान करती है। द्वि तीय व एकादश भाव दोनों ही धन से संबंधित भाव हैं। अतः धन लाभ एवं धनार्जन की दिशा में गुरु बहुत ही शुभ फल करता है। यदि गुरु पर अन्य किसी शुभ या योगकारक ग्रह की दृष्टि हो तो यह स्थिति सोने में सुहागा होती है। जातक का विवाह धनाढ्य परिवार में होता है तथा ससुराल या जीवन साथी से धन लाभ होता है। 12. मीन लग्न मीन लग्न में गुरु लग्नेश व दशमेश होता है। कन्या राशि में सप्तमस्थ होकर लग्न को बल प्रदान करता है। वस्तुतः जातक आरोग्य एवं अच्छी आयु प्राप्त करता है। लाभ स्थान में दृष्टि होने के कारण स्वअर्जित धन प्राप्त करता है। लोगों में प्रतिष्ठा का पात्र बनता है। विवाह के बाद भाग्योदय होता है। जातक का विवाह उच्च कुल में होता है। सप्तम स्थान में कन्या राशि का गुरु होने के कारण जीवन साथी को मतिभ्रम की स्थिति से सामना करना पड़ सकता है। उपरोक्त लग्न के आधार पर सप्तमस्थ गुरु निश्चित ही ‘स्थान हानि करो जीवा’ का सिद्धांत देता है। अर्थात सप्तमस्थ गुरु निश्चित ही सुंदर जीवन साथी देता है। परंतु विवाहोपरांत, वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहने देता। फिर भी नवमांश कुंडली में गुरु यदि बलवान होकर विराजित हो, तो काफी हद तक विषम स्थितियों को जातक समाधान कर लेता है। इसी प्रकार गुरु यदि अष्टक वर्ग में 4 से अधिक रेखाएं ले कर बैठा हो तो भी लग्न कुंडली में सप्तमस्थ गुरु के प्रतिकूल प्रभावों में कमी आती है तथा गुरु अपनी दशा-अंतर्दशा में अच्छा फल देता है। अस्तु सप्तमस्थ गुरु के फलों का विवेचन करने के पूर्व नवमांश व अष्टक वर्ग में गुरु की स्थिति को देखकर ही अंतिम निर्णय पर पहुंचना चाहिए। फिर भी सप्तमस्थ गुरु अपनी दशा-अंतर्दशा में यदि विपरीत प्रभाव दे, तो निम्न उपायों को कर, गुरु के अनिष्टकारी प्रभावों से बचा जा सकता है। उपाय 1. मेष लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. सदैव पीले कपड़े पहनने को प्राथमिकता दें। c. मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करें। 2. वृष लग्न a. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. भगवान शिव के किसी मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें। c. सदैव श्वेत रंग के कपड़े पहनने को प्राथमिकता दें। 3. मिथुन लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. ऊँ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का एक माला जप करें। c. सदैव पीले रंग का रूमाल पाॅकेट में रखें। 4. कर्क लग्न a. सोने की अंगूठी में पुखराज रत्न धारण करें। b. गुरु से संबंधित वस्तुओं का दान करें। c. भगवान विष्णु की साधना करें। 5. सिंह लग्न a. तांबे की अंगूठी में गुरु यंत्र उत्कीर्ण करा, धारण करें। b. घर में गुरु यंत्र स्थापित करें। c. हल्दी का दान करें। परंतु भिखारी को भूलकर भी न दें। 6. कन्या लग्न a. पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. ‘गुरु गायत्री’ मंत्र का जप करें। c. घोड़े को चने की दाल व गुड़ खिलाएं। 7. तुला लग्न a. घर में गुरु यंत्र की स्थापना करें। b. छोटे भाइयों को स्नेह दें। अपमान न करें। c. शक्ति साधना करें। 8. वृश्चिक लग्न a. न्यूनतम 16 सोमवार का व्रत धारण करें। b. हल्दी की गांठ तकिए के नीचे रखकर सोयें। c. शिव जी की साधना करें। 9. धनु लग्न a. माणिक्य, पुखराज व मूंगा से निर्मित त्रिशक्ति लाॅकेट धारण करें। b. विष्णुस्तोत्र का पाठ करें। c. 43 दिन तक जल में हल्दी मिलाकर स्नान करें। 10. मकर लग्न a. ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करें। b. घर की छत में सूरजमुखी का पौधा रोपित करें तथा प्रतिदिन जल दें। c. भगवान भास्कर को प्रतिदिन तांबे के पात्र से जल का अघ्र्य दें। 11. कुंभ लग्न a. भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का प्रतिदिन जप करें। b. पुखराज धारण करें। c. रेशमी पीला रूमाल सदैव अपने पास रखें। 12. मीन लग्न a. माणिक्य, पुखराज एवं मूंगा रत्न से निर्मित ‘त्रिशक्ति लाॅकेट’ धारण करें। b. भगवान सूर्य को नित्य जल का अघ्र्य दें। c. गुरुवार को विष्णु मंदिर जाकर पीले रंग के फूल भगवान विष्णु को अर्पित करें तथा कन्याओं को मिश्रीयुक्त खीर खिलाएं। नोट: गुरु की स्थिति कुंडली में चाहे जैसी हो; जातक यदि निम्न मंत्र का जप प्रतिदिन करता है तो गुरु की विशेष कृपा बनी रहती है तथा अशुभ गुरु के दोषों से मुक्ति पायी जा सकती है। मंत्र: ऊँ आंगिरशाय विद्महे, दिव्य देहाय, धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात्।
Saturday, 21 May 2016
भक्ति से प्रसन्न होने वाली सप्तमं देवी -काल रात्रि -
मॉ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के सदृष गोल हैं। इनके विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रष्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएॅ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गदहा है। इनकी चार भुजाओं में से दाहिने ओर के उपर की भुजा में वरमुद्रा तथा नीचे की भुजा अभयमुद्रा में है। बायीं ओर की उपर की भुजा में लोहे का कॉटा और नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका यह रूप अत्यंत भयानक है किंतु ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं अतः इनका एक नाम शुभंकरी भी है।
काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस, बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है। माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचायक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है।
काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस, बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है। माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचायक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है।
कूष्मांडा,स्कंदमाता,और माँ कत्यानी की उपासना
श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
दुर्गा के कात्यायनी रूप की उपसना देती है मनवांछित फल -
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
श्या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू॥
अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः।
दुर्गा के कात्यायनी रूप की उपसना देती है मनवांछित फल -
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
श्या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू॥
अर्थ - हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः।
द्वितीयं ब्रम्हचारिणी से पायें शक्ति
मॉ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रम्हचारिणी का है। यहॉ ‘‘ब्रम्ह’’ शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रम्हचारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिमर्य एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु रहता है। अपने पूर्व जन्म में हिमालय घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी। नारद के उपदेष से प्रेरित होकर भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने हेतु दुष्कर तपस्या की थी। जिसमें एक हजार वर्ष तक उन्होंने केवल फल-फूल खाकर व्यतीत किया उसके सौ वर्षो तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाष के नीचे वर्षा और धूप के कष्ट सहें। तीन हजार वर्ष तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे बेलपत्रों को खाया। कुछ वर्षो तक निर्जल और निराहार तपस्या करती रही। कई हजार वर्ष तक तपस्या करने से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रम्हचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रम्हाजी ने आकाषवाणी द्वारा संबोधित किया कि हे देवि, आजतक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की है ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारी मनोकामना सर्ततोभावेत परिपूर्ण होगी। तुम अपने घर वापस आ जाओं तुम्हें भगवान चंद्रमौलि षिवजी पति रूप में प्राप्त होंगे। मॉ दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देनेवाला है। इनकी उपासना से मनुष्य तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार तथा संयम की वृद्धि होती है। मॉ ब्रम्हचारिणी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन साधकों का ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है। इन चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
हिंदू नववर्ष और प्रथमं शैलपुत्री
हिन्दू नव वर्ष का आरम्भ हो रहा है जो कि चौत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। इसी दिन से ही काल गणना का प्रारम्भ हुआ। इस दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की। इस वर्ष हिदू नव वर्ष अर्थात विक्रम संवत्सर २०७3 श्रीसंवत् नामक संवत्सर अंग्रेजी के 08 अप्रेल 2016 से प्रारंभ हो रहा है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में श्शैलपुत्रीः के नाम से जानी जाती हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप श्शैलपुत्रीः कहलाया है। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिताः नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में श्शैलपुत्रीः के नाम से जानी जाती हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप श्शैलपुत्रीः कहलाया है। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिताः नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः
राहु की दशा दिखाएॅ असर बढ़े अनावश्यक खर्च -
ग्रह, नक्षत्र अपनके जीवन पर ही नहीं वरन् अपसे जुझी वस्तुओं पर भी पूरा प्रभाव डालते हैं। अगर घर में कोई ना कोई बीमार हो रहा हो अथवा दवाइयों पर खर्च बढ़ गया हों अथवा आपका मोबाईल लगातार खराब हो रहा हों इसके अलावा आपके घर पर फ्रीज, ऑरो, टीवी, लाईट इत्यादि इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार रिपेयर में जा रही हों अथवा एक चीज सुधरवाने पर दूसरी बिगड़ रही हो, तो यह बहुत सामान्य बात नहीं है। इस प्रकार से वस्तुओं के लगातार खराब होने का ज्योतिषीय कारक होता है। अगर आपकी भी इलेक्टानिक चीजें लगातार खराब हो रही हों अथवा एक के बाद एक चीजें मरम्मत में जा रही हों तो अपनी कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण किसी विद्धान आचार्य से कराकर देख लें कि कहीं आपकी राहु की दशा तो नहीं चल रही है और आपकी कुंडली में राहु लग्न, दूसरे, तीसरे, छठवे, आठवे, भाग्य या एकादश स्थान पर तो नहीं है। अगर इन स्थानों पर राहु हो और राहु की दशा चलें तो घर पर अव्यवस्था चलती है और चीजें लगातार मरम्मत में जाती रहती है। अतः वस्तुओं के मरम्मत कराने के साथ राहु की शांति, सूक्ष्म जीवों की सेवा करनी चाहिए।
ज्योतिषयी प्लान से प्राप्त करें संतान रहें सारे दुखो से अंजान -
‘‘कथम उत्पद्यते मातुः जठरे नरकागता गर्भाधि दुखं यथा भुंक्ते तन्मे कथय केषव’’ गरूड पुराण में उक्त पंक्तियॉ लिखी हैं, जिससे साबित होता है कि गर्भस्थ षिषु के ऊपर भी ग्रहों का प्रभाव शुरू हो जाता है। गर्भ के पूर्व कर्मो के प्रभाव से माता-पिता तथा बंधुजन तथा परिवार तय होते हैं। इसी लिए कहा जाता है कि शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं। जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है। कर्मणा दैव नेत्रेण जन्तुः देहोपत्तये अर्थात् कर्मो को भोगने के लिए ही जीव की उत्पत्ति होती है। षिषु के गर्भ में आते ही उसका भाग्य तय हो जाता है अतः ग्रह दषा का असर उस पर शुरू हो जाता है।
कहा तो यहॉ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है। गरूड पुराण में वर्णन है कि और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है। उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है। इससे जाहिर होता है कि संसार में सुख चाहने के लिए शुरू से ग्रह गोचर का आकलन कर संतान कामना करनी चाहिए। उत्तम संतान हेतु पितृ को संतृप्त करना तथा संतान गोपाल का पाठ करना चाहिए।
कहा तो यहॉ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है। गरूड पुराण में वर्णन है कि और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है। उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है। इससे जाहिर होता है कि संसार में सुख चाहने के लिए शुरू से ग्रह गोचर का आकलन कर संतान कामना करनी चाहिए। उत्तम संतान हेतु पितृ को संतृप्त करना तथा संतान गोपाल का पाठ करना चाहिए।
Friday, 20 May 2016
सामर्थ्य अनुसार करें सहायता-फिर भी दूर होंगे ग्रह दोष -
सामर्थ्य अनुसार करें सहायता-फिर भी दूर होंगे ग्रह दोष -
अपनी क्षमता के अंदर रहकर सामान्य मदद से भी ईष्वर को प्रसन्न किया जा सकता है और कुंडली के ग्रह दोषों को दूर किया जाना संभव है, जैसे कि शबरी के झूठे बेर खाकर राम प्रसन्न हो गए थे। आपके नित्यचर्या में सहजता के साथ करने से ग्रहीय दोषों का समाधान दे सकता है। वह सहज समाधान किसी भूखे को रोटी तो किसी बीमार को दवा देकर या किसी को कपड़े देकर आपके ग्रह से संबंधित दोषों की निवृत्ति करने में कारगर उपाय बन सकती है।
यदि किसी की कुंडली में बुध खराब स्थिति में हों और गोचर में बुध की दषा चल रही हो तो उसे दवा का दान करना चाहिए अन्य को इस प्रकार से मदद कराने से बुध ग्रह की शांति संभव है इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा खराब होकर गोचर में भ्रमण करें तो उसे कपड़ो या किसी गरीब के बच्चे को दूध का दान करना चाहिए। सूर्य हेतु खाना, गुरू हेतु पाठ्य सामग्री, शनि हेतु जूते चप्पल तथा शुक्र हेतु फल इत्यादि किसी को खिलाकर अपने ग्रह की स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस प्रकार जरूरत मंद को सामान्य सहायता से अपनी कुंडली को मजबूत करने के साथ ग्रहों को प्रसन्न कर ग्रहीय दोषों को दूर करना संभव है....
अपनी क्षमता के अंदर रहकर सामान्य मदद से भी ईष्वर को प्रसन्न किया जा सकता है और कुंडली के ग्रह दोषों को दूर किया जाना संभव है, जैसे कि शबरी के झूठे बेर खाकर राम प्रसन्न हो गए थे। आपके नित्यचर्या में सहजता के साथ करने से ग्रहीय दोषों का समाधान दे सकता है। वह सहज समाधान किसी भूखे को रोटी तो किसी बीमार को दवा देकर या किसी को कपड़े देकर आपके ग्रह से संबंधित दोषों की निवृत्ति करने में कारगर उपाय बन सकती है।
यदि किसी की कुंडली में बुध खराब स्थिति में हों और गोचर में बुध की दषा चल रही हो तो उसे दवा का दान करना चाहिए अन्य को इस प्रकार से मदद कराने से बुध ग्रह की शांति संभव है इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा खराब होकर गोचर में भ्रमण करें तो उसे कपड़ो या किसी गरीब के बच्चे को दूध का दान करना चाहिए। सूर्य हेतु खाना, गुरू हेतु पाठ्य सामग्री, शनि हेतु जूते चप्पल तथा शुक्र हेतु फल इत्यादि किसी को खिलाकर अपने ग्रह की स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस प्रकार जरूरत मंद को सामान्य सहायता से अपनी कुंडली को मजबूत करने के साथ ग्रहों को प्रसन्न कर ग्रहीय दोषों को दूर करना संभव है....
प्रेम विवाह के बाद प्रेम गायब -ज्योतिषीय कारण जाने क्यों होता है
प्रेम विवाह का ज्योतिष कारण -
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। प्रेम विवाह हेतु चंद्रमा की स्थिति प्रबलता, ग्रहयुति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे पुरातन काल में गंर्धव विवाह और आधुनिक काल में प्रेमविवाह का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। जब प्रेम होता है तो विवाह भी तमाम विरोध के बावजूद करता है किंतु कुछ समय के बाद ही आपस में ही मतभेद दिखाई देते हैं। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। प्रेम विवाह हेतु चंद्रमा की स्थिति प्रबलता, ग्रहयुति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे पुरातन काल में गंर्धव विवाह और आधुनिक काल में प्रेमविवाह का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। जब प्रेम होता है तो विवाह भी तमाम विरोध के बावजूद करता है किंतु कुछ समय के बाद ही आपस में ही मतभेद दिखाई देते हैं। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।
शनिवार 20 मई 2016 राशिफल
शनिवार को वृश्चिक राशि में शनि और मंगल के साथ चंद्रमा भी होने से कुछ लोगों को अचानक धन लाभ होगा। सोचे हुए काम पूरे होंगे। बड़े और खास कामों से फायदा होगा। मंगल-चंद्रमा की जोड़ी से धन लाभ देने वाला लक्ष्मी योग बनेगा। वहीं शनि-चंद्रमा से विष योग भी रहेगा। इस अशुभ योग के कारण विवाद, समय और पैसों का नुकसान, तनाव और फालतू दौड़-भाग रहेगी। ये एक शुभ और एक अशुभ योग पूरे दिन रहेंगे। इनके साथ हस्त नक्षत्र होने से शुभ नाम का योग रहेगा। राशिफल से जानिए ग्रहों की स्थिति का किस राशि पर कैसा असर रहेगा।
मेष - पॉजिटिव -महत्वपूर्ण लोगों से कॉन्टैक्ट होगा। पारिवारिक जीवन भी सुखद रहेगा। अधूरे काम पूरे हो जाएंगे। आपका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा। अविवाहित लोगों को विवाह प्रस्ताव मिल सकते हैं। विवाहित लोग आज अपने जीवनसाथी को खुश करने की कोशिश करेंगे। अपने व्यक्तित्व के दम पर आज आप कुछ लोगों को अपने फेवर में कर सकते हैं। जिससे आपको फायदा मिलेगा। दोस्तों और प्रेमी से आज आपको पूरा सहयोग मिलेगा। नई नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। रोजमर्रा के काम समय से पूरे हो जाएंगे। कोई दोस्त आपके लिए कारगर भी साबित हो सकता है।
नेगेटिव -आप जैसे हैं, वैसे ही रहें। किसी तरह का दिखावा करेंगे तो मुसीबत में भी पड़ सकते हैं। आपका पहला प्रभाव नकारात्मक रहा, तो आप को उसमें सुधार का मौका शायद न मिल सके। आलस्य के कारण काम टल भी सकते हैं। ऐसे में जोखिम भरे कामों में हाथ डालने से बचें।
उपाय :1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
वृष - पॉजिटिव -एक के बाद एक छुपी हुई कुछ बातें आपके सामने आने लगेगी। अपने काम पर ध्यान दें। पैसों के मामलों में दूसरे लोग आपको चाहे जितनी भी सलाह दें, आप वही करें, जो आपका मन कहता हो। आपका मन दूसरों की सलाह से कहीं बेहतर है। अपनी योजना खुद बनाएं और उस पर डटे रहें। आज आप में बहुत ऊर्जा रहेगी। आप दूसरों की भावनाओं के लिए बहुत संवेदनशील भी रहेंगे। एक बार जैसे ही आप सक्रिय होंगे, सारा काम बहुत अच्छी तरह निपट जाएगा। आप अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट रहेंगे। नौकरी और बिजनेस में स्थिति भी अच्छी रहेगी और फायदा भी मनचाहा मिल जाएगा। संतान की प्रगति होगी। कानूनी विवादों का निपटारा आपके फेवर में भी हो सकता है।
नेगेटिव -आज आप फालतू बातों से बचें। नई सूचनाओं से उलझनें आएंगी और आपका ध्यान बंटेगा। परिवार के सदस्यों से कोई अजीब समाचार भी मिल सकता है। पारिवारिक मामलों में उलझने से बचें। आज आपको थोड़ी सुस्ती जरूर महसूस होगी। ऑफिस की कानाफूसी से दूर रहें। वाहन चलाते समय सावधानी रखें।
उपाय:1.उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2.दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
मिथुन - पॉजिटिव -आप जो करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लें और खुद कर लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी काम की पूरी योजना बनाएं और योजना से ही काम करें तो आप सफल हो जाएंगे। आज कोई घटना अचानक भी हो सकती है। मन बना लें। आप जो बात सुनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वह बात आज आपसे कोई कह देगा। शांत रहकर दूसरों की बात सुनेंगे, तो फायदे में रहेंगे। रिश्तों के क्षेत्र में सुधार करने का अवसर मिलेगा। आज आप सकारात्मक मूड में रहेंगे। मन की भावनाएं दूसरों से बेझिझक शेयर कर सकते हैं। दूसरों की खातिर कुछ खर्च करने में हिचकिचाए नहीं। पढ़ने-लिखने में मन लगेगा। मन शांत रखें। आपसी विचार-विमर्श और सहयोग प्रसन्नता देंगे। निवेश के अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले कुछ चिड़चिड़े लोग आपके खिलाफ शिकायतें भी कर सकते हैं। खासतौर पर ऑफिस में आप जो कहेंगे, उससे आप गहरी समस्या में पड़ सकते हैं, बेकार विचार मन में न आने दें। सावधानी से अनिष्ट दूर भी हो जाएंगे। कानूनी मामलों में सावधानी रखें। कोई परिचित या दोस्त पैसा उधार मांग सकता है। देने के पहले एक बार विचार कर लें
उपाय: 1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..
कर्क - पॉजिटिव -यथार्थवादी रहें। किसी खास मामले का सकारात्मक समाधान जल्द ही मिल जाएगा। आज आप के सामने काम बहुत ज्यादा रहेगा, लेकिन कुछ लोग आपकी पूरी मदद कर सकते हैं। आने वाले समय में आपकी व्यस्तता और भी ज्यादा होने जा रही है। मन से तैयार रहें। सामाजिक मेलजोल के किसी अवसर में आपकी तारीफ होगी। आपको पसंद किया जाएगा। प्रिय व्यक्ति से मुलाकात होगी। आवास की समस्या हल होगी। व्यापार अच्छा चलेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। आपने हाल ही में अगर कोई नया प्रयास किया है, तो आप उसके परिणामों को लेकर ज्यादा ही महत्वाकांक्षी हो सकते हैं। अधिकारी या कर्मचारियों से संबंध और अच्छे हो जाएंगे।
नेगेटिव - ज्यादा अधीर न हों। आज आप सावधान रहें, अति करेंगे, तो नुकसान हो सकता है। खुद को व्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश करेंगे। आपके चलते काम अचानक रुक सकते हैं। कोई बात या राज आपके लिए पहेली की तरह रहेगा। उसमें उलझ भी सकते हैं।
उपाय:1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
सिंह - पॉजिटिव - थोड़ा कॉन्फिडेंस महसूस करने की जरूरत है। आगे बढऩे के मौके मिलेंगे। आप बहुत उत्सुकता से नए मौकों और चैलेंज को स्वीकार करेंगे। किसी बुजुर्ग या अधिकारी से संबंध मधुर हो सकते हैं। तनाव या विरोध की स्थिति में आप समझौता करने या बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश करेंगे और सफल भी रहेंगे। नजदीकी लोगों से अपने मन की भावना व्यक्त करेंगे, तो खुश हो जाएंगे। नियमित दिनचर्या से पूरी तरह अलग कुछ करने की इच्छा होगी। नई चीजें समझने का अवसर मिलेगा। नौकरी और बिजनेस के लिए बढिय़ा दिन है। उत्साही दोस्तों के साथ रहने से फायदा हो सकता है। आपके ज्यादातर काम दोस्तों के सहयोग से पूरे हो जाएंगे। संपन्नता बढ़ेगी। रोमांस के भी अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -आप किसी चीज में अति न करें। अगर आप स्वयं पर नियंत्रण न रख सके, तो शाम तक भारी थकावट हो सकती है। अपनी आदत में बदलाव करें और गलतियों का ठीकरा अपने सिर पर न लें। कार्यक्षेत्र से जुड़े किसी काम या पैसों के लिए दौड़-भाग करनी पड़ सकती है। किसी बात पर पार्टनर के साथ मनमुटाव भी हो सकता है। आज कोई महत्वपूर्ण फैसला न लें।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
कन्या - पॉजिटिव -करियर या पैसों से जुड़ा कोई ऐसा मौका आज आपको मिल सकता है, जो आपकी आमदनी में अच्छा-खासा और सकारात्मक बदलाव कर देगा। मन की आवाज गौर से सुनें। कोई सपना या शुभ संकेत भी आज आपको मिल सकता है। आज कठिन मामले सुलझाने के लिए सारी बातें साफ कर दें। पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए अच्छा समय है। परेशानियां आज खत्म हो जाएंगी। संतान के काम और राजनैतिक जोड़-तोड़ में व्यस्त रहेंगे। प्रतिष्ठित लोगों से संबंधों में फायदा मिलेगा। महत्वपूर्ण काम आसानी से पूरे हो जाएंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकते हैं। बिजनेस में नए ऑफर भी मिल सकते हैं।
नेगेटिव -मन में आज कोई ऐसी बात आ सकती है जिसके बारे में आप किसी से कुछ कहने में संकोच करेंगे। आलस्य से बचें। आज आपके सामने कुछ कठिन परिस्थितियां भी आ सकती हैं। कोई बात बिगडऩे का डर भी आज बना रह सकता है।
उपाय:1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
तुला - पॉजिटिव -आज परेशानियां कम हो जाएंगी। आपको कुछ सुखद बदलाव भी महसूस हो सकते हैं। इस स्थिति में आपके दोस्त भी शामिल हैं। किसी परेशानी की स्थिति में दोस्तों से सलाह करें। उनकी सलाह आपके लिए कारगर हो सकती है। जो भी अवसर मिले आज उसका पूरा फायदा उठाने से न चूकें। कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान आपको जल्दी ही मिल जाएगा। व्यापार में नए सौदे होंगे। बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। किसी भी काम में संकोच न करें और हाथ आए मौके जाने न दें। उससे आपको फायदा होगा। यात्रा के योग बन रहे हैं। आपका सामाजिक सम्मान भी बढ़ेगा।
नेगेटिव -कन्फ्यूजन की स्थिति बन सकती है। कुछ गलतियां भी हो सकती हैं। सावधान रहें। अपनी आदतें सुधारने की कोशिश करें। खुद पर नियंत्रण रखें। धैर्य की कमी रहेगी। जो दूसरों से टकराव पैदा कराएगी। जिस काम से आप पहले कभी इनकार कर चुके थे, या जिस काम को आप बेहद नापसंद करते हैं, हो सकता है अब वो ही काम आपको करना पड़े। आज उधार देने-लेने से बचें। हर काम में रिस्क लेने से नुकसान भी हो सकता है। सावधान रहें।
उपाय: 1. उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2. दूध, चावल का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...
वृश्चिक - पॉजिटिव -आज जो भी बदलाव होगा, वह आपके हित में ही होगा। कुछ मामलों में आपको काफी सफलता भी मिल सकती है। आज आपको कई सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे। साथ ही आपके सामने जैसी भी स्थिति बनें। उसे स्वीकार कर लें। धीरे-धीरे कुछ अच्छी बातें आपको पता चल सकती है। आपके लक्ष्य अब आपकी नजरों में ज्यादा साफ हो जाएंगे। महत्वपूर्ण काम निपटाने पर ध्यान दें। परिस्थितियों से बाहर निकलने के बाद आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। परिवार के मामलों में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी से संबंध अच्छे हो जाएंगे। आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
नेगेटिव -आज फालतू कामों में भी समय खराब हो सकता है। सावधान रहें। लगभग हर काम किसी न किसी तरह देरी हो सकती है। हर बार देर होने का कारण कुछ अलग ही रहेगा। विरोधियों के कारण परेशान रहेंगे। आज बड़े सौदे न करें। कहीं कोई चीज भूल भी सकते हैं।
उपाय : 1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
धनु - पॉजिटिव - आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। अचानक धन लाभ होने की संभावना है। ऑफिस की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। अधिकारियों से संबंध सुधर जाएंगे। दोस्तों और रिश्तेदारों से सहयोग मिलेगा। कोई महत्वपूर्ण काम भी पूरा हो जाएगा। कोई अच्छी खबर मिल सकती है। राज की कोई बात भी आपको पता चल सकती है। आपको कुछ नए और अच्छे अवसर मिल सकते हैं। कॉन्फिडेंस भी बढ़ा हुआ रहेगा। भविष्य को लेकर आपके मन में उम्मीदें होंगी। विश्वास भी रहेगा। कोई नई शुरुआत भी कर सकते हैं। आपके ज्यादातर काम सरलता से और अचानक हो जाएंगे। समय आपके फेवर में रहेगा।
नेगेटिव -कोई अनजाना डर परेशान कर सकता है। अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो जाने की उम्मीद न रखें। कुछ मामलों में आप निराश भी हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा सावधानी रखने से परेशान हो सकते हैं। वाणी पर संयम रखें। परेशान भी हो सकते हैं। नए चैलेंज लेने या किसी उलझे हुए मामले में पड़ने से पहले खुद की स्थिति देख लें।
उपाय :1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
मकर - पॉजिटिव -पैसा कमाने के कुछ नए तरीके दिमाग में आ सकते हैं। आज आपका मन जो कहे, उस पर आप पूरा विश्वास कर सकते हैं। गुप्त रूप से चलने वाली गतिविधियों में बहुत सफल रहेंगे। थोड़ा समय एकांत में बिताना आपके लिए अच्छा रहेगा। किसी भी परिस्थिति में आपकी उपस्थिति और आपके योगदान से एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार का कोई खास मामला निपटाना होगा। घर-परिवार और ऑफिस के सोचे हुए काम पूरे हो जाएंगे। यात्रा, वाहन के मामलों में व्यस्त रहेंगे। आज आपसे ज्यादा आपके एक्सप्रेशन बोलेंगे। दुश्मनों पर जीत हासिल होगी। बिजनेस में नई योजना बन सकती है। रुका हुआ पैसा फिर से मिलेगा।
नेगेटिव -जल्दी पैसा कमाने की कोशिश न करें। शॉर्टकट लेंगे तो फंस भी सकते हैं। किसी की बातों में न आएं। खरीदारी करने में भी सावधान रहें। खराब या नकली सामान खरीद सकते हैं।
उपाय: 1. ऊॅ गु गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
कुंभ - पॉजिटिव -दिन अच्छा है। सोचे हुए काम जल्दी हो भी जाएंगे। रिश्तों के कारण आज आपको फायदा भी होगा। खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। आज आप वह काम करें, जिसे आप रचनात्मक ढंग से कर सकने में समर्थ हों। सामाजिक मेलजोल का कोई कार्यक्रम भी बन सकता है। वो आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। नौकरीपेशा लोगों का सम्मान बढ़ेगा। योजनाओं में सफलता मिल सकेगी। वाद-विवाद की समस्या का समाधान हो जाएगा। उलझे हुए पारिवारिक मामले निपट जाएंगे।
नेगेटिव -आज किसी न किसी कारण चिंता की स्थिति बन सकती है रिश्तों के क्षेत्र में परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है। न चाहते हुए भी मेहनत के काम निपटाने पड़ेंगे। थोड़ा शांत रहें। किसी भी तरह की हड़बड़ी में न पड़ें। शारीरिक जोखिम न लें। कुछ दोस्त आपसे अजीब व्यवहार भी कर सकते हैं।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन - पॉजिटिव -आपकी मेहनत के लिए तारीफ जरूर मिलेगी। बात कहने और सुनने में स्पष्टता जरूरी रहेगी। कोई गलतफहमी भी आज दूर हो सकती है। दोस्तों की मदद से किसी खास काम को निपटाने की योजना बन सकती है। रूटीन लाइफ में आपके साथ कुछ नया भी हो सकता है। चुप रहना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। आप में सहनशक्ति भी ज्यादा रहेगी। दिन सावधानी से बिता देंगे। आज कोई भी काम सावधानी से निपटा लेंगे। रिस्क नहीं लेना आपके लिए आज प्लस पॉइंट हो जाएगा।
नेगेटिव -चंद्रमा गोचर कुंडली के आठवें भाव में है। आज मेहनत बहुत रहेगी। इस राशि के कुछ लोगों को आज मेहनत का पूरा नतीजा भी नहीं मिल सकेगा। हो सकता है कि आपकी मेहनत का फायदा दूसरों को हो जाए। आप किसी की शिकायत या आलोचना में जरा भी न पड़ें। इसमें आपका समय भी खराब हो सकता है। परेशानी भी झेलनी पड़ेगी। व्यापार और कार्यक्षेत्र से जुड़ी योजनाओं को आज सार्वजनिक होने से बचाएं। जीवनसाथी की चिंता भी करनी होगी।
उपाय : 1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
मेष - पॉजिटिव -महत्वपूर्ण लोगों से कॉन्टैक्ट होगा। पारिवारिक जीवन भी सुखद रहेगा। अधूरे काम पूरे हो जाएंगे। आपका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा। अविवाहित लोगों को विवाह प्रस्ताव मिल सकते हैं। विवाहित लोग आज अपने जीवनसाथी को खुश करने की कोशिश करेंगे। अपने व्यक्तित्व के दम पर आज आप कुछ लोगों को अपने फेवर में कर सकते हैं। जिससे आपको फायदा मिलेगा। दोस्तों और प्रेमी से आज आपको पूरा सहयोग मिलेगा। नई नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। रोजमर्रा के काम समय से पूरे हो जाएंगे। कोई दोस्त आपके लिए कारगर भी साबित हो सकता है।
नेगेटिव -आप जैसे हैं, वैसे ही रहें। किसी तरह का दिखावा करेंगे तो मुसीबत में भी पड़ सकते हैं। आपका पहला प्रभाव नकारात्मक रहा, तो आप को उसमें सुधार का मौका शायद न मिल सके। आलस्य के कारण काम टल भी सकते हैं। ऐसे में जोखिम भरे कामों में हाथ डालने से बचें।
उपाय :1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
वृष - पॉजिटिव -एक के बाद एक छुपी हुई कुछ बातें आपके सामने आने लगेगी। अपने काम पर ध्यान दें। पैसों के मामलों में दूसरे लोग आपको चाहे जितनी भी सलाह दें, आप वही करें, जो आपका मन कहता हो। आपका मन दूसरों की सलाह से कहीं बेहतर है। अपनी योजना खुद बनाएं और उस पर डटे रहें। आज आप में बहुत ऊर्जा रहेगी। आप दूसरों की भावनाओं के लिए बहुत संवेदनशील भी रहेंगे। एक बार जैसे ही आप सक्रिय होंगे, सारा काम बहुत अच्छी तरह निपट जाएगा। आप अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट रहेंगे। नौकरी और बिजनेस में स्थिति भी अच्छी रहेगी और फायदा भी मनचाहा मिल जाएगा। संतान की प्रगति होगी। कानूनी विवादों का निपटारा आपके फेवर में भी हो सकता है।
नेगेटिव -आज आप फालतू बातों से बचें। नई सूचनाओं से उलझनें आएंगी और आपका ध्यान बंटेगा। परिवार के सदस्यों से कोई अजीब समाचार भी मिल सकता है। पारिवारिक मामलों में उलझने से बचें। आज आपको थोड़ी सुस्ती जरूर महसूस होगी। ऑफिस की कानाफूसी से दूर रहें। वाहन चलाते समय सावधानी रखें।
उपाय:1.उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2.दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
मिथुन - पॉजिटिव -आप जो करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लें और खुद कर लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी काम की पूरी योजना बनाएं और योजना से ही काम करें तो आप सफल हो जाएंगे। आज कोई घटना अचानक भी हो सकती है। मन बना लें। आप जो बात सुनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वह बात आज आपसे कोई कह देगा। शांत रहकर दूसरों की बात सुनेंगे, तो फायदे में रहेंगे। रिश्तों के क्षेत्र में सुधार करने का अवसर मिलेगा। आज आप सकारात्मक मूड में रहेंगे। मन की भावनाएं दूसरों से बेझिझक शेयर कर सकते हैं। दूसरों की खातिर कुछ खर्च करने में हिचकिचाए नहीं। पढ़ने-लिखने में मन लगेगा। मन शांत रखें। आपसी विचार-विमर्श और सहयोग प्रसन्नता देंगे। निवेश के अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले कुछ चिड़चिड़े लोग आपके खिलाफ शिकायतें भी कर सकते हैं। खासतौर पर ऑफिस में आप जो कहेंगे, उससे आप गहरी समस्या में पड़ सकते हैं, बेकार विचार मन में न आने दें। सावधानी से अनिष्ट दूर भी हो जाएंगे। कानूनी मामलों में सावधानी रखें। कोई परिचित या दोस्त पैसा उधार मांग सकता है। देने के पहले एक बार विचार कर लें
उपाय: 1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..
कर्क - पॉजिटिव -यथार्थवादी रहें। किसी खास मामले का सकारात्मक समाधान जल्द ही मिल जाएगा। आज आप के सामने काम बहुत ज्यादा रहेगा, लेकिन कुछ लोग आपकी पूरी मदद कर सकते हैं। आने वाले समय में आपकी व्यस्तता और भी ज्यादा होने जा रही है। मन से तैयार रहें। सामाजिक मेलजोल के किसी अवसर में आपकी तारीफ होगी। आपको पसंद किया जाएगा। प्रिय व्यक्ति से मुलाकात होगी। आवास की समस्या हल होगी। व्यापार अच्छा चलेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। आपने हाल ही में अगर कोई नया प्रयास किया है, तो आप उसके परिणामों को लेकर ज्यादा ही महत्वाकांक्षी हो सकते हैं। अधिकारी या कर्मचारियों से संबंध और अच्छे हो जाएंगे।
नेगेटिव - ज्यादा अधीर न हों। आज आप सावधान रहें, अति करेंगे, तो नुकसान हो सकता है। खुद को व्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश करेंगे। आपके चलते काम अचानक रुक सकते हैं। कोई बात या राज आपके लिए पहेली की तरह रहेगा। उसमें उलझ भी सकते हैं।
उपाय:1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
सिंह - पॉजिटिव - थोड़ा कॉन्फिडेंस महसूस करने की जरूरत है। आगे बढऩे के मौके मिलेंगे। आप बहुत उत्सुकता से नए मौकों और चैलेंज को स्वीकार करेंगे। किसी बुजुर्ग या अधिकारी से संबंध मधुर हो सकते हैं। तनाव या विरोध की स्थिति में आप समझौता करने या बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश करेंगे और सफल भी रहेंगे। नजदीकी लोगों से अपने मन की भावना व्यक्त करेंगे, तो खुश हो जाएंगे। नियमित दिनचर्या से पूरी तरह अलग कुछ करने की इच्छा होगी। नई चीजें समझने का अवसर मिलेगा। नौकरी और बिजनेस के लिए बढिय़ा दिन है। उत्साही दोस्तों के साथ रहने से फायदा हो सकता है। आपके ज्यादातर काम दोस्तों के सहयोग से पूरे हो जाएंगे। संपन्नता बढ़ेगी। रोमांस के भी अवसर मिलेंगे।
नेगेटिव -आप किसी चीज में अति न करें। अगर आप स्वयं पर नियंत्रण न रख सके, तो शाम तक भारी थकावट हो सकती है। अपनी आदत में बदलाव करें और गलतियों का ठीकरा अपने सिर पर न लें। कार्यक्षेत्र से जुड़े किसी काम या पैसों के लिए दौड़-भाग करनी पड़ सकती है। किसी बात पर पार्टनर के साथ मनमुटाव भी हो सकता है। आज कोई महत्वपूर्ण फैसला न लें।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
कन्या - पॉजिटिव -करियर या पैसों से जुड़ा कोई ऐसा मौका आज आपको मिल सकता है, जो आपकी आमदनी में अच्छा-खासा और सकारात्मक बदलाव कर देगा। मन की आवाज गौर से सुनें। कोई सपना या शुभ संकेत भी आज आपको मिल सकता है। आज कठिन मामले सुलझाने के लिए सारी बातें साफ कर दें। पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए अच्छा समय है। परेशानियां आज खत्म हो जाएंगी। संतान के काम और राजनैतिक जोड़-तोड़ में व्यस्त रहेंगे। प्रतिष्ठित लोगों से संबंधों में फायदा मिलेगा। महत्वपूर्ण काम आसानी से पूरे हो जाएंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकते हैं। बिजनेस में नए ऑफर भी मिल सकते हैं।
नेगेटिव -मन में आज कोई ऐसी बात आ सकती है जिसके बारे में आप किसी से कुछ कहने में संकोच करेंगे। आलस्य से बचें। आज आपके सामने कुछ कठिन परिस्थितियां भी आ सकती हैं। कोई बात बिगडऩे का डर भी आज बना रह सकता है।
उपाय:1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
तुला - पॉजिटिव -आज परेशानियां कम हो जाएंगी। आपको कुछ सुखद बदलाव भी महसूस हो सकते हैं। इस स्थिति में आपके दोस्त भी शामिल हैं। किसी परेशानी की स्थिति में दोस्तों से सलाह करें। उनकी सलाह आपके लिए कारगर हो सकती है। जो भी अवसर मिले आज उसका पूरा फायदा उठाने से न चूकें। कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान आपको जल्दी ही मिल जाएगा। व्यापार में नए सौदे होंगे। बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। किसी भी काम में संकोच न करें और हाथ आए मौके जाने न दें। उससे आपको फायदा होगा। यात्रा के योग बन रहे हैं। आपका सामाजिक सम्मान भी बढ़ेगा।
नेगेटिव -कन्फ्यूजन की स्थिति बन सकती है। कुछ गलतियां भी हो सकती हैं। सावधान रहें। अपनी आदतें सुधारने की कोशिश करें। खुद पर नियंत्रण रखें। धैर्य की कमी रहेगी। जो दूसरों से टकराव पैदा कराएगी। जिस काम से आप पहले कभी इनकार कर चुके थे, या जिस काम को आप बेहद नापसंद करते हैं, हो सकता है अब वो ही काम आपको करना पड़े। आज उधार देने-लेने से बचें। हर काम में रिस्क लेने से नुकसान भी हो सकता है। सावधान रहें।
उपाय: 1. उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2. दूध, चावल का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4. रूद्राभिषेक करें...
वृश्चिक - पॉजिटिव -आज जो भी बदलाव होगा, वह आपके हित में ही होगा। कुछ मामलों में आपको काफी सफलता भी मिल सकती है। आज आपको कई सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे। साथ ही आपके सामने जैसी भी स्थिति बनें। उसे स्वीकार कर लें। धीरे-धीरे कुछ अच्छी बातें आपको पता चल सकती है। आपके लक्ष्य अब आपकी नजरों में ज्यादा साफ हो जाएंगे। महत्वपूर्ण काम निपटाने पर ध्यान दें। परिस्थितियों से बाहर निकलने के बाद आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। परिवार के मामलों में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी से संबंध अच्छे हो जाएंगे। आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
नेगेटिव -आज फालतू कामों में भी समय खराब हो सकता है। सावधान रहें। लगभग हर काम किसी न किसी तरह देरी हो सकती है। हर बार देर होने का कारण कुछ अलग ही रहेगा। विरोधियों के कारण परेशान रहेंगे। आज बड़े सौदे न करें। कहीं कोई चीज भूल भी सकते हैं।
उपाय : 1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अर्ध्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
धनु - पॉजिटिव - आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। अचानक धन लाभ होने की संभावना है। ऑफिस की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। अधिकारियों से संबंध सुधर जाएंगे। दोस्तों और रिश्तेदारों से सहयोग मिलेगा। कोई महत्वपूर्ण काम भी पूरा हो जाएगा। कोई अच्छी खबर मिल सकती है। राज की कोई बात भी आपको पता चल सकती है। आपको कुछ नए और अच्छे अवसर मिल सकते हैं। कॉन्फिडेंस भी बढ़ा हुआ रहेगा। भविष्य को लेकर आपके मन में उम्मीदें होंगी। विश्वास भी रहेगा। कोई नई शुरुआत भी कर सकते हैं। आपके ज्यादातर काम सरलता से और अचानक हो जाएंगे। समय आपके फेवर में रहेगा।
नेगेटिव -कोई अनजाना डर परेशान कर सकता है। अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो जाने की उम्मीद न रखें। कुछ मामलों में आप निराश भी हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा सावधानी रखने से परेशान हो सकते हैं। वाणी पर संयम रखें। परेशान भी हो सकते हैं। नए चैलेंज लेने या किसी उलझे हुए मामले में पड़ने से पहले खुद की स्थिति देख लें।
उपाय :1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
मकर - पॉजिटिव -पैसा कमाने के कुछ नए तरीके दिमाग में आ सकते हैं। आज आपका मन जो कहे, उस पर आप पूरा विश्वास कर सकते हैं। गुप्त रूप से चलने वाली गतिविधियों में बहुत सफल रहेंगे। थोड़ा समय एकांत में बिताना आपके लिए अच्छा रहेगा। किसी भी परिस्थिति में आपकी उपस्थिति और आपके योगदान से एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार का कोई खास मामला निपटाना होगा। घर-परिवार और ऑफिस के सोचे हुए काम पूरे हो जाएंगे। यात्रा, वाहन के मामलों में व्यस्त रहेंगे। आज आपसे ज्यादा आपके एक्सप्रेशन बोलेंगे। दुश्मनों पर जीत हासिल होगी। बिजनेस में नई योजना बन सकती है। रुका हुआ पैसा फिर से मिलेगा।
नेगेटिव -जल्दी पैसा कमाने की कोशिश न करें। शॉर्टकट लेंगे तो फंस भी सकते हैं। किसी की बातों में न आएं। खरीदारी करने में भी सावधान रहें। खराब या नकली सामान खरीद सकते हैं।
उपाय: 1. ऊॅ गु गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
कुंभ - पॉजिटिव -दिन अच्छा है। सोचे हुए काम जल्दी हो भी जाएंगे। रिश्तों के कारण आज आपको फायदा भी होगा। खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। आज आप वह काम करें, जिसे आप रचनात्मक ढंग से कर सकने में समर्थ हों। सामाजिक मेलजोल का कोई कार्यक्रम भी बन सकता है। वो आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। नौकरीपेशा लोगों का सम्मान बढ़ेगा। योजनाओं में सफलता मिल सकेगी। वाद-विवाद की समस्या का समाधान हो जाएगा। उलझे हुए पारिवारिक मामले निपट जाएंगे।
नेगेटिव -आज किसी न किसी कारण चिंता की स्थिति बन सकती है रिश्तों के क्षेत्र में परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है। न चाहते हुए भी मेहनत के काम निपटाने पड़ेंगे। थोड़ा शांत रहें। किसी भी तरह की हड़बड़ी में न पड़ें। शारीरिक जोखिम न लें। कुछ दोस्त आपसे अजीब व्यवहार भी कर सकते हैं।
उपाय: 1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.मॉ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन - पॉजिटिव -आपकी मेहनत के लिए तारीफ जरूर मिलेगी। बात कहने और सुनने में स्पष्टता जरूरी रहेगी। कोई गलतफहमी भी आज दूर हो सकती है। दोस्तों की मदद से किसी खास काम को निपटाने की योजना बन सकती है। रूटीन लाइफ में आपके साथ कुछ नया भी हो सकता है। चुप रहना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। आप में सहनशक्ति भी ज्यादा रहेगी। दिन सावधानी से बिता देंगे। आज कोई भी काम सावधानी से निपटा लेंगे। रिस्क नहीं लेना आपके लिए आज प्लस पॉइंट हो जाएगा।
नेगेटिव -चंद्रमा गोचर कुंडली के आठवें भाव में है। आज मेहनत बहुत रहेगी। इस राशि के कुछ लोगों को आज मेहनत का पूरा नतीजा भी नहीं मिल सकेगा। हो सकता है कि आपकी मेहनत का फायदा दूसरों को हो जाए। आप किसी की शिकायत या आलोचना में जरा भी न पड़ें। इसमें आपका समय भी खराब हो सकता है। परेशानी भी झेलनी पड़ेगी। व्यापार और कार्यक्षेत्र से जुड़ी योजनाओं को आज सार्वजनिक होने से बचाएं। जीवनसाथी की चिंता भी करनी होगी।
उपाय : 1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
बुधवार को कर्ज नहीं देना चाहिए......
कर्ज चुकाने की स्थिति आदमी को बहुत दुविधा में डाल देती है। कर्ज में डुबे इंसान का मन में रात-दिन सिर्फ उसे चुकाने के लिए तनावग्रस्त रहता है, लेकिन जैसी स्थिति व मुश्किलें कर्ज लेने वाले के लिए होती है कई बार उन्हीं मुसीबतों का सामना कर्ज देने पर भी करना पड़ता है। ऐसे में कई बार कर्ज देने वाले को भी अटके हुए पैसों के कारण आर्थिक तंगी या बिजनेस में नुकसान का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को व्यापार का कारक ग्रह माना गया है। कोई भी व्यक्ति कर्ज देता है तो यह बुध यानी व्यापार के कारक ग्रह का ही प्रभाव होता है। बुध को कार्यक्षेत्र का ग्रह तो माना ही जाता है। साथ ही, इसे नपुंसक ग्रह भी माना गया है। इसी वजह से शास्त्रों द्वारा बुधवार को कर्ज देना वर्जित किया गया है। इस दिन लोन पर बहुत कम परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इसे चुका पाता है।
बुध को कर्ज लेने से यह चुका पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कर्ज देने पर व्यक्ति के बच्चों तक को इस कर्ज से मुसीबतें उठाना पड़ती हैं। बुधवार को कर्ज देने से पैसा डूबता है और व्यापार में हानि होती है। इसी कारण बुधवार के दिन कर्ज देना अच्छा नहीं माना गया है।कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय दिन की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है। नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने के अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। साथ ही, सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल नहीं मिलता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को व्यापार का कारक ग्रह माना गया है। कोई भी व्यक्ति कर्ज देता है तो यह बुध यानी व्यापार के कारक ग्रह का ही प्रभाव होता है। बुध को कार्यक्षेत्र का ग्रह तो माना ही जाता है। साथ ही, इसे नपुंसक ग्रह भी माना गया है। इसी वजह से शास्त्रों द्वारा बुधवार को कर्ज देना वर्जित किया गया है। इस दिन लोन पर बहुत कम परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इसे चुका पाता है।
बुध को कर्ज लेने से यह चुका पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कर्ज देने पर व्यक्ति के बच्चों तक को इस कर्ज से मुसीबतें उठाना पड़ती हैं। बुधवार को कर्ज देने से पैसा डूबता है और व्यापार में हानि होती है। इसी कारण बुधवार के दिन कर्ज देना अच्छा नहीं माना गया है।कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय दिन की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है। नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने के अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। साथ ही, सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल नहीं मिलता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
अष्टम भावस्थ शनि का विवाह पर प्रभाव
प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से जातक की कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का निर्णायक भाव माना है और इसे जाया भाव, भार्या भाव, प्रेमिका भाव, सहयोगी, साझेदारी भाव स्वीकारा है। अतः अष्टम भावस्थ शनि विवाह को क्यों और कैसे प्रभावित करता है यह विचारणीय हो जाता है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम भाव का द्वितीय भाव है। विवाह कैसे घर में हो, जान - पहचान में या अनजाने पक्ष में हो, पति/पत्नी सुंदर, सुशील होगी या नहीं, विवाह में धन प्राप्ति होगी या नहीं आदि प्रश्न विवाह प्रसंग में प्रायः उठते हैं और यह आवश्यक भी है क्योंकि विवाह संबंध पूर्ण जीवन के लिए होते हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर सप्तम भाव से मिलना चाहिए। परंतु जब अष्टम भाव में शनि हो तो विवाह से जुड़े इन सब प्रश्नों पर प्रभाव पड़ता है। देखें कैसे? अष्टम भाव विवाह भाव (सप्तम) का द्वितीय भाव है तो यह विवाह का मारक स्थान होगा, जीवन साथी का धन होगा, परिवार तथा जीवन साथी की वाणी इत्यादि होगा। अतः अष्टम भावस्थ शनि इन सब बातों को प्रभावित करेगा। यदि शनि शुभ प्रभावी है तो जातक को जीवन साथी द्वारा परिवार, समाज में सम्मान, धन (दहेज या साथी द्वारा अर्जित) प्राप्ति, सुख, मधुर भाषी साथी प्राप्त हो सकता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के लिए मारक और उसके साथी द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ फलों का ह्रास होगा। अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर होती है जो जातक का कर्म भाव है और उसके जीवन साथी का चतुर्थ भाव अर्थात परिवार, समाज, गृह सुख, विद्या आदि है; अतः जातक का यश, समाज में प्रतिष्ठा, परिवार सुख, धन समृद्धि, शिक्षा, व्यवसाय आदि प्रभावित होते हैं। अष्टम भावस्थ शनि की दूसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है तो जीवन साथी का अष्टम भाव है, अतः उसके दुःख कष्ट, आकस्मिक घटनाएं, गुप्त कृत्य आदि तथा स्वयं के संचित धन को प्रभावित करेगा। अष्टम भावस्थ शनि की तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर होती है तो जीवन साथी का एकादश भाव है। अतः प्रभाव संतान पर, शिक्षा पर और जीवन साथी के हर लाभ पर होता है। विवाह जनित जितने भी सुख हैं वह अष्टम भावस्थ शनि से प्रभवित होते हैं जिनमें मुख्य हैं धन, संतान, शिक्षा, व्यवसाय, पैतृक संपत्ति, परिवार सुख आदि। शुभ शनि शुभ परिणाम देता है और अशुभ शनि शुभ फलों को कम कर देता है। इन धारणाओं को मन में रखते हुए कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया है और पाया गया कि अष्टम भावस्थ शनि निश्चित रूप से विवाह जनित सुख-दुख को प्रभावित करता है।
स्वप्न विचार
बृहदारण्यक मेंं जाग्रत एवं सुषुप्त अवस्था के समान मानव के मन की तीसरी अवस्था स्वप्न अवस्था मानी गई हैं। जिस प्रकार मनुष्य के संस्कार उसे जाग्रतावस्था मेंं आत्मिक संतोष और प्रसन्नता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार जो भी स्वप्न आएंगे वे उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं के प्रतिबिंब ही होंगे।
जागते हुए जो दिवा स्वप्न हम देखते हैं वे मात्र कल्पनाएं ही होती हैं पर सुषुप्तावस्था मेंं जो कल्पनाएं की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। निरर्थक, असंगत स्वप्न उथली नींद मेंं ही आते हैं जो उद्विग्न करने वाले होते हैं। वस्तुत: मनुष्य निरंतर जागता नहींं रह सकता। यदि किसी को सोने ही न दिया जाए तो वह मर जाएगा। मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग निद्रा मेंं व्यतीत करता है और निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों से आच्छादित रहता है।
भारतीय शास्त्रादि स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच का द्वार अर्थात संधि द्वार मानते हैं। मनुष्य इस संधि स्थल से इस लोक को भी देख सकता है और उस परलोक को भी। इस लोक को संधि स्थान व स्वप्न स्थान कहते हैं।
स्वप्नों का संबंध मन व आत्मा से होता है तो इनका संबंध चंद्र और सूर्य की युति से लगाते हैं। गोविंद राज विरचित रामायण भूषण के स्वप्नाध्याय का वचन है कि जो स्त्री या पुरुष स्वप्न मेंं अपने दोनोंं हाथों से सूर्यमंडल अथवा चंद्र मंडल को छू लेता है, उसे विशाल राज्य की प्राप्ति होती है। अत: स्पष्टतया किसी भी व्यक्ति को शुभ समय की सूचना देने वाले स्वप्नों से यह पूर्वानुमान किया जा सकता है। चंद्र की स्थिति व दशाएं शुभ होने पर एवं सूर्य की स्थिति व दशाएं आदि कारक होने पर शुभ स्वप्न दिखाई प?ेंगे अन्यथा अशुभ। प्रत्यक्ष रूप मेंं देखा जाए तो स्वप्न का आने या न आने का कारण सूर्य व चंद्र ग्रह ही होते हैं क्योंकि सूर्य का संबंध आत्मा से और चंद्र का संबंध मनुष्य के मन से होता है। दु:खद या दु:स्वप्नों के आने का कारण हमारा मोह और पापी मन ही है। यही बात अथर्ववेद मेंं भी आती है। ‘यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते’ अर्थात मनुष्य को अपने अज्ञान और पापी मन के कारण ही विपत्तिसूचक दु:स्वप्न आते रहते हैं। इनके निराकरण का उपाय बतलाते हुए ऋषि पिप्लाद कहते हैं कि यदि स्वप्नावस्था मेंं हमेंंं बुरे भाव आते हों तो ऐसे दु:स्वप्नों को पाप-ताप, मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की उपासना शुरू कर देनी चाहिए ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं, दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे मन मेंं सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों, सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा की अनुभूति होने लगे। वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों से स्पष्ट है कि पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु तथा केतु की दशा अंतर्दशा तथा गोचर से अशुभ स्थानों मेंं होने पर बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं जो जीवन मेंं आने वाली दुरवस्था का मनुष्य को बोध कराते हैं। साथ ही शुभ ग्रहों की दशा अंतर्दशा मेंं शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर गोचर मेंं अच्छे स्वप्न दिखाई देते हैं। आकाश मेंं ऊपर उठना उन्नति तथा अभ्युदय का द्योतक है जबकि ऊपर से नीचे गिरना अवनति व कष्ट का परिचायक है।
बुरे स्वप्न आना तभी संभव है जब लग्न को, चतुर्थ एवं पंचम भाव को प्रभावित करता हुआ ग्रहण योग (राहु+चंद्र, केतु+सूर्य, राहु+सूर्य, केतु+चंद्र) और चांडाल योग (गुरु व राहु की युति) वाली ग्रह स्थिति निर्मित हो या इसी के समकक्ष दशाओं गोचरीय ग्रहों का दुर्योग बन जाए। इसके विपरीत लग्न, चतुर्थ/पंचम भाव को प्रभावित करते हुए शुभ ग्रहों के संयोग के समय अच्छे स्वप्न आने की कल्पना की जा सकती है।
जब हमेंंं कोई अच्छे सुखद स्वप्न दिखाई देते हैं, तो हमारा मन पुलकित हो जाता है, हमेंंं सुख की अनुभूति होने लगती और हम प्रसन्न हो जाते हैं। परंतु जब हमेंंं बुरे स्वप्न दिखते हैं तो मन घबरा जाता है, हमेंंं एक अदृश्य भय सताने लगता है और हम दुखी हो जाते हैं। विद्वानों के अनुभवों से हमेंंं यह बात ज्ञात होती है कि इस तरह के बुरे, डरावने स्वप्न दिखाई देने पर यदि नींद खुल जाए तो हमेंंं पुन: सो जाना चाहिए।
स्वप्नों के स्वरूप:
फलित ज्योतिष मेंं स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों मेंं बांटा जाता है- दृष्ट स्वप्न, शृत स्वप्न, अनुभूत स्वप्न, प्रार्थित स्वप्न, सुम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न, भाविक स्वप्न और काल्पनिक स्वप्न।
दृष्ट स्वप्न:
दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों को सोते समय स्वप्न रूप मेंं देखे जाने वाले सपनों को दृष्ट स्वप्न कहा जाता है। ये सपने कार्य क्षेत्र मेंं अत्यधिक दबाव और किसी वस्तु या कार्य मेंं अत्यधिक लिप्तता के कारण या मन के चिंताग्रस्त होने पर दिखाई देते हैं। इसलिए इनका कोई फल नहींं होता। कभी सोने से पूर्व किसी प्रकरण पर विचार विमर्श किया गया हो और किसी बात ने मन को प्रभावित या उद्वलित किया हो, तो भी मनुष्य सपनों के संसार मेंं विचरण करता है।
शृत स्वप्न:
भयावह फिल्म देखकर या उपन्यास पढक़र सपनों मेंं भयभीत होने वालों की संख्या कम नहींं है। इन सपनों को शृत स्वप्न कहा जाता है। ये सपने भी वाह्य कारणों से दिखाई देने के कारण निष्फल होते हैं।श्
अनुभूत स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं कोई बात कभी मन को छू जाए या किसी विशेष घटना का मन पर प्रभाव पड़ा हो और उस घटना की स्वप्न रूप मेंं पुनरावृत्ति हो जाए, तो ऐसा स्वप्न अनुभूत सपनों की श्रेणी मेंं आता है। इनका भी कोई फल नहींं होता।
प्रार्थित स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं देवी देवता से की गई प्रार्थना, उनके सम्मुख की गई पूजा-अर्चना या इच्छा सपने मेंं दिखाई दे, तो ऐसा स्वप्न प्रार्थित स्वप्न कहा जाता है। इन सपनों का भी कोई फल नहींं होता।
जागते हुए जो दिवा स्वप्न हम देखते हैं वे मात्र कल्पनाएं ही होती हैं पर सुषुप्तावस्था मेंं जो कल्पनाएं की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। निरर्थक, असंगत स्वप्न उथली नींद मेंं ही आते हैं जो उद्विग्न करने वाले होते हैं। वस्तुत: मनुष्य निरंतर जागता नहींं रह सकता। यदि किसी को सोने ही न दिया जाए तो वह मर जाएगा। मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग निद्रा मेंं व्यतीत करता है और निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों से आच्छादित रहता है।
भारतीय शास्त्रादि स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच का द्वार अर्थात संधि द्वार मानते हैं। मनुष्य इस संधि स्थल से इस लोक को भी देख सकता है और उस परलोक को भी। इस लोक को संधि स्थान व स्वप्न स्थान कहते हैं।
स्वप्नों का संबंध मन व आत्मा से होता है तो इनका संबंध चंद्र और सूर्य की युति से लगाते हैं। गोविंद राज विरचित रामायण भूषण के स्वप्नाध्याय का वचन है कि जो स्त्री या पुरुष स्वप्न मेंं अपने दोनोंं हाथों से सूर्यमंडल अथवा चंद्र मंडल को छू लेता है, उसे विशाल राज्य की प्राप्ति होती है। अत: स्पष्टतया किसी भी व्यक्ति को शुभ समय की सूचना देने वाले स्वप्नों से यह पूर्वानुमान किया जा सकता है। चंद्र की स्थिति व दशाएं शुभ होने पर एवं सूर्य की स्थिति व दशाएं आदि कारक होने पर शुभ स्वप्न दिखाई प?ेंगे अन्यथा अशुभ। प्रत्यक्ष रूप मेंं देखा जाए तो स्वप्न का आने या न आने का कारण सूर्य व चंद्र ग्रह ही होते हैं क्योंकि सूर्य का संबंध आत्मा से और चंद्र का संबंध मनुष्य के मन से होता है। दु:खद या दु:स्वप्नों के आने का कारण हमारा मोह और पापी मन ही है। यही बात अथर्ववेद मेंं भी आती है। ‘यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते’ अर्थात मनुष्य को अपने अज्ञान और पापी मन के कारण ही विपत्तिसूचक दु:स्वप्न आते रहते हैं। इनके निराकरण का उपाय बतलाते हुए ऋषि पिप्लाद कहते हैं कि यदि स्वप्नावस्था मेंं हमेंंं बुरे भाव आते हों तो ऐसे दु:स्वप्नों को पाप-ताप, मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की उपासना शुरू कर देनी चाहिए ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं, दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे मन मेंं सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों, सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा की अनुभूति होने लगे। वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों से स्पष्ट है कि पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु तथा केतु की दशा अंतर्दशा तथा गोचर से अशुभ स्थानों मेंं होने पर बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं जो जीवन मेंं आने वाली दुरवस्था का मनुष्य को बोध कराते हैं। साथ ही शुभ ग्रहों की दशा अंतर्दशा मेंं शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर गोचर मेंं अच्छे स्वप्न दिखाई देते हैं। आकाश मेंं ऊपर उठना उन्नति तथा अभ्युदय का द्योतक है जबकि ऊपर से नीचे गिरना अवनति व कष्ट का परिचायक है।
बुरे स्वप्न आना तभी संभव है जब लग्न को, चतुर्थ एवं पंचम भाव को प्रभावित करता हुआ ग्रहण योग (राहु+चंद्र, केतु+सूर्य, राहु+सूर्य, केतु+चंद्र) और चांडाल योग (गुरु व राहु की युति) वाली ग्रह स्थिति निर्मित हो या इसी के समकक्ष दशाओं गोचरीय ग्रहों का दुर्योग बन जाए। इसके विपरीत लग्न, चतुर्थ/पंचम भाव को प्रभावित करते हुए शुभ ग्रहों के संयोग के समय अच्छे स्वप्न आने की कल्पना की जा सकती है।
जब हमेंंं कोई अच्छे सुखद स्वप्न दिखाई देते हैं, तो हमारा मन पुलकित हो जाता है, हमेंंं सुख की अनुभूति होने लगती और हम प्रसन्न हो जाते हैं। परंतु जब हमेंंं बुरे स्वप्न दिखते हैं तो मन घबरा जाता है, हमेंंं एक अदृश्य भय सताने लगता है और हम दुखी हो जाते हैं। विद्वानों के अनुभवों से हमेंंं यह बात ज्ञात होती है कि इस तरह के बुरे, डरावने स्वप्न दिखाई देने पर यदि नींद खुल जाए तो हमेंंं पुन: सो जाना चाहिए।
स्वप्नों के स्वरूप:
फलित ज्योतिष मेंं स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों मेंं बांटा जाता है- दृष्ट स्वप्न, शृत स्वप्न, अनुभूत स्वप्न, प्रार्थित स्वप्न, सुम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न, भाविक स्वप्न और काल्पनिक स्वप्न।
दृष्ट स्वप्न:
दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों को सोते समय स्वप्न रूप मेंं देखे जाने वाले सपनों को दृष्ट स्वप्न कहा जाता है। ये सपने कार्य क्षेत्र मेंं अत्यधिक दबाव और किसी वस्तु या कार्य मेंं अत्यधिक लिप्तता के कारण या मन के चिंताग्रस्त होने पर दिखाई देते हैं। इसलिए इनका कोई फल नहींं होता। कभी सोने से पूर्व किसी प्रकरण पर विचार विमर्श किया गया हो और किसी बात ने मन को प्रभावित या उद्वलित किया हो, तो भी मनुष्य सपनों के संसार मेंं विचरण करता है।
शृत स्वप्न:
भयावह फिल्म देखकर या उपन्यास पढक़र सपनों मेंं भयभीत होने वालों की संख्या कम नहींं है। इन सपनों को शृत स्वप्न कहा जाता है। ये सपने भी वाह्य कारणों से दिखाई देने के कारण निष्फल होते हैं।श्
अनुभूत स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं कोई बात कभी मन को छू जाए या किसी विशेष घटना का मन पर प्रभाव पड़ा हो और उस घटना की स्वप्न रूप मेंं पुनरावृत्ति हो जाए, तो ऐसा स्वप्न अनुभूत सपनों की श्रेणी मेंं आता है। इनका भी कोई फल नहींं होता।
प्रार्थित स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं देवी देवता से की गई प्रार्थना, उनके सम्मुख की गई पूजा-अर्चना या इच्छा सपने मेंं दिखाई दे, तो ऐसा स्वप्न प्रार्थित स्वप्न कहा जाता है। इन सपनों का भी कोई फल नहींं होता।
काल्पनिक स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं की गई कल्पना सपने मेंं साकार हो सकती है किंतु यथार्थ जीवन मेंं नहींं और इस प्रकार के सपनों की गणना भी फलहीन सपनों मेंं की जाती है।
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न:
मनुष्य रोगों से पीडि़त होने पर, वात, पित्त या कफ बिगडऩे पर जो स्वप्न देखता है, वे भी निष्फल ही होते हैं। नींद की वह अवस्था, जिसे मेंडिकल साइंस की भाषा मेंं हिप्नेगोगिया और भारतीय भाषा मेंं सम्मोहन कहा जाता है। इसमेंंं व्यक्ति न तो पूरी तरह से सोया रहता है और न पूरी तरह से जागा। इसमेंंं देखे गए सपने भी निष्फल होते हैं।
इस तरह ऊपर वर्णित सभी छ: प्रकार के सपने निष्फल होते हैं। ये सभी असंयमित जीवन जीने वालों के सपने हैं। विश्व मेंं 99.9 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये लोग स्वप्न की भाषा नहींं समझकर स्वप्न विज्ञान की, स्वप्न ज्योतिष की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं। स्वप्न के बारे मेंं इनकी धारणाएं नकारात्मक सोच वाली ही होती हैं।
भाविक स्वप्न:
जो स्वप्न कभी देखे न गए हों, कभी सुने न गए हों, अजीबोगरीब हों, जो भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास कराएं, वे भाविक स्वप्न ही फलदायी होते हैं। पाप रहित मंत्र साधना द्वारा देखे गए स्वप्न भी घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं। मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के स्वप्नों से है। जन्मकालीन या गोचरीय कालसर्प योग वाली ग्रह स्थिति अर्थात राहु-केतु के मुख मेंं सभी ग्रहों के समा जाने वाली स्थिति के निर्मित हो जाने पर भगवान शंकर के कंठहार पंचमी तिथि के देवता स्वप्न मेंं आकर मनुष्यों के दिल को दहला देते हैं। ऐसा सपना देखकर मनुष्य का मन मस्तिष्क विचलित हो उठता है। अरिष्टप्रद सूर्य, चंद्र, राहु और केतु के मंत्र जप व स्तोत्र पाठ से तथा, दान, शांति कर्म के उपायों को अपनाकर व्यक्ति दुखद स्वप्नों के अनिष्टों से बचने मेंं समर्थ हो सकता है।
जाग्रत अवस्था मेंं की गई कल्पना सपने मेंं साकार हो सकती है किंतु यथार्थ जीवन मेंं नहींं और इस प्रकार के सपनों की गणना भी फलहीन सपनों मेंं की जाती है।
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न:
मनुष्य रोगों से पीडि़त होने पर, वात, पित्त या कफ बिगडऩे पर जो स्वप्न देखता है, वे भी निष्फल ही होते हैं। नींद की वह अवस्था, जिसे मेंडिकल साइंस की भाषा मेंं हिप्नेगोगिया और भारतीय भाषा मेंं सम्मोहन कहा जाता है। इसमेंंं व्यक्ति न तो पूरी तरह से सोया रहता है और न पूरी तरह से जागा। इसमेंंं देखे गए सपने भी निष्फल होते हैं।
इस तरह ऊपर वर्णित सभी छ: प्रकार के सपने निष्फल होते हैं। ये सभी असंयमित जीवन जीने वालों के सपने हैं। विश्व मेंं 99.9 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये लोग स्वप्न की भाषा नहींं समझकर स्वप्न विज्ञान की, स्वप्न ज्योतिष की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं। स्वप्न के बारे मेंं इनकी धारणाएं नकारात्मक सोच वाली ही होती हैं।
भाविक स्वप्न:
जो स्वप्न कभी देखे न गए हों, कभी सुने न गए हों, अजीबोगरीब हों, जो भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास कराएं, वे भाविक स्वप्न ही फलदायी होते हैं। पाप रहित मंत्र साधना द्वारा देखे गए स्वप्न भी घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं। मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के स्वप्नों से है। जन्मकालीन या गोचरीय कालसर्प योग वाली ग्रह स्थिति अर्थात राहु-केतु के मुख मेंं सभी ग्रहों के समा जाने वाली स्थिति के निर्मित हो जाने पर भगवान शंकर के कंठहार पंचमी तिथि के देवता स्वप्न मेंं आकर मनुष्यों के दिल को दहला देते हैं। ऐसा सपना देखकर मनुष्य का मन मस्तिष्क विचलित हो उठता है। अरिष्टप्रद सूर्य, चंद्र, राहु और केतु के मंत्र जप व स्तोत्र पाठ से तथा, दान, शांति कर्म के उपायों को अपनाकर व्यक्ति दुखद स्वप्नों के अनिष्टों से बचने मेंं समर्थ हो सकता है।
नौ ग्रहों की दशा अंतर्दशा मेंं देखे जाने वाले स्वप्न:
स्वप्न के आधार पर फल कथन करने मेंं ज्योतिषियों को आसानी होती है। अगर जातक की राहु, केतु या शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और जन्मकुंडली मेंं वे नीच स्थिति मेंं हों, तो उसे हमेंंशा डरावने स्वप्न आते हैं जैसे बार-बार सर्प दिखाई देना राहु केतु से बनने वाले कालसर्प योग के द्योतक होते हैं। यदि राहु, केतु व शनि की महादशा या अंतर्दशा हो और वे जन्मकुंडली मेंं स्वराशि या उच्च की राशि मेंं बैठे हों, तो जातक को शुभ स्वप्न आते हैं जैसे जर्मनी के फ्रेडरिक कैक्यूल को राहु से संबंधित सांप का वर्तुल आकार मेंं घूमकर स्वर्ण की अंगूठी जैसे आकार का बनकर अपने-आपको काटते हुए दिखाई देना। इसी भांति सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिहास होव को शनि की महादशा अंतर्दशा व कुंडली मेंं उनकी उच्च स्थिति होने के कारण उसके सिर मेंं राक्षस के दूतों द्वारा भाला भोंकने की स्वप्न की घटना जिसके फलस्वरूप उसने सिलाई मशीन का आविष्कार किया। उसी प्रकार यदि सूर्य या मंगल की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और वे नीचस्थ हों, तो आग एवं चोट लगने के स्वप्न दिखाई देते हैं। यदि उपर्युक्त महादशा व अंतर्दशा चल रही हो और जातक की जन्मकुंडली मेंं सूर्य और मंगल उच्च या स्वराशि मेंं हो, तो अशुभ स्वप्न नहींं बल्कि शुभ स्वप्न दिखाई देंगे जैसे राजकार्य मेंं जय, मांगलिक कार्य संपन्न होना आदि। यदि चंद्र और गुरु की महादशा अंतर्दशा हो और वे नीचस्थ हों तो कफ, पेट आदि से संबंधित रोग होते हैं। इसके विपरीत यदि चंद और गुरु उच्चस्थ हों, तो महादशा अंतर्दशा मेंं राजगद्दी प्राप्त होने के स्वप्न दिखाई देंगे। वहीं यदि शुक्र की उच्च स्थिति हो, तो सुख, ऐशो आराम, धन लक्ष्मी आदि से संबंधित और नीचस्थ हो, तो अनेक बीमारियों के स्वप्न दिखाई देते हैं।
नीचस्थ सूर्य की दशा/परिस्थिति या गोचरीय दशा आने पर रेतीले मरुस्थलों की सैर, मरुस्थलों का जहाज उंट, गर्म हवाओं के थपेड़े खाता हुआ बेतहासा मजनूं की तरह भागता मनुष्य, सूर्य का सारथी, उष्ण कटिबंधों के दृश्य, सूखा, फटती हुई जमीन, घर-मकान की दीवारों की दरारें, भूख प्यास से व्याकुल पागलों की तरह भटकते लोग, खौलता हुआ झरना, तपेदिक के मरीज, मृगतृष्णा का जल, मौत का सन्नाटा, तपे हुए लोहे के सिक्के लुटाती हुई अलक्ष्मी, सिर पर सेहरे की जगह कफन, ओले की जगह टपकते अंगारे, चांदनी बिखराता सूर्य, तपता हुआ चंद्रमा, हंसता हुआ सियार, चूहे की भांति दुबका हुआ शेर, आकाश मेंं पक्षियों की तरह उड़ता हुआ प्राणी, रोता हुआ मुर्दा आदि दिखाई देने की संभावना रहती है।
इसी तरह के स्वप्न गोचर मेंं वृष राशि मेंं प्रवेश करते हुए सूर्य की दशा मेंं अथवा उसकी दशांतर्दशा मेंं आ सकते हंै। काला बाबा की राशि मकर या कुंभ मेंं सूर्य के प्रवेश की दशा मेंं पर्वतारोहण करते मगरमच्छ, दिन मेंं देखते उल्लू, चलने हुए गरुण, दीपावली की रात्रि मेंं चमकता हुआ शरद पूर्णिमा के चंद्रमा, निशीथ काल मेंं खिलती हुई कुमुदिनी, चंद्रोदय होते ही खिलते हुए कमल से निकलते हुए भौंरे, पर्वत से पानी निकालती हुई पनिहारिन, दिन मेंं उदित होते चंद्रमा, रात्रि मेंं धूप, बीहड़ घने काले अंधियारे जंगल मेंं नाचते सफेद मोर, काले हंस, गुलाबी रंग की भैंस आदि के समान स्वप्न आ सकते है जिनका फल सदैव अशुभ ही होता है।
* चंद्र के दशा परिवर्तन से स्वप्नावस्था मेंं शरीर मेंं नाड़ी की गति मध्यम पड़ जाती है, खून का प्रवाह शिथिल हो जाता है, इंद्रियों की गति मंद हो जाती है और कफ का प्रकोप बढ़़ जाता है।
* मंगल की दशा अथवा गोचर मेंं परिवर्तन होने से मनुष्य को चोट-चपेट, दुर्घटना, अग्नि-कांड, शव-दाह, खून-खराबे, मृत्यु-दंड, यान-दुर्घटना, युद्ध के तांडव, उल्कापात, गर्भपात, पक्की इमारतों का भरभराकर गिर जाना, ज्वालामुखी पर्वत और उनके खौलते हुए एवं छलछलाने लावे के दृश्य स्वप्न मेंं दिखलाई देते हैं। मित्र लडऩे को उद्यत दिखाई देता है।
* बुध की अंतर्दशा मेंं सुंदर उपवन, हरे-भरे खेत, खंजन पक्षी, तोता विद्या प्राप्त करते बटुक, वृक्षों की ठंडी शीतल छांव मेंं विश्राम करते बटोही, परीक्षा के डर से भयभीत होते बच्चे, छड़ी दिखाता शिक्षार्थी, परीक्षा मेंं पास हो जाने पर हंसते मुस्कराते विद्यार्थी, सुंदरियों को वस्त्र लुटाता बजाज, बंध्या और पुत्र, मुनीमी करता सेठ, गीत सुनता बधिर, वक्ता बना गूंगा, बगुला भगत, सज्जन बना बातुल, बादशाही करता फकीर, शिष्ट तथा सुसंस्कृत बना गंवार, सुंदर हरे भरे ताजे फलों की डलिया, आदि नाना प्रकार के स्वप्न आते हैं। बुध की दशा मेंं पोथी प्रदान करती हुई सरस्वती जी यदि स्वप्न मेंं दर्शन दें, तो जातक वाणी की अधिष्ठात्री देवी वागीश्वरी की अनुपम कृपा का पात्र जातक बन जाता है।
गुरु की दशाओं मेंं भी जलीय दृश्य कफ प्रकृति जातकों को स्वप्न मेंं दिखलाई दे सकते हैं। गुरु की एक राशि मीन है जो जल तत्व वाली राशि है। उदर शूल, उदर व्रण, पाचन संस्थान संबंधी रोग, कफ जनित व्याधियों, वेदाध्ययन, वेद-पाठ, वेद-पुराण- उपनिषदों आदि के दर्शन, धर्म प्रवचन, संत-समागम, तीर्थ -यात्रा, गंगा-स्नान आदि से संबंधित विविध शुभाशुभ स्वप्न गुरु की अंतर्दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं। राज्याभिषेक संबंधी आनंदातिरेक देने वाले स्वप्न भी गुरु की दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं।
* राहु, केतु या शनि की महादशा, अंतर्दशा या गोचर मेंं इनकी अरिष्टकारक दशा चल रही हो, तो जातकों को बेहद भयानक स्वप्न दिखाई दे सकते हैं। राहु के अत्यधिक अशुभ होने पर स्वप्न ही नहींं, यथार्थ मेंं भी बिजली का करंट लग जाया करता है। डरावने स्वप्नों का वेग गहरी निद्रा मेंं डूबे हुए व्यक्ति को एकदम चैंका देता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डरावने स्वप्न देखता हुआ व्यक्ति उससे त्राण पा लेने को उठकर भाग जाना चाहता है परंतु स्वप्न के भारी दबाव के कारण वह बिस्तर से उठ भी नहींं पाता। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त, कफ ये शरीर के तीन दोष हैं। वात प्रधान लोगों को स्वप्न मेंं पर लग जाते हैं। वे नील गगन मेंं स्वप्न मेंं उडऩे का आनंद प्राप्त करते हैं। पित्त प्रकृति के लोग स्वप्न मेंं सारे जगत को जगमग ज्योति के रूप मेंं निहारने लगते हैं। वे चांद, सितारे, उल्का और सूरज की रज को प्राप्त कर लेना चाहते हैं। उन्हें चांद-सूरज, तारा गण सप्तर्षि आदि अपना बना लेना चाहते हैं। वे गगन को देखकर मगन हो जाते हैं। कफ प्रकृति वाले कूप, तड़ाग, बावलियों, नहरों, नदियों नालों झरनों, फव्वारों जलस्रोतों को स्वप्न मेंं देखकर स्वयं जल का देवता वरुण बन जाना चाहते हैं। वे चांदनी रात मेंं नौका-विहार करने लग जाते हैं। कोई स्वप्न मेंं स्वयं को जलतरंग बजाता हुआ देखता है, कोई जलधर ही बन जाता है, कोई जल प्रपात देखता है तो कोई जल प्रलय। उन्हें जल से जन्म लेने वाला जलज स्वप्न मेंं दिखाई देने लगता है। जल मेंं कभी वे जलपरी का जलवा देखते हैं, कभी जलजहाज को जल डमरूमध्य मेंं, तो कभी अपने को गोता लगाता हुआ देखते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि शुभाशुभ स्वप्न विभिन्न ग्रह स्थितियों मेंं तब आते हैं जब ग्रहों की महादशाओं की अंतर्दशाओं मेंं नीच, उच्च, स्वगृही, मित्र गृही, शत्रुगृही होते हैं। कोई भी ग्रह नीच, व शत्रुग्रही हो, तो जातक का बुरे व अशुभ स्वप्न आते हैं और यदि वह उच्च, स्वगृही व मित्र राशि मेंं हो, तो अच्छे व शुभ, उसके मनोनुकूल, स्वप्न आते हैं।
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उस परिवार के सदस्यों को दु:स्वप्न दिखाई देते हैं। याद भी रहते हैं जिससे वे विचलित दिखाई देते है।
धन लाभ कराने वाले स्वप्न:
कुछ स्वप्न व्यक्ति को धन लाभ कराने वाले होते हैं। हाथी, घोड़े, बैल, सिंह की सवारी, शत्रुओं के विनाश, वृक्ष तथा किसी दूसरे के घर पर चढ़े होने दही, छत्र, फूल, चंवर, अन्न, वस्त्र, दीपक, तांबूल, सूर्य, चंद्रमा, देवपूजा, वीणा, अस्त आदि के सपने धन लाभ कराने वाले होते हैं। कमल और कनेर के फूल देखना, कनेर के नीचे स्वयं को पुस्तक पढ़ते हुए देखना, नाखून एवं रोमरहित शरीर देखना, चिडिय़ों के पैर पकडक़र उड़ते हुए देखना, आदि धन लक्ष्मी की प्राप्ति व जमीन मेंं गड़े हुए धन मिलने के सूचक हैं।
मृत्यु सूचक स्वप्न:
कुछ स्वप्न स्वयं के लिए अनिष्ट फलदायक होते हैं। स्वप्न मेंं झूला झूलना, गीत गाना, खेलना, हंसना, नदी मेंं पानी के अंदर चले जाना, सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों व नक्षत्रों को गिरते हुए देखना, विवाह, गृह प्रवेश आदि उत्सव देखना, भूमि लाभ, दाढ़ी, मूंछ, बाल बनवाना, घी, लाख देखना, मुर्गा, बिलाव, गीदड़, नेवला, बिच्छू, मक्खी, शरीर पर तेल मलकर नंगे बदन, भैंसे, गधे, ऊंट, काले बैल या काले घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा की यात्रादि करना आदि मृत्यु सूचक हैं।
कुछ अनुभूत स्वप्न:
एक महिला का पुत्र बहुत बुरी स्थिति मेंं दिल्ली के एक अस्पताल मेंं दाखिल था। महिला स्वयं बीमारी के कारण बिस्तर से लगी थीं। उसे एक रात स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि उसके गले की मोती की माला टूट गई है। मोती बिखर गए हैं। नींद खुली तो उसने देखा कि माला टूटी हुई थी। बहुत ढूंढने पर भी मोती पूरे नहींं मिले। ठीक उसी समय अस्पताल मेंं उसके युवा पुत्र ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
जालंधर के एक व्यक्ति की पत्नी की छाती के कैंसर का ओपरेशन हो रहा था। उसे स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि कुछ लोग उन्हें मारने को दौड़े चले आ रहे हैं। वह भाग रहा और लोग पीछा कर रहे हैं। अचानक वह अस्पताल के निकट फ्लाई-ओवर पर चढ़ जाता है। स्वयं फिर वह अपने घर (जालंधर) के पास पहुंचा हुआ पाता है। वे लोग अब भी उसका पीछा कर रहे हैं। आस-पास के लोग उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं और वह खुद भाग कर घर मेंं छुपने की कोशिश करता है और नींद टूट जाती है। फिर उसने एक अच्छे दैवज्ञ से सलाह ली। स्वप्न का फल यही समझा गया कि उसकी पत्नी स्वस्थ हो जाएगी। यह बात अप्रैल 1980 की है। उसकी पत्नी आज भी जीवित और स्वस्थ है। लेकिन उस व्यक्ति का अचानक हृदय गति रुक जाने से जनवरी 1989 मेंं देहांत हो गया।
इस तरह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन मेंं आने वाली दुर्घटनाओं, उन्नति और शुभ समय के आगमन से संबंधित स्वप्न कई बार सच्चे साबित हो जाते हैं।
स्वप्न फल विचार:
जब भी किसी व्यक्ति के जीवन मेंं कोई असाधारण परिस्थिति होती है, स्वप्न आते हैं। कुछ विशिष्ट स्वप्न याद भी रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त के स्वप्न अक्सर सच भी होते हैं। रात के प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय प्रहर मेंं दिखने वाले स्वप्न लंबे समय के बाद सच होते हुए पाए जाते हैं। स्वप्नों के विषय मेंं कुछ प्रतीकों को हमारी लोक संस्कृति मेंं मान्यता प्राप्त है, जो इस प्रकार हैं।
* किसी की मृत्यु देखना -उसकी लंबी आयु होना।
* सीढ़ी चढऩा - उन्नति
* आकाश मेंं उडऩा - उन्नति
* सर्प अथवा जल देखना - धन की प्राप्ति
* बीमार व्यक्ति द्वारा काला सर्प देखना - मृत्यु
* सिर मुंडा देखना - मृत्यु
* स्वप्न मेंं भोजन करना - बीमारी
* दायां बाजू कटा देखना - बढ़़े भाई की मृत्यु
* बायां बाजू कटा देखना - छोटे भाई की मृत्यु
* पहाड़ से नीचे गिरना - अवनति
* स्वयं को पर्वतों पर चढ़ता देखना- सफलता
* विद्यार्थी का स्वयं को फेल होते देखना - सफलता
* कमल के पत्तों पर खीर खाते हुए देखना - राजा के समान सुख
* अतिथि आता दिखाई देना - अचानक विपत्ति
* अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देना - कष्ट या मानहानि
* स्वयं को मृत देखना - आयु वृद्धि,
* आत्म हत्या करना - दीर्धायु
* उल्लू दिखाई देना - रोग व शोक
* आग जलाकर उसे पकड़ता हुआ देखना - अनावश्यक व्यय
* ओपरेशन होता दिखाई देना - किसी बीमारी का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* खुद को कैंची चलाता देखना - व्यर्थ के वाद विवाद व लड़ाई झगड़ा
* कौआ बोलता दिखाई देना - किसी बीमारी या बुरे समाचार का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* कबूतर दिखाई देना - शुभ समाचार का सूचक
* काला नाग दिखाई देना - राजकीय सम्मान
* कोढ़ी दिखाई देना- रोग सूचक
* कोयला देखना- झगड़ा,
* श्मशान या कब्रिस्तान देखना - प्रतिष्ठा मेंं वृद्धि
* गोबर देखना - पशुधन लाभ
* ग्रहण देखना - रोग व चिंता
* गोली चलता देखना- मनोकामना पूर्ति
* गरीबी देखना -सुख समृद्धि
* गर्भपात देखना - गंभीर रोग
* शुक्र तारा देखना - शीध्र विवाह
* स्वयं रोटी बनाना - रोग
* स्वयं को नंगा देखना - मान प्रतिष्ठा की हानि, कष्ट
* देव दर्शन या देव स्थान दर्शन- लाभदायी
* राजदरबार देखना - मृत्यु सूचक
* दवाइयां देखना - उत्तम स्वास्थ्य
* किसी दम्पति का तलाक - गृह कलह
* ताज महल देखना - पति-पत्नी के संबंध विच्छेद
* नाई से हजामत बनवाना - अशुभ
* पति-पत्नी का मिलन - दाम्पत्य सुख,
* सूखी लकडिय़ां देखना - मृत्यु सूचक
* किसी कैदी या अपराधी को देखना - अशुभ प्यार
* भंडारा कराते देखना - धन लाभ
* सगाई देखना - अशुभ
* सूखा वृक्ष/ठूठ दिखाई देना - अशुभ प्यार
* तोता या तितली दिखाई देना - लाभप्रद।
इसी प्रकार स्वप्न मेंं दांत टूटना - दुख, झंझट, दरवाजा देखना - बढ़़े व्यक्ति से मित्रता, दरवाजा बंद देखना - परेशानियां, दलदल देखना - व्यर्थ की चिंता मेंं वृद्धि, सुपारी देखना - रोग मुक्ति, धुआं देखना - हानि एवं विवाद, रस्सी देखना - यात्रा, रूई देखना - स्वस्थ होना, खेती देखना - लापरवाह या संतान प्राप्ति, भूकंप देखना - संतान कष्ट, दुख, सीढ़ी देखना - सुख संपत्ति मेंं वृद्धि, सुराही देखना - बुरी संगत, चश्मा लगाना - विद्वत्ता मेंं वृद्धि, खाई देखना - धन एवं प्रसिद्धि की प्राप्ति, कैंची देखना - गृह कलह, कुत्ता देखना - उत्तम मित्र की प्राप्ति कलम देखना - महान पुरुष के दर्शन, टोपी देखना - दुख से मुक्ति, उन्नति, धनुष खींचना - लाभप्रद यात्रा, कीचड़ मेंं फंसना - कष्ट, व्यय, गाय या बैल देखना- मोटे से लाभ, दुबले से प्रसिद्धि, घास का मैदान देखना - धन की वृद्धि, घोड़ा देखना - संकट से बचाव, घोड़े पर सवार होना - पदोन्नति, लोहा देखना - किसी धनी से लाभ, लोमड़ी देखना - किसी संबंधी से धोखा, मोती देखना - कन्या की प्राप्ति, मुर्दे का पुकारना - विपत्ति एवं दुख, मुर्दे से बात करना - मुराद पूरी होने का संकेत, बाजार देखना - दरिद्रता से मुक्ति, बढ़़ी दीवार देखना - सम्मान की प्राप्ति, दीवार मेंं कील ठोकना - किसी वृद्ध से लाभ, दातुन करना - पाप का प्रायश्चित व सुख की प्राप्ति, खूंटा देखना - धर्म मेंं रुचि, धरती पर बिस्तर लगाना - दीर्घायु की प्राप्ति, सुख मेंं वृद्धि, उंचे स्थान पर चढऩा - पदोन्नति व प्रसिद्धि, बिल्ली देखना -चोर या शत्रु भय, बिल्ली या बंदर का काटना - रोग व अर्थ संकट, नदी का जल पीना - राज्य लाभ व परिश्रम, सफेद पुष्प देखना - दुख से मुक्ति, लाल फूल देखना - पुत्र सुख, भाग्योदय, पत्थर देखना - विपत्ति, मित्र का शत्रुवत व्यवहार, तलवार देखना - युद्ध मेंं विजय, तालाब या पोखरे मेंं स्नान करना - संन्यास की प्राप्ति, सिंहासन देखना - अतीव सुख की प्राप्ति, जंगल देखना - दुख से मुक्ति व विजय की प्राप्ति, अर्थी देखना - रोग से मुक्ति व आयु मेंं वृद्धि, जहाज देखना - परेशानी दूर होना या व्यय होना, चांदी देखना - धन व अहंकार मेंं वृद्धि, झरना देखना।
स्वप्न के आधार पर फल कथन करने मेंं ज्योतिषियों को आसानी होती है। अगर जातक की राहु, केतु या शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और जन्मकुंडली मेंं वे नीच स्थिति मेंं हों, तो उसे हमेंंशा डरावने स्वप्न आते हैं जैसे बार-बार सर्प दिखाई देना राहु केतु से बनने वाले कालसर्प योग के द्योतक होते हैं। यदि राहु, केतु व शनि की महादशा या अंतर्दशा हो और वे जन्मकुंडली मेंं स्वराशि या उच्च की राशि मेंं बैठे हों, तो जातक को शुभ स्वप्न आते हैं जैसे जर्मनी के फ्रेडरिक कैक्यूल को राहु से संबंधित सांप का वर्तुल आकार मेंं घूमकर स्वर्ण की अंगूठी जैसे आकार का बनकर अपने-आपको काटते हुए दिखाई देना। इसी भांति सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिहास होव को शनि की महादशा अंतर्दशा व कुंडली मेंं उनकी उच्च स्थिति होने के कारण उसके सिर मेंं राक्षस के दूतों द्वारा भाला भोंकने की स्वप्न की घटना जिसके फलस्वरूप उसने सिलाई मशीन का आविष्कार किया। उसी प्रकार यदि सूर्य या मंगल की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और वे नीचस्थ हों, तो आग एवं चोट लगने के स्वप्न दिखाई देते हैं। यदि उपर्युक्त महादशा व अंतर्दशा चल रही हो और जातक की जन्मकुंडली मेंं सूर्य और मंगल उच्च या स्वराशि मेंं हो, तो अशुभ स्वप्न नहींं बल्कि शुभ स्वप्न दिखाई देंगे जैसे राजकार्य मेंं जय, मांगलिक कार्य संपन्न होना आदि। यदि चंद्र और गुरु की महादशा अंतर्दशा हो और वे नीचस्थ हों तो कफ, पेट आदि से संबंधित रोग होते हैं। इसके विपरीत यदि चंद और गुरु उच्चस्थ हों, तो महादशा अंतर्दशा मेंं राजगद्दी प्राप्त होने के स्वप्न दिखाई देंगे। वहीं यदि शुक्र की उच्च स्थिति हो, तो सुख, ऐशो आराम, धन लक्ष्मी आदि से संबंधित और नीचस्थ हो, तो अनेक बीमारियों के स्वप्न दिखाई देते हैं।
नीचस्थ सूर्य की दशा/परिस्थिति या गोचरीय दशा आने पर रेतीले मरुस्थलों की सैर, मरुस्थलों का जहाज उंट, गर्म हवाओं के थपेड़े खाता हुआ बेतहासा मजनूं की तरह भागता मनुष्य, सूर्य का सारथी, उष्ण कटिबंधों के दृश्य, सूखा, फटती हुई जमीन, घर-मकान की दीवारों की दरारें, भूख प्यास से व्याकुल पागलों की तरह भटकते लोग, खौलता हुआ झरना, तपेदिक के मरीज, मृगतृष्णा का जल, मौत का सन्नाटा, तपे हुए लोहे के सिक्के लुटाती हुई अलक्ष्मी, सिर पर सेहरे की जगह कफन, ओले की जगह टपकते अंगारे, चांदनी बिखराता सूर्य, तपता हुआ चंद्रमा, हंसता हुआ सियार, चूहे की भांति दुबका हुआ शेर, आकाश मेंं पक्षियों की तरह उड़ता हुआ प्राणी, रोता हुआ मुर्दा आदि दिखाई देने की संभावना रहती है।
इसी तरह के स्वप्न गोचर मेंं वृष राशि मेंं प्रवेश करते हुए सूर्य की दशा मेंं अथवा उसकी दशांतर्दशा मेंं आ सकते हंै। काला बाबा की राशि मकर या कुंभ मेंं सूर्य के प्रवेश की दशा मेंं पर्वतारोहण करते मगरमच्छ, दिन मेंं देखते उल्लू, चलने हुए गरुण, दीपावली की रात्रि मेंं चमकता हुआ शरद पूर्णिमा के चंद्रमा, निशीथ काल मेंं खिलती हुई कुमुदिनी, चंद्रोदय होते ही खिलते हुए कमल से निकलते हुए भौंरे, पर्वत से पानी निकालती हुई पनिहारिन, दिन मेंं उदित होते चंद्रमा, रात्रि मेंं धूप, बीहड़ घने काले अंधियारे जंगल मेंं नाचते सफेद मोर, काले हंस, गुलाबी रंग की भैंस आदि के समान स्वप्न आ सकते है जिनका फल सदैव अशुभ ही होता है।
* चंद्र के दशा परिवर्तन से स्वप्नावस्था मेंं शरीर मेंं नाड़ी की गति मध्यम पड़ जाती है, खून का प्रवाह शिथिल हो जाता है, इंद्रियों की गति मंद हो जाती है और कफ का प्रकोप बढ़़ जाता है।
* मंगल की दशा अथवा गोचर मेंं परिवर्तन होने से मनुष्य को चोट-चपेट, दुर्घटना, अग्नि-कांड, शव-दाह, खून-खराबे, मृत्यु-दंड, यान-दुर्घटना, युद्ध के तांडव, उल्कापात, गर्भपात, पक्की इमारतों का भरभराकर गिर जाना, ज्वालामुखी पर्वत और उनके खौलते हुए एवं छलछलाने लावे के दृश्य स्वप्न मेंं दिखलाई देते हैं। मित्र लडऩे को उद्यत दिखाई देता है।
* बुध की अंतर्दशा मेंं सुंदर उपवन, हरे-भरे खेत, खंजन पक्षी, तोता विद्या प्राप्त करते बटुक, वृक्षों की ठंडी शीतल छांव मेंं विश्राम करते बटोही, परीक्षा के डर से भयभीत होते बच्चे, छड़ी दिखाता शिक्षार्थी, परीक्षा मेंं पास हो जाने पर हंसते मुस्कराते विद्यार्थी, सुंदरियों को वस्त्र लुटाता बजाज, बंध्या और पुत्र, मुनीमी करता सेठ, गीत सुनता बधिर, वक्ता बना गूंगा, बगुला भगत, सज्जन बना बातुल, बादशाही करता फकीर, शिष्ट तथा सुसंस्कृत बना गंवार, सुंदर हरे भरे ताजे फलों की डलिया, आदि नाना प्रकार के स्वप्न आते हैं। बुध की दशा मेंं पोथी प्रदान करती हुई सरस्वती जी यदि स्वप्न मेंं दर्शन दें, तो जातक वाणी की अधिष्ठात्री देवी वागीश्वरी की अनुपम कृपा का पात्र जातक बन जाता है।
गुरु की दशाओं मेंं भी जलीय दृश्य कफ प्रकृति जातकों को स्वप्न मेंं दिखलाई दे सकते हैं। गुरु की एक राशि मीन है जो जल तत्व वाली राशि है। उदर शूल, उदर व्रण, पाचन संस्थान संबंधी रोग, कफ जनित व्याधियों, वेदाध्ययन, वेद-पाठ, वेद-पुराण- उपनिषदों आदि के दर्शन, धर्म प्रवचन, संत-समागम, तीर्थ -यात्रा, गंगा-स्नान आदि से संबंधित विविध शुभाशुभ स्वप्न गुरु की अंतर्दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं। राज्याभिषेक संबंधी आनंदातिरेक देने वाले स्वप्न भी गुरु की दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं।
* राहु, केतु या शनि की महादशा, अंतर्दशा या गोचर मेंं इनकी अरिष्टकारक दशा चल रही हो, तो जातकों को बेहद भयानक स्वप्न दिखाई दे सकते हैं। राहु के अत्यधिक अशुभ होने पर स्वप्न ही नहींं, यथार्थ मेंं भी बिजली का करंट लग जाया करता है। डरावने स्वप्नों का वेग गहरी निद्रा मेंं डूबे हुए व्यक्ति को एकदम चैंका देता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डरावने स्वप्न देखता हुआ व्यक्ति उससे त्राण पा लेने को उठकर भाग जाना चाहता है परंतु स्वप्न के भारी दबाव के कारण वह बिस्तर से उठ भी नहींं पाता। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त, कफ ये शरीर के तीन दोष हैं। वात प्रधान लोगों को स्वप्न मेंं पर लग जाते हैं। वे नील गगन मेंं स्वप्न मेंं उडऩे का आनंद प्राप्त करते हैं। पित्त प्रकृति के लोग स्वप्न मेंं सारे जगत को जगमग ज्योति के रूप मेंं निहारने लगते हैं। वे चांद, सितारे, उल्का और सूरज की रज को प्राप्त कर लेना चाहते हैं। उन्हें चांद-सूरज, तारा गण सप्तर्षि आदि अपना बना लेना चाहते हैं। वे गगन को देखकर मगन हो जाते हैं। कफ प्रकृति वाले कूप, तड़ाग, बावलियों, नहरों, नदियों नालों झरनों, फव्वारों जलस्रोतों को स्वप्न मेंं देखकर स्वयं जल का देवता वरुण बन जाना चाहते हैं। वे चांदनी रात मेंं नौका-विहार करने लग जाते हैं। कोई स्वप्न मेंं स्वयं को जलतरंग बजाता हुआ देखता है, कोई जलधर ही बन जाता है, कोई जल प्रपात देखता है तो कोई जल प्रलय। उन्हें जल से जन्म लेने वाला जलज स्वप्न मेंं दिखाई देने लगता है। जल मेंं कभी वे जलपरी का जलवा देखते हैं, कभी जलजहाज को जल डमरूमध्य मेंं, तो कभी अपने को गोता लगाता हुआ देखते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि शुभाशुभ स्वप्न विभिन्न ग्रह स्थितियों मेंं तब आते हैं जब ग्रहों की महादशाओं की अंतर्दशाओं मेंं नीच, उच्च, स्वगृही, मित्र गृही, शत्रुगृही होते हैं। कोई भी ग्रह नीच, व शत्रुग्रही हो, तो जातक का बुरे व अशुभ स्वप्न आते हैं और यदि वह उच्च, स्वगृही व मित्र राशि मेंं हो, तो अच्छे व शुभ, उसके मनोनुकूल, स्वप्न आते हैं।
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उस परिवार के सदस्यों को दु:स्वप्न दिखाई देते हैं। याद भी रहते हैं जिससे वे विचलित दिखाई देते है।
धन लाभ कराने वाले स्वप्न:
कुछ स्वप्न व्यक्ति को धन लाभ कराने वाले होते हैं। हाथी, घोड़े, बैल, सिंह की सवारी, शत्रुओं के विनाश, वृक्ष तथा किसी दूसरे के घर पर चढ़े होने दही, छत्र, फूल, चंवर, अन्न, वस्त्र, दीपक, तांबूल, सूर्य, चंद्रमा, देवपूजा, वीणा, अस्त आदि के सपने धन लाभ कराने वाले होते हैं। कमल और कनेर के फूल देखना, कनेर के नीचे स्वयं को पुस्तक पढ़ते हुए देखना, नाखून एवं रोमरहित शरीर देखना, चिडिय़ों के पैर पकडक़र उड़ते हुए देखना, आदि धन लक्ष्मी की प्राप्ति व जमीन मेंं गड़े हुए धन मिलने के सूचक हैं।
मृत्यु सूचक स्वप्न:
कुछ स्वप्न स्वयं के लिए अनिष्ट फलदायक होते हैं। स्वप्न मेंं झूला झूलना, गीत गाना, खेलना, हंसना, नदी मेंं पानी के अंदर चले जाना, सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों व नक्षत्रों को गिरते हुए देखना, विवाह, गृह प्रवेश आदि उत्सव देखना, भूमि लाभ, दाढ़ी, मूंछ, बाल बनवाना, घी, लाख देखना, मुर्गा, बिलाव, गीदड़, नेवला, बिच्छू, मक्खी, शरीर पर तेल मलकर नंगे बदन, भैंसे, गधे, ऊंट, काले बैल या काले घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा की यात्रादि करना आदि मृत्यु सूचक हैं।
कुछ अनुभूत स्वप्न:
एक महिला का पुत्र बहुत बुरी स्थिति मेंं दिल्ली के एक अस्पताल मेंं दाखिल था। महिला स्वयं बीमारी के कारण बिस्तर से लगी थीं। उसे एक रात स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि उसके गले की मोती की माला टूट गई है। मोती बिखर गए हैं। नींद खुली तो उसने देखा कि माला टूटी हुई थी। बहुत ढूंढने पर भी मोती पूरे नहींं मिले। ठीक उसी समय अस्पताल मेंं उसके युवा पुत्र ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
जालंधर के एक व्यक्ति की पत्नी की छाती के कैंसर का ओपरेशन हो रहा था। उसे स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि कुछ लोग उन्हें मारने को दौड़े चले आ रहे हैं। वह भाग रहा और लोग पीछा कर रहे हैं। अचानक वह अस्पताल के निकट फ्लाई-ओवर पर चढ़ जाता है। स्वयं फिर वह अपने घर (जालंधर) के पास पहुंचा हुआ पाता है। वे लोग अब भी उसका पीछा कर रहे हैं। आस-पास के लोग उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं और वह खुद भाग कर घर मेंं छुपने की कोशिश करता है और नींद टूट जाती है। फिर उसने एक अच्छे दैवज्ञ से सलाह ली। स्वप्न का फल यही समझा गया कि उसकी पत्नी स्वस्थ हो जाएगी। यह बात अप्रैल 1980 की है। उसकी पत्नी आज भी जीवित और स्वस्थ है। लेकिन उस व्यक्ति का अचानक हृदय गति रुक जाने से जनवरी 1989 मेंं देहांत हो गया।
इस तरह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन मेंं आने वाली दुर्घटनाओं, उन्नति और शुभ समय के आगमन से संबंधित स्वप्न कई बार सच्चे साबित हो जाते हैं।
स्वप्न फल विचार:
जब भी किसी व्यक्ति के जीवन मेंं कोई असाधारण परिस्थिति होती है, स्वप्न आते हैं। कुछ विशिष्ट स्वप्न याद भी रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त के स्वप्न अक्सर सच भी होते हैं। रात के प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय प्रहर मेंं दिखने वाले स्वप्न लंबे समय के बाद सच होते हुए पाए जाते हैं। स्वप्नों के विषय मेंं कुछ प्रतीकों को हमारी लोक संस्कृति मेंं मान्यता प्राप्त है, जो इस प्रकार हैं।
* किसी की मृत्यु देखना -उसकी लंबी आयु होना।
* सीढ़ी चढऩा - उन्नति
* आकाश मेंं उडऩा - उन्नति
* सर्प अथवा जल देखना - धन की प्राप्ति
* बीमार व्यक्ति द्वारा काला सर्प देखना - मृत्यु
* सिर मुंडा देखना - मृत्यु
* स्वप्न मेंं भोजन करना - बीमारी
* दायां बाजू कटा देखना - बढ़़े भाई की मृत्यु
* बायां बाजू कटा देखना - छोटे भाई की मृत्यु
* पहाड़ से नीचे गिरना - अवनति
* स्वयं को पर्वतों पर चढ़ता देखना- सफलता
* विद्यार्थी का स्वयं को फेल होते देखना - सफलता
* कमल के पत्तों पर खीर खाते हुए देखना - राजा के समान सुख
* अतिथि आता दिखाई देना - अचानक विपत्ति
* अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देना - कष्ट या मानहानि
* स्वयं को मृत देखना - आयु वृद्धि,
* आत्म हत्या करना - दीर्धायु
* उल्लू दिखाई देना - रोग व शोक
* आग जलाकर उसे पकड़ता हुआ देखना - अनावश्यक व्यय
* ओपरेशन होता दिखाई देना - किसी बीमारी का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* खुद को कैंची चलाता देखना - व्यर्थ के वाद विवाद व लड़ाई झगड़ा
* कौआ बोलता दिखाई देना - किसी बीमारी या बुरे समाचार का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* कबूतर दिखाई देना - शुभ समाचार का सूचक
* काला नाग दिखाई देना - राजकीय सम्मान
* कोढ़ी दिखाई देना- रोग सूचक
* कोयला देखना- झगड़ा,
* श्मशान या कब्रिस्तान देखना - प्रतिष्ठा मेंं वृद्धि
* गोबर देखना - पशुधन लाभ
* ग्रहण देखना - रोग व चिंता
* गोली चलता देखना- मनोकामना पूर्ति
* गरीबी देखना -सुख समृद्धि
* गर्भपात देखना - गंभीर रोग
* शुक्र तारा देखना - शीध्र विवाह
* स्वयं रोटी बनाना - रोग
* स्वयं को नंगा देखना - मान प्रतिष्ठा की हानि, कष्ट
* देव दर्शन या देव स्थान दर्शन- लाभदायी
* राजदरबार देखना - मृत्यु सूचक
* दवाइयां देखना - उत्तम स्वास्थ्य
* किसी दम्पति का तलाक - गृह कलह
* ताज महल देखना - पति-पत्नी के संबंध विच्छेद
* नाई से हजामत बनवाना - अशुभ
* पति-पत्नी का मिलन - दाम्पत्य सुख,
* सूखी लकडिय़ां देखना - मृत्यु सूचक
* किसी कैदी या अपराधी को देखना - अशुभ प्यार
* भंडारा कराते देखना - धन लाभ
* सगाई देखना - अशुभ
* सूखा वृक्ष/ठूठ दिखाई देना - अशुभ प्यार
* तोता या तितली दिखाई देना - लाभप्रद।
इसी प्रकार स्वप्न मेंं दांत टूटना - दुख, झंझट, दरवाजा देखना - बढ़़े व्यक्ति से मित्रता, दरवाजा बंद देखना - परेशानियां, दलदल देखना - व्यर्थ की चिंता मेंं वृद्धि, सुपारी देखना - रोग मुक्ति, धुआं देखना - हानि एवं विवाद, रस्सी देखना - यात्रा, रूई देखना - स्वस्थ होना, खेती देखना - लापरवाह या संतान प्राप्ति, भूकंप देखना - संतान कष्ट, दुख, सीढ़ी देखना - सुख संपत्ति मेंं वृद्धि, सुराही देखना - बुरी संगत, चश्मा लगाना - विद्वत्ता मेंं वृद्धि, खाई देखना - धन एवं प्रसिद्धि की प्राप्ति, कैंची देखना - गृह कलह, कुत्ता देखना - उत्तम मित्र की प्राप्ति कलम देखना - महान पुरुष के दर्शन, टोपी देखना - दुख से मुक्ति, उन्नति, धनुष खींचना - लाभप्रद यात्रा, कीचड़ मेंं फंसना - कष्ट, व्यय, गाय या बैल देखना- मोटे से लाभ, दुबले से प्रसिद्धि, घास का मैदान देखना - धन की वृद्धि, घोड़ा देखना - संकट से बचाव, घोड़े पर सवार होना - पदोन्नति, लोहा देखना - किसी धनी से लाभ, लोमड़ी देखना - किसी संबंधी से धोखा, मोती देखना - कन्या की प्राप्ति, मुर्दे का पुकारना - विपत्ति एवं दुख, मुर्दे से बात करना - मुराद पूरी होने का संकेत, बाजार देखना - दरिद्रता से मुक्ति, बढ़़ी दीवार देखना - सम्मान की प्राप्ति, दीवार मेंं कील ठोकना - किसी वृद्ध से लाभ, दातुन करना - पाप का प्रायश्चित व सुख की प्राप्ति, खूंटा देखना - धर्म मेंं रुचि, धरती पर बिस्तर लगाना - दीर्घायु की प्राप्ति, सुख मेंं वृद्धि, उंचे स्थान पर चढऩा - पदोन्नति व प्रसिद्धि, बिल्ली देखना -चोर या शत्रु भय, बिल्ली या बंदर का काटना - रोग व अर्थ संकट, नदी का जल पीना - राज्य लाभ व परिश्रम, सफेद पुष्प देखना - दुख से मुक्ति, लाल फूल देखना - पुत्र सुख, भाग्योदय, पत्थर देखना - विपत्ति, मित्र का शत्रुवत व्यवहार, तलवार देखना - युद्ध मेंं विजय, तालाब या पोखरे मेंं स्नान करना - संन्यास की प्राप्ति, सिंहासन देखना - अतीव सुख की प्राप्ति, जंगल देखना - दुख से मुक्ति व विजय की प्राप्ति, अर्थी देखना - रोग से मुक्ति व आयु मेंं वृद्धि, जहाज देखना - परेशानी दूर होना या व्यय होना, चांदी देखना - धन व अहंकार मेंं वृद्धि, झरना देखना।
रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के योग
लग्न मेंं स्थित बलवान ग्रह शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देता है। और यदि लग्नेश और दशमेंश मित्र हो अथवा यदि चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच मित्रता हो तो भी रोगी शीघ्र रोग मुक्त होता है। लग्नेश का चन्द्र के साथ संबंध हो और चन्द्र शुभ ग्रहों के प्रभाव मेंं या केन्द्र मेंं स्थित हो तो भी ऐसा होता है, इसी प्रकार शुभ ग्रहों के प्रभाव के अंतर्गत केन्द्र मेंं लग्नेश और चन्द्र की स्थिति शीघ्र लाभ बताती है। इस योग मेंं सप्तमेंश वक्री नहींं होना चाहिए और सप्तमेंश सूर्य या अष्टम भाव के स्वामी से प्रभावित नहींं होना चाहिए।
चन्द्रमा से रोग मुक्ति :
अपनी राशि अथवा उच्च राशि मेंं बलवान चन्द्रमा एक शुभ ग्रह के साथ संबंध बनाए तो रोगी जल्द रोग मुक्त होता है, चन्द्र चर अथवा द्विस्वभाव राशि मेंं होकर, लग्न और लग्नेश ग्रहो द्वारा दृष्ट हो, तब ऐसा होता है। चन्द्रमा अपनी राशी मेंं चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी जल्दी ठीक होता है व शुभ ग्रहो से दृष्ट चन्द्र अथवा सूर्य एक, चार या सातवें भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी ठीक होता है।
देरी या कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं:
यदि लग्नेश और दशमेश के बीच अथवा चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच शत्रुता हो तो रोग और बढ़़ जाता है, यह सभी विषम लग्नों मेंं सत्य होगा, जबकि सम लग्नों मेंं वे मित्र होंगे। षष्टेश रोग बताता है, और यदि किसी प्रश्न कुण्डली मेंं षष्टेश का अष्टमेंश अथवा द्वादशेश के साथ संबंध बनाए तो स्वास्थ्य लाभ की संभावनाएँ नहींं होती। लग्न मेंं चन्द्र अथवा शुक्र हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है, प्रश्न कुण्डली मेंं लग्नेश एवं मंगल की युति का होना भी कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं देता है, द्वादश भाव मेंं लग्नेश स्थित हो तो रोगी देर से ठीक होता है, इसी प्रकार यदि लग्नेश षष्टम, अष्टम भाव मेंं स्थित हो और अष्टमेंश केन्द्र मेंं स्थित हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है।
रोगी के मृत्यु की संभावनाएँ:
लग्नेश, सप्तमेंश से चतुर्थ, षष्ट भाव या सप्तम भाव मेंं स्थित हो तो रोगी की मृत्यु की संभावनाएँ बढ़़ जाती है, या अष्टमेंश की अपेक्षा लग्नेश बलहीन हो तो भी ऐसा होता है, लग्नेश केन्द्र मेंं स्थित हो और वक्री ग्रह अथवा अस्त ग्रह के साथ संबंध बनाए, लग्नेश और अष्टमेंश युति मेंं हो, क्रूर ग्रहों से पीडि़त होकर केन्द्र मेंं स्थित होने पर रोगी ठीक नहींं होता है, यदि लग्न मेंं चर राशि है तो प्रारम्भ मेंं तो रोगी ठीक होता लगता है लेकिन रोग वापस आने से मृत्यु हो जाती है।
चन्द्रमा से रोग मुक्ति :
अपनी राशि अथवा उच्च राशि मेंं बलवान चन्द्रमा एक शुभ ग्रह के साथ संबंध बनाए तो रोगी जल्द रोग मुक्त होता है, चन्द्र चर अथवा द्विस्वभाव राशि मेंं होकर, लग्न और लग्नेश ग्रहो द्वारा दृष्ट हो, तब ऐसा होता है। चन्द्रमा अपनी राशी मेंं चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी जल्दी ठीक होता है व शुभ ग्रहो से दृष्ट चन्द्र अथवा सूर्य एक, चार या सातवें भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी ठीक होता है।
देरी या कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं:
यदि लग्नेश और दशमेश के बीच अथवा चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच शत्रुता हो तो रोग और बढ़़ जाता है, यह सभी विषम लग्नों मेंं सत्य होगा, जबकि सम लग्नों मेंं वे मित्र होंगे। षष्टेश रोग बताता है, और यदि किसी प्रश्न कुण्डली मेंं षष्टेश का अष्टमेंश अथवा द्वादशेश के साथ संबंध बनाए तो स्वास्थ्य लाभ की संभावनाएँ नहींं होती। लग्न मेंं चन्द्र अथवा शुक्र हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है, प्रश्न कुण्डली मेंं लग्नेश एवं मंगल की युति का होना भी कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं देता है, द्वादश भाव मेंं लग्नेश स्थित हो तो रोगी देर से ठीक होता है, इसी प्रकार यदि लग्नेश षष्टम, अष्टम भाव मेंं स्थित हो और अष्टमेंश केन्द्र मेंं स्थित हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है।
रोगी के मृत्यु की संभावनाएँ:
लग्नेश, सप्तमेंश से चतुर्थ, षष्ट भाव या सप्तम भाव मेंं स्थित हो तो रोगी की मृत्यु की संभावनाएँ बढ़़ जाती है, या अष्टमेंश की अपेक्षा लग्नेश बलहीन हो तो भी ऐसा होता है, लग्नेश केन्द्र मेंं स्थित हो और वक्री ग्रह अथवा अस्त ग्रह के साथ संबंध बनाए, लग्नेश और अष्टमेंश युति मेंं हो, क्रूर ग्रहों से पीडि़त होकर केन्द्र मेंं स्थित होने पर रोगी ठीक नहींं होता है, यदि लग्न मेंं चर राशि है तो प्रारम्भ मेंं तो रोगी ठीक होता लगता है लेकिन रोग वापस आने से मृत्यु हो जाती है।
Thursday, 19 May 2016
पढाई-लिखाई में सफलता के शास्त्रीय उपाय
पढाई-लिखाई मेंं सफलता के शास्त्रीय उपाय विद्यार्थी जगत की उपलब्धियों मेंं पुस्तक, विद्यालय और शिक्षक के अलावा जिन महत्वपूर्ण बातों का विशिष्ट योगदान रहता है। उनमेंं परिवेश अर्थात वास्तु एवं अन्य कारकों का सही योगदान होने और कुछ छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से उपलब्धि की गुणवत्ता निश्चित रूप से कई गुना बढ़़ जाती है। यहां ऐसे कुछ घटक तत्वों और कारकों का उल्लेख है जिनका लाभ सभी विद्यार्थी उठा सकते हैं। अध्ययन कक्ष एक ऐसा स्थान है, जहां पर व्यक्ति ज्ञान, बुद्धि के साथ-साथ पढ़ऩे के शौक को पूरा करता है। इस कक्ष का वास्तविक क्षेत्र, भवन के उत्तर-पूर्व मेंं होता है। इसके अलावा यह कक्ष उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम दिशा के बीच भी हो सकता है। दक्षिण-पश्चिम (नैत्य कोण) दक्षिण, वायव्य कोण अध्ययन कक्ष के लिए उपयुक्त नहींं होते। उत्तर-पश्चिम दिशा के बढ़़े हुए भाग मेंं बच्चों को कभी अध्ययन न करने दें। यहां अध्ययन करने से बच्चे के घर से भागने की इच्छा होगी। अध्ययन-कक्ष मेंं विद्यार्थियों को सदैव पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ मुंह करके पढ़ऩा चाहिए। इससे वह विलक्षण प्रतिभा का धनी व ज्ञानवान होगा। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ऩे वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अधिकारी तक हो सकते हैं। पूर्व दिशा लिखने-पढ़ऩे के लिए सर्वोत्तम होती है। उत्तर-पूर्व मेंं रहने वाले बच्चे की सेहत भी काफी अच्छी रहती है। मकान के उत्तर-पूर्व कोण के बने कमरे मेंं दक्षिण या पश्चिम की ठोस दीवार के सहारे बैठकर पढ़ऩे से सफलता जल्दी मिलती है। इस कमरे मेंं उत्तर-पूर्व की दीवार पर रोशनदान या खिडक़ी जरूर होनी चाहिए। बच्चे को आग्नेय कोण मेंं बैठकर पढ़ऩे से मना करें, क्योंकि यहां बैठने से रक्तचाप बढ़़ता है और बच्चा हमेशा ही परेशान रहता है। मेहनत करने के बावजूद भी सफलता हाथ नहींं लगती। पढ़़ाई हो या दफ्तर, पीठ के पीछे खिडक़ी शुभ नहींं होती। इससे पढ़़ाई/नौकरी छूट जाती है। पीछे व कंधे पर रोशनी या हवा का आना अशुभता को ही दर्शाता है। जिस मकान मेंं, जहां कहीं भी तीन या इससे अधिक दरवाजे एक सीध मेंं हो या गली की सीध मेंं हों तो उसके बीच मेंं बैठकर नहींं पढ़ऩा चाहिए। इसके बीच मेंं बैठकर पढ़ऩे से बच्चे की सेहत ठीक नहींं रहती, साथ ही पढ़ऩे मेंं भी मन नहींं लगता। विद्यार्थियों को किसी बीम या दुछत्ती के नीचे बैठकर पढ़ऩा या सोना नहींं चाहिए, अन्यथा मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। अध्ययन कक्ष की दीवार या पर्दे का रंग हल्का पीला, हल्का हरा, हल्का आसमानी हो तो बेहतर है। कुंडली के अनुसार शुभ रंग जानकर अगर दीवारों पर करवाया जाये, तो ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आते हैं। यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से दक्षिण व पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। ईशान कोण मेंं कभी भी कम्प्यूटर न रखें। अध्ययन-कक्ष के टेबल पर उत्तर-पूर्व कोण मेंं एक गिलास पानी का रखें। इसके अलावा टेबल के सामने या पास मेंं मुंह देखने वाला आईना न रखें। अध्ययन कक्ष मेंं सोना मना है। इस कारण से वहां पर पलंग, गद्दा-रजाई आदि नहींं होनी चाहिए। वैसे सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा की ओर अच्छा रहता है।
रुद्राक्ष रत्न कवच:
यह कवच चार मुखी रुद्राक्ष एवं पन्ना रत्न के संयुक्त मेंल से निर्मित होता है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप होने से इसे विद्या प्राप्ति के लिए धारण करना शुभ होता है। पन्ना रत्न से बुद्धि का विकास होता है, जिससे पढ़़ाई मेंं अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
सरस्वती यंत्र:
जिन विद्यार्थियों को अधिक मेंहनत करने पर भी परीक्षा मेंं अच्छे अंक प्राप्त नहींं होते, उन्हें यह यंत्र घर मेंं स्थापित करना चाहिए और श्रद्धा से धूप, दीप, गंध, अक्षत आदि से पूजन तथा निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।
मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नम:॥ या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
फेंगशुई:
अगर बच्चे का पढ़़ाई मेंं मन नहींं लगा रहा हो, तो टेबल पर एजुकेशन टावर लगाना चाहिए। इसके प्रभाव से बच्चे की पढ़़ाई मेंं एकाग्रता बढ़़ेगी और पढ़़ाई मेंं बच्चे का मन लगने लगेगा। बच्चे की परीक्षा मेंं शानदार सफलता के लिए अध्ययन कक्ष मेंं स्फटिक गोले उत्तर दिशा मेंं लटकाने चाहिए। नवरत्न का पौधा बच्चे के नवग्रह को ठीक करता है। इसे उत्तर दिशा मेंं लगाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी मेंज पर ग्लोब रखें और इसे दिन मेंं तीन बार घुमाएं।
पिरामिड :
पिरामिड का जल अगर बच्चे को पिलाया जाये तो बच्चे की सेहत ठीक रहेगी और बच्चे की पढ़़ाई मेंं रुचि बढ़़ेगी।
रुद्राक्ष रत्न कवच:
यह कवच चार मुखी रुद्राक्ष एवं पन्ना रत्न के संयुक्त मेंल से निर्मित होता है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप होने से इसे विद्या प्राप्ति के लिए धारण करना शुभ होता है। पन्ना रत्न से बुद्धि का विकास होता है, जिससे पढ़़ाई मेंं अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
सरस्वती यंत्र:
जिन विद्यार्थियों को अधिक मेंहनत करने पर भी परीक्षा मेंं अच्छे अंक प्राप्त नहींं होते, उन्हें यह यंत्र घर मेंं स्थापित करना चाहिए और श्रद्धा से धूप, दीप, गंध, अक्षत आदि से पूजन तथा निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।
मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नम:॥ या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
फेंगशुई:
अगर बच्चे का पढ़़ाई मेंं मन नहींं लगा रहा हो, तो टेबल पर एजुकेशन टावर लगाना चाहिए। इसके प्रभाव से बच्चे की पढ़़ाई मेंं एकाग्रता बढ़़ेगी और पढ़़ाई मेंं बच्चे का मन लगने लगेगा। बच्चे की परीक्षा मेंं शानदार सफलता के लिए अध्ययन कक्ष मेंं स्फटिक गोले उत्तर दिशा मेंं लटकाने चाहिए। नवरत्न का पौधा बच्चे के नवग्रह को ठीक करता है। इसे उत्तर दिशा मेंं लगाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी मेंज पर ग्लोब रखें और इसे दिन मेंं तीन बार घुमाएं।
पिरामिड :
पिरामिड का जल अगर बच्चे को पिलाया जाये तो बच्चे की सेहत ठीक रहेगी और बच्चे की पढ़़ाई मेंं रुचि बढ़़ेगी।
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